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परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता सिद्ध करनाप्रहरीदुर्ग—1991 | मार्च 1
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१७ तथापि, एक मसीही जो ‘परमेश्वरीय भय में पवित्रता सिद्ध’ करने के लिए इच्छुक है, जिस किसी को भी वह चाहता है या चाहती है विवाह करने के लिए स्वतंत्र नहीं महसूस करना चाहिए। अपने संगी मसीहियों को ‘आत्मा और शरीर की सभी मलिनताओं से स्वयं को शुद्ध करने, और परमेश्वरीय भय में पवित्रता को सिद्ध’ करने की सलाह देने से ठीक पहले, प्रेरित पौलुस ने लिखा था: “अविश्वाससियों के साथ असमान जूए में न जुतो, क्योंकि धार्मिकता और अधर्म का क्या मेल जोल? . . . या विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता?” (२ कुरिन्थियों ६:१४, १५; ७:१) यहोवा के अलग किए गए और शुद्ध लोगों में से एक सदस्य होकर, एक मसीही पुरुष या स्त्री जो विवाह करना चाहता है प्रेरितिक पाबंदी के अनुसार ऐसा “केवल प्रभु में” करेगा, अर्थात्, ऐसे व्यक्ति को चुनना जो एक समर्पित, बपतिस्मा प्राप्त, और यहोवा का वफ़ादार सेवक है। (१ करिन्थियों ७:३९) जैसा प्राचीन समय में था, वैसा आज भी, परमेश्वर के लोगों के बीच समर्पित लोगों के लिए इस शास्त्रीय सलाह को इंकार करना निश्चय ही अविवेकी होगी। (व्यवस्थाविवरण ७:३, ४; नहेमायाह १३:२३-२७ से तुलना करें।) ऐसा करना हमारे महान स्वामी यहोवा, के प्रति स्वास्थ्यकर भय दिखाना नहीं होगा।—मलाकी १:६.
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परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता सिद्ध करनाप्रहरीदुर्ग—1991 | मार्च 1
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२१. कैसे और क्यों यहोवा के सेवक इब्लीस के संसार से अपनी अलग पहचान रखते हैं, और अगले अंक में किस पर विचार किया जाएगा?
२१ जी हाँ, आत्मिक इस्राएल के अभिषिक्त अवशेष और उनके साथीयों, दूसरी भेडें, आज स्वयं को शैतान के उस संसार से अलग अपनी पहचान रखते हैं, जिनके लिए पवित्रता के भाव का कुछ अर्थ नहीं रह गया है। इब्लीस की भीड़ के लिए जो उस “चौड़ा . . . और चाकल . . . मार्ग जो विनाश को पहुँचाता है” चल रही है, कुछ भी पवित्र नहीं है। न केवल वे आत्मिक और नैतिक रीति से अशुद्ध हैं बल्कि कई मामलों में वे शारीरिक रीति से अशुद्ध हैं और कम कहा जाए तो उनका बाहरी दिखावा अव्यवस्थित हैं। फिर भी, प्रेरित पौलुस कहता है: “आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और पमरेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।” (२ कुरिन्थियों ७:१) किन बातों में परमेश्वर के लोगों को मन और शरीर शुद्ध बनाए रखने में सावधानी रखना चाहिए, इस पर अगले अंक में विचार किया जाएगा।
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तन और मन में शुद्ध रहोप्रहरीदुर्ग—1991 | अप्रैल 1
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१. प्रेरित पौलुस के अनुसार, तन और मन की शुद्धता क्यों आवश्यक है?
वह व्यक्ति जो पवित्र परमेश्वर यहोवा की सेवा करना चाहता है, उसे आध्यात्मिक तथा नैतिक रूप से शुद्ध होना चाहिए। तर्कसंगत रूप से, इसका यह अर्थ भी सूचित होता है कि वह तन और मन में शुद्ध रहे। चूँकि यह मौजूदा रीति-व्यवस्था इस प्रकार है, इसलिए जो लोग उस में से यहोवा की सेवा करने के लिए निकल आते हैं, उन्हें न सिर्फ़ अपने सोचने की आदतों में परिवर्तन करना पड़ता है, लेकिन अक़सर अपनी निजी आदतों में भी परिवर्तन करना पड़ता है। प्रेरित पौलुस ने रोम में रहनेवाले मसीहियों को लिखा: “इसलिए हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूँ, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।” (रोमियों १२:१, २) तन और मन की शुद्धता में क्या शामिल है?
