परमेश्वर का उजियाला अंधेरे को दूर करता है!
“यहोवा मेरे अन्धियारे को दूर करके उजियाला कर देता है।”—2 शमूएल 22:29.
1. उजियाले का जीवन के साथ क्या ताल्लुक है?
“परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो: तो उजियाला हो गया।” (उत्पत्ति 1:3) इन महत्त्वपूर्ण शब्दों से उत्पत्ति की किताब में सृष्टि का वृत्तांत दिखाता है कि यहोवा, उजियाले का सोता है जिसके बिना पृथ्वी पर जीवन असंभव है। यहोवा उस आध्यात्मिक प्रकाश का भी सोता है, जो हमें जीवन में मार्गदर्शन देने के लिए बहुत ज़रूरी है। (भजन 43:3) राजा दाऊद ने आध्यात्मिक प्रकाश और जीवन के बीच जो गहरा ताल्लुक है, उसके बारे में इन शब्दों में बताया: “जीवन का सोता तेरे ही पास है; तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएंगे।”—भजन 36:9.
2. पौलुस के मुताबिक ज्योति का किसके साथ गहरा नाता है?
2 दाऊद के ज़माने से करीब 1,000 साल बाद, प्रेरित पौलुस ने सृष्टि के वृत्तांत का ज़िक्र किया। उसने कुरिन्थ की मसीही कलीसिया को यह लिखा: “परमेश्वर ही है, जिस ने कहा, कि अन्धकार में से ज्योति चमके।” फिर पौलुस ने दिखाया कि आध्यात्मिक ज्योति और यहोवा से मिलनेवाले ज्ञान के बीच गहरा नाता है। उसने आगे लिखा: “वही हमारे हृदयों में चमका, कि परमेश्वर की महिमा की पहिचान की ज्योति यीशु मसीह के चेहरे से प्रकाशमान हो।” (2 कुरिन्थियों 4:6) यह ज्योति हम तक कैसे पहुँचती है?
बाइबल—उजियाले का ज़रिया
3. बाइबल के ज़रिए यहोवा कौन-सा प्रकाश देता है?
3 यहोवा आध्यात्मिक उजियाला खासकर अपने प्रेरित वचन, बाइबल के ज़रिए देता है। इसलिए जब हम बाइबल का अध्ययन करते और परमेश्वर के ज्ञान की समझ हासिल करते हैं, तो हम उसका प्रकाश अपने ऊपर चमकने देते हैं। बाइबल के ज़रिए यहोवा अपने उद्देश्यों पर रोशनी डालता है और हमें बताता है कि हम उसकी इच्छा कैसे पूरी कर सकते हैं। इससे हमारी ज़िंदगी को मकसद मिलता है और हमारी आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी होती हैं। (सभोपदेशक 12:1; मत्ती 5:3) यीशु ने मूसा की व्यवस्था का हवाला देते हुए, इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों का ध्यान रखना है। उसने कहा: “लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।”—मत्ती 4:4; व्यवस्थाविवरण 8:3.
4. किस मायने में यीशु “जगत की ज्योति” है?
4 आध्यात्मिक प्रकाश के साथ यीशु का गहरा ताल्लुक है। दरअसल, उसने खुद को “जगत की ज्योति” बताया और कहा: “जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।” (यूहन्ना 8:12) इन शब्दों से हमें साफ पता चलता है कि यहोवा की सच्चाई मानवजाति तक पहुँचाने में यीशु एक अहम भूमिका निभाता है। अगर हम अंधकार से दूर परमेश्वर के उजियाले में चलना चाहते हैं, तो हमें बाइबल में दर्ज़ यीशु की हर बात माननी होगी। साथ ही, उसके आदर्श और उसकी शिक्षाओं पर चलना होगा।
5. यीशु की मृत्यु के बाद उसके चेलों पर कौन-सी ज़िम्मेदारी आयी?
