किसी को भी आपकी अच्छी आदतों को बिगाड़ने न दीजिए
“धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छी आदतों को बिगाड़ देती है।” —१ कुरिन्थियों १५:३३, NW.
१, २. (क) कुरिन्थुस के मसीहियों के प्रति प्रेरित पौलुस की क्या भावना थी, और क्यों? (ख) हम कौन-सी ख़ास सलाह पर विचार करेंगे?
माता-पिता का प्रेम क्या ही एक शक्तिशाली भावना है! यह माता-पिता को अपने बच्चों के लिए बलिदान करने, उन्हें शिक्षा और सलाह देने के लिए प्रेरित करती है। प्रेरित पौलुस चाहे एक प्राकृतिक पिता नहीं था, लेकिन उसने कुरिन्थुस के मसीहियों को लिखा: “यदि मसीह में तुम्हारे सिखानेवाले दस हजार भी होते, तौभी तुम्हारे पिता बहुत से नहीं, इसलिये कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा मैं तुम्हारा पिता हुआ।”—१ कुरिन्थियों ४:१५.
२ इससे पहले, पौलुस कुरिन्थुस गया था, जहाँ उसने यहूदियों और यूनानियों को प्रचार किया। उसने कुरिन्थुस की कलीसिया को बनाने में मदद की। एक दूसरी पत्री में पौलुस ने अपनी देख-रेख की तुलना एक दूध पिलानेवाली माता से की, लेकिन वह कुरिन्थियों के लिए एक पिता के समान था। (१ थिस्सलुनीकियों २:७) जैसा कि एक प्रेममय प्राकृतिक पिता करता है, वैसा ही पौलुस ने अपने आध्यात्मिक बच्चों को ताड़ना दी। आप उसके पितृवत् सलाह से लाभ उठा सकते हैं जो उसने कुरिन्थुस के मसीहियों को दी: “धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छी आदतों को बिगाड़ देती है।” (१ कुरिन्थियों १५:३३, NW) पौलुस ने कुरिन्थियों को यह क्यों लिखा? हम इस सलाह को कैसे लागू कर सकते हैं?
उनके लिए और हमारे लिए सलाह
३, ४. हम पहली-सदी के कुरिन्थुस और उसके जनसमुदाय के बारे में क्या जानते हैं?
३ पहली सदी में, यूनानी भूगोलवेत्ता स्ट्रैबो ने लिखा: “कुरिन्थुस अपने वाणिज्य के कारण ‘धनी’ कहलाता है, क्योंकि यह स्थल-संयोजक पर स्थित है और दो बन्दरगाहों का स्वामी है, जिनमें से एक सीधा एशिया को, और दूसरा इटली को जाता है; और इससे दोनों देशों से आए माल का आदान-प्रदान आसान होता है।” हर दो साल के बाद, मशहूर इस्थिमी खेलों के लिए भीड़ पर भीड़ कुरिन्थुस आती थी।
४ इस नगर के लोग किस प्रकार के थे, जो कि सरकारी अधिकार का और साथ ही अफ्रोडाइट की ऐन्द्रिय पूजा का एक केंद्र था? प्रोफ़ेसर टी. ऐस. ईवन्स् ने स्पष्ट किया: “जनसंख्या संभवतः लगभग ४,००,००० थी। उच्च संस्कृति का समाज [था], लेकिन नैतिकता में विरल, यहाँ तक कि अश्लील भी। . . . अखाया देश के यूनानी निवासियों का विशेष लक्षण था प्रज्ञात्मक असंतुष्टि और नवीनता के लिए एक अत्यधिक उत्कंठा। . . . उनका स्वार्थवाद सांप्रदायिकता की मशाल को आसानी से आग लगा सकता था।”
५. कुरिन्थुस के भाइयों ने कौन-से ख़तरे का सामना किया?