मानसिक विशुद्धता
२. किस प्रकार हमारी आँखें और हृदय हमारा अपवित्र चाल-चलन में लग जाने का कारण बन सकती हैं, और इस से बचे रहने के लिए किस बात की ज़रूरत है?
२ व्यवस्था के दिए जाने से भी पहले, विश्वसनीय अय्यूब ने दिखाया कि अगर हम अपनी आँखों और हृदय को नियंत्रण में न रखें तो उन के कारण हम अपवित्र चाल-चलन के दोषी हो सकते हैं। उसने कहा: “मैं ने अपनी आँखों के विषय वाचा बाँधी है, फिर मैं किसी कुँवारी पर क्योंकर आँखें लगाउँ? . . . यदि मेरा हृदय किसी स्त्री पर मोहित हो गया है, वह तो महापाप होता; और न्यायियों से दण्ड पाने के योग्य अधर्म का काम होता।” (अय्यूब ३१:१, ९-११) यदि हमारी आँखें भटकती हो और एक चंचल हृदय हो, तो हमें मानसिक अनुशासन की गरज़ है, “वह अनुशासन जो अन्तर्दृष्टि देती है” की ग़रज़ है।—नीतिवचन १:३.
३, ४. (अ) दाऊद और बतशेबा के उदाहरण से क्या स्पष्ट होता है, और ग़लत विचार करने की आदतों को बदलने के लिए क्या ज़रूरी है? (ब) क्यों मसीही प्राचीनों को ख़ास तौर से सावधान रहना चाहिए?
३ राजा दाऊद की आँखें उसे बतशेबा के साथ व्यभिचार करने तक बहका ले गए। (२ शमूएल ११:२, ४) इस उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि यहोवा द्वारा विशिष्ट रूप से इस्तेमाल किए गए आदमी, यदि वे अपने मन पर नियंत्रण नहीं रखेंगे, तो वे भी पाप में पड़ सकते हैं। हमारे सोचने की आदतों को बदलने के लिए शायद कड़े प्रयास की ज़रूरत होगी। ऐसे प्रयास के साथ-साथ यहोवा की मदद के लिए उन से भक्तिमय प्रार्थना भी की जानी चाहिए। बतशेबा के साथ अपने पाप के लिए पश्चाताप करने के बाद, दाऊद ने प्रार्थना की: “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नए सिरे से उत्पन्न कर।”—भजन ५१:१०.
४ मसीही प्राचीनों को ख़ास तौर से सावधान रहना चाहिए कि वे ऐसे ग़लत इच्छाओं को अपने मन में न रखें जिन से वे घोर पाप कर बैठें। (याकूब १:१४, १५) पौलुस ने मसीही प्राचीन तीमुथियुस को लिखा: “आज्ञा का सारांश यह है, कि शुद्ध मन और अच्छे अंतःकरण, और कपटरहित विश्वास से प्रेम उत्पन्न हो।” (१ तीमुथियुस १:५, न्यू.व.) किसी प्राचीन के लिए यह निश्चय ही एक पाखण्डी बात होगी, अगर वह अपनी आध्यात्मिक ज़िम्मेदारियों को निभाते समय, घुमक्कड़ नज़रों को अपने हृदय में अशुद्ध काम करने के विचारों को उकसाने दे।
५. मन की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए किस से दूर रहना चाहिए?
५ मसीही होने के तौर से हम सभी को मन में शुद्ध रहने के लिए जी-जान से कोशिश करनी चाहिए। इसका मतलब यह है कि हमें ऐसे फिल्मों, टी.वी. के प्रोग्रामों, या ऐसे वाचन-विषय से दूर रहना चाहिए जो शायद हमारी विचार शक्ति पर एक भ्रष्ट करनेवाला प्रभाव डाले। मानसिक स्वच्छता में उन बातों पर विचार करने का एक जानकार प्रयास शामिल है, जो “सत्य, . . . उचित, . . . पवित्र हैं।” प्रेरित पौलुस आगे कहता है: “जो जो सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो।”—फिलिप्पियों ४:८.
