अध्याय १५
ऐसा परिवार बनाना जो परमेश्वर को महिमा देता है
१-३. कुछ लोग विवाह और जनकता की आम समस्याओं को सुलझाने में क्यों असमर्थ होते हैं, लेकिन बाइबल क्यों मदद कर सकती है?
मान लीजिए कि आप अपना घर बनाने की योजना करते हैं। आप ज़मीन ख़रीदते हैं। उत्सुक प्रत्याशा के साथ, आप अपनी कल्पना में अपना नया घर देखते हैं। लेकिन तब क्या यदि आपके पास कोई औज़ार और कोई निर्माण कौशल नहीं है? आपके प्रयास कितने निराशाजनक होंगे!
२ अनेक दम्पति एक सुखी परिवार का सपना देखते हुए अपना वैवाहिक जीवन शुरू करते हैं, लेकिन उनके पास उसे बनाने के लिए ज़रूरी न तो औज़ार होते हैं और न ही कौशल। विवाह के कुछ ही समय बाद, नकारात्मक पहलू विकसित होते हैं। लड़ाई-झगड़े रोज़ का ढर्रा बन जाते हैं। जब बच्चे पैदा होते हैं, तो नए माता-पिता पाते हैं कि उनके पास जनकता के कौशल की भी उतनी ही कमी है जितनी कि विवाह के कौशल की।
३ लेकिन, ख़ुशी की बात है कि बाइबल मदद कर सकती है। उसके सिद्धान्त औज़ारों की तरह हैं जो आपको एक सुखी परिवार बनाने में समर्थ करते हैं। (नीतिवचन २४:३) आइए देखें कैसे।
सुखी विवाह बनाने के लिए औज़ार
४. विवाह में समस्याओं की अपेक्षा क्यों की जानी चाहिए, और बाइबल में कौन-से स्तर दिए गए हैं?
४ एक विवाहित दम्पति की जोड़ी चाहे कितनी भी अच्छी क्यों न दिखे, उनकी भावात्मक रचना, बचपन के अनुभव, और पारिवारिक पृष्ठभूमि भिन्न होती है। इसलिए, विवाह के बाद कुछ समस्याओं की अपेक्षा की जानी चाहिए। उनसे कैसे निपटा जाएगा? जब निर्माता घर बनाते हैं, तो वे उसके नक़्शे को देखते हैं। उसमें निर्देशन होते हैं जिनका पालन किया जाना चाहिए। बाइबल एक सुखी परिवार बनाने के लिए परमेश्वर के स्तर प्रदान करती है। आइए अब इनमें से कुछ की जाँच करें।
५. बाइबल विवाह में निष्ठा के महत्त्व पर कैसे ज़ोर देती है?
५ निष्ठा। यीशु ने कहा: “जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।”a (मत्ती १९:६) प्रेरित पौलुस ने लिखा: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” (इब्रानियों १३:४) इसलिए विवाहित व्यक्तियों को अपने अपने साथियों के साथ वफ़ादार रहना यहोवा के प्रति बाध्यता समझनी चाहिए।—उत्पत्ति ३९:७-९.
६. निष्ठा विवाह को बनाए रखने में कैसे मदद देगी?
