स्मारक समय पर ‘हम क्या है उसे विवेकपूर्ण समझना’
“यदि हम अपने आप को जाँचते, तो दण्ड न पाते . . . कि हम दोष न ठहरें।”—१ कुरिन्थियों ११: ३१, ३२.
१. सच्चे मसीही, निश्चय ही किस बात से बचना चाहते हैं, और क्यों?
एक मसीही यह कभी भी नहीं चाहेगा कि वह, यहोवा द्वारा प्रतिकूल न्याय प्राप्त करे। “सारी पृथ्वी के न्यायी” को अप्रसन्न करने से हम ‘संसार के साथ दोषी ठहरेंगे’ और अपना उद्धार खो देंगे। चाहे हम, यीशु के साथ स्वर्गीय जीवन की आशा रखते हो या पार्थिव परादीस में अनन्त जीवन की आशा रखते हों तो भी ऐसा हो सकता है।—उत्पत्ति १८:२५; १ कुरिन्थियों ११:३२.
२, ३. किस बात में हमें प्रतिकूल न्याय मिल सकता हैं, और पौलुस ने इसके बारे में क्या कहा?
२ १ कुरिन्थियों के अध्याय ११ में प्रेरित पौलसु ने एक ऐसे क्षेत्र की ओर ध्यान दिलाया जिससे हम न्याय दण्ड पा सकते है। यद्यपि उसने अपनी टिप्पणीयाँ, अभिषिक्त मसीहीयों को लिखी थी, लेकिन यह सभी के लिए महत्वपूर्ण हैं, विशेषरूप से इन दिनों में। अपने आप को विवेकपूर्ण रूप से समझने से, हम परमेश्वर की स्वीकृति पा सकते और न्यायदण्ड से बच सकत हैं। प्रभु संध्या भोज के वार्षिक उत्सव मनाने के बारे में पौलुस ने लिखा:
३ “प्रभु यीशु ने जिस रात वह पकड़वाया गया रोटी ली। और धन्यवाद करके उसे तोड़ी, और कहा कि, ‘यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिए है। मेरे स्मरण के लिए यही किया करो।’ इसी रीति से उसने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया, और कहा, ‘यह कटोरा मेरे लोहू के नई वाचा है, जब कभी पीओ, तो मेरे स्मरण के लिए यही किया करो।’ क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो।”—१ कुरिन्थियों ११:२३-२६.a
४. मार्च ३०, १९९१ की शाम को क्या होगा?
४ मार्च ३०, १९९१ को, सूर्यास्त के बाद, यहोवा के गवाह मसीह की मृत्यु का स्मरक मनाएंगे। सामान्यतः जो समूह एकत्रित होगा, वह एक ही मंडली होगी; इसलिए उन लोगों के लिए भी जगह होगी जो अभी तक गवाही नहीं बने हैं। वह सभा कैसी होगी? वहाँ एक बाइबल पर आधारित भाषण होगा। उसके बाद, प्रार्थना उपरान्त, रोटी को सबके सामने से गुज़ारा जाएगा। एक और प्रार्थना के बाद प्याला [कटोरा], सबके सामने से गुज़ारा जाएगा। इन सब में, एक औपचारिक धर्मविधि या एक कठोर कार्यविधि के बजाय, रोटियों और प्यालों की संख्या और उनको घुमाने का ढंग, स्थानीय परिस्थिति के अनुसार किया जाता है। खास बात यह है कि, सभी उपस्थित जनों को वह वस्तुयें उपलब्ध हो सकें, चाहे अधिकतर लोग उसे खाए बिना, आगे बढ़ा देंगे। लेकिन कौनसी वस्तुयें, सामने से गुज़ारी जाती हैं और उनका अर्थ क्या है? इसके अतिरिक्त, हमें यह विवेक द्वारा समझने के लिए कि हम स्वयं क्या हैं, हमें पहले से किन बातों पर ध्यान देना है?
“इसका अर्थ मेरी देह है”
५, ६. (अ) यीशु ने रोटी के साथ क्या किया? (ब) उन्होंने किस प्रकार की रोटी का प्रयोग किया?
