बाइबल की किताब नंबर 46—1 कुरिन्थियों
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: इफिसुस
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 55
कुरिन्थुस “एक मशहूर और ऐयाश शहर था, जहाँ पूरब और पश्चिम की तमाम बुराइयाँ पायी जाती थीं।”a यह शहर, महाद्वीप यूनान और पेलोपोनीसस के बीच के इस्थमस (ज़मीन का छोटा हिस्सा जो दो बड़े हिस्सों को जोड़ता हो) पर बसा था। इसलिए मुख्य भाग यूनान तक जानेवाला रास्ता कुरिन्थुस शहर के कब्ज़े में था। प्रेरित पौलुस के दिनों में यहाँ की आबादी करीब 4,00,000 थी। इससे ज़्यादा आबादी तो सिर्फ रोम, सिकंदरिया और सूरिया अन्ताकिया में पायी जाती थी। कुरिन्थुस के पूरब की तरफ एजियन समुद्र था और पश्चिम की तरफ कुरिन्थुस की खाड़ी और आयोनियन समुद्र। यह अखया प्रांत की राजधानी था और उसके दो बंदरगाह थे, किंख्रिया और लेकाउम। इसलिए व्यापार के मकसद से देखा जाए, तो कुरिन्थुस एक बहुत ही अच्छी जगह पर बसा था। यह शहर यूनानी शिक्षा हासिल करने की भी खास जगह था। कहा जाता है कि “यह शहर अपनी दौलत, अपनी बुराइयों और पैसे उड़ाने के लिए इतना मशहूर था कि कुरिन्थुस का शब्द सुनते ही लोगों के मन में ये सारी बातें उभर आती थीं।”b इस शहर के झूठे धार्मिक रिवाज़ों में से एक था, अफ्रोडाइट की पूजा करना (जो रोम की देवी वीनस की तरह एक देवी थी)। कुरिन्थुस के लोगों की उपासना में नीच लैंगिक काम भी शामिल थे।
2 रोमी साम्राज्य के इसी बड़े और फलते-फूलते मगर बदचलन शहर में प्रेरित पौलुस करीब सा.यु. 50 में आया था। वह यहाँ 18 महीनों तक रहा और इस दौरान एक मसीही कलीसिया की शुरूआत हुई। (प्रेरि. 18:1-11) ज़रा सोचिए, पौलुस को कुरिन्थुस के उन मसीहियों से कितना गहरा लगाव होगा, जिन्हें उसने पहली बार मसीह के बारे में सुसमाचार सुनाया था! अपनी पत्री के ज़रिए उसने उन्हें याद दिलाया कि उनके बीच कैसा मज़बूत आध्यात्मिक रिश्ता है। उसने कहा: “यदि मसीह में तुम्हारे सिखानेवाले दस हजार भी होते, तौभी तुम्हारे पिता बहुत से नहीं, इसलिये कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा मैं तुम्हारा पिता हुआ।”—1 कुरि. 4:15.
3 पौलुस को कुरिन्थुस के मसीहियों की आध्यात्मिक खैरियत की गहरी चिंता थी। इसलिए अपनी तीसरी मिशनरी यात्रा के दौरान उसने उन्हें अपनी पहली पत्री लिखी। उसे कुरिन्थुस से आए कुछ साल हो गए थे। अब लगभग सा.यु. 55 का समय था और पौलुस इफिसुस में था। ऐसा मालूम होता है कि उसे कुरिन्थुस की इस नयी कलीसिया से एक खत मिला था और उसे उसका जवाब देना था। इसके अलावा, उसे कलीसिया के बारे में कुछ ऐसी खबरें भी मिलीं, जिसे सुनकर वह परेशान हो उठा। (7:1; 1:11; 5:1; 11:18) उन खबरों से वह इतना दुःखी था कि उसने कुरिन्थुस कलीसिया के खत का जवाब अपनी पत्री के कई अध्याय बाद, यानी सातवें अध्याय में दिया। पौलुस ने खासकर इन खबरों की वजह से ही कुरिन्थुस में अपने मसीही भाइयों को खत लिखा था।
