क्या आप यहोवा की महिमा झलका रहे हैं?
‘हम आइने की तरह यहोवा की महिमा झलकाते हैं।’—2 कुरिं. 3:18.
आप क्या जवाब देंगे?
पापी होने के बावजूद हम यहोवा की महिमा कैसे कर सकते हैं?
प्रार्थनाएँ और मसीही सभाएँ हमें परमेश्वर की महिमा झलकाने में कैसे मदद देती हैं?
यहोवा की महिमा करते रहने के लिए क्या बात हमारी मदद कर सकती है?
1, 2. हमारे लिए यहोवा के गुण ज़ाहिर करना क्यों मुमकिन है?
किसी-न-किसी तरह हम सब अपने माता-पिता के जैसे होते हैं। इसीलिए हम अकसर लोगों को यह कहते सुनते हैं, ‘यह तो बिलकुल अपने पिता पर गया है’ या ‘यह तो बिलकुल अपनी माँ की तरह है।’ अकसर बच्चे अपने माँ-बाप की तरह बनने की कोशिश करते हैं। हमारे बारे में क्या? क्या हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता की तरह बन सकते हैं? हालाँकि हमने उसे देखा नहीं है, मगर उसकी बनायी चीज़ों को देखकर हम उसके मनभावने गुणों के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। इसके अलावा, अगर हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन करें और उसमें लिखी बातों पर मनन करें, खासकर यीशु की बातों और उसके कामों पर, तो इससे भी हम परमेश्वर के गुणों को समझ सकते हैं। (यूह. 1:18; रोमि. 1:20) जी हाँ, हम यहोवा के मनभावने गुण ज़ाहिर कर सकते हैं और इस तरह उसकी महिमा झलका सकते हैं!
2 आदम और हव्वा की सृष्टि से पहले ही यहोवा जानता था कि इंसान उसकी मरज़ी पूरी कर सकता है, उसके गुणों को ज़ाहिर कर सकता है, और उसकी महिमा कर सकता है। (उत्पत्ति 1:26, 27 पढ़िए।) मसीही होने के नाते हमें परमेश्वर के गुण ज़ाहिर करने चाहिए। ऐसा करके हम परमेश्वर की महिमा झलकाने का सम्मान पा सकते हैं, फिर चाहे हम किसी भी संस्कृति से हों या हमारी पढ़ाई-लिखाई चाहे जो हो। क्यों? क्योंकि “परमेश्वर भेदभाव नहीं करता, मगर हर ऐसा इंसान जो उसका भय मानता है और नेक काम करता है, फिर चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो, वह परमेश्वर को भाता है।”—प्रेषि. 10:34, 35.
3. यहोवा की सेवा में मसीही क्या अनुभव कर सकते हैं?
3 अभिषिक्त मसीही यहोवा की महिमा झलकाते हैं। उनमें से एक, प्रेषित पौलुस ने लिखा: “हम उसी की छवि में बदलते जाते हैं और इस दौरान हम कम महिमा से बढ़कर और भी ज़्यादा महिमा हासिल करते जाते हैं और अपने चेहरों से आइने की तरह यह महिमा झलकाते हैं।” (2 कुरिं. 3:18) जब भविष्यवक्ता मूसा, दस आज्ञाओंवाली तख्तियाँ लेकर सीनै पर्वत से उतरा, तो यहोवा से बात करने के कारण उसके चेहरे से किरणें निकल रही थीं। (निर्ग. 34:29, 30) हालाँकि मसीहियों के साथ इस तरह का अनुभव नहीं हुआ और ना ही उनके चेहरों से किरणें निकलती हैं, मगर जब वे दूसरों को यहोवा और उसके गुणों के बारे में और इंसानों के लिए उसके मकसद के बारे में बताते हैं, तो बेशक उनके चेहरे खुशी से दमक उठते हैं। पुराने ज़माने के चमकाए गए धातु के आइनों की तरह, अभिषिक्त जन और दूसरी भेड़ें अपनी ज़िंदगी और सेवा से यहोवा की महिमा झलकाते हैं। (2 कुरिं. 4:1) क्या आप अच्छा चालचलन रखकर और नियमित तौर पर राज का प्रचार करके यहोवा की महिमा झलकाते हैं?
हम यहोवा की महिमा झलकाना चाहते हैं
4, 5. (क) पौलुस की तरह, हमें क्या जद्दोजेहद करनी पड़ती है? (ख) पाप ने हम पर क्या असर किया है?
