अध्याय चौदह
परिवार में सुख कैसे हासिल करें
एक अच्छा पति बनने के लिए क्या ज़रूरी है?
एक स्त्री, अच्छी पत्नी कैसे बन सकती है?
एक बढ़िया माँ/पिता बनने के लिए क्या-क्या करना ज़रूरी है?
परिवार को सुखी बनाने में बच्चे कैसे मदद कर सकते हैं?
1. परिवार में खुशी पाने का राज़ क्या है?
यहोवा परमेश्वर चाहता है कि आपका परिवार सुखी रहे। इसलिए अपने वचन बाइबल में उसने हिदायतें देकर समझाया है कि परिवार में हरेक की क्या ज़िम्मेदारी बनती है। जब परिवार में सभी लोग इन हिदायतों को मानते और अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करते हैं, तो परिवार की खुशियाँ बढ़ जाती हैं। यीशु ने सच कहा था: “धन्य [या, खुश] वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।”—लूका 11:28.
2. किस सच्चाई की कदर करने से एक परिवार सुखी हो सकता है?
2 यीशु ने यहोवा को ‘हमारा पिता’ कहा था। (मत्ती 6:9) अगर परिवार का हर सदस्य इस अहम सच्चाई की कदर करना सीख ले कि परिवार का बनानेवाला यहोवा है, तो परिवार सुखी रहेगा। दुनिया का हर परिवार हमारे स्वर्गीय पिता की बदौलत आज वजूद में है। इसलिए वही ठीक-ठीक बता सकता है कि कौन-सी बातें परिवार को सुखी बना सकती हैं। (इफिसियों 3:14, 15) बाइबल, परिवार के सदस्यों की ज़िम्मेदारियों के बारे में क्या सिखाती है, आइए देखें।
परिवार की शुरूआत परमेश्वर ने की है
3. परिवार की शुरूआत के बारे में बाइबल क्या बताती है, और हमें क्यों यकीन है कि यह किस्सा कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं?
3 यहोवा ने आदम और हव्वा को बनाया और उन्हें पति-पत्नी के रिश्ते में जोड़कर पहले परिवार की शुरूआत की। उन्हें फिरदौस जैसा एक खूबसूरत घर दिया गया, जिसे हम बागे-अदन के नाम से जानते हैं। उन्हें संतान पैदा करने की आशीष देते हुए परमेश्वर ने कहा: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ।” (उत्पत्ति 1:26-28; 2:18, 21-24) परिवार की शुरूआत के बारे में बाइबल का यह किस्सा कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं है। खुद यीशु ने साबित किया कि उत्पत्ति की किताब में लिखी यह बात एकदम सच है। (मत्ती 19:4, 5) हालाँकि आज हमारी ज़िंदगी मुसीबतों से घिरी हुई है और वैसी नहीं है जैसी परमेश्वर चाहता था, फिर भी परिवार में खुशियाँ हासिल करना मुमकिन है। आइए देखें कैसे।
4. (क) परिवार की खुशियाँ बढ़ाने में हर सदस्य कैसे हिस्सा ले सकता है? (ख) परिवार को सुखी बनाने के लिए यीशु की ज़िंदगी के बारे में सीखना क्यों बेहद ज़रूरी है?
