‘शरीर में कांटे’ का सामना करना
“मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है।”—2 कुरिन्थियों 12:9.
1, 2. (क) परीक्षाओं और मुश्किलों के दौरान हमें क्यों घबरा नहीं जाना चाहिए? (ख) परीक्षाएँ आने पर भी हम क्यों हिम्मत रख सकते हैं?
“जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।” (2 तीमुथियुस 3:12) ऐसा क्यों? क्योंकि शैतान ने यह दावा किया है कि इंसान सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए परमेश्वर की सेवा करता है और वह अपनी बात साबित करने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है। यीशु ने एक बार अपने वफादार प्रेरितों को चिताया था: “शैतान ने तुम लोगों को मांग लिया है कि गेहूं की नाईं फटके।” (लूका 22:31) यीशु अच्छी तरह जानता था कि परमेश्वर, शैतान को इजाज़त देता है ताकि वह हमें मुश्किल-से-मुश्किल हालात में डालकर हमारी परीक्षा करे। बेशक, इसका यह मतलब नहीं कि हमारी ज़िंदगी में आनेवाली हर तकलीफ, सीधे शैतान या उसके पिशाचों की ओर से है। (सभोपदेशक 9:11) मगर इसमें शक नहीं कि शैतान अपना हर हथकंडा इस्तेमाल करके हमारी खराई तोड़ने की ताक में बैठा है।
2 बाइबल बताती है कि जब हम पर परीक्षाएँ आती हैं तो हमें घबरा नहीं जाना चाहिए। हम पर चाहे जो भी बीते, वह कोई अनोखी या नयी बात नहीं है। (1 पतरस 4:12) दरअसल, “[हमारे] भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुख भुगत रहे हैं।” (1 पतरस 5:9) आज, शैतान परमेश्वर के हर सेवक पर भारी दबाव डाल रहा है। हम पर ज़्यादा-से-ज़्यादा काँटों जैसी समस्याएँ लाकर हमें यातना देने में शैतान को खुशी मिलती है। ऐसा करने के लिए वह अपनी दुनिया का इस तरह इस्तेमाल करता है कि वह ‘हमारे शरीर में रहनेवाले कांटों’ के साथ या तो और भी काँटे जोड़ देती है या फिर उन्हें गहराई तक चुभोती रहती है। (2 कुरिन्थियों 12:7) फिर भी, शैतान के हमले हमारी खराई तोड़ने में नाकाम हो सकते हैं। जिस तरह यहोवा हमारे लिए परीक्षा सहने का ‘उपाय करता है,’ उसी तरह वह उन तकलीफों का सामना करने के लिए भी हमें उपाय दिखाएगा जो हमारे शरीर में काँटों जैसी हैं।—1 कुरिन्थियों 10:13, NHT.
काँटे का सामना कैसे किया जाए
3. जब पौलुस ने यहोवा से बिनती की कि वह उसके शरीर से काँटा निकाल दे, तो यहोवा ने क्या जवाब दिया?
3 प्रेरित पौलुस ने परमेश्वर से गिड़गिड़ाकर बिनती की कि वह उसके शरीर से काँटा निकाल दे। “इस के विषय में मैं ने प्रभु से तीन बार बिनती की, कि मुझ से यह दूर हो जाए।” पौलुस की इस बिनती का यहोवा ने क्या जवाब दिया? “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है।” (2 कुरिन्थियों 12:8, 9) आइए हम यहोवा के इस जवाब की बारीकी से जाँच करें और देखें कि यह हमें उन समस्याओं का सामना करने में कैसे मदद दे सकती है जो काँटों की तरह हमें दर्द देती हैं।
4. पौलुस ने यहोवा के अनुग्रह से किन तरीकों से लाभ पाया था?
