मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
6-12 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 कुरिंथियों 4-6
“हम हार नहीं मानते”
थके हुए, पर हिम्मत नहीं हारते
16 बेशक, सबसे ज़्यादा अपनी आध्यात्मिक सेहत की देखभाल करना ज़रूरी है। जब यहोवा परमेश्वर के साथ हमारा एक करीबी रिश्ता होता है, तो हम चाहे शरीर से थक जाएँ, पर उसकी उपासना करने से कभी नहीं थकेंगे। यहोवा ही है जो “थके हुए को बल देता है और शक्तिहीन को बहुत सामर्थ देता है।” (यशायाह 40:28, 29) प्रेरित पौलुस ने इन शब्दों की सच्चाई को खुद महसूस किया था। उसने लिखा: “हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है।”—2 कुरिन्थियों 4:16.
17 “दिन प्रतिदिन” शब्दों पर गौर कीजिए। इसका यह मतलब निकलता है कि हम हर दिन यहोवा के इंतज़ामों से फायदा उठाते रहें। एक मिशनरी की मिसाल लीजिए, जिसने 43 साल वफादारी से सेवा की है। इस दौरान, कई ऐसे मौके आए जब वह शारीरिक रूप से थक गयी और मायूस हो गयी। मगर उसने हिम्मत नहीं हारी। वह कहती है: “मैंने सुबह जल्दी उठने की आदत डाल ली है, ताकि कोई भी काम शुरू करने से पहले मैं यहोवा से प्रार्थना करने और उसका वचन पढ़ने में वक्त बिता सकूँ। रोज़ के इस कार्यक्रम ने मुझे आज तक धीरज धरने में मदद दी है।” अगर हम बिना नागा, जी हाँ “दिन प्रतिदिन” उससे प्रार्थना करें और उसके महान गुणों और वादों पर मनन करें, तो हम वाकई यहोवा की सँभालने की ताकत पर निर्भर रह सकते हैं।
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धीरज
मसीही होने के नाते हम परिपूर्ण इंसान बनकर हमेशा तक जीने की जो आशा रखते हैं, उससे हमारा ध्यान कभी नहीं भटकना चाहिए। चाहे विरोधी हमें मार डालें, तब भी हमारी यह आशा ज़रूर पूरी होगी। (रोम 5:4, 5; 1थि 1:3; प्रक 2:10) जब हमारी यह आशा पूरी होगी, तो हम आज की सारी तकलीफें भूल जाएँगे। (रोम 8:18-25) उस वक्त हमें जो आशीषें मिलेंगी, वे सदा तक रहेंगी। उन आशीषों की तुलना में आज की तकलीफें बस “पल-भर” की हैं, फिर चाहे वे तकलीफें कितनी ही बड़ी क्यों न हों। (2कुर 4:16-18) अगर एक मसीही याद रखे कि आज की दुख-तकलीफें बस कुछ समय के लिए हैं और वह अपनी आशा को मज़बूती से थामे रहे, तो वह निराश होकर हार नहीं मानेगा और यहोवा से कभी दूर नहीं जाएगा।
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प्र12 2/1 पेज 28-29, अँग्रेज़ी
“यहोवा को खुश कीजिए”
शासी निकाय के सदस्य भाई डेविड स्प्लेन ने 2 कुरिंथियों 4:7 के आधार पर एक भाषण दिया। भाई ने पूछा कि इस आयत में बताया गया “खज़ाना” क्या है। क्या उसका मतलब ज्ञान या बुद्धि है? भाई ने जवाब दिया, “नहीं। प्रेषित पौलुस ने जिस खज़ाने की बात की, वह लोगों को ‘सच्चाई बताने’ की ज़िम्मेदारी या ‘सेवा’ है।” (2 कुरिंथियों 4:1, 2, 5) भाई स्प्लेन ने विद्यार्थियों को याद दिलाया कि उन्होंने पाँच महीने जो अध्ययन किया, वह एक तरह से खास सेवा के लिए खुद को तैयार करने जैसा था। दूसरों को सच्चाई बताना एक ऐसी ज़िम्मेदारी है जिसे उन्हें बहुत अनमोल समझना चाहिए।
