अध्ययन लेख 12
गीत 77 अँधेरी दुनिया में सच्चाई की रौशनी
अंधकार से दूर रहिए और रौशनी में चलते रहिए
‘तुम एक वक्त पर अंधकार में थे, मगर अब तुम रौशनी में हो।’—इफि. 5:8.
क्या सीखेंगे?
इफिसियों अध्याय 5 में जब पौलुस ने अंधकार और रौशनी की बात की, तो उसका क्या मतलब था?
1-2. (क) पौलुस ने किन हालात में इफिसुस के मसीहियों को चिट्ठी लिखी? (ख) हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?
प्रेषित पौलुस रोम में एक घर में कैद था। वह अपने भाई-बहनों का हौसला बढ़ाना चाहता था। अब क्योंकि वह उनसे मिलने नहीं जा सकता था, इसलिए उसने उन्हें चिट्ठियाँ लिखीं। उनमें से एक चिट्ठी उसने ईसवी सन् 60 या 61 में इफिसुस के मसीहियों को लिखा।—इफि. 1:1; 4:1.
2 करीब दस साल पहले पौलुस इफिसुस में था। उसने वहाँ लोगों को खुशखबरी सुनाने और शास्त्र से सिखाने में काफी समय बिताया था। (प्रेषि. 19:1, 8-10; 20:20, 21) वह वहाँ के भाई-बहनों से बहुत प्यार करता था और यहोवा के वफादार रहने में उनकी मदद करना चाहता था। अपनी चिट्ठी में उसने वहाँ के अभिषिक्त मसीहियों को अंधकार और रौशनी के बारे में लिखा। उसने इस बारे में उन्हें क्यों लिखा? और उसने उन्हें जो सलाह दी, उससे हम सभी मसीही क्या सीख सकते हैं? आइए इन सवालों के जवाब जानें।
अंधकार से रौशनी में
3. इफिसुस के मसीहियों के बारे में बात करते वक्त पौलुस ने कौन-से शब्द इस्तेमाल किए?
3 पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को लिखा, ‘तुम एक वक्त पर अंधकार में थे, मगर अब तुम रौशनी में हो।’ (इफि. 5:8) पौलुस ने शब्द, “अंधकार” और “रौशनी” क्यों इस्तेमाल किए? वह यह समझाना चाहता था कि इफिसुस के मसीही सच्चाई सीखने से पहले जैसे थे और अब जैसे हैं, उसमें बहुत बड़ा फर्क है। आइए देखें कि पौलुस ने ऐसा क्यों कहा कि वहाँ के मसीही “एक वक्त पर अंधकार में थे।”
4. इफिसुस के लोग किस मायने में अंधकार में थे?
4 झूठे धर्मों की वजह से अंधकार में। इफिसुस के मसीही सच्चाई सीखने से पहले झूठे धर्मों की शिक्षाएँ मानते थे और जादू-टोना करते थे। इफिसुस शहर में अरतिमिस देवी का एक मशहूर मंदिर था। उस ज़माने में यह मंदिर दुनिया के सात अजूबों में से एक माना जाता था। वहाँ के लोग मूर्तिपूजा में लगे हुए थे। कुछ लोग तो अरतिमिस देवी के छोटे-छोटे मंदिर बनाकर बेचते थे और खूब पैसा कमाते थे। यह एक बहुत बड़ा कारोबार था। (प्रेषि. 19:23-27) इसके अलावा यह शहर जादू-टोने के लिए भी जाना जाता था।—प्रेषि. 19:19.
5. इफिसुस के लोग किस मायने में अनैतिक कामों की वजह से अंधकार में थे?