५ हमने पढ़ा कि स्मारक के विषय में पौलुस के पास “प्रभु से क्या पहुँचा।” तीन इंजील लेखकों के विवरण भी है, उनमें से एक वहाँ उपस्थित था जब यीशु ने इस उत्सव की स्थापना करी थी। (१ कुरिन्थियों ११:२३; मत्ती २६:२६-२९; मरकुस १४:२२-२५; लूका २२:१९, २०) इन विवरणों में बताया गए है कि यीशु ने पहले एक रोटी ली, प्रार्थना करके उसे तोड़ा और बाँट दिया। वह रोटी कैसी थी? उसके अनुरूप, आज क्या उपयोग किया जाता है? इसका क्या अर्थ है या यह किस बात का प्रतीक है?
६ यहूदी फसह भोज की वस्तुयें वहाँ उपलब्ध थी, जिसमें से एक अख़मीरी रोटी थी, जिसे मूसा ने “अख़मीरी रोटी, जो दुःख की रोटी है” कहा था। (व्यवस्थाविवरण १६:३; निर्गमन १२:८) यह रोटी गेहूँ के आटे की बनी थी जिसमें ख़मीर, नमक या मसाले नहीं मिले थे। अख़मीरी होने के कारण (इब्रानी, मत्स-त्साह), यह चपटी और सहज टूटने योग्य थी; उसे खाने योग्य आकार में तोड़ देना पड़ता था।—मरकुस ६:४१; ८:६; प्ररितों के काम २७:३५.
७. स्मारक के दौरान, यहोवा के गवाह, रोटी के लिए क्या इस्तेमाल करते हैं?
७ प्रभु संध्या भोज में, यीशु ने अख़मीरी रोटी का प्रयोग किया, इसी तरह से आज यहोवा के गवाह भी करते हैं। सामान्य यहूदी ‘मैटज़ॉथ’ इसके लिए उपयुक्त है यदि वह बिना किसी चीज़ के मिलाए बनाया जाए, जैसे कि मॉल्ट, प्याज़, या अण्डे (इन अवयवों से मिलकर बना ‘मैटज़ॉथ’ “दुख की रोटी” के वर्णन के अनुरूप नहीं हो सकता है)। या फिर मंडली के अध्यक्ष, किसी को कहकर, गेहूँ के आटे को पानी के साथ गूँधकर, अख़मीरी रोटी बनवा सकते हैं। यदि गेहूँ का आटा उपलब्ध नहीं है तो जौ, चावल, मक्की या किसी और अनाज का आटा लेकर, अख़मीरी रोटी बनाई जा सकती है। गुँधे हुए आटे को पतला बेलकर, थोड़े से तेल लगे हुए तवे पर सेंका जाता है।
८. अख़मीरी रोटी क्यों एक उपयुक्त चिन्ह है, और उसको खाना क्या प्रदर्शित करता है? (इब्रानियों १०:५-७; १ पतरस ४:१)
८ ऐसी रोटी उपयुक्त है, क्योंकि इसमें ख़मीर (यीस्ट) नहीं मिला होता है, जो बाइबल में भ्रष्टाचार या पाप का प्रतीक है। एक मंडली में किसी अनैतिक पुरूष के सम्बन्ध में पौलुस ने कहा: “थोड़ा सा ख़मीर पूरे गूँधे हुए आटे को ख़मीर कर देता है। पुराना ख़मीर निकाल कर, अपने आप को शुद्ध करो: कि नया गूँधा हुआ आटा बन जाओ; ताकि तुम अख़मीरी हो, क्योंकि हमारा भी फ़सह जो मसीह है, बलिदान हुआ है। सो आओ हम उत्सव में आनन्द मनावे, न तो पुराने ख़मीर से और न बुराई और दुष्टता के ख़मीर से, परन्तु सीधाई और सच्चाई की अख़मीरी रोटी से।” (१ कुरिन्थियों ५:६-८; मत्ती १३:३३; १६:६, १२ से तुलना करें) अख़मीरी रोटी, यीशु की मानव देह के लिए एक उपयुक्त चिन्ह है, क्योंकि वह “पवित्र और निष्कपट और निर्मल और पापियों से अलग थे।” (इब्रानियों ७:२६) यीशु अपनी सिद्ध मानव देह में वहाँ उपस्थित थे, जब उन्होंने प्रेरितों से कहा था: “लो और इसे (रोटी) खाओ, इसका अर्थ है, मेरी देह।” (मत्ती २६:२६; ए न्यू ट्रांस्लेशन ऑफ द बाइबल, जेम्स मोफैट द्वारा लिखित) रोटी खाना, यह अर्थ रखता है कि एक व्यक्ति अपनी ख़ातिर दिए गए यीशु के बलिदान के लाभ पर विश्वास करता है और उसे स्वीकार करता है। लेकिन इसमें और भी कुछ शामिल है।
अर्थपूर्ण दाख़रस
९. यीशु ने कौनसे दूसरे चिन्ह का प्रयोग करने को कहा?