५ कुछ समय बाद, वहाँ की कलीसिया भी कुछ ऐसे व्यक्तियों द्वारा विभाजित हो गई जो अभी भी अहंकारी अटकलबाज़ी की ओर प्रवृत्त थे। (१ कुरिन्थियों १:१०-३१; ३:२-९) एक मुख्य समस्या यह थी कि कुछ लोग कह रहे थे: “मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं।” (१ कुरिन्थियों १५:१२; २ तीमुथियुस २:१६-१८) उनके वास्तविक विश्वास (या अविश्वास) जो भी थे, पौलुस को स्पष्ट प्रमाण देकर कि मसीह “मुर्दों में से जी उठा है,” उन्हें ताड़ना देनी पड़ी। इस प्रकार, मसीही लोग विश्वास कर सकते थे कि परमेश्वर उन्हें ‘हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जयवन्त करेगा।’ (१ कुरिन्थियों १५:२०, ५१-५७) यदि आप वहाँ होते, तो क्या आप ख़तरे में होते?
६. पौलुस की १ कुरिन्थियों १५:३३ में दी गई सलाह का क्या ख़ास उद्देश्य था?
६ उनको दृढ़ प्रमाण देते समय कि मुर्दे जी उठाए जाएँगे, पौलुस ने उनसे कहा: “धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छी आदतों को बिगाड़ देती है।” इस सलाह का उद्देश्य कलीसिया के साथ संगति रखनेवाले उन लोगों के सम्बन्ध में था जो पुनरुत्थान के सिद्धांत पर असहमत थे। क्या वे केवल एक ऐसे मुद्दे पर अनिश्चित थे जो उन्हें समझ नहीं आ रहा था? (लूका २४:३८ से तुलना कीजिए.) नहीं। पौलुस ने लिखा कि ‘तुम में से कितने कहते हैं, कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं,’ (तिरछे टाइप हमारे) इसलिए इसमें सम्मिलित लोग धर्मत्याग की ओर प्रवृत्त होते हुए, असहमति व्यक्त कर रहे थे। पौलुस अच्छी तरह से अवगत था कि वे दूसरों की अच्छी आदतों और विचारों को बिगाड़ सकते हैं।—प्रेरितों २०:३०; २ पतरस २:१.
७. एक स्थिति क्या है जिसमें हम १ कुरिन्थियों १५:३३ को लागू कर सकते हैं?
७ हम संगति के बारे में पौलुस की चेतावनी को कैसे लागू कर सकते हैं? उसका यह अर्थ नहीं था कि हमें कलीसिया में उन लोगों की मदद करने से इनकार करना चाहिए, जिन्हें किसी बाइबल आयत या शिक्षा को समझने में कठिनाई हो रही है। बेशक, यहूदा २२, २३ हम से आग्रह करता है कि हम ऐसी शंका रखनेवाले निष्कपट लोगों को दयापूर्ण मदद दें। (याकूब ५:१९, २०) लेकिन, यदि कोई व्यक्ति उन बातों का विरोध करता रहता है जो हम जानते हैं कि बाइबल सत्य की बातें हैं, या वह संदेहाकुल या नकारात्मक स्वभाव की टिप्पणियाँ देता रहता है, तो पौलुस की पितृवत् सलाह को निश्चय ही लागू करना चाहिए। हमें इस प्रकार के व्यक्ति के साथ संगति करने के विरुद्ध सावधान रहना चाहिए। यक़ीनन, यदि कोई व्यक्ति निश्चित रूप से धर्मत्यागी बन जाए, तो आध्यात्मिक चरवाहों को झुंड की रक्षा करने के लिए कार्य करना पड़ेगा।—२ तीमुथियुस २:१६-१८; तीतुस ३:१०, ११.
८. जब कोई व्यक्ति बाइबल शिक्षा पर असहमत होता है, तब एक संतुलित दृष्टिकोण क्या है?