4 लेकिन हम कैसे जानते हैं कि पौलुस ने पहला कुरिन्थियों इफिसुस में लिखा था? एक सबूत यह है कि प्रेरित पौलुस अपनी पत्री के आखिर में शुभकामनाएँ भेजते वक्त अक्विला और प्रिसका (प्रिस्किल्ला) की तरफ से भी शुभकामनाएँ भेजता है। (16:19) प्रेरितों 18:18,19 बताता है कि अक्विला और प्रिस्किल्ला कुरिन्थुस से इफिसुस में आ बसे थे। अगर वे इफिसुस में थे और पौलुस ने पहला कुरिन्थियों के आखिर में उनकी तरफ से भी शुभकामनाएँ भेजीं, तो इसका मतलब हुआ कि पौलुस भी पत्री लिखते वक्त इफिसुस में था। लेकिन इस बात का सबसे ठोस सबूत है, पहला कुरिन्थियों 16:8 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) जहाँ पौलुस ने कहा: “मैं पिन्तेकुस्त के उत्सव तक इफिसुस में ही ठहरूँगा।” इन बातों से ज़ाहिर है कि पौलुस ने पहला कुरिन्थियों इफिसुस में लिखा था और शायद उस वक्त, जब वह कुछ ही समय बाद इफिसुस से रवाना होनेवाला था।
5 पहला और दूसरा कुरिन्थियों के सच होने पर कोई सवाल नहीं उठाया जाता। शुरू के मसीहियों ने इन पत्रियों को अपने संग्रह में शामिल किया था। वे मानते थे कि पौलुस ने इन्हें लिखा था और ये पवित्र शास्त्र का हिस्सा हैं। दरअसल, कहा जाता है कि ‘फर्स्ट क्लैमेंट’ नाम के एक खत में पहला कुरिन्थियों का कम-से-कम छः बार सीधे-सीधे या दूसरे तरीके से हवाला दिया गया है। यह खत करीब सा.यु. 95 में लिखा गया था और इसे रोम से कुरिन्थुस भेजा गया था। इसके लेखक ने खत पढ़नेवालों को “धन्य प्रेरित पौलुस की पत्री पढ़ने” को उकसाया।c जस्टिन मार्टर, अथेनागोरस, आइरीनियस और टर्टलियन ने भी पहला कुरिन्थियों से सीधे-सीधे हवाले दिए। इस बात का ठोस सबूत है कि पौलुस की पत्रियों के संग्रह को, जिसमें पहला और दूसरा कुरिन्थियों भी शामिल थीं, “पहली सदी के आखिरी दशक में इकट्ठा करके छापा गया था।”d
6 पौलुस की इस पहली पत्री से हमें कुरिन्थुस कलीसिया के अंदर का हाल मालूम होता है। वहाँ के मसीहियों को कई समस्याएँ थीं और उन्हें कई सवालों के जवाब चाहिए थे। कलीसिया में फूट पड़ी थी और कुछ मसीही, इंसान के पीछे चल रहे थे। लैंगिक अनैतिकता का एक घिनौना मामला सामने आया था। कुछ मसीहियों के परिवार में सभी सदस्य सच्चाई में नहीं थे। इसलिए सवाल यह था कि क्या उन्हें अपने अविश्वासी पति या पत्नी के साथ रहना चाहिए या अलग हो जाना चाहिए? मूरतों को चढ़ाए गए माँस के बारे में क्या? क्या उन्हें यह माँस खाना चाहिए या नहीं? कुरिन्थुस के मसीहियों को सभा चलाने साथ ही, प्रभु का संध्या भोज मनाने के बारे में भी सलाह की ज़रूरत थी। कलीसिया में बहनों की क्या भूमिका होनी चाहिए? इसके अलावा, कलीसिया में कुछ ऐसे भी थे, जो पुनरुत्थान की शिक्षा को मानने से इनकार कर रहे थे। समस्याएँ तो ढेरों थीं, लेकिन प्रेरित पौलुस को खासकर कलीसिया की आध्यात्मिक बहाली की फिक्र थी।