5 अनैतिक कामों की वजह से अंधकार में। इफिसुस के लोग बहुत ही घिनौने अनैतिक कामों में और निर्लज्ज कामों में लगे हुए थे। वहाँ के थिएटरों में बहुत ही अश्लील नाटक दिखाए जाते थे। इतना ही नहीं, धार्मिक त्योहारों में भी अकसर गंदी बातें सुनने को मिलती थीं। (इफि. 5:3) वहाँ के ज़्यादातर लोग “शर्म-हया की सारी हदें पार कर चुके” थे और जैसा फुटनोट में बताया है “उनका एहसास मिट चुका” था कि वे गलत काम कर रहे हैं। (इफि. 4:17-19) जब तक इफिसुस के मसीही यहोवा के स्तर नहीं जानते थे, उन्हें गलत काम करने पर कोई फर्क नहीं पड़ता था, उनका ज़मीर मानो सुन्न पड़ हुआ था। वे यह भी नहीं सोचते थे कि उन्हें अपने गलत कामों के लिए यहोवा को हिसाब देना होगा। इसी वजह से पौलुस ने उनके बारे में कहा कि वे “दिमागी तौर पर अंधकार में हैं और उस ज़िंदगी से दूर हैं जो परमेश्वर देता है।”
6. पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों से ऐसा क्यों कहा कि ‘अब वे रौशनी में हैं’?
6 इफिसुस के कुछ लोग हमेशा तक अंधकार में नहीं रहे। पौलुस ने उनके बारे में लिखा कि ‘अब वे प्रभु के साथ एकता में होने की वजह से रौशनी में हैं।’ (इफि. 5:8) वे बाइबल में दी सच्चाई के हिसाब से जीने लगे थे, जो रौशनी की तरह है। (भज. 119:105) उन्होंने झूठे धर्मों के रीति-रिवाज़ मानना और अनैतिक काम करना छोड़ दिया था। वे ‘परमेश्वर की मिसाल पर चल रहे थे’ और उसकी उपासना करने और उसे खुश करने की पूरी कोशिश कर रहे थे।—इफि. 5:1.
7. हम किस तरह इफिसुस के मसीहियों की तरह हैं?
7 उसी तरह सच्चाई सीखने से पहले हम भी अंधकार में थे। हममें से कुछ झूठे धर्मों के त्योहार मनाते थे, तो कुछ अनैतिक ज़िंदगी जीते थे। लेकिन जब हमने यहोवा के स्तरों के बारे में सीखा यानी यह जाना कि क्या सही है और क्या गलत, तो हमने अपने अंदर बदलाव किए और यहोवा के स्तरों के हिसाब से जीने लगे। इस वजह से हम सभी को कई फायदे हुए हैं। (यशा. 48:17) लेकिन हमें आगे भी मेहनत करते रहनी है। हमें अंधकार से दूर रहना है यानी ऐसे कामों से बचना है जो हमने छोड़ दिए थे और ‘रौशनी की संतानों के नाते चलते रहना है।’ यह हम कैसे कर सकते हैं?
अंधकार से दूर रहिए
8. इफिसियों 5:3-5 के मुताबिक इफिसुस के मसीहियों को किन बातों से दूर रहना था?
8 इफिसियों 5:3-5 पढ़िए। इफिसुस में अनैतिक कामों की वजह से जो अंधकार फैला हुआ था, उससे दूर रहने के लिए वहाँ के मसीहियों को क्या करना था? उन्हें हमेशा ऐसे कामों से दूर रहना था जिनसे यहोवा नफरत करता है। इसका मतलब, उन्हें ना सिर्फ अनैतिक कामों से दूर रहना था बल्कि गंदी बातें भी नहीं करनी थीं और ना सुननी थीं। पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को याद दिलाया कि अगर वे “मसीह के और परमेश्वर के राज में कोई विरासत” पाना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसी सभी बातों और कामों से दूर रहना होगा।
9. हमें हर तरह के अनैतिक कामों और बातों से क्यों दूर रहना चाहिए?