4 ध्यान दीजिए कि परमेश्वर ने पौलुस को उस अनुग्रह के लिए एहसानमंद होने को कहा जो मसीह के ज़रिए उस पर दिखाया गया था। देखा जाए तो पहले ही पौलुस को ढेरों आशीषें मिली थीं। वह पहले यीशु के शिष्यों का कट्टर विरोधी था मगर यहोवा ने उस पर प्यार दिखाते हुए उसे यीशु का एक शिष्य बनने का सुअवसर दिया था। (प्रेरितों 7:58; 8:3; 9:1-4) इसके बाद, यहोवा ने पौलुस पर दया करके उसे कई रोमांचक काम और खास ज़िम्मेदारियाँ दीं। इससे हमें जो सबक सीखना है, वह बिलकुल साफ है। बदतर-से-बदतर हालात में भी हमारे पास ऐसी कई आशीषें होती हैं जिनके लिए हम शुक्रगुज़ार हो सकते हैं। परीक्षाएँ आने पर हमें यहोवा की अपार भलाई को कभी नहीं भूलना चाहिए।—भजन 31:19.
5, 6. (क) यहोवा ने पौलुस को कैसे सिखाया कि परमेश्वर की सामर्थ “निर्बलता में सिद्ध होती है”? (ख) पौलुस की मिसाल से यह कैसे साबित हुआ कि शैतान झूठा है?
5 यहोवा का अनुग्रह हमारे लिए बहुत है, यह बात एक और तरीके से भी साबित होती है। अपनी परीक्षाओं का सामना करने के लिए हमें परमेश्वर की शक्ति से बढ़कर किसी और चीज़ की ज़रूरत नहीं है। (इफिसियों 3:20) यहोवा ने पौलुस को सिखाया कि उसकी सामर्थ “निर्बलता में सिद्ध होती है।” कैसे? उसने पौलुस पर प्यार दिखाते हुए उसे अपनी परीक्षा का सामना करने की पूरी ताकत दी। जब पौलुस ने धीरज धरा और यहोवा पर पूरा भरोसा रखा तो यह सब पर ज़ाहिर हुआ कि इस कमज़ोर और पापी इंसान के मामले में परमेश्वर की सामर्थ जीत पा रही है। अब गौर कीजिए कि इसका शैतान पर क्या असर पड़ा होगा, जो दावा करता है कि इंसान सिर्फ तभी परमेश्वर की सेवा करते हैं जब उनकी ज़िंदगी खुशहाल हो और उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो। पौलुस की खराई ने उस निंदक के मुँह पर मानो एक तमाचा मारा!
6 पौलुस पहले, परमेश्वर के खिलाफ लड़ने में शैतान का साथी था। वह मसीहियों पर लगातार सितम ढानेवाला एक कट्टर फरीसी था। एक ऊँचे खानदान में पैदा होने की वजह से उसने ज़रूर ऐशो-आराम की ज़िंदगी बितायी होगी। लेकिन अब वह “प्रेरितों में सब से छोटा” बनकर यहोवा और मसीह की सेवा कर रहा था। (1 कुरिन्थियों 15:9) इस हैसियत से वह पूरी नम्रता के साथ पहली सदी के शासी निकाय के अधीन रहकर काम करता था। साथ ही, वह अपने शरीर के काँटे के बावजूद धीरज धर रहा था। शैतान यह देखकर हाथ मलता रह गया होगा कि जीवन की परीक्षाएँ पौलुस का जोश ठंडा नहीं कर पायीं। पौलुस ने इस आशा को कभी अपनी नज़रों से ओझल नहीं होने दिया कि उसे मसीह के स्वर्गीय राज्य में शासन करने का मौका मिलेगा। (2 तीमुथियुस 2:12; 4:18) कोई भी काँटा, चाहे वह कितना ही दर्दनाक क्यों न हो, पौलुस का जोश कम नहीं कर सका। आइए हम भी अपना जोश यूँ ही बढ़ाते रहें! यहोवा परीक्षाओं के दौरान सहने की ताकत देकर, हमें भी शैतान को झूठा साबित करने का खास सम्मान देता है।—नीतिवचन 27:11.
यहोवा के इंतज़ाम बेहद ज़रूरी
7, 8. (क) यहोवा आज अपने सेवकों को किसके ज़रिए सामर्थ देता है? (ख) शरीर में काँटे का सामना करने के लिए हर रोज़ बाइबल पढ़ना और उसका अध्ययन करना क्यों इतना ज़रूरी है?
