अपनी सारी चिन्ता यहोवा पर डाल दो
“परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।”—१ पतरस ५:६, ७.
१. चिन्ता हमें कैसे प्रभावित कर सकती है, और इसे कैसे सचित्रित किया जा सकता है?
चिन्ता हमारे जीवन को अत्यधिक प्रभावित कर सकती है। इसकी समानता विक्षोभ (वायुमंडलीय या मानवीय) से की जा सकती है जो कभी-कभी रेडियो पर आ रहे सुन्दर संगीत को भंग कर देता है। यदि रेडियो तरंगों में कोई हस्तक्षेप न हो, तो मीठे संगीत का आनन्द उठाया जा सकता है और यह श्रोता के लिए शान्तिदायक हो सकता है। लेकिन, विक्षोभ की खरखरी आवाज़ से सबसे सुरीली लय भी बिगड़ सकती है, जिससे हमें चिड़चिड़ाहट और कुण्ठा होती है। चिन्ता का हमारी शान्ति पर समान प्रभाव हो सकता है। यह हमें इतना दबा सकती है कि हम अत्यावश्यक बातों को ध्यान नहीं दे सकते। सचमुच, “चिन्ता से मनुष्य का हृदय निराश होता है।”—नीतिवचन १२:२५, NHT.
२. यीशु मसीह ने “जीवन की चिन्ताओं” के बारे में क्या कहा?
२ यीशु मसीह ने अत्यधिक चिन्ता द्वारा विकर्षित होने के ख़तरे के बारे में कहा। अन्तिम दिनों के सम्बन्ध में अपनी भविष्यवाणी में, उसने आग्रह किया: “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार [अतिभोजन, NW] और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े। क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा। इसलिये जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के साम्हने खड़े होने के योग्य बनो।” (लूका २१:३४-३६) जिस प्रकार अतिभोजन और मतवालापन एक सुस्त मानसिक स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं, उसी प्रकार “जीवन की चिन्ताओं” से दब जाने के कारण हम संतुलित मानसिक दृष्टिकोण खो सकते हैं, जिसके परिणाम गंभीर होते हैं।
चिन्ता क्या है
३. “चिन्ता” को कैसे परिभाषित किया गया है, और इसके कुछ कारण क्या हैं?
३ “चिन्ता” को “अकसर किसी आनेवाली या पूर्वानुमानित विपत्ति के कारण मन की पीड़ादायक या आशंकित बेचैनी” परिभाषित किया गया है। यह “भययुक्त चिन्ता या रुचि” है साथ ही “आशंका और डर की एक असामान्य और ज़बरदस्त भावना है जो अकसर शारीरिक चिह्नों द्वारा (जैसे पसीना आना, तनाव, और धड़कन तेज़ होना), ख़तरे की वास्तविकता और स्वभाव के सम्बन्ध में संदेह द्वारा, और उसका सामना करने की व्यक्ति की योग्यता के बारे में आत्मसंदेह द्वारा विशिष्ट होती है।” (वेबस्टर्स नाइन्थ न्यू कॉलिजिएट डिक्शनरी) सो चिन्ता एक जटिल समस्या हो सकती है। बीमारी, बुढ़ापा, अपराध का डर, रोज़गार खोना, और व्यक्ति के परिवार के कल्याण की चिन्ता इसके अनेक कारणों में से हैं।
४. (क) लोगों और उनकी चिन्ताओं के बारे में क्या याद रखना अच्छा है? (ख) यदि हम चिन्ता का सामना कर रहे हैं, तो क्या किया जा सकता है?
