बाइबल की किताब नंबर 47—2 कुरिन्थियों
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: मकिदुनिया
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 55
सामान्य युग 55 का वह समय था, जब शायद गर्मियों के दिन खत्म होने पर थे या पतझड़ शुरू होनेवाली थी। कुरिन्थुस कलीसिया में अभी-भी कुछ मसले ऐसे थे, जो प्रेरित पौलुस को परेशान कर रहे थे। उसे कुरिन्थुस के मसीहियों को पहली पत्री लिखे ज़्यादा वक्त नहीं हुआ था। उस पत्री के लिखे जाने के बाद, तीतुस को कुरिन्थुस भेजा गया था ताकि यहूदिया के पवित्र जनों के लिए दान इकट्ठा किया जा सकें। और शायद उसे यह भी देखने के लिए भेजा गया हो कि पौलुस की पहली पत्री का कुरिन्थुस के मसीहियों पर क्या असर हुआ। (2 कुरि. 8:1-6; 2:13) तो फिर, उन्होंने कैसा रवैया दिखाया? जब तीतुस वापस मकिदुनिया आया, तब उसने पौलुस को अच्छी रिपोर्ट दी। उसने बताया कि पत्री पढ़कर कुरिन्थुस के मसीहियों को अपनी गलतियों पर बड़ा अफसोस हुआ और उन्होंने पश्चाताप किया। पौलुस को यह सुनकर कितनी खुशी हुई होगी! कुरिन्थुस के अपने प्यारे मसीही भाइयों के लिए उसके दिल में और भी प्यार उमड़ने लगा होगा।—7:5-7; 6:11.
2 इसलिए, पौलुस ने उन्हें एक और पत्री लिखी। दिल को छू जानेवाली इस दमदार पत्री को मकिदुनिया में लिखा गया था और शायद तीतुस के हाथों भिजवाया गया था। (9:2, 4; 8:16-18, 22-24) पौलुस ने कुरिन्थुस को दूसरी पत्री क्यों लिखी? उसे इस बात की चिंता सता रही थी कि कलीसिया में ‘बड़े से बड़े प्रेरित’ उठ खड़े हुए थे, जिन्हें उसने “झूठे प्रेरित, और छल से काम करनेवाले” भी कहा था। (11:5, 13, 14) इन प्रेरितों से कुरिन्थुस की नयी कलीसिया को आध्यात्मिक खतरा था। इतना ही नहीं, उन्होंने पौलुस के प्रेरित होने के अधिकार पर भी उँगली उठायी थी। इसलिए ऐन मौके पर पौलुस की इस दूसरी पत्री से कलीसिया को बहुत मदद मिली।
3 गौर कीजिए कि पौलुस ने कहा: “मैं तीसरी बार तुम्हारे पास आने को तैयार हूं।” (2 कुरि. 12:14; 13:1) जब पौलुस ने अपनी पहली पत्री लिखी, तब उसने दूसरी बार कुरिन्थुस जाने की योजना बनायी थी। हालाँकि वह तैयार था मगर “दूसरी बार” कुरिन्थुस जाने की उसकी ख्वाहिश अधूरी रह गयी। (1 कुरि. 16:5; 2 कुरि. 1:15, NHT) दरअसल उस वक्त तक पौलुस सिर्फ एक ही बार कुरिन्थुस गया था। वह सा.यु 50-52 की बात थी, जब वह वहाँ 18 महीने रहा था और उसने एक मसीही कलीसिया शुरू की थी। (प्रेरि. 18:1-18) लेकिन दूसरी बार कुरिन्थुस जाने की उसकी ख्वाहिश बाद में जाकर पूरी हुई। जब वह शायद सा.यु. 56 में, तीन महीने के लिए यूनान में था, तब उसने कुछ समय कुरिन्थुस में भी बिताए थे और वहीं से उसने रोमियों को अपनी पत्री लिखी थी।—रोमि. 16:1, 23; 1 कुरि. 1:14.
