मसीह, अपनी कलीसिया की अगुवाई करता है
“देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।”—मत्ती 28:20.
1, 2. (क) चेला बनाने की आज्ञा देते समय पुनरुत्थान पाए हुए यीशु ने अपने चेलों से क्या वादा किया? (ख) यीशु किस तरह पहली सदी की मसीही कलीसियाओं की अगुवाई करने में पूरी तरह लगा हुआ था?
स्वर्ग जाने से पहले हमारे पुनरुत्थित अगुवे, यीशु मसीह ने अपने चेलों से कहा: “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।”—मत्ती 23:10, NHT; 28:18-20.
2 यीशु ने अपने चेलों को न सिर्फ जीवन बचाने का काम सौंपा जिससे वे और भी चेले बना सकें बल्कि उसने उनके संग रहने का वादा भी किया। बाइबल में प्रेरितों की किताब में दर्ज़ शुरूआती मसीहियों के इतिहास से साफ पता चलता है कि मसीह ने नयी-नयी स्थापित कलीसिया की अगुवाई करने में अपने अधिकार का इस्तेमाल किया। अपने वादे के मुताबिक उसने “सहायक” यानी पवित्र आत्मा को भेजा ताकि वह उसके चेलों को मज़बूत करे और उनके काम में उन्हें मार्गदर्शन दे। (यूहन्ना 16:7; प्रेरितों 2:4, 33; 13:2-4; 16:6-10) पुनरुत्थान पाए हुए यीशु ने अपने चेलों की मदद के लिए अपने अधीन रहनेवाले स्वर्गदूतों को भी इस्तेमाल किया। (प्रेरितों 5:19; 8:26; 10:3-8, 22; 12:7-11; 27:23, 24; 1 पतरस 3:22) इसके अलावा, हमारे अगुवे ने योग्य भाइयों से बने शासी निकाय का इंतज़ाम किया जो कलीसियाओं को निर्देशन देने का काम करता है।—प्रेरितों 1:20, 24-26; 6:1-6; 8:5, 14-17.
3. इस लेख में कौन-से सवालों पर चर्चा की जाएगी?
3 हमारे समय यानी “जगत के अन्त” के बारे में क्या कहा जा सकता है? आज यीशु मसीह कैसे मसीही कलीसियाओं की अगुवाई कर रहा है? और हम उसकी अगुवाई के अधीन कैसे रह सकते हैं?
स्वामी के पास विश्वासयोग्य दास है
4. (क) “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” किन लोगों से बना है? (ख) स्वामी ने अपने दास को किस चीज़ की देख-रेख करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है?
4 जब यीशु अपनी उपस्थिति के चिन्ह के बारे में भविष्यवाणी कर रहा था तो उसने कहा: “सो वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर चाकरों पर सरदार ठहराया, कि समय पर उन्हें भोजन दे? धन्य है, वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। मैं तुम से सच कहता हूं; वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर सरदार ठहराएगा।” (मत्ती 24:45-47) यहाँ पर “स्वामी” हमारा अगुवा, यीशु मसीह है और उसने “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” यानी धरती के अभिषिक्त मसीहियों के समूह को नियुक्त किया है ताकि वे पृथ्वी पर अपने स्वामी के काम-काज की देख-रेख कर सकें।
5, 6. (क) प्रेरित यूहन्ना को मिले दर्शन में “सोने की सात दीवटें” और “सात तारे” किन्हें चित्रित करते हैं? (ख) इसका मतलब क्या है कि “सात तारे,” यीशु के दाहिने हाथ में हैं?
5 प्रकाशितवाक्य की किताब बताती है कि विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास सीधे यीशु मसीह के अधीन हैं। “प्रभु के दिन” के बारे में प्रेरित यूहन्ना ने दर्शन में “सोने की सात दीवटें देखीं। और उन दीवटों के बीच में मुनष्य के पुत्र सरीखा एक पुरुष को देखा,” जो “अपने दहिने हाथ में सात तारे लिए हुए था।” यूहन्ना को दर्शन समझाते हुए यीशु ने कहा: “उन सात तारों का भेद जिन्हें तू ने मेरे दहिने हाथ में देखा था, और उन सात सोने की दीवटों का भेद: वे सात तारे सातों कलीसियाओं के दूत हैं, और वे सात दीवट सात कलीसियाएं हैं।”—प्रकाशितवाक्य 1:1, 10-20.
