ईश्वरीय शिक्षा के लाभों का आनन्द लीजिए
“मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं।”—यशायाह ४८:१७.
१. यदि हम ईश्वरीय शिक्षा को अपने जीवन में लागू करते हैं तो हमारे लिए इसका क्या परिणाम होगा?
यहोवा परमेश्वर जानता है कि सबसे सही क्या है। विचार, शब्द, या कार्य में कोई भी उस से श्रेष्ठ नहीं है। हमारा सृष्टिकर्ता होने के नाते, वह हमारी ज़रूरतों को जानता है और उन्हें बहुतायत में पूरा करता है। वह निश्चित ही जानता है कि हमें कैसे उपदेश दे। और यदि हम ईश्वरीय शिक्षा को लागू करते हैं, तो हम स्वयं लाभ उठाते हैं और सच्ची ख़ुशी का आनन्द लेते हैं।
२, ३. (क) यदि परमेश्वर के प्राचीन लोगों ने उसकी आज्ञाओं का पालन किया होता तो उन्हें कैसे लाभ पहुंचता? (ख) आज यदि हम अपने जीवन में ईश्वरीय शिक्षा को लागू करते हैं तो क्या होगा?
२ ईश्वरीय शिक्षा परमेश्वर की यह निष्कपट इच्छा प्रकट करती है कि उस के सेवक उस के नियमों और सिद्धान्तों का पालन करने के द्वारा विपत्तियों से बचें और जीवन का आनन्द लें। यदि यहोवा के प्राचीन लोगों ने उसकी सुनी होती, तो उन्होंने प्रचुर आशिषों का आनन्द लिया होता, क्योंकि उस ने उन से कहा था: “मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं। भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरा धर्म [धार्मिकता, NW] समुद्र की लहरों के नाईं होता।”—यशायाह ४८:१७, १८.
३ परमेश्वर के प्राचीन लोग स्वयं को लाभ पहुँचाते यदि उन्होंने उसकी आज्ञाओं और उपदेशों को ध्यान से सुना होता। बाबुलियों के हाथों विपत्ति सहने के बजाय, उन्होंने एक ऐसी पूरी, गहरी, और चिरस्थायी शान्ति और समृद्धि का आनन्द लिया होता जैसे कि एक नदी होती है। इसके अलावा, उन के धार्मिक काम इतने अनगिनत होते जैसे कि समुद्र की लहरें। इसी प्रकार, यदि हम अपने जीवन में ईश्वरीय शिक्षा को लागू करते हैं, हम उसके अनेक लाभों का आनन्द ले सकते हैं। इनमें से कुछ लाभ क्या हैं?
यह जीवन बदल देती है
४. ईश्वरीय शिक्षा किस प्रकार अनेक लोगों के जीवन प्रभावित करती रही है?
४ अनेक लोगों के जीवन बेहतर बनाने के द्वारा ईश्वरीय शिक्षा उन्हें लाभ पहुँचाती रही है। जो लोग यहोवा के उपदेशों को लागू करते हैं वे “शरीर के काम” त्याग देते हैं, जैसे कि लुचपन, मूर्ति पूजा, टोना, झगड़ा और ईर्ष्या। इसके बजाय, वे आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम प्रदर्शित करते हैं। (गलतियों ५:१९-२३) वे इफिसियों ४:१७-२४ (NW) की सलाह भी मानते हैं, जहाँ पौलुस संगी विश्वासियों से आग्रह करता है कि वे अन्यजातीय लोगों के समान न चलें, जो अपने मन की व्यर्थ रीति पर चलते हैं, मानसिक रूप से अन्धकार में हैं, और परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं। हृदय की कठोरता से मार्गदर्शित न होकर, मसीह-समान लोग ‘पिछले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को उतार कर अपने मन को प्रेरित करनेवाली शक्ति में नए बनते हैं।’ वे ‘नए मनुष्यत्व को पहन लेते हैं जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सच्ची धार्मिकता, और निष्ठा में सृजा गया है।’
५. जिस प्रकार लोग चलते हैं उसे ईश्वरीय शिक्षा कैसे प्रभावित करती है?
