यहोवा का परिवार बहुमोल एकता का आनन्द उठाता है
“देखो, यह कैसी भली और मनोहर बात है कि भाई आपस में एक होकर रहें!”—भजन १३३:१, NHT.
१. आज अनेक परिवारों की क्या स्थिति है?
पारिवार आज संकट में है। अनेक परिवारों में, वैवाहिक बन्धन टूटने पर हैं। तलाक़ अधिकाधिक आम होता जा रहा है, और तलाक़शुदा दम्पतियों के अनेक बच्चे अत्यधिक दुःख का अनुभव कर रहे हैं। करोड़ों परिवार दुःखी और असंयुक्त हैं। फिर भी, ऐसा एक परिवार है जो सच्चा आनन्द और वास्तविक एकता का अनुभव करता है। यह यहोवा परमेश्वर का सर्वव्यापी परिवार है। इसमें, असंख्य अदृश्य स्वर्गदूत ईश्वरीय इच्छा के सामंजस्य में अपने नियुक्त कार्यों को पूरा करते हैं। (भजन १०३:२०, २१) लेकिन क्या पृथ्वी पर ऐसा एक परिवार है जो ऐसी एकता का आनन्द उठाता है?
२, ३.. (क) परमेश्वर के सर्वव्यापी परिवार का अब कौन भाग हैं, और आज यहोवा के सभी साक्षियों की तुलना हम किसके साथ कर सकते हैं? (ख) किन सवालों की हम चर्चा करेंगे?
२ प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मैं इसी कारण उस पिता के साम्हने घुटने टेकता हूं, जिस से स्वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है।” (इफिसियों ३:१४, १५) पृथ्वी पर हर एक पारिवारिक-वंश का नाम परमेश्वर से रखा जाता है क्योंकि वह सृष्टिकर्ता है। हालाँकि स्वर्ग में कोई मानवी परिवार नहीं हैं, लाक्षणिक रूप से कहें तो परमेश्वर का विवाह अपने स्वर्गीय संगठन के साथ हुआ है, और स्वर्ग में यीशु का एक आत्मिक दुल्हन के साथ विवाह होगा। (यशायाह ५४:५; लूका २०:३४, ३५; १ कुरिन्थियों १५:५०; २ कुरिन्थियों ११:२) पृथ्वी पर विश्वासी अभिषिक्त जन परमेश्वर के सर्वव्यापी परिवार का अब भाग हैं, और यीशु की पार्थिव आशावाली “अन्य भेड़” इसके प्रत्याशी सदस्य हैं। (यूहन्ना १०:१६, NW; रोमियों ८:१४-१७; प्रहरीदुर्ग, जनवरी १५, १९९६, पृष्ठ ३१) लेकिन, आज यहोवा के सभी साक्षियों की तुलना एक संयुक्त विश्वव्यापी परिवार के साथ की जा सकती है।
३ क्या आप परमेश्वर के सेवकों के इस अद्भुत अन्तरराष्ट्रीय परिवार का भाग हैं? यदि आप हैं, तो आप एक ऐसी महान आशीष का आनन्द उठा रहे हैं जो किसी के पास हो सकती है। लाखों लोग प्रमाणित करेंगे कि यहोवा का विश्वव्यापी परिवार—उसका दृश्य संगठन—संघर्ष और अनैक्य की एक सांसारिक मरूभूमि में शान्ति और एकता का एक मरूद्यान है। यहोवा के विश्वव्यापी परिवार की एकता का वर्णन कैसे किया जा सकता है? और कौन-से तत्त्व ऐसी एकता को बढ़ावा देते हैं?
कैसी भली और मनोहर बात!
४. भाईचारे की एकता के बारे में भजन १३३ जो कहता है, उसे आप अपने शब्दों में कैसे व्यक्त करेंगे?