८ जब कलीसिया के बाहर उन लोगों की बात आती है जो झूठी शिक्षाओं का समर्थन करते हैं, तब भी हम १ कुरिन्थियों १५:३३ में दिए पौलुस के पितृवत् शब्दों को लागू कर सकते हैं। हम कैसे उनकी संगति में पड़ सकते हैं? ऐसा ही हो सकता है यदि हम उन लोगों के बीच भेद न करें जिन्हें सत्य सीखने में मदद की जा सकती है और जो केवल एक झूठी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विवाद उठाते हैं। उदाहरण के लिए, हमारे गवाही कार्य में, हमारी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो सकती है जो कि किसी विषय पर असहमत है लेकिन जो उस पर अतिरिक्त चर्चा करने के लिए तैयार है। (प्रेरितों १७:३२-३४) यह ख़ुद में एक समस्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हम आनन्द के साथ उन सभी लोगों को बाइबल सत्य की बातें स्पष्ट करते हैं जो सचमुच जानना चाहते हैं, यहाँ तक कि हम क़ायल करनेवाले प्रमाण पेश करने के लिए वापस भी जाते हैं। (१ पतरस ३:१५) तो भी, शायद कुछ लोग वास्तव में बाइबल सत्य की बातों को ढूँढ़ने में दिलचस्पी नहीं रखते हैं।
९. अपने विश्वास पर आयी चुनौतियों के प्रति हमें कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
९ बहुत से लोग हर हफ़्ते, घंटों तक वाद-विवाद करेंगे, लेकिन इसलिए नहीं कि वे सत्य की खोज कर रहे हैं। वे केवल इब्रानी, यूनानी, या विकासात्मक विज्ञान में अपनी तथाकथित शिक्षा का दिखावा करते हुए, दूसरों के विश्वास को कमज़ोर बनाना चाहते हैं। ऐसे लोगों से भेंट होने पर, कुछ गवाहों ने इसे एक चुनौती समझा, और उसके कारण उन्होंने लंबे समय तक ऐसी संगति रखी जो कि झूठे धार्मिक विश्वास, तत्त्वज्ञान, या वैज्ञानिक त्रुटि पर केंद्रित थी। यह ध्यान देने के योग्य है कि यीशु ने अपने साथ ऐसा नहीं होने दिया, हालाँकि वह इब्रानी या यूनानी भाषाओं में प्रशिक्षित धार्मिक नेताओं के साथ वाद-विवाद में जीत सकता था। चुनौती का सामना करने पर, यीशु ने संक्षिप्त उत्तर दिया और फिर अपना ध्यान विनम्र लोगों, अर्थात् वास्तविक भेड़ों की ओर घुमाया।—मत्ती २२:४१-४६; १ कुरिन्थियों १:२३–२:२.
१०. उन मसीहियों के लिए सावधानी क्यों उपयुक्त है जिनके पास कम्प्यूटर हैं और जिनकी इलेक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्डस् तक पहुँच है?
१० आधुनिक कम्प्यूटरों ने बुरी संगति के अन्य मार्ग खोल दिए हैं। कुछ व्यवसाय संघों ने कम्प्यूटर तथा टेलीफ़ोन प्रयोग करनेवाले ग्राहकों के लिए इलेक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्डस् पर संदेश भेजना संभव बनाया है; इस प्रकार एक व्यक्ति उस बुलेटिन बोर्ड पर संदेश लगा सकता है जो सभी ग्राहक पढ़ सकते हैं। परिणामस्वरूप, धार्मिक विषयों पर तथाकथित इलेक्ट्रॉनिक वाद-विवाद होते हैं। एक मसीही ऐसे वाद-विवाद में पड़ सकता है और घंटों तक एक धर्मत्यागी विचारक के साथ बात कर सकता है जिसे शायद कलीसिया से बहिष्कृत किया गया हो। दूसरा यूहन्ना ९-११ बुरी संगति से बचने के बारे में पौलुस के पितृवत् सलाह को रेखांकित करता है।a
धोखा खाने से बचिए
११. कुरिन्थुस की वाणिज्यिक स्थिति ने क्या अवसर प्रस्तुत किया?