4 यहोवा के सेवकों के नाते, हम ऐसे काम करना चाहते हैं जिनसे हमारे सृजनहार का सम्मान और उसकी महिमा हो। लेकिन अकसर जो हम चाहते हैं, वह नहीं कर पाते। पौलुस को भी इसी समस्या का सामना करना पड़ा था। (रोमियों 7:21-25 पढ़िए।) इस जद्दोजेहद की वजह समझाते हुए पौलुस ने लिखा: “सब ने पाप किया है और वे परमेश्वर के शानदार गुण ज़ाहिर करने में नाकाम रहे हैं।” (रोमि. 3:23) जी हाँ, आदम के पाप की वजह से मानवजाति पाप की हुकूमत के अधीन हो गयी।—रोमि. 5:12; 6:12.
5 पाप क्या है? ऐसा कोई भी काम जो यहोवा की शख्सियत, उसके तरीकों, स्तरों या उसकी मरज़ी के खिलाफ हो। पाप की वजह से एक इंसान का परमेश्वर के साथ रिश्ता खराब हो जाता है। इसकी वजह से हम परमेश्वर के स्तरों से चूक जाते हैं, ठीक जैसे एक निशानेबाज़ का तीर निशाने से चूक जाता है। हम जानबूझकर या भूल से पाप कर बैठते हैं। (गिन. 15:27-31) पाप इंसानों में बसा हुआ है और यह उनमें और उनके बनानेवाले के बीच एक दीवार खड़ी कर देता है। (भज. 51:5; यशा. 59:2; कुलु. 1:21) इसलिए ज़्यादातर लोगों का यहोवा के साथ मेल नहीं है और वे परमेश्वर की महिमा को झलकाने का सुनहरा मौका गँवा देते हैं। बेशक, हमें सबसे ज़्यादा लाचार करनेवाली बीमारी है पाप।
6. पापी होने के बावजूद हम यहोवा की महिमा कैसे कर सकते हैं?
6 पापी होने के बावजूद यहोवा हमारे लिए “आशा देनेवाला परमेश्वर” साबित हुआ है। (रोमि. 15:13) उसने पाप को मिटाने के लिए यीशु मसीह के फिरौती बलिदान का इंतज़ाम किया। अगर हम उसके बलिदान में विश्वास करें, तो हम “पाप के दास” बने रहने की बजाय यहोवा की महिमा झलकाने के लायक बन सकते हैं और उसके दोस्त कहला सकते हैं। (रोमि. 5:19; 6:6; यूह. 3:16) अगर हम उसके दोस्त बने रहें, तो हम यकीन रख सकते हैं कि वह आज हमें आशीष देगा और आगे चलकर सिद्ध इंसानों के तौर पर हमेशा की ज़िंदगी देगा। यह कितनी बड़ी आशीष है कि हमारे पापी होने के बावजूद परमेश्वर हमें ऐसे इंसान मानता है जो उसकी महिमा झलका सकते हैं।
परमेश्वर की महिमा झलकाना
7. परमेश्वर की महिमा झलकाने के लिए हमें खुद के बारे में क्या मानना होगा?
7 अगर हम परमेश्वर की महिमा झलकाना चाहते हैं, तो ज़रूरी है कि हम यह मानें कि हम सब पापी हैं। (2 इति. 6:36) हमें अपनी गलत इच्छाओं को पहचानना चाहिए और उन पर काबू पाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि हम परमेश्वर की महिमा कर सकें। मिसाल के लिए, अगर हमें पोर्नोग्राफी देखने की लत लग चुकी है, तो हमें यह कबूल करना होगा कि हमें प्राचीनों की मदद की ज़रूरत है और फिर हमें उनसे जाकर मदद माँगनी होगी। (याकू. 5:14, 15) यहोवा की महिमा करने के लिए यह पहला कदम होगा। यहोवा के उपासकों के नाते, हमें लगातार खुद की जाँच करते रहना चाहिए कि हम उसके नेक स्तरों के मुताबिक चल रहे हैं या नहीं। (नीति. 28:18; 1 कुरिं. 10:12) चाहे हमारी कमज़ोरी जो भी हो, हमें हार नहीं माननी चाहिए बल्कि उसके खिलाफ लड़ते रहना चाहिए, तभी हम परमेश्वर की महिमा झलका पाएँगे।
8. हालाँकि हम सिद्ध नहीं हैं, लेकिन हमें क्या करना चाहिए?
