यहोवा से आशीष पाने के लिए संघर्ष करते रहिए
“तू परमेश्वर से और मनुष्यों से भी युद्ध करके प्रबल हुआ है।”—उत्प. 32:28.
1, 2. यहोवा के सेवकों को कैसे संघर्ष करने पड़ते हैं?
हाबिल से लेकर आज के वफादार सेवकों तक, सभी को अपने विश्वास के लिए संघर्ष करना पड़ा है। प्रेषित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों से कहा कि उन्होंने यहोवा की मंज़ूरी और आशीष पाने के लिए “दुःख-तकलीफों को सहने में कड़ा संघर्ष करते हुए धीरज धरा” है। (इब्रा. 10:32-34) पौलुस ने मसीहियों के संघर्ष की तुलना उन खिलाड़ियों के संघर्ष से की जो यूनानी खेलों में हिस्सा लेते थे, जैसे दौड़, कुश्ती और मुक्केबाज़ी में। (इब्रा. 12:1, 4) आज हम ज़िंदगी की दौड़ में शामिल हैं और हमारे कई दुश्मन हैं। वे हमारा ध्यान भटकाना चाहते हैं ताकि हम आज अपनी खुशी खो दें और भविष्य में अपना इनाम भी।
2 हमारा सबसे कड़ा संघर्ष है, शैतान और उसकी दुनिया के खिलाफ। (इफि. 6:12) यह बहुत ज़रूरी है कि हम दुनिया की सोच और उसके फलसफों को न अपनाएँ। हमें बदचलनी, सिगरेट पीने, ज़्यादा शराब पीने और ड्रग्स लेने जैसे बुरे कामों से भी दूर रहना चाहिए। इसके अलावा, हमें निराशा और अपनी कमज़ोरियों से लड़ते रहना चाहिए।—2 कुरिं. 10:3-6; कुलु. 3:5-9.
3. अपने दुश्मन से लड़ने के लिए यहोवा हमें कैसे तैयार करता है?
3 क्या इन ताकतवर दुश्मनों से जीतना मुमकिन है? हाँ है, मगर यह आसान नहीं। पौलुस ने खुद की तुलना एक मुक्केबाज़ से की जब उसने कहा, “मैं इस तरह मुक्के नहीं चलाता मानो हवा को पीट रहा हूँ।” (1 कुरिं. 9:26) जैसे एक मुक्केबाज़ दूसरे मुक्केबाज़ से लड़ता है वैसे ही हमें भी अपने दुश्मनों से लड़ने की ज़रूरत है। इस लड़ाई के लिए यहोवा हमें तैयार करता है और वह हमारी मदद भी करता है। वह बाइबल और उस पर आधारित किताबों-पत्रिकाओं के ज़रिए ऐसा करता है। वह मसीही सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों के ज़रिए भी हमारी मदद करता है। आपको जो हिदायतें मिलती हैं क्या आप उन सभी को मानते हैं? अगर नहीं, तो आप अपने दुश्मन से अच्छी तरह नहीं लड़ पाएँगे। यह ऐसा होगा मानो एक मुक्केबाज़ हवा को पीट रहा है।
4. हम बुराई से हारने से कैसे बच सकते हैं?
4 हमें हर वक्त चौकन्ना रहने की ज़रूरत है। क्यों? क्योंकि दुश्मन अचानक हमला कर सकते हैं या उस वक्त हमला कर सकते हैं जब हम कमज़ोर होते हैं। बाइबल में हमें एक बढ़ावा दिया गया है, जो कि एक चेतावनी भी है, “बुराई से न हारो बल्कि भलाई से बुराई को जीतते रहो।” (रोमि. 12:21) अगर हम बुराई से लड़ते रहें तो हम जीत सकते हैं! लेकिन अगर हम चौकन्ने न रहें और लड़ना बंद कर दें तो हम शैतान और उसकी दुनिया से हार जाएँगे और हमारी कमज़ोरियाँ हम पर हावी हो जाएँगी। इसलिए कभी हार मत मानिए। कभी निराश मत होइए और अपने हाथ ढीले मत पड़ने दीजिए।—1 पत. 5:9.
5. (क) अपने दुश्मनों से जीतने के लिए हमें क्या याद रखना चाहिए? (ख) हम बाइबल से किन लोगों के अच्छे उदाहरणों पर गौर करेंगे?