११ जैसे हम ने देखा, कुरिन्थुस एक वाणिज्यिक केंद्र था, जिसमें अनेक दुकानें और व्यवसाय थे। (१ कुरिन्थियों १०:२५) इस्थिमी खेलों के लिए आनेवाले अनेक लोग तम्बूओं में रहते थे, और उन खेलों के दौरान व्यापारी लोग अस्थायी दुकानों या ढके हुए स्टालों से सामान बेचा करते थे। (प्रेरितों १८:१-३ से तुलना कीजिए.) इसके कारण पौलुस को वहाँ तम्बू बनाने का काम मिल सकता था। और वह सुसमाचार को फैलाने के लिए उस कार्यस्थल का प्रयोग कर सकता था। प्रोफ़ेसर जे. मर्फ़ी-ओकॉनर लिखता है: “एक व्यस्त बाज़ार में एक दुकान से . . . जिसका मुख एक भीड़पूर्ण सड़क की ओर था, पौलुस की केवल सहकर्मियों और ग्राहकों तक ही नहीं, परन्तु बाहर की भीड़ तक भी पहुँच थी। मंदी के दौरान वह द्वार पर खड़ा होकर उन लोगों को बातों में लगा सकता था जो उसके विचार में शायद सुनते . . . ऐसी कल्पना करना कठिन है कि उसके प्रेरणात्मक व्यक्तित्व और अति दृढ़ विश्वास ने उसे जल्द ही पड़ोस का उल्लेखनीय व्यक्ति नहीं बना दिया, और इससे जिज्ञासु लोग खिंचे चले आते, न केवल समय बरबाद करनेवाले लोग, बल्कि वे भी जो वास्तव में जानकारी की खोज कर रहे हैं। . . . विवाहित औरतें, जिन्होंने उसके बारे में सुना था, अपने परिचारकों के साथ कुछ ख़रीदने का बहाना करके उससे भेंट कर सकती थीं। विपत्ति के समय, जब सताहट या साधारण संतापन का ख़तरा होता था, विश्वासी लोग उससे ग्राहकों के रूप में मिल सकते थे। उस दुकान पर नगर-अधिकारियों से भी उसका सम्पर्क होता था।”
१२, १३. कार्यस्थल पर १ कुरिन्थियों १५:३३ कैसे उचित रीति से लागू होता है?
१२ लेकिन पौलुस को ज़रूर एहसास हुआ होगा कि उस कार्यस्थल पर “बुरी संगति” की संभावना थी। हमें भी एहसास होना चाहिए। अर्थपूर्ण रीति से, पौलुस ने एक मनोवृत्ति का उद्धरण दिया जो कुछ लोगों में प्रचलित थी: “आओ, खाए-पीए, क्योंकि कल तो मर ही जाएंगे।” (१ कुरिन्थियों १५:३२) उसने तुरन्त उसके बाद अपनी पितृवत् सलाह दी: “धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छी आदतों को बिगाड़ देती है।” कार्यस्थल और मनोरंजन की खोज कैसे मिलकर एक संभावित ख़तरा पैदा कर सकते हैं?
१३ मसीही लोग सहकर्मियों के साथ मैत्रीपूर्ण होना चाहते हैं, और अनेक अनुभव प्रदर्शित करते हैं कि यह एक गवाही देने के लिए मार्ग खोलने में अति प्रभावकारी हो सकता है। लेकिन, एक सहकर्मी इस मैत्रीभाव का ग़लत अर्थ निकाल सकता है, और समझ सकता है कि आप एक साथ मिलकर अच्छा समय बिताने का निमंत्रण दे रहे हैं। हो सकता है कि वह पुरुष या स्त्री आपको दोपहर के खाने के लिए, काम के बाद कुछ पीने के लिए घर पर थोड़े समय तक रुकने के लिए, या सप्ताहांत में कुछ मनोरंजन के लिए एक साधारण निमंत्रण दे। यह व्यक्ति कृपालु और भला प्रतीत हो सकता है, और वह निमंत्रण शायद सीधा-सादा प्रतीत हो। तो भी, पौलुस हमें सलाह देता है: “धोखा न खाना।”
१४. कुछ मसीहियों ने संगति द्वारा कैसे धोखा खाया है?