6 “सोने की सात दीवटें,” सभी सच्ची मसीही कलीसियाओं को चित्रित करती हैं जो 1914 से शुरू होनेवाले “प्रभु के दिन” से मौजूद हैं। लेकिन “सात तारों” के बारे में क्या? सबसे पहले ये शब्द उन सभी आत्मा से अभिषिक्त अध्यक्षों को सूचित करते हैं जो पहली सदी की मसीही कलीसियाओं की रखवाली कर रहे थे।a ये अध्यक्ष, यीशु के दाहिने हाथ में यानी उसके अधीन और उसके निर्देशन पर चलते थे। जी हाँ, यीशु मसीह ने अभिषिक्तों से बने इस दास वर्ग की अगुवाई की है। लेकिन आज अभिषिक्त अध्यक्षों की संख्या बहुत कम है। मसीह, पूरी दुनिया में 93,000 से ज़्यादा यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं की अगुवाई कैसे कर रहा है?
7. (क) दुनिया-भर की कलीसियाओं में अगुवाई करने के लिए यीशु ने किस तरह शासी निकाय को इस्तेमाल किया है? (ख) ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि मसीही अध्यक्षों को पवित्र-आत्मा से नियुक्त किया जाता है?
7 पहली सदी की तरह आज भी अभिषिक्त अध्यक्षों में से योग्य भाइयों का एक छोटा-सा समूह, शासी निकाय के तौर पर सेवा करता है। यह निकाय विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। यीशु इसी शासी निकाय के ज़रिए कलीसियाओं में प्राचीनों की हैसियत से सेवा करने के लिए योग्य पुरुषों को नियुक्त करता है, फिर चाहे ये प्राचीन आत्मा से अभिषिक्त हों या नहीं। इस मामले में पवित्र आत्मा एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग अदा करती है जिसका इस्तेमाल करने का अधिकार यहोवा ने यीशु को दिया। (प्रेरितों 2:32, 33) सबसे पहले इन अध्यक्षों को पवित्र आत्मा से प्रेरित, परमेश्वर के वचन में दी गयी माँगों को पूरा करना होता है। (1 तीमुथियुस 3:1-7; तीतुस 1:5-9; 2 पतरस 1:20, 21) प्रार्थना करने के बाद, पवित्र आत्मा के निर्देशन में सिफारिशें और नियुक्तियाँ की जाती हैं। इसके अलावा जो नियुक्त किए जाते हैं, वे इस बात का सबूत देते हैं कि उन्होंने आत्मा के फल पैदा किए हैं। (गलतियों 5:22, 23) इसलिए पौलुस की यह सलाह सभी प्राचीनों पर लागू होती है चाहे वे अभिषिक्त हों या न हों: “अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो; जिस में पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है।” (प्रेरितों 20:28) ये नियुक्त किए हुए भाई, शासी निकाय से हिदायतें पाते हैं और खुशी-खुशी कलीसिया की रखवाली करते हैं। इस तरह मसीह हमारे साथ है और कलीसियाओं की पूरी तरह से अगुवाई कर रहा है।
8. अपने चेलों की अगुवाई करने के लिए मसीह कैसे स्वर्गदूतों का इस्तेमाल करता है?
8 इसके अलावा, यीशु अपने चेलों की अगुवाई करने के लिए स्वर्गदूतों का भी इस्तेमाल करता है। गेहूँ और जंगली बीज के दृष्टांत के मुताबिक कटनी का समय “जगत के अन्त” में आएगा। कटनी के लिए स्वामी किन्हें इस्तेमाल करेगा? मसीह ने कहा: “काटनेवाले स्वर्गदूत हैं।” उसने यह भी कहा: “मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को और कुकर्म करनेवालों को इकट्ठा करेंगे।” (मत्ती 13:37-41) जैसे कूशी खोजे को ढूँढ़ निकालने में फिलिप्पुस को एक स्वर्गदूत ने निर्देशन दिया था उसी तरह आज ऐसे ढेरों सबूत दिखाते हैं कि मसीह, नेकदिल लोगों को ढूँढ़ने में सच्चे मसीहियों की मदद के लिए स्वर्गदूतों का इस्तेमाल करता है।—प्रेरितों 8:26, 27; प्रकाशितवाक्य 14:6.
