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जो आप देखते हैं उन बातों के आगे देखिए!प्रहरीदुर्ग—1996 | फरवरी 15
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ऐसी परिस्थितियों के बावजूद, वफ़ादार शिष्य दृढ़ रहे। परमेश्वर पर मज़बूत विश्वास के साथ, वे ऐसा कह सके जैसा पौलुस ने कहा: “इसलिये हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है।” कौन-सी बात इस प्रतिदिन नया होने का कारण थी? पौलुस आगे बताता है: “क्योंकि हमारा पल भर का हलका सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है। और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएं थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं।”—२ कुरिन्थियों ४:१६-१८.
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जो आप देखते हैं उन बातों के आगे देखिए!प्रहरीदुर्ग—1996 | फरवरी 15
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वर्तमान क्लेशों को पल भर का समझिए!
चाहे अनचाहे, हम प्रतिदिन ऐसी बातें देखते हैं जिन्हें देखना हम शायद पसन्द न करें। आईने पर एक नज़र हमें अनचाहे दाग़ और भौतिक शरीर की झाइयों पर, जो कि शारीरिक अपरिपूर्णता के सबूत हैं, ध्यान देने से रोक नहीं सकती। जब हम परमेश्वर के वचन के आइने में देखते हैं, हम स्वयं में और दूसरों में आध्यात्मिक ख़ामियाँ देखते हैं। (याकूब १:२२-२५) और जब हम दैनिक समाचारपत्र अथवा टेलिविज़न स्क्रीन को देखते हैं, तो अन्याय, निर्दयता, और त्रासदी के वृतान्तों की ओर हमारा ध्यान जल्द ही जाता है और हमें दुःखी करता है।
शैतान हमें उन बातों के कारण जो हम देखते हैं निराश करना या मार्ग से भटकाकर विश्वास में कमज़ोर बनाना चाहेगा। हम कैसे इसे रोक सकते हैं? हमें यीशु द्वारा रखे गए उदाहरण पर चलना चाहिए, जिसकी प्रेरित पतरस ने सिफ़ारिश की जब उसने कहा: “तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।” (१ पतरस २:२१) मसीही जीवन के हर पहलू में यीशु एक परिपूर्ण उदाहरण था।
यीशु को हमारे आदर्श के रूप में बताते हुए, पतरस ने ख़ास ज़िक्र किया कि यीशु ने दुःख उठाया। निश्चित ही यीशु ने बहुत दुःख उठाया जब वह पृथ्वी पर था। यहोवा के “कुशल कारीगर” (NW) के तौर पर जो मानवजाति की सृष्टि के समय मौजूद था, वह ठीक-ठीक जानता था कि मनुष्यों के लिए परमेश्वर का क्या उद्देश्य था। (नीतिवचन ८:३०, ३१) लेकिन अब उसने देखा कि पाप और अपरिपूर्णता के कारण उनकी क्या शा हो गई। प्रतिदिन उसने मुनष्यों की असिद्धता और कमज़ोरियों को देखा और उनका सामना किया। यह निश्चित ही उसके लिए परीक्षापूर्ण रहा होगा।—मत्ती ९:३६; मरकुस ६:३४.
दूसरों के क्लेशों के अलावा यीशु ने अपने क्लेशों का भी अनुभव किया। (इब्रानियों ५:७, ८) लेकिन सिद्ध आध्यात्मिक दृष्टि के साथ उसने, उन बातों के आगे अपने खराई के मार्ग पर चलने के लिए अविनाशी जीवन के लिए उठाए जाने के प्रतिफल को देखा। फिर मसीहाई राजा के तौर पर, उसके पास पीड़ित मानवजाति को उसकी गिरी हुई दशा से उस सिद्धता तक वापस लाने का विशेषाधिकार होता जिसका उद्देश्य यहोवा ने उनके लिए आरम्भ में किया था। अपनी आँखें इन अनदेखी भविष्य की प्रत्याशाओं पर लगाए रखने से प्रतिदिन के क्लेशों का सामना करने के द्वारा, उसे ईश्वरीय सेवा में आनन्द बनाए रखने में मदद प्राप्त हुई। पौलुस ने बाद में लिखा: “जिस ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दहिने जा बैठा।”—इब्रानियों १२:२.
यीशु ने कभी भी कठिनाइयों और परीक्षापूर्ण परिस्थितियों को उसे निराश, मार्ग से विचलित, या विश्वास में कमज़ोर नहीं करने दिया। उसके शिष्य होने के नाते, हमें उसके उच्चतम उदाहरण का अनुसरण नज़दीकी से करना चाहिए।—मत्ती १६:२४.
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