5 यीशु ने अपनी मृत्यु के कुछ ही दिन पहले, एक बार फिर अपनी पहचान ज्योति के रूप में करते हुए अपने चेलों से कहा: “ज्योति अब थोड़ी देर तक तुम्हारे बीच में है, जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है तब तक चले चलो; ऐसा न हो कि अन्धकार तुम्हें आ घेरे; जो अन्धकार में चलता है वह नहीं जानता कि किधर जाता है। जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है, ज्योति पर विश्वास करो कि तुम ज्योति के सन्तान होओ।” (यूहन्ना 12:35, 36) जो लोग ज्योति की संतान बने, उन्होंने बाइबल की ‘खरी बातों का आदर्श’ सीखा। (2 तीमुथियुस 1:13, 14) फिर वे इन खरी बातों के ज़रिए और भी सच्चे दिल के लोगों को अंधकार से निकालकर परमेश्वर की ज्योति में ले आए।
6. पहला यूहन्ना 1:5 में ज्योति और अंधकार के बीच कौन-सा बुनियादी फर्क बताया गया है?
6 प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “परमेश्वर ज्योति है: और उस में कुछ भी अन्धकार नहीं।” (1 यूहन्ना 1:5) ध्यान दीजिए कि यहाँ ज्योति और अंधकार के बीच कैसा फर्क बताया गया है। यहोवा, आध्यात्मिक उजियाले का सोता है और आध्यात्मिक अंधकार के साथ उसका कोई नाता नहीं। तो फिर, अंधकार का सोता कौन है?
आध्यात्मिक अंधकार—उसका सोता
7. संसार पर जो आध्यात्मिक अंधकार छाया हुआ है, उसके पीछे किसका हाथ है, और वह किस हद तक असर करता है?
7 प्रेरित पौलुस ने “इस संसार के ईश्वर” का ज़िक्र किया। इन शब्दों का प्रयोग उसने शैतान यानी इब्लीस के लिए किया। उसने आगे यह भी कहा कि शैतान ने “अविश्वासियों . . . की बुद्धि को . . . अन्धी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।” (2 कुरिन्थियों 4:4) कई लोग परमेश्वर को मानने का दावा करते हैं मगर उनमें से ज़्यादातर यह नहीं मानते कि इब्लीस अस्तित्त्व में है। ऐसा क्यों? क्योंकि वे यह कबूल करने के लिए हरगिज़ तैयार नहीं हैं कि एक दुष्ट, अलौकिक शक्ति सचमुच में हो सकती है और उनके सोच-विचार पर असर कर सकती है। लेकिन जैसा कि पौलुस ने बताया इब्लीस सचमुच अस्तित्त्व में है और वह लोगों पर ऐसा प्रभाव डालता है कि वे सच्चाई की रोशनी नहीं देख पाते। शैतान, इंसानों के सोच-विचार को भ्रष्ट करने की ताकत रखता है, क्योंकि एक भविष्यवाणी में उसे “सारे संसार को भरमानेवाला” कहा गया है। (प्रकाशितवाक्य 12:9) शैतान की करतूतों का नतीजा यह हुआ कि यशायाह की भविष्यवाणी के मुताबिक, यहोवा की सेवा करनेवालों को छोड़ बाकी सारी मानवजाति की यह हालत है: “देख, पृथ्वी पर तो अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है।”—यशायाह 60:2.
8. आध्यात्मिक अंधकार में पड़े रहनेवाले किन तरीकों से दिखाते हैं कि वे उलझन में हैं?
8 जब चारों तरफ घोर अंधकार छाया होता है, तो कुछ भी दिखायी नहीं देता। ऐसे में एक इंसान बड़ी आसानी से भटक सकता है या उलझन में पड़ सकता है। ठीक उसी तरह, जो लोग आध्यात्मिक अंधकार में हैं, उनके पास आध्यात्मिक अर्थ में समझ-बूझ नहीं होती और वे जल्द ही उलझन में पड़ जाते हैं। वे सच और झूठ, अच्छे और बुरे के बीच फर्क करने की काबिलीयत खो सकते हैं। अंधकार में पड़े ऐसे लोगों के बारे में भविष्यवक्ता यशायाह ने लिखा: “हाय उन पर जो बुरे को भला और भले को बुरा कहते, जो अंधियारे को उजियाला और उजियाले को अंधियारा ठहराते, और कड़ुवे को मीठा और मीठे को कड़वा करके मानते हैं!” (यशायाह 5:20) आध्यात्मिक अंधकार में जीनेवाले लोग, अंधकार के ईश्वर, शैतान के कब्ज़े में हैं, इसलिए वे प्रकाश और जीवन के सोते से दूर हो जाते हैं।—इफिसियों 4:17-19.