9. (क) मसीह किन तरीकों से आज कलीसियाओं की अगुवाई करता है? (ख) अगर हम मसीह की अगुवाई से लाभ पाना चाहते हैं तो हमें किस सवाल पर गौर करना होगा?
9 यह जानकर हमें कितना हौसला मिलता है कि आज यीशु मसीह शासी निकाय, पवित्र आत्मा और स्वर्गदूतों के ज़रिए अपने चेलों की अगुवाई कर रहा है! हो सकता है कि सताए जाने या ऐसी ही कुछ समस्याओं की वजह से यहोवा के कुछ उपासकों का थोड़े समय के लिए शासी निकाय से संपर्क टूट जाए। फिर भी वे अकेले नहीं हैं। क्योंकि मसीह अपनी पवित्र आत्मा और स्वर्गदूतों के ज़रिए उनकी अगुवाई करता रहेगा। लेकिन हमें उसकी अगुवाई से तभी लाभ होता है जब हम इसे स्वीकार करते हैं। हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें मसीह की अगुवाई स्वीकार है?
‘आज्ञा मानो, आधीन रहो’
10. कलीसिया में नियुक्त प्राचीनों के लिए हम आदर कैसे दिखा सकते हैं?
10 हमारे अगुवे ने कलीसियाओं को ‘मनुष्यों में दान’ दिए हैं जिनमें ‘कितनों को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त किया और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त किया।’ (इफिसियों 4:8, 11, 12) उनके प्रति हमारे रवैए और कामों से साफ ज़ाहिर होता है कि हम मसीह की अगुवाई स्वीकार करते हैं या नहीं। मसीह ने आध्यात्मिक तौर पर जिन योग्य पुरुषों को दिया है, उनके ‘धन्यवादी बने रहना’ ही उचित है। (कुलुस्सियों 3:15) इतना ही नहीं वे हमारे आदर के योग्य भी हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जो प्राचीन अच्छा प्रबन्ध करते हैं . . . दो गुने आदर के योग्य समझे जाएं।” (1 तीमुथियुस 5:17) कलीसिया के प्राचीनों या अध्यक्षों के लिए हम अपना एहसान और आदर कैसे दिखा सकते हैं? पौलुस इसका जवाब देता है: “अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो।” (इब्रानियों 13:17) जी हाँ, हमें उनकी आज्ञा माननी है और उनके अधीन रहना है।
11. यह कैसे कहा जा सकता है कि कलीसिया में प्राचीनों के इंतज़ाम का आदर करना बपतिस्मे के अपने वादे को निभाना है?
11 हमारा अगुवा सिद्ध है। मगर उसने मनुष्यों में जो दान दिए हैं, वे सिद्ध नहीं हैं। इसलिए उनसे गलतियाँ हो सकती हैं। फिर भी, मसीह के ठहराए इंतज़ाम के वफादार बने रहना ज़रूरी है। दरअसल समर्पण और बपतिस्मे के अपने वादे को निभाने का मतलब यही है कि कलीसिया में आत्मा से नियुक्त अधिकार को पहचानना और खुशी-खुशी उनके अधीन हो जाना। “पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा” लेना इस बात का ऐलान है कि हम जानते हैं कि पवित्र आत्मा क्या है और कि यहोवा के उद्देश्यों में वह क्या भाग अदा करती है। (मत्ती 28:19) इस तरह के बपतिस्मे से यह ज़ाहिर होता है कि हम पवित्र आत्मा के निर्देशन में काम करते हैं और ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहते जिससे मसीह के चेलों के बीच यह पवित्र आत्मा काम करना बंद कर दे। प्राचीनों की सिफारिश और नियुक्ति में पवित्र आत्मा बहुत ज़रूरी भाग अदा करती है। इसलिए अगर हम कलीसिया में प्राचीनों के इंतज़ाम का साथ नहीं देते तो क्या हम कह सकते हैं कि हम अपने समर्पण के वादे को निभा रहे हैं?
12. यहूदा ने अधिकार का अपमान करनेवाले कौन-से उदाहरणों का ज़िक्र किया और हमें उनसे क्या सबक मिलता है?