भाई ने समझाया कि “मिट्टी के बरतनों” का मतलब हमारा शरीर है। उन्होंने बताया कि मिट्टी के बरतन और सोने के बरतन में क्या फर्क होता है। सोने के बरतनों का ज़्यादा इस्तेमाल नहीं किया जाता। लेकिन मिट्टी के बरतन हमेशा काम में लाए जाते हैं। अगर एक खज़ाना सोने के किसी बरतन में रखा जाए, तो हमारा ध्यान न सिर्फ खज़ाने पर बल्कि बरतन पर भी जाएगा। भाई ने कहा, “आप विद्यार्थियों को ध्यान रखना चाहिए कि मिशनरी सेवा में आप दूसरों का ध्यान अपनी तरफ न खींचें। आपको उनका ध्यान यहोवा की तरफ खींचना चाहिए। आप अपनी हद में रहनेवाले मिट्टी के बरतन हैं।”
भाइयों जैसा प्यार दिखाने में बढ़ते जाओ
7 आज हमारे बारे में क्या? हम भाइयों जैसा प्यार दिखाने में अपने “दिलों को बड़ा” कैसे कर सकते हैं? अकसर देखा गया है कि जो लोग एक ही उम्र या जाति के होते हैं, या फिर एक ही माहौल में पले-बड़े होते हैं, वे आपस में जल्दी घुल-मिल जाते हैं। और जिन लोगों के शौक एक जैसे होते हैं, वे अपना ज़्यादातर समय उन्हीं के साथ बिताते हैं। क्या यह बात हमारे बारे में भी सच है? अगर हाँ, तो हमें अपने “दिलों को बड़ा” करने की ज़रूरत है। खुद से पूछिए: ‘क्या मैं दूसरे भाई-बहनों के साथ प्रचार, घूमने-फिरने और दूसरे मौकों पर संगति करने में कभी-कभार ही वक्त बिताता हूँ? राज्य-घर में आनेवाले नए लोगों से क्या मैं बहुत कम मिलता हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि पहले उन्हें मेरे दोस्त बनने के लायक होना पड़ेगा? क्या मैं मंडली के बुज़ुर्गों और जवानों, सभी को दुआ-सलाम करता हूँ?’
13-19 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 कुरिंथियों 7-10
“राहत सेवा”
“परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है”
सबसे पहले पौलुस ने कुरिन्थ के भाइयों को मकिदुनिया के भाइयों के बारे में बताया जिन्होंने राहत कार्य में मदद देने की अच्छी मिसाल रखी। पौलुस ने लिखा, “क्लेश की बड़ी परीक्षा में उन के बड़े आनन्द और भारी कंगालपन के बढ़ जाने से उन की उदारता बहुत बढ़ गई।” मकिदुनिया के भाइयों को उदारता दिखाने के लिए बार-बार कहने की ज़रूरत नहीं पड़ी। इसके उलटे पौलुस ने कहा कि उन्होंने “इस दान में . . . भागी होने के अनुग्रह के विषय में हम से बार बार बहुत बिनती की।” मकिदुनिया के भाइयों की खुशी-खुशी उदारता दिखाने की बात और भी ज़्यादा उल्लेखनीय है क्योंकि हम यह देखते हैं कि वे खुद भी “भारी कंगालपन” में थे।—2 कुरिन्थियों 8:2-4.
राहत सेवा
करीब ईसवी सन् 46 की बात है। पूरा यहूदिया प्रदेश अकाल की चपेट में आ गया था। जो थोड़ा-बहुत अनाज मिलता था उसका दाम आसमान छूने लगा था। वहाँ के यहूदी मसीहियों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे अनाज खरीद सकें। भूख से उनकी हालत खराब हो रही थी। मगर जल्द ही वे महसूस करनेवाले थे कि यहोवा कैसे उन्हें बचाएगा। यह एक ऐसा अनोखा अनुभव होता जो इससे पहले कभी मसीह के चेलों के साथ नहीं हुआ था। आखिर ऐसा क्या होनेवाला था?