4 परिवार का हर सदस्य इसकी खुशियाँ बढ़ाने में हिस्सा ले सकता है। कैसे? प्यार दिखाने में यहोवा की मिसाल पर चलकर। (इफिसियों 5:1, 2) मगर हम यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं, क्योंकि हम तो उसे देख नहीं सकते? यह सच है कि हम उसे देख नहीं सकते, फिर भी हम यह ज़रूर सीख सकते हैं कि वह किस तरह से काम करता है। यहोवा ने खुद के बारे में सिखाने के लिए अपने पहिलौठे पुत्र यीशु मसीह को धरती पर भेजा था। (यूहन्ना 1:14, 18) यहाँ रहते वक्त यीशु ने बिलकुल अपने पिता यहोवा के जैसे गुण दिखाए और काम किए। उसे देखना और सुनना, यहोवा को देखने-सुनने जैसा था। (यूहन्ना 14:9) इसलिए अगर घर का हर सदस्य यीशु की तरह एक-दूसरे से प्यार करना सीख ले और उसकी मिसाल पर चले, तो वह परिवार को और ज़्यादा सुखी बनाने में हिस्सा ले सकेगा।
पतियों के लिए एक आदर्श
5, 6. (क) यीशु ने अपने चेलों के साथ जिस तरह से व्यवहार किया, वह पतियों के लिए क्यों एक अच्छी मिसाल है? (ख) परमेश्वर से अपनी गलतियों की माफी पाने के लिए पति-पत्नी को क्या करना होगा?
5 बाइबल कहती है कि एक पति को अपनी पत्नी के साथ उसी तरह व्यवहार करना चाहिए, जैसे यीशु अपने चेलों के साथ करता था। बाइबल की इस हिदायत पर गौर कीजिए: “हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया। . . . इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है।”—इफिसियों 5:23, 25-29.
6 यीशु, कलीसिया से यानी अपने चेलों से जिस तरह प्यार करता था, वह पतियों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है। हालाँकि चेलों में कई खामियाँ थीं, फिर भी यीशु ने उनसे ‘अन्त तक प्रेम रखा,’ यहाँ तक कि उनकी खातिर अपनी जान कुरबान कर दी। (यूहन्ना 13:1; 15:13) उसी तरह पतियों को यह सलाह दी गयी है: “अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, और उन से कठोरता न करो।” (कुलुस्सियों 3:19) अगर एक पत्नी कभी-कभी नासमझी के काम करती है, तब भी इस सलाह पर चलने में क्या बात एक पति की मदद करेगी? पति को याद रखना चाहिए कि वह भी गलतियाँ करता है, और वह परमेश्वर से माफी की उम्मीद तभी कर सकता है जब वह खुद दूसरों को माफ करे। इनमें उसकी पत्नी भी आती है। बेशक पत्नी को भी यही करना चाहिए यानी उसे अपने पति की गलतियाँ माफ करनी चाहिए। (मत्ती 6:12, 14, 15) किसी ने सच कहा है कि एक कामयाब शादी, ऐसे दो लोगों का मिलन है जो खुशी-खुशी एक-दूसरे को माफ करते हैं।
7. यीशु ने हमेशा किस बात का ध्यान रखा, और पतियों के लिए क्या मिसाल कायम की?
7 पति याद रखें कि यीशु हमेशा अपने चेलों का ध्यान रखता था। उनकी सीमाओं और शारीरिक ज़रूरतों के लिए उसने हमेशा लिहाज़ दिखाया। मिसाल के लिए, एक बार जब चेले बहुत थक गए तो यीशु ने उनसे कहा: “आओ और एकान्त में चलकर कुछ देर विश्राम करो।” (मरकुस 6:30-32, NHT) पत्नियाँ भी ऐसे ही प्यार और लिहाज़ की हकदार हैं। बाइबल में उन्हें “निर्बल पात्र” कहा गया है और पतियों को आज्ञा दी गयी है कि वे उनका “आदर” करें। क्यों? क्योंकि परमेश्वर ने पति-पत्नी, दोनों को ‘जीवन के अनुग्रह’ का वारिस बनाया है। (1 पतरस 3:7, फुटनोट) पति यह न भूलें कि परमेश्वर के लिए यह बात ज़्यादा मायने रखती है कि एक इंसान कितना विश्वासयोग्य है, यह नहीं कि वह स्त्री है या पुरुष।—भजन 101:6.
8. (क) ऐसा क्यों कहा गया है कि जो पति “अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है”? (ख) पति-पत्नी के लिए “एक तन” होने का मतलब क्या है?