5 अगर हम यह लड़ाई जीतना चाहते हैं तो हमें याद रखना होगा कि हम क्यों संघर्ष कर रहे हैं। वह इसलिए कि हम यहोवा की मंज़ूरी और आशीष पाना चाहते हैं। इब्रानियों 11:6 में लिखा है, “जो उसके पास आता है उसका यह यकीन करना ज़रूरी है कि परमेश्वर सचमुच है और वह उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।” पूरी लगन से यहोवा की खोज करने का मतलब है, उसकी मंज़ूरी पाने के लिए कड़ी मेहनत करना। (प्रेषि. 15:17) बाइबल में ऐसे कई लोगों के अच्छे उदाहरण हैं जिन्होंने ऐसा ही किया। याकूब, राहेल, यूसुफ और पौलुस ने ऐसे हालात का सामना किया जिनमें उन्हें काफी दुख-दर्द झेलने पड़े। फिर भी, वे परमेश्वर की मंज़ूरी पाने में कामयाब रहे। उनके उदाहरण से यह साबित होता है कि अगर हम कड़ी मेहनत करें तो हम भी यहोवा से आशीष पा सकते हैं। आइए देखें कैसे।
हार न मानने से आशीष मिलती है
6. (क) किस वजह से याकूब ने हार नहीं मानी? (ख) याकूब को क्या इनाम मिला? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
6 वफादार याकूब को काफी संघर्ष करना पड़ा, फिर भी उसने हार नहीं मानी क्योंकि वह यहोवा से प्यार करता था और उसके साथ अपने रिश्ते को अनमोल समझता था। उसे यहोवा के इस वादे पर पूरा विश्वास था कि वह उसके वंशजों को आशीष देगा। (उत्प. 28:3, 4) जब याकूब करीब 100 साल का था तब उसने परमेश्वर से आशीष पाने के लिए एक स्वर्गदूत से भी कुश्ती की। (उत्पत्ति 32:24-28 पढ़िए।) क्या याकूब ने अपनी ताकत से इस स्वर्गदूत से कुश्ती लड़ी? जी नहीं! मगर वह इरादे का पक्का था और उसने आशीष पाने के लिए कड़ी मेहनत की। क्योंकि उसने हार नहीं मानी इसलिए यहोवा ने उसे आशीष दी। उसने उसका नाम बदलकर इसराएल रखा, जिसका मतलब है “परमेश्वर से लड़नेवाला या हार न माननेवाला।” याकूब को वह इनाम मिला जो हम भी पाना चाहते हैं। वह है यहोवा की मंज़ूरी और आशीष।
7. (क) राहेल किस वजह से निराश हो जाती थी? (ख) राहेल ने अपने हालात का सामना कैसे किया और उसे क्या आशीष मिली?
7 याकूब की प्यारी पत्नी राहेल भी यह देखना चाहती थी कि यहोवा ने उसके पति से जो वादा किया उसे वह कैसे पूरा करेगा। मगर इसमें एक समस्या थी। राहेल के कोई बच्चा नहीं था और बाइबल के ज़माने में बाँझ होना काफी बदनामी की बात थी। ऐसे में वह निराश हो जाती थी। उसने अपने हालात का सामना कैसे किया? उसने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। इसके बजाय वह संघर्ष करती रही और उसने दिल से यहोवा से लगातार प्रार्थना की। यहोवा ने राहेल की प्रार्थना सुनी और उसे आशीष दी। इसलिए जब राहेल के बच्चे हुए तो उसने कहा, ‘मैंने बड़े बल से मल्लयुद्ध किया और अब जीत गई।’—उत्प. 30:8, 20-24.
8. (क) यूसुफ ने किन मुश्किलों का सामना किया? (ख) यूसुफ कैसे हमारे लिए एक अच्छी मिसाल है?
8 याकूब और राहेल की वफादारी का उनके बेटे यूसुफ पर ज़रूर अच्छा असर पड़ा होगा। उनकी मिसाल ने उसे मुश्किल हालात का सामना करने में मदद दी। जब यूसुफ 17 साल का था तब उसकी ज़िंदगी पूरी तरह बदल गयी। उसके भाइयों ने जलन की वजह से उसे गुलामी में बेच दिया। बाद में उसे कई साल मिस्र की जेल में सज़ा काटनी पड़ी, जबकि वह बेकसूर था। (उत्प. 37:23-28; 39:7-9, 20, 21) फिर भी यूसुफ निराश नहीं हुआ और न ही कड़वाहट से भर गया। उसने कभी बदला लेने की भी नहीं सोची। क्यों? क्योंकि यूसुफ यहोवा के साथ अपने रिश्ते को अनमोल समझता था और उसका पूरा ध्यान उस रिश्ते को मज़बूत करने पर था। (लैव्य. 19:18; रोमि. 12:17-21) यूसुफ की मिसाल से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। चाहे हमारे बचपन की बहुत-सी कड़वी यादें हों या हमें आज उम्मीद की कोई किरण नज़र न आए, फिर भी हमें संघर्ष करते रहना चाहिए और हार नहीं माननी चाहिए। तब हम भरोसा रख पाएँगे कि यहोवा हमें ज़रूर आशीष देगा।—उत्प. 39:21-23.