12 बाइबल में ऐसे कई उदाहरण दिए गए हैं जो हमें आज्ञाकारी होने और अधीन रहने की अहमियत सिखाते हैं। कलीसिया में नियुक्त पुरुषों की निंदा करनेवालों का ज़िक्र करते हुए, शिष्य यहूदा ने तीन उदाहरण बताए जो हमारे लिए एक चेतावनी है: “उन पर हाय! कि वे कैन की सी चाल चले, और मजदूरी के लिये बिलाम की नाईं भ्रष्ट हो गए हैं: और कोरह की नाईं विरोध करके नाश हुए हैं।” (यहूदा 11) जब यहोवा ने कैन को प्यार से सलाह दी, तो उसने उसकी एक नहीं सुनी और ज़िद्दी होकर नफरत और हत्या के रास्ते पर निकल पड़ा। (उत्पत्ति 4:4-8) परमेश्वर के बार-बार चेतावनी देने के बावजूद बिलाम ने इनाम पाने के लालच में उसके लोगों को शाप देने की कोशिश की। (गिनती 22:5-28,32-34; व्यवस्थाविवरण 23:5) कोरह को इस्राएलियों के बीच एक खास ज़िम्मेदारी निभाने का सम्मान मिला था, मगर वह उससे खुश नहीं था। उसने परमेश्वर के सेवक और पृथ्वी के सबसे नम्र व्यक्ति, मूसा के खिलाफ जाने के लिए लोगों को भड़काया। (गिनती 12:3; 16:1-3, 32, 33) कैन, बिलाम और कोरह, इन सभी को बहुत बुरे अंजाम भुगतने पड़े। इन उदाहरणों से हमें यह सबक साफ मिलता है कि यहोवा जिन्हें ज़िम्मेदारी के पद पर ठहराता है, उनकी सलाह मानना और उनका आदर करना कितना ज़रूरी है!
13. प्राचीनों के इंतज़ाम के अधीन रहने से जो आशीषें मिलती हैं उनके बारे में भविष्यवक्ता यशायाह ने क्या भविष्यवाणी की?
13 हमारे अगुवे ने मसीही कलीसिया में निगरानी करने का जो बढ़िया इंतज़ाम किया है, उससे कौन लाभ पाना नहीं चाहता? इस इंतज़ाम से मिलनेवाली आशीषों के बारे में भविष्यवक्ता यशायाह ने भविष्यवाणी की: “देखो, एक राजा धर्म से राज्य करेगा, और राजकुमार न्याय से हुकूमत करेंगे। हर एक मानो आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।” (यशायाह 32:1, 2) हर प्राचीन ऐसी सुरक्षा और बचाव का “स्थान” होना चाहिए। अगर हमें अधिकार को स्वीकार करना मुश्किल लगे, तब ऐसे में आइए हम प्रार्थना में परमेश्वर से मदद माँगे और कलीसिया में परमेश्वर के ठहराए अधिकार को मानकर उसके अधीन रहें।
प्राचीन कैसे मसीह की अगुवाई के अधीन होते हैं
14, 15. कलीसिया की अगुवाई करनेवाले कैसे दिखा सकते हैं कि वे मसीह की अगुवाई के अधीन हैं?
14 हर मसीही को यीशु की अगुवाई स्वीकार करनी चाहिए, खास तौर से प्रचीनों को। अध्यक्षों या प्राचीनों को कलीसिया में कुछ हद तक अधिकार सौंपे गए हैं। मगर वे ‘विश्वास के विषय में अपने संगी भाई-बहनों पर प्रभुता जताकर’ उन पर धाक नहीं जमाते। (2 कुरिन्थियों 1:24) प्राचीन, यीशु के इन शब्दों को मानते हैं: “तुम जानते हो, कि अन्य जातियों के हाकिम उन पर प्रभुता करते हैं; और जो बड़े हैं, वे उन पर अधिकार जताते हैं। परन्तु तुम में ऐसा न होगा।” (मत्ती 20:25-27) प्राचीन, अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ सच्चे दिल से दूसरों की सेवा भी करते हैं।
15 मसीहियों से आग्रह किया गया है: “जो तुम्हारे अगुवे थे, . . . उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो।” (इब्रानियों 13:7) इसका मतलब यह नहीं कि प्राचीनों की अगुवाई के काम की वजह से ही उनका अनुकरण किया जाना चाहिए। यीशु ने कहा: “तुम्हारा एक ही अगुवा है, अर्थात् मसीह।” (मत्ती 23:10, NHT) प्राचीनों के विश्वास का अनुकरण किया जाना है क्योंकि वे हमारे महान अगुवे, मसीह के नक्शे-कदम पर चलते हैं। (1 कुरिन्थियों 11:1) कुछ तरीकों पर गौर कीजिए जिनसे प्राचीन, कलीसिया में दूसरों के साथ अपने रिश्ते में मसीह जैसा बनने की कोशिश करते हैं।
16. यीशु के पास इतना अधिकार होने के बावजूद उसने अपने चेलों के साथ कैसा व्यवहार किया?
