एक धर्मविज्ञानी दुविधा
“प्राण के अमरत्व का विचार और मृतकों के पुनरुत्थान में विश्वास . . . दो पूर्णतया भिन्न स्तरों की धारणाएँ हैं जिनके बीच चुनाव करने की ज़रूरत है।” फिलिप मानू के ये शब्द मृतकों की स्थिति के बारे में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक धर्मविज्ञानियों द्वारा सामना किए गए दुविधा का संक्षेपण करते हैं। बाइबल “अंतिम दिन” में एक पुनरुत्थान की आशा की बात करती है। (यूहन्ना ६:३९, ४०, ४४, ५४) लेकिन, धर्मविज्ञानी किस्बेर्ट क्रेशहॉगे कहता है कि अनेक विश्वासियों की आशा “प्राण के अमरत्व पर आधारित है, जो मृत्यु पर शरीर से अलग होकर परमेश्वर के पास वापस जाता है, जबकि पुनरुत्थान में आशा, यदि पूर्णतया नहीं तो काफ़ी हद तक, लुप्त हो चुकी है।”
उस परिस्थिति में, एक जटिल समस्या उत्पन्न होती है। बरनार् सेबूए समझाता है: “उनकी शारीरिक मृत्यु और आख़िरी पुनरुत्थान के बीच के ‘अंतराल’ में मृतकों की क्या स्थिति है?” यह सवाल पिछले कुछ सालों से धर्मवैज्ञानिक वाद-विवाद का मुख्य विषय प्रतीत होता है। इसका कारण क्या है? और उससे भी महत्त्वपूर्ण, मृतकों के लिए वास्तविक आशा क्या है?
एक दुविधा की उत्पत्ति और विकास
प्रारंभिक मसीहियों के इस विषय पर स्पष्ट विचार थे। शास्त्रवचनों से वे जानते थे कि मृत लोग किसी भी बात के बारे में सचेत नहीं हैं, क्योंकि इब्रानी शास्त्र बताते हैं: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते . . . अधोलोक में जहां तू जानेवाला है, न काम न युक्ति न ज्ञान और न बुद्धि है।” (सभोपदेशक ९:५, १०) उन मसीहियों ने भावी ‘प्रभु की उपस्थिति’ (NW) के दौरान होनेवाले एक पुनरुत्थान की आशा की। (१ थिस्सलुनीकियों ४:१३-१७) उस समय का इंतज़ार करते वक़्त उन्होंने कहीं और सचेत रहने की आशा नहीं की। विश्वास के धर्मसिद्धांत की वेटिकन कलीसिया का वर्तमान प्रशासक योज़ेफ रॉटज़िंगर कहता है: “प्राचीन चर्च में प्राण के अमरत्व की कोई धर्मसैद्धांतिक पुष्टी नहीं थी।”
लेकिन, नूओवो डीट्स्योनार्यो डी टाओलोज़ीया समझाता है कि ऑगस्टीन या एम्ब्रोस जैसे ‘गिरजा आचार्यों’ के लेखों को पढ़ते वक़्त “बाइबलीय परंपरा के बारे में हमें किसी नई बात के बारे में पता चलता है—एक यूनानी मरणोत्तर विद्या का उद्गमन जो मूलतः यहूदी-मसीहियों से भिन्न था।” यह नयी शिक्षा “प्राण के अमरत्व और व्यक्तिगत न्याय पर आधारित थी जिसमें मृत्यु के तुरन्त बाद प्रतिफल या दंड प्राप्त होता है।” अतः, “मध्यवर्ती स्थिति” के बारे में एक सवाल उठाया गया था: यदि प्राण शरीर के मृत्यु पर बचता है तो “अंतिम दिन” में पुनरुत्थान के लिए इंतज़ार करते वक़्त उसके साथ क्या होता है? यह एक दुविधा है जिसे सुलझाने के लिए धर्मवैज्ञानिकों ने काफ़ी प्रयत्न किया है।
सा.यु. छठी शताब्दी में पोप ग्रेगरी I ने तर्क किया कि मृत्यु होने पर प्राण तुरन्त उनके नियत स्थानों पर चले जाते हैं। १४वीं शताब्दी के पोप जॉन XXII को विश्वास था कि मृत जन अपना अंतिम प्रतिफल ‘न्याय के दिन’ पाएँगे। लेकिन पोप बेनेडिक्ट XII ने अपने पूर्वाधिकारी का खंडन किया। पोप की घोषणा, बेनेडिक्टस् डेयस (१३३६) में उसने आज्ञप्ती दी कि “मृतकों के प्राण मृत्यु के तुरन्त बाद परमानन्द [स्वर्ग], शोधन [शोधन स्थान], या दंड [नरक] की एक स्थिति में प्रवेश करते हैं और संसार के अंत में अपने पुनरुत्थित शरीरों के साथ उनका पुनर्मिलन हो जाता है।”
वाद-विवाद और बहस के बावजूद, सदियों से मसीहीजगत के गिरजों की यही स्थिति रही है, यद्यपि प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स गिरजे आम तौर पर शोधन स्थान में विश्वास नहीं करते हैं। लेकिन पिछली शताब्दी के अंत से, बढ़ती संख्या में विद्वानों ने प्राण के अमरत्व के धर्मसिद्धांत के ग़ैर-बाइबलीय उद्गम की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया है और इसके परिणामस्वरूप “आधुनिक धर्मविज्ञान अब अकसर मनुष्य को इकाई के तौर पर देखने की कोशिश करता है जिसका मृत्यु पर संपूर्ण विनाश हो जाता है।” (धर्म का विश्वकोश, अंग्रेज़ी) इसलिए, बाइबल व्याख्याकार एक “मध्यवर्ती स्थिति” के अस्तित्व को उचित सिद्ध करना मुश्किल पाते हैं। क्या बाइबल इसके बारे में बात करती है, या क्या वह एक अलग आशा प्रस्तुत करती है?
