अध्याय २९
पारिवारिक जीवन को सफल बनाना
१. (क) परिवार का प्रारंभ कैसे हुआ था? (ख) परिवार के संबंध में परमेश्वर का उद्देश्य क्या था?
जब यहोवा परमेश्वर ने प्रथम पुरुष और स्त्री को सृष्ट किया तो उसने परिवार उत्पन्न करने के लिये दोनों को मिलाया। (उत्पत्ति २:२१-२४; मत्ती १९:४-६) इस विवाहित दंपत्ति के लिये परमेश्वर का यह उद्देश्य था कि वे बच्चे उत्पन्न करें और फलें-फूलें। तब, जब बच्चे बड़े हों तब उनका भी विवाह हो और वे अपने स्वयं के परिवार बनाये। परमेश्वर का यह उद्देश्य था कि समय आने पर पृथ्वी के प्रत्येक भाग को सुखी परिवार आबाद करेंगे। वे पृथ्वी के प्रत्येक भाग को एक सुन्दर परादीस बनायेंगे।—उत्पत्ति १:२८.
२, ३. (क) पारिवारिक असफलताओं के लिए परमेश्वर को क्यों दोषी नहीं ठहराया जा सकता? (ख) एक सफल पारिवारिक जीवन का आनन्द लेने के लिए क्या आवश्यक है?
२ फिर भी आज परिवार टूटते जा रहे हैं और जो परिवार इकट्ठे भी रहते हैं वे भी सुखी नहीं हैं। अतः एक व्यक्ति यह पूछे: ‘यदि परमेश्वर ने वास्तव में परिवार की सृष्टि की है तो क्या हमें उत्तम परिणामों की प्रत्याशा नहीं करनी चाहिये?” तथापि पारिवारिक असफलताओं के लिये परमेश्वर को दोष नहीं दिया जा सकता है। एक निर्माता किसी वस्तु का उत्पादन करता है और उसके प्रयोग करने के संबंध में निर्देश देता है। परन्तु क्या इसके लिए निर्माता दोषी है यदि वह वस्तु इसलिये काम नहीं करती है क्योंकि उसका क्रेता निर्देशों के अनुसार उस वस्तु का प्रयोग नहीं करता है? बिल्कुल नहीं। वह वस्तु यद्यपि कि वह उच्च कोटि की है, अवश्य काम नहीं करेगी क्योंकि उसका उचित रूप से उपयोग नहीं हुआ है। इसी तरह एक परिवार के साथ भी इसी समान होता है।
३ यहोवा परमेश्वर ने बाइबल में पारिवारिक जीवन पर निर्देश दिये हैं। परन्तु इन निर्देशों की उपेक्षा की जाय, तब क्या हो? यद्यपि पारिवारिक व्यवस्था आदर्श भी हो तो वह टूट सकती है। तब परिवार के सदस्य सुखी नहीं रहेंगे। दूसरी ओर यदि बाइबल में दी गयी नीतियों का अनुसरण किया जाय तो उससे एक सफल सुखी परिवार बनेगा। इसलिये यह अनिवार्य है कि हम इस बात को समझे कि परमेश्वर ने परिवार के भिन्न सदस्यों को कैसे बनाया है और उनके लिये क्या कर्त्तव्य नियत किये हैं, जिन्हें वे पूरा करें।
परमेश्वर ने पुरुष और स्त्री को किस प्रकार बनाया
४. (क) पुरुषों और स्त्रियों के मध्य क्या भिन्नताएं हैं? (ख) परमेश्वर ने क्यों इस प्रकार की भिन्नताएं सृष्ट कीं?
४ कोई भी व्यक्ति देख सकता है कि यहोवा ने पुरुष और स्त्री को एक समान नहीं बनाया है। यह सच है कि वह कई बातों में एक दूसरे के समान हैं। परन्तु उनके शारीरिक रूपरंग और यौन संबंधी रचना में प्रत्यक्ष भिन्नताएं हैं। इसके अतिरिक्त वे भिन्न भावात्मक विशेषताएं रखते हैं। ये भिन्नताएं क्यों हैं? परमेश्वर ने उनको इस प्रकार से बनाया जिससे कि उन दोनों को अपने भिन्न कर्त्तव्य पूरा करने में सहायता मिले। पुरुष को सृष्ट करने के बाद परमेश्वर ने कहा: “पुरुष का अकेला रहना अच्छा नहीं, मैं उसके लिये ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उसके लिये पूरक सिद्ध हो।”—उत्पत्ति २:१८.
५. (क) स्त्री को पुरुष का “पूरक” कैसे बनाया गया? (ख) पहला विवाह कहाँ संपन्न हुआ था? (ग) विवाह क्यों वास्तविक सुखद प्रबन्ध हो सकता है?