४ स्पष्टतया, जिस प्रकार विभिन्न स्थितियाँ या परिस्थितियाँ चिन्ता उत्पन्न कर सकती हैं, उसी प्रकार चिन्ता की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं। एक स्थिति पर सभी लोग समान प्रतिक्रिया नहीं दिखाते हैं। अतः, हमें यह समझने की ज़रूरत है कि चाहे हमें एक बात परेशान नहीं करती है, तो भी यहोवा के हमारे कुछ संगी उपासकों के लिए वह गंभीर चिन्ता का कारण हो सकती है। यदि चिन्ता इस हद तक पहुँच जाती है कि हम परमेश्वर के वचन की संगत और आनन्दप्रद सच्चाइयों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते तब क्या किया जा सकता है? यदि हम चिन्ता से इतने पीड़ित हो जाते हैं कि हम यहोवा की सर्वसत्ता और मसीही खराई के वादविषयों को संकेंद्रित रखने में असमर्थ हैं तब क्या? शायद हम अपनी परिस्थितियों को बदलने में समर्थ न हों। इसके बजाय, हमें उन शास्त्रीय मुद्दों को ढूँढने की ज़रूरत है जो जीवन की कठिन समस्याओं से उत्पन्न अनावश्यक चिन्ता से निपटने में हमारी मदद करेंगे।
मदद उपलब्ध है
५. हम भजन ५५:२२ के सामंजस्य में कैसे कार्य कर सकते हैं?
५ जब मसीहियों को आध्यात्मिक सहायता की ज़रूरत है और उन पर चिन्ताओं का बोझ है, तब वे परमेश्वर के वचन से सांत्वना प्राप्त कर सकते हैं। यह विश्वसनीय मार्गदर्शन प्रदान करता है और हमें अनेक आश्वासन देता है कि यहोवा के निष्ठावान सेवकों के रूप में हम अकेले नहीं हैं। उदाहरण के लिए, भजनहार दाऊद ने गाया: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।” (भजन ५५:२२) हम इन शब्दों के सामंजस्य में कैसे कार्य कर सकते हैं? अपनी सारी चिन्ताएँ, परेशानियाँ, डर और निराशाएँ हमारे प्रेममय स्वर्गीय पिता पर डाल देने के द्वारा। यह हमें सुरक्षा की भावना और हृदय की शान्ति देने में मदद करेगा।
६. फिलिप्पियों ४:६, ७ के अनुसार, प्रार्थना हमारे लिए क्या कर सकती है?
६ यदि हमें अपना बोझ, और उसमें सम्मिलित अपनी सारी चिन्ता यहोवा पर डालनी है तो नियमित हार्दिक प्रार्थना अनिवार्य है। यह हमें आन्तरिक शान्ति देगा, क्योंकि प्रेरित पौलुस ने लिखा: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” (फिलिप्पियों ४:६, ७) “परमेश्वर की शान्ति” जो अतुलनीय है एक ऐसी असाधारण प्रशान्ति है जिसका आनन्द यहोवा के समर्पित सेवक अति कष्टकर परिस्थितियों में भी लेते हैं। यह परमेश्वर के साथ हमारे घनिष्ठ व्यक्तिगत सम्बन्ध का परिणाम है। जब हम पवित्र आत्मा के लिए प्रार्थना करते हैं और अपने आपको उसके द्वारा प्रेरित होने देते हैं, तब हमें जीवन की सभी समस्याओं से छुटकारा नहीं मिलता, लेकिन हम आत्मा के फल शान्ति का आनन्द ज़रूर लेते हैं। (लूका ११:१३; गलतियों ५:२२, २३) हम चिन्ता में पूरी तरह डूब नहीं जाते, क्योंकि हम जानते हैं कि यहोवा अपने सभी वफ़ादार लोगों को “निश्चिन्त रहने देता है” और वह ऐसा कुछ नहीं होने देगा जिससे कि हमें स्थायी नुक़सान पहुँचे।—भजन ४:८.
७. चिन्ता का सामना करने के लिए हमारी मदद करने में मसीही प्राचीन क्या भूमिका निभा सकते हैं?
७ लेकिन, तब क्या यदि हमारे शास्त्रवचनों पर मनन करने और प्रार्थना में लगे रहने के बावजूद हमारी चिन्ता बनी रहती है? (रोमियों १२:१२) आध्यात्मिक रूप से हमारी मदद करने के लिए कलीसिया में नियुक्त प्राचीन भी यहोवा का प्रबन्ध हैं। परमेश्वर का वचन प्रयोग करने के द्वारा और हमारे साथ एवं हमारे लिए प्रार्थना करने के द्वारा वे हमें सांत्वना और सहायता दे सकते हैं। (याकूब ५:१३-१६) प्रेरित पतरस ने अपने संगी प्राचीनों से आग्रह किया कि स्वेच्छा से, उत्सुकता से, और एक अनुकरणीय तरीक़े से परमेश्वर के झुंड की रखवाली करें। (१ पतरस ५:१-४) वे हमारे कल्याण में निष्कपटता से दिलचस्पी रखते हैं और सहायक होना चाहते हैं। लेकिन, प्राचीनों की मदद से पूरी तरह लाभ उठाने के लिए और कलीसिया में आध्यात्मिक रूप से उन्नति करने के लिए हम सब को पतरस की सलाह पर अमल करने की ज़रूरत है: “हे नवयुवको, तुम भी प्राचीनों के आधीन रहो, बरन तुम सब के सब एक दूसरे की सेवा के लिये [मन की, NW] दीनता से कमर बान्धे रहो, क्योंकि परमेश्वर अभिमानियों का साम्हना करता है, परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है।”—१ पतरस ५:५.