निजी स्वच्छता
६. (अ) लैव्यव्यवस्था की किताब से ऐसे उदाहरण बताएँ जिन से यह दिखायी देता है कि इस्राएल में निजी तथा सामूहिक स्वच्छता आवश्यक थी। (ब) ऐसे नियमों का उद्देश्य क्या था?
६ कहा गया है कि “सफ़ाई-पसन्दगी और भक्ति साथ-साथ जाती हैं।” यह सच है कि एक व्यक्ति जो नैतिक और शारीरिक रूप से स्वच्छ हो, वह शायद ईश्वरपरायण न हो। परन्तु एक ईश्वरपरायण व्यक्ति को, आवश्यक रूप से, नैतिक और शारीरिक रूप से स्वच्छ होना चाहिए। मूसा की व्यवस्था में संदूषित घरों को शुद्ध करने की क्रिया पर और अशुद्धता के विविध उदाहरणों में निजी स्नान पर स्पष्ट आदेश दिए गए थे। (लैव्यव्यवस्था, अध्याय १४ और १५ देखें।) यह आवश्यक था कि सभी इस्राएली खुद को पवित्र साबित करे। (लैव्यव्यवस्था १९:२) इन्साइट ऑन द स्क्रिप्चर्स नामक प्रकाशन में बताया गया है: “परमेश्वर द्वारा [इस्राएलियों] को दिए आहार-संबंधी, सफ़ाई-संबंधी तथा नैतिकता-संबंधी नियम उनके लिए सतत स्मरण करने की बात थी कि वे परमेश्वर के लिए एक अलग तथा पवित्र लोग थे।”—खण्ड १, पृष्ठ ११२८.
७. एक जाति के तौर से यहोवा के गवाहों के बारे में कौनसी बात सच है, परन्तु कुछ भ्रमण करनेवाले अध्यक्षों ने क्या बताया है?
७ जब कि एक जाति के तौर से यहोवा के गवाह किसी भी बाबेलोनी झूठे धर्म के दूषण से शुद्ध हैं और वे उनके बीच नैतिक अशुद्धता को अनदेखी नहीं करते, भ्रमण करनेवाले अध्यक्षों के रिपोर्टों से सूचित होता है कि कुछ व्यक्ति अपनी निजी स्वच्छता और साफ़-सुथरेपन पर ध्यान नहीं देते। हम किस रीति से पक्का कर सकते हैं कि हम इस मामले में भी शुद्ध हैं? सभी मसीही परिवारों के लिए एक अच्छा आदर्श बेथेल है, जिस नाम का मतलब है “परमेश्वर का भवन।”
८, ९. (अ) बेथेल परिवार के हर नए सदस्य को कौनसी सलाह दी जाती है? (ब) कौनसे सिद्धान्त, जो कि बेथेल घरों को नियंत्रित करते हैं, हर मसीही परिवार को नियंत्रित करने चाहिए?