५ पूरक वह वस्तु है जो किसी दूसरी वस्तु के साथ मेल खाती है या उपयुक्त सिद्ध होती है और उसे पूर्णत्व प्रदान करती है। परमेश्वर ने स्त्री को पुरुष के लिये एक सन्तोषजनक साथी बनाया जिससे कि वह पृथ्वी को आबाद करने और उसकी देखरेख करने के ईश्वरदत्त निर्देशों को कार्यान्वित करने में उसको सहायता दे। अतः पुरुष के शरीर के भाग से स्त्री को सृष्ट करने के बाद परमेश्वर ने अदन के उद्यान में उसे ‘पुरुष के पास लाकर पहला विवाह संपन्न किया।’ (उत्पत्ति २:२२; १ कुरिन्थियों ११:८, ९) विवाह एक उत्तम व्यवस्था हो सकती है क्योंकि पुरुष और स्त्री दोनों को इस प्रकार बनाया है कि वे एक दूसरे की आवश्यकता को पूरा करने की योग्यता रखते हैं। उनकी भिन्न विशेषताएं एक दूसरे को संतुलित रखती हैं। जब एक पति और पत्नी एक दूसरे को समझते हैं और एक दूसरे की कद्र करते हैं और निर्धारित कर्त्तव्यों के अनुसार सहयोग करते हैं तो वे एक सुखी घर बनाने में अपना अपना योगदान देते हैं।
पति का कर्त्तव्य
६. (क) किसे परिवार का प्रधान बनाया गया था? (ख) यह क्यों उचित और व्यावहारिक है?
६ विवाह अथवा एक परिवार को नेतृत्व की आवश्यकता है। एक पुरुष अधिक मात्रा में उन विशेषताओं और शक्तियों के साथ सृष्ट किया गया है जो इस प्रकार का नेतृत्व प्रदान करने के लिये आवश्यक है। इस कारण से बाइबल कहती है: “एक पति अपनी पत्नी का सिर है जैसे कि यीशु मसीह भी कलीसिया का सिर है।” (इफिसियों ५:२३) यह एक व्यावहारिक बात है क्योंकि जब कोई नेतृत्व नहीं होता है वहाँ समस्या और गड़बड़ी उत्पन्न होती है। प्रधानता के बिना एक परिवार उस मोटरगाड़ी के समान है जिसे चालन चक्का के बिना चलाने का प्रयत्न किया जाय। अथवा यदि एक पत्नी इस प्रकार की प्रधानता के लिये प्रतियोगिता में भाग ले तो यह एक मोटरगाड़ी में दो चालकों के होने के समान है जिनमें प्रत्येक के पास सामने के पृथक पहिये को नियन्त्रण करने के लिए अपना-अपना चालन चक्का है।
७. (क) क्यों कुछ स्त्रियाँ पुरुष की प्रधानता के विचार को पसन्द नहीं करती हैं? (ख) क्या प्रत्येक व्यक्ति का कोई प्रधान है और क्यों परमेश्वर का प्रधानता संबंधी प्रबन्ध एक बुद्धिमता की बात है?
७ तथापि अनेक स्त्रियाँ इस विचार को पसन्द नहीं करती हैं कि एक पुरुष परिवार का प्रधान हो। इसका एक मुख्य कारण यह है कि अनेक पतियों ने इस संबंध में कि उचित प्रधानता को कैसे कार्यान्वित किया जाना चाहिये, परमेश्वर के निर्देशों का अनुसरण नहीं किया है। फिर भी यह एक मान्य वास्तविकता है कि किसी संगठन के भली-भांति संचालन के लिये ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो निर्देश प्रस्तुत करे और अंतिम निर्णय वही दे। इस प्रकार बाइबल बुद्धिमत्ता की बात कहती है: “हर पुरुष का सिर मसीह है; इसी प्रकार पुरुष स्त्री का सिर है जैसे परमेश्वर मसीह का सिर है।” (१ कुरिन्थियों ११:३) परमेश्वर की व्यवस्था में केवल परमेश्वर है जिसका कोई प्रधान नहीं है। परमेश्वर के अतिरिक्त सबको जिसमें यीशु मसीह और पति और पत्नियाँ भी सम्मिलित हैं, निर्देश स्वीकार करने और दूसरों के निर्णयों की अधीनता स्वीकार करने की आवश्यकता है।
८. (क) प्रधानता की कार्यान्विति में पतियों को किसके उदाहरण का अनुसरण करना चाहिये? (ख) पतियों को उस उदाहरण से क्या शिक्षा प्राप्त करनी चाहिये?
८ इसका यह अर्थ है कि पतियों के रूप में अपना कर्त्तव्य पूरा करने के लिये पुरुषों को मसीह की प्रधानता को स्वीकार करना चाहिये। इसके अतिरिक्त अपनी पत्नियों के ऊपर प्रधानता को कार्यान्वित करने के लिये उनको यीशु द्वारा प्रस्तुत उदाहरण का जैसा कि वह अपने शिष्यों की सभा पर अपनी प्रधानता को कार्यान्वित करता है, अनुसरण करना चाहिये। मसीह जब पृथ्वी पर था तब वह अपने शिष्यों के साथ कैसा व्यवहार करता था? उसका व्यवहार हमेशा करुणामय और विचारशील रहा था। वह कभी उनके साथ सख्ती का बर्ताव नहीं करता था और न ही उनपर क्रोधित होता था, उस समय भी जब वे उसका निर्देश स्वीकार करने में विलम्ब करते थे। (मरकुस ९:३३-३७; १०:३५-४५; लूका २२:२४-२७; यूहन्ना १३:४-१५) वास्तविकता यह है कि उसने स्वेच्छा से उनके लिये अपनी जान दी थी। (१ यूहन्ना ३:१६) एक मसीही पति को ध्यानपूर्वक मसीह के उदाहरण का अध्ययन करना चाहिये और अपने परिवार के साथ अपने व्यवहार में उसका अनुसरण करने में भरसक प्रयत्न करना चाहिये। परिणामस्वरूप वह एक निरंकुश, स्वार्थी अथवा अविचारशील परिवार प्रधान नहीं होगा।
९. (क) अनेक पत्नियाँ किस बात की शिकायत करती हैं? (ख) पतियों को जब वे प्रधानता को कार्यान्वित करते हैं, किस बात का बुद्धिमानी से ध्यान रखना चाहिये?