८, ९. पहला पतरस ५:६-११ से क्या सांत्वना प्राप्त की जा सकती है?
८ पतरस ने आगे कहा: “इसलिये परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है। सचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए। विश्वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर उसका साम्हना करो, कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुख भुगत रहे हैं। अब परमेश्वर जो सारे अनुग्रह का दाता है, जिस ने तुम्हें मसीह में अपनी अनन्त महिमा के लिये बुलाया, तुम्हारे थोड़ी देर तक दुख उठाने के बाद आप ही तुम्हें सिद्ध और स्थिर और बलवन्त करेगा। उसी का समराज्य युगानुयुग रहे। आमीन।”—१ पतरस ५:६-११.
९ यह जानना कितना सांत्वनादायक है कि हम ‘अपनी सारी चिन्ता परमेश्वर पर डाल सकते हैं, क्योंकि उस को हमारा ध्यान है’! और यदि हमारी कुछ चिन्ता हम पर सताहट और अन्य पीड़ाएँ लाने के द्वारा यहोवा के साथ हमारे सम्बन्ध को नष्ट करने के इब्लीस के प्रयासों के कारण होती है, तो क्या यह जानना अद्भुत नहीं कि खराई रखनेवालों के लिए अन्त में सब कुछ भला साबित होगा? जी हाँ, हमारे थोड़ी देर तक दुःख उठाने के बाद, परमेश्वर जो सारे अपात्र अनुग्रह का दाता है हमारा प्रशिक्षण पूरा करेगा और हमें स्थिर और बलवन्त करेगा।
१०. पहला पतरस ५:६, ७ कौन-से तीन गुणों की ओर संकेत करता है जो चिन्ता को कम करने में मदद कर सकते हैं?
१० पहला पतरस ५:६, ७ तीन गुणों की ओर संकेत करता है जो चिन्ता का सामना करने में हमारी मदद कर सकते हैं। एक है नम्रता, या “मन की दीनता।” आयत ६ “उचित समय पर” अभिव्यक्ति के साथ समाप्त होती है, जो धैर्य की ज़रूरत दिखाता है। आयत ७ दिखाती है कि हम भरोसे के साथ अपनी सारी चिन्ता परमेश्वर पर डाल सकते हैं ‘क्योंकि उस को हमारा ध्यान है,’ और ये शब्द यहोवा पर पूरा भरोसा रखने का प्रोत्साहन देते हैं। सो आइए देखें कि किस प्रकार नम्रता, धैर्य, और परमेश्वर पर पूरा भरोसा चिन्ता को कम करने में मदद कर सकते हैं।
कैसे नम्रता मदद कर सकती है
११. चिन्ता का सामना करने में नम्रता किस प्रकार हमारी मदद कर सकती है?