९ यीशु ने एक और प्रतीक का प्रयोग किया: “उसने एक प्याला भी लिया, और परमेश्वर का धन्यवाद करने के बाद, उन्हें यह कहकर दिया, ‘सब इसमें से पियो; इसका अर्थ मेरा लहू है, नया वाचा-लहू जो बहुतों के लिए बहाया गया, जिससे उनके पाप क्षमा हो।” (मत्ती २६:२७, २८, मोफ़ैट) उस सर्वसामान्य प्याले में क्या था, जो उन्होंने बाँटा था, और इसका हमारे लिए क्या अर्थ हैं, जबकि हम विवेकपूर्ण जाँचने की कोशिश करते हैं कि हम स्वयं क्या है?
१०. यहूदी फसह में दाख़रस कैसे सम्मिलित हुई?
१० जब मूसा ने, फसह की आरम्भ में रूपरेखा दी थी, तो उसने किसी मादक पेय की उल्लेख नहीं किया था। बहुत से विद्वान यह विश्वास करते हैं कि फसह में दाख़रस का उपयोग बहुत बाद में जाकर हुआ, शायद, सा.यु.पू.b दूसरी शताब्दी में। पहली शताब्दी में किसी भी अवसर पर, इस भोज में दाखरस का उपयोग, सामान्य था, और यीशु ने इसपर आपत्ति नहीं की। स्मारक की स्थापना में उन्होंने, फसह के दाख़रस का प्रयोग किया।
११. प्रभु संध्या भोज में, किस प्रकार की दाख़रस उपयुक्त है?
११ क्योंकि यहूदी फसह, अंगूर की फ़सल के बहुत बाद में हाता था, इसलिए यीशु ने, अकिण्वित रस का नहीं, परन्तु लाल दाख़रस का प्रयोग किया होगा, जो उनके लहू को सरलता से चित्रित करता है। (प्रकाशितवाक्य १४:२० से तुलना करें) मसीह के लहू को आवर्धन करने की आवश्यकता नहीं थी, इसलिए साधारण अँगूरी शराब उपयुक्त है, बजाय इसके कि उसे पुष्ट करने के लिए उसमें ब्रांडी डाली जाए (जैसे कि पोर्ट, शेरी या मस्केटल) या मसाले और जड़ी बूटी डाली जायें (वर्माउथ, डूबोनेट या अन्य बहुत सी भूख बढ़ाने वाली मदिरायें)। लेकिन हमें इस बात की चिन्ता नहीं करनी है कि वह मदिरा किस तरह से प्रक्रम की जाती है, क्या किण्वन के समय उसमें सही स्वाद के लिए थोड़ी सी चीनी डाली गयी या ऐल्कोहॉल की मात्रा या थोड़ी सी गन्धक, ख़राबी से बचाने के लिए डाली गयी हो।c बहुत सी कलीसियायें एक व्यापारिक लाल अंगूरी शराब इस्तेमाल करती हैं (उदाहरण के लिए चियैन्टी, बरगुंडी, बीयुजोलेइस या क्लैरट) या घर में बनी साधारण लाल मदिरा। यह दाख़ और रोटी केवल चिन्ह या प्रतीक हैं; इसलिए बची हुई सामग्री घर ले जाकर खाने और पीने में अन्य वस्तुओं की तरह प्रयोग की जा सकती है।
१२. यीशु ने दाख़रस का क्या प्रतीकात्मक अर्थ समझाया?