६ निष्ठा विवाह को गरिमा और सुरक्षा देती है। निष्ठावान साथी जानते हैं कि चाहे जो भी हो, वे एक दूसरे को सहारा देंगे। (सभोपदेशक ४:९-१२) उन लोगों से कितना भिन्न जो ज़रा-सी मुसीबत हुई नहीं कि अपना वैवाहिक जीवन त्याग देते हैं! ऐसे व्यक्ति जल्द ही यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि उन्होंने ‘ग़लत साथी चुन लिया,’ कि वे ‘अब एक दूसरे से प्रेम नहीं करते,’ कि एक नया साथी ही इसका इलाज है। लेकिन यह दोनों में से किसी भी साथी को बढ़ने का अवसर नहीं देता। इसके बजाय, ऐसे निष्ठाहीन व्यक्ति वही समस्याएँ नए साथियों को भी दे सकते हैं। जब एक व्यक्ति के पास अच्छा घर है लेकिन उसे पता चलता है कि छत चू रही है, तो निश्चय ही वह उसकी मरम्मत करने की कोशिश करता है। वह तुरन्त दूसरा घर नहीं बदल लेता। उसी प्रकार, साथी बदल लेना वैवाहिक कलह के पीछे छिपे विवादों का अन्त करने का तरीक़ा नहीं है। जब समस्याएँ उठती हैं, तो विवाह से बाहर निकलने की कोशिश मत कीजिए, बल्कि उसे क़ायम रखने के लिए कड़ी मेहनत कीजिए। ऐसी निष्ठा इस बंधन को सुरक्षित तथा बनाए रखने, और प्रिय मानने योग्य चीज़ समझती है।
७. विवाहित लोगों के लिए संचार अकसर क्यों मुश्किल होता है, लेकिन “नये मनुष्यत्व” को धारण करना कैसे मदद कर सकता है?
७ संचार। “बिना सम्मति की कल्पनाएं निष्फल हुआ करती हैं,” एक बाइबल नीतिवचन कहता है। (नीतिवचन १५:२२) फिर भी, कुछ विवाहित दम्पतियों के लिए संचार करना मुश्किल होता है। ऐसा क्यों है? क्योंकि लोगों की संचार-शैली अलग-अलग होती है। यह वह तथ्य है जो अकसर काफ़ी ग़लतफ़हमियों और निराशा का कारण बनता है। इसमें पालन-पोषण की भूमिका हो सकती है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग शायद ऐसे वातावरण में बड़े हुए हों जहाँ माता-पिता के बीच झगड़े होते रहते थे। अब विवाहित वयस्कों के रूप में, वे शायद अपने साथी से कृपालु और प्रेममय ढंग से बोलना न जानें। फिर भी, आपके घर को ‘झगड़े रगड़े के घर’ में पतित होने की ज़रूरत नहीं। (नीतिवचन १७:१) बाइबल “नये मनुष्यत्व” को धारण करने पर ज़ोर देती है, और यह दुर्भावपूर्ण कटुता, चिल्लाहट और गंदी बोली का समर्थन नहीं करती।—इफिसियों ४:२२-२४, ३१.
८. जब आप अपने साथी के साथ असहमत होते हैं तब कौन-सी बात सहायक हो सकती है?
८ मतभेद होने पर आप क्या कर सकते हैं? यदि आप दोनों को गुस्सा आने लगता है, तो आपके लिए नीतिवचन १७:१४ की सलाह को मानना अच्छा होगा: “झगड़ा बढ़ने से पहिले उसको छोड़ देना उचित है।” जी हाँ, आप चर्चा को रोक सकते हैं, जब तक कि आप और आपका साथी दोनों शान्त न हो गए हों। (सभोपदेशक ३:१, ७) चाहे कुछ भी हो, “सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा” होने की कोशिश कीजिए। (याकूब १:१९) आपका लक्ष्य होना चाहिए स्थिति को सुधारना, न कि बहस जीतना। (उत्पत्ति १३:८, ९) ऐसे शब्द चुनिए और उस ढंग से कहिए जो आपको और आपके साथी को शान्त करेगा। (नीतिवचन १२:१८; १५:१, ४; २९:११) सबसे बढ़कर, उत्तेजित स्थिति में नहीं रहिए, बल्कि एकसाथ नम्र बिनती में परमेश्वर के साथ संचार करने के द्वारा मदद माँगिए।—इफिसियों ४:२६, २७; ६:१८.
९. यह क्यों कहा जा सकता है कि संचार हृदय में शुरू होता है?
