स्मारक हमें एकता में जोड़ता है
“एक होकर रहना क्या ही भली और मनभावनी बात है!”—भज. 133:1.
1, 2. सन् 2018 में कौन-सा खास समारोह लोगों को लाजवाब तरीके से एक करेगा और कैसे? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
दुनिया-भर में लाखों लोग 31 मार्च, 2018 को एक खास समारोह में हाज़िर होंगे जो साल में सिर्फ एक बार मनाया जाता है। उस दिन सूरज ढलने के बाद यहोवा के साक्षी और दूसरे लोग यीशु के बलिदान को याद करने के लिए इकट्ठा होंगे। हर साल यह समारोह लोगों को एक लाजवाब तरीके से एक करता है। धरती पर ऐसा कोई समारोह नहीं जो लोगों को इस तरह एक कर पाया है।
2 ज़रा सोचिए, यहोवा और यीशु को यह देखकर कितनी खुशी होती होगी कि दुनिया की अलग-अलग जगहों में लाखों लोग इस खास समारोह को मनाते हैं। बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि “सब राष्ट्रों और गोत्रों और जातियों और भाषाओं में से निकली एक बड़ी भीड़, जिसे कोई आदमी गिन नहीं सकता” पुकारकर कहेगी, “हम अपने उद्धार के लिए अपने परमेश्वर का जो राजगद्दी पर बैठा है और मेम्ने का एहसान मानते हैं।” (प्रका. 7:9, 10) यह कितनी अच्छी बात है कि हर साल समारोह में इतने लोग हाज़िर होते हैं और यहोवा और यीशु ने इंसानों के लिए जो कुछ किया है, उसके लिए अपनी कदर ज़ाहिर करते हैं।
3. इस लेख में किन सवालों के जवाब दिए जाएँगे?
3 इस लेख में आपको इन चार सवालों के जवाब मिलेंगे: (1) मैं स्मारक के लिए क्या तैयारी कर सकता हूँ ताकि मुझे इससे पूरा-पूरा फायदा हो सके? (2) यह समारोह किस तरह परमेश्वर के सभी लोगों को एकता में जोड़ता है? (3) इस एकता को बनाए रखने के लिए मैं क्या कर सकता हूँ? (4) क्या कभी ऐसा वक्त आएगा जब आखिरी बार स्मारक मनाया जाएगा? अगर हाँ, तो कब?
स्मारक की तैयारी कैसे करें और हाज़िर होकर कैसे फायदा पाएँ?
4. स्मारक में हाज़िर होना क्यों इतना ज़रूरी है?
4 गौर कीजिए कि स्मारक में हाज़िर होना क्यों इतना ज़रूरी है। इसकी एक वजह यह है कि सभाएँ हमारी उपासना का एक अहम हिस्सा हैं और स्मारक साल की सबसे खास सभा है। हम यकीन रख सकते हैं कि हर वह इंसान जो इस सभा में आने के लिए मेहनत करता है, उस पर यहोवा और यीशु ध्यान देते हैं। इसलिए हम उन्हें दिखाना चाहते हैं कि अगर हम शरीर या हालात से पूरी तरह लाचार नहीं, तो हम स्मारक में ज़रूर हाज़िर होंगे। जब हम दिखाते हैं कि सभाएँ हमारे लिए कितनी अहमियत रखती हैं, तो हम यहोवा को एक और वजह देते हैं कि वह हमारा नाम अपनी ‘किताब में लिखे और याद रखे।’ इस किताब को “जीवन की किताब” भी कहा जाता है, जिसमें उन लोगों के नाम लिखे गए हैं जिन्हें यहोवा हमेशा की ज़िंदगी देना चाहता है।—मला. 3:16; प्रका. 20:15.
5. स्मारक से कुछ हफ्ते पहले हम कैसे ‘खुद को जाँच सकते हैं कि हम विश्वास में हैं या नहीं’?