१२ फसह की रात को, यीशु का अपने लहू के बारे में बताने से, मिस्र में मेम्ने के लहू का ख़याल मन में आया होगा। लेकिन ध्यान दे कि यीशु ने वास्तव में कैसे एक भिन्न तुलना की थी, यह कहकर: “यह कटोरा मेरे उस लोहू में जो तुम्हारे लिए बहाया जाता है नई वाचा है।” (लूका २२:२०) इससे पहले, परमेश्वर ने शारीरिक इस्राएल राष्ट्र के साथ एक वाचा बाँधी थी, और उसका उद्घाटन बलिदान पशुओं के लहू से हुआ था। इन बलियों के लहू और यीशु मसीह के लहू के बीच एक सामांजस्य था। अपने लोगों के राष्ट्र से परमेश्वर की वाचा का उद्घाटन करने में, दोनों सम्मिलित थी। (निर्गमन २४:३-८; इब्रानियों ९:१७-२०) नियम वाचा की एक विशेषता यह थी कि शारिरिक इस्राएल के पास, राजा-याजकों का एक राष्ट्र बनाने की प्रत्याशा थी। (निर्गमन १९:५, ६) लेकिन, जब इस्राएल, यहोवा के साथ वाचा को कायम रखने में असफल हो गए, तो उन्होंने कहा कि वह “पहिली वाचा” को “एक नई वाचा” से बदल देंगे। (इब्रानियों ९:१, १५; यिर्मयाह ३१:३१-३४) यीशु ने अब, जो दाख़रस का प्याला, अपने वफ़ादार प्रेरितों को दिया था, वह इस नई वाचा का प्रतिनिधित्व करता था।
१३, १४. (अ) नई वाचा में होने का क्या अर्थ है? (ब) एक व्यक्ति का चिन्हों को खाना और पीना क्या प्रदर्शित करता है?
१३ इस नई वाचा में लिए गए मसीही, राजा-याजकों का एक आत्मिक राष्ट्र बनाते हैं। (गलतियों ६:१६) प्रेरित पतरस ने लिखा: “तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा हो, इसलिए कि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।” (१ पतरस २:९) स्पष्ट है उन्हें कैसा उद्धार मिलता है— यीशु के साथ सहशासको के रूप में, स्वर्गीय जीवन। प्रकाशितवाक्य २०:६ इसकी पुष्टी करता है: “धन्य और पवित्र वह है, जो इस पहिले पुनरूत्थान का भागी है . . . वे परमेश्वर और मसीह के याजक होंगे और उसके साथ हज़ार वर्ष तक राज्य करेंगे।”
१४ वास्तव में जब यीशु ने अपने प्रेरितों को प्रतीकात्मक रोटी और दाखरस लेने को कहा था उसके बाद, उन्होंने उन्हें कहा था कि वे ‘उनके राज्य में उनकी मेंज़ से खाए पीयेंगे, और सिहासनों पर बैठकर, इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करें।’ (लूका २२:२८-३०) इसके फलस्वरूप, स्मारक चिन्हों को लेने का अर्थ, केवल यीशु के बलिदान पर विश्वास करना ही नहीं है, इससे और अधिक है। प्रत्येक मसीही को, छुड़ौती को स्वीकार करना चाहिए और किसी स्थान पर भी अनन्त जीवन पाने के लिए विश्वास रखना चाहिए। (मत्ती २०:२८; यूहन्ना ६:५१) लेकिन एक व्यक्ति का उन चिन्हों को खाना और पीना, यह प्रदर्शित करता है कि वह नई वाचा में है, यीशु के राज्य में, उनके साथ होने के लिए चुना गया है।
स्मारक समय पर विवेकपूर्ण ढंग से समझने की आवश्यकता
१५. यीशु ने कैसे परमेश्वर के सेवकों के लिए नई आशा का परिचय दिया?
१५ जैसा कि पिछले लेख में समझाया गया था कि, यीशु के समय से पहले, परमेश्वर के वफ़ादार सेवकों को स्वर्ग में जाने की कोई आशा नहीं थी। वह पृथ्वी पर, जो मानवजाति का मौलिक निवास है, अनन्त जीवन पाने की आशा रखते थे। आत्मा के रूप में पुनरुत्थान पाने वालों में यीशु मसीह पहले थे, और मनुष्यजाति में से स्वर्ग ले जाए जानेवालों में भी वह प्रथम थे। (इफ़िसियों १:२०-२२; १ पतरस ३:१८, २२) पौलुस ने इस बात की पुष्टि की, यह लिखते हुए: “हमें यीशु के लहू के द्वारा उस मार्ग से पवित्र स्थान में प्रवेश करने का हियाव हो गया है, जिसका उद्घाटन उन्होंने, हमारे लिए एक नए और जीवते ढंग से किया है।” (इब्रानियों १०:१९, २०, न्यू.व.) यीशु द्वारा उस मार्ग को खोलने के बाद, कौन पीछे आयेंगे?