क्या पौलुस एक “मध्यवर्ती स्थिति” में विश्वास करता था?
कैथोलिक चर्च की प्रश्नोत्तरी (अंग्रेज़ी) कहती है: “मसीह के साथ उठने के लिए, हमें मसीह के साथ मरना है: हमें ‘देह से अलग होना है और प्रभु के साथ रहना’ है। [२ कुरिन्थियों ५:८] उस ‘कूच’ में, जो मृत्यु है, प्राण शरीर से अलग किया जाता है। [फिलिप्पियों १:२३] शरीर के साथ उसका पुनर्मिलन मृतकों के पुनरुत्थान के दिन होगा।” लेकिन यहाँ उद्धृत शास्त्रवचनों में क्या प्रेरित पौलुस कहता है कि प्राण शरीर की मृत्यु से बचता है और फिर शरीर के साथ पुनर्मिलन के लिए “आख़िरी न्याय” का इंतजार करता है?
दूसरा कुरिन्थियों ५:१ में पौलुस अपनी मृत्यु का ज़िक्र करता है और एक ‘पृथ्वी पर के डेरे’ के बारे में बात करता है जो “गिराया जाएगा।” क्या वह अमर प्राण द्वारा त्यागे गए शरीर के बारे में सोच रहा था? नहीं। पौलुस विश्वास करता था कि मनुष्य स्वयं एक प्राण है, न कि उसमें एक प्राण है। (उत्पत्ति २:७; १ कुरिन्थियों १५:४५) पौलुस एक आत्मा-अभिषिक्त मसीही था जिसकी आशा, उसके पहले शताब्दी के भाइयों की तरह, “स्वर्ग में रखी हुई” थी। (कुलुस्सियों १:५; रोमियों ८:१४-१८) अतः, स्वर्ग में एक अमर आत्मिक प्राणी के तौर पर परमेश्वर के निर्धारित समय पर पुनरुत्थित किए जाने की उसकी “बड़ी लालसा” थी। (२ कुरिन्थियों ५:२-४) इस आशा के बारे में बात करते हुए उसने लिखा: “हम . . . सब बदल जाएंगे . . . पिछली तुरही फूंकते ही होगा: क्योंकि तुरही फूंकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएंगे, और हम बदल जाएंगे।”—१ कुरिन्थियों १५:५१, ५२, तिरछे टाइप हमारे।
दूसरा कुरिन्थियों ५:८ में पौलुस कहता है: “हम ढाढ़स बान्धे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं।” कुछ लोग विश्वास करते हैं कि ये शब्द इंतज़ार की एक मध्यवर्ती स्थिति का ज़िक्र करते हैं। ऐसे लोग यीशु की उस प्रतिज्ञा का भी ज़िक्र करते हैं जो उसने अपने विश्वासी अनुयायियों को दी कि वह एक जगह तैयार करने जा रहा था जहाँ वह उन्हें ‘अपने यहां ले जाएगा।’ लेकिन ऐसी प्रत्याशाएँ कब पूरी होंगी? मसीह ने कहा कि यह तब होगा जब वह अपनी भावी उपस्थिति में ‘फिर आएगा।’ (यूहन्ना १४:१-३) समान तौर पर, २ कुरिन्थियों ५:१-१० में पौलुस कहता है कि अभिषिक्त मसीहियों की समान आशा थी कि एक स्वर्गीय निवास प्राप्त करें। यह उन्हें किसी तथाकथित प्राण के अमरत्व से नहीं, बल्कि यीशु की उपस्थिति के दौरान पुनरुत्थान के द्वारा प्राप्त होगा। (१ कुरिन्थियों १५:२३, ४२-४४) समीक्षक शार्ल मॉसोन निष्कर्ष निकालता है कि २ कुरिन्थियों ५:१-१० को “तब ‘मध्यवर्ती स्थिति’ की परिकल्पना का प्रयोग किए बग़ैर अच्छी तरह समझा जा सकता है।”