८ जब कोई व्यक्ति वॉच टावर सोसाइटी के मुख्यालय का या दुनिया भर में उसके किसी भी शाखा का एक सदस्य बनता है, तब उसे एक ऐसी पुस्तिका दी जाती है जो शासी निकाय द्वारा तैयार की गयी है। इस प्रकाशन में समझाया गया है कि उस से काम की आदतों तथा निजी आदतों के संबंध में क्या अपेक्षा की जाती है। “कमरे की देख-रेख और सफ़ाई,” इस शीर्षक के नीचे बताया गया है: “बेथेल जीवन में यह आवश्यक होता है कि हम उच्च शारीरिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक स्तरों को बनाए रखें। बेथेल में रहनेवाले हर एक सदस्य को इस बात की चिन्ता रहनी चाहिए कि क्या वह अपने आप को तथा अपने कमरे को साफ़ रख रहा है या नहीं। इस से अच्छे स्वास्थ्य की उन्नति होती है। किसी को गन्दा रहने की कोई वजह नहीं। हर दिन नहाना एक अच्छी आदत है। . . . भोजन के समय से पूर्व हाथ-मुँह धोना ज़रूरी है और यह अपेक्षा की जाती है कि हर एक व्यक्ति ऐसा करेगा। अपने कमरा-साथी तथा घर की देख-रेख करनेवाली बहन का लिहाज़ करके, वॉशबेसिन या स्नान-टब् को इस्तेमाल करने के बाद, हर बार उसे धो लेना चाहिए।”
९ बेथेल घरों में, शौचालय पूर्ण रूप से साफ़ रखे जाते हैं, और उन में यह प्रबंध किया गया है कि उपयोग करनेवाले अपने हाथों को फ़ौरन धो सकें। परिवार के सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि शौचालय को इस्तेमाल करने के बाद वे उसे साफ़ छोड़ें, जिसका मतलब है कि वे यह जाँच करें कि क्या शौचालय पानी से सही रूप से साफ़ किया गया है या नहीं। इस से अगले प्रयोक्ता या घर की देख-रेख करनेवाली बहन के लिए लिहाज़ दर्शाया जाता है। क्या ऐसे उत्तम, प्रेमपूर्ण सिद्धान्त प्रत्येक मसीही परिवार को नियंत्रित कर नहीं सकते?
१०. (अ) खुद को और अपने बच्चों को साफ़ रखने के लिए एक बड़े और विस्तारपूर्ण स्नान-घर की ज़रूरत क्यों नहीं है? (ब) इस्राएल में कौनसे नियम अच्छे स्वस्थ्य के लिए सहायक थे, और आज यहोवा के लोग इस से क्या सबक़ सीख सकते हैं?
१० यह स्वाभाविक है कि देश-देश में परिस्थितियाँ अलग हैं। कुछ जगहों में, घरों में ना तो स्नान-टब् होता है और न ही शावर (फुहारा)। फिर भी, आम तौर पर, मसीही मर्द और औरतें इतने साबुन और पानी हासिल कर सकते हैं कि वे खुद अपना शरीर और अपने बच्चों का शरीर साफ़ रख सकें।a दुनिया भर में अनेक घर मलजल-व्यवस्था से नहीं जोड़े गए हैं। लेकिन मल-जल को ज़मीन में गाड़कर उस से निपटाया जा सकता है, उसी तरह जैसा कि इस्राएलियों के बीच, सैन्य डेरों में भी, ज़रूरी था। (व्यवस्थाविवरण २३:१२, १३) इसके अलावा, डेरे की ज़िन्दगी को नियंत्रित करनेवाले जो यहोवा के नियम थे, उन में कपड़ों का प्रायिक धोना और नहाना, रोग का तत्काल निदान और उपचार, शवों से उचित रूप से निपटना, और साफ़ पानी और खाद्य सामग्री को बनाए रखना आवश्यक था। ये सभी नियम राष्ट्र के स्वास्थ्य में सहायक थे। क्या यहोवा के लोगों को आज अपनी निजी आदतों में कम स्वच्छ रहना चाहिए?—रोमियों १५:४.
साफ़-सुथरे घर और गाड़ियाँ
११. (अ) सबसे साधारण मसीही घर में भी कौनसी बात पर अमल किया जाना चाहिए? (ब) बेथेल परिवार के सभी सदस्यों से कौनसे सहयोग की अपेक्षा की जाती है?
११ हमारे घर, चाहे कितने ही साधारण क्यों न हों, सुव्यवस्थित और साफ़ हो सकते हैं, लेकिन इस के लिए एक पारीवारिक स्तर पर अच्छी व्यवस्था की ज़रूरत है। एक मसीही माता आध्यात्मिक मामलों में, जिन में प्रचार कार्य भी शामिल है, यथासंभव अधिक समय बिताना चाहेगी। इसलिए उसे हर दिन परिवार के उन सदस्यों के पीछे-पीछे जाकर, जो अपने कपड़े, किताबें, काग़ज़ात, पत्रिकाएँ, इत्यादि, को इधर-उधर पड़े रहने देते हैं, उनकी चीज़ों को उठाकर अपनी-अपनी जगह पर रखने में समय बिताने पर मजबूर होना नहीं चाहिए। बेथेल में, हालाँकि घर की देख-रेख करनेवाली बहनें होती हैं जो सफ़ाई करती हैं, परिवार के हर सदस्य से यह अपेक्षा की जाती है कि सुबह में वह अपना बिस्तर व्यवस्थित बनाए और अपना कमरा साफ़-सुथरा छोड़ें। हम सभी अपने सुव्यवस्थित और स्वच्छ किंग्डम हॉलों तथा सभा गृहों को पसन्द करते हैं। ऐसा हो कि हमारे घर भी यह साबित करें कि हम यहोवा की स्वच्छ और पवित्र जाति का एक भाग हैं!