8 बाइबल कहती है कि जो पति “अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है।” ऐसा क्यों कहा गया है? क्योंकि जैसा यीशु ने बताया, पति-पत्नी “दो नहीं, परन्तु एक तन हैं।” (मत्ती 19:6) इसलिए पति-पत्नी को एक-दूसरे को छोड़ किसी पराए के साथ लैंगिक संबंध नहीं रखना चाहिए। (नीतिवचन 5:15-21; इब्रानियों 13:4) यह तभी मुमकिन होगा जब वे अपने स्वार्थ के बजाय एक-दूसरे की ज़रूरत का खयाल रखेंगे। (1 कुरिन्थियों 7:3-5) यह चितौनी गौर करने लायक है: “किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है।” पति जैसे अपने आप से प्यार करता है, वैसे ही उसे अपनी पत्नी से प्यार करने की ज़रूरत है। और उसे याद रखना चाहिए कि उसे अपने मुखिया यीशु मसीह को इसके लिए जवाब देना होगा।—इफिसियों 5:29; 1 कुरिन्थियों 11:3.
9. फिलिप्पियों 1:8 में यीशु के किस गुण के बारे में बताया गया है, और पतियों को अपनी पत्नियों के साथ व्यवहार करते वक्त यह गुण क्यों दिखाना चाहिए?
9 प्रेरित पौलुस ने ‘यीशु मसीह के कोमल स्नेह’ का ज़िक्र किया है। (फिलिप्पियों 1:8, NW) यीशु का यही मनभावना गुण उसकी शिष्य बननेवाली स्त्रियों को खास तौर पर भाता था। (यूहन्ना 20:1, 11-13, 16) पत्नियों के दिल में भी अपने-अपने पति से ऐसा ही कोमल स्नेह पाने की ख्वाहिश होती है।
पत्नियों के लिए एक मिसाल
10. पत्नियों के लिए यीशु कैसे एक अच्छी मिसाल है?
10 परिवार एक संगठन की तरह है। इसे एक मुखिया की ज़रूरत होती है जिसकी देखरेख में सारा काम-काज बिना रोक-टोक चल सके। यहाँ तक कि यीशु का भी एक मुखिया है, जिसके वह अधीन रहता है। बाइबल बताती है: “स्त्री का सिर पुरुष है,” ठीक जैसे “मसीह का सिर परमेश्वर है।” (1 कुरिन्थियों 11:3) जिस तरह यीशु अपने मुखिया, परमेश्वर के अधीन रहता है, वह हम सभी के लिए और खास तौर पर पत्नियों के लिए एक बढ़िया मिसाल है। परिवार के हर सदस्य को अपने मुखिया के अधीन रहना चाहिए।
11. पति के बारे में पत्नी को कैसा नज़रिया रखना चाहिए, और उसके चालचलन का क्या असर हो सकता है?
11 असिद्धता की वजह से पति गलतियाँ करता है और कई बार उसमें वे गुण दूर-दूर तक दिखायी नहीं देते जो एक आदर्श मुखिया में होने चाहिए। ऐसे में पत्नी क्या कर सकती है? पति जो करता है, वह उन कामों में मीन-मेख निकालकर उसे नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करेगी, ना ही वह खुद परिवार का मुखिया बन बैठेगी। इसके बजाय, पत्नी के लिए यह याद रखना अच्छा होगा कि परमेश्वर की नज़रों में नम्रता और मन की दीनता का बड़ा मोल है। (1 पतरस 3:4) ऐसे गुण दिखाने से एक पत्नी, मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी परमेश्वर के उसूलों पर चलकर पति के अधीन रह सकेगी। इसके अलावा, बाइबल कहती है: “पत्नी को अपने पति के लिए गहरा आदर होना चाहिए।” (इफिसियों 5:33, NW) लेकिन अगर पति एक साक्षी नहीं है और इसलिए मसीह को अपना मुखिया नहीं मानता तो पत्नी क्या कर सकती है? बाइबल पत्नियों से यह गुज़ारिश करती है: “तुम भी अपने पति के आधीन रहो। इसलिये कि यदि इन में से कोई ऐसे हों जो वचन को न मानते हों, तौभी तुम्हारे भय [“गहरे आदर,” NW] सहित पवित्र चालचलन के द्वारा खिंच जाएं।”—1 पतरस 3:1, 2.