फिलिप्पियों १:२१, २३ में पौलुस कहता है: “मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है। क्योंकि मैं दोनों के बीच अधर में लटका हूं; जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूं, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है।” क्या पौलुस यहाँ एक “मध्यवर्ती स्थिति” का ज़िक्र करता है? कुछ लोग ऐसा सोचते हैं। लेकिन पौलुस कहता है कि उस पर दो संभावनाओं ने दबाव डाला—जीवन या मृत्यु। एक तीसरी संभावना का उल्लेख करते हुए उसने आगे कहा “जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूं।” यीशु के साथ मृत्यु के तुरन्त बाद होने के लिए “कूच?” ख़ैर, जैसे हम देख चुके हैं, पौलुस विश्वास करता था कि विश्वासी अभिषिक्त मसीही मसीह की उपस्थिति के दौरान पुनरुत्थित किए जाएँगे। अतः, वह उस समय होनेवाली घटनाओं के बारे में बात कर रहा होगा।
फिलिप्पियों ३:२०, २१ और १ थिस्सलुनीकियों ४:१६ में पाए गए उसके शब्दों से यह देखा जा सकता है। मसीह यीशु की उपस्थिति के दौरान ऐसे “कूच” पौलुस को योग्य करेगा कि वह उस प्रतिफल को पाए जो परमेश्वर ने उसके लिए तैयार किया था। युवा पुरुष तीमुथियुस को उसके शब्द दिखाते हैं कि उसकी आशा यही थी: “भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, बरन उन सब को भी, जो उसके प्रग्ट होने को प्रिय जानते हैं।”—२ तीमुथियुस ४:८.
पुनरुत्थान—एक उत्कृष्ट बाइबल सच्चाई
प्रारंभिक मसीही समझते थे कि पुनरुत्थान एक ऐसी घटना है जो मसीह की उपस्थिति के दौरान शुरू होगी, और इस उत्कृष्ट बाइबल सच्चाई से उन्होंने शक्ति और सांत्वना प्राप्त की। (मत्ती २४:३; यूहन्ना ५:२८, २९; ११:२४, २५; १ कुरिन्थियों १५:१९, २०; १ थिस्सलुनीकियों ४:१३) उन्होंने विश्वास के साथ, अमर प्राण की धर्मत्यागी शिक्षाओं को त्यागते हुए, उस भावी आनन्द का इंतज़ार किया।—प्रेरितों २०:२८-३०; २ तीमुथियुस ४:३, ४; २ पतरस २:१-३.
यह सच है कि पुनरुत्थान केवल स्वर्गीय आशा रखनेवाले मसीहियों तक ही सीमित नहीं है। (१ पतरस १:३-५) कुलपिताओं और परमेश्वर के दूसरे प्राचीन सेवकों ने मृतकों को वापस पृथ्वी पर जीवित करने की यहोवा की योग्यता पर विश्वास किया। (अय्यूब १४:१४, १५; दानिय्येल १२:२; लूका २०:३७, ३८; इब्रानियों ११:१९, ३५) शताब्दियों के दौरान जीवित रहे उन करोड़ों लोगों को, जो परमेश्वर को कभी नहीं जानते थे, अवसर है कि वे एक पार्थिव परादीस में वापस जीवित किए जाएँ, क्योंकि “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” (प्रेरितों २४:१५; लूका २३:४२, ४३) क्या यह एक रोमांचकारी प्रत्याशा नहीं है?
हमें यह विश्वास दिलाने के बजाय कि पीड़ा और मृत्यु हमेशा रहेगी, यहोवा उस समय की ओर संकेत करता है जब “अन्तिम बैरी . . . मृत्यु” को हमेशा के लिए हटा दिया जाएगा और विश्वासी मनुष्यजाति परादीस में पुनःस्थापित पृथ्वी पर अनन्तकाल के लिए जीएगी। (१ कुरिन्थियों १५:२६; यूहन्ना ३:१६; २ पतरस ३:१३) अपने प्रिय जनों को वापस जीवित होते हुए देखना कितना अद्भुत होगा! यह निश्चित आशा परिकाल्पनिक मानव प्राण के अमरत्व से कितनी बेहतर है—एक ऐसा धर्मसिद्धांत जो परमेश्वर के वचन पर नहीं, लेकिन यूनानी धर्मविज्ञान पर आधारित है! यदि आप परमेश्वर की निश्चित प्रतिज्ञा पर अपनी आशा रखेंगे तो आप भी निश्चित हो सकते हैं कि जल्द ही “मृत्यु न रहेगी”! —प्रकाशितवाक्य २१: ३-५.
[पेज 31 पर तसवीरें]
पुनरुत्थान एक उत्कृष्ट बाइबल सच्चाई है