९ एक बाइबल नीतिवचन कहता है: “बुद्धिमान का हृदय उसके मुंह की अगुवाई करता है और उसके होंठों पर ज्ञान बढ़ाता है।” (नीतिवचन १६:२३, NHT) तो, वास्तव में सफल संचार की कुंजी हृदय में है, मुँह में नहीं। आपके साथी के प्रति आपकी मनोवृत्ति क्या है? बाइबल मसीहियों को “सहानुभूति” दिखाने का प्रोत्साहन देती है। (१ पतरस ३:८, NW) क्या आप तब ऐसा कर सकते हैं जब आपका विवाह-साथी कष्टकर चिन्ता का अनुभव करता है? यदि हाँ, तो सहानुभूति आपको यह जानने में मदद देगी कि उत्तर कैसे दें।—यशायाह ५०:४.
१०, ११. एक पति १ पतरस ३:७ की सलाह कैसे लागू कर सकता है?
१० सम्मान और आदर। मसीही पतियों को कहा गया है कि “बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो।” (१ पतरस ३:७) अपनी पत्नी का सम्मान करने में उसका मूल्य समझना सम्मिलित है। एक पति जो अपनी पत्नी के साथ “बुद्धिमानी” से निर्वाह करता है, वह उसकी भावनाओं, ख़ूबियों, अक़ल, और गरिमा की बहुत क़दर करता है। उसे यह भी सीखने की इच्छा होनी चाहिए कि यहोवा स्त्रियों को किस दृष्टि से देखता है और उनके साथ कैसा व्यवहार चाहता है।
११ मान लीजिए कि आपके घर में एक बहुत उपयोगी बर्तन है जो ज़्यादा ही नाज़ुक है। क्या आप उसे बहुत सम्भाल कर नहीं रखेंगे? पतरस ने “निर्बल पात्र” पद को उसी विचार से प्रयोग किया, और इससे एक मसीही पति को प्रेरित होना चाहिए कि अपनी प्रिय पत्नी के लिए कोमल परवाह दिखाए।
१२. एक पत्नी कैसे दिखा सकती है कि वह अपने पति का गहरा आदर करती है?
१२ लेकिन बाइबल एक पत्नी को क्या सलाह देती है? पौलुस ने लिखा: “पत्नी को अपने पति के लिए गहरा आदर होना चाहिए।” (इफिसियों ५:३३, NW) जैसे पत्नी को यह महसूस करने की ज़रूरत है कि उसका साथी उसका सम्मान करता है और उससे बहुत प्रेम करता है, वैसे ही पति को भी यह महसूस करने की ज़रूरत है कि उसकी पत्नी उसका आदर करती है। एक आदरपूर्ण पत्नी बिना सोचे-समझे अपने पति की कमियों की घोषणा नहीं करेगी, चाहे पति मसीही है या नहीं। अकेले में या सब के सामने उसकी आलोचना करने और उसे नीचा दिखाने के द्वारा वह उसे उसकी गरिमा से वंचित नहीं करेगी।—१ तीमुथियुस ३:११; ५:१३.
१३. दृष्टिकोण कैसे शान्तिपूर्ण ढंग से व्यक्त किए जा सकते हैं?
१३ इसका यह अर्थ नहीं कि पत्नी अपनी राय नहीं दे सकती। यदि कोई बात उसे परेशान करती है, तो वह आदर के साथ अपना विचार व्यक्त कर सकती है। (उत्पत्ति २१:९-१२) अपने पति को एक विचार व्यक्त करने की समानता उस पर एक गेंद फेंकने से की जा सकती है। वह उसे हौले से फेंक सकती है कि पति आसानी से पकड़ ले, या तो वह उसे इतनी ज़ोर से फेंक सकती है कि पति को चोट लग जाए। कितना बेहतर होता है जब दोनों साथी आरोप लगाने से दूर रहते हैं बल्कि उसके बजाय, कृपालु और सौम्य ढंग से बात करते हैं!—मत्ती ७:१२; कुलुस्सियों ४:६; १ पतरस ३:३, ४.