7 कुरिन्थुस की कलीसिया के हालात और उस प्राचीन शहर की चमक-दमक और बदचलनी का माहौल आज हमारे ज़माने से काफी मिलता-जुलता है। इसलिए हमें पौलुस की उन उम्दा सलाहों पर ध्यान देना चाहिए, जो उसने ईश्वर-प्रेरणा से लिखी थीं। पौलुस ने कुरिन्थुस के प्यारे भाई-बहनों को अपनी पहली पत्री में जो बातें कहीं, वे हमारे दिनों के लिए गहरा अर्थ रखती हैं। अगर हम उसकी पत्री का मन लगाकर अध्ययन करें, तो यह सचमुच बहुत फायदेमंद साबित होगी। उस समय और जगह की कल्पना करने की कोशिश कीजिए, जब यह पत्री लिखी गयी थी। प्राचीन समय के उन मसीहियों को पौलुस ने ईश्वर-प्रेरणा से जो गहरी और दिल को छू जानेवाली बातें लिखी, उन पर गहराई से मनन कीजिए, ठीक जैसे कुरिन्थुस के मसीहियों ने किया था।
क्यों फायदेमंद है
23 प्रेरित पौलुस की यह पत्री बहुत फायदेमंद है क्योंकि इसमें इब्रानी शास्त्र से कई हवाले दिए गए हैं, जो इस शास्त्र के बारे में हमारी समझ बढ़ाते हैं। दसवें अध्याय में पौलुस बताता है कि इस्राएलियों ने मूसा की अगुवाई में आत्मिक चट्टान से पानी पीया और वह चट्टान मसीह था। (1 कुरि. 10:4; गिन. 20:11) इसके बाद, पौलुस मूसा की अगुवाई में चलनेवाले इस्राएलियों का उदाहरण देकर समझाता है कि बुरी वस्तुओं का लालच करने के क्या भयानक अंजाम होते हैं। फिर वह आगे कहता है: “ये सब बातें, जो उन पर पड़ीं, दृष्टान्त की रीति पर थीं: और वे हमारी चितावनी के लिये जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गईं हैं।” आइए हम हमेशा सावधान रहें कि हम खुद पर भरोसा करने न लग जाए और यह सोचने न लगें कि हम कभी गिर नहीं सकते! (1 कुरि. 10:11, 12; गिन. 14:2; 21:5; 25:9) इसके बाद पौलुस, व्यवस्था से एक और दृष्टांत देता है। वह मेलबलियों का ज़िक्र करता है, ताकि प्रभु के संध्या भोज में हिस्सा लेनेवाले जान सकें कि उन्हें कैसे उचित रीति से परमेश्वर की मेज़ से खाना है। फिर, पौलुस अपनी इस दलील को पुख्ता करने के लिए कि बाज़ार में बिकनेवाला माँस खाना गलत नहीं, भजन 24:1 का हवाला देकर कहता है: “पृथ्वी और जो कुछ उसमें है सब प्रभु का है।” (NHT)—1 कुरि. 10:18, 21, 26; निर्ग. 32:6; लैव्य. 7:11-15.
24 पौलुस दिखाना चाहता था कि “परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये [जो चीज़ें] तैयार की हैं” वे श्रेष्ठ हैं और इस दुनिया के “ज्ञानियों के तर्क-वितर्क” व्यर्थ हैं। इसके लिए, वह एक बार फिर इब्रानी शास्त्र से हवाला देता है। (1 कुरि. 2:9; 3:20, NHT; यशा. 64:4; भज. 94:11) अध्याय 5 में पौलुस पाप करनेवाले व्यक्ति को बहिष्कृत करने की हिदायत देता है। उसने किस आधार पर यह हिदायत दी, यह बताने के लिए वह यहोवा के इस नियम का हवाला देता है कि ‘बुराई को अपने मध्य से दूर करो।’ (व्यव. 17:7) सेवा के ज़रिए अपनी ज़िंदगी की ज़रूरतों को पाने के हक पर चर्चा करते वक्त पौलुस दोबारा मूसा की व्यवस्था से हवाला देता है। उसमें लिखा है कि दाँवनेवाले जानवरों को खाने से रोकने के लिए उनका मुँह नहीं बाँधा जाना चाहिए और मंदिर में सेवा करनेवाले लेवियों को वेदी पर चढ़ाए जानेवाली भेंट से हिस्सा मिलना चाहिए।—1 कुरि. 9:8-14; व्यव. 25:4; 18:1.