४ भजनहार दाऊद ने भाईचारे की एकता का गहरा मूल्यांकन किया। वह इसके बारे में गाने के लिए उत्प्रेरित भी हुआ! अपनी वीणा लिए गाते हुए उसकी कल्पना कीजिए: “देखो, यह कैसी भली और मनोहर बात है कि भाई आपस में एक होकर रहें! यह हारून के सिर पर के उस उत्तम तेल के समान है जो नीचे दाढ़ी पर अर्थात् उस की दाढ़ी पर बहता हुआ, उसके वस्त्रों के छोर तक पहुंच गया। यह हेर्मोन की उस ओस के समान है, जो सिय्योन के पहाड़ों पर गिरती है! क्योंकि यहोवा ने वहीं सदा के जीवन की आशिष ठहराई है!”—भजन १३३:१-३, NHT.
५. भजन १३३:१, २ के आधार पर, इस्राएलियों और परमेश्वर के आधुनिक-दिन सेवकों के बीच क्या तुलना की जा सकती है?
५ ये शब्द उस भाईचारे की एकता पर लागू हुए जिसका आनन्द परमेश्वर के प्राचीन लोग, अर्थात् इस्राएली उठाते थे। अपने तीन वार्षिकोत्सवों के लिए जब वे यरूशलेम में थे, तो वे वाक़ई एकता में रहे। हालाँकि वे विभिन्न गोत्रों से आए थे, वे एक परिवार थे। एक साथ रहने का उन पर हितकर प्रभाव हुआ, जो एक सुखद सुगंधवाले स्फूर्तिदायक अभिषेक करनेवाले तेल की तरह था। जब इस प्रकार का तेल हारून के सिर पर उँडेला गया, तो वह उसकी दाढ़ी से नीचे बहकर उसके वस्त्र की गरदनी तक पहुँच गया। इस्राएलियों के लिए, एक साथ रहने का ऐसा उत्तम प्रभाव होता था जो एकत्रित सभी लोगों में व्याप्त हो जाता था। ग़लतफ़हमियाँ दूर की जाती थीं और एकता को बढ़ावा दिया जाता था। उसी तरह की एकता आज यहोवा के विश्वव्यापी परिवार में विद्यमान है। नियमित रूप से संगति करना इसके सदस्यों पर हितकर आध्यात्मिक प्रभाव डालता है। कोई भी ग़लतफ़हमियाँ या कठिनाइयाँ दूर की जाती हैं जब परमेश्वर के वचन की सलाह को लागू किया जाता है। (मत्ती ५:२३, २४; १८:१५-१७) यहोवा के लोग अपनी भाईचारे की एकता से परिणित परस्पर प्रोत्साहन का अत्यधिक मूल्यांकन करते हैं।
६, ७. इस्राएल की एकता कैसे हेर्मोन पहाड़ की ओस के समान थी, और आज परमेश्वर की आशीष कहाँ पायी जा सकती है?
६ इस्राएल का एकता में मिलकर रहना कैसे हेर्मोन की ओस के समान भी था? चूँकि इस पहाड़ की चोटी समुद्र-तल से २,८०० से अधिक मीटर ऊपर है, यह क़रीब-क़रीब पूरे साल बर्फ़ से ढकी हुई रहती है। हेर्मोन की बर्फ़ीली चोटी के कारण रात के वाष्पों का संघनन होता है और इस प्रकार काफ़ी ओस उत्पन्न होती है जो लम्बे सूखे मौसम के दौरान वनस्पति को बनाए रखती है। हेर्मोन पर्वतमाला से ठण्डी वायु-तरंगे ऐसे वाष्पों को यरूशलेम के क्षेत्र जैसे सुदूर दक्षिण तक ले जा सकती हैं, जहाँ वे ओस के रूप में संघनित होते हैं। सो भजनहार ने ‘सिय्योन पहाड़ पर गिरनेवाली हेर्मोन की ओस’ के बारे में सही-सही बोला था। उस तरोताज़ा करनेवाले प्रभाव का क्या ही उत्तम अनुस्मारक जो उपासकों के यहोवा के परिवार की एकता को बढ़ावा देता है!