16 यीशु हर तरह से असिद्ध इंसानों से श्रेष्ठ था और उसे परमेश्वर से जो अधिकार मिला था उसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता था। फिर भी, अपने चेलों के साथ व्यवहार करने में वह बड़ी नम्रता से पेश आता था। उसने अपने ज्ञान का दिखावा करके अपने सुननेवालों को नीचा नहीं दिखाया। यीशु, इंसान की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए, अपने चेलों का लिहाज़ किया और उन्हें दया दिखायी। (मत्ती 15:32; 26:40, 41; मरकुस 6:31) यीशु ने अपने चेलों से हद-से-ज़्यादा की माँग कभी नहीं की, जितना बोझ वे उठा सकते थे उससे ज़्यादा उन पर नहीं डाला। (यूहन्ना 16:12) यीशु “नम्र और मन में दीन” था। इसलिए इसमें ताज्जुब की बात नहीं कि बहुतों ने उसमें विश्राम पाया।—मत्ती 11:28-30.
17. कलीसिया में दूसरों के साथ पेश आते वक्त प्राचीनों को कैसे मसीह के जैसी नम्रता दिखानी चाहिए?
17 जब हमारे अगुवे, मसीह ने नम्रता दिखायी है तो कलीसिया में अगुवाई करनेवालों को नम्रता दिखाने की और कितनी ज़रूरत है! जी हाँ, वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि उन्हें सौंपे गए अधिकार का वे गलत इस्तेमाल न करें। और ना ही ‘बड़े-बड़े शब्दों द्वारा’ (नयी हिन्दी बाइबिल) दूसरों की वाह-वाही पाने की कोशिश करें। (1 कुरिन्थियों 2:1, 2) इसके बजाय उन्हें साफ और सच्चे मन से शास्त्र में दी गयी सच्चाई बतानी चाहिए। इसके अलावा, प्राचीनों को दूसरों से हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं करनी चाहिए और उनकी ज़रूरतों को समझना चाहिए। (फिलिप्पियों 4:5) प्राचीन अच्छी तरह जानते हैं कि सभी गलतियाँ करते हैं इसलिए अपने भाइयों के साथ वे प्यार से पेश आते हैं। (1 पतरस 4:8) जो प्राचीन नम्र और मन में दीन हैं, क्या उनसे वाकई विश्राम नहीं मिलता? जी हाँ, बिलकुल।
18. जिस तरह यीशु ने बच्चों के साथ व्यवहार किया उससे प्राचीन क्या सीख सकते हैं?
18 यीशु ऐसा व्यक्ति था कि हर कोई, यहाँ तक कि छोटे-से-छोटा भी उसके पास आता था। उस वाकये पर गौर कीजिए जब “लोग बालकों को उसके पास लाने लगे” तो चेले उन्हें डाँट रहे थे। यीशु ने कहा: “बालकों को मेरे पास आने दो। और उन्हें मना न करो।” इसके बाद, “उस ने उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी।” (मरकुस 10:13-16) यीशु के दिल में प्यार और दया थी, इसलिए लोग उसकी तरफ खिंचे चले आते थे। वे यीशु से बिलकुल नहीं डरते थे। यहाँ तक कि बच्चे भी उससे घुल-मिलकर रहते थे। उसी तरह प्राचीनों के पास भी लोग बेझिझक जाते हैं और जब वे दूसरों को प्यार और दया दिखाते हैं तो सभी यहाँ तक कि बच्चे भी कोई डर महसूस नहीं करते।
19. “प्रभु का मन” होने में क्या शामिल है, और इसके लिए कैसी मेहनत करने की ज़रूरत है?