राहत सेवा
4 कुरिंथियों को लिखी दूसरी चिट्ठी में पौलुस ने समझाया कि हम मसीहियों की सेवा के दो पहलू हैं। हालाँकि पौलुस ने यह चिट्ठी अभिषिक्त मसीहियों को लिखी थी, मगर उसकी सलाह आज मसीह की ‘दूसरी भेड़ों’ पर भी लागू होती है। (यूह. 10:16) हमारी सेवा का एक पहलू है, प्रचार और सिखाने का काम जो कि “सुलह करवाने की सेवा” है। (2 कुरिं. 5:18-20; 1 तीमु. 2:3-6) दूसरा पहलू है, अपने भाई-बहनों की मदद करना। पौलुस ने खासकर मुसीबत के वक्त उन्हें “राहत पहुँचाने” की बात की। (2 कुरिं. 8:4) सेवा के इन दोनों पहलुओं के लिए यूनानी में एक ही शब्द दीआकोनीया इस्तेमाल किया गया है। यह बात क्यों गौर करने लायक है?
5 पौलुस ने दोनों तरह की सेवा के लिए एक ही यूनानी शब्द का इस्तेमाल करके दिखाया कि राहत काम भी उतना ही अहम है जितना कि मसीही मंडली में किए जानेवाले दूसरे काम हैं। उसने अपनी पहली चिट्ठी में कहा था, “सेवाएँ अलग-अलग तरह की हैं, फिर भी प्रभु एक ही है। और जो काम हो रहे हैं वे अलग-अलग तरह के हैं, . . . मगर ये सारे काम वही एक पवित्र शक्ति करती है।” (1 कुरिं. 12:4-6, 11) पौलुस ने मंडली में होनेवाले सब तरह के कामों को “पवित्र सेवा” कहा। (रोमि. 12:1, 6-8) इसीलिए उसने अपना कुछ समय “पवित्र जनों की सेवा करने” में लगाना ज़रूरी समझा!—रोमि. 15:25, 26.
6 पौलुस ने कुरिंथियों को समझाया कि राहत काम क्यों उनकी सेवा और यहोवा की उपासना का एक हिस्सा है। ध्यान दीजिए कि उसने क्या दलील दी: मसीही इसलिए दूसरों को राहत पहुँचाते हैं क्योंकि वे ‘मसीह के बारे में खुशखबरी के अधीन रहते हैं।’ (2 कुरिं. 9:13) हम यीशु की शिक्षाओं पर चलना चाहते हैं, इसीलिए हम भाई-बहनों की मदद करते हैं। पौलुस ने कहा कि जब हम इस तरह मदद करते हैं तो दरअसल यह “परमेश्वर की अपार महा-कृपा” का एक सबूत है। (2 कुरिं. 9:14; 1 पत. 4:10) इसलिए 1 दिसंबर, 1975 की प्रहरीदुर्ग ने ज़रूरतमंद भाइयों की मदद करने के बारे में, जिसमें राहत काम भी शामिल है, बिलकुल सही बात कही: “हमें इस बात पर कभी संदेह नहीं करना चाहिए कि यहोवा परमेश्वर और उसका पुत्र यीशु मसीह इस तरह की सेवा को बहुत महत्त्व देते हैं।” जी हाँ, राहत का काम पवित्र सेवा का एक ज़रूरी हिस्सा है।—रोमि. 12:1, 7; 2 कुरिं. 8:7; इब्रा. 13:16.
राज के कामों का खर्चा कैसे पूरा होता है
10 पहली वजह, हम अपनी इच्छा से दान इसलिए देते हैं क्योंकि हम यहोवा से प्यार करते हैं और वही करना चाहते हैं “जो उसकी नज़र में अच्छा है।” (1 यूह. 3:22) यहोवा वाकई ऐसे इंसान से खुश होता है जो दिल से दान देता है। गौर कीजिए कि प्रेषित पौलुस ने बताया कि मसीहियों को किस भावना से दान देना चाहिए। (2 कुरिंथियों 9:7 पढ़िए।) एक सच्चा मसीही न तो दान देने से झिझकता है और न ही उसे मजबूर करना पड़ता है। वह दान इसलिए देता है क्योंकि वह ‘दिल में ऐसा करने की ठान लेता है।’ दूसरे शब्दों में कहें तो जब वह देखता है कि दान की ज़रूरत है तो सोचता है कि वह कैसे मदद कर सकता है, फिर वह दान देता है। ऐसा इंसान यहोवा को भाता है क्योंकि बाइबल कहती है कि “परमेश्वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।”
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क्या परमेश्वर का “मुफ्त वरदान” आपको मजबूर करता है?