५ ईश्वरीय शिक्षा लागू करने का एक उत्तम लाभ यह है कि यह हम को दिखाती है कि किस प्रकार परमेश्वर के साथ चलना है। यदि नूह के समान, हम यहोवा के साथ चलें, तो हम अपने महान उपदेशक द्वारा दिखाए गए जीवन-मार्ग का अनुसरण करते हैं। (उत्पत्ति ६:९; यशायाह ३०:२०, २१) जैसे प्रेरित पौलुस ने कहा, अन्यजातीय लोग “अपने मन की अनर्थ रीति पर चलते हैं।” और उनके मनों की कुछ रचनाएं कितनी ही अनर्थ हो सकती हैं! पोम्पेई में एक दीवार पर दूसरों की रचनाओं के भित्ति-चित्रण को देखते हुए, एक प्रेक्षक ने स्वयं लिखा: “यह हैरानी की बात है, ओह दीवार, कि तू इतने लिखित बकवास के भार तले अब तक गिरी नहीं।” लेकिन “यहोवा की शिक्षा” और जिस राज्य-प्रचार कार्य को यह संभव बनाती है उस में कोई बकवास नहीं है। (प्रेरितों १३:१२, NW) उस कार्य के द्वारा, सत्य-प्रेमी लोगों को समझदारी से काम करने के लिए मदद की गई है। उन्हें सिखाया जाता है कि किस प्रकार परमेश्वर के उद्देश्यों की अज्ञानता में, अपने पापमय मार्ग में चलने से रुकना है। वे अब मानसिक रूप से अन्धकार में नहीं हैं, न ही अनर्थ लक्ष्यों की खोज करनेवाले कठोर हृदयों द्वारा अभिप्रेरित हैं।
६. यहोवा की शिक्षा के प्रति हमारी आज्ञाकारिता और हमारी ख़ुशी के बीच क्या सम्बन्ध है?
६ ईश्वरीय शिक्षा इस प्रकार भी हमें लाभ पहुँचाती है कि यह यहोवा और उसके व्यवहार से हमारा परिचय कराती है। ऐसा ज्ञान हमें परमेश्वर के और क़रीब लाता है, उसके लिए हमारे प्रेम और उसकी आज्ञा पालन करने की हमारी इच्छा को बढ़ाता है। पहला यूहन्ना ५:३ कहता है: “परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।” हम यीशु की भी आज्ञाओं का अनुपालन इसलिए करते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि उसकी शिक्षा परमेश्वर की ओर से है। (यूहन्ना ७:१६-१८) ऐसी आज्ञाकारिता हमें आध्यात्मिक हानि से बचाती है और हमारी ख़ुशी बढ़ाती है।
जीवन में एक असली उद्देश्य
७, ८. (क) हमें भजन ९०:१२ को किस प्रकार समझना चाहिए? (ख) हम किस प्रकार बुद्धिमान हो सकते हैं?
७ यहोवा की शिक्षा हमें यह दिखाने में लाभकारी है कि हम अपना जीवन एक उद्देश्यपूर्ण ढंग से कैसे प्रयोग करें। वास्तव में, ईश्वरीय शिक्षा हमें अपने दिनों को एक ख़ास तरीक़े से गिनना सिखाती है। सत्तर वर्षों की संभावित आयु कुछ २५,५५० दिन की आशा देती है। एक ५०-वर्षीय व्यक्ति पहले ही उनमें से १८,२५० दिन जी चुका है, और उसके बाक़ी के जिन ७,३०० दिन जीने की उसे आशा है सचमुच थोड़े प्रतीत होते हैं। ख़ासकर तब वह और पूर्ण रूप से मूल्यांकन कर सकेगा कि क्यों भजन ९०:१२ में भविष्यवक्ता मूसा ने परमेश्वर से प्रार्थना की: “हम को अपने दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएं।” लेकिन इससे मूसा का क्या अर्थ था?
८ मूसा का यह अर्थ नहीं था कि हर इस्राएली के जीवनकाल में कितने दिन होंगे, परमेश्वर उसकी सही संख्या प्रकट करता। भजन ९०, आयत ९ और १० के अनुसार, उस इब्रानी भविष्यवक्ता ने पहचाना कि एक जीवन-अवधि शायद कुछ ७० या ८० वर्ष की हो—सचमुच ही अल्पकालीन। सो भजन ९०:१२ के शब्दों ने स्पष्ट रूप से मूसा की प्रार्थनामय इच्छा अभिव्यक्त की कि यहोवा उसे और अपने लोगों को ‘अपने वर्षों के दिनों’ की क़दर करने और उनको परमेश्वर-अनुमोदित तरीक़े से प्रयोग करने में बुद्धि प्रयोग करना दिखाए या सिखाए। ख़ैर, हमारे बारे में क्या? क्या हम प्रत्येक अनमोल दिन का मूल्यांकन करते हैं? क्या हम अपने महान उपदेशक, यहोवा परमेश्वर की महिमा के लिए प्रत्येक दिन उपयुक्त तरीक़े से जीने की कोशिश करने के द्वारा बुद्धिमान हो रहे हैं? ईश्वरीय शिक्षा ठीक यही करने में हमारी मदद करती है।
९. यदि हम यहोवा की महिमा के लिए अपने दिनों को गिनना सीखें, तो किस बात की प्रत्याशा की जा सकती है?