१६. जो लोग रोटी और दाखरस को खाते और पीते हैं, उनके लिए क्या भविष्य है?
१६ प्रभु संध्या भोज का आरम्भ करने वाली रात को, यीशु ने अपने वफ़ादार प्रेरितों को बताया कि वह उनके लिए, स्वर्ग में जगह तैयार कर रहे हैं। (यूहन्ना १४:२, ३) याद करें, यीशु ने उनसे यह भी कहा था कि रोटी खाने और प्याले में से पीने वाले उनके राज्य में होंगे और न्याय करने के लिए सिंहासनों पर बैठेंगे। क्या वह केवल प्रेरित ही होंगे? नहीं, क्योंकि बाद में प्रेरित यूहन्ना ने यह जाना कि दूसरे मसीही भी जय पायेंगे और ‘यीशु के साथ उसके सिंहासन पर बैठेंगे,’ और मिलकर वह पृथ्वी पर शासन करने के लिए याजक, और एक राज्य बन जायेंगे। (प्रकाशितवाक्य ३:२१, ५:१०) यूहन्ना ने “पृथ्वी पर से लिए गए” मसीहीयों की कुल संख्या भी जान ली—१,४४,०००। (प्रकाशितवाक्य १४:१-३) क्योंकि, कई युगों में परमेश्वर की उपासना करने वाले लोगों की तुलना में यह अनुपाती एक “छोटे समूह” है, इसलिए स्मारक समय पर विशेष विवेकपूर्ण समझ की आवश्कयता है।—लूका १२:३२, न्यू.व.
१७, १८. (अ) कुरिन्थ के कुछ मसीही कौनसी आदत का शिकार हो गए थे? (ब) खाने पीने का अधिक सेवन करना बहुत अधिक गम्भीर क्यों है? (इब्रानियों १०:२८-३१)
१७ पौलुस ने इस बात को, कुरिन्थियों को लिखे गए पत्र में उस समय बताया जब कुछ प्रेरित भी जीवित थे और परमेश्वर, मसीहियों को “पवित्र होने के लिए” बुला रहे थे। पौलुस ने बताया कि वहाँ प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा लेने के लिए बाध्य जनों में एक बुरा व्यवहार विकसित हो चुका था। कुछ लोग, वहाँ जाने से पहले, बहुत ज़्यादा खा और पी लेते थे, जिससे वह निद्ररालु होकर, चेतना में मंछ हो जाते थे। परिणामस्वरूप वह “प्रभु की देह को न पहिचान” सकते थे, यीशु की वह शारिरिक देह जिसका प्रतीक वह रोटी थी। क्या यह इतना गम्भीर था? जी हाँ! अयोग्य ढंग से खाने पीने से वह, “प्रभु की देह और लेहू का अपराधी ठहरे।” यदि वह मानसिक और आत्मिक रूप से जागरूक रहेंगे, ‘वह अपने को समझ लेंगे कि वह क्या हैं और दण्ड नहीं पायेंगे।’—१ कुरिन्थियों १:२; ११:२०-२२, २७-३१.
१८ उन मसीहियों को, किस बात को विवेकपूर्ण समझना था और क्यों? सबसे पहले उन्हें, स्वर्गीय जीवन पानेवाले १,४४,००० वारिसों में से होने के लिए अपने बुलावे का हृदय और मन से मूल्यांकन दिखाना था। उन्होंने इसे कैसे समझा, और क्या आज बहुत से लोगों को यह विश्वास करना चाहिए कि वह इस छोटे समूह का भाग है, जिसे प्रेरितों के दिनों से परमेश्वर चुन रहे हैं?
१९. १९९० के स्मारक में कौनसी परिस्थिति प्रकट हुई?
