पवित्र शक्ति हमारे अंदर के एहसास के साथ मिलकर गवाही देती है
“परमेश्वर की पवित्र शक्ति हमारे अंदर के एहसास के साथ मिलकर गवाही देती है कि हम परमेश्वर के बच्चे हैं।”—रोमि. 8:16.
1-3. (क) किन घटनाओं से पिन्तेकुस्त का दिन बहुत खास हो गया? (ख) उन घटनाओं से वह बात कैसे पूरी हुई, जो शास्त्र में पहले से बता दी गयी थी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
रविवार की सुबह है और यरूशलेम के लोग उमंग से भरे हैं। आज बहुत खास दिन है। लोग पिन्तेकुस्त का त्योहार मना रहे हैं। यह पवित्र त्योहार गेहूँ की कटाई की शुरूआत में मनाया जाता है। यह सब्त का दिन भी है। महायाजक हर दिन सुबह चढ़ाए जानेवाले बलिदान मंदिर में चढ़ा चुका है। करीब नौ बजे जब वह दो खमीरी रोटियाँ चढ़ाने की तैयारी करता है, तो बड़ी चहल-पहल मच जाती है। यह चढ़ावा गेहूँ की फसल का पहला फल या पहला अनाज है। महायाजक ये रोटियाँ यहोवा के सामने अर्पित करने के लिए आगे-पीछे हिलाता है। यह ईसवी सन् 33 में पिन्तेकुस्त का दिन है।—लैव्य. 23:15-20.
2 सैकड़ों साल से, हर साल महायाजक हिलाकर दिया जानेवाला चढ़ावा चढ़ाता है। यह चढ़ावा बहुत खास घटना को दर्शाता है, जो ईसवी सन् 33 में पिन्तेकुस्त के दिन घटती है। यह घटना यीशु के 120 चेलों के साथ घटती है, जो यरूशलेम में एक ऊपरवाले कमरे में प्रार्थना कर रहे थे। (प्रेषि. 1:13-15) इस घटना के बारे में करीब 800 साल पहले भविष्यवक्ता योएल ने लिखा था। (योए. 2:28-32; प्रेषि. 2:16-21) आखिर वह खास घटना क्या थी?
3 प्रेषितों 2:2-4 पढ़िए। उस दिन परमेश्वर ने उन मसीहियों को अपनी पवित्र शक्ति देकर उनका अभिषेक किया। (प्रेषि. 1:8) फिर उनके आस-पास भीड़ इकट्ठी होने लगी और वे चेले उन शानदार बातों के बारे में बताने लगे, जो उन्होंने देखी और सुनी थीं। प्रेषित पतरस ने समझाया कि अभी-अभी क्या हुआ और जो हुआ, वह क्यों इतना अहम है। फिर उसने भीड़ से कहा, “पश्चाताप करो, और तुममें से हरेक अपने पापों की माफी के लिए यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले और तब तुम पवित्र शक्ति का मुफ्त वरदान पाओगे।” उसी दिन करीब 3,000 लोगों ने बपतिस्मा लिया और उन्हें भी पवित्र शक्ति मिली।—प्रेषि. 2:37, 38, 41.
4. (क) हमारे लिए पिन्तेकुस्त का दिन क्यों बहुत मायने रखता है? (ख) बहुत सालों पहले उसी दिन और कौन-सी अहम घटना घटी होगी? (‘और जानकारी’ देखिए।)
4 हर बार पिन्तेकुस्त के दिन चढ़ायी जानेवाली रोटियाँ और महायाजक किसे दर्शाते थे? महायाजक, यीशु को दर्शाता था और चढ़ायी जानेवाली रोटियाँ यीशु के अभिषिक्त चेलों को दर्शाती थीं। पापी इंसानों में से चुने गए अभिषिक्त चेलों को “पहले फल” कहा गया है। (याकू. 1:18) इन्हें परमेश्वर ने अपने बेटों के तौर पर कबूल किया है। साथ ही, उन्हें परमेश्वर के राज का हिस्सा होने के लिए चुना गया है, ताकि वे स्वर्ग में यीशु के साथ राजा बनकर राज करें। (1 पत. 2:9) यहोवा अपने राज के ज़रिए आज्ञा माननेवाले सभी इंसानों को आशीषें देगा। इसलिए भविष्य में हमारा घर चाहे यीशु के साथ स्वर्ग में हो या फिरदौस बनी इस धरती पर, हमारे लिए ईसवी सन् 33 में पिन्तेकुस्त का दिन बहुत मायने रखता है।[1]
जब किसी का अभिषेक होता है, तब क्या होता है?