११ यदि हम नम्र हैं, तो हम स्वीकार करेंगे कि परमेश्वर के विचार हमारे विचारों से कहीं ज़्यादा ऊँचे हैं। (यशायाह ५५:८, ९) नम्रता हमें यहोवा के सर्व-समाविष्ट दृष्टिकोण की तुलना में हमारी सीमित विचार-क्षमता को स्वीकार करने में मदद देती है। वह उन बातों को देखता है जिन्हें हम नहीं समझते, जैसे धर्मी पुरुष अय्यूब के मामले में दिखाया गया। (अय्यूब १:७-१२; २:१-६) “परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे” अपने आपको नम्र बनाने के द्वारा हम सर्वोच्च सर्वसत्ताधारी के सम्बन्ध में अपनी दीन स्थिति स्वीकार कर रहे हैं। क्रमशः, यह हमें उन परिस्थितियों का सामना करने में मदद करता है जिन्हें वह अनुमति देता है। हमारे हृदय शायद तात्कालिक राहत के लिए तरसते हैं, लेकिन क्योंकि यहोवा के गुण पूर्ण संतुलन में हैं, वह जानता है कि ठीक किस समय और कैसे हमारे पक्ष में कार्य करना है। सो, छोटे बच्चों के समान, आइए यहोवा का बलवन्त हाथ थामे रहें, विश्वस्त होकर कि वह हमारी चिन्ताओं का सामना करने में हमारी मदद करेगा।—यशायाह ४१:८-१३.
१२. यदि हम नम्रता से इब्रानियों १३:५ के शब्दों पर अमल करते हैं तो भौतिक सुरक्षा के बारे में चिन्ता पर क्या प्रभाव हो सकता है?
१२ नम्रता में परमेश्वर के वचन की सलाह पर अमल करने की तत्परता सम्मिलित है, जो अकसर चिन्ता को कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि हमारी चिन्ता भौतिक लक्ष्यों में गहरे उलझाव के कारण हुई है, तो अच्छा होगा कि हम पौलुस की सलाह पर विचार करें: “तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर सन्तोष करो; क्योंकि [परमेश्वर] ने आप ही कहा है, मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।” (इब्रानियों १३:५) नम्रता से ऐसी सलाह पर अमल करने के द्वारा बहुतों ने अपने आप को भौतिक सुरक्षा के बारे में अत्यधिक चिन्ता से मुक्त किया है। जबकि उनकी आर्थिक स्थिति में शायद सुधार न आया हो, यह उनके विचारों पर हावी होकर उन्हें आध्यात्मिक नुक़सान नहीं पहुँचाती।
धैर्य की भूमिका
१३, १४. (क) धैर्यपूर्ण धीरज के सम्बन्ध में, अय्यूब ने क्या उदाहरण प्रदान किया? (ख) धैर्यपूर्वक यहोवा की बाट जोहना हमारे लिए क्या कर सकता है?
१३ पहला पतरस ५:६ में अभिव्यक्ति “उचित समय पर” धैर्यपूर्ण धीरज की ज़रूरत सुझाती है। कभी-कभी एक समस्या लम्बे समय तक बनी रहती है, और यह चिन्ता को बढ़ा सकता है। ख़ासकर ऐसी स्थिति में हमें बातों को यहोवा के हाथ में छोड़ने की ज़रूरत है। शिष्य याकूब ने लिखा: “हम धीरज धरनेवालों को धन्य कहते हैं: तुम ने ऐयूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु की ओर से जो उसका प्रतिफल हुआ उसे भी जान लिया है, जिस से प्रभु की अत्यन्त करुणा और दया प्रगट होती है।” (याकूब ५:११) अय्यूब ने आर्थिक बरबादी झेली, मृत्यु में दस बच्चे खोए, एक घिनौनी बीमारी से कष्ट सहा, और झूठी सांत्वना देनेवालों द्वारा उस की झूठी निन्दा की गयी। ऐसी परिस्थितियों में कुछ हद तक चिन्ता सामान्य होती।
१४ बहरहाल, अय्यूब धैर्यपूर्ण धीरज में अनुकरणीय था। यदि हम विश्वास की कठिन परीक्षा से ग़ुजर रहे हैं, तो राहत के लिए हमें शायद ठहरना पड़े, जैसे वह भी ठहरा। लेकिन अंत में अय्यूब को उसके दुःख से राहत देकर और प्रचुरता में प्रतिफल देकर, परमेश्वर ने उसके पक्ष में कार्य किया। (अय्यूब ४२:१०-१७) धैर्यपूर्वक यहोवा की बाट जोहना हमारे धीरज को विकसित करता है और उसके प्रति हमारी भक्ति की गहराई को प्रकट करता है।—याकूब १:२-४.
यहोवा पर भरोसा रखिए
१५. हमें यहोवा पर पूरी तरह भरोसा क्यों रखना चाहिए?