अंधकार से उजियाले तक का सफर—इसमें आनेवाली चुनौतियाँ
9. समझाइए कि किस तरह दुष्टों को आध्यात्मिक अंधकार, साथ ही सचमुच के अंधकार से लगाव होता है।
9 परमेश्वर के वफादार सेवक, अय्यूब ने बताया कि दुष्टों को अंधकार से कितना लगाव रहता है: “व्यभिचारी यह सोचकर कि कोई मुझ को देखने न पाए, दिन डूबने की राह देखता रहता है, और वह अपना मुंह छिपाए भी रखता है।” (अय्यूब 24:15) दुष्ट लोग, आध्यात्मिक रूप से भी अंधेरे में हैं और यह अंधकार उन पर ज़बरदस्त असर डाल सकता है। प्रेरित पौलुस ने कहा कि जो इस तरह के अंधकार में फँसे हैं, उनमें लैंगिक अनैतिकता, चोरी, लालच, पियक्कड़पन, गाली-गलौज और दूसरों को लूटना आम बातें हैं। मगर उनमें से जो कोई परमेश्वर के वचन के प्रकाश में आता है, वह बदल सकता है। कुरिन्थियों को लिखी पौलुस की पत्री से पता चलता है कि ऐसा बदलाव वाकई मुमकिन है। कुरिन्थ के कई मसीही पहले अंधकार के काम करते थे, फिर भी पौलुस ने उनसे कहा: “परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्मा से धोए गए, और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे।”—1 कुरिन्थियों 6:9-11.
10, 11. (क) यीशु ने उस अंधे आदमी का लिहाज़ कैसे किया, जिसकी आँखों की रोशनी उसने लौटायी थी? (ख) कई लोग रोशनी की ओर आकर्षित क्यों नहीं होते?
10 जब एक इंसान अचानक अंधेरे से उजियाले में आता है तो उसकी आँखें चुँधिया जाती हैं और ठीक से देख पाने के लिए उसे थोड़ा वक्त लग सकता है। बैतसैदा में जब यीशु ने एक अंधे आदमी को चंगा किया तो उसने उसका लिहाज़ करते हुए उसे कदम-ब-कदम ठीक किया। “वह उस अन्धे का हाथ पकड़कर उसे गांव के बाहर ले गया, और उस की आंखों में थूककर उस पर हाथ रखे, और उस से पूछा; क्या तू कुछ देखता है? उस ने आंख उठा कर कहा; मैं मनुष्यों को देखता हूं; क्योंकि वे मुझे चलते हुए दिखाई देते हैं, जैसे पेड़। तब उस ने फिर दोबारा उस की आंखों पर हाथ रखे, और उस ने ध्यान से देखा, और चंगा हो गया, और सब कुछ साफ साफ देखने लगा।” (मरकुस 8:23-25) यीशु ने उसकी आँखों की रोशनी धीरे-धीरे लौटायी ताकि उसे सूरज की तेज़ किरण देखने पर कोई दिक्कत न हो। हम कल्पना कर सकते हैं कि अपनी आँखों से देखकर वह कितना खुश हुआ होगा!
11 लेकिन उस आदमी से कहीं ज़्यादा खुशी उन लोगों को होती है जिन्हें कदम-ब-कदम आध्यात्मिक अंधकार से सच्चाई की रोशनी में लाया जाता है। जब हम उनकी खुशी देखते हैं तो शायद हम सोच में पड़ जाएँ कि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग इस रोशनी की ओर क्यों आकर्षित नहीं होते। यीशु इसकी वजह बताता है: “दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे। क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए।” (यूहन्ना 3:19,20) जी हाँ, कई लोग “बुराई” से प्रेम रखते हैं जैसे अनैतिकता, अत्याचार, झूठ बोलना, धोखाधड़ी और चोरी। और शैतान का आध्यात्मिक अंधकार ऐसे लोगों को बुराई करने के लिए एकदम सही माहौल देता है।
उजियाले में बढ़ते जाना
12. प्रकाश में आने से हमें क्या-क्या लाभ हुए हैं?