१४ कुछ मसीहियों ने धोखा खाया है। सहकर्मियों के साथ संगति करने के प्रति उनमें धीरे-धीरे एक लापरवाह मनोवृत्ति विकसित हुई। शायद यह किसी खेल या शौक में समान रुचि के कारण उत्पन्न हुई हो। या कार्यस्थल पर एक ग़ैर-मसीही विशेष रीति से कृपालु और सहानुभूतिपूर्ण हो सकता है, जिस के कारण वह उसके साथ अधिकाधिक समय बिताने लगता है, यहाँ तक कि उसकी संगति को वह कलीसिया के कुछ लोगों की संगति से अधिक पसन्द करता है। फिर शायद यह संगति मात्र एक सभा में अनुपस्थित होने की ओर ले जाए। इसका यह अर्थ हो सकता है कि एक रात देर तक बाहर रहना और अगली सुबह क्षेत्र सेवकाई में भाग लेने की अपनी आदत तोड़ना। इसका परिणाम हो सकता है कि वह ऐसी प्रकार की फ़िल्म या वीडियो देखे, जो सामान्यतः एक मसीही देखने से इनकार करता। शायद आप सोचें, ‘ओह, मेरे साथ ऐसा कभी नहीं होगा।’ लेकिन अधिकतर लोगों ने भी, जिन्होंने धोखा खाया है, शायद पहले पहल इसी प्रकार की प्रतिक्रिया दिखाई हो। हमें अपने आप से पूछने की ज़रूरत है, ‘वास्तव में मैं पौलुस की सलाह को लागू करने में कितना दृढ़ हूँ?’
१५. पड़ोसियों के प्रति हमारी क्या संतुलित मनोवृत्ति होनी चाहिए?
१५ हम ने अभी कार्यस्थल के विषय में जो चर्चा की, वही बात पड़ोसियों के साथ हमारी संगति पर भी लागू होती है। निश्चय ही, प्राचीन कुरिन्थुस के मसीहियों के पड़ोसी थे। मैत्रीपूर्ण होना और पड़ोसियों की सहायता करना कुछ समुदायों में सामान्य बात होती है। ग्राम्य-क्षेत्रों में विलगन के कारण शायद पड़ोसी एक दूसरे पर निर्भर करें। कुछ संस्कृतियों में पारिवारिक सम्बन्ध विशेषकर मज़बूत होते हैं, जिसके कारण खाने के लिए काफ़ी निमंत्रण मिल सकते हैं। स्पष्टतः, एक संतुलित दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है, जैसा यीशु ने प्रकट किया। (लूका ८:२०, २१; यूहन्ना २:१२) अपने पड़ोसियों या सम्बन्धियों के साथ व्यवहार में, क्या हम वैसा ही कार्य करने की ओर प्रवृत्त हैं जैसा हम मसीही बनने से पहले करते थे? इसके बजाय, क्या हमें अब ऐसे व्यवहार पर पुनर्विचार करके चिंतनशील रीति से निश्चित नहीं करना चाहिए कि कौन-सी सीमाएँ उपयुक्त हैं?
१६. मत्ती १३:३, ४ में दिए गए यीशु के शब्दों को कैसे समझा जाना चाहिए?
१६ यीशु ने एक बार राज्य के वचन की तुलना बीज के साथ की, जो “मार्ग के किनारे गिरे और पक्षियों ने आकर उन्हें चुग लिया।” (मत्ती १३:३, ४, १९) उस समय, एक मार्ग की मिट्टी लोगों के उस पर आने-जाने से सख़्त हो जाती थी। यही बहुत-से लोगों के साथ होता है। उनके जीवन पड़ोसियों, सम्बन्धियों, और अन्य लोगों के आने-जाने से भरे हुए हैं, जिसके कारण वे व्यस्त रहते हैं। यह, मानो, उनके हृदयों की मिट्टी को रौंदता है, और सत्य के बीज को जड़ पकड़ने के लिए इसे सख़्त बना देता है। यही बात उस व्यक्ति में भी विकसित हो सकती है जो पहले से ही एक मसीही है।
१७. पड़ोसियों और अन्य लोगों के साथ संगति का हम पर कैसे प्रभाव पड़ सकता है?