७ मसीही कलीसिया के स्थापित होने से पहले, सिय्योन, या यरूशलेम, सच्ची उपासना का केन्द्र था। अतः, वहीं परमेश्वर ने आशीष का आदेश दिया था। चूँकि सभी आशीषों का स्रोत यरूशलेम के पवित्रस्थान में प्रातिनिधिक तौर पर थी, आशीषें वहाँ से निकलतीं। क्योंकि सच्ची उपासना किसी एक स्थान तक और सीमित नहीं है, इसीलिए, परमेश्वर के सेवकों की आशीष, प्रेम, और एकता आज पूरी पृथ्वी में पायी जा सकती है। (यूहन्ना १३:३४, ३५) कौन-से कुछ तत्त्व हैं जो इस एकता को बढ़ावा देते हैं?
तत्त्व जो एकता को बढ़ावा देते हैं
८. यूहन्ना १७:२०, २१ में एकता के बारे में हम क्या सीखते हैं?
८ यहोवा के उपासकों की एकता सही-सही समझे गए परमेश्वर के वचन के अनुपालन पर आधारित है, जिसमें यीशु मसीह की शिक्षाएँ सम्मिलित हैं। सच्चाई के प्रति साक्षी देने और एक बलिदानी मृत्यु मरने के लिए यहोवा द्वारा अपने पुत्र को संसार में भेजने से, संयुक्त मसीही कलीसिया की स्थापना के लिए मार्ग खुल गया था। (यूहन्ना ३:१६; १८:३७) उसके सदस्यों के बीच वास्तविक एकता होनी थी, यह बात तब स्पष्ट की गयी जब यीशु ने प्रार्थना की: “मैं केवल इन्हीं के लिये बिनती नहीं करता, परन्तु उन के लिये भी जो इन के वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, कि वे सब एक हों। जैसा तू हे पिता मुझ में है, और मैं तुझ में हूं, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिये कि जगत प्रतीति करे, कि तू ही ने मुझे भेजा।” (यूहन्ना १७:२०, २१) यीशु के अनुयायियों ने वाक़ई ऐसी एकता प्राप्त की जो उस एकता के समान थी जो परमेश्वर और उसके पुत्र के बीच में है। यह इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के वचन और यीशु की शिक्षाओं का अनुपालन किया। यही मनोवृत्ति आज यहोवा के विश्वव्यापी परिवार की एकता में एक बड़ा तत्त्व है।
९. यहोवा के लोगों की एकता में पवित्र आत्मा क्या भूमिका अदा करती है?
९ एक और तत्त्व जो यहोवा के लोगों को संयुक्त करता है वह है कि हमारे पास परमेश्वर की पवित्र आत्मा, या सक्रिय शक्ति है। यह हमें यहोवा के वचन की प्रकट सच्चाई को समझने और इस प्रकार संयुक्त रूप से उसकी सेवा करने में समर्थ करती है। (यूहन्ना १६:१२, १३) यह आत्मा हमें झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, और फूट जैसे मतभेद करानेवाले शरीर के कामों से दूर रहने में मदद देती है। इसके बजाय, परमेश्वर की आत्मा हम में प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम के संयुक्त करनेवाले फल उत्पन्न करवाती है।—गलतियों ५:१९-२३.
१०. (क) एक संयुक्त मानव परिवार में विद्यमान प्रेम और उस प्रेम के बीच क्या समानता की जा सकती है जो यहोवा को समर्पित व्यक्तियों के बीच सुस्पष्ट है? (ख) अपने आध्यात्मिक भाइयों के साथ मिलने के बारे में शासी निकाय के एक सदस्य ने अपनी भावनाएँ कैसे व्यक्त की?