25 वाकई ईश्वर-प्रेरणा से कुरिन्थुस कलीसिया को लिखी पौलुस की पहली पत्री में हमारे लिए कितनी फायदेमंद जानकारी है। फूट पैदा करने और इंसानों का चेला बनने के खिलाफ जो सलाह दी गयी है, उसके बारे में मनन कीजिए। (अध्याय 1-4) अनैतिकता के उस मामले को याद कीजिए और सोचिए कि कैसे पौलुस ने अच्छे गुणों और कलीसिया में शुद्धता बनाए रखने पर ज़ोर दिया था। (अध्याय 5, 6) कुँवारे रहने, शादी करने और अलग होने के बारे में ईश्वर-प्रेरणा से दी उसकी सलाह पर गौर कीजिए। (अध्याय 7) याद कीजिए कि पौलुस ने कैसे मूरतों को चढ़ाए जानेवाले भोग के बारे में चर्चा की। साथ ही, दूसरों को ठोकर खिलाने और मूर्तिपूजा में फँसने से दूर रहने पर ज़बरदस्त तरीके से ज़ोर दिया था। (अध्याय 8-10) इसके अलावा, उसने अधीनता के बारे में सलाह दी, आध्यात्मिक वरदानों की बात की और हमेशा कायम रहनेवाले बढ़िया गुण प्रेम पर व्यावहारिक चर्चा की। इतना ही नहीं, प्रेरित पौलुस ने इस बात पर बेहतरीन तरीके से ज़ोर दिया कि कलीसिया की सभाएँ कायदे से चलायी जानी चाहिए। (अध्याय 11-14) उसने ईश्वर-प्रेरणा से अपनी पत्री में पुनरुत्थान की क्या ही शानदार तरीके से पैरवी की! (अध्याय 15) ये और दूसरी कई बातें इस पत्री में दी गयी हैं। वाकई ये सारी बातें हम मसीहियों के लिए कितनी अनमोल हैं!
26 यह पत्री बाइबल के शानदार विषय यानी परमेश्वर के राज्य के बारे में हमारी समझ बढ़ाती है। यह कड़े शब्दों में चेतावनी देती है कि अधर्मी लोग परमेश्वर के राज्य में दाखिल नहीं होंगे। और यह उन बुराइयों की सूची भी देती है, जो एक व्यक्ति को उस राज्य में दाखिल होने से रोक सकती हैं। (1 कुरि. 6:9, 10) लेकिन इससे भी बढ़कर, यह पत्री समझाती है कि पुनरुत्थान और परमेश्वर के राज्य के बीच क्या ताल्लुक है। यह बताती है कि मरे हुओं में से जी उठनेवाला “पहिला फल” यानी मसीह ‘तब तक राज्य करेगा, जब तक अपने बैरियों को अपने पांवों तले न ले आए।’ फिर जब वह अपने सब दुश्मनों यहाँ तक कि मौत पर भी जीत हासिल कर लेगा, तब वह “राज्य को परमेश्वर पिता के हाथ में सौंप देगा। . . . ताकि सब में परमेश्वर ही सब कुछ हो।” आखिर में, अदन में राज्य के बारे में किया गया वादा पूरा करने के लिए मसीह, पुनरुत्थान पाए अपने आत्मिक भाइयों के साथ सर्प के सिर को कुचल देगा। वाकई, उन लोगों के लिए पुनरुत्थान की आशा कितनी बढ़िया है, जो स्वर्ग के राज्य में मसीह यीशु के साथ अमरता पाएँगे। पुनरुत्थान की इसी आशा की बिनाह पर पौलुस सलाह देता है: “सो हे मेरे प्रिय भाइयो, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो, कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।”—1 कुरि. 15:20-28, 58; उत्प. 3:15; रोमि. 16:20.
[फुटनोट]
a हेलीस् बाइबल हैंडबुक, सन् 1988, एच. एच. हेली, पेज 593.
b स्मिथ का बाइबल का शब्दकोश (अँग्रेज़ी), सन् 1863, भाग 1, पेज 353.
c द इंटरप्रिटर्स बाइबल, भाग 10, सन् 1953, पेज 13.
d द इंटरप्रिटर्स बाइबल, भाग 9, सन् 1954, पेज 356.