2 पौलुस जानता था कि यीशु का बलिदान इस बात की गारंटी है कि परमेश्वर के सभी शानदार वादे पूरे होंगे। (2 कुरिंथियों 1:20 पढ़िए।) तो क्या इसका मतलब परमेश्वर के “मुफ्त वरदान” में “जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता” सिर्फ यीशु का बलिदान शामिल है? जी नहीं। इसमें वह सारी भलाई भी शामिल है जो यहोवा हमारे लिए करता है, साथ ही वह अटल प्यार भी जो वह यीशु के ज़रिए जताता है। असल में इस कीमती और अनोखे तोहफे के बारे में इंसानों की भाषा में पूरी तरह समझाना नामुमकिन है। लेकिन अब सवाल हैं, इस खास तोहफे का हम पर कैसा असर होना चाहिए? और इस साल स्मारक मनाने की तैयारी करते वक्त यह तोहफा हमें क्या करने के लिए उभारना चाहिए? इस साल स्मारक बुधवार, 23 मार्च, 2016 को मनाया जाएगा।
क्या घमंड करना गलत है?
मसीही यूनानी शास्त्र में, क्रिया काफ्खाओमॆ को “घमंड करना, आनंदित होना, गर्व करना” अनुवादित किया गया है और इसे नकारात्मक और सकारात्मक दोनों अर्थ में इस्तेमाल किया गया है। उदाहरण के लिए, पौलुस कहता है कि “परमेश्वर की महिमा की आशा में हम आनन्दित होते हैं।” वह यह सलाह भी देता है: “परन्तु जो घमण्ड करे, वह प्रभु पर घमण्ड करे।” (रोमियों 5:2, NHT; 2 कुरिन्थियों 10:17) इसका अर्थ है कि हम यहोवा को अपना परमेश्वर मानकर उस पर घमंड करें। यह एक ऐसी भावना है जो हमें उसके भले नाम और प्रतिष्ठा के कारण आनंद मनाने के लिए प्रेरित कर सकती है।
20-26 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 कुरिंथियों 11-13
“पौलुस के ‘शरीर में काँटा’”
कमज़ोर पर हिम्मत नहीं हारते
एक और वफादार सेवक, प्रेरित पौलुस ने यहोवा से कहा कि वह उसके ‘शरीर से उस कांटे’ को निकाल दे, जिसने उसका जीना दूभर कर दिया था। उसने परमेश्वर से तीन बार गिड़गिड़ाकर बिनती की कि वह उसे इस तकलीफ से छुटकारा दिलाए। पौलुस की तकलीफ चाहे जो भी रही हो, लेकिन एक बात है, इसने एक काँटे की तरह उसके शरीर में चुभ-चुभकर उसकी वह खुशी ज़रूर छीन ली होगी, जो उसे परमेश्वर की सेवा से मिलती थी। वह कहता है कि यह काँटे जैसी तकलीफ उसे ऐसे सता रही है, मानो कोई लगातार उसे घूँसे मार रहा हो। उसकी बिनती के जवाब में यहोवा ने उससे कहा: “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है।” यहोवा ने उसके शरीर से वह काँटा निकाला नहीं। पौलुस को आगे भी उससे जूझना पड़ा, फिर भी उसने कहा: “जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं।” (2 कुरि. 12:7-10) आखिर पौलुस के कहने का मतलब क्या था?