7 आज यहोवा, वफादार मसीहियों को अपनी पवित्र आत्मा, अपने वचन और मसीही भाईचारे के ज़रिए सामर्थ देता है। प्रेरित पौलुस की तरह हम भी प्रार्थना के ज़रिए अपना सारा बोझ यहोवा पर डाल सकते हैं। (भजन 55:22) यह सच है कि परमेश्वर हमें परीक्षाओं से पूरी तरह छुटकारा नहीं दिला देगा, लेकिन वह हमें उनका सामना करने की बुद्धि ज़रूर देगा ताकि हम ऐसी परीक्षाएँ भी सह सकें जो बहुत कठिन होती हैं। यहोवा हमें “असीम सामर्थ” देकर हमें सहनशक्ति भी दे सकता है ताकि हम धीरज धर सकें।—2 कुरिन्थियों 4:7.
8 ऐसी मदद पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें परमेश्वर के वचन का पूरी लगन से अध्ययन करना चाहिए क्योंकि उसी में हमें उसकी ओर से शांति के पक्के वादे मिलते हैं। (भजन 94:19) बाइबल में हम पढ़ते हैं कि परमेश्वर के सेवकों ने उससे मदद की भीख माँगते वक्त कैसे दिल छू लेनेवाले शब्द कहे थे। और यहोवा ने जवाब में उनसे जो कहा और कैसे उनको तसल्ली दी, उस पर हमें गहराई से सोचना चाहिए। परमेश्वर के वचन के अध्ययन से हम काफी मज़बूत होंगे ताकि “असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर ही की ओर से ठहरे।” जिस तरह अपने शारीरिक विकास और ताकत के लिए हमें हर रोज़ खाना खाने की ज़रूरत होती है, उसी तरह हमें हर रोज़ परमेश्वर के वचनों से खुद को पोषित करते रहना चाहिए। क्या हम ऐसा करते हैं? अगर हम ऐसा करें तो हम “असीम सामर्थ” पाएँगे जिससे हमें ऐसी तकलीफें सहने में मदद मिलेगी जो आज हमें काँटों की तरह चुभ रही हैं।
9. प्राचीन ऐसे लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं जो समस्याओं का सामना कर रहे हैं?
9 परमेश्वर का भय माननेवाले मसीही प्राचीन, संकट में “आंधी से छिपने का स्थान” और समस्याओं की “बौछार से आड़” साबित हो सकते हैं। जो प्राचीन चाहते हैं कि ईश्वर-प्रेरणा से दिया गया यह विवरण उन पर ठीक बैठे, वे नम्रता और सच्चे दिल से यहोवा से बिनती करते हैं कि वह उन्हें “सीखनेवालों की जीभ” दे, ताकि वे सही शब्द कहकर दुःखी लोगों को सँभालना जानें। जब हम मुश्किलों के दौर से गुज़रते हैं तो ऐसे वक्त पर प्राचीनों के मुँह से निकलनेवाले शब्द हलकी बरसात की तरह हमारे मन को ठंडक और शांति देते हैं। प्राचीन, अपने शब्दों के ज़रिए ‘हताश प्राणियों को सांत्वना देकर’ (NW) वाकई अपने उन आध्यात्मिक भाई-बहनों की हिम्मत बँधाते हैं जो अपने शरीर में काँटे सहते-सहते पस्त हो रहे हैं या निराश हो रहे हैं।—यशायाह 32:2; 50:4; 1 थिस्सलुनीकियों 5:14.
10, 11. परमेश्वर के सेवक, कठिन परीक्षाओं से गुज़रनेवालों का कैसे हौसला बढ़ा सकते हैं?
10 यहोवा के सभी सेवक उसके मसीही परिवार का हिस्सा हैं जो एकता की डोरी में बंधा है। जी हाँ, हम सभी “आपस में एक दूसरे के अंग” हैं और ‘हम पर एक दूसरे से प्रेम रखने का फर्ज़ है।’ (रोमियों 12:5; 1 यूहन्ना 4:11, हिन्दुस्तानी बाइबल) हम यह फर्ज़ कैसे पूरा करते हैं? पहला पतरस 3:8 के अनुसार हम विश्वास में अपने साथ संबंध रखनेवाले सभी लोगों से ‘भाईचारे की प्रीति रखने और करुणामयी और नम्र’ होने के ज़रिए ऐसा करते हैं। और जो लोग शरीर में किसी बेहद दर्दनाक काँटे का सामना कर रहे हैं, फिर चाहे वे जवान हों या बूढ़े, उनके लिए हम सभी खास लिहाज़ दिखा सकते हैं। कैसे?