९ तथापि दूसरी ओर पतियों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिये: क्या आपकी पत्नी यह शिकायत करती है कि आप वास्तव में परिवार के प्रधान के रूप में कार्य नहीं करते हैं? क्या वह यह कहती है कि आप घर और पारिवारिक क्रियाकलापों की योजना बनाने में और अंतिम निर्णय देने की जिम्मेदारी को निभाने में नेतृत्व नहीं करते हैं? परन्तु परमेश्वर आपसे पति के रूप में ऐसा ही करने की अपेक्षा रखता है। निःसन्देह आपके लिये परिवार के अन्य सदस्यों की प्राथमिकताओं और सुझावों के प्रति उदार रहना और जब आप प्रधानता कार्यान्वित करते हैं इन सुझावों को ध्यान में रखना आपकी बुद्धिमता होगी। स्पष्टतया पति के रूप में आपकी भूमिका परिवार में ज्यादा कठिन है। यदि आप अपने कर्त्तव्य को पूरा करने में निष्कपट रूप से प्रयत्न करें तो बहुत संभव है कि आपकी पत्नी आपको सहायता देने और समर्थन करने के लिये प्रवृत्त होगी।—नीतिवचन १३:१०; १५:२२.
पत्नी के कर्त्तव्य को पूरा करना
१०. (क) पत्नियों के लिए बाइबल किस मार्ग को अपनाने के लिए प्रेरित करती है? (ख) जब पत्नियाँ बाइबल परामर्श की ओर ध्यान देने में असफल होती हैं तो क्या होता है?
१० जैसा कि बाइबल कहती है कि स्त्री अपने पति के लिये सहायक बनायी गयी थी। (उत्पत्ति २:१८) उस कर्त्तव्य के सामंजस्य में बाइबल प्रेरित करती है: “पत्नियाँ अपने अपने पति के अधीन करें।” (इफिसियों ५:२२) आज स्त्रियों का आक्रामक स्वभाव और पुरुषों के साथ प्रतियोगिता सामान्य है। परन्तु जब पत्नियाँ आगे बढ़ने और प्रधानता ग्रहण करने का प्रयत्न करती हैं तो उनकी हरकत से निश्चय समस्या उत्पन्न होगी। अनेक पति परिणामस्वरूप यह कहते हैं: ‘यदि वह घर चलाना चाहती है तो उसे ही चलाने दो।’
११. (क) एक पत्नी अपने पति को नेतृत्व करने में कैसे सहायता दे सकती है? (ख) यदि एक पत्नी परमेश्वर द्वारा निर्धारित अपने कर्त्तव्य को पूरा करती है तो उसके पति पर क्या प्रभाव पड़ने की संभावना है?
११ तथापि आप शायद यही महसूस करें कि चूंकि आपका पति घर चलाने में नेतृत्व नहीं करता है तो आप ऐसा करने के लिये विवश होती हैं। परन्तु क्या आप परिवार का प्रधान होने के नाते उसकी जिम्मेदारियों को संपन्न करने में उसकी सहायता देने में कुछ अधिक कर सकती हैं? क्या आप यह प्रदर्शित करती हैं कि नेतृत्व के लिये आप उसकी ओर देखती हैं? क्या आप उससे सुझाव और पथ-प्रदर्शन लेती हैं? जो वह कहता है उसको किसी प्रकार से तुच्छ समझने से आप अपने आपको दूर रखती हैं? यदि आप वास्तव में परिवार में ईश्वर द्वारा निर्धारित अपने कर्त्तव्य को पूरा करने का प्रयत्न करें तो आपके पति के लिए अपने कर्त्तव्य निभाने को आरंभ करना संभाव्य होगा।—कुलुस्सियों ३:१८, १९.
१२. किस बात से प्रदर्शित होता है कि पत्नियाँ अपने विचार उपयुक्त रूप से यद्यपि कि वे उनके पतियों के विचार से सहमत न होते हों, अभिव्यक्त कर सकती हैं?
