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प्रभु का संध्या भोज इसे कितनी बार मनाया जाना चाहिए?प्रहरीदुर्ग—1994 | मार्च 1
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यह भी याद रखिए कि यीशु ने इस अनुपालन को शुरू किया और फिर यहूदी कलेण्डर की तारीख़, निसान १४ को मरा।a वह फसह का दिन था, वह त्योहार जो यहूदियों को उस बड़े छुटकारे की याद दिलाता था जो उन्होंने मिस्र में सा.यु.पू. १६वीं शताब्दी में अनुभव किया था। उस समय एक मेम्ने के बलिदान के परिणामस्वरूप यहूदियों के पहलौठों का उद्धार हुआ, जबकि यहोवा के स्वर्गदूत ने मिस्र के सभी पहलौठों का घात किया।—निर्गमन १२:२१, २४-२७.
यह हमारी समझ में कैसे मदद करता है? मसीही प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है।” (१ कुरिन्थियों ५:७) यीशु की मृत्यु फसह का बड़ा बलिदान था, जिसने मानवजाति को कहीं बड़े उद्धार का अवसर दिया। इसलिए, मसीहियों के लिए मसीह की मृत्यु के स्मारक ने यहूदी फसह का स्थान ले लिया है।—यूहन्ना ३:१६.
फसह एक वार्षिक उत्सव था। तो फिर, तर्कसंगत रूप से, स्मारक भी वैसा ही है। फसह—जिस दिन यीशु मरा—हमेशा यहूदी महीने, निसान के १४वें दिन आता था। अतः, मसीह की मृत्यु का स्मारक साल में एक बार कलेण्डर की उस तारीख़ को मनाया जाना चाहिए जो निसान १४ से मेल खाती है। वर्ष १९९४ में वह दिन सूर्यास्त के बाद, शनिवार, मार्च २६ है। लेकिन ऐसा क्यों है कि मसीहीजगत के गिरजों ने इसे ख़ास अनुपालन का दिन नहीं बनाया है? इतिहास की एक हल्की-सी झलक इस प्रश्न का उत्तर देगी।
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प्रभु का संध्या भोज इसे कितनी बार मनाया जाना चाहिए?प्रहरीदुर्ग—1994 | मार्च 1
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a निसान, यहूदी साल का पहला महीना, नए चाँद के पहली बार दिखने से शुरू होता था। अतः निसान १४ हमेशा पूर्णिमा के समय आता था।
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