11 हमें उन भाई-बहनों का दर्द समझने की कोशिश करनी चाहिए। अगर हम बेरुखे होंगे, तो हम अनजाने में शायद उनका दुःख और भी बढ़ा देंगे। यह जानकर कि वे परीक्षाओं से गुज़र रहे हैं, हमें काफी समझदारी से काम लेना चाहिए कि हम उनसे क्या बोलते हैं, कैसे बोलते हैं और उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं। अगर हम अच्छी बातें बताकर उनका हौसला मज़बूत करेंगे, तो उनकी पीड़ा कम हो सकती है, फिर चाहे उन्हें किसी भी तरह का काँटा चुभ रहा हो। इस तरह हम उनके लिए शांति का कारण हो सकते हैं।—कुलुस्सियों 4:11.
कुछ वफादार जन सामना करने में कैसे सफल हुए
12-14. (क) एक मसीही ने कैंसर से जुड़ी तकलीफें सहने के लिए क्या किया? (ख) इस स्त्री के आध्यात्मिक भाई-बहनों ने कैसे उसकी मदद की और उसका हौसला मज़बूत किया?
12 जैसे-जैसे हम इन अंतिम दिनों की समाप्ति पर पहुँचते हैं, ‘पीड़ाएं’ और भी बढ़ती जा रही हैं। (मत्ती 24:8) तो ज़ाहिर है कि धरती पर रहनेवाले तकरीबन हर इंसान को और खासकर यहोवा की इच्छा पूरी करनेवाले उसके वफादार सेवकों को परीक्षाएँ सताएँगी। उदाहरण के लिए, पूरे समय की सेवा करनेवाली एक मसीही के अनुभव पर गौर कीजिए। उसकी डॉक्टरी जाँच करने पर पता चला कि उसे कैंसर है और ऑपरेशन करके उसकी लार और लसीका ग्रंथियों को निकालना होगा। इस बात की खबर मिलते ही बहन और उसके पति ने यहोवा से प्रार्थना की। उन्होंने काफी देर तक यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती की। बाद में, बहन ने कहा कि प्रार्थना करने पर उन दोनों को अनोखी किस्म की शांति मिली। फिर भी बहन की हालत कभी ठीक रहती तो कभी खराब हो जाती थी, खासकर इलाज से अपने शरीर पर पड़े बुरे असर का सामना करते वक्त।
13 अपने हालात का सामना करने के लिए, इस बहन ने कैंसर के बारे में ज़्यादा-से-ज़्यादा जानकारी हासिल करने की कोशिश की। उसने अपने डॉक्टरों से सलाह माँगी। प्रहरीदुर्ग, सजग होइए! और दूसरे मसीही प्रकाशनों में दी गयी जीवन-कहानियाँ पढ़कर उसने सीखा कि इस बीमारी को सह रहे दूसरे लोगों ने अपने जज़्बातों पर कैसे काबू पाया। उसने बाइबल के ऐसे वृत्तांत भी पढ़े जो दिखाते हैं कि यहोवा अपने लोगों को मुसीबत के वक्त सँभालने की ताकत रखता है और ऐसी और भी फायदेमंद जानकारी उसने पायी।
14 निराशा का सामना करने के बारे में बतानेवाले एक लेख में ये बुद्धि भरे शब्द दिए थे: “जो औरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है।” (नीतिवचन 18:1) इसलिए उस लेख ने यह सलाह दी: “हमें एकांतवासी नहीं बन जाना चाहिए।”a बहन कहती है: “बहुतों ने मुझे बताया कि वे मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं; दूसरों ने मुझे फोन किया। दो प्राचीन मेरी खैरियत जानने के लिए मुझे लगातार फोन करते रहे। मुझे फूल और शुभकामना के ढेरों कार्ड मिले। कुछ लोग तो मेरे लिए खाना भी बनाते थे। और कइयों ने मुझे इलाज के लिए अस्पताल ले जाने की इच्छा ज़ाहिर की।”
15-17. (क) दुर्घटनाओं से पैदा हुई समस्याओं का एक मसीही ने कैसे सामना किया? (ख) कलीसिया के भाई-बहनों ने उसकी मदद कैसे की?