5. हम कैसे जानते हैं कि जिनका अभिषेक होता है, वे सभी एक ही तरह से अभिषिक्त नहीं किए जाते?
5 जो चेले यरूशलेम में ऊपर के कमरे में इकट्ठा थे, वे उस दिन को कभी नहीं भूल पाए होंगे। उन सबके सिर पर आग की लपटें दिखायी दीं। यहोवा ने उन्हें दूसरी भाषा बोलने की काबिलीयत दी। उन्हें इस बात पर कोई शक नहीं था कि उन्हें पवित्र शक्ति से अभिषिक्त किया गया है। (प्रेषि. 2:6-12) लेकिन ऐसी अनोखी घटनाएँ सभी मसीहियों के साथ उस वक्त नहीं घटतीं, जब उन्हें अभिषिक्त किया जाता है। जैसे, बाइबल ऐसा कुछ नहीं बताती कि उस दिन यरूशलेम में बाद में जब हज़ारों लोग अभिषिक्त हुए, तो उनके सिर पर आग की लपटों जैसा कुछ दिखायी दिया हो। उनका अभिषेक तब हुआ जब उनका बपतिस्मा हुआ। (प्रेषि. 2:38) वहीं दूसरी तरफ, सभी मसीही अपने बपतिस्मे के समय अभिषिक्त नहीं होते। जैसे, सामरी लोगों का अपने बपतिस्मे के कुछ समय बाद अभिषेक हुआ था। (प्रेषि. 8:14-17) कुरनेलियुस और उसके घराने की बात करें तो वे बपतिस्मे से पहले ही अभिषिक्त हो गए थे।—प्रेषि. 10:44-48.
6. (क) सभी अभिषिक्त मसीहियों पर किसकी मुहर लगायी जाती है? (ख) इससे उन्हें किस बात का यकीन हो जाता है?
6 तो साफ ज़ाहिर है कि मसीहियों को अलग-अलग तरह से यह एहसास होता है कि वे अभिषिक्त हैं। कुछ मसीहियों को शायद तुरंत ही एहसास हो गया था कि यहोवा ने उन्हें अभिषिक्त किया है, जबकि दूसरों को कुछ समय बाद। लेकिन प्रेषित पौलुस ने समझाया कि हर एक के साथ क्या होता है। उसने कहा: “तुम्हारे विश्वास करने के बाद, उसी के ज़रिए तुम पर उस पवित्र शक्ति की मुहर लगायी गयी जिसका वादा किया गया था। यह पवित्र शक्ति हमें अपनी विरासत मिलने से पहले एक बयाने के तौर पर दी गयी है।” (इफि. 1:13, 14) यहोवा अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए उन मसीहियों को साफ-साफ बताता है कि उसने उन्हें स्वर्ग जाने के लिए चुना है। इस मायने में पवित्र शक्ति सभी अभिषिक्त मसीहियों के लिए “एक बयाने” की तरह है या उनके लिए इस बात की गारंटी है कि भविष्य में वे हमेशा तक स्वर्ग में जीएँगे, न कि धरती पर।—2 कुरिंथियों 1:21, 22; 5:5 पढ़िए।
7. स्वर्ग में अपना इनाम पाने के लिए हर अभिषिक्त मसीही को क्या करना चाहिए?