12 ज्ञान की रोशनी पाने के बाद से हमने अपने अंदर क्या-क्या बदलाव किए हैं? हमने आध्यात्मिक रूप से कितनी तरक्की की है, इस बारे में कभी-कभी याद करना और परखना अच्छा होगा। हमने कैसी बुरी आदतें छोड़ दी है? हम अपनी ज़िंदगी की किन समस्याओं का हल कर पाए हैं? भविष्य के बारे में हमारी योजनाएँ कैसे बदल गयी हैं? यहोवा से मिलनेवाली ताकत और उसकी पवित्र आत्मा की मदद से हम अपने व्यक्तित्व में और सोचने के ढंग में निरंतर बदलाव ला सकते हैं। इससे ज़ाहिर होगा कि हम आध्यात्मिक प्रकाश के मुताबिक काम कर रहे हैं। (इफिसियों 4:23, 24) पौलुस ने इसके बारे में कुछ इस तरह कहा: “तुम तो पहले अन्धकार थे परन्तु अब प्रभु में ज्योति हो, सो ज्योति की सन्तान की नाईं चलो। (क्योंकि ज्योति का फल सब प्रकार की भलाई, और धार्मिकता, और सत्य है)।” (इफिसियों 5:8, 9) यहोवा से मिलनेवाले प्रकाश के अनुसार जीने से हमें जीवन में एक आशा और एक मकसद मिलता है, साथ ही हमारे आस-पास रहनेवालों को भी खुशी मिलती है। और जब हम अपने अंदर ऐसे बदलाव करते हैं, तो यहोवा का मन भी कितना आनंदित होता है!—नीतिवचन 27:11.
13. यहोवा से मिलनेवाले प्रकाश के लिए हम अपना एहसान कैसे दिखा सकते हैं, और ऐसा करने के लिए हमें किस चीज़ की ज़रूरत है?
13 हम खुशियों से भरी ज़िंदगी के लिए अपना एहसान दिखाते हुए यहोवा का प्रकाश चमकाते हैं, यानी हम बाइबल से सीखी बातें अपने घरवालों, दोस्तों और पड़ोसियों को बताते हैं। (मत्ती 5:12-16; 24:14) जो लोग सुनने से इनकार कर देते हैं, उनके लिए हमारा प्रचार काम, साथ ही हमारी मसीही ज़िंदगी की बढ़िया मिसाल, एक ताड़ना साबित होती है। इस बारे में पौलुस समझाता है: “और यह परखो, कि प्रभु को क्या भाता है? और अन्धकार के निष्फल कामों में सहभागी न हो, बरन उन पर उलाहना दो।” (इफिसियों 5:10, 11) अंधकार छोड़कर उजियाले में आने में दूसरों की मदद करने के लिए हमें हिम्मत की ज़रूरत है। इससे भी ज़्यादा, उनके लिए हमारे दिल में दया और परवाह होनी चाहिए और उनको सच्चाई की रोशनी देने की दिली तमन्ना होनी चाहिए ताकि उनको हमेशा के लिए लाभ हो।—मत्ती 28:19, 20.
धोखा देनेवाली रोशनी से सावधान!
14. प्रकाश के मामले में, हमें कौन-सी चेतावनी माननी चाहिए?