९ यदि हम यहोवा की महिमा के लिए ‘अपने दिन गिनना’ सीखते हैं, तो हम अपने दिन निरंतर गिनते रह सकते हैं, क्योंकि ईश्वरीय शिक्षा अनन्त जीवन के लिए ज्ञान प्रदान करती है। यीशु ने कहा, “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्ना १७:३) निःसंदेह, हम यदि सभी उपलब्ध सांसारिक ज्ञान को प्राप्त कर लें, तो भी यह हमें अनन्त जीवन नहीं देगा। लेकिन अनन्त जीवन हमारा हो सकता है यदि हम विश्व में दो सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के बारे में यथार्थ ज्ञान प्राप्त करके उसे लागू करें और वास्तव में विश्वास करें।
१०. एक विश्वकोश शिक्षा के विषय में क्या कहता है, और यह ईश्वरीय शिक्षा के लाभों से कैसे मेल खाता है?
१० हम पहले ही चाहे कितना भी क्यों न जी चुके हैं, आइए ईश्वरीय शिक्षा के इस उल्लेखनीय लाभ को याद रखें: जो इसे लागू करते हैं, उन्हें यह जीवन में एक असली उद्देश्य देती है। द वर्ल्ड बुक इन्साइक्लोपीडिया कहती है: “शिक्षा को लोगों की मदद करनी चाहिए कि वे समाज के उपयोगी सदस्य बनें। इसे उन्हें अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए मूल्यांकन विकसित करने तथा अधिक संतोषजनक जीवन जीने के लिए भी मदद करनी चाहिए।” ईश्वरीय शिक्षा संतोषजनक जीवन जीने में हमारी मदद करने के लिए लाभकारी है। यह हमारे अन्दर परमेश्वर के लोगों के तौर पर हमारी आध्यात्मिक विरासत के लिए गहरा मूल्यांकन विकसित करती है। और यह निश्चित ही हमें समाज के उपयोगी सदस्य बनाती है, क्योंकि यह पृथ्वीभर में लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करने में हमें समर्थ करती है। ऐसा क्यों कहा जा सकता है?
संसारव्याप्त शिक्षा कार्यक्रम
११. उचित शिक्षा की ज़रूरत को थॉमस जेफरसन् ने कैसे विशिष्ट किया?
११ निर्देशन के किसी भी कार्यक्रम से भिन्न, ईश्वरीय शिक्षा लोगों की शैक्षिक ज़रूरतों को पूरा करती है। लोगों को सिखाने की ज़रूरत को थॉमस जेफरसन् ने नोट किया, जो अमरीका का तीसरा राष्ट्रपति बना। जॉर्ज विद, एक मित्र और स्वतंत्रता की घोषणा के एक सह-हस्ताक्षरकर्ता, को अगस्त १३, १७८६ के पत्र में जैफ़रसन् ने लिखा: “मैं सोचता हूँ कि हमारी सम्पूर्ण नियमावली में सबसे महत्त्वपूर्ण नियम है, लोगों में ज्ञान फैलाने का नियम। स्वतंत्रता और ख़ुशी को बनाए रखने के लिए, किसी और पक्की नींव की योजना नहीं बनाई जा सकती है। . . . मेरे प्रिय महोदय, अज्ञानता के विरुद्ध एक ज़ोरदार आंदोलन को बढ़ावा दीजिए; आम जनता को शिक्षित करने के लिए नियम स्थापित कीजिए और उसे सुधारिए। हमारे देशवासियों को बताइए . . . कि जो कर [शिक्षा के] उद्देश्य के लिए दिया जाएगा, वह उन पैसों के हज़ारवें भाग से ज़्यादा नहीं है जो उन राजाओं, पादरियों, और अभिजात व्यक्तियों को दिया जाएगा, जो हम में उठेंगे यदि हम लोगों को अज्ञानता में छोड़ते हैं।”
१२. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि ईश्वरीय शिक्षा विश्वव्यापी शिक्षा के लिए सबसे सफल और लाभकारी कार्यक्रम है?