7 जब एक मसीही अभिषिक्त बनता है, तो क्या इसका यह मतलब है कि उसे इनाम ज़रूर मिलेगा? नहीं। उसे यह तो यकीन होता है कि वह स्वर्ग जाने के लिए चुना गया है, लेकिन उसे इनाम तभी मिलेगा, जब वह यहोवा का वफादार बना रहेगा। पतरस ने इस बात को कुछ इस तरह समझाया, “इसी वजह से भाइयो, तुम और भी बढ़कर अपने बुलावे और चुने जाने को खुद पक्का करने के लिए अपना भरसक करो। अगर तुम ये सब करते रहोगे, तो तुम किसी भी तरह से नाकाम न होगे। दरअसल, इस तरह तुम्हें हमारे प्रभु और उद्धारकर्त्ता यीशु मसीह के उस राज में बड़े शानदार तरीके से दाखिल किया जाएगा जो हमेशा तक कायम रहेगा।” (2 पत. 1:10, 11) इसलिए हर अभिषिक्त मसीही को कोई भी चीज़ यहोवा की सेवा के आड़े नहीं आने देना चाहिए। हालाँकि उसे स्वर्ग जाने का बुलावा मिला है, लेकिन अगर वह वफादार न रहे, तो उसे यह इनाम नहीं मिलेगा।—इब्रा. 3:1; प्रका. 2:10.
जिसका अभिषेक होता है उसे कैसे पता चलता है?
8, 9. (क) ज़्यादातर लोगों को यह समझना क्यों मुश्किल लगता है कि जब किसी का अभिषेक होता है, तो उसके साथ क्या होता है? (ख) एक व्यक्ति को कैसे पता चलता है कि उसे स्वर्ग जाने के लिए बुलाया गया है?
8 आज परमेश्वर के ज़्यादातर सेवकों के लिए शायद यह समझना मुश्किल हो कि जब परमेश्वर किसी का अभिषेक करता है, तो उस व्यक्ति के साथ क्या होता है। और यह स्वाभाविक है, क्योंकि खुद उनका अभिषेक नहीं हुआ है। परमेश्वर ने इंसानों को हमेशा धरती पर रहने के लिए बनाया था, न कि स्वर्ग में रहने के लिए। (उत्प. 1:28; भज. 37:29) लेकिन यहोवा ने कुछ लोगों को स्वर्ग में राजा और याजक होने के लिए चुना है। इसलिए जब वह उनका अभिषेक करता है, तो उनकी आशा और उनके सोचने का तरीका बदल जाता है, ताकि वे स्वर्ग में अपनी आशा पर ध्यान लगा सकें।—इफिसियों 1:18 पढ़िए।
9 लेकिन एक व्यक्ति को कैसे पता चलता है कि उसे स्वर्ग जाने के लिए बुलाया गया है? गौर कीजिए कि पौलुस ने रोम के अभिषिक्त भाइयों से क्या कहा, जो “पवित्र जन होने के लिए बुलाए गए” थे। उसने कहा, “परमेश्वर की पवित्र शक्ति न तो हमें गुलाम बनाती है, न ही हमारे अंदर डर पैदा करती है, बल्कि यह हमारा मार्गदर्शन करती है ताकि हम बेटों के नाते गोद लिए जाएँ और इस पवित्र शक्ति की वजह से हम ‘अब्बा, हे पिता!’ पुकारते हैं। परमेश्वर की पवित्र शक्ति हमारे अंदर के एहसास के साथ मिलकर गवाही देती है कि हम परमेश्वर के बच्चे हैं।” (रोमि. 1:7; 8:15, 16) परमेश्वर अपनी पवित्र शक्ति की मदद से एक व्यक्ति को अच्छी तरह इस बात का एहसास करा देता है कि वह राजा बनकर स्वर्ग में यीशु के साथ राज करेगा।—1 थिस्स. 2:12.
10. पहला यूहन्ना 2:27 में लिखी इस बात का क्या मतलब है कि किसी अभिषिक्त मसीही को इस बात की ज़रूरत नहीं कि कोई उसे सिखाए?
10 जिन्हें स्वर्ग जाने के लिए चुना जाता है, उन्हें किसी और की गवाही की ज़रूरत नहीं होती। यहोवा खुद उन्हें इस बात का यकीन दिलाता है, वह उनके दिलो-दिमाग में शक की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता। प्रेषित यूहन्ना ने अभिषिक्त मसीहियों से कहा, “तुम्हारा अभिषेक उस पवित्र परमेश्वर ने किया है; इसलिए तुम सबके पास सच्चाई का ज्ञान है।” उसने यह भी कहा, “जहाँ तक तुम्हारी बात है, परमेश्वर ने अपनी पवित्र शक्ति से तुम्हारा अभिषेक किया है और यह पवित्र शक्ति तुममें बनी रहती है। और तुम्हें इस बात की ज़रूरत नहीं कि कोई तुम्हें सिखाए। मगर परमेश्वर तुम्हारा अभिषेक करने के ज़रिए तुम्हें सब बातें सिखा रहा है। तुम्हारा यह अभिषेक सच्चा है, झूठा नहीं। और ठीक जैसा इसने तुम्हें सिखाया है, तुम उसके साथ एकता में बने रहो जिसने तुम्हारा अभिषेक किया है।” (1 यूह. 2:20, 27) बाकी सभी मसीहियों की तरह अभिषिक्त मसीहियों को भी यहोवा से सीखना है। लेकिन उन्हें किसी और से यह पक्का करवाने की ज़रूरत नहीं है कि क्या वे वाकई अभिषिक्त हैं। दुनिया की सबसे ताकतवर शक्ति यानी पवित्र शक्ति उन्हें यकीन दिला देती है कि वे अभिषिक्त हैं!