5 आम तौर पर हम सब प्रार्थना करते हैं और गहराई से सोचते हैं कि यहोवा के साथ हमारा रिश्ता कितना मज़बूत है। लेकिन स्मारक से कुछ हफ्ते पहले हमें और भी ज़्यादा ऐसा करना चाहिए। (2 कुरिंथियों 13:5 पढ़िए।) प्रेषित पौलुस ने मसीहियों से कहा, “खुद को जाँचते रहो कि तुम विश्वास में हो या नहीं।” हम अपनी जाँच कैसे कर सकते हैं? हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मुझे पूरा यकीन है कि यहोवा इसी संगठन के ज़रिए अपनी मरज़ी पूरी कर रहा है? क्या मैं जी-जान से खुशखबरी का प्रचार कर रहा हूँ और लोगों को सिखा रहा हूँ? क्या मेरे काम दिखाते हैं कि मैं सचमुच मानता हूँ कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं और जल्द ही शैतान की हुकूमत खत्म हो जाएगी? क्या यहोवा और यीशु पर मेरा भरोसा उतना ही मज़बूत है जितना उस वक्त था जब मैंने यहोवा की सेवा शुरू की थी?’ (मत्ती 24:14; 2 तीमु. 3:1; इब्रा. 3:14) इन सवालों पर गहराई से सोचने से हम खुद को ‘सबूत देते रहेंगे’ कि हम असल में क्या हैं।
6. (क) हमेशा की ज़िंदगी पाने का एकमात्र रास्ता क्या है? (ख) एक प्राचीन हर साल कैसे स्मारक की तैयारी करता है और आप उसकी तरह तैयारी कैसे कर सकते हैं?
6 स्मारक की तैयारी करने का एक तरीका है कि आप इससे जुड़े लेख पढ़ें और उन पर मनन करें। (यूहन्ना 3:16; 17:3 पढ़िए।) हमेशा की ज़िंदगी पाने का सिर्फ एक ही रास्ता है और वह है, यहोवा को जानना और उसके बेटे यीशु पर विश्वास करना। स्मारक की तैयारी करते वक्त हम उन विषयों पर अध्ययन कर सकते हैं जो हमें यहोवा और यीशु के और भी करीब लाएँगे। एक भाई जो लंबे समय से प्राचीन है ऐसा ही करता है। उसने कई सालों से प्रहरीदुर्ग के उन लेखों को इकट्ठा किया है जिनमें स्मारक के बारे में और यहोवा और यीशु के प्यार के बारे में चर्चा की गयी है। फिर स्मारक के कुछ हफ्ते पहले वह इन लेखों पर दोबारा गौर करता है और उन पर गहराई से सोचता है। कभी-कभी वह नए लेख भी इनमें जोड़ देता है। इसके अलावा, वह स्मारक से जुड़ी आयतें भी पढ़ता है और उन पर मनन करता है। उसका कहना है कि इस तरह अध्ययन करने से वह हर साल कुछ-न-कुछ नया सीखता है। सबसे बढ़कर, यहोवा और यीशु के लिए उसका प्यार और गहरा हो जाता है। अगर आप इस तरह अध्ययन करें तो आप यहोवा और यीशु से और भी प्यार करने लगेंगे। उनके उपकारों के लिए आपका दिल एहसान से भर जाएगा। इस तरह आपको स्मारक से और भी फायदा होगा।
स्मारक कैसे हमें एक करता है?
7. (क) प्रभु के संध्या-भोज की रात यीशु ने क्या प्रार्थना की? (ख) यहोवा ने उसकी प्रार्थना का जवाब कैसे दिया?
7 जिस रात यीशु ने प्रभु के संध्या-भोज की शुरूआत की, उस रात उसने अपने पिता से प्रार्थना की। उसने कहा कि उसके चेलों के बीच वैसी ही एकता हो जैसी उसके और उसके पिता के बीच है। (यूहन्ना 17:20, 21 पढ़िए।) यहोवा ने अपने प्यारे बेटे की इस प्रार्थना का जवाब दिया है। वह कैसे? हमारी दूसरी सभाओं से बढ़कर स्मारक से पता चलता है कि हम साक्षियों के बीच कमाल की एकता है। इस दिन अलग-अलग रंग और देश के लाखों लोग एक-साथ इकट्ठा होते हैं और दिखाते हैं कि उन्हें यकीन है कि यीशु को यहोवा ने भेजा था। कुछ इलाकों में लोग सोच भी नहीं सकते कि अलग-अलग जाति के लोग इस तरह एक-साथ इकट्ठा हो सकते हैं और कुछ लोगों को तो हमारा इकट्ठा होना खटकता है। लेकिन यहोवा और यीशु का नज़रिया कितना अलग है! स्मारक में ऐसी एकता देखकर उनका दिल खुश हो जाता है।
8. यहोवा ने यहेजकेल को क्या बताया था?