१० एक संयुक्त परिवार के सदस्य एक दूसरे से प्रेम करते हैं और एक दूसरे के साथ होने में ख़ुश होते हैं। तुलनात्मक रूप से, यहोवा के उपासकों के संयुक्त परिवार में जो हैं, वे उससे, उसके पुत्र से, और संगी विश्वासियों से प्रेम करते हैं। (मरकुस १२:३०; यूहन्ना २१:१५-१७; १ यूहन्ना ४:२१) ठीक जिस प्रकार एक प्रेममय प्राकृतिक परिवार एक साथ भोजन करने में आनन्द उठाता है, उसी प्रकार जो परमेश्वर को समर्पित हैं, वे उत्तम संगति और अत्युत्तम आध्यात्मिक भोजन से लाभ उठाने के लिए मसीही सभाओं, सम्मेलनों, और अधिवेशनों में उपस्थित होने में आनन्दित होते हैं। (मत्ती २४:४५-४७; इब्रानियों १०:२४, २५) यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के एक सदस्य ने एक बार यों कहा: “जहाँ तक मेरा सवाल है, भाइयों के साथ मिलना ज़िन्दगी के सबसे बड़े सुख और प्रोत्साहन का स्रोत है। मुझे राज्यगृह में सबसे पहले आनेवालों में होना, और यदि संभव हो तो सबसे अन्त में जानेवालों में होना बहुत पसन्द है। परमेश्वर के लोगों के साथ बात करते वक़्त मैं एक आन्तरिक आनन्द महसूस करता हूँ। जब मैं उनके साथ होता हूँ तो मैं अपने परिवार के साथ निश्चिन्त महसूस करता हूँ।” क्या आप ऐसा महसूस करते हैं?—भजन २७:४.
११. कौन-से कार्य में यहोवा के साक्षी विशेषकर ख़ुशी पाते हैं, और अपने जीवन में परमेश्वर की सेवा को केन्द्र-बिन्दु बनाने से क्या परिणित होता है?
११ एक संयुक्त परिवार एक साथ काम करने में ख़ुशी पाता है। उसी तरह, यहोवा के उपासकों के परिवारवाले संयुक्त रूप से अपना राज्य-प्रचार और चेला-बनाने का काम करने में आनन्द पाते हैं। (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) इसमें नियमित रूप से हिस्सा लेना हमें यहोवा के अन्य साक्षियों के और नज़दीक लाता है। परमेश्वर की सेवा को अपने जीवन का केन्द्र-बिन्दु बनाना और इसके लोगों की सभी गतिविधियों को समर्थन देना, हमारे बीच की पारिवारिक भावना को भी बढ़ावा देता है।
ईश्वरशासित व्यवस्था अत्यावश्यक है
१२. एक सुखी और संयुक्त परिवार की विशेषताएँ क्या हैं, और कौन-से प्रबन्ध ने पहली-शताब्दी मसीही कलीसियाओं में एकता को बढ़ावा दिया?
१२ एक परिवार जिसमें मज़बूत लेकिन प्रेममय नेतृत्व है और जो व्यवस्थित है, वह संभवतः संयुक्त और सुखी होगा। (इफिसियों ५:२२, ३३; ६:१) यहोवा शान्तिमय व्यवस्था का परमेश्वर है, और उसके परिवार के सभी जन उसे “परमप्रधान” समझते हैं। (दानिय्येल ७:१८, २२, २५, २७; १ कुरिन्थियों १४:३३) वे यह भी स्वीकारते हैं कि उसने अपने पुत्र, यीशु मसीह को सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया है तथा स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार उसे सौंप दिया है। (मत्ती २८:१८; इब्रानियों १:१, २) मसीही कलीसिया जिसका सिर मसीह है, एक व्यवस्थित, संयुक्त संगठन है। (इफिसियों ५:२३) पहली-शताब्दी कलीसियाओं की गतिविधियों का निरीक्षण करने के लिए, प्रेरितों और अन्य आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़ ‘प्राचीनों’ द्वारा बना एक शासी निकाय था। वैयक्तिक कलीसियाओं में नियुक्त अध्यक्ष, या प्राचीन, और सहायक सेवक थे। (प्रेरितों १५:६; फिलिप्पियों १:१) अगुवाई लेनेवालों की आज्ञा मानने से एकता को बढ़ावा मिला।—इब्रानियों १३:१७.