१२ ऐसा कहने का यह अर्थ नहीं है कि एक पत्नी को अपने विचार अभिव्यक्त नहीं करने चाहिये क्योंकि वे उसके पति के विचारों से भिन्न हैं। शायद उसका दृष्टिकोण सही हो, और यदि उसका पति उसकी सुने तो परिवार को ही लाभ होगा। इब्राहीम की पत्नी साराह मसीही पत्नियों के लिये उदाहरण बतायी गयी है क्योंकि वह अपने पति के अधीन रहती थी। (१ पतरस ३:१, ५, ६) फिर भी उसी ने घर की एक समस्या को सुलझाने की सलाह दी और जब इब्राहीम उस सलाह से सहमत नहीं हुआ तब परमेश्वर ने उससे कहा: “उसकी सुन।” (उत्पत्ति २१:९-१२) निःसन्देह जब पति किसी विषय पर अपना अंतिम निर्णय देता है तो पत्नी को उसका समर्थन करना चाहिये यदि उसके ऐसा करने से परमेश्वर के नियम का उल्लंघन नहीं होता है।—प्रेरितों के काम ५:२९.
१३. एक अच्छी पत्नी को क्या करते रहना चाहिये और उसका परिवार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
१३ उचित रूप से अपना कर्त्तव्य पूरा करने में एक पत्नी परिवार की देखरेख करने में बहुत कुछ कर सकती है। उदाहरणतया, वह पौष्टिक भोजन तैयार कर सकती है, घर को साफ-सुथरा रख सकती है और बच्चों को शिक्षा देने में पति की सहभागी हो सकती है। बाइबल प्रेरित करती है कि विवाहित स्त्रियाँ अपने पतियों और अपने बच्चों से प्रेम करने वाली, सही समझ रखनेवाली, पतिव्रता, घर का कारोबार संभालने वाली, भली और अपने-अपने पति के अधीन रहने वाली हों जिससे कि परमेश्वर के वचन की निन्दा न हो।” (तीतुस २:४, ५) वह स्त्री जो पत्नी और माँ हो और अपने इन कर्त्तव्यों को पूरा करती है अपने परिवार से सम्मान और चिरस्थायी प्रेम प्राप्त करेगी।—नीतिवचन ३१:१०, ११, २६-२८.
परिवार में बच्चों का स्थान
१४. (क) परिवार में बच्चों की उचित स्थिति क्या है? (ख) यीशु के उदाहरण से बच्चे क्या सीख सकते हैं?
१४ यहोवा ने प्रथम मानव दंपति को यह आदेश दिया था: “फूलो-फलो और अधिक हो जाओ।” (उत्पत्ति १:२८) हाँ, परमेश्वर ने उनको बच्चे पैदा करने के लिये कहा था। बच्चों के होने का अर्थ यह था कि वे परिवार के लिये आशीष सिद्ध हों। (भजन संहिता १२७:३-५) क्योंकि वे अपने माता-पिता के नियम और आदेश के अधीन आते हैं बाइबल एक बच्चे की स्थिति को एक सेवक से तुलना करती है। (नीतिवचन १:८; ६:२०-२३; गलतियों ४:१) यहाँ तक कि यीशु जब वह एक बालक था अपने मात-पिता के अधीन रहा था। (लूका २:५१) इसका यह अर्थ है कि वह उनके प्रति आज्ञाकारी था और जैसा वे उसे निर्देश देते थे वह वैसा ही करता था। यदि सब बच्चे वैसा ही करें, तो वास्तव में पारिवारिक सुख में सहायक सिद्ध होंगे।
१५. क्यों बच्चे अपने माता-पिता के लिए दिल दुःखाने का कारण हो जाते हैं?
१५ फिर भी परिवार के लिये आशीष होने की अपेक्षा बच्चे आज अपने माता-पिता के दिल दुःखाने का स्रोत हैं। ऐसा क्यों है? इसलिये कि बच्चे और उनके माता-पिता भी पारिवारिक रीति पर दिये गये बाइबल के निर्देशों को अपने जीवन में उतारने के प्रति असफल रहे हैं। परमेश्वर के कुछेक नियम और सिद्धान्त क्या हैं? आइये हम आगामी पृष्ठों पर इन नियमों का निरीक्षण करें। जब हम इसकी जाँच करते हैं तो देखिये कि क्या आप इससे सहमत होते हैं कि नहीं कि उनको प्रयोग में लाकर आप अपने परिवार की खुशी में योगदान दे सकते हैं।
आप अपनी पत्नी से प्रेम करो और उसका सम्मान करो
१६. पतियों को क्या करने का आदेश दिया गया है और यह आदेश कैसे उपयुक्त रूप से कार्यान्वित किये जाते हैं?
१६ दिव्य बुद्धिमानीपूर्वक बाइबल कहती है: “पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखें।” (इफिसियों ५:२८-३०) बारम्बार अनुभव ने यह सिद्ध किया है कि पत्नियों के खुश रहने के लिए यह आवश्यक है कि वे यह महसूस करें कि वे अपनी पति की प्रिय हैं। इसका यह अर्थ है कि एक पति को अपनी पत्नी के प्रति विशेष ध्यान देना चाहिये जिसमें कोमलता, सहानुभूति, आश्वासन सम्मिलित है। जैसा कि बाइबल कहती है पति के लिये अपनी ‘पत्नी को सम्मान देना’ आवश्यक है। वह जो कुछ भी करता है उन सब में अपनी पत्नी का विशेष ध्यान रखता है। इस तरह वह अपनी पत्नी का आदर अर्जित करेगा।—१ पतरस ३:७.