१२, १३. (अ) यहोवा की सेवा में उपयोग में लायी जानेवाली गाड़ियों से संबंधित कौनसी सलाह दी गयी है, और ऐसा क्यों नहीं इस पर बहुत सारा समय ख़र्च हो? (ब) शारीरिक रूप से स्वच्छ रहने और घर तथा गाड़ियों को सुव्यवस्थित रखने का कौनसा आध्यात्मिक कारण है?
१२ आज यहोवा के अनेक सेवक सभाओं में तथा क्षेत्र सेवकाई में जाने के लिए गाड़ियों का उपयोग करते हैं। कुछ देशों में एक गाड़ी के बिना यहोवा की सेवा करना लगभग नामुमकिन-सा हो गया है। इसलिए, इसे सुव्यवस्थित और साफ़-सुथरा रखना चाहिए, उसी तरह जैसा हमारा घर होता है। निश्चय ही, मसीही अपनी गाड़ियों को दुलारने में अत्याधिक समय नहीं बिता सकते, जैसा कई सांसारिक लोग करते हैं। परन्तु वह ज़्यादती किए बिना, यहोवा के सेवकों को अपनी गाड़ियाँ काफ़ी हद तक साफ़ और सुव्यवस्थित रखने की कोशिश करनी चाहिए। कुछ देशों में पेट्रोल पंपों पर पाए जानेवाली गाड़ी धोने की ख़ास मशीन न तो महँगी होती है और ना इस में समय की बरबादी होती है। जहाँ तक गाड़ी के अन्दर के भाग का सवाल है, साफ़ करने तथा चीज़ों को अपनी-अपनी जगह पर रखने में अगर सिर्फ़ दस मिनट ही बिताएँ, तो ग़ज़ब ढ़ाया जा सकता है। ख़ास तौर से, प्राचीनों और सहायक सेवकों को इस विषय में एक आदर्श होने की कोशिश करनी चाहिए, चूँकि क्षेत्र सेवकाई में प्रचारकों के समूहों को ले जाने के लिए वे अक़सर अपनी गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। जब कोई प्रचारक सभा में ले जाने के लिए किसी दिलचस्पी रखनेवाले व्यक्ति को अपनी गाड़ी में उठाता है, और अगर गाड़ी गन्दी और अस्तव्यस्त है, तब यह यक़ीनन एक अच्छी गवाही नहीं होगी।
१३ इस प्रकार, शारीरिक रूप से स्वच्छ रहने और हमारे घरों तथा गाड़ियों को साफ़-सुथरा और सुव्यवस्थित रखने की हमारी कोशिशों से हम यहोवा के शुद्ध संगठन के सदस्यों के रूप में उनको सम्मानित करते हैं।
आध्यात्मिक बलि देते समय स्वच्छता बनाए रखना
१४. इस्राएल में कौनसे नियम आनुष्ठानिक शुद्धता को नियंत्रित करते थे, और इन नियमों से क्या सूचित होता है?