१२ धार्मिकता के प्रति प्रवण लोगों को अज्ञानता में छोड़ने से कहीं दूर, यहोवा की शिक्षा उनके लाभ के लिए विश्वव्यापी शिक्षा का सर्वोत्तम कार्यक्रम प्रदान करती है। पचास वर्ष पहले जब द्वितीय विश्वयुद्ध अभी लड़ा जा रहा था, शैक्षिक पुनःनिर्माण की यू.एस. कमेटी (U.S. Committee on Educational Reconstruction) ने “विश्वव्यापी शिक्षा” के लिए एक अत्यावश्यक ज़रूरत को देखा। वह ज़रूरत अभी भी है, लेकिन विश्वव्यापी शिक्षा के लिए ईश्वरीय शिक्षा ही एकमात्र सफल कार्यक्रम है। यह सबसे लाभकारी इसलिए भी है क्योंकि यह लोगों को निराशा से निकालती है, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से उन्हें उठाती है, संसार के अभिमान और पक्षपात से उन्हें बचाती है, और अनन्त जीवन के लिए ज्ञान प्रदान करती है। सबसे बढ़कर, यह कार्यक्रम हर जगह लोगों को यहोवा परमेश्वर की सेवा करना सिखाने के द्वारा लाभ पहुँचा रहा है।
१३. यशायाह २:२-४ की पूर्ति आज किस प्रकार हो रही है?
१३ ईश्वरीय शिक्षा के लाभ उन बहुसंख्य लोगों द्वारा उठाए जा रहे हैं जो अब परमेश्वर के सेवक बन रहे हैं। वे अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों के प्रति सचेत हैं और पूरी तरह अवगत हैं कि यहोवा का दिन निकट है। (मत्ती ५:३, NW; १ थिस्सलुनीकियों ५:१-६) ठीक अभी, “अन्त के दिनों में,” सब जाति के ये लोग यहोवा के पर्वत, उसकी शुद्ध उपासना की ओर धारा की नाईं आ रहे हैं। यह उपासना दृढ़ की गई है और उन सभी उपासनाओं से अधिक ऊँची की गई है जो परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध हैं। (यशायाह २:२-४) यदि आप यहोवा के एक समर्पित गवाह हैं, तो क्या आप उस की उपासना करनेवाली सदा-बढ़ती भीड़ के बीच होने और ईश्वरीय शिक्षा से लाभ प्राप्त करने में आनन्दित नहीं हैं? कितना अद्भुत है उन लोगों के बीच होना जो चिल्लाकर कहते हैं: “याह की स्तुति करो!”—भजन १५०:६.
हमारी आत्मा पर लाभकारी प्रभाव
१४. पहला कुरिन्थियों १४:२० में दी गई पौलुस की सलाह का अनुकरण करने का क्या लाभ है?
१४ ईश्वरीय शिक्षा के अनेक लाभों में से एक है कि यह हमारे सोच-विचार और आत्मा पर उत्तम प्रभाव डाल सकती है। यह हमें उचित, पवित्र, सद्गुणी, और प्रशंसा की बातों पर सोचने के लिए प्रेरित करती है। (फिलिप्पियों ४:८) यहोवा की शिक्षा हमें पौलुस की सलाह का अनुकरण करने के लिए मदद करती है: “बुराई में तो बालक रहो, परन्तु समझ में सियाने बनो।” (१ कुरिन्थियों १४:२०) यदि हम इस सलाह पर अमल करते हैं, तो हम दुष्टता का ज्ञान नहीं ढूँढेंगे। पौलुस ने यह भी लिखा: “सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए।” (इफिसियों ४:३१) ऐसी सलाह को मानना हमें अनैतिकता और अन्य घोर पापों से दूर रखेगा। जबकि यह शारीरिक और मानसिक रूप से लाभकारी हो सकता है, यह ख़ासकर हमें इस ज्ञान का आनन्द लाएगा कि हम परमेश्वर को प्रसन्न कर रहे हैं।
१५. विचार में सद्गुणी बने रहने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?
