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पहली सदी के यहूदियों में मसीहियत का प्रचारप्रहरीदुर्ग—2005 | अक्टूबर 15
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पहली सदी के यहूदियों में मसीहियत का प्रचार
सामान्य युग 49 के आस-पास यरूशलेम में एक खास बैठक हुई। इस बैठक में यूहन्ना, पतरस और यीशु का सौतेला भाई याकूब मौजूद था। ये लोग, पहली सदी की मसीही “कलीसिया के खम्भे समझे जाते थे।” बाइबल इनके अलावा और दो लोगों के नाम बताती है जो उस सभा में हाज़िर थे, प्रेरित पौलुस और उसका साथी बरनबास। बैठक का मुद्दा था, प्रचार के इतने बड़े इलाके को कैसे बाँटा जाए। आगे क्या हुआ, इस बारे में पौलुस बताता है: “[उन्होंने] मुझ को और बरनबास को दहिना हाथ देकर संग कर लिया, कि हम अन्यजातियों के पास जाएं, और वे खतना किए हुओं के पास।”—गलतियों 2:1, 9.a
यहाँ जो फैसला किया गया, उसका मतलब क्या था? जिस इलाके में सुसमाचार प्रचार करना था, क्या उसको इस तरह बाँटा गया था कि एक तरफ यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवालों का इलाका था और दूसरी तरफ अन्यजातियों का? या क्या उस समूचे इलाके को मोटे तौर पर दो हिस्सों में बाँटा गया था? इसका सही जवाब जानने के लिए हमें डाइस्पोरा यानी वादा किए देश से बाहर तितर-बितर होकर रहनेवाले यहूदियों का इतिहास जानने की ज़रूरत है।
पहली सदी में यहूदियों का समाज
पहली सदी में कितने यहूदी, वादा किए गए देश के बाहर के इलाकों में रहते थे? कई विद्वान, यहूदियों की दुनिया का नक्शा (अँग्रेज़ी) किताब से सहमत हैं जो कहती है: “यहूदियों की ठीक-ठीक गिनती बताना मुश्किल है, मगर अंदाज़ा लगाया गया है कि सा.यु. 70 के कुछ ही समय पहले पूरे यहूदिया में पच्चीस लाख और रोमी साम्राज्य के बाकी इलाकों में 40 लाख से ज़्यादा यहूदी थे। . . . मुमकिन है कि रोमी साम्राज्य की दस प्रतिशत आबादी यहूदियों की थी और पूर्वी प्रांतों के शहरों में जहाँ ज़्यादातर यहूदी रहते थे, वहाँ उनकी गिनती कुल आबादी की 25 प्रतिशत या उससे ज़्यादा थी।”
पूरब में ज़्यादातर यहूदी खासकर इन इलाकों में रहते थे: सूरिया, एशिया माइनर, बाबुल और मिस्र। इसके अलावा, यूरोप में उनकी छोटी-छोटी बिरादरियाँ भी मौजूद थीं। पहली सदी के कुछ जाने-माने यहूदी मसीही, इस्राएल देश के बाहर के इलाकों से थे। जैसे, बरनबास कुप्रुस का, प्रिस्का और अक्विला पुन्तुस और फिर रोम के, अपुल्लोस सिकंदरिया का और पौलुस तरसुस का।—प्रेरितों 4:36; 18:2, 24; 22:3.
इस्राएल देश के बाहर रहनेवाले यहूदी कई तरीकों से अपने वतन के साथ जुड़े हुए थे। एक तरीका था, यरूशलेम के मंदिर के लिए सालाना कर भेजना। इस तरह वे मंदिर के रख-रखाव वगैरह और उपासना में हिस्सा लेते थे। इस बारे में विद्वान जॉन बार्कले कहते हैं: “पक्के सबूतों से पता चलता है कि इस्राएल के बाहर की यहूदी बिरादरियाँ बिना नागा कर का पैसा, साथ ही रईसों से मिलनेवाला दान इकट्ठा किया करती थीं।”
एक और तरीके से ये यहूदी अपने वतन के साथ जुड़े हुए थे। हर साल हज़ारों यहूदी, पर्व मनाने यरूशलेम जाते थे। प्रेरितों 2:9-11 में दर्ज़, सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त का वाकया इस बात को पुख्ता करता है। उस पर्व में मौजूद यहूदी पारथिया, मादै, एलाम, मसोपोटामिया, कप्पदूकिया, पुन्तुस, एशिया, फ्रूगिया, पमफूलिया, मिस्र, लिबूआ (लिबिया), रोम, क्रेते और अरब से आए थे।
याजकों और महासभा के सदस्यों से बना मंदिर का प्रशासन, खतों के ज़रिए इस्राएल देश के बाहर बसे यहूदियों से संपर्क रखता था। यह जानी-मानी बात है कि प्रेरितों 5:34 में बताया गया व्यवस्थापक, गमलीएल बाबुल और दुनिया के दूसरे हिस्सों को खत भेजा करता था। सामान्य युग 59 के आस-पास, जब प्रेरित पौलुस एक कैदी बनकर रोम आया तो “यहूदियों के बड़े लोगों” ने उससे कहा: “न हम ने तेरे विषय में यहूदियों से चिट्ठियां पाईं, और न भाइयों में से किसी ने आकर तेरे विषय में कुछ बताया, और न बुरा कहा।” इससे पता चलता है कि इस्राएल देश से रोम तक अकसर चिट्ठियाँ और रिपोर्टें भेजी जाती थीं।—प्रेरितों 28:17, 21.