अपने पति का आदर करो
१७. पत्नियों को क्या करने का आदेश दिया गया है और वे उसे कैसे कार्यान्वित करती हैं?
१७ और पत्नियाँ क्या करें? बाइबल यह घोषित करती है: “पत्नी को अपने पति के लिये अगाध सम्मान रखना चाहिये।” (इफिसियों ५:३३) कुछ पतियों का अपनी पत्नियों के प्रति अपने दिल में नाराज़गी रखने का मुख्य कारण यह है कि वे इस परामर्श के प्रति ध्यान देने में असफल रहती हैं। एक पत्नी अपने पति के निर्णयों का समर्थन करके और पारिवारिक लक्ष्य प्राप्त करने में पूरे मन से उसका सहयोग करके आदर प्रदर्शित करती है। पति के प्रति ‘सहायक और पूरक’ के रूप में अपना बाइबल निर्धारित कर्त्तव्य पूरा करके वह अपने पति के लिये उससे प्रेम करना आसान बना देती है।—उत्पत्ति २:१८.
एक दूसरे के प्रति वफ़ादार रहो
१८. क्यों वैवाहिक साथियों को एक दूसरे के प्रति वफादार रहना चाहिये?
१८ बाइबल कहती है: “पतियों और पत्नियों को एक दूसरे के प्रति वफादार रहना चाहिये।” पति के लिये बाइबल यह कहती है: “अपनी पति के साथ खुश रह और उस लड़की से जिससे तू ने विवाह किया उसके साथ आनन्दित हो . . . तू अपरिचित स्त्री पर क्यों मोहित हो? तुझे क्यों दूसरे पुरुष की पत्नी की मनोहरता को तरजीह देना चाहिये?” (इब्रानियों १३:४; नीतिवचन ५:१८-२०, टूडेज़ इंग्लिश वर्शन) हाँ, व्यभिचार परमेश्वर के नियम के विरुद्ध है उससे विवाह में समस्या उत्पन्न होती है। एक विवाह अनुसंधानकर्त्ता ने यह विशेष बात कही: “अधिकतर लोग यह सोचते हैं कि एक व्यभिचार संबंधी प्रेम विवाह में चटखारा पैदा करता है।” परन्तु उसने यह बात भी कही इस प्रकार के प्रेम से “वास्तविक समस्याएं” पैदा होती हैं।—नीतिवचन ६:२७-२९, ३२.
अपने विवाहित साथी की चाह का ध्यान रखो
१९. वैवाहिक साथी यौन संबंध से कैसे अत्यन्त आनन्द उठा सकते हैं?
१९ खुशी उस समय नहीं उत्पन्न होती है जब कोई प्राथमिक रूप से अपने लिये भोगविलास चाहता है। इसकी अपेक्षा अपने विवाहित साथी की चाह का भी ध्यान रखने से प्राप्त होती है। बाइबल कहती है: “पति अपनी पत्नी का हक पूरा करे और वैसा ही पत्नी भी अपने पति के लिये करे।” (१ कुरिन्थियों ७:३) यहाँ हक देने या लौटाने पर जोर दिया गया है। और इस तरह देकर देनेवाला भी खास खुशी प्राप्त करता है। यह ऐसा है जैसा कि यीशु मसीह ने कहा: “लेने की अपेक्षा देने में ज्यादा खुशी होती है।”—प्रेरितों के काम २०:३५.
अपना समय अपने बच्चों को दें
२०. अपने बच्चों के साथ कार्य करना क्यों महत्वपूर्ण है?
२० एक आठ वर्षीय बच्चे ने कहा: “मेरे पिता हर समय काम करते रहते हैं। वह घर पर कभी नहीं रहते हैं। वह मुझे पैसे और खिलौने देते हैं। परन्तु मैं बामुश्किल कभी उन्हें देखता हूँ। मैं उनसे प्रेम करता हूँ और चाहता हूँ कि वह हर समय काम न करते रहें जिससे कि मैं उनको ज्यादा से ज्यादा देख सकूं।” पारिवारिक जीवन कितना बेहतर होता है जब माता-पिता बाइबल के इस आदेश का अनुसरण करते हैं कि ‘वे अपने बच्चों को घर में बैठते-उठते, मार्ग पर चलते-फिरते और लेटते-उठते शिक्षा देते रहें!’ अपने बच्चों को अपना समय देना और उनके साथ उस समय का सदुपयोग करना निश्चय पारिवारिक खुशी में सहायक सिद्ध होगा।—व्यवस्थाविवरण ११:१९; नीतिवचन २२:६.
आवश्यक अनुशासन दें
२१. बच्चों को अनुशासन देने के संबंध में बाइबल क्या कहती है?