15 अमरीका के न्यू मेक्सिको में रहनेवाली एक बहन, जो लंबे समय से यहोवा की सेवा कर रही थी, दो बार गाड़ी की दुर्घटना का शिकार हुई। दरअसल वह 25 से भी ज़्यादा सालों से आर्थ्राइटिस से जूझ रही थी। अब दुर्घटना में उसकी गर्दन और कंधों पर चोट लगने की वजह से आर्थ्राइटिस ने और भी गंभीर रूप ले लिया। वह कहती है: “मुझे अपना सिर ऊपर उठाने और दो किलो से ज़्यादा वज़न उठाने में बहुत ज़ोर का दर्द होता था। लेकिन मैंने यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती की जिससे मुझे सहने की ताकत मिली। और प्रहरीदुर्ग के जिन लेखों का हम अध्ययन करते थे, वे भी मेरे लिए काफी मददगार साबित हुए। एक लेख में मीका 6:8 पर चर्चा की गयी थी और उसमें बताया कि परमेश्वर के साथ नम्रता से चलने का मतलब है, अपनी शारीरिक और दिमागी कमज़ोरियों को कबूल करना। इससे मुझे यह समझने में मदद मिली कि मेरे हालात चाहे जो भी हों और अगर मैं सेवकाई में जितना चाहूँ, उतना न कर पाऊँ, तो भी मुझे हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। सबसे ज़रूरी बात है, यहोवा की सेवा सही इरादे से करना।”
16 वह बहन यह भी कहती है: “प्राचीन, सभाओं और प्रचार में भाग लेने के लिए मेरी मेहनत की हमेशा सराहना करते थे। छोटे बच्चे मुझे गले लगाते थे। पायनियर मेरे साथ बहुत धीरज से पेश आते, जिस दिन मैं बहुत बीमार रहने की वजह से प्रचार में नहीं जा पाती, उस दिन वे अपने शॆड्यूल में फेरबदल करते थे। जब मौसम खराब रहता था, तो वे मेरा लिहाज़ करते हुए मुझे पुनःभेंट या अपने बाइबल अध्ययनों में ले जाते थे। मैं किताबों की बैग नहीं उठा सकती थी, इसलिए प्रचार में जाते वक्त भाई-बहन अपनी बैग में मेरे साहित्य रखते थे।”
17 ध्यान दीजिए कि कलीसिया के प्राचीनों और बाकी भाई-बहनों ने इन दोनों बहनों की किस तरह मदद की, जो काँटों जैसी बीमारियों से जूझ रही थीं। उन्होंने प्यार से और व्यावहारिक तरीकों से उन बहनों की मदद की ताकि उनकी आध्यात्मिक, शारीरिक और भावात्मक ज़रूरतें पूरी की जा सकें। क्या इससे आपके अंदर भी उन भाई-बहनों की मदद करने की इच्छा नहीं पैदा होती जो समस्याएँ सह रहे हैं? जवानो, आप भी, अपनी कलीसिया के उन भाई-बहनों के लिए मददगार हो सकते हैं जो अपने शरीर में काँटों का सामना कर रहे हैं।—नीतिवचन 20:29.
18. प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! में प्रकाशित होनेवाली जीवन-कहानियों से हम कैसे हौसला पा सकते हैं?
18 प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! में ऐसे कई साक्षियों की जीवन-कहानियाँ और अनुभव छापे गए हैं, जिन्होंने ज़िंदगी में समस्याओं का सामना किया था और अभी भी कर रहे हैं। अगर आप नियमित तौर पर ऐसे लेख पढ़ेंगे, तो आप पाएँगे कि संसार भर में रहनेवाले आपके बहुत-से भाई-बहनों ने आर्थिक कठिनाइयाँ झेली हैं, दूसरों ने विपत्तियों में अपने अज़ीज़ों की मौत का गम सहा है और युद्ध के खतरनाक हालात सहे हैं। कुछ लोगों को ऐसी बीमारियाँ सता रही हैं जिनकी वजह से वे काफी कमज़ोर हो गए हैं। बहुत-से लोग रोज़मर्रा के ऐसे छोटे-मोटे काम तक नहीं कर पाते जो सेहतमंद लोगों के लिए कोई बड़ी बात नहीं है। उनकी बीमारियों से उनकी कड़ी परीक्षा होती है, खासकर ऐसे वक्त पर जब दिल में जोश रहते हुए भी वे मसीही कामों में पूरी तरह हिस्सा नहीं ले पाते। वे उन छोटे और बड़े, सभी भाई-बहनों के कितने आभारी हैं, जो उनकी मदद करते हैं और उनका हौसला मज़बूत करते हैं!