१४ इस्राएल में उपासना के संबंध में आनुष्ठानिक स्वच्छता आवश्यक थी, जिसे न मानने की सज़ा मृत्यु थी। यहोवा ने मूसा और हारून को बताया: “तुम इस्राएलियों को उनकी अशुद्धता से न्यारे रखा करो, कहीं ऐसा न हो कि वे यहोवा के निवास को जो उनके बीच में है, अशुद्ध करके अपनी अशुद्धता में फँसे हुए मर जाएँ।” (लैव्यव्यवस्था १५:३१) प्रायश्चित के दिन पर, महायाजक को अपना अंग दो बार पानी में धोना था। (लैव्यव्यवस्था १६:४, २३, २४) मिलापवाले तम्बू में ताँबे की कूँडी, और बाद में आराधनालय में अति-विशाल ताँबे की हौद में पानी था जिस में याजक यहोवा को बलि चढ़ाने से पहले अपने आप को धो सकते थे। (निर्गमन ३०:१७-२१; २ इतिहास ४:६) और आम इस्राएलियों का क्या? अगर वे किसी कारण से आनुष्ठानिक रूप से अशुद्ध बन गए, तो जब तक वे शुद्धिकरण की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते, तब तक उन्हें उपासना में हिस्सा लेने से रोका जाता था। (गिन्ती १९:११-२२) इन सभी बातों से इस बात पर बल दिया गया कि पवित्र परमेश्वर यहोवा की उपासना करनेवालों से शारीरिक स्वच्छता अपेक्षित है।
१५. पशु बलि अब और ज़रूरी क्यों नहीं हैं, परन्तु कौनसे प्रश्न उठाए गए हैं?
१५ यह सच है कि यहोवा के लोगों को आज किसी पार्थिव मंदिर में पशु बलि चढ़ाने का कोई हुक़्म नहीं है। व्यवस्था के अंतर्गत जो बलि चढ़ाए जाते थे, उनके स्थान पर ‘एक ही बार बलिदान चढ़ाया गया यीशु मसीह की देह’ है। (इब्रानियों १०:८-१०) हम “पिता का भजन आत्मा और सच्चाई से” करते हैं। (यूहन्ना ४:२३, २४) पर क्या इसका यह मतलब है कि हमारे पवित्र परमेश्वर यहोवा को चढ़ाने के लिए हमारे पास कोई बलि नहीं हैं? और क्या स्वच्छता हमारे लिए किसी रीति से कम अपेक्षित है, जितना कि इस्राएलियों के लिए था?
१६. १९१८ से मलाकी ३:३, ४ की भविष्यवाणी अभिषिक्त मसीहियों पर किस तरह पूरी हुई है, और वे यहोवा को कौनसे ग्राह्य बलिदान चढ़ा सकते हैं?
१६ मलाकी की भविष्यवाणी से यह प्रकट होता है कि अन्त के समय में इस पृथ्वी पर जीनेवाले अभिषिक्त मसीहियों को मंदिर की सेवा के लिए परिष्कृत, या शुद्ध किया जाता। इतिहास से यह दिखायी देता है कि यह परिष्कृति १९१८ में शुरू हुई। १९१९ से अभिषिक्त शेष जन “निश्चय ही यहोवा की भेंट धर्म से चढ़ानेवाले लोग” बन गए हैं, और उनकी भेंट “यहोवा को भाएगी।” (मलाकी ३:३, ४, न्यू.व.) इस प्रकार, वे “ऐसे आत्मिक बलिदान” चढ़ा सके हैं “जो यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर को ग्राह्य हैं।” (१ पतरस २:५) प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हम उसके द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिए सर्वदा चढ़ाया करें।”—इब्रानियों १३:१५.
१७. हालाँकि “बड़ी भीड़” शाही याजकत्व का एक हिस्सा नहीं, उन्हें क्यों शारीरिक, मानसिक, नैतिक, और आध्यात्मिक रूप से स्वच्छ रहना चाहिए?
१७ हालाँकि “बड़ी भीड़” को अभिषिक्त शेष जनों के जैसे मंदिर में याजकीय सेवा के लिए नहीं बुलाया गया है, वे यहोवा की आत्मिक मन्दिर के पार्थिव आंगन में “दिन रात उस की सेवा कर” रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १०, १५) यह बात याद होगी कि ग़ैर-याजकीय इस्राएलियों को मिलापवाले तम्बू में, या, बाद में, मन्दिर में उपासना में हिस्सा लेने के लिए आनुष्ठानिक रूप से स्वच्छ रहना था। उसी तरह, अगर वे मन्दिर में सेवा करना और “उसके नाम का अंगीकार” करके ‘परमेश्वर के लिए एक स्तुतिरूपी बलिदान चढ़ाने’ में हिस्सा लेना चाहते हैं, तो अन्य भेड़ों की बड़ी भीड़ को शारीरिक, मानसिक, नैतिक, तथा आध्यात्मिक रूप से स्वच्छ रहना चाहिए।
क्षेत्र सेवकाई और सभाओं के लिए साफ़-सुथरे और सुव्यवस्थित
१८. सार्वजनिक प्रचार कार्य में कार्य करते समय और सभाओं में उपस्थित होते समय, निजी स्वच्छता, पोशाक, और जूतों के विषय में हमें किस बात पर ध्यान देना चाहिए?