8 यीशु ही एक अकेला शख्स था जिसने हमेशा परमेश्वर को खुश किया और पूरी तरह उसकी महिमा झलकायी। हालाँकि हम यीशु की तरह सिद्ध नहीं हैं, लेकिन फिर भी हम उसकी मिसाल पर चलने की कोशिश कर सकते हैं और हमें ऐसा करना भी चाहिए। (1 पत. 2:21) खुद में सुधार करने और यहोवा की महिमा करने के लिए हम जो मेहनत करते हैं, वह बेकार नहीं जाती। यहोवा हमारी कोशिशों पर ध्यान देता है और इसके लिए हमें आशीष भी देता है।
9. परमेश्वर की महिमा और अच्छी तरह झलकाने में बाइबल कैसे मदद देती है?
9 यहोवा का वचन हमें यह समझने में मदद दे सकता है कि हम उसकी महिमा और अच्छी तरह कैसे झलका सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि हम बाइबल का गहराई से अध्ययन करें और उस पर मनन करें। (भज. 1:1-3) रोज़ाना बाइबल पढ़ने से हमें अपने अंदर सुधार करने में मदद मिलेगी। (याकूब 1:22-25 पढ़िए।) बाइबल का ज्ञान ही हमारे विश्वास का आधार है। इसे पढ़कर हम गंभीर पाप करने से दूर रह सकते हैं और यहोवा को खुश करने का अपना इरादा और पक्का कर सकते हैं।—भज. 119:11, 47, 48.
10. यहोवा की सेवा बेहतर तरीके से करने के लिए प्रार्थना कैसे हमारी मदद कर सकती है?
10 परमेश्वर की महिमा झलकाने के लिए ‘प्रार्थना में लगे रहना’ भी ज़रूरी है। (रोमि. 12:12) हमें यहोवा से प्रार्थना में मदद माँगनी चाहिए कि हम उसकी ऐसी उपासना कर सकें जो उसे कबूल हो। हम परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं कि वह हमें पवित्र शक्ति दे, हमारा विश्वास बढ़ाए और परीक्षाओं का सामना करने के लिए हमारी मदद करे। इसके अलावा, हम “सच्चाई के वचन को सही तरह से इस्तेमाल” करने के लिए भी उससे मदद माँग सकते हैं। (2 तीमु. 2:15; मत्ती 6:13; लूका 11:13; 17:5) जिस तरह एक बच्चा अपने पिता पर भरोसा रखता है, उसी तरह हमें भी स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता पर भरोसा रखना चाहिए। अगर हम उसकी सेवा बेहतर तरीके से करने के लिए उससे मदद माँगें, तो वह हमारी मदद ज़रूर करेगा। हमें कभी नहीं सोचना चाहिए कि हम उसके लिए एक बोझ हैं! इसके बजाय, आइए हम प्रार्थना में उसकी महिमा करें, उसे धन्यवाद दें और उसके मार्गदर्शन की दरखास्त करें, खासकर परीक्षा की घड़ी में। साथ ही उससे बिनती करें कि हम अपनी सेवा से उसके पवित्र नाम की महिमा कर सकें।—भज. 86:12; याकू. 1:5-7.
11. मसीही सभाएँ हमें परमेश्वर की महिमा झलकाने में कैसे मदद देती हैं?
11 यहोवा ने अपनी अनमोल भेड़ों की देख-रेख की ज़िम्मेदारी ‘विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ को सौंपी है। (मत्ती 24:45-47; भज. 100:3) यहोवा की महिमा झलकाने में दास वर्ग हम सबकी मदद करता है और सभाएँ इसका एक ज़रिया हैं। जब एक दर्ज़ी काट-छाँट करके बेढंगे कपड़ों को हमारे नाप का सीलता है, तो हम उन कपड़ों में अच्छे दिखने लगते हैं। ठीक इसी तरह सभाएँ हमारी मसीही शख्सियत को सुधारकर उसमें निखार लाती हैं। (इब्रा. 10:24, 25) इसलिए आइए हम हमेशा सभाओं में समय पर पहुँचें, क्योंकि अगर हम देर से आने की आदत बना लें, तो हम अपनी शख्सियत में “काट-छाँट” करवाने के कुछ मौके गँवा देंगे। नतीजा यह होगा कि यहोवा के सेवकों के तौर पर हमारी शख्सियत पूरी तरह निखर नहीं पाएगी।
आइए परमेश्वर की मिसाल पर चलें
12. हम परमेश्वर की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
12 अगर हम यहोवा की महिमा झलकाना चाहते हैं, तो हमें ‘उसकी मिसाल पर चलना’ चाहिए। (इफि. 5:1) यहोवा की मिसाल पर चलने का एक तरीका है, मामलों के बारे में उसका नज़रिया अपनाना। अगर हम ज़िंदगी यहोवा की मरज़ी के मुताबिक न जीकर किसी और तरीके से जीएँ, तो इससे उसकी निंदा होगी और हमें भी नुकसान होगा। यह दुनिया शैतान के काबू में है इसलिए हमें उन बातों से नफरत करनी चाहिए जिनसे यहोवा नफरत करता है और उन बातों से प्यार करना चाहिए जिनसे वह प्यार करता है। (भज. 97:10; 1 यूह. 5:19) हमें पूरा भरोसा होना चाहिए कि सही मायनों में यहोवा की सेवा करने का एक ही तरीका है और वह है सब कुछ उसकी महिमा के लिए करना।—1 कुरिंथियों 10:31 पढ़िए।
13. हमें पाप से नफरत क्यों करनी चाहिए और यह नफरत हमें क्या करने के लिए उकसाएगी?