१५ पतरस ने संगी विश्वासियों से आग्रह किया कि ‘अपनी सारी चिन्ता परमेश्वर पर डाल दें क्योंकि उस को उनका ध्यान है।’ (१ पतरस ५:७) सो हम यहोवा पर पूरा भरोसा रख सकते हैं और रखना चाहिए। नीतिवचन ३:५, ६ कहता है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” पिछले अनुभवों के कारण, चिन्ता में डूबे हुए कुछ लोग दूसरे मनुष्यों पर भरोसा करना मुश्किल पाते हैं। लेकिन हमारे पास अपने सृष्टिकर्ता, जीवन के स्रोत और पालक पर भरोसा करने का हर कारण है। किसी मामले में चाहे हम स्वयं अपनी प्रतिक्रिया पर भरोसा न करें, हमारी विपत्तियों में से हमें निकालने के लिए हम हमेशा यहोवा पर भरोसा रख सकते हैं।—भजन ३४:१८, १९; ३६:९; ५६:३, ४.
१६. भौतिक चीज़ों की चिन्ता के बारे में यीशु ने क्या कहा?
१६ परमेश्वर पर भरोसा रखने में उसके पुत्र, यीशु मसीह की आज्ञा मानना सम्मिलित है, जिसने अपने पिता से सीखी हुई बातें सिखायीं। (यूहन्ना ७:१६) यीशु ने अपने शिष्यों से आग्रह किया कि यहोवा की सेवा करने के द्वारा ‘स्वर्ग में धन इकट्ठा करें।’ लेकिन रोटी, कपड़ा, और मकान से सम्बन्धित भौतिक ज़रूरतों के बारे में क्या? “चिन्ता न करना,” यीशु ने सलाह दी। उसने बताया कि परमेश्वर पक्षियों को खिलाता है। वह फूलों को सुन्दरता से वस्त्र पहनाता है। क्या परमेश्वर के मानव सेवक इन से अधिक मूल्य नहीं रखते? निःसंदेह वे अधिक मूल्य रखते हैं। अतः, यीशु ने आग्रह किया: “इसलिए पहले तुम राज्य और [परमेश्वर की] धार्मिकता की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।” यीशु ने आगे कहा: “सो कल के लिये चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा।” (मत्ती ६:२०, २५-३४, NW) जी हाँ, हमें रोटी, पानी, कपड़ों और मकान की ज़रूरत है, लेकिन यदि हम यहोवा पर भरोसा रखते हैं, तो हम इन चीज़ों के बारे में अनावश्यक रूप से चिन्ता नहीं करेंगे।
१७. पहले राज्य की खोज करने की ज़रूरत को हम कैसे सचित्रित कर सकते हैं?
१७ पहले राज्य की खोज करने के लिए हमें परमेश्वर पर भरोसा रखने और अपनी प्राथमिकताओं को ठीक क्रम में रखने की ज़रूरत है। एक ग़ोताख़ोर जिसके पास साँस लेने का यंत्र नहीं है एक ऐसी शुक्ति की खोज में जिसके अन्दर मोती हो, शायद पानी की सतह से नीचे गोता मारे। अपने परिवार का भरण-पोषण करने का यह उसका माध्यम है। सचमुच, एक ऊँची प्राथमिकता! लेकिन ज़्यादा ज़रूरी क्या है? हवा! अपने फेफड़ों को फिर से भरने के लिए नियमित रूप से उसका पानी की सतह पर आना ज़रूरी है। हवा एक उच्चतर प्राथमिकता है। उसी प्रकार, जीवन की ज़रूरतों को प्राप्त करने के लिए हमें इस रीति-व्यवस्था में शायद थोड़ा-बहुत अंतर्ग्रस्त होना पड़े। लेकिन, आध्यात्मिक बातों को पहले आना चाहिए क्योंकि हमारे घराने का जीवन ही इन बातों पर निर्भर करता है। भौतिक ज़रूरतों की अनावश्यक चिन्ता से बचने के लिए हमें परमेश्वर पर पूरा भरोसा रखने की ज़रूरत है। इसके अतिरिक्त, ‘प्रभु के काम में बढ़ते जाना’ शायद चिन्ता को कम करने में मदद दे क्योंकि “यहोवा का आनन्द” हमारा दृढ़ गढ़ साबित होता है।—१ कुरिन्थियों १५:५८; नहेमायाह ८:१०.