वे “दोबारा पैदा” होते हैं
11, 12. (क) एक अभिषिक्त मसीही शायद क्या सोचे? (ख) उसे किस बात पर ज़रा भी शक नहीं होता?
11 जब मसीहियों को पवित्र शक्ति के ज़रिए अभिषिक्त किया जाता है, तो उनमें ज़बरदस्त बदलाव आ जाता है। उनके अंदर आए इस बदलाव की वजह से यीशु ने कहा कि वे “दोबारा पैदा” होते हैं। (यूह. 3:3, 5) फिर उसने समझाया, “मैंने तुझे जो बताया है कि तुम लोगों के लिए दोबारा पैदा होना ज़रूरी है, इस बात पर ताज्जुब मत कर। हवा जहाँ चाहे वहाँ बहती है और तू हवा चलने की आवाज़ सुनता है, मगर तू नहीं जानता कि यह कहाँ से आती है और कहाँ जा रही है। ऐसा ही वह है जो पवित्र शक्ति से पैदा हुआ है।” (यूह. 3:7, 8) इससे साफ पता चलता है कि जो अभिषिक्त नहीं हैं, उन्हें पूरी तरह यह समझाना नामुमकिन है कि अभिषिक्त होने पर कैसा लगता है।[2]
12 जिसका अभिषेक हुआ है वह शायद सोचे, ‘यहोवा ने मुझे ही क्यों चुना, किसी और को क्यों नहीं?’ वह शायद यह भी सोचे कि क्या वह इस ज़िम्मेदारी के काबिल है। लेकिन उसे इस बात पर ज़रा भी शक नहीं होता कि यहोवा ने उसे चुना है। इसके बजाय, उसे बेहद खुशी होती है और वह इस तोहफे के लिए बहुत एहसानमंद होता है। अभिषिक्त मसीहियों को कुछ वैसा ही महसूस होता है, जैसा पतरस को महसूस हुआ था। उसने कहा, “हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्वर और पिता धन्य हो, जिसने यीशु मसीह को मरे हुओं में से जी उठाया और इसके ज़रिए अपनी बड़ी दया दिखाते हुए हमें एक नया जन्म दिया जिससे कि हम एक जीवित आशा पा सकें, और हमें वह विरासत हासिल हो जो अनश्वर और निष्कलंक है और जो कभी नहीं मिटेगी। यह विरासत तुम्हारे लिए स्वर्ग में सुरक्षित रखी हुई है।” (1 पत. 1:3, 4) यह बात जब अभिषिक्त मसीही पढ़ते हैं, तो उन्हें इस बात पर कोई शक नहीं होता कि उनका पिता खास उनसे बात कर रहा है।
13. (क) जब एक व्यक्ति का पवित्र शक्ति के ज़रिए अभिषेक होता है, तो उसका सोचने का तरीका कैसे बदल जाता है? (ख) यह बदलाव किस वजह से होता है?