12. एक पत्नी अगर आदर के साथ अपनी राय ज़ाहिर करे, तो यह गलत क्यों नहीं होगा?
12 परिवार में कुछ मसले ऐसे हो सकते हैं जिनमें पत्नी की राय पति से नहीं मिलती। ऐसे में पत्नी अगर व्यवहार-कुशलता से अपनी राय पेश करे, तो यह पति की बेइज़्ज़ती करना नहीं होगा, फिर चाहे पति सच्चाई में हो या न हो। हो सकता है कि पत्नी सही राय दे रही हो, इसलिए अगर पति उसकी बात सुने तो पूरे परिवार को फायदा हो सकता है। याद कीजिए कि सारा ने परिवार की एक समस्या को सुलझाने के लिए कारगर सुझाव दिया था, फिर भी उसके पति इब्राहीम को उसकी बात पसंद नहीं आयी। मगर परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा: “जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान।” (उत्पत्ति 21:9-12) बेशक, पत्नी की राय सुनने के बाद, आखिर में फैसला लेनेवाला पति ही होगा। उसका फैसला अगर परमेश्वर के नियम के खिलाफ नहीं है, तो पत्नी को उसका पूरा साथ देना चाहिए। इससे वह दिखाएगी कि वह अपने पति के अधीन है।—प्रेरितों 5:29; इफिसियों 5:24.
13. (क) तीतुस 2:4, 5 शादीशुदा स्त्रियों को क्या सलाह देता है? (ख) बाइबल, पति-पत्नी के अलग होने और तलाक लेने के बारे में क्या कहती है?
13 अपने परिवार की देखभाल करने में पत्नी बहुत कुछ कर सकती है। जैसे, बाइबल शादीशुदा स्त्रियों को यह सलाह देती है कि वे “अपने अपने पति और बच्चों से प्रेम करें, और वे समझदार, पवित्र, सुगृहिणी, दयालु [और] पति के अधीन रहने वाली हों।” (तीतुस 2:4, 5, NHT) अगर एक स्त्री इस तरीके से पत्नी और माँ की ज़िम्मेदारियाँ निभाए, तो उसका परिवार हमेशा उससे प्यार करेगा और उसकी इज़्ज़त करेगा। (नीतिवचन 31:10, 28) मगर कभी-कभी परिवार में नाज़ुक हालात पैदा हो सकते हैं, क्योंकि शादी दो असिद्ध इंसानों का मेल है। ऐसे में कुछ पति-पत्नी अलग हो जाते हैं या तलाक ले लेते हैं। बाइबल कुछ खास किस्म के हालात में ही पति-पत्नी को अलग होने की इजाज़त देती है। फिर भी, अलग होने की बात को हलका नहीं समझना चाहिए, क्योंकि बाइबल सलाह देती है: “पत्नी अपने पति से अलग न हो। . . . और न पति अपनी पत्नी को छोड़े।” (1 कुरिन्थियों 7:10, 11) जहाँ तक तलाक की बात है, बाइबल बताती है कि यह सिर्फ तभी दिया जा सकता है, जब पति या पत्नी व्यभिचार करे।—मत्ती 19:9.
माता-पिताओं के लिए सबसे बेहतरीन मिसाल
14. यीशु बच्चों के साथ कैसे पेश आया, और बच्चों को माता-पिताओं से क्या पाने की ज़रूरत है?