9 हमें भी हमेशा इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि कहीं हम फिर से “अंधकार के निकम्मे काम” ना करने लगें। (इफि. 5:11) जो इंसान गंदी तसवीरें देखता है, अश्लील बातें करता है या ऐसी बातें सुनता है, वह बड़ी आसानी से अनैतिक काम करने लग सकता है। और ऐसा कई लोगों के साथ हुआ भी है। (उत्प. 3:6; याकू. 1:14, 15) एक देश में कई साक्षियों ने ऑनलाइन ग्रुप बनाया जिसमें वे एक-दूसरे को मैसेज भेजते थे। शुरू-शुरू में ज़्यादातर साक्षी सच्चाई के बारे में बात करते थे, लेकिन धीरे-धीरे वे ऐसी बातें करने लगे जो यहोवा को नहीं पसंद। उनकी ज़्यादातर बातें अनैतिक कामों के बारे में होने लगी। बाद में उनमें से कई साक्षियों ने कहा कि इस तरह की गंदी बातचीत की वजह से ही वे अनैतिक काम कर बैठे।
10. शैतान हमें किस तरह गुमराह करने की कोशिश करता है? (इफिसियों 5:6)
10 शैतान की दुनिया हमें गुमराह करना चाहती है। यह हमें यकीन दिलाना चाहती है कि जिन बातों को यहोवा अनैतिक और गंदी समझता है, वे बिलकुल भी गलत नहीं हैं। (2 पत. 2:19) पर यह कोई हैरानी की बात नहीं है, यह शैतान की बहुत पुरानी चाल है। वह शुरू से ही लोगों को बहका रहा है ताकि वे सही-गलत में फर्क ना कर सकें। (यशा. 5:20; 2 कुरिं. 4:4) इसी वजह से आज ज़्यादतर फिल्मों, टी.वी कार्यक्रमों और वेबसाइट में ऐसी बातों का बढ़ावा दिया जाता है जो यहोवा के स्तरों के खिलाफ हैं। शैतान हमें यकीन दिलाने की कोशिश करता है कि गंदे काम करने में और अनैतिक ज़िंदगी जीने में कोई बुराई नहीं है, बल्कि इसमें मज़ा आता है और इससे किसी को कोई नुकसान नहीं होता।—इफिसियों 5:6 पढ़िए।
11. बहन ऐंजेला के अनुभव से कैसे पता चलता है कि इफिसियों 5:7 में दी सलाह मानना बहुत ज़रूरी है? (तसवीर भी देखें।)
11 शैतान चाहता है कि हम ऐसे लोगों के साथ संगति करें जिनकी वजह से यहोवा के स्तर मानना हमारे लिए मुश्किल हो जाए। इसी वजह से पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे ऐसे लोगों के साथ ‘साझेदार ना बनें’ जो यहोवा की नज़र में बुरे काम करते हैं। (इफि. 5:7) हमें याद रखना है कि संगति करने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम किन लोगों के साथ उठते-बैठते हैं, बल्कि यह भी कि हम सोशल मीडिया पर किन लोगों के साथ बातचीत करते हैं। इफिसुस के मसीहियों के सामने सोशल मीडिया का खतरा नहीं था, लेकिन हमारे सामने है, इसलिए हमें और भी सावधान रहना है। एशिया के एक देश में रहनेवाली बहन ऐंजेलाa ने महसूस किया कि सोशल मीडिया कितना बड़ा खतरा हो सकता है। वे बताती हैं, “सोशल मीडिया हमारे लिए फंदा बन सकता है। इससे हमारा ज़मीर धीरे-धीरे सुन्न पड़ सकता है। मेरे साथ यही हुआ। मैं ऐसे लोगों से दोस्ती करने लगी जिन्हें यहोवा के स्तरों की कोई कदर नहीं थी और मुझे इस बात से कोई फर्क भी नहीं पड़ रहा था। मैं जानती थी कि यहोवा किन कामों से नफरत करता है, लेकिन मुझे लगने लगा कि ठीक है, थोड़ा-बहुत तो चलता है।” लेकिन प्राचीनों की मदद से बहन एंजेला अपनी सोच बदल पायीं। वे कहती हैं, “अब मैं अपना मन यहोवा की बातों पर लगाती हूँ, ना कि सोशल मीडिया पर।”
12. यहोवा के स्तरों पर चलते रहने के लिए हमें किस बात का ध्यान रखना होगा?