इस्राएल देश के बाहर रहनेवाले यहूदी, बाइबल के इब्रानी शास्त्र का यूनानी अनुवाद पढ़ते थे जिसे सेप्टुआजेंट कहा जाता है। एक किताब कहती है: “यह मानने के वाजिब कारण हैं कि जहाँ-जहाँ यहूदी बिरादरियाँ थीं, वहाँ LXX [सेप्टुआजेंट] को यहूदी बाइबल या ‘पवित्र शास्त्र’ के तौर पर पढ़ा जाता था।” शुरू के मसीहियों ने अपने सिखाने के काम में इसी अनुवाद का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया।
यरूशलेम में, मसीही शासी निकाय के सदस्य इन हालात से वाकिफ थे। तब तक, सूरिया में और उससे भी आगे, दमिश्क और अन्ताकिया जैसे इलाकों में रहनेवाले यहूदियों को सुसमाचार सुनाया जा चुका था। (प्रेरितों 9:19, 20; 11:19; 15:23, 41; गलतियों 1:21) तो ज़ाहिर है कि सा.यु. 49 की बैठक में मौजूद लोग, भविष्य में होनेवाले प्रचार काम की योजना बना रहे थे। आइए बाइबल के उन हवालों पर गौर करें जिनमें यहूदियों और यहूदी मतधारकों के मसीही बनने की बात कही गयी है।
पौलुस की यात्राओं और इस्राएल देश से बाहर के यहूदियों के बीच नाता
प्रेरित पौलुस को शुरू में “अन्यजातियों और राजाओं, और इस्राएलियों के साम्हने [यीशु मसीह का] नाम प्रगट” करने का काम सौंपा गया था।b (प्रेरितों 9:15) यरूशलेम में हुई बैठक के बाद, पौलुस जहाँ-जहाँ गया वहाँ के यहूदियों को प्रचार करता रहा। (पेज 14 पर बक्स देखिए।) इससे मालूम चलता है कि बैठक में प्रचार के इलाके को मोटे तौर पर दो हिस्सों में बाँटा गया था। पौलुस और बरनबास को पश्चिमी इलाकों में अपनी मिशनरी सेवा जारी रखनी थी, जबकि बाकियों को यहूदियों के वतन, इस्राएल में और पूरब में यहूदियों की बड़ी-बड़ी बिरादरियों में प्रचार करना था।
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पहली सदी के यहूदियों में मसीहियत का प्रचारप्रहरीदुर्ग—2005 | अक्टूबर 15
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बाबुल में भी, यहूदियों की बहुत बड़ी आबादी रहती थी। वहाँ से वे पारथिया, मादै, और एलाम के इलाकों में भी फैले हुए थे। एक इतिहासकार कहता है: “आर्मीनिया से लेकर फारस की खाड़ी तक, साथ ही उत्तर-पूर्व में कैस्पियन सागर और पूरब में मादै तक, टिग्रिस और फरात के मैदानों में हर आबाद इलाके में यहूदी लोग पाए जाते थे।” इनसाइक्लोपीडिया जुडाइका के मुताबिक, उनकी गिनती 8,00,000 या उससे ज़्यादा थी। पहली सदी के यहूदी इतिहासकार जोसीफस बताते हैं कि हर साल, बाबुल के आस-पास के इलाकों से हज़ारों यहूदी, पर्व मनाने के लिए यरूशलेम जाते थे।
क्या बाबुल से आए कुछ यहूदियों ने सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन बपतिस्मा लिया था? हम नहीं जानते, मगर उस दिन प्रेरित पतरस का भाषण सुननेवालों में से कुछ लोग मिसुपुतामिया से आए थे। (प्रेरितों 2:9) हम इतना ज़रूर जानते हैं कि सा.यु. 62-64 के करीब प्रेरित पतरस बाबुल में था। वहीं से उसने अपने नाम की पहली पत्री और शायद दूसरी पत्री भी लिखी थी। (1 पतरस 5:13) बाबुल में बहुत सारे यहूदी रहते थे, इसलिए ज़ाहिर है कि गलतियों की पत्री में जिस बैठक का ज़िक्र है, उसमें पतरस, यूहन्ना और याकूब को इस इलाके में प्रचार करने के लिए कहा गया था।
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पहली सदी के यहूदियों में मसीहियत का प्रचारप्रहरीदुर्ग—2005 | अक्टूबर 15
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a यह बैठक पहली सदी में शायद उसी दौरान हुई थी जब शासी निकाय ने खतने के मसले पर फैसला लिया था।—प्रेरितों 15:6-29.
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