२१ हमारा स्वर्गीय पिता अपने लोगों के सुधार के लिए आदेश अथवा अनुशासन देकर माता-पिता के सम्मुख एक उपयुक्त उदाहरण प्रस्तुत करता है। बच्चों को अनुशासन की आवश्यकता है। (इब्रानियों १२:६; नीतिवचन २९:१५) इस बात को मान्यता देते हुए बाइबल प्रेरित करती है: “हे पिताओ, अपने बच्चों का . . . यहोवा के अनुशासन और मानसिक नियन्त्रण द्वारा पालन-पोषण करो।” अनुशासन देना, यहाँ तक कि यदि उसमें पिटाई अथवा उनसे उनकी कुछ सुविधाओं का छीन लेना भी शायद सम्मिलित हो, इस बात का प्रमाण है कि माता-पिता अपने बच्चों को प्यार करते हैं। बाइबल कहती है: “जो उससे [अपने पुत्र से] प्रेम रखता है वह उसको अनुशासन द्वारा शिक्षा देता है।”—इफिसियों ६:४; नीतिवचन १३:२४; २३:१३, १४.
युवको—सांसारिक तौर तरीकों का विरोध करो
२२. युवकों का कर्त्तव्य क्या है और उसे पूरा करने में क्या अंतर्ग्रस्त है?
२२ दुनिया युवकों को परमेश्वर के नियम तोड़ने के लिए विवश करती है। इसके अतिरिक्त, बाइबल यह कहती है कि “मूर्खता लड़के के हृदय से बंधी रहती है।” (नीतिवचन २२:१५) अतः जो उचित कार्य है उसके करने के लिए यह एक युद्ध है। फिर भी बाइबल कहती है: “बच्चो, यह तुम्हारा मसीही कर्त्तव्य है कि तुम अपने माता-पिता के आज्ञाकारी रहो क्योंकि ऐसा करना उचित है।” इसका प्रचुर मात्रा में प्रतिफल मिलेगा। इसलिए हे बच्चो, अक्लमंद बनो। इस परामर्श के प्रति ध्यान दो: “अपनी जवानी के दिनों में अपने सृष्टिकर्त्ता को याद कर।” नशीली दवाओं के लेने, शराब में मतवाले होने, व्यभिचार करने और उन सब अन्य बातों के करने के प्रलोभन जो परमेश्वर के नियमों के विरुद्ध है, का विरोध कर।—इफिसियों ६:१-४; सभोपदेशक १२:१; नीतिवचन १:१०-१९, टूडेज़ इंग्लिश वर्शन।
इकट्ठे बाइबल का अध्ययन करें
२३. इकट्ठे बाइबल का अध्ययन करने से परिवारों को कैसे लाभ मिलता है?
२३ यदि परिवार का एक सदस्य बाइबल शिक्षाओं का अध्ययन करके उसे प्रयोग में लाता है तो ऐसा करना पारिवारिक खुशी में सहायक सिद्ध होगा। परन्तु यदि सब—पति, पत्नी और बच्चे—ऐसा ही करें तो वह क्या ही धन्य परिवार होगा! वहाँ क्या ही स्नेही नज़दीकी संबंध जिसमें परस्पर संपर्क होगा जबकि परिवार का प्रत्येक सदस्य परमेश्वर यहोवा की सेवा करने में एक दूसरे की सहायता करने का प्रयत्न करता है। इसलिए इकट्ठा होकर बाइबल का अध्ययन करने की पारिवारिक आदत डालिये!—व्यवस्थाविवरण ६:४-९; यूहन्ना १७:३.
सफलतापूर्वक पारिवारिक समस्याओं को हल करना
२४. विवाहित साथियों को क्यों एक दूसरे की गलतियों का सहन करना चाहिये?
२४ उन परिवारों में भी जो सामान्य रूप से सुखी हैं कभी न कभी समस्याएं उत्पन्न होंगी। यह इसलिए है क्योंकि हम सब अपूर्ण हैं और गलत काम करते हैं। बाइबल कहती है: “हम सब बहुत बार चूक जाते हैं।” (याकूब ३:२) अतः विवाहित साथियों को एक दूसरे से हर क्षेत्र में पूर्णता की माँग नहीं करनी चाहिये। इसके बजाय दोनों को एक दूसरे की गलतियों को सहन करना चाहिये। इसलिए किसी भी विवाहित साथी को एक पूर्ण रूप से सुखी विवाह का प्रत्याशा नहीं करनी चाहिये क्योंकि यह अपूर्ण लोगों के लिए प्राप्त करना संभव नहीं है।
२५. विवाह संबंधी समस्याओं को कैसे प्रेमपूर्वक सुलझाना चाहिये?
२५ निःसन्देह, एक पति और पत्नी दोनों उस बात से बचने का प्रयत्न करने के इच्छुक होंगे जिससे उनका साथी चिढ़ता है। चाहे वे कितना ही प्रयत्न करें वे कभी न कभी ऐसे बातें करेंगे जो दूसरे के लिए परेशानी का कारण होगा। तब इन समस्याओं का कैसे निपटाना चाहिये? बाइबल का परामर्श यह है: “प्रेम अनेक पापों का ढांप लेता है।” (१ पतरस ४:८) इसका यह अर्थ है कि विवाहित साथी जो एक दूसरे से प्रेम करते हैं उन गलतियों की जो दूसरे ने की हैं, बारम्बार चर्चा नहीं करेगा। प्रेम, परिणामस्वरूप यह कहता है, ‘हाँ तुमने यह गलती की। परन्तु मुझसे भी कभी न कभी ऐसी गलती हो जाती है। इसलिये मैं तुम्हारी गलती को दरगुज़र करूँगा और तुम भी समान रीति से गलती को दरगुज़र करो।’—नीतिवचन १०:१२; १९:११.