१५ यदि हमें विचार में सद्गुणी रहना है, तो एक मदद है “बुरी संगति” से दूर रहना जो “अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” (१ कुरिन्थियों १५:३३) मसीहियों के तौर पर, हम व्यभिचारियों, परगामियों, और अन्य ग़लत काम करनेवालों के साथ संगति नहीं रखेंगे। तब, तर्कसंगत रूप से, हमें कामुक विलास के लिए ऐसे व्यक्तियों के बारे में पढ़ने या टेलीविज़न अथवा चलचित्रों में उन्हें देखने के द्वारा उनके साथ संगति नहीं करनी चाहिए। हृदय धोखा देनेवाला होता है, बुरी बातों के लिए आसानी से इच्छा जगा सकता है, और उन्हें करने के लिए प्रलोभित हो सकता है। (यिर्मयाह १७:९) इसलिए आइए ईश्वरीय शिक्षा का पालन करने के द्वारा ऐसे प्रलोभनों से दूर रहें। यह “यहोवा के प्रेमियो” के सोच-विचार को इस लाभकारी हद तक प्रभावित कर सकती है कि वे “बुराई से घृणा” करें।—भजन ९७:१०.
१६. जो आत्मा हम प्रदर्शित करते हैं उसे परमेश्वर की शिक्षा कैसे प्रभावित कर सकती है?
१६ पौलुस ने अपने सहकर्मी तीमुथियुस को कहा: “प्रभु तेरी आत्मा के साथ रहे: तुम पर अनुग्रह होता रहे।” (२ तीमुथियुस ४:२२) प्रेरित की इच्छा थी कि परमेश्वर, प्रभु यीशु मसीह के द्वारा, तीमुथियुस और अन्य मसीहियों को प्रेरित करने वाली शक्ति को स्वीकृति दे। परमेश्वर की शिक्षा हमें एक प्रेममय, कृपालु, दीन आत्मा दिखाने में मदद करती है। (कुलुस्सियों ३:९-१४) और यह इन अन्तिम दिनों में अनेक जनों की आत्मा से कितनी भिन्न है! वे अभिमानी, कृतघ्न, मयारहित, क्षमारहित, ढीठ, सुखविलास के चाहनेवाले हैं, और उनमें सच्ची ईश्वरीय भक्ति की कमी है। (२ तीमुथियुस ३:१-५) फिर भी, जैसे-जैसे हम ईश्वरीय शिक्षा के लाभ अपने जीवन में लागू करते हैं, हम ऐसी आत्मा प्रदर्शित करते हैं जिससे हम परमेश्वर और संगी मनुष्यों के प्रिय बनते हैं।
मानवी सम्बन्धों में लाभकारी
१७. नम्र सहयोग इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
१७ यहोवा की शिक्षा हमें संगी उपासकों को नम्र सहयोग देने के लाभों को देखने में मदद करती है। (भजन १३८:६) आज अनेक लोगों से भिन्न, हम धार्मिक सिद्धान्तों का उल्लंघन नहीं करते लेकिन सहमति के लिए राज़ी रहते हैं। उदाहरण के लिए, काफ़ी लाभ परिणित होता है क्योंकि प्राचीनों की सभाओं के दौरान नियुक्त ओवरसियर सहमति के लिए राज़ी रहते हैं। ये व्यक्ति सत्य के हित में शान्ति से बात कर सकते हैं, लेकिन भावनाओं को तर्क से महत्त्वपूर्ण नहीं बनने देते या उन्हें फूट नहीं डालने देते। यदि हम सभी जन ईश्वरीय शिक्षा को लागू करते रहें, तो जिस एकता की आत्मा का हम आनन्द लेते हैं, उससे कलीसिया के सभी सदस्य लाभ उठाएँगे।—भजन १३३:१-३.
१८. ईश्वरीय शिक्षा हमें संगी विश्वासियों के बारे में कैसा दृष्टिकोण रखने में मदद करती है?
१८ ईश्वरीय शिक्षा संगी विश्वासियों के बारे में सही दृष्टिकोण रखने के लिए हमारी मदद करने में भी लाभकारी है। यीशु ने कहा: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले।” (यूहन्ना ६:४४) ख़ासकर १९१९ से, यहोवा ने अपने सेवकों द्वारा अपने न्याय घोषित करवाए हैं, और शैतान की विश्व व्यवस्था इस विश्वव्यापी चेतावनी से हिल गई है और काँप उठी है। उसी समय, परमेश्वर का भय माननेवाले लोग—“मनभावनी वस्तुएं”—परमेश्वर द्वारा खींच लिए गए हैं कि अपने आप को राष्ट्रों से अलग करें और यहोवा की उपासना के घर को महिमा से भरने में अभिषिक्त मसीहियों के साथ हिस्सा लें। (हाग्गै २:७) निश्चित ही, हमें परमेश्वर द्वारा खींचे गए ऐसे मनभावने लोगों को प्रिय साथियों के रूप में देखना चाहिए।
१९. संगी मसीहियों के साथ व्यक्तिगत मतभेदों को सुलझाने के बारे में परमेश्वर की शिक्षा क्या प्रकट करती है?