१९ वास्तव में, आज सच्चे मसीहियों का केवल एक छोटा भाग ही, अपने विषय में ऐसा समझते हैं। १९९० में, प्रभु संध्या भोज मनाने के लिए, पूरी पृथ्वी पर, यहोवा के गवाहों की मंडलियों में ९,९५०,०५८ जन एकत्रित हुए थे। इनमें से लगभग ८,८६९ ने ‘स्वर्गीय राज्य के लिए बचाए जाने’ की आशा का अंगिकार करा।’ (२ तीमुथियुस ४:१८) बहुत बड़े जन समूह ने—जी हाँ, लाखों दूसरें वफ़ादार, आशीष प्राप्त उपस्थित मसीही—ने यह समझ लिया कि उनकी मान्य आशा, इस पृथ्वी पर सदा जीवित रहने की है।
२०. १,४४,००० जनों को, उनके बुलावे का कैसे आभास कराया जाता है? (१ यूहन्ना २:२७)
२० पिन्तुकुस्त ३३ सा.यु. में, परमेश्वर ने स्वर्गीय जीवन के लिए १,४४,००० को चुनना शुरू किया। क्योंकि यह आशा नई थी और यीशु के समय से पहले, परमेश्वर के सेवकों के पास नहीं थी, तो चुने हुए लोग इस आशा के बारे में कैसे जान सकते या आश्वस्त हो सकते थे? परमेश्वर की पवित्र आत्मा द्वारा उसके लिए दी गयी गवाही को प्राप्त करके वह उसे समझ सकते हैं। इसका यह अर्थ नहीं है कि वह वास्तव में उस आत्मा को देखते हैं (यह कोई व्यक्ति नहीं है) या उस आत्मा को उनके साथ से बातचीत करने का, कोई मानसिक आभास नहीं होता, और ना हि वह आत्मिक क्षेत्र से कोई आवाज़े सुनते हैं। पौलुस समझाते हैं: “आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान है . . . वारिस भी, बरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साथ दुख उठायें कि उसके साथ महिमा भी पायें।”—रोमियों ८:१६, १७.
२१. (अ) अभिषिक्त कैसे जान लेते हैं, कि उनकी स्वर्गीय आशा है? (१ कुरिन्थियों १०:१५-१७) (ब) अभिषिक्त, किस तरह के व्यक्ति हैं, और वह कैसे नम्रता से अपनी आशा की गवाही देते है?
२१ इस गवाही या अनुभूति से उनके सोच विचार और आशा पुनः परिस्थिति अनुकूल हो जाती है। वह अभी भी मनुष्य हैं, यहोवा की पार्थिव सृष्टि की उत्तम वस्तुओं का आनन्द ले रहे हैं, लेकिन उनके जीवन की मुख्य दिशा और चिन्तायें, मसीह के साथ सहवारिस होने की हैं। वह भावुकता द्वारा इस दृष्टिकोण तक नहीं पहुँचे हैं। वह सामान्य व्यक्ति हैं, और अपने विचारों और आचरण में संतुलित हैं। लेकिन परमेश्वर की आत्मा से पवित्र होकर, वह अपने बुलावे के लिए आशवस्त हैं, और उसके विषय में चिरस्थयी संदेह नहीं रखते। वह इस बात को समझतें हैं कि उनका उद्धार, वफ़ादार साबित होने पर, स्वर्ग में होगा। (२ थिस्सलुनीकियों २:१३; २ तीमुथियुस २:१०-१२) यीशु का बलिदान उनके लिए क्या अर्थ रखता है, यह समझते हुए और बुद्धिमानी से यह जानकर कि वह आत्मा-अभिषिक्त मसीही हैं, वह विनम्रता से स्मारक चिन्हों को खाते और पीते हैं।
२२. प्रभु संध्या भोज में उपस्थित अधिकतर जन किस बात को विवेकपूर्ण ढंग से समझेंगे?