१३. यहोवा लोगों को कैसे आकर्षित करता है, और इससे क्या परिणित होता है?
१३ लेकिन क्या ये सारी आज्ञाएँ सुझाती हैं कि यहोवा के उपासकों की एकता का श्रेय प्रबल, भावशून्य नेतृत्व को दिया जा सकता है? बिलकुल नहीं! परमेश्वर या उसके संगठन के बारे में कुछ भी प्रेमरहित नहीं है। यहोवा प्रेम दिखाने के द्वारा लोगों को आकर्षित करता है, और हर साल लाखों लोग परमेश्वर के प्रति अपने एकनिष्ठ समर्पण के प्रतीक में बपतिस्मा लेने के द्वारा स्वेच्छापूर्वक और आनन्दपूर्वक यहोवा के संगठन का भाग बनते हैं। उनकी मनोवृत्ति यहोशू की तरह है, जिसने संगी इस्राएलियों से आग्रह किया: “आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे, . . . परन्तु मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा नित करूंगा।”—यहोशू २४:१५.
१४. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा का संगठन ईश्वरशासित है?
१४ यहोवा के परिवार के भाग के तौर पर, हम न केवल आनन्दित हैं बल्कि सुरक्षित भी हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसका संगठन ईश्वरशासित है। परमेश्वर का राज्य एक ईश्वरशासन है (यूनानी थियोस्, ईश्वर, और क्रेटोस, एक शासन, से लिया गया)। यह परमेश्वर द्वारा एक शासन है, उसके द्वारा नियुक्त और स्थापित किया गया है। यहोवा के अभिषिक्त “पवित्र लोग” उसके शासन के अधीन हैं और इसीलिए ईश्वरशासित भी हैं। (१ पतरस २:९) महान ईश्वरशासक, यहोवा के हमारा न्यायी, हाकिम, और राजा होने की वजह से हमारे पास सुरक्षित महसूस करने का हर कारण है। (यशायाह ३३:२२) फिर भी, तब क्या जब कोई विवाद उत्पन्न होता है और वह हमारे आनन्द, सुरक्षा, और एकता के लिए ख़तरा पेश करता है?
शासी निकाय कार्य करता है
१५, १६. पहली शताब्दी में कौन-सा विवाद उत्पन्न हुआ था, और क्यों?
१५ एक परिवार की एकता को बनाए रखने के लिए, कभी-कभार एक विवाद को निपटाना पड़ सकता है। तो मान लीजिए कि सा.यु. पहली शताब्दी में उपासकों के परमेश्वर के परिवार की एकता को बनाए रखने के लिए एक आध्यात्मिक समस्या का हल किया जाना था। तब क्या? आध्यात्मिक विषयों पर निर्णय करते हुए शासी निकाय ने कार्य किया। हमारे पास ऐसे कार्य का शास्त्रीय अभिलेख है।
१६ लगभग सा.यु. ४९ में, शासी निकाय एक गम्भीर समस्या का समाधान करने और इस प्रकार “परमेश्वर के घराने” की एकता को बनाए रखने के लिए यरूशलेम में मिला। (इफिसियों २:१९) कुछ १३ साल पहले, प्रेरित पतरस ने कुरनेलियुस को प्रचार किया था, और पहले ग़ैरयहूदी, या अन्यजातीय लोग बपतिस्मा-प्राप्त विश्वासी बन गए। (प्रेरितों, अध्याय १०) पौलुस के पहले मिशनरी दौरे के दौरान, अनेक ग़ैरयहूदियों ने मसीहियत को ग्रहण किया। (प्रेरितों १३:१-१४:२८) दरअसल, ग़ैरयहूदी मसीहियों की एक कलीसिया अन्ताकिया, सूरिया में स्थापित की गयी थी। कुछ मसीही यहूदियों ने महसूस किया कि ग़ैरयहूदी धर्मपरिवर्तित लोगों को ख़तना करवाना चाहिए और मूसा की व्यवस्था को मानना चाहिए, लेकिन दूसरे इससे सहमत नहीं हुए। (प्रेरितों १५:१-५) इस विवाद से शायद सम्पूर्ण मतभेद हो सकता था, यहाँ तक कि अलग-अलग यहूदी और ग़ैरयहूदी कलीसियाओं की स्थापना हो सकती थी। इसीलिए शासी निकाय ने मसीही एकता को बनाए रखने के लिए तुरन्त कार्यवाही की।
१७. प्रेरितों अध्याय १५ में कौन-से सुसंगत ईश्वरशासित तरीक़े के बारे में वर्णन किया गया है?