12 यह दुनिया बार-बार हमें यकीन दिलाने की कोशिश करती है कि अनैतिक काम करने में कोई बुराई नहीं है। हम जानते हैं कि यह गलत है, फिर भी हमें जी-तोड़ मेहनत करनी होगी ताकि दुनिया की सोच हम पर हावी ना हो जाए। (इफि. 4:19, 20) हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘जब यहोवा के स्तरों को मानने की वजह से लोग मेरा मज़ाक उड़ाते हैं या मुझे बुरा-भला कहते हैं, क्या तब भी मैं हिम्मत से काम लेता हूँ और उसके स्तरों को मानता हूँ? क्या मैं इस बात का ध्यान रखता हूँ कि मैं बेवजह ऐसे लोगों के साथ वक्त ना बिताऊँ जो यहोवा के स्तरों को नहीं मानते, जैसे साथ पढ़नेवाले बच्चे, ऑफिस के लोग और ऐसे ही दूसरे लोग?’ 2 तीमुथियुस 2:20-22 से पता चलता है कि हमें मंडली में भी सोच-समझकर दोस्त बनाने चाहिए। वह इसलिए कि मंडली में भी ऐसे कुछ लोग हो सकते हैं जो हमें यहोवा से दूर ले जाएँ।
“रौशनी की संतानों के नाते” चलिए
13. ‘रौशनी की संतानों के नाते चलते रहने’ का क्या मतलब है? (इफिसियों 5:7-9)
13 पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों से कहा कि उन्हें हमेशा अंधकार से तो दूर रहना ही है, लेकिन साथ ही उन्हें ‘रौशनी की संतानों के नाते भी चलते रहना है।’ (इफिसियों 5:7-9 पढ़िए) इसका क्या मतलब है? सीधे-सीधे कहें तो हमें हर वक्त याद रखना चाहिए कि हम सच्चे मसीही हैं और हमें उसी हिसाब से ज़िंदगी जीनी चाहिए। ऐसा करने का एक तरीका है कि हम दिल लगाकर बाइबल और उस पर आधारित प्रकाशन पढ़ें और उनका अध्ययन करें। हमारे लिए यह भी ज़रूरी है कि हम यीशु के जैसा बनने की पूरी कोशिश करें जो “दुनिया की रौशनी” है और उसकी शिक्षाओं पर पूरा ध्यान दें।—यूह. 8:12; नीति. 6:23.
14. पवित्र शक्ति कैसे हमारी मदद कर सकती है?
14 हमें पवित्र शक्ति की भी मदद लेनी होगी ताकि हम हमेशा “रौशनी की संतानों” की तरह जी पाएँ। वह क्यों? क्योंकि यह दुनिया अनैतिक लोगों से भरी पड़ी है। ऐसे में खुद को शुद्ध बनाए रखना आसान नहीं है। (1 थिस्स. 4:3-5, 7, 8) लेकिन पवित्र शक्ति की मदद से हम दुनिया की सोच ठुकरा पाएँगे, हम ऐसी सोच और रवैए को खुद पर हावी नहीं होने देंगे जो परमेश्वर की सोच से मेल नहीं खाता। इसके अलावा पवित्र शक्ति की मदद से हम ‘हर तरह की भलाई और नेकी’ कर पाएँगे।—इफि. 5:9.