१७ कुछ सांसारिक पड़ोसी और सम्बन्धी मैत्रीपूर्ण और सहायक हो सकते हैं, हालाँकि उन्होंने निरंतर रूप से न आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी दिखाई है और न ही धार्मिकता के लिए प्रेम। (मरकुस १०:२१, २२; २ कुरिन्थियों ६:१४) हमारा मसीही बनने का यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि हम रूखे, ग़ैर-मिलनसार बन जाएँ। यीशु ने हमें दूसरों में सच्ची दिलचस्पी प्रकट करने की सलाह दी। (लूका १०:२९-३७) लेकिन उतनी ही उत्प्रेरित और आवश्यक है पौलुस की सलाह कि हमें अपनी संगति के बारे में सावधान रहना चाहिए। जैसे-जैसे हम पूर्वोक्त सलाह को लागू करते हैं, हमें अवरोक्त सलाह को भी नहीं भूलना चाहिए। यदि हम दोनों सिद्धांतों को मन में नहीं रखते हैं, तो हमारी आदतों पर प्रभाव पड़ सकता है। ईमानदारी या कैसर के नियम को मानने के विषय में आपकी आदतें आपके पड़ोसियों की आदतों की तुलना में कैसी हैं? उदाहरण के लिए, वे शायद महसूस करें कि कर देने के समय, आमदनी या व्यवसाय के मुनाफ़े को कम बताना उचित है, यहाँ तक कि उत्तरजीविता के लिए आवश्यक है। वे शायद कॉफी पीते और बातचीत करते समय, या किसी संक्षिप्त भेंट के दौरान आपको अपने दृष्टिकोण बताएँ। इससे आपके विचार और ईमानदार आदतों पर कैसे प्रभाव पड़ सकता है? (मरकुस १२:१७; रोमियों १२:२) “धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छी आदतों को बिगाड़ देती है।”
युवा आदतें भी
१८. क्यों १ कुरिन्थियों १५:३३ युवाओं पर भी लागू होता है?
१८ युवा लोग ख़ासकर उन बातों से प्रभावित होते हैं जो वे देखते और सुनते हैं। क्या आपने ऐसे बच्चे नहीं देखे जिनके हाव-भाव या व्यवहार-वैचित्र्य अपने माता-पिता या भाई-बहनों से बहुत मिलते जुलते हैं? तो फिर, हमें चकित नहीं होना चाहिए कि बच्चे अपने मित्रों या सहपाठियों द्वारा अति प्रभावित हो सकते हैं। (मत्ती ११:१६, १७ से तुलना कीजिए.) यदि आपका बेटा या बेटी ऐसे युवाओं की संगति में है जो अपने माता-पिता के बारे में निरादरपूर्ण रीति से बात करते हैं, तो आप क्यों यह कल्पना करते हैं कि इसका आपके बच्चों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा? क्या होगा यदि वे अकसर अन्य युवाओं को अश्लील भाषा प्रयोग करते हुए सुनते हैं? क्या होगा यदि स्कूल में या पड़ोस में उनके साथी किसी नए जूते के स्टाइल या जवाहरात के फ़ैशन के बारे में उत्तेजक हो जाते हैं? क्या हमें सोचना चाहिए कि युवा मसीही ऐसे प्रभाव से अप्रभावित रहेंगे? क्या पौलुस ने यह कहा था कि १ कुरिन्थियों १५:३३ की एक न्यूनतम उम्र सीमा है?
१९. माता-पिता को अपने बच्चों में कैसा दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए?
१९ यदि आप एक माता या पिता हैं, तो क्या आप अपने बच्चों के साथ तर्क करते समय और उनके विषय में निर्णय लेते समय, इस सलाह के प्रति सचेत रहते हैं? आपका यह समझना संभवतः मदद करेगा कि इसका यह अर्थ नहीं कि जिन अन्य युवाओं के साथ आपके बच्चे पड़ोस में या स्कूल में संगति करते हैं, वे सभी अच्छे व्यक्ति नहीं हैं। उन में से कुछ व्यक्ति प्रीतिकर और सलीक़ेदार हो सकते हैं, जैसे कि आपके कुछ पड़ोसी, सम्बन्धी, और सहकर्मी भी हैं। अपने बच्चों की मदद करने की कोशिश कीजिए कि वे इस बात को समझ सकें और यह देख सकें कि आप पौलुस द्वारा कुरिन्थियों को दी गई बुद्धिमान, पितृवत् सलाह को लागू करने में संतुलित हैं। जैसे-जैसे वे समझते जाएँगे कि आप मामलों को कैसे संतुलित करते हैं, उन्हें आपका अनुकरण करने में मदद मिलेगी।—लूका ६:४०; २ तीमुथियुस २:२२.
२०. युवाओं, आप कौन-सी चुनौती का सामना कर रहे हैं?