१४. यदि आपका साथी विवाह में बाइबल सिद्धान्तों को लागू करने में शायद ही कोई दिलचस्पी दिखाता है, तो आपको क्या करना चाहिए?
१४ जैसे हमने देखा है, बाइबल सिद्धान्त आपको एक सुखी विवाह बनाने में मदद दे सकते हैं। लेकिन तब क्या यदि आपका साथी बाइबल की बातों में शायद ही कोई दिलचस्पी दिखाता है? फिर भी काफ़ी कुछ निष्पन्न किया जा सकता है यदि आप अपनी भूमिका में परमेश्वर के ज्ञान को लागू करें। पतरस ने लिखा: “हे पत्नियो, तुम भी अपने पति के आधीन रहो। इसलिये कि यदि इन में से कोई ऐसे हों जो वचन को न मानते हों, तौभी तुम्हारे भय सहित पवित्र चालचलन को देखकर बिना वचन के अपनी अपनी पत्नी के चालचलन के द्वारा खिंच जाएं।” (१ पतरस ३:१, २) निःसंदेह, यही बात पति पर भी लागू होती है जिसकी पत्नी बाइबल के प्रति उदासीन है। आपका साथी चाहे जो भी करने का चुनाव करे, बाइबल सिद्धान्तों को आपको एक बेहतर साथी बनाने दीजिए। परमेश्वर का ज्ञान आपको एक बेहतर जनक भी बना सकता है।
परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार बच्चों का पालन-पोषण करना
१५. बच्चों का पालन-पोषण करने के त्रुटिपूर्ण तरीक़े कभी-कभी कैसे आगे बढ़ाए जाते हैं, लेकिन यह चक्र कैसे तोड़ा जा सकता है?
१५ एक आरी या हथौड़ी का होना ही व्यक्ति को एक कुशल बढ़ई नहीं बना देता। उसी प्रकार, बच्चों का होना ही व्यक्ति को कुशल जनक नहीं बना देता। जाने-अनजाने में, माता-पिता अकसर अपने बच्चों को उसी तरह पालते हैं जिस तरह उन्हें पाला गया था। अतः, बच्चों का पालन-पोषण करने के त्रुटिपूर्ण तरीक़े कभी-कभी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते हैं। एक प्राचीन इब्रानी नीतिवचन कहता है: “जंगली अंगूर तो पुरखा लोग खाते, परन्तु दांत खट्टे होते हैं लड़केबालों के।” फिर भी, शास्त्र दिखाता है कि एक व्यक्ति को अपने माता-पिता के बनाए रास्ते पर चलने की ज़रूरत नहीं है। वह दूसरा मार्ग चुन सकता है, ऐसा मार्ग जो यहोवा के नियमों से प्रभावित है।—यहेजकेल १८:२, १४, १७.
१६. अपने परिवार का भरण-पोषण करना क्यों महत्त्वपूर्ण है, और इसमें क्या सम्मिलित है?
१६ यहोवा मसीही माता-पिताओं से अपेक्षा करता है कि अपने बच्चों को सही मार्गदर्शन दें और उनकी अच्छी देखरेख करें। पौलुस ने लिखा: “यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।” (१ तीमुथियुस ५:८) कितने प्रभावशाली शब्द! प्रबन्धक के रूप में अपनी भूमिका निभाना, जिसमें अपने बच्चों की भौतिक, आध्यात्मिक, और भावात्मक ज़रूरतों को पूरा करना सम्मिलित है, एक धर्म-परायण व्यक्ति का विशेषाधिकार और ज़िम्मेदारी है। बाइबल ऐसे सिद्धान्त बताती है जो अपने बच्चों के लिए एक सुखी वातावरण बनाने में माता-पिताओं की मदद कर सकते हैं। इनमें से कुछ पर विचार कीजिए।
१७. यदि आपके बच्चों के हृदय में परमेश्वर का नियम होना है तो क्या बात ज़रूरी है?