8 यहोवा के लोग होने के नाते हमें यह देखकर हैरानी नहीं होती कि हमारे बीच एकता है। ध्यान दीजिए कि यहोवा ने यहेजकेल को पहले से क्या बताया था। उसने यहेजकेल से कहा कि वह दो छड़ी ले, एक “यहूदा के लिए” और दूसरी “यूसुफ के लिए।” फिर वह इन दोनों छड़ियों को एक-दूसरे के पास ले आए ताकि वे जुड़कर एक छड़ी बन जाएँ। (यहेजकेल 37:15-17 पढ़िए।) जुलाई 2016 की प्रहरीदुर्ग में छपे लेख, “आपने पूछा” में समझाया गया था: “यहोवा ने भविष्यवक्ता यहेजकेल के ज़रिए भविष्यवाणी की थी कि उसके लोग वादा किए हुए देश में वापस आएँगे और फिर से एक राष्ट्र बन जाएँगे। इस भविष्यवाणी में यह भी बताया गया था कि जो लोग आखिरी दिनों में परमेश्वर की उपासना कर रहे होंगे, वे भी एक होंगे।”
9. यहेजकेल की भविष्यवाणी में बतायी एकता स्मारक के दिन कैसे नज़र आती है?
9 सन् 1919 में यहोवा ने अभिषिक्त जनों को फिर से संगठित और एक करना शुरू किया। वे उस छड़ी की तरह थे जो “यहूदा के लिए” थी। फिर और भी लोग उनके साथ जुड़ने लगे जो धरती पर जीने की आशा रखते हैं। ये लोग उस छड़ी की तरह हैं जो “यूसुफ के लिए” है। यहोवा ने वादा किया कि वह इन दोनों समूह के लोगों को एकता में जोड़ेगा और वे उसके हाथ में “एक छड़ी बन जाएँगे।” (यहे. 37:19) इस तरह अभिषिक्त जन और “दूसरी भेड़ें” मिलकर “एक झुंड” बन गए हैं। (यूह. 10:16; जक. 8:23) आज ये दोनों समूह कंधे-से-कंधा मिलाकर यहोवा की सेवा कर रहे हैं। उनका एक ही राजा है, यीशु मसीह जिसे यहेजकेल की भविष्यवाणी में परमेश्वर का “सेवक दाविद” कहा गया है। (यहे. 37:24, 25) हर साल यीशु की मौत की याद में जब स्मारक मनाया जाता है, तो इन दोनों समूहों की एकता साफ नज़र आती है जैसे यहेजकेल की भविष्यवाणी में बताया गया था। लेकिन सवाल है कि इस एकता को बनाए रखने और इसे मज़बूत करते रहने के लिए हममें से हरेक मसीही क्या कर सकता है?
हममें से हरेक जन एकता को कैसे मज़बूत कर सकता है?
10. हम मंडली में किस तरह एकता को मज़बूत कर सकते हैं?
10 एकता को मज़बूत करने का एक तरीका है, नम्र बने रहना। जब यीशु धरती पर था तो उसने अपने चेलों से कहा कि वे नम्र रहें। (मत्ती 23:12) दुनिया के लोग अकसर खुद को दूसरों से बेहतर समझते हैं। लेकिन अगर हम नम्र होंगे तो हम अगुवाई करनेवाले भाइयों का आदर करेंगे और उनके निर्देश मानेंगे। ऐसा करने से ही मंडली में एकता होगी। सबसे बढ़कर, नम्र बने रहने से हम परमेश्वर को खुश करेंगे क्योंकि वह “घमंडियों का विरोध करता है, मगर नम्र लोगों पर महा-कृपा करता है।”—1 पत. 5:5.
11. स्मारक की रोटी और दाख-मदिरा के बारे में सोचने से किस तरह एकता मज़बूत होती है?