२६. जब कोई समस्या उत्पन्न होती है तो किस बात से उसके निपटाने में सहायता मिलेगी?
२६ जब विवाहित जोड़े अपनी गलतियों को स्वीकार करने के इच्छुक होते हैं और उसको सुधारने का प्रयत्न करते हैं तो अनेक तर्क-वितर्क और मनोव्यथाओं से बचा जा सकता है। उनका लक्ष्य समस्याओं का हल करना न कि बहस में जीतना चाहिये। यहाँ तक कि यदि आपका विवाहित साथी गलती पर है तो उसके प्रति कृपा का प्रदर्शन करके समस्या के हल को आसान बनाइए। यदि आपका दोष है, तो नम्रतापूर्वक क्षमा मांगिए। उसे स्थगित न कीजिए; समस्या को अविलम्ब हल कीजिए। “सूर्यास्त होने तक तुम क्रोधित अवस्था में न रहो।”—इफिसियों ४:२६.
२७. किस बाइबल परामर्श का अनुसरण करने से विवाहित साथियों को अपनी समस्याओं के समाधान में सहायता मिलेगी?
२७ विशेष रूप से यदि आप एक विवाहित व्यक्ति हैं तो आपको इस नियम का अनुसरण करने की आवश्यकता है कि “अपने ही हित की बातों की नहीं बल्कि दूसरों के भी हित की चिन्ता करो।” (फिलिप्पियों २:४) आपके लिए बाइबल के इस आदेश का अनुपालन करना आवश्यक है: “करुणा से कोमल स्नेह, भलाई, दीनता, नम्रता और सहनशीलता धारण करो। यदि किसी को किसी से शिकायत है तो एक दूसरे की बरदाश्त करो और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो जैसे कि यहोवा ने पूर्ण रूप से तुम्हारे अपराध क्षमा किये हैं, तुम भी ऐसा ही करो। परन्तु इन सब बातों के अतिरिक्त प्रेम धारण करो क्योंकि यह संयुक्तता का पूर्ण बंधन है।”—कुलुस्सियों ३:१२-१४.
२८. (क) क्या तलाक ही विवाह संबंधी समस्याओं को निपटाने का एकमात्र तरीका है? (ख) बाइबल के अनुसार तलाक प्राप्त करने का एकमात्र कारण क्या है जो एक व्यक्ति को पुनःविवाह करने के लिए मुक्त करती है?
२८ आज अनेक विवाहित जोड़े परमेश्वर के वचन में दिये गये परामर्श को अपनी समस्याओं के सुलझाने में उनकी सहायता नहीं लेते हैं और वे तलाक चाहते हैं। क्या परमेश्वर तलाक को कि वह समस्यायें हल करने का तरीका है, स्वीकार करता है? नहीं, वह ऐसा स्वीकार नहीं करता। (मलाकी २:१५, १६) उसका अर्थ यह है कि विवाह जीवन भर की व्यवस्था है। (रोमियों ७:२) बाइबल तलाक लेने के लिए केवल एक कारण की आज्ञा देती है जो एक व्यक्ति को दुबारा विवाह करने के लिए मुक्त करती है और वह है परगमन (यूनानी, पोरनिया, पूर्ण लैंगिक अनैतिकता)। यदि परगमन किया गया है तब निर्दोष विवाहित साथी तलाक लेने या न देने का निर्णय कर सकता है।—मत्ती ५:३२.
२९. (क) यदि आपका विवाहित साथी आपके साथ मसीही उपासना में सम्मिलित नहीं होता है तो आपको क्या करना चाहिये? (ख) इसका संभव परिणाम क्या होगा?
२९ तब क्या किया जाय जब आपका विवाहित साथी आपके साथ परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने से इन्कार करे या आपके मसीही सेवा कार्य का विरोध भी करता है? बाइबल फिर भी प्रोत्साहन देती है कि आप अपने विवाहित साथी के साथ रहिये और उससे अलग होने को अपनी समस्याओं के हल का आसान रास्ता न समझिये। अपने आचरण के संबंध में बाइबल जो कुछ कहती है उसे प्रयोग में लाकर अपने घर की स्थिति को सुधारने में आप जो व्यक्तिगत रूप से कर सकते हैं, कीजिए। समय आने पर मसीही आचरण से शायद आप अपने विवाहित साथी को जीत लें। (१ कुरिन्थियों ७:१०-१६; १ पतरस ३:१, २) आप कितने धन्य होंगे जब आपके स्नेही धैर्य का प्रतिफल इस रीति से मिलेगा!
३०. माता-पिता के लिए क्यों इतनी महत्वपूर्ण बात है कि वे अपने बच्चों के समक्ष उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करें?
३० आज अनेक पारिवारिक समस्याएं बच्चों से संबंधित हैं। यदि आपके परिवार में यह समस्या है तो क्या किया जा सकता है? सबसे पहले आपको माता-पिता होने के नाते एक उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। यह इसलिए है कि बच्चे जो आप कहते हैं उसकी अपेक्षा, उसका जो आप करते हैं अनुसरण करने की ओर अधिक प्रवृत होते हैं। और जब आपके कार्य आपके वचन से भिन्न होते हैं तो बच्चे शीघ्र पहचान लेते हैं। अतः यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे उत्तम मसीही जीवन व्यतीत करें तो स्वयं आपके लिए उदाहरण प्रस्तुत करना आवश्यक है।—रोमियों २:२१, २२.