4 दूसरा कुरिन्थियों को हमेशा से पहला कुरिन्थियों की पत्री के साथ गिना जाता है। और इसे पौलुस की दूसरी पत्रियों के साथ-साथ बाइबल के संग्रह का हिस्सा मानना जाता है। पहली पत्री की तरह दूसरी पत्री से भी हमें कुरिन्थुस कलीसिया के अंदर का हाल मालूम होता है। साथ ही, पौलुस ने ईश्वर-प्रेरणा से उन्हें और हमें जो सलाहें दी थीं, उन पर गौर करने से हमें फायदा हो सकता है।
क्यों फायदेमंद है
18 दूसरा कुरिन्थियों में पौलुस ने मसीही सेवा के लिए जो कदर ज़ाहिर की, उसे पढ़कर हम उमंग से भर जाते हैं और हमें बहुत हौसला मिलता है। आइए हम भी पौलुस की तरह अपनी सेवा की दिलो-जान से कदर करें। जिस मसीही सेवक को परमेश्वर योग्य ठहराता है, वह परमेश्वर के वचन का सौदा नहीं करता। इसके बजाय, वह सच्चे दिल से परमेश्वर की सेवा करता है। वह किसी सिफारिश पत्र की बिनाह पर उसका सेवक नहीं ठहरता, बल्कि सेवा में जो फल लाता है, उससे परमेश्वर का सेवक ठहरता है। हालाँकि यह सेवा अपने आप में बहुत शानदार है, मगर इस वजह से उसे घमंड से नहीं फूल जाना चाहिए। परमेश्वर के सभी सेवक असिद्ध हैं और उन्हें सेवा का यह खज़ाना मिट्टी के नाज़ुक बरतनों में मिला है, ताकि यह साफ ज़ाहिर हो जाए कि उन्हें अपने बलबूते पर नहीं बल्कि परमेश्वर की शक्ति से सेवा में कामयाबी मिलती है। इसलिए परमेश्वर के सेवक बनने का सम्मान कबूल करने के लिए नम्रता की ज़रूरत होती है। वाकई यह परमेश्वर का अनुग्रह ही है कि हम “मसीह के राजदूत” के नाते सेवा करते हैं। इसलिए पौलुस की यह सलाह कितनी सही है: “परमेश्वर का अनुग्रह जो तुम पर हुआ, [उसे] व्यर्थ न रहने दो।”—2:14-17, बुल्के बाइबिल; 3:1-5; 4:7; 5:18-20; 6:1.
19 इसमें कोई दो राय नहीं कि पौलुस ने मसीही सेवकों के लिए बहुत ही बढ़िया आदर्श रखा। मिसाल के लिए, उसने ईश्वर-प्रेरित इब्रानी शास्त्र को अनमोल समझा और उसका अध्ययन किया। इसके अलावा, उसने बार-बार उससे हवाले दिए, उसकी तरफ इशारा किया और उसे लागू किया। (2 कुरि. 6:2, 16-18; 7:1; 8:15; 9:9; 13:1; यशा. 49:8; लैव्य. 26:12; यशा. 52:11; यहे. 20:41; 2 शमू. 7:14; होशे 1:10) यही नहीं, एक अध्यक्ष के नाते उसने झुंड के लिए गहरी परवाह दिखायी। उसने कहा: “जहाँ तक मेरी बात है, मेरे पास जो कुछ है, तुम्हारे लिए प्रसन्नता के साथ खर्च करूँगा यहाँ तक कि अपने आप को भी तुम्हारे लिए खर्च कर डालूँगा।” दर्ज़ रिकॉर्ड से साफ पता चलता है कि उसने भाइयों की खातिर अपने आपको पूरी तरह से दे दिया था। (2 कुरि. 12:15; ईज़ी-टू-रीड वर्शन; 6:3-10) उसने कुरिन्थुस कलीसिया को सिखाने, सलाह देने और मामलों को निपटाने के लिए दिन-रात मेहनत की थी। उसने उन मसीहियों को अंधकार के साथ दोस्ती करने से साफ-साफ खबरदार किया और कहा, “अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो।” पौलुस को उन मसीहियों से बेहद प्यार था और उसे उनकी परवाह भी थी, इसलिए वह नहीं चाहता था कि “जैसे सांप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया” था, वैसे ही उनके दिलो-दिमाग भी भ्रष्ट हो जाएँ। तभी उसने दिल की गहराइयों से उन्हें सलाह दी, “अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपने आप को जांचो।” पौलुस ने उन्हें उदार बनने के लिए उकसाया और बताया कि “परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।” खुद पौलुस ने उस दान के लिये जो वर्णन से बाहर है, यानी परमेश्वर के अपार अनुग्रह के लिए उसको एहसान भरे दिल से धन्यवाद दिया। सचमुच, पौलुस कुरिन्थुस के भाइयों से इतना प्यार करता था कि वे मानो उसके दिल में बस गए हों। उनकी खातिर पौलुस ने निःस्वार्थ भाव से खुद को दे दिया और यही एक जोशीले और चौकन्ने अध्यक्ष की पहचान होनी चाहिए। वाकई पौलुस आज हमारे लिए क्या ही बेहतरीन मिसाल है!—6:14; 11:3; 13:5; 9:7, 15; 3:2.
20 पौलुस हमारा ध्यान बिलकुल सही बात की तरफ दिलाता है। वह कैसे? वह बताता है कि “दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर” आज़माइश की घड़ी में हमें ज़रूरी हिम्मत देता है। वही ‘हमारे सब क्लेशों में हमें शान्ति’ देता है, ताकि हम धीरज धरते हुए उद्धार पा सकें और नयी दुनिया में जी सकें। पौलुस एक शानदार आशा की तरफ भी इशारा करता है। वह यह कि ‘परमेश्वर की ओर से स्वर्ग [में] एक ऐसा भवन होगा, जो हाथों से बना हुआ घर नहीं, परन्तु चिरस्थाई है।’ फिर वह कहता है, “सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं।” वाकई दूसरा कुरिन्थियों में उन लोगों को क्या ही बढ़िया आश्वासन दिया गया है जो पौलुस की तरह, स्वर्ग के राज्य के वारिस होंगे।—1:3, 4; 5:1, 17.