9. हम याकूब, राहेल और यूसुफ की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
9 आज हमें भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। शायद आपके साथ अन्याय हुआ हो या आपका मज़ाक उड़ाया गया हो। या फिर किसी ने आपके साथ भेदभाव किया हो या जलन की वजह से आपका जीना मुश्किल कर दिया हो। ऐसे में निराश होने के बजाय याद कीजिए कि किस बात ने याकूब, राहेल और यूसुफ को खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करने में मदद दी। उन्होंने यहोवा के साथ अपने रिश्ते को अनमोल समझा और इस वजह से परमेश्वर ने उन्हें हिम्मत और आशीष दी। वे संघर्ष करते रहे और अपनी प्रार्थनाओं के मुताबिक काम करते रहे। आज हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं, इसलिए ज़रूरी है कि हम भविष्य की अपनी आशा को पक्का करते रहें। क्या आप कुश्ती करने के लिए तैयार हैं, यानी यहोवा की मंज़ूरी पाने के लिए कड़ी मेहनत करने को तैयार हैं?
कुश्ती के लिए तैयार रहिए
10, 11. (क) हमें यहोवा से आशीष पाने के लिए कुश्ती क्यों करनी चाहिए? (ख) सही फैसले लेने में क्या बात हमारी मदद करेगी?
10 ऐसे कुछ हालात क्या हैं जिनमें हमें यहोवा से आशीष पाने के लिए कुश्ती करनी पड़े? हम पापी हैं, इसलिए हममें कुछ गलत इच्छाएँ पैदा हो सकती हैं। या हमारे लिए प्रचार के बारे में सही नज़रिया बनाए रखना शायद मुश्किल हो। या हमें शायद सेहत से जुड़ी किसी समस्या से या अकेलेपन से जूझना पड़े। या फिर हो सकता है कि दूसरों की गलती माफ करना हमें मुश्किल लगे। ये सारे हालात हमें उस परमेश्वर की सेवा करने से रोक सकते हैं जो वफादार लोगों को इनाम देता है। चाहे हम कितने ही लंबे समय से यहोवा की सेवा कर रहे हों, हम सभी को अपनी इन कमज़ोरियों से लड़ते रहने की ज़रूरत है।
11 सच, मसीही की ज़िंदगी जीना और सही फैसले लेना आसान नहीं है। खासकर तब जब हम अपनी गलत इच्छाओं से लड़ रहे हों। (यिर्म. 17:9) अगर आप भी ऐसा महसूस करते हैं तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए और उसकी पवित्र शक्ति माँगिए। तब आपको हिम्मत मिलेगी और आप सही काम कर पाएँगे। फिर आपको यहोवा से आशीष मिलेगी। अपनी प्रार्थनाओं के मुताबिक काम करने की ठान लीजिए। हर रोज़ बाइबल पढ़ने की कोशिश कीजिए। निजी अध्ययन और पारिवारिक उपासना के लिए समय निकालिए।—भज. 119:32.
12, 13. दो मसीहियों को अपनी गलत इच्छाओं पर काबू पाने में कैसे मदद मिली?
12 ऐसे कई भाई-बहन हैं जिन्हें बाइबल, पवित्र शक्ति और हमारी किताबों-पत्रिकाओं से अपनी गलत इच्छाओं पर काबू पाने में मदद मिली है। एक नौजवान ने 8 दिसंबर, 2003 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) में छपा लेख “आप अपनी गलत इच्छाओं पर कैसे काबू पा सकते हैं?” पढ़ा था। इसका उस पर क्या असर हुआ? उसने कहा, “मैं अपनी गलत सोच पर काबू पाने की कोशिश कर रहा हूँ। जब मैंने इस लेख में पढ़ा कि ‘कई लोगों के लिए गलत इच्छाओं पर काबू पाना एक कड़ा संघर्ष है,’ तो मुझे बहुत हौसला मिला कि इस लड़ाई में मैं अकेला नहीं हूँ। मेरे जैसे और भी बहुत भाई-बहन हैं।” इस नौजवान को 8 अक्टूबर, 2003 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) में समलैंगिकता के बारे में छपे एक लेख से भी मदद मिली। इस लेख में उसने देखा कि कुछ लोगों के लिए गलत इच्छा ‘शरीर में एक काँटे’ जैसी है जिसे निकाला नहीं जा सकता। इसके बजाय उन्हें शुद्ध चालचलन बनाए रखने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ता है। (2 कुरिं. 12:7) मगर संघर्ष करने के साथ-साथ वे यह उम्मीद भी रखते हैं कि एक दिन उनकी यह लड़ाई ज़रूर खत्म होगी। उस नौजवान ने कहा, “इस लड़ाई में जैसे-जैसे दिन बीतते, मुझे लगता है कि हाँ, मैं वफादार रह सकता हूँ। मैं यहोवा का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि वह हर दिन अपने संगठन के ज़रिए हमें इस दुष्ट दुनिया से बचाता है।”