14 रात के वक्त समुद्र में यात्रा करनेवालों को अगर कहीं रोशनी दिख जाए, तो वे खुश हो जाते हैं। पुराने ज़माने में इंग्लैंड में समुद्र के किनारे की खड़ी चट्टानों पर आग जलायी जाती थी जिससे मालूम पड़े कि तूफान आने पर शरण के लिए कहाँ जाना है। जहाज़ के नाविक ऐसी बत्तियों के लिए शुक्रगुज़ार होते थे, क्योंकि इनकी मदद से वे सही-सलामत बंदरगाह पहुँच जाते थे। लेकिन कुछ बत्तियाँ धोखा देने के लिए रखी जाती थीं। इसलिए कई जहाज़ बंदरगाह पहुँचने के बजाय गुमराह होकर समुद्र किनारे की चट्टानों से टकराकर डूब जाते थे और उनका सारा माल लूट लिया जाता था। इस फरेबी दुनिया में हमें बहुत सावधानी बरतनी चाहिए कि हम धोखा देने के लिए लगायी बत्तियों से भटक न जाएँ जिनसे हमारे विश्वास का जहाज़ डूब सकता है। हमें बताया गया है कि “शैतान आप भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का रूप धारण करता है।” उसी तरह उसके दास जिनमें धर्मत्यागी लोग भी शामिल हैं, “छल से काम करनेवाले” हैं और वे ‘धर्म के सेवकों का सा रूप धरते हैं।’ अगर हम ऐसे लोगों की झूठी दलीलों पर ध्यान देंगे, तो यहोवा के सत्य के वचन, बाइबल पर हमारा भरोसा कम हो सकता है और विश्वास मिट सकता है।—2 कुरिन्थियों 11:13-15; 1 तीमुथियुस 1:19.
15. जीवन की ओर ले जानेवाले मार्ग पर बने रहने के लिए हमें कौन-सी बात मदद देगी?
15 भजनहार ने लिखा: “तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।” (भजन 119:105) जी हाँ, हमसे प्यार करनेवाला परमेश्वर, यहोवा ‘जीवन को पहुंचानेवाले सकरे मार्ग’ पर उजियाला चमकाता है क्योंकि “वह यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (मत्ती 7:14; 1 तीमुथियुस 2:4) बाइबल की आज्ञाओं का पालन करने से हम इस सकरे मार्ग से हटकर अंधेरी राहों में नहीं भटकेंगे। पौलुस ने लिखा: “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और शिक्षा, ताड़ना, सुधार, और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है।” (2 तीमुथियुस 3:16, NHT) जैसे-जैसे हम आध्यात्मिक रूप से बढ़ते हैं, हम परमेश्वर के वचन से सिखलाए जाते हैं। परमेश्वर के वचन की रोशनी के आधार पर हम खुद को ताड़ना दे सकते हैं, या ज़रूरत पड़ने पर कलीसिया में प्यार से चरवाही करनेवाले भाई भी हमें ताड़ना दे सकते हैं। फिर उसके मुताबिक हम सुधार कर सकते हैं और धार्मिकता की शिक्षा को नम्रता से स्वीकार कर सकते हैं ताकि हमारे कदम जीवन के मार्ग पर बने रहें।
कदर दिखाते हुए उजियाले में चलिए
16. यहोवा ने प्रकाश देने का जो बढ़िया इंतज़ाम किया है, उसके लिए हम अपना एहसान कैसे दिखा सकते हैं?
16 यहोवा ने प्रकाश देने का जो बढ़िया इंतज़ाम किया है, उसके लिए हम कदर कैसे दिखा सकते हैं? यूहन्ना का 9वाँ अध्याय बताता है कि जब यीशु ने एक आदमी को चंगा किया जो जन्म से अंधा था तो वह आदमी कदर दिखाने के लिए प्रेरित हुआ। कैसे? उसने यीशु पर विश्वास किया कि वही परमेश्वर का पुत्र है और खुलेआम कहा कि यीशु एक “भविष्यद्वक्ता” है। इसके अलावा, जो लोग यीशु के चमत्कार को महत्त्व नहीं दे रहे थे, उनके सामने उसने निडर होकर यीशु के पक्ष में गवाही दी। (यूहन्ना 9:17, 30-34) प्रेरित पतरस ने मसीही कलीसिया के अभिषिक्त सदस्यों को “परमेश्वर की निज सम्पत्ति” कहा। ऐसा क्यों? क्योंकि उनका दिल भी उस आदमी की तरह एहसान से भरा हुआ है, जो जन्म से अंधा था और जिसे चंगा किया गया। वे अपने परोपकारी, यहोवा के ‘महान् गुणों को प्रगट करके’ अपना एहसान दिखाते हैं जिसने उन्हें “अंधकार से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है।” (1 पतरस 2:9, NHT; कुलुस्सियों 1:13) जिन लोगों को धरती पर जीने की आशा है, वे भी एहसानमंद हैं और यहोवा के “महान् गुणों” का सरेआम ऐलान करने में अपने अभिषिक्त भाइयों की मदद कर रहे हैं। वाकई परमेश्वर ने असिद्ध इंसानों को क्या ही सुअवसर दिया है!