19 प्राचीनों का यीशु मसीह का अनुकरण करना, इस बात पर निर्भर करता है कि वे उसे कितनी अच्छी तरह से जानते हैं। पौलुस ने पूछा: “प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखलाए?” उसके बाद वह कहता है: “परन्तु हम में मसीह का मन है।” (1 कुरिन्थियों 2:16) मसीह का मन होने में उसके सोचने के तरीके से वाकिफ होना और उसके व्यक्तित्व के सभी पहलुओं को जानना शामिल है, क्योंकि तभी हम जान सकेंगे कि किसी खास परिस्थिति में अगर यीशु होता तो वह क्या करता। क्या आप अपने अगुवे को इतनी करीबी से जानने की कल्पना कर सकते हैं? बिलकुल, लेकिन इसके लिए सुसमाचार के वृत्तांतों पर अच्छी तरह ध्यान देना और नियमित तौर पर यीशु की ज़िंदगी और उसके उदाहरण को समझना है, फिर उसे अपने मन में बिठाना है। जब प्राचीन, मसीह की अगुवाई की मिसाल पर चलने के लिए इस तरह मेहनत करते हैं तो कलीसिया को भी उनके विश्वास का अनुकरण करने की प्रेरणा मिलती है। और प्राचीनों को यह देखकर कितना सुख मिलता है कि दूसरे भी अपने अगुवे के नक्शे-कदम पर चलने को तैयार है।
मसीह की अगुवाई के अधीन रहिए
20, 21. वादा किए नए संसार का इंतज़ार करते हुए हमें क्या ठान लेना चाहिए?
20 सभी को मसीह की अगुवाई के अधीन रहना बहुत ज़रूरी है। जैसे-जैसे हम अंत के करीब पहुँच रहे हैं, हमारी स्थिति इस्राएलियों की तरह है जो सा.यु.पू. 1473 में मोआब की तराई में थे। वे वादा किए हुए देश की दहलीज़ पर खड़े थे और भविष्यवक्ता मूसा के ज़रिए परमेश्वर ने घोषणा की: “इन लोगों के संग उस देश में जिसे यहोवा ने इनके पूर्वजों से शपथ खाकर देने को कहा था तू [यहोशू] जाएगा।” (व्यवस्थाविवरण 31:7, 8) यहोशू को उनका अगुवा ठहराया गया था। और वादा किए हुए देश में प्रवेश करने के लिए इस्राएलियों को यहोशू की अगुवाई के अधीन रहना था।
21 बाइबल हमसे कहती है: “तुम्हारा एक ही अगुवा है, अर्थात् मसीह।” सिर्फ मसीह ही हमें वादा किए नए संसार में ले जाएगा जहाँ धार्मिकता वास करेगी। (2 पतरस 3:13) इसलिए आइए हम अपने जीवन के हर पहलू में मसीह की अगुवाई स्वीकार करने की ठान लें।
[फुटनोट]
a यहाँ “तारों” का मतलब स्वर्गदूत नहीं है। क्योंकि इन अदृश्य आत्मिक प्राणियों को जानकारी देने के लिए यीशु बेशक एक इंसान की मदद नहीं लेगा। इसलिए “तारों” का मतलब ज़रूर वे मनुष्य हैं जो कलीसिया के अध्यक्ष या प्राचीन हैं और जिन्हें यीशु का दूत माना जाता है। उनकी संख्या सात होना परमेश्वर की नज़र में पूर्णता को दिखाती है।
क्या आपको याद है?
• यीशु ने पहली सदी की कलीसिया की अगुवाई कैसे की?
• आज यीशु अपनी कलीसिया की कैसे अगुवाई करता है?
• हमें कलीसिया में अगुवाई करनेवालों के अधीन क्यों रहना चाहिए?
• प्राचीन, किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि मसीह उनका अगुवा है?
[पेज 15 पर तसवीर]
मसीह अपनी कलीसिया की अगुवाई करता है और अध्यक्षों को अपने दाहिने हाथ में लिए हुए हैं
[पेज 16 पर तसवीरें]
“अपने अगुवों की मानो; और उनके अधीन रहो”
[पेज 18 पर तसवीर]
यीशु के दिल में दूसरों के लिए प्यार था और लोग बेझिझक उसके पास आते थे। मसीही प्राचीन भी उसके जैसा बनने की कोशिश करते हैं