१७ प्रेरितों १५:६-२२ के मुताबिक़, “प्रेरित और प्राचीन इस बात के विषय में विचार करने के लिये इकट्ठे हुए।” अन्य लोग भी उपस्थित थे, जिनमें अन्ताकिया से एक प्रतिनिधि-मण्डल सम्मिलित था। पतरस ने पहले समझाया कि ‘उसके मुंह से अन्यजाति सुसमाचार का वचन सुनकर विश्वास किए।’ फिर “सारी सभा” ने सुना जब बरनबास और पौलुस ने इसके बारे में बताया कि “परमेश्वर ने उन के द्वारा अन्यजातियों,” या ग़ैरयहूदियों “में कैसे कैसे बड़े चिन्ह, और अद्भुत काम दिखाए।” फिर याकूब ने सुझाया कि सवाल का समाधान कैसे किया जा सकता है। शासी निकाय के निर्णय करने के बाद, हमें बताया जाता है: “सारी कलीसिया सहित प्रेरितों और प्राचीनों को अच्छा लगा, कि अपने में से कई मनुष्यों को चुनें, . . . और उन्हें पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया को भेजें।” वे ‘चुने’ हुए पुरुष—यहूदा और सीलास—संगी विश्वासियों तक एक प्रोत्साहक पत्री ले गए।
१८. मूसा की व्यवस्था के सम्बन्ध में शासी निकाय ने कौन-सा निर्णय किया था, और इससे यहूदी और अन्यजाति मसीही कैसे प्रभावित हुए?
१८ शासी निकाय के निर्णय की घोषणा करनेवाली पत्री इन शब्दों से शुरू हुई: “अन्ताकिया और सूरिया और किलिकिया के रहनेवाले भाइयों को जो अन्यजातियों में से हैं, प्रेरितों और प्राचीन भाइयों का नमस्कार!” अन्य लोग इस ऐतिहासिक सभा में उपस्थित हुए, लेकिन स्पष्टतया शासी निकाय ‘प्रेरितों और प्राचीनों’ से बना था। परमेश्वर की आत्मा ने उन्हें मार्गदर्शित किया, क्योंकि पत्री कहती है: “पवित्र आत्मा को, और हम को ठीक जान पड़ा, कि इन आवश्यक बातों को छोड़; तुम पर और बोझ न डालें; कि तुम मूरतों के बलि किए हुओं से, और लोहू से, और गला घोंटे हुओं के मांस से, और व्यभिचार से, परे रहो।” (तिरछे टाइप हमारे।) (प्रेरितों १५:२३-२९) मसीहियों से ख़तना करवाने और मूसा की व्यवस्था को मानने की माँग नहीं थी। इस निर्णय ने यहूदी और ग़ैरयहूदी मसीहियों को एकता में कार्य करने और बोलने में मदद दी। कलीसियाएँ आनन्दित हुईं, और बहुमोल एकता जारी रही, उसी तरह जैसे यह आज यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के आध्यात्मिक मार्गदर्शन के अधीन परमेश्वर के विश्वव्यापी परिवार में होता है।—प्रेरितों १५:३०-३५.