13 जिन मसीहियों को यहोवा स्वर्ग का बुलावा देता है, वे पहले धरती पर जीने की आशा रखते थे। तब वे उस वक्त का बेसब्री से इंतज़ार करते थे, जब यहोवा धरती को फिरदौस बना देगा और हर तरह की दुष्टता खत्म कर देगा। शायद उन्होंने कल्पना की हो कि वे अपने उन अज़ीज़ों या दोस्तों का स्वागत करेंगे जो मौत की नींद सो रहे हैं। और शायद यह भी कि वे अपना घर बनाएँगे, उसमें आराम से रहेंगे, पेड़-पौधे लगाएँगे और उनके फल खाएँगे। (यशा. 65:21-23) तो फिर वे बिलकुल अलग क्यों सोचने लगते हैं? क्या वे बहुत निराश हो गए हैं या फिर किसी बड़ी तकलीफ से गुज़र रहे हैं? क्या उन्हें अचानक यह लगने लगा कि धरती पर हमेशा जीना बहुत उबाऊ होगा और वे यहाँ खुश नहीं रह पाएँगे? या क्या वे यह देखना चाहते हैं कि स्वर्ग में जीना कैसा होगा? नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। इसके बजाय, उनके लिए यह फैसला परमेश्वर लेता है। जब वह उन्हें स्वर्ग के लिए बुलावा देता है, तो वह अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए उनके सोचने का तरीका बदल देता है और यह भी कि अब उन्हें किस इनाम की आस लगानी चाहिए।
14. अभिषिक्त मसीही धरती पर अपनी ज़िंदगी के बारे में कैसा महसूस करते हैं?
14 तो क्या इसका मतलब यह है कि अभिषिक्त मसीही मरना चाहते हैं? पौलुस ने बताया कि अभिषिक्त मसीही कैसा महसूस करते हैं। उसने उनके शरीर की तुलना “डेरे” से की और कहा, “दरअसल, हम जो इस डेरे में हैं, हम बोझ से दबे हुए कराहते हैं। यह नहीं कि हम इसे उतारना चाहते हैं, बल्कि स्वर्ग के उस डेरे को पहनना चाहते हैं, ताकि जो मरनहार है उसे जीवन निगल सके।” (2 कुरिं. 5:4) जी हाँ, अभिषिक्त मसीही मरना नहीं चाहते। वे इस धरती पर खुशी-खुशी जीते हैं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर हर दिन यहोवा की सेवा में बिताना चाहते हैं। मगर वे चाहे जो भी करते हों, वे याद रखते हैं कि परमेश्वर ने उनसे शानदार भविष्य का वादा किया है।—1 कुरिं. 15:53; 2 पत. 1:4; 1 यूह. 3:2, 3; प्रका. 20:6.
क्या आपको स्वर्ग जाने का बुलावा मिला है?
15. किन बातों से यह साबित नहीं होता कि एक व्यक्ति का पवित्र शक्ति से अभिषेक किया गया है?
15 आप शायद सोच रहे हों कि कहीं यहोवा ने आपको स्वर्ग जाने के लिए तो नहीं बुलाया। अगर आपको ऐसा लगता है, तो इन ज़रूरी सवालों पर गौर कीजिए: क्या आपको लगता है कि आप प्रचार में दूसरों से ज़्यादा जोशीले हैं? क्या आपको बाइबल का अध्ययन करने में और “परमेश्वर के गहरे रहस्यों” के बारे में सीखने में वाकई मज़ा आता है? (1 कुरिं. 2:10) क्या आपको लगता है कि आपको यहोवा की आशीष से प्रचार में बहुत बढ़िया नतीजे मिले हैं? क्या आप और किसी काम से ज़्यादा यहोवा की मरज़ी पूरी करना चाहते हैं? क्या आपके दिल में दूसरों के लिए गहरा प्यार है? क्या यहोवा की सेवा करने में दूसरों की मदद करना आप अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं? क्या आपने अपनी ज़िंदगी में यह देखा है कि कैसे यहोवा ने कई तरीकों से आपकी मदद की है? अगर आप इन सभी सवालों के जवाब हाँ में देते हैं, तो क्या इसका मतलब है कि आपको स्वर्ग जाने का बुलावा मिला है? नहीं, ऐसा नहीं है। क्यों? क्योंकि ये कोई अनोखी बातें नहीं हैं, ऐसा तो परमेश्वर के सभी सेवक सोच सकते हैं, फिर चाहे वे अभिषिक्त हों या न हों। अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए यहोवा अपने किसी भी सेवक को एक जैसी ताकत दे सकता है, फिर चाहे वे स्वर्ग जाएँ या धरती पर जीएँ। दरअसल, अगर आप इस कशमकश में हैं कि क्या आप स्वर्ग जाएँगे, तो इसका मतलब है कि आपको नहीं बुलाया गया है। जिन्हें यहोवा ने चुना है, वे इस कशमकश में नहीं रहते कि वे स्वर्ग जाएँगे या नहीं। उन्हें पूरा यकीन होता है!