२२ मार्च ३० को आज्ञाकारिता से जो लोग उपस्थित हों उनमें से अधिकतर के पास यह आशा नहीं है, क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें आत्मा से अभिषेक नहीं किया है, कि वह स्वर्गीय जीवन के लिए बुलाए जायें। जैसा कि हमने देखा कि परमेश्वर ने प्रेरितों के दिनों से ही १,४४,००० को चुनना शुरू कर दिया था। लेकिन उस बुलावे की समाप्ति पर, यह अपेक्षा की जाती है कि उनकी उपासना करने के लिए आने वाले अन्य लोग, मूसा, दाऊद, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला तथा दूसरे विश्वासी जिनकी यीशु द्वारा स्वर्गीय जीवन के मार्ग खोलने से पहले, मृत्यु हो गयी थी, उनके द्वारा थामी गयी आशा होगी। इसलिए, आज, लाखो वफ़ादार और जोशीले मसीही, स्मारक चिन्हों को खाने पीने में हिस्सा नहीं लेते। ऐसे मसीही, परमेश्वर के सामने अपनी स्थिति को समझते हैं, इस अर्थ में कि वह अपनी मान्य आशा की प्रतीति करते हैं। अपने पापों के क्षमा हो जाने के द्वारा, और उसके बाद पृथ्वी पर अनन्त जीवन प्राप्त करके वह यीशु के लहू और शरीर से लाभ उठाते हैं।—१ पतरस १:१९; २:२४; प्रकाशितवाक्य ७:९, १५.
२३. स्मारक दिन क्यों एक खुशी का अवसर होगा? (२ इतिहास ३०:२१ से तुलना करें)
२३ इसलिए आइए हम मार्च ३० को आनन्द उत्सव के लिए उत्सुकता से देखें। यह समय, विवेकपूर्ण समझ को इस्तेमाल करने का होगा, परन्तु आनन्द का समय भी होगा। स्वर्गीय आशा वाले छोटे समूह जो अधिकारपूर्ण और आज्ञाकारी रूप से रोटी खाएंगे और प्याले में से पीएंगे उनके लिए आनन्द होगा। (प्रकाशितवाक्य १९:७) उन लाखों प्रसन्न मसीहियों के लिए भी आनन्द होगा, जो उस शाम को ध्यान देंगे और सीखेंगे और हमेशा पृथ्वी पर इस अर्थपूर्ण उत्सव को याद करने की आशा रखते हैं।—यूहन्ना ३:२९.
[फुटनोट]
a “अपने पकड़वाए जाने वाली रात को, प्रभु यीशु ने रोटी ली; धन्यवाद देकर, उसे तोड़ा और कहा: ‘यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिए है; मेरे स्मरण के लिए ऐसा ही किया करना।’ उसी तरह से उन्होंने खाने के बाद, प्याला लिया और कहा: ‘यह प्याला नयी वाचा है जो मेरे लहू से मुद्रांकित है; जब भी इसे पियो, मेरे स्मारक के रूप में पियो।’”—ऐन इक्सपैन्डि पैराफ़रेज़ ऑफ द इपिसल्स ऑफ पॉल, एफ़.एफ़.ब्रूस द्वारा लिखित.
b एक विद्वान ने दाखरस को मिलाने का यह मत प्रकट किया: “(फसह) अब कोई औपचारिक वार्षिक उत्सव नहीं था जिसमें प्रौढ़ पुरुष एकत्रित हो; यह परिवार में खुशी मनाने का एक उत्सव बन जाता था, जिससे दाख़रस का उसमें शामिल होना स्वाभाविक था।”—द हिब्रू पासोवर—फ्रम द अलीयस्ट टाइम्स टू ए.डी. ७०, जे.बी.सीगल द्वारा लिखित।
c प्राचीन समयों से नमक, अण्डे की सफ़ेदी और अन्य पदार्थ वाइन में रंग और स्वाद लाने के लिए इस्तेमाल किए गए हैं, रोमी लोग तो गन्धक को भी एक रोगाणु नाषक के रूप में वाइन तैयारी करने में प्रयोग करते थे।
आपका उत्तर क्या हैं?
◻ स्मारक के दौरान अख़मीरी रोटी क्यों गुज़ारी जाती है, और यह किस बात की प्रतीक है?
◻ प्रभु संध्या भोज में गुज़ारा जानेवाला प्याला क्या है, और यह किस बात की प्रतीक है?
◻ स्मारक उत्सव को मनाने में विवेकपूर्ण समझ क्यों आवश्यक है?
◻ आनेवाले स्मारक की ओर आप उत्सुकता से क्यों देख रहे हैं?