14 यीशु बच्चों के साथ जिस तरह पेश आता था, वह माता-पिता के लिए सबसे बेहतरीन मिसाल है। जब लोग छोटे बच्चों को यीशु के पास आने से रोक रहे थे, तो उसने कहा: “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो।” बाइबल आगे बताती है कि यीशु ने “उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी।” (मरकुस 10:13-16) सोचिए, जब यीशु ने नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए वक्त निकाला, तो क्या आपको अपने बेटे-बेटियों के लिए वक्त नहीं निकालना चाहिए? जी हाँ, बच्चों को आपके ज़्यादा-से-ज़्यादा वक्त की ज़रूरत है। सिर्फ थोड़ा-थोड़ा वक्त देने से उनकी ज़रूरत पूरी नहीं होगी। माता-पिताओ, अपने बच्चों को सिखाने के लिए वक्त निकालिए क्योंकि यहोवा ने आपको ऐसा करने का हुक्म दिया है।—व्यवस्थाविवरण 6:4-9.
15. माता-पिता अपने बच्चों की हिफाज़त करने के लिए क्या कर सकते हैं?
15 यह दुनिया दिनोंदिन और भी ज़्यादा बुरी होती जा रही है। ऐसे में माँ-बाप के लिए बेहद ज़रूरी है कि वे अपने बच्चों की हिफाज़त करें, क्योंकि कुछ लोग उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाकर बरबाद करना चाहते हैं। गौर कीजिए कि यीशु ने भी कैसे अपने चेलों की हिफाज़त की, जिन्हें वह प्यार से “बालकों” कहकर पुकारता था। जब यीशु को गिरफ्तार किया गया, तब वह जानता था कि उसे बहुत जल्द मार डाला जाएगा। इसलिए उसने अपने चेलों के लिए वहाँ से बच निकलने का रास्ता निकाला। (यूहन्ना 13:33; 18:7-9) एक माँ या पिता होने के नाते, आपको होशियार रहना चाहिए कि इब्लीस किन तरीकों से आपके बच्चों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहा है। इन खतरों का सामना करने के लिए अपने बच्चों को पहले से तैयार कीजिए।a (1 पतरस 5:8) आज हमारे बच्चों की शारीरिक, आध्यात्मिक और नैतिक सलामती पहले से कहीं ज़्यादा खतरे में है।
16. यीशु ने अपने चेलों की गलतियों को जिस तरह सुधारा, उससे माता-पिता क्या सीख सकते हैं?
16 यीशु की मौत से पहले की रात, उसके चेलों में इस बात पर बहस छिड़ गयी कि उनमें कौन सबसे बड़ा है। तब यीशु ने उन पर गुस्सा होने के बजाय, प्यार से उन्हें समझाया और खुद एक मिसाल बनकर उन्हें सिखाया। (लूका 22:24-27; यूहन्ना 13:3-8) आप कैसे बच्चों की गलती सुधारते वक्त यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं? यह सच है कि बच्चों को अनुशासन की ज़रूरत होती है, मगर इसे “उचित मात्रा” में देना चाहिए, कभी-भी गुस्से में आकर नहीं। आपको बिना सोचे-समझे ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए जो उन्हें ‘तलवार की तरह चुभ जाएं।’ (यिर्मयाह 30:11, नयी हिन्दी बाइबिल; नीतिवचन 12:18) अनुशासन इस तरीके से देना चाहिए कि आपका बच्चा बाद में समझ पाए कि उसे अनुशासन क्यों दिया गया और यह क्यों सही था।—इफिसियों 6:4, NHT; इब्रानियों 12:9-11.
बच्चों के लिए एक आदर्श
17. किन तरीकों से यीशु ने बच्चों के लिए एक बेहतरीन मिसाल कायम की?