17, 18. (क) हममें से हरेक की ज़िम्मेदारी क्या है? (ख) तीमुथियुस की मिसाल पर चलते हुए, हर मसीही को कैसे कामों से दूर रहना चाहिए?
17 सच्चाई की रोशनी की दिल से कदर करना बेहद ज़रूरी है। याद रखिए कि हममें से कोई भी जन्म से ही सच्चाई नहीं जानता। कुछ लोग बड़े होने के बाद सच्चाई सीखते हैं और वे तुरंत पहचान लेते हैं कि प्रकाश अंधकार से कितना श्रेष्ठ है। दूसरों को बचपन से ही, परमेश्वर का भय माननेवाले अपने माता-पिता से सच्चाई सीखने का सुनहरा मौका मिला है। ऐसे लोग, उजियाले के लिए अपनी कदरदानी बड़ी आसानी से खो सकते हैं। एक बहन, जिसके माता-पिता उसके पैदा होने से पहले ही यहोवा की सेवा कर रहे थे, कबूल करती है कि बचपन से उसे जो सच्चाइयाँ सिखायी गयी थीं, उनकी खासियत और अहमियत पूरी तरह समझने में उसे बहुत वक्त लगा और काफी मेहनत करनी पड़ी। (2 तीमुथियुस 3:15) हम चाहे जवान हों या बूढ़े, हममें से हरेक को चाहिए कि यहोवा की प्रकट की गयी सच्चाइयों के लिए हम अपने दिल में गहरी कदरदानी पैदा करें।
18 जवान तीमुथियुस को बालकपन से ही “पवित्र शास्त्र” के बारे में सिखाया गया था। लेकिन जब उसने खुद कड़ी मेहनत की, तभी वह एक प्रौढ़ मसीही बन पाया। (2 तीमुथियुस 3:15) इसकी वजह से वह प्रेरित पौलुस की मदद करने के काबिल बना। पौलुस ने उसे उकसाया: “अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” आइए हम सभी तीमुथियुस की तरह बनें, और ऐसा कोई काम न करें जिससे हमें लज्जित होना पड़े या यहोवा को हमारी वजह से लज्जित होना पड़े!—2 तीमुथियुस 2:15.
19. (क) दाऊद की तरह हम सभी के पास क्या कहने का हर कारण मौजूद है? (ख) अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?
19 सच्चाई की रोशनी देनेवाले यहोवा का गुणगान करने का हमारे पास हर कारण मौजूद है। राजा दाऊद की तरह हम भी कहते हैं: “हे यहोवा, तू ही मेरा दीपक है, और यहोवा मेरे अन्धियारे को दूर करके उजियाला कर देता है।” (2 शमूएल 22:29) फिर भी, हम यह कभी नहीं सोचते कि हम जो कर रहें हैं वह काफी है, क्योंकि ऐसा ख्याल हमें उसी अंधकार में वापस धकेल सकता है जहाँ से हम निकलकर आए हैं। इसलिए, अगला लेख यह जाँच करने में हमारी मदद करेगा कि हम परमेश्वर से मिली सच्चाई को अपनी ज़िंदगी में कितनी अहमियत देते हैं।
आपने क्या सीखा?
• यहोवा आध्यात्मिक रोशनी कैसे देता है?
• हमारे चारों तरफ छाया हुआ आध्यात्मिक अंधकार, हमारे लिए क्या चुनौती पेश करता है?
• हमें किन खतरों से दूर रहना चाहिए?
• सच्चाई के प्रकाश के लिए हम कदर कैसे दिखा सकते हैं?
[पेज 8 पर तसवीर]
यहोवा, सचमुच का और आध्यात्मिक उजियाला का सोता है
[पेज 10 पर तसवीर]
जैसा यीशु ने अंधे व्यक्ति को धीरे-धीरे चंगा किया, उसी तरह वह हमें आध्यात्मिक अंधकार से निकलने में मदद करता है
[पेज 11 पर तसवीर]
शैतान द्वारा चमकायी गयी झूठी रोशनी से भटकने पर हमारे विश्वास का जहाज़ डूब सकता है