१९ क्योंकि हम सब अपरिपूर्ण हैं, इसलिए निश्चित ही जीवन हमेशा समस्याओं से मुक्त तो होगा नहीं। जब पौलुस अपनी दूसरी मिशनरी यात्रा पर निकलने वाला था, तब बरनबास मरकुस को साथ ले जाने के लिए दृढ़ था। पौलुस सहमत नहीं हुआ क्योंकि मरकुस “पंफूलिया में उन से अलग हो गया था, और काम पर उन के साथ न गया।” इस पर, उनके बीच “टंटा” हो गया। बरनबास मरकुस को अपने साथ कुप्रुस ले गया, जबकि पौलुस सीलास के साथ सूरिया और किलिकिया गया। (प्रेरितों १५:३६-४१) बाद में, स्पष्टतः यह दरार मिट गई, क्योंकि मरकुस पौलुस के साथ रोम में था, और प्रेरित ने उसकी बड़ाई की। (कुलुस्सियों ४:१०) ईश्वरीय शिक्षा का एक लाभ यह है कि यह हमें दिखाती है कि ऐसी सलाह, जैसे कि मत्ती ५:२३, २४ और मत्ती १८:१५-१७ में दी गई यीशु की सलाह, का अनुसरण करने के द्वारा मसीहियों के बीच व्यक्तिगत मतभेदों को कैसे सुलझाना है।
हमेशा लाभकारी और विजयमान
२०, २१. ईश्वरीय शिक्षा पर हमारे विचार से हमें क्या करने के लिए प्रेरित होना चाहिए?
२० ईश्वरीय शिक्षा के कुछ लाभों और विजयों पर हमारे संक्षिप्त विचार से भी, निःसंदेह हम सब इसे अपने जीवन में निरन्तर लागू करने की ज़रूरत को देख सकते हैं। तो फिर, प्रार्थनापूर्ण आत्मा के साथ, आइए अपने महान उपदेशक से सीखते रहें। जल्द ही, ईश्वरीय शिक्षा की अपूर्व विजय होगी। यह विजयमान होगी जब इस संसार के प्रज्ञात्मक व्यक्ति अपनी आख़िरी साँस ले चुके होंगे। (१ कुरिन्थियों १:१९ से तुलना कीजिए.) इसके अतिरिक्त, जैसे-जैसे लाखों और लोग परमेश्वर की इच्छा को सीखते और करते हैं, यहोवा का ज्ञान पूरी पृथ्वी में ऐसे भर जाएगा जैसे जल समुद्र को भरता है। (यशायाह ११:९) क्या ही शानदार तरीक़े से यह आज्ञाकारी मानवजाति को लाभ पहुँचाएगी और यहोवा को विश्व सर्वसत्ताधारी के रूप में दोषनिवारित करेगी!
२१ यहोवा की शिक्षा हमेशा लाभकारी और विजयमान होगी। क्या आप परमेश्वर की महान पाठ्य-पुस्तक के एक उत्साही विद्यार्थी होने के द्वारा इससे लाभ उठाएंगे? क्या आप बाइबल के सामंजस्य में जी रहे हैं और इसकी सच्चाइयों को दूसरों के साथ बाँट रहे हैं? यदि हाँ, तो आप हमारे महान उपदेशक, सर्वसत्ताधारी प्रभु यहोवा की महिमा के लिए ईश्वरीय शिक्षा की पूर्ण विजय को देखने का उत्सुकता से इंतज़ार कर सकते हैं।
आपने क्या सीखा है?
▫ ईश्वरीय शिक्षा का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव हो सकता है?
▫ यहोवा की शिक्षा कैसे शैक्षिक ज़रूरतों को पूरा कर रही है?
▫ ईश्वरीय शिक्षा का हमारे विचार और मनोवृत्ति पर क्या लाभकारी प्रभाव हो सकता है?
▫ मानवी सम्बन्धों के विषय में ईश्वरीय शिक्षा कैसे लाभकारी साबित होती है?
[पेज 14 पर तसवीर]
ईश्वरीय शिक्षा हमें दिखाती है कि परमेश्वर के साथ कैसे चलें, जैसे नूह चला
[पेज 16 पर तसवीर]
सब जाति के लोग यहोवा के पर्वत की ओर धारा की नाईं आ रहे हैं