२० आप जो अभी जवान हैं, समझने की कोशिश कीजिए कि पौलुस की सलाह को कैसे बुद्धिमानी से लागू करना चाहिए, यह जानते हुए कि यह हरेक मसीहियों के लिए महत्त्वपूर्ण है, चाहे वे युवा हों या वृद्ध। यह एक चुनौती पेश करेगा, लेकिन क्यों न इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहें? इस बात को समझ लीजिए कि क्योंकि आप उन कुछेक युवाओं को बचपन से जानते हैं, इसका यह अर्थ नहीं कि वे आपकी आदतों को प्रभावित नहीं कर सकते, उन आदतों को ख़राब नहीं कर सकते जो आप एक मसीही युवा के तौर पर विकसित कर रहे हैं।—नीतिवचन २:१, १०-१५.
हमारी आदतों की रक्षा करने के लिए सकारात्मक क़दम
२१. (क) संगति के विषय में हमारी क्या ज़रूरत है? (ख) हम क्यों निश्चित हो सकते हैं कि कुछ संगति ख़तरनाक हो सकती हैं?
२१ हम सब को संगति की ज़रूरत है। लेकिन हमें इस तथ्य के प्रति अवगत रहना चाहिए कि हमारी संगति हम पर अच्छा या बुरा प्रभाव डाल सकती है। यही बात आदम के मामले में और तब से सदियों के दौरान सभी लोगों के मामलों में सच साबित हुई है। उदाहरण के लिए, यहूदा के एक अच्छे राजा, यहोशापात को यहोवा का अनुग्रह और आशिष का आनन्द प्राप्त था। लेकिन अपने बेटे को इस्राएल के राजा अहाब की बेटी के साथ विवाह करने देने के बाद, यहोशापात ने अहाब के साथ संगति रखना शुरू किया। उस बुरी संगति के कारण यहोशापात की जान जानेवाली थी। (२ राजा ८:१६-१८; २ इतिहास १८:१-३, २९-३१) यदि हम अपनी संगति के विषय में नासमझ चुनाव करें, तो यह भी उतना ही ख़तरनाक हो सकता है।
२२. हमारा क्या दृढ़ संकल्प होना चाहिए?
२२ तो फिर, आइए हम १ कुरिन्थियों १५:३३ में पौलुस द्वारा पेश की गई प्रेममय सलाह को हृदय से स्वीकार करें। ये केवल ऐसे शब्द नहीं जिन्हें हम इतनी बार सुन चुके हैं कि हम उन्हें याददाश्त से दोहरा सकते हैं। इन शब्दों से वह पितृवत् स्नेह प्रतिबिम्बित होता है, जो स्नेह पौलुस अपने कुरिन्थुस भाई-बहनों के लिए, और, विस्तृत रूप से, हमारे लिए रखता था। और निःसन्देह इन शब्दों में वह सलाह पायी जाती है जो हमारा स्वर्गीय पिता इसलिए देता है कि वह हमारे प्रयासों को सफल देखना चाहता है।—१ कुरिन्थियों १५:५८.
[फुटनोट]
a ऐसे बुलेटिन बोर्ड में एक और ख़तरा है सर्वाधिकार युक्त प्रोग्रामों या प्रकाशनों को, असल मालिकों या लेखकों की अनुमति के बिना, अपने कम्प्यूटरों में उतारना, जो कि अंतर्राष्ट्रीय सर्वाधिकार नियमों के प्रतिकूल होगा।—रोमियों १३:१.
क्या आपको याद है?
▫ पौलुस ने कौन-से ख़ास कारण के लिए १ कुरिन्थियों १५:३३ लिखा?
▫ हम कार्यस्थल पर पौलुस की सलाह को कैसे लागू कर सकते हैं?
▫ पड़ोसियों के बारे में हमारा कैसा संतुलित दृष्टिकोण होना चाहिए?
▫ क्यों १ कुरिन्थियों १५:३३ ख़ासकर युवाओं के लिए उपयुक्त सलाह है?
[पेज 16 पर तसवीरें]
पौलुस ने सुसमाचार को फैलाने के लिए कार्यस्थल का प्रयोग किया
[पेज 17 पर तसवीरें]
अन्य युवजन आपकी मसीही आदतों को बिगाड़ सकते हैं