13 यहोवा पाप से नफरत करता है और हमें भी करनी चाहिए। हमें गलत कामों के आस-पास भी नहीं फटकना चाहिए। हम यह नहीं देखेंगे कि हम पाप की सीमा को पार किए बिना, किस हद तक पाप करने के करीब जा सकते हैं। मिसाल के लिए, हमें धर्मत्याग के फँदे से कोसों दूर रहना चाहिए। यह एक ऐसा पाप है जो हमें यहोवा की महिमा करने के नाकाबिल बना देता है। (व्यव. 13:6-9) इसलिए आइए हम धर्मत्यागियों के साथ और ऐसे लोगों के साथ कोई मेल-जोल ना रखें जो हमारे भाई होने का दावा तो करते हैं, मगर परमेश्वर का नाम बदनाम करते हैं या फिर परमेश्वर के संगठन के खिलाफ बातें करते हैं। ऐसा करना बेहद ज़रूरी है फिर चाहे वे हमारे परिवार के सदस्य ही क्यों न हों। (1 कुरिं. 5:11) दरअसल हमें उनकी किताबें या इंटरनेट पर उनके विचार नहीं पढ़ने चाहिए क्योंकि इससे यहोवा के साथ हमारा रिश्ता खराब हो सकता है।—यशायाह 5:20; मत्ती 7:6 पढ़िए।
14. यहोवा की महिमा झलकाने के लिए कौन-सा गुण होना सबसे ज़रूरी है, और क्यों?
14 स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता की मिसाल पर चलने का एक बेहतरीन तरीका है प्यार ज़ाहिर करना। जी हाँ, हमें उसकी तरह प्यार दिखाना चाहिए। (1 यूह. 4:16-19) दरअसल, हमारे बीच जो प्यार है, उसी से हम यीशु के चेलों और यहोवा के सेवकों के तौर पर पहचाने जाते हैं। (यूह. 13:34, 35) हालाँकि असिद्ध होने की वजह से कभी-कभार हम प्यार दिखाने से चूक जाते हैं, मगर ज़रूरी है कि हम हमेशा प्यार दिखाने की कोशिश करते रहें। अगर हम प्यार दिखाएँ और अपने अंदर दूसरे मसीही गुण बढ़ाएँ, तो हम दूसरों को ठेस नहीं पहुँचाएँगे और पाप करने से दूर रहेंगे।—2 पत. 1:5-7.
15. प्यार किस तरह दूसरों के साथ हमारे रिश्ते पर असर करता है?
15 प्यार हमें अच्छे काम करने के लिए उभारता है। (रोमि. 13:8-10) मिसाल के लिए, अपने जीवन-साथी के लिए प्यार हमें उभारेगा कि हम शादी की सेज को दूषित न करें। अगर हम प्राचीनों से प्यार करते हैं और उनके काम की कदर करते हैं, तो हम उनकी आज्ञाएँ मानेंगे और उनके निर्देशों के अधीन रहेंगे। जो बच्चे अपने माता-पिता से प्यार करते हैं वे उनका कहना मानते हैं, उनका आदर करते हैं और उनकी बुराई नहीं करते। जो दूसरों से प्यार करते हैं, वे उन्हें कमतर नहीं समझते, ना ही उनके साथ बेअदबी से बात करते हैं। (याकू. 3:9) साथ ही, जो प्राचीन परमेश्वर की भेड़ों से प्यार करते हैं, वे उनके साथ कोमलता से पेश आते हैं।—प्रेषि. 20:28, 29.