१७ उत्तम उदाहरण रखिए। इस्राएली माता-पिताओं को आज्ञा दी गयी थी: “तू [परमेश्वर के वचन] अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।” माता-पिताओं को परमेश्वर के स्तर अपने बच्चों को सिखाने थे। लेकिन इस आदेश से पहले एक कथन था: “ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें।” (तिरछे टाइप हमारे।) (व्यवस्थाविवरण ६:६, ७) जी हाँ, माता-पिता वह नहीं दे सकते जो उनके पास नहीं है। परमेश्वर के नियम पहले आपके हृदय में लिखे होने चाहिए यदि आप उन्हें अपने बच्चों के हृदयों में लिखवाना चाहते हैं।—नीतिवचन २०:७. लूका ६:४० से तुलना कीजिए।
१८. प्रेम व्यक्त करने में, यहोवा ने माता-पिताओं के लिए कैसे एक अत्युत्तम उदाहरण रखा है?
१८ अपने प्रेम का आश्वासन दीजिए। यीशु के बपतिस्मे पर यहोवा ने घोषणा की: “तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझ से प्रसन्न हूं।” (लूका ३:२२) इस प्रकार यहोवा ने अपने पुत्र को स्वीकार किया, खुलकर उस पर अनुमोदन व्यक्त किया और अपने प्रेम का आश्वासन दिया। यीशु ने बाद में अपने पिता से कहा: “तू ने जगत की उत्पत्ति से पहिले मुझ से प्रेम रखा।” (यूहन्ना १७:२४) तो, धर्म-परायण माता-पिताओं की तरह, अपने बच्चों को उनके प्रति अपना प्रेम मौखिक और शारीरिक रूप से अभिव्यक्त कीजिए—और ऐसा अकसर कीजिए। हमेशा याद रखिए कि “प्रेम से उन्नति होती है।”—१ कुरिन्थियों ८:१.
१९, २०. बच्चों के उचित अनुशासन में क्या सम्मिलित है, और माता-पिता यहोवा के उदाहरण से कैसे लाभ उठा सकते हैं?
१९ अनुशासन। बाइबल प्रेममय अनुशासन के महत्त्व पर ज़ोर देती है। (नीतिवचन १:८) जो माता-पिता आज अपने बच्चों को मार्गदर्शित करने की अपनी ज़िम्मेदारी टालते हैं वे लगभग निश्चित ही कल हृदयविदारक परिणाम भुगतेंगे। परन्तु, माता-पिताओं को दूसरे आत्यन्तिक छोर पर भी जाने से चिताया गया है। “हे बच्चेवालो,” पौलुस ने लिखा, “अपने बालकों को तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाए।” (कुलुस्सियों ३:२१) माता-पिताओं को अपने बच्चों को ज़रूरत से ज़्यादा नहीं सुधारना चाहिए अथवा निरन्तर उनकी कमियाँ निकालते रहना और उनके प्रयासों की आलोचना करते रहना नहीं चाहिए।
२० यहोवा परमेश्वर, हमारा स्वर्गीय पिता अनुशासन देने में उदाहरण रखता है। उसका सुधार कभी आत्यन्तिक नहीं होता। “मैं तेरी ताड़ना विचार करके करूंगा,” परमेश्वर ने अपने लोगों से कहा। (यिर्मयाह ४६:२८) इस सम्बन्ध में माता-पिताओं को यहोवा की नक़ल करनी चाहिए। जो अनुशासन वाजिब हद से ज़्यादा होता है या सुधारने और सिखाने के ठाने गए उद्देश्य से आगे जाता है वह निश्चित ही तंग करनेवाला होता है।
२१. माता-पिता कैसे निर्धारित कर सकते हैं कि उनका अनुशासन प्रभावकारी है या नहीं?