यहोवा “अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा” देता है
17 पौलुस की प्रार्थनाओं के जवाब में, परमेश्वर ने उससे कहा: “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है।” फिर पौलुस ने कहा: “इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर [“एक तंबू की तरह,” NW] छाया करती रहे।” (2 कुरिन्थियों 12:9; भजन 147:5) पौलुस ने महसूस किया कि परमेश्वर, मसीह के ज़रिए बहुत ही ज़बरदस्त तरीके से उसकी हिफाज़त कर रहा है, मानो उस पर तंबू ताना गया हो। आज, यहोवा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब भी इसी तरह देता है। वह मानो हम पर तंबू तानकर हमारी हिफाज़त करता है।
18 यह सच है कि तंबू में रहने से बारिश की बौछार पड़ना बंद नहीं हो जाती और ना ही हवा चलनी रुक जाती है। लेकिन हाँ, इससे कुछ हद तक हमें खराब मौसम से पनाह ज़रूर मिलती है। उसी तरह, “मसीह की सामर्थ” से मिलनेवाली छाया हम पर आनेवाली हर मुसीबत या आज़माइश को नहीं रोकती। मगर यह हमें आध्यात्मिक मायने में संसार के लोगों, उनके रवैयों और तौर-तरीकों से ज़रूर बचाती है। साथ ही, यह हमें दुनिया के शासक, शैतान के हमलों से भी हिफाज़त करती है। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 15, 16) इसलिए अगर आप ऐसी आज़माइश से गुज़र रहे हैं, जो “दूर” होने का नाम ही नहीं ले रही है, तो यकीन रखिए कि यहोवा जानता है कि आप कितना संघर्ष कर रहे हैं। साथ ही, उसने आपकी “दोहाई” सुनकर उसका जवाब दे दिया है। (यशायाह 30:19; 2 कुरिन्थियों 1:3, 4) पौलुस ने लिखा: “परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, बरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको।”—1 कुरिन्थियों 10:13; फिलिप्पियों 4:6, 7.
“वह थके हुओं में दम भर देता है”
8 यशायाह 40:30 पढ़िए। हम चाहे कितने ही हुनरमंद क्यों न हों, हमारी कुछ सीमाएँ होती हैं। हम सारे काम अपने दम पर नहीं कर सकते और यह बात हमें हमेशा याद रखनी चाहिए। प्रेषित पौलुस बहुत काबिल इंसान था लेकिन वह सारे काम अपनी ताकत से नहीं कर सका। जब उसने इस बारे में यहोवा को बताया तो यहोवा ने कहा, “जब तू कमज़ोर होता है तब मेरी ताकत पूरी तरह दिखायी देती है।” पौलुस यहोवा की बात समझ गया, इसलिए उसने कहा, “जब मैं कमज़ोर होता हूँ, तभी ताकतवर होता हूँ।” (2 कुरिं. 12:7-10) पौलुस के कहने का क्या मतलब था?
9 पौलुस को एहसास हुआ कि उसे यहोवा की मदद की ज़रूरत है जो उससे कहीं ज़्यादा शक्तिशाली है। उसने देखा कि जब वह कमज़ोर था तो कैसे यहोवा की पवित्र शक्ति ने उसमें ताकत भरी। यही नहीं, पवित्र शक्ति ने उसे वह काम करने के काबिल बनाया जो वह अपनी ताकत से कभी नहीं कर सकता था। इस तरह पौलुस कमज़ोर होने पर भी ताकतवर बना। आज भी जब यहोवा हमें अपनी पवित्र शक्ति देता है, तो हम ताकतवर बन सकते हैं।
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आपने पूछा
दूसरा कुरिंथियों 12:2 में बताए “तीसरे स्वर्ग” का शायद मतलब है, परमेश्वर का राज, जिसकी बागडोर यीशु मसीह और 1,44,000 जनों के हाथ में है। इस राज को 2 पतरस 3:13 में ‘नया आकाश’ कहा गया है।
यह इस मायने में ‘तीसरा स्वर्ग’ है कि यह राज सबसे श्रेष्ठ और ऊँचे दर्जे का है।
दर्शन में पौलुस को जिस “फिरदौस में ले जाया गया” था, मुमकिन है कि वह तीन बातों को दर्शाता है: (1) धरती पर आनेवाला सचमुच का फिरदौस, (2) भविष्य में परमेश्वर के लोगों के बीच और भी बड़े पैमाने पर होनेवाला अनोखा और शांति-भरा माहौल और (3) स्वर्ग में ‘परमेश्वर का फिरदौस,’ जो नयी दुनिया में धरती पर सचमुच के फिरदौस के दौरान ही होगा।
इंसाइट-2 पेज 177
चुंबन
“पवित्र चुंबन।” शुरू के मसीहियों में “पवित्र चुंबन” या ‘प्यार का चुंबन’ बहुत आम था। (रोम 16:16; 1कुर 16:20; 2कुर 13:12; 1थि 5:26; 1पत 5:14) जब मसीही एक-दूसरे से मिलते, तो शायद भाई एक-दूसरे को और बहनें एक-दूसरे को चूमती थीं। शुरू के मसीहियों का यह रिवाज़ प्राचीन इसराएलियों के रिवाज़ से काफी-मिलता जुलता था। बाइबल में “पवित्र चुंबन” या “प्यार के चुंबन” के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताया गया है। मगर इससे इतना ज़रूर पता चलता है कि मसीही मंडली में प्यार और एकता का बढ़िया माहौल हुआ करता था।—यूह 13:34, 35.