अपनी चिन्ता यहोवा पर डालते रहो
१८. क्या प्रमाण है कि अपनी सारी चिन्ता यहोवा पर डाल देना वास्तव में हमारी मदद कर सकता है?
१८ हमेशा आध्यात्मिक बातों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए हमें अपनी सारी चिन्ता यहोवा पर डालते रहना चाहिए। हमेशा याद रखिए कि वह वास्तव में अपने सेवकों का ध्यान रखता है। उदाहरण के लिए: उसके प्रति उसके पति की बेवफ़ाई के कारण, एक मसीही स्त्री की चिन्ता इस हद तक बढ़ गयी कि उसके लिए सोना असंभव हो गया। (भजन ११९:२८ से तुलना कीजिए।) लेकिन, सोते समय, वह अपनी सारी चिन्ता यहोवा पर डाल देती। वह अपनी अन्तरतम भावनाएँ परमेश्वर को प्रकट करती, उसे उस दर्द के बारे में बताती जो वह और उसकी दो छोटी पुत्रियाँ सह रही थीं। हार्दिक प्रार्थना में राहत के लिए रो लेने के बाद, वह हमेशा सो पाती थी, क्योंकि उसे भरोसा था कि यहोवा उसका और उसके बच्चों का ध्यान रखेगा। यह शास्त्रीय रूप से तलाक़शुदा स्त्री अब एक प्राचीन के साथ सुखपूर्वक विवाहित है।
१९, २०. (क) कौन-से कुछ तरीक़ों से हम चिन्ता का सामना कर सकते हैं? (ख) हमें अपनी सारी चिन्ता के साथ क्या करते रहना चाहिए?
१९ यहोवा के लोग होने के कारण, हमारे पास चिन्ता का सामना करने के विभिन्न तरीक़े हैं। परमेश्वर के वचन पर अमल करना ख़ासकर सहायक है। परमेश्वर हमें तर आध्यात्मिक भोजन “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के द्वारा देता है, जिसमें प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! में प्रकाशित सहायक और स्फूर्तिदायक लेख सम्मिलित हैं। (मत्ती २४:४५-४७) हमारे पास परमेश्वर की पवित्र आत्मा की सहायता है। नियमित और हार्दिक प्रार्थना हमें बहुत लाभ पहुँचाती है। नियुक्त मसीही प्राचीन आध्यात्मिक मदद और सांत्वना प्रदान करने के लिए तैयार और इच्छुक हैं।
२० हमारी अपनी नम्रता और धैर्य उस चिन्ता से निपटने के लिए अत्यधिक लाभकारी हैं जो शायद हमें घेर सकती है। यहोवा पर पूरा भरोसा ख़ासकर महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि जैसे-जैसे हम उसकी मदद और मार्गदर्शन का अनुभव करते हैं हमारा विश्वास बढ़ता जाता है। क्रमशः, परमेश्वर में विश्वास हमें अनावश्यक रूप से परेशान होने से रोक सकता है। (यूहन्ना १४:१) विश्वास हमें पहले राज्य की खोज करने और प्रभु के हर्षमय कार्य में व्यस्त रहने के लिए उकसाता है, जो चिन्ता का सामना करने में हमारी मदद कर सकता है। ऐसी गतिविधि हमें उनके बीच सुरक्षित महसूस कराती है जो सदा सर्वदा परमेश्वर की स्तुति गाएँगे। (भजन १०४:३३) इसलिए आइए अपनी सारी चिन्ता यहोवा पर डालते रहें।
आप कैसे उत्तर देंगे?
▫ चिन्ता को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
▫ कौन-से कुछ तरीक़ों से हम चिन्ता का सामना कर सकते हैं?
▫ चिन्ता को कम करने में नम्रता और धैर्य कैसे मदद कर सकते हैं?
▫ चिन्ता का सामना करने में, यहोवा पर पूरा भरोसा रखना क्यों अत्यावश्यक है?
▫ हमें अपनी सारी चिन्ता यहोवा पर क्यों डालते रहना चाहिए?
[पेज 31 पर तसवीरें]
क्या आप जानते हैं यीशु ने क्यों कहा, “चिन्ता न करना”?