13 अमरीका में रहनेवाली एक बहन के अनुभव पर भी गौर कीजिए। वह लिखती है, “मैं आपका धन्यवाद करना चाहती हूँ कि आप हमें हमेशा ऐसी जानकारी देते हैं, जिसकी हमें ज़रूरत होती है और वह भी सही वक्त पर। मेरे साथ अकसर ऐसा हुआ है कि जब मैं कोई लेख पढ़ती हूँ तो मुझे लगता है कि यह मेरे लिए ही लिखा गया है। मैं सालों से अपनी एक ऐसी इच्छा से लड़ रही हूँ जिससे परमेश्वर नफरत करता है। कभी-कभी यह लड़ाई इतनी मुश्किल हो जाती है कि मन करता है कि हार मान लूँ। मैं जानती हूँ कि यहोवा दयालु और माफ करनेवाला परमेश्वर है, फिर भी मैं खुद को इस लायक नहीं समझती कि वह मेरी मदद करेगा, क्योंकि मेरे अंदर यह बुरी इच्छा है और अंदर-ही-अंदर मुझे यह गलत नहीं लगती। सालों से चली आ रही इस लड़ाई का मेरी ज़िंदगी के हर पहलू पर असर पड़ा है। . . . मगर 15 मार्च, 2013 की प्रहरीदुर्ग में छपा लेख ‘क्या आपमें यहोवा को “जाननेवाला मन” है?’ पढ़ने के बाद मुझे यकीन हो गया कि हाँ, यहोवा मेरी मदद करना चाहता है।”
14. (क) पौलुस ने अपने संघर्ष के बारे में कैसा महसूस किया? (ख) हम अपनी कमज़ोरियों पर कैसे जीत हासिल कर सकते हैं?
14 रोमियों 7:21-25 पढ़िए। पौलुस अपने तजुरबे से जानता था कि गलत इच्छाओं और कमज़ोरियों से लड़ना कितना मुश्किल है। फिर भी उसे यकीन था कि अगर वह यहोवा से प्रार्थना करे, मदद के लिए उस पर निर्भर रहे और यीशु के बलिदान पर विश्वास करे, तो वह यह लड़ाई जीत सकता है। क्या हम भी अपनी कमज़ोरियों पर जीत हासिल कर सकते हैं? ज़रूर, मगर इसके लिए हमें पौलुस की मिसाल पर चलना होगा, अपनी ताकत के बजाय यहोवा पर पूरा भरोसा रखना होगा और फिरौती पर विश्वास करना होगा।
15. यहोवा कैसे हमें वफादार रहने और परीक्षाओं में धीरज रखने में मदद करता है?
15 कभी-कभी परमेश्वर हमें कुछ हालात से गुज़रने देता है ताकि यह देख सके कि उनमें हम क्या करेंगे। मिसाल के लिए, हम तब क्या करेंगे जब हमें या हमारे परिवार के किसी सदस्य को गंभीर बीमारी हो जाए या अन्याय का सामना करना पड़े? अगर हमें यहोवा पर पूरा भरोसा है, तो हम गिड़गिड़ाकर उससे ताकत माँगेंगे ताकि उसके साथ हमारा रिश्ता मज़बूत बना रहे, हम उसके वफादार रहें और अपनी खुशी बनाए रखें। (फिलि. 4:13) पुराने ज़माने और आज के कई मसीहियों के उदाहरण से पता चलता है कि प्रार्थना करने से हमें हिम्मत और धीरज रखने की ताकत मिल सकती है।
यहोवा से आशीष पाने के लिए संघर्ष करते रहिए
16, 17. आपने क्या करने की ठानी है?
16 शैतान को यह देखकर बहुत खुशी होगी कि आप निराश हो जाएँ, हार मान लें और आपके हाथ ढीले पड़ जाएँ। इसलिए ठान लीजिए कि ‘जो बढ़िया है उसे आप थामे रहेंगे।’ (1 थिस्स. 5:21) आप शैतान, उसकी दुनिया और अपनी गलत इच्छाओं के खिलाफ लड़ाई जीत सकते हैं! लेकिन आप तभी जीत पाएँगे जब आप यह भरोसा रखेंगे कि परमेश्वर आपको मज़बूत करेगा और आपकी मदद करेगा।—2 कुरिं. 4:7-9; गला. 6:9.
17 इसलिए लड़ते रहिए। संघर्ष करते रहिए। कभी हार मत मानिए। आप पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आप पर “अपरम्पार आशीष की वर्षा” करेगा।—मला. 3:10.