16. प्यार हमें प्रचार करने में कैसे मदद देता है?
16 प्यार का गुण हमारे प्रचार काम में भी ज़ाहिर होता है। जब प्रचार में लोग हमारी नहीं सुनते या बेरुखी से पेश आते हैं, तो यहोवा के लिए गहरा प्यार हमें निराश हुए बिना खुशखबरी का प्रचार करते रहने में मदद देगा। प्यार हमें उभारेगा कि हम अच्छी तैयारी के साथ असरदार तरीके से प्रचार करें। अगर हम वाकई परमेश्वर और अपने पड़ोसी से प्यार करते हैं, तो हम प्रचार काम को बोझ नहीं समझेंगे। इसके बजाय, हम इसे एक सम्मान की बात समझेंगे और खुशी-खुशी इसे पूरा करेंगे।—मत्ती 10:7.
यहोवा की महिमा करते रहिए
17. अगर हम कबूल करें कि हम परमेश्वर की महिमा झलकाने में नाकाम हो जाते हैं, तो यह हमें क्या करने के लिए उभारेगा?
17 इस दुनिया के ज़्यादातर लोग नहीं समझते कि पाप करना कितनी गंभीर बात है, लेकिन हम यह बखूबी जानते हैं। इसलिए हमें इस बात का एहसास है कि पापी इच्छाओं के खिलाफ लड़ना कितना ज़रूरी है। अगर हम यह याद रखें कि हमारा झुकाव अकसर पाप की तरफ होता है, तो हम अपने ज़मीर को तालीम देंगे ताकि वह हमारे मन में उठनेवाली पापी इच्छाओं पर काबू पाने में हमारी मदद करे और हमें सही कदम उठाने के लिए उभारे। (रोमि. 7:22, 23) यह सच है कि हम कमज़ोर हैं, मगर परमेश्वर हमें मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी सही कदम उठाने की ताकत दे सकता है।—2 कुरिं. 12:10.
18, 19. (क) दुष्ट दूतों के खिलाफ लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए क्या मदद हाज़िर है? (ख) हमें क्या करने की ठान लेनी चाहिए?
18 अगर हम यहोवा की महिमा करना चाहते हैं, तो हमें दुष्ट दूतों के खिलाफ भी लड़ना होगा। परमेश्वर के दिए हथियार हमें इस लड़ाई में जीत दिला सकते हैं। (इफि. 6:11-13) शैतान की हमेशा यही कोशिश रहती है कि यहोवा को वह महिमा न मिले जिस पर सिर्फ उसी का हक है। इब्लीस यहोवा के साथ हमारे रिश्ते को तबाह करने की भी पूरी कोशिश करता रहता है। इसके बावजूद जब हम और दूसरे लाखों असिद्ध पुरुष, स्त्रियाँ और बच्चे परमेश्वर के वफादार रहते हैं और उसकी महिमा करते हैं, तो शैतान के मुँह पर क्या ही बड़ा तमाचा लगता है! इसलिए आइए हम उन स्वर्गदूतों की तरह यहोवा की महिमा करते रहें, जो कहते हैं: “हे यहोवा, हमारे परमेश्वर, तू अपनी महिमा, अपने आदर और शक्ति के लिए तारीफ पाने के योग्य है, क्योंकि तू ही ने सारी चीज़ें रची हैं और तेरी ही मरज़ी से ये वजूद में आयीं और रची गयीं।”—प्रका. 4:11.
19 हमें यह ठान लेना चाहिए कि चाहे जो हो जाए हम यहोवा की महिमा करते रहेंगे। यहोवा को यह देखकर वाकई बहुत खुशी होती है कि इतने सारे लोग उसकी मिसाल पर चलने और उसकी महिमा करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। (नीति. 27:11) आइए हम भी दाविद की तरह यहोवा से कहें: “हे प्रभु हे मेरे परमेश्वर मैं अपने सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूंगा।” (भज. 86:12) हमें उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है जब हम यहोवा की महिमा सही मायनों में झलका पाएँगे और हमेशा के लिए उसकी स्तुति कर सकेंगे! परमेश्वर की आज्ञा माननेवाले सभी इंसान उस शानदार दिन को देखेंगे। क्या आप आज यहोवा परमेश्वर की महिमा झलका रहे हैं? क्या आपको हमेशा-हमेशा तक ऐसा करने की आशा है?
[पेज 27 पर तसवीरें]
क्या आप इन तरीकों से यहोवा की महिमा कर रहे हैं?