ईश्वरशासित एकता में सेवा कीजिए
१९. यहोवा के उपासकों के परिवार में एकता क्यों फली-फूली है?
१९ एकता फलती-फूलती है जब एक परिवार के सदस्य एक दूसरे को सहयोग देते हैं। यही बात यहोवा के उपासकों के परिवार में सच है। ईश्वरशासित होने के नाते, पहली-शताब्दी कलीसिया के प्राचीन और अन्य लोगों ने शासी निकाय के साथ पूरे-पूरे सहयोग में परमेश्वर की सेवा की और उसके निर्णय स्वीकार किए। शासी निकाय की मदद से, प्राचीनों ने ‘वचन का प्रचार किया’ और कलीसिया के सदस्यों ने आम तौर पर ‘एक ही बात कही।’ (२ तीमुथियुस ४:१, २; १ कुरिन्थियों १:१०) सो सेवकाई में और मसीही सभाओं में वही शास्त्रीय सच्चाइयाँ प्रस्तुत की गयीं, चाहे वे यरूशलेम, अन्ताकिया, रोम, कुरिन्थ में या कहीं और की गयीं। ऐसी ईश्वरशासित एकता आज विद्यमान है।
२०. अपनी मसीही एकता को बनाए रखने के लिए, हमें क्या करना चाहिए?
२० अपनी एकता को बनाए रखने के लिए, हम सभी को जो यहोवा के विश्वव्यापी परिवार का भाग हैं, ईश्वरशासित प्रेम प्रदर्शित करने के लिए कार्य करना चाहिए। (१ यूहन्ना ४:१६) हमें परमेश्वर की इच्छा के अधीन होने और ‘विश्वासयोग्य दास’ तथा शासी निकाय के लिए गहरा आदर दिखाने की ज़रूरत है। परमेश्वर के प्रति हमारे समर्पण की तरह, हमारी आज्ञाकारिता, निश्चय ही ऐच्छिक और आनन्दपूर्ण है। (१ यूहन्ना ५:३) भजनहार ने आनन्द और आज्ञाकारिता को कितने उपयुक्त रीति से जोड़ा! उसने गाया: “याह की स्तुति करो। क्या ही धन्य है वह पुरुष जो यहोवा का भय मानता है, और उसकी आज्ञाओं से अति प्रसन्न रहता है!”—भजन ११२:१.
२१. हम अपने आपको ईश्वरशासित कैसे साबित कर सकते हैं?
२१ कलीसिया का सिर, यीशु पूरी तरह से ईश्वरशासित है और हमेशा अपने पिता की इच्छा करता है। (यूहन्ना ५:३०) इसीलिए, आइए हम यहोवा के संगठन को पूरा-पूरा सहयोग देते हुए उसकी इच्छा को ईश्वरशासित और संयुक्त रूप से करने में अपने आदर्श का अनुकरण करें। फिर हार्दिक आनन्द और कृतज्ञता के साथ, हम भजनहार के गीत को प्रतिध्वनित कर सकते हैं: “देखो, यह कैसी भली और मनोहर बात है कि भाई आपस में एक होकर रहें!”
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ हमारी मसीही एकता भजन १३३ से कैसे सम्बन्धित हो सकती है?
◻ कौन-से कुछ तत्त्व हैं जो एकता को बढ़ावा देते हैं?
◻ परमेश्वर के लोगों की एकता के लिए ईश्वरशासित व्यवस्था क्यों अत्यावश्यक है?
◻ पहली-शताब्दी शासी निकाय ने एकता को बनाए रखने के लिए कैसे कार्य किया?
◻ ईश्वरशासित एकता में सेवा करने का आपके लिए क्या अर्थ है?
[पेज 13 पर तसवीरें]
एकता को बनाए रखने के लिए शासी निकाय ने कार्य किया