२१ माता-पिता कैसे निर्धारित कर सकते हैं कि उनका अनुशासन प्रभावकारी है या नहीं? वे अपने आप से पूछ सकते हैं, ‘मेरा अनुशासन क्या निष्पन्न करता है?’ इसे सिखाना चाहिए। आपके बच्चे को समझना चाहिए कि अनुशासन क्यों दिया जा रहा है। माता-पिताओं को उनके सुधार के उत्तर प्रभावों के बारे में भी सोचना चाहिए। यह सच है कि लगभग सभी बच्चे शुरू-शुरू में अनुशासन से चिढ़ेंगे। (इब्रानियों १२:११) लेकिन अनुशासन को कभी-भी ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे कि बच्चा डरा हुआ या त्यागा हुआ महसूस करे या उसे यह विचार दे कि वह जन्मजात ही दुष्ट है। अपने लोगों को ताड़ना देने से पहले यहोवा ने कहा: “मत डर, क्योंकि मैं तेरे साथ हूं।” (यिर्मयाह ४६:२८) जी हाँ, ताड़ना इस प्रकार दी जानी चाहिए कि आपके बच्चे को लगे कि आप एक प्रेममय, प्रोत्साहक माता-पिता के रूप मे उसके साथ हैं।
“बुद्धि का उपदेश” पाना
२२, २३. एक सुखी परिवार बनाने के लिए ज़रूरी उपदेश आप कैसे पा सकते हैं?
२२ हम आभारी हो सकते हैं कि यहोवा ने वो औज़ार दिए हैं जिनकी हमें एक सुखी परिवार बनाने के लिए ज़रूरत है। लेकिन सिर्फ़ औज़ार रखना ही काफ़ी नहीं है। हमें उन्हें सही ढंग से प्रयोग करने का अभ्यास करना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक निर्माता अपने औज़ारों को प्रयोग करने के बारे में ख़राब आदतें विकसित कर सकता है। वह कुछ औज़ारों का बिलकुल ही ग़लत प्रयोग कर सकता है। ऐसी परिस्थितियों में, यह अति संभव है कि उसके तरीक़ों का परिणाम एक घटिया उत्पाद हो। उसी प्रकार, अब शायद आप उन हानिकर आदतों के बारे में अवगत हो गए हों जो आपके परिवार में चुपके से घुस आयी हैं। कुछ आदतों ने शायद बहुत कसकर जकड़ रखा हो और उन्हें बदलना कठिन हो। लेकिन, बाइबल की सलाह पर चलिए: “बुद्धिमान सुनकर अपनी विद्या बढ़ाए, और समझदार बुद्धि का उपदेश पाए।”—नीतिवचन १:५.
२३ आप परमेश्वर का ज्ञान लेना जारी रखने के द्वारा बुद्धि का उपदेश पा सकते हैं। उन बाइबल सिद्धान्तों के बारे में सतर्क रहिए जो पारिवारिक जीवन पर लागू होते हैं, और जहाँ ज़रूरी हो समायोजन कीजिए। प्रौढ़ मसीहियों को देखिए जो विवाह-साथियों और माता-पिताओं के रूप में एक उत्तम उदाहरण रखते हैं। उनसे बात कीजिए। सबसे बढ़कर, अपनी चिन्ताओं को प्रार्थना में यहोवा के पास ले जाइए। (भजन ५५:२२; फिलिप्पियों ४:६, ७) वह आपको एक सुखी पारिवारिक जीवन का आनन्द लेने में मदद दे सकता है जो उसको महिमा देता है।
[फुटनोट]
a तलाक़ लेकर पुनःविवाह करने का एकमात्र शास्त्रीय आधार है “व्यभिचार”—विवाह के बाहर लैंगिक सम्बन्ध।—मत्ती १९:९.
अपने ज्ञान को जाँचिए
निष्ठा, संचार, सम्मान, और आदर कैसे एक सुखी विवाह में योग देते हैं?
माता-पिता अपने बच्चों को उनके प्रति अपने प्रेम के बारे में किन तरीक़ों से आश्वस्त कर सकते हैं?
उचित अनुशासन में कौन-से तत्त्व सम्मिलित हैं?
[पेज 147 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]