15. पवित्र शक्ति पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? (इफिसियों 5:19, 20)
15 पवित्र शक्ति पाने का एक तरीका है कि हम उसके लिए प्रार्थना करें। यीशु ने कहा था कि यहोवा “माँगनेवालों को पवित्र शक्ति” ज़रूर देगा। (लूका 11:13) इसके अलावा सभाओं में साथ मिलकर यहोवा की उपासना करने से भी हमें पवित्र शक्ति मिलती है। (इफिसियों 5:19, 20 पढ़िए।) जब पवित्र शक्ति हम पर काम करती है, तो हम ऐसी ज़िंदगी जी पाते हैं जिससे यहोवा खुश होता है।
16. सही फैसले लेने के लिए हमें क्या करना होगा? (इफिसियों 5:10, 17)
16 जब हमें कोई ज़रूरी फैसला लेना होता है, तो हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उस मामले में “यहोवा की मरज़ी क्या है” और फिर उस हिसाब से काम करना चाहिए। (इफिसियों 5:10, 17 पढ़िए।) ऐसे में जब हम बाइबल सिद्धांतों को जानने की कोशिश करते हैं, तो असल में हम यहोवा की सोच जान पाते हैं। और फिर उन सिद्धांतों के हिसाब से हम सही फैसले कर पाते हैं।
17. हम कैसे अपने वक्त का सही इस्तेमाल कर सकते हैं? (इफिसियों 5:15, 16) (तसवीर भी देखें।)
17 पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को सलाह दी कि वे अपने वक्त का सोच-समझकर इस्तेमाल करें। (इफिसियों 5:15, 16 पढ़िए।) शैतान बहुत ही “दुष्ट” है, उसकी यही कोशिश रहती है कि हम दुनिया के कामों में इतने व्यस्त हो जाएँ कि यहोवा की सेवा के लिए हमारे पास वक्त ही ना बचे। (1 यूह. 5:19, फु.) इस वजह से हो सकता है कि एक मसीही पैसा कमाने, पढ़ाई करने और करियर बनाने में इतना डूब जाए कि वह यहोवा की सेवा में पीछे रह जाए। अगर एक मसीही के साथ ऐसा होता है, तो इसका मतलब है कि दुनिया की सोच उस पर हावी हो रही है। वैसे पैसा कमाना, पढ़ाई करना, यह सब अपने आप में गलत नहीं है, लेकिन हमें कभी-भी इन कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह नहीं देनी चाहिए। “रौशनी की संतानों के नाते” चलते रहने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम “अपने वक्त का सही इस्तेमाल” करें यानी ज़्यादा ज़रूरी बातों पर ध्यान दें।
18. अपने वक्त का सही इस्तेमाल करने के लिए डॉनल्ड ने क्या किया?
18 इस बारे में सोचिए कि आप कैसे यहोवा की और ज़्यादा सेवा कर सकते हैं। दक्षिण अफ्रीका में रहनेवाले भाई डॉनल्ड ने ऐसा ही किया। वे बताते हैं, “मैंने इस बारे में सोचा कि मैं और ज़्यादा प्रचार करने के लिए क्या कर सकता हूँ और इस बारे में यहोवा से दिल से प्रार्थना की। मैंने उससे बिनती की कि मुझे एक ऐसा काम मिल जाए जिससे मैं प्रचार में ज़्यादा वक्त बिता पाऊँ। यहोवा ने मेरी मदद की और मुझे एक ऐसी ही नौकरी मिल गयी। फिर मैंने और मेरी पत्नी ने साथ में पूरे समय की सेवा शुरू कर दी।”
19. “रौशनी की संतानों के नाते” चलते रहने के लिए हमें क्या करना होगा?
19 पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को जो चिट्ठी लिखी, उससे उन्हें यहोवा के वफादार रहने में बहुत मदद मिली होगी। यहोवा की तरफ से उन्हें जो सलाह मिली, उसे मानने से आज हमें भी फायदा हो सकता है। जैसे, हम मनोरंजन के मामले में और दोस्त चुनते वक्त सोच-समझकर फैसले ले पाएँगे। हम लगातार बाइबल का अध्ययन करेंगे ताकि हम सच्चाई की रौशनी में चलते रहें। हम यह भी समझेंगे कि पवित्र शक्ति की मदद लेना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि तभी हम अपने अंदर अच्छे गुण बढ़ा पाएँगे। साथ ही, हम सही फैसले कर पाएँगे जो यहोवा की मरज़ी के मुताबिक हों। यह सब करने से हम अंधकार से दूर रह पाएँगे और रौशनी में चलते रहेंगे!
आपका जवाब क्या होगा?
इफिसियों 5:8 में बताए “अंधकार” और “रौशनी” का क्या मतलब है?
हम “अंधकार” से कैसे दूर रह सकते हैं?
हम कैसे ‘रौशनी की संतानों के नाते चलते रह’ सकते हैं?
गीत 95 बढ़ती है रौशनी सच्चाई की
a इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।
b तसवीर के बारे में: प्रेषित पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को जो चिट्ठी लिखी थी, उसकी एक बहुत पुरानी नकल