धीरज खुशी लाता है
19. पौलुस, काँटों जैसी परीक्षाओं और कमज़ोरियों के बावजूद कैसे खुश रह सका?
19 जब परमेश्वर ने पौलुस की हिम्मत बँधायी तो वह बहुत खुश हुआ। पौलुस ने कहा: “मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर छाया करती रहे। इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्न हूं; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं।” (2 कुरिन्थियों 12:9, 10) अपनी ज़िंदगी के तजुर्बे से पौलुस पूरे भरोसे के साथ कह सका: “यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं। मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में मैं ने तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।”—फिलिप्पियों 4:11-13.
20, 21. (क) “अनदेखी वस्तुओं” पर मनन करने से हमें क्यों खुशी मिलेगी? (ख) ऐसी कुछ “अनदेखी वस्तुएं” क्या हैं जिन्हें आप धरती पर फिरदौस में देखने की उम्मीद करते हैं?
20 इसलिए हमारे शरीर में चाहे जो भी काँटा हो, उसे अगर हम धीरज से सहते रहें, तो हमें सबके सामने यह साबित करने में बड़ी खुशी होगी कि यहोवा की सामर्थ हमारी कमज़ोरी में सिद्ध हो रही है। पौलुस ने लिखा: “हम हियाव नहीं छोड़ते . . . हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है। क्योंकि हमारा पल भर का हलका सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है। और हम तो . . . अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि . . . अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं।”—2 कुरिन्थियों 4:16-18.
21 आज यहोवा के ज़्यादातर लोग धरती पर एक फिरदौस में जीने और वादा की गयी आशीषें पाने की उम्मीद करते हैं। आज हमारे लिए वे आशीषें “अनदेखी” हो सकती हैं। लेकिन वह समय जल्द आ रहा है जब हम उन आशीषों को खुद अपनी आँखों से देखेंगे, जी हाँ, हम सदा तक उनका आनंद लेते रहेंगे। उनमें से एक आशीष यह होगी कि हमें फिर कभी काँटे जैसी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा! परमेश्वर का पुत्र ‘शैतान के कामों को नाश करेगा’ और ‘जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, उसे निकम्मा कर देगा।’—1 यूहन्ना 3:8; इब्रानियों 2:14.
22. हमारा भरोसा और इरादा क्या होना चाहिए?
22 इसलिए हमारे शरीर को चाहे जो भी काँटा दुःख देता हो, आइए हम उसका सामना करते रहें। पौलुस की तरह हम यहोवा से मिलनेवाली शक्ति से ऐसा कर पाएँगे, जो हमें हमेशा सामर्थ देता रहता है। जब हम धरती पर फिरदौस में जीएँगे, तो हम अपने परमेश्वर, यहोवा को उसके सभी उपकारों के लिए हर दिन धन्य कहा करेंगे।—भजन 103:2.
[फुटनोट]
a जून 8, 2000 की सजग होइए! का लेख, “बाइबल का दृष्टिकोण: निराशा का सामना कैसे करें” देखिए।
आप क्या जवाब देंगे?
• शैतान, सच्चे मसीहियों की खराई तोड़ने की कोशिश क्यों और कैसे करता है?
• यहोवा की सामर्थ कैसे “निर्बलता में सिद्ध होती है”?
• प्राचीन और बाकी भाई-बहन ऐसे लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं, जो अपनी समस्याओं को लेकर दुःखी हैं?
[पेज 18 पर तसवीर]
पौलुस ने तीन बार परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह उसके शरीर से काँटा निकाल दे