16. हम कैसे जानते हैं कि जिन्हें परमेश्वर की पवित्र शक्ति मिली थी, उन सभी को स्वर्ग जाने का बुलावा नहीं मिला?
16 बाइबल में ऐसे कई वफादार सेवकों के उदाहरण हैं, जिन्हें यहोवा की पवित्र शक्ति तो मिली थी, पर वे स्वर्ग नहीं गए। इसका एक उदाहरण है, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला। यीशु ने कहा था कि यूहन्ना से बड़ा कोई भी नहीं है, लेकिन उसने यह भी कहा कि यूहन्ना स्वर्ग में राज नहीं करेगा। (मत्ती 11:10, 11) दाविद को भी पवित्र शक्ति से मार्गदर्शन मिला था। (1 शमू. 16:13) पवित्र शक्ति ने उसे यहोवा के बारे में गूढ़ बातें समझने में मदद दी। यहाँ तक कि उसे बाइबल के कुछ हिस्से लिखने के लिए उभारा। (मर. 12:36) इसके बावजूद, प्रेषित पतरस ने उसके बारे में कहा कि वह “स्वर्ग नहीं गया।” (प्रेषि. 2:34) यहोवा ने अपनी पवित्र शक्ति से इन सेवकों को बड़े-बड़े काम करने की ताकत तो दी, मगर इन्हें पवित्र शक्ति से स्वर्ग में रहने का बुलावा नहीं दिया। तो क्या इसका यह मतलब है कि वे इतने वफादार या इतने काबिल नहीं थे कि स्वर्ग में राज कर सकें? ऐसी बात नहीं है। इसका मतलब सिर्फ यह है कि यहोवा उन्हें धरती पर फिरदौस में दोबारा ज़िंदगी देगा।—यूह. 5:28, 29; प्रेषि. 24:15.
17, 18. (क) आज परमेश्वर के ज़्यादातर सेवक किस इनाम की आस लगाए हुए हैं? (ख) अगले लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?
17 आज जी रहे परमेश्वर के ज़्यादातर सेवक स्वर्ग नहीं जाएँगे। वे अब्राहम, दाविद, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले और पुराने ज़माने के कई दूसरे स्त्री-पुरुषों की तरह धरती पर उस वक्त जीने की आस लगाए हुए हैं, जब परमेश्वर की सरकार शासन करेगी। (इब्रा. 11:10) जिन्हें स्वर्ग जाने के लिए चुना गया है, उनमें से आज इन आखिरी दिनों में कुछ ही लोग रह गए हैं। (प्रका. 12:17) इसका मतलब 1,44,000 चुने हुए वफादार सेवकों में से ज़्यादातर की मौत हो चुकी है और अब वे स्वर्ग में हैं।
18 लेकिन अगर कोई कहता है कि वह अभिषिक्त है, तो धरती पर जीने की आशा रखनेवालों का उसके प्रति कैसा रवैया होना चाहिए? अगर आपकी मंडली में कोई स्मारक के दौरान रोटी और दाख-मदिरा लेने लगता है, तो आपको उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? और अगर ऐसे लोगों की गिनती बढ़ती जाती है जो खुद को अभिषिक्त कहते हैं, तो क्या आपको चिंता करनी चाहिए? इन सवालों के जवाब हम अगले लेख में जानेंगे।
^ [1] (पैराग्राफ 4) पिन्तेकुस्त का त्योहार शायद साल के उसी दिन मनाया जाता था, जिस दिन सीनै पहाड़ पर मूसा के ज़रिए कानून दिया गया था। (निर्ग. 19:1) अगर ऐसा है, तो शायद मूसा ने उसी दिन इसराएल राष्ट्र के साथ कानून का करार लागू किया था, जिस दिन यीशु ने अभिषिक्त मसीहियों के साथ नया करार लागू किया।
^ [2] (पैराग्राफ 11) दोबारा पैदा होने का क्या मतलब है इस बारे में ज़्यादा जानने के लिए 1 अप्रैल, 2009 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 3-11 देखिए।