11 एकता को मज़बूत करने का दूसरा तरीका है, गहराई से सोचना कि स्मारक के दौरान इस्तेमाल होनेवाली रोटी और दाख-मदिरा किन बातों की निशानियाँ हैं। ऐसा हमें स्मारक से पहले और खासकर स्मारक के दिन करना चाहिए। (1 कुरिं. 11:23-25) बिन-खमीर की रोटी यीशु के परिपूर्ण शरीर की और लाल दाख-मदिरा उसके खून की निशानी है। लेकिन हमारे लिए सिर्फ इतना समझना काफी नहीं। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि फिरौती बलिदान यहोवा और यीशु के प्यार का सबसे बड़ा सबूत है। यहोवा ने हमारी खातिर अपना बेटा दे दिया और यीशु ने खुशी-खुशी हमारे लिए अपनी जान दे दी। उन्होंने जिस हद तक हमसे प्यार किया है, उस बारे में सोचकर हम भी उनसे प्यार करने के लिए उभारे जाते हैं। यहोवा के लिए हमारा यही प्यार हमारे बीच की एकता को मज़बूत करता है।
12. यहोवा चाहता है कि हम दूसरों को माफ करें, यह हम यीशु की दी मिसाल से कैसे सीखते हैं?
12 एकता को मज़बूत करने का तीसरा तरीका है, दिल खोलकर दूसरों को माफ करना। ऐसा करके हम दिखाते हैं कि हम यहोवा के कितने एहसानमंद हैं कि वह यीशु के बलिदान के आधार पर हमारे पाप माफ करता है। माफ करना कितना ज़रूरी है, इसे समझाने के लिए यीशु ने एक राजा और उसके दासों की मिसाल दी। यह मिसाल मत्ती 18:23-34 में दर्ज़ है। इसे पढ़िए और खुद से पूछिए, ‘इस मिसाल से यीशु ने जो सीख दी, क्या मैं उस पर चलता हूँ? क्या मैं अपने भाई-बहनों के साथ सब्र रखता हूँ और समझ से काम लेता हूँ? जब कोई मुझे ठेस पहुँचाता है, तो क्या मैं उसे माफ करने के लिए तैयार रहता हूँ?’ माना कि कुछ पाप दूसरे पापों से ज़्यादा गंभीर होते हैं। यही नहीं, कुछ गलतियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें माफ करना हम अपरिपूर्ण इंसानों के लिए बहुत मुश्किल होता है। लेकिन यीशु की मिसाल से हम सीखते हैं कि यहोवा हमसे क्या चाहता है। (मत्ती 18:35 पढ़िए।) अगर हमारे भाइयों को अपने किए पर सच्चा पछतावा है फिर भी हम उन्हें माफ नहीं करते, तो यीशु ने बताया कि यहोवा भी हमें माफ नहीं करेगा। यह वाकई सोचनेवाली बात है! जब हम दूसरों को माफ करते हैं जैसा कि यीशु ने सिखाया, तो हम अपने बीच पायी जानेवाली अनमोल एकता को बनाए रखते हैं और इसे मज़बूत करते जाते हैं।
13. दूसरों के साथ शांति बनाए रखने से कैसे एकता मज़बूत होती है?
13 जब हम अपने भाई-बहनों को माफ करते हैं, तब हम उनके साथ शांति बनाए रख पाते हैं। प्रेषित पौलुस ने कहा कि हमें अपने बीच की एकता और शांति को बरकरार रखने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी चाहिए। (इफि. 4:3) इसलिए स्मारक से पहले और खासकर स्मारक के दिन गहराई से सोचिए कि हम दूसरों के साथ किस तरह पेश आते हैं। खुद से पूछिए, ‘क्या दूसरे लोग यह साफ देख पाते हैं कि जिस व्यक्ति ने मुझे ठेस पहुँचायी है, मैं उससे नाराज़ नहीं रहता? क्या लोग मेरे बारे में यह कह सकते हैं कि मैं शांति कायम करने और एकता बनाए रखने की पूरी कोशिश करता हूँ?’ ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके बारे में हमें गंभीरता से सोचना चाहिए।
14. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम “प्यार से एक-दूसरे की सहते” हैं?