३१. (क) अपने माता-पिता का परामर्श मानने के लिए बच्चों के सम्मुख इससे भी अधिक महत्वपूर्ण कारण क्या है? (ख) आप अपने बच्चे को परमेश्वर के उस नियम का पालन करने की बुद्धिमत्ता को कैसे प्रदर्शित करता है जिसमें परगमन वर्जित है?
३१ इसके अतिरिक्त आपको बच्चों से तर्क करने की भी आवश्यकता है। बच्चों को केवल यह कहना काफी नहीं है। ‘मैं नहीं चाहता हूँ कि तुम परगमन करो क्योंकि यह गलत है’ और उनको यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता है कि उनका सृष्टिकर्त्ता यहोवा परमेश्वर है जो यह कहता है कि इस प्रकार के कार्य जैसे कि परगमन गलत हैं। (इफिसियों ५:३-५; १ थिस्सलुनीकियों ४:३-७) परन्तु यह भी काफी नहीं है। बच्चों को यह देखने में भी सहायता देने की आवश्यकता है कि क्या परमेश्वर के नियमों का पालन करना चाहिये और वे उनसे कैसे लाभान्वित होंगे। उदाहरणतया, आप अपने बच्चे के ध्यान को इस ओर आकर्षित कर सकते हैं कि किस तरह पुरुष के शुक्राणु और स्त्री के अंडाणु मिलने से एक मानव बच्चा बनता है और पूछिये: ‘क्या तुम यह नहीं सोचते हो कि जिस व्यक्ति ने जन्म के इस आश्चर्यजनक कार्य को संभव किया है वही अच्छा जानता है कि किस प्रकार मनुष्यों को ईश्वर दत्त प्रजनन शक्तियों का प्रयोग करना चाहिये?’ (भजन संहिता १३९:१३-१७) आप यह पूछ सकते हैं: ‘क्या तुम सोचते हो कि हमारा महान सृष्टिकर्त्ता हमसे जीवन का आनन्द छीनने के लिये इस प्रकार का नियम बनायेगा? इसकी अपेक्षा यदि हम उसके नियमों का पालन करें तो क्या हमें ज्यादा खुशी नहीं मिलनी चाहिये?’
३२. (क) यदि आपके बच्चे के दृष्टिकोण परमेश्वर के दृष्टिकोण से सहमत नहीं होते हैं तो आपकी क्या मनोवृत्ति होनी चाहिये? (ख) जो बाइबल कहती है उसकी बुद्धिमता को समझने के लिए आप अपने बच्चे की सहायता कैसे कर सकते हैं?
३२ इस प्रकार के प्रश्नों से आपका बच्चा परमेश्वर के उस नियम पर जो प्रजनन अंगों के प्रयोग को नियंत्रित करता है, तर्क करना आरंभ कर सकता है। उसके विचारों का आदर कीजिए। यदि उसके विचार वे नहीं हैं जैसा आप चाहते हैं तो आप क्रोधित न होइये। यह बात समझने की कोशिश कीजिए कि आपके बच्चे की पीढ़ी बाइबल में दी हुई न्याययुक्त शिक्षाओं से बहुत दूर चली गयी है, और फिर उसको यह दिखाने का प्रयत्न कीजिए कि क्यों उसकी पीढ़ी के अनैतिक कार्य बुद्धिरहित हैं। शायद आप अपने बच्चे के ध्यान को उन विशेष उदाहरणों की ओर आकर्षित कर सकते हैं जहाँ यौन अनैतिकता का परिणाम अवैधानिक बच्चों का जन्म, यौन रोग अथवा अन्य परेशानियाँ हुई हैं। इस प्रकार उसे बाइबल में दी गयी बातों की तर्कसंगति और औचित्य को देखने में सहायता मिलती है।
३३. पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रहने की बाइबल आधारित आशा क्यों हमें पारिवारिक जीवन सफल बनाने में सहायता कर सकती है?
३३ विशेष रूप से पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रहने की बाइबल आधारित आशा हमारा पारिवारिक जीवन सफल बनाने में सहायता दे सकती है। यह कैसे हो सकता है? इसलिये कि यदि हम वास्तव में परमेश्वर की नयी व्यवस्था में जीवित रहना चाहते हैं तो हम अभी उस प्रकार से रहने का कठोर परिश्रम करें जैसा कि हम उस समय रहने की आशा करते हैं। इसका यह अर्थ है कि हम यहोवा परमेश्वर के पथ-प्रदर्शन और निर्देशों का ध्यानपूर्वक अनुसरण करेंगे। इसका परिणाम यह होगा कि परमेश्वर हमारी वर्तमान खुशी को शाश्वत जीवन के आनन्द से सम्मानित करेगा और अनन्त काल तक जो हमारे सम्मुख है, प्रचुर मात्रा में खुशी देगा।—नीतिवचन ३:११-१८.