१८ प्रायोगिक शब्दों में इसका क्या अर्थ है? इसका मतलब है कि शारीरिक रूप से साफ़ हुए और उचित कपड़े पहने हुए बिना, हमारा घर-घर की सेवकाई में, रास्तों पर या किसी के घर में यहोवा का प्रतिनिधित्व करना पूरी तरह से अनुचित और यहोवा को निरादरपूर्ण होगा। इसलिए, हमें ऐसे मामलों में लापरवाह नहीं होना चाहिए। हमें इन बातों पर अपना सुविचारित ध्यान जमाना चाहिए, ताकि हम ऐसी रीति से कार्य करें जो यहोवा का नाम धारण करनेवाले सेवकों के लिए उचित है। हमारे कपड़ों का क़ीमती होना ज़रूरी नहीं, लेकिन वह साफ़, सुरुचिपूर्ण और शालीन होना ज़रूरी है। हमारे जूतों की अवस्था भी अच्छी होनी चाहिए और वे अच्छे दिखने चाहिए। उसी तरह, सभी सभाओं में, मण्डली की बुक स्टडी में भी, हमारा शरीर साफ़ होना चाहिए, और हमारा पोशाक सुव्यवस्थित तथा उचित होना चाहिए।
१९. मसीही सेवकों के रूप में हमारे साफ़-सुथरे और सुव्यवस्थित दिखाव-बनाव के फलस्वरूप कौनसे आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं?
१९ प्रचार कार्य में काम करते समय और हमारी सभाओं में हमारा साफ़-सुथरा और सुव्यवस्थित दिखाव-बनाव एक तरीक़ा है जिस से हम “हमारे उद्धारकर्त्ता परमेश्वर के उपदेश को शोभा दे” सकते हैं। (तीतुस २:१०) स्वयं यही एक गवाही है। अनेक लोग हमारी स्वच्छता और सुव्यवस्था से प्रभावित हुए हैं, और इस से वे एक धर्मी नए आकाश और एक साफ़ की गयी नयी पृथ्वी बनाने के लिए यहोवा के अद्भुत उद्देश्यों के संबंध में हमारा संदेश सुनने तक प्रेरित हुए हैं।—२ पतरस ३:१३.
२० तन और मन में स्वच्छ रहने से और कौनसा अच्छा फल प्राप्त होता है?
२० जैसे-जैसे यहोवा की साफ़ नयी व्यवस्था निकट आती है, वैसे-वैसे हम सब को अपने आप की जाँच करनी चाहिए, यह देखने के लिए कि क्या हमें अपनी विचारणा या अपनी निजी आदतों में कोई सामंजस्य लाना ज़रूरी है या नहीं। पौलुस ने लिखा: “मैं तुम्हारी शारीरिक दुर्बलता के कारण मनुष्यों की रीति पर कहता हूँ, जैसे तुम ने अपने अंगों को कुकर्म के लिए अशुद्धता और कुकर्म के दास करके सौंपा था, वैसे ही अब अपने अंगों को पवित्रता के लिए धर्म के दास करके सौंप दो।” (रोमियों ६:१९) आध्यात्मिक स्वच्छता और शारीरिक स्वच्छता अब भी अच्छा फल उत्पन्न करती हैं, ऐसा “फल . . . जिस से पवित्रता प्राप्त होती है, और [जिसका] अन्त अनन्त जीवन” होगा। (रोमियों ६:२२) इसलिए, आइए हम तन और मन में शुद्ध रहें, जब हम ‘अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाते हैं।’—रोमियों १२:१.
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