27 मई–2 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गलातियों 1-3
“मैंने सबके सामने उसका विरोध किया”
क्या आप यहोवा के न्याय के स्तरों पर चलेंगे?
16 गलातियों 2:11-14 पढ़िए। पतरस जानता था कि यहोवा गैर-यहूदियों के बारे में कैसा महसूस करता है। फिर भी जब खतना किए गए कुछ यहूदी मसीही यरूशलेम से आए, तो पतरस पर इंसान का डर छा गया। (नीति. 29:25) वह सोचने लगा कि अगर इन यहूदी मसीहियों ने उसे गैर-यहूदियों के साथ मेल-जोल रखते देखा तो वे शायद उसे नीचा देखने लगे। इसलिए उसने गैर-यहूदियों से किनारा कर लिया। मगर जब प्रेषित पौलुस ने पतरस का यह व्यवहार देखा तो उसने उसे झिड़का और ढोंगी कहा। क्यों? वह इसलिए कि पौलुस ने खुद ईसवी सन् 49 में पतरस को गैर-यहूदियों के पक्ष में गवाही देते सुना था। (प्रेषि. 15:12; गला. 2:13) अब वे गैर-यहूदी मसीही कैसा रवैया दिखाते जिन्हें पतरस ने चोट पहुँचायी थी? क्या वे पतरस की गलती से ठोकर खाते? क्या इस गलती की वजह से पतरस से उसकी ज़िम्मेदारियाँ ले ली जातीं?
यहोवा से प्यार करनेवालों को “कुछ ठोकर नहीं लगती”
12 पतरस की कमज़ोरी थी इंसानों का डर, जिसकी वजह से उसने कई बार बुरी तरह ठोकर खायी। लेकिन फिर भी वह यीशु और यहोवा का वफादार बना रहा। उदाहरण के लिए, उसने एक नहीं बल्कि तीन बार सबके सामने अपने मालिक को जानने से इनकार किया। (लूका 22:54-62) एक और मौके पर पतरस एक मसीही की तरह पेश आने से चूक गया। यहूदी मसीहियों के डर से वह विश्वास दिखानेवाले गैर-यहूदियों के साथ इस तरह बर्ताव करने लगा मानो वे खतनावालों के जितने नेक न हों। लेकिन प्रेषित पौलुस जानता था कि मंडली में इस तरह का भेदभाव ठीक नहीं। पतरस का नज़रिया गलत था। इससे पहले कि पतरस के व्यवहार से भाइयों का रिश्ता खट्टा पड़ जाता, पौलुस ने पतरस के मुँह पर उसे ताड़ना दी। (गला. 2:11-14) क्या इससे पतरस के अहंकार को इतनी ठेस पहुँची कि उसने ज़िंदगी की दौड़ में हार मान ली? नहीं! उसने पौलुस की ताड़ना पर गंभीरता से सोचा, उसे कबूल किया और दौड़ में आगे बढ़ता गया।
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‘बहुत तकलीफों’ के बावजूद वफादारी से परमेश्वर की सेवा कीजिए
20 छिपकर किए जानेवाले हमलों के बारे में क्या? मिसाल के लिए, हम निराशा की भावनाओं से कैसे जूझ सकते हैं? ऐसा करने का एक सबसे ज़बरदस्त तरीका है, यीशु के फिरौती बलिदान पर मनन करना। प्रेषित पौलुस ने भी यही किया था। कभी-कभी वह खुद को लाचार महसूस करता था। फिर भी वह जानता था कि मसीह सिद्ध इंसानों के लिए नहीं, बल्कि उसके जैसे पापियों के लिए मरा। पौलुस ने लिखा: “मैं . . . उस विश्वास से जी रहा हूँ जो मुझे परमेश्वर के बेटे पर है, जिसने मुझसे प्यार किया और खुद को मेरे लिए दे दिया।” (गला. 2:20) जी हाँ, पौलुस ने फिरौती के इंतज़ाम को कबूल किया और माना कि फिरौती बलिदान निजी तौर पर उसके लिए दिया गया था।