14 एकता को मज़बूत करने का चौथा तरीका है, दूसरों से प्यार करने में यहोवा की मिसाल पर चलना। (1 यूह. 4:8) हम यह कभी नहीं कहेंगे, “मैं जानता हूँ कि मुझे अपने भाइयों की सहते रहना है लेकिन ज़रूरी नहीं कि मैं उन्हें पसंद करूँ।” अगर ऐसी बात है, तो हम पौलुस की इस सलाह पर नहीं चल रहे होंगे, “प्यार से एक-दूसरे की सहते रहो।” (इफि. 4:2) ध्यान दीजिए कि पौलुस ने सिर्फ यह नहीं कहा, “एक-दूसरे की सहते रहो” बल्कि उसने कहा, “प्यार से एक-दूसरे की सहते रहो।” इन दोनों बातों में फर्क है। हमारी मंडली में जो अलग-अलग किस्म के लोग हैं, उन सबको यहोवा ने अपने पास खींचा है। (यूह. 6:44) ज़ाहिर है कि उसके पास उनसे प्यार करने की कई वजह हैं तभी उसने उन्हें अपनी तरफ खींचा है। अगर परमेश्वर भाई-बहनों को अपने प्यार के लायक समझता है, तो हम कैसे सोच सकते हैं कि वे हमारे प्यार के लायक नहीं? हमें उनसे दिल से प्यार करना चाहिए ठीक जैसे यहोवा हमसे चाहता है।—1 यूह. 4:20, 21.
आखिरी बार स्मारक कब मनाया जाएगा?
15. हम कैसे जानते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा जब हम आखिरी बार स्मारक मनाएँगे?
15 एक दिन ऐसा आएगा जब हम आखिरी बार स्मारक मनाएँगे। यह हम कैसे जानते हैं? पौलुस ने अपनी चिट्ठी में अभिषिक्त मसीहियों से कहा कि हर साल स्मारक मनाकर वे यीशु की ‘मौत का ऐलान करते हैं और ऐसा वे प्रभु के आने तक करते रहेंगे।’ (1 कुरिं. 11:26) यीशु ने अंत के समय की भविष्यवाणी करते वक्त अपने “आने” की बात भी कही थी। आनेवाले महा-संकट के बारे में यीशु ने कहा था, “इंसान के बेटे की निशानी आकाश में दिखायी देगी और धरती की सारी जातियाँ दुख के मारे छाती पीटेंगी और वे इंसान के बेटे को शक्ति और बड़ी महिमा के साथ आकाश के बादलों पर आता देखेंगे। और वह तुरही की बड़ी आवाज़ के साथ अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके चुने हुओं को आकाश के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक, चारों दिशाओं से इकट्ठा करेंगे।” (मत्ती 24:29-31) यीशु अपने ‘चुने हुओं को इकट्ठा करेगा’ यानी धरती पर बचे हुए अभिषिक्त जनों को अपने साथ स्वर्ग ले जाएगा। यह महा-संकट के शुरू होने के बाद और हर-मगिदोन के युद्ध से पहले होगा। फिर हर-मगिदोन के युद्ध में यीशु 1,44,000 जनों के साथ मिलकर धरती के राजाओं से लड़ेगा और जीत हासिल करेगा। (प्रका. 17:12-14) जब यीशु अभिषिक्त जनों को इकट्ठा करने के लिए ‘आएगा,’ तो उससे पहले जो स्मारक मनाया जाएगा, वह आखिरी स्मारक होगा।
16. आपने क्यों ठान लिया है कि इस साल आप स्मारक में ज़रूर हाज़िर होंगे?
16 आइए हम ठान लें कि जब 31 मार्च, 2018 को स्मारक मनाया जाएगा, तो हम ज़रूर हाज़िर होंगे। यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि उसके लोगों के बीच जो एकता है, उसे बनाए रखने में वह आपकी मदद करे। (भजन 133:1 पढ़िए।) याद रखिए, एक दिन ऐसा आएगा जब हम आखिरी बार स्मारक मनाएँगे। लेकिन तब तक आइए हम स्मारक में हाज़िर होने की पूरी कोशिश करें और दिखाएँ कि इस मौके पर जो मनभावनी एकता होती है उसे हम अनमोल समझते हैं।