17 यीशु की मिसाल से क्या बच्चे भी कुछ सीख सकते हैं? बिलकुल सीख सकते हैं! यीशु ने दिखाया कि बच्चों को कैसे अपने माता-पिता का कहना मानना चाहिए। उसने कहा: “जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूं।” उसने यह भी कहा: “मैं सर्वदा वही काम करता हूं, जिस से वह प्रसन्न होता है।” (यूहन्ना 8:28, 29) यीशु स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता की हर बात मानता था। उसी तरह बाइबल, बच्चों से कहती है कि वे भी अपने माता-पिता का कहा मानें। (इफिसियों 6:1-3) यीशु ने सिद्ध होते हुए भी अपने बचपन में, धरती पर अपने माता-पिता, यूसुफ और मरियम का कहा माना जो असिद्ध और पापी थे। इसमें कोई शक नहीं कि यीशु के ऐसे बर्ताव से परिवार में हर किसी की खुशी बढ़ी होगी!—लूका 2:4, 5, 51, 52.
18. यीशु ने हमेशा अपने स्वर्गीय पिता की बात क्यों मानी, और आज जब बच्चे माता-पिता का कहा मानते हैं, तो कौन खुश होता है?
18 बच्चो, क्या आप भी यीशु की तरह अपने माता-पिता का कहना मानेंगे और उनका दिल खुश करेंगे? यह सच है कि कभी-कभी बच्चों के लिए माता-पिता का कहा मानना मुश्किल होता है, मगर परमेश्वर बच्चों से यही चाहता है कि वे उनकी बात मानें। (नीतिवचन 1:8; 6:20) मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी यीशु ने हमेशा अपने स्वर्गीय पिता की बात मानी थी। एक बार जब परमेश्वर ने चाहा कि यीशु एक बहुत ही मुश्किल काम करे तो यीशु ने कहा: “इस कटोरे [जो काम उसे दिया गया था] को मेरे पास से हटा ले।” ऐसा कहने के बावजूद यीशु ने वही किया जो परमेश्वर चाहता था, क्योंकि उसे मालूम था कि यहोवा से बढ़कर और कोई नहीं जानता कि उन हालात में यीशु को क्या करना चाहिए। (लूका 22:42) आज अगर बच्चे माता-पिता की बात मानना सीखें, तो वे उनका और स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता यहोवा का दिल खुश कर सकेंगे।b—नीतिवचन 23:22-25.
19. (क) शैतान बच्चों को गलत कामों में कैसे फँसाता है? (ख) बच्चों के गलत काम का पूरे परिवार पर क्या असर हो सकता है?
19 अगर शैतान ने यीशु को फँसाने की कोशिश की थी, तो इसमें कोई शक नहीं कि वह बच्चों को भी गलत कामों में फँसाने की कोशिश ज़रूर करेगा। (मत्ती 4:1-10) शैतान, बच्चों के दोस्तों के सहारे उन्हें गलत काम करने के लिए उकसाता है। उनकी बुरी सोहबत के असर से बच पाना बहुत मुश्किल हो सकता है। इसलिए यह कितना ज़रूरी है कि बच्चे ऐसों से दोस्ती न रखें जो बुरे काम करते हैं! (1 कुरिन्थियों 15:33) याद कीजिए, याकूब की बेटी दीना ऐसे लोगों की संगति में पड़ गयी थी जो यहोवा की उपासना नहीं करते थे। इसकी खुद उसे और उसके परिवार को भारी कीमत चुकानी पड़ी। (उत्पत्ति 34:1, 2) ज़रा सोचिए, अगर एक बेटा या बेटी कोई अनैतिक काम करे, तो पूरे परिवार को कितना दुःख झेलना पड़ेगा!—नीतिवचन 17:21, 25.
परिवार के सुख का राज़
20. परिवार में सुख पाने के लिए हरेक को क्या करना चाहिए?
20 जब हम बाइबल की सलाह पर चलते हैं, तो परिवार की समस्याओं से निपटना आसान हो जाता है