21 अगर आप भी फिरौती को यहोवा की तरफ से मिला एक निजी तोहफा समझें, तो इससे आपको भी बहुत फायदा हो सकता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि ऐसा करने से निराशा फौरन दूर हो जाएगी। नयी दुनिया के आने तक हममें से कुछ भाई-बहनों को समय-समय पर निराशा से जूझना पड़ेगा। लेकिन याद रखिए, इनाम उन्हीं को मिलेगा, जो हिम्मत नहीं हारेंगे। हर एक दिन हमें परमेश्वर के राज के करीब ले जा रहा है। जब परमेश्वर का राज आएगा, तब धरती पर शांति होगी और सभी इंसान सिद्ध होंगे। उस राज में दाखिल होने की ठान लीजिए, फिर चाहे इसके लिए आपको आज बहुत तकलीफें क्यों न झेलनी पड़ें।
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गलातियों के नाम चिट्ठी
इस चिट्ठी में पौलुस हैरानी जताते हुए कहता है, “अरे गलातिया के नासमझ लोगो।” वह गलातिया के उत्तरी भाग में रहनेवालों को नासमझ नहीं कह रहा था जो गॉल प्रजाति से निकले थे। (गल 3:1) दरअसल पौलुस गलातिया की मंडलियों के कुछ लोगों को फटकार रहा था। वे कुछ ऐसे यहूदी भाइयों के बहकावे में आ गए थे जो यहूदी धर्म की शिक्षाओं को मानने का बढ़ावा दे रहे थे। वे यहूदी भाई नए करार के आधार पर ‘विश्वास करके नेक’ ठहरने के बजाय मूसा के कानून को मानकर अपने तरीके से नेक ठहरने की कोशिश कर रहे थे। (गल 2:15–3:14; 4:9, 10) पौलुस ने जिन “गलातिया प्रांत की मंडलियों” को खत लिखा उनमें यहूदी और गैर-यहूदी, दोनों तरह के मसीही थे। (गल 1:2) गैर-यहूदी मसीहियों में कुछ ऐसे थे जिन्होंने पहले खतना करवाकर यहूदी धर्म अपनाया था और कुछ ऐसे थे जिन्होंने कभी खतना नहीं करवाया था। उन गैर-यहूदियों में कुछ ऐसे लोग भी रहे होंगे जिनके पूर्वज केल्ट जाति के थे। (प्रेष 13:14, 43; 16:1; गल 5:2) पौलुस ने खत में इन सब मसीहियों को ‘गलातिया के लोग’ कहा, क्योंकि वे सब जिस प्रांत में रहते थे वह गलातिया कहलाता था। पौलुस ने रोमी प्रांत गलातिया के दक्षिण में रहनेवालों को यह खत लिखा। यह हम इसलिए कह सकते हैं, क्योंकि पूरे खत से यही पता चलता है कि उसने ऐसे लोगों को खत लिखा जिन्हें वह अच्छी तरह जानता था। उसने यह खत उत्तर के लोगों को नहीं लिखा, क्योंकि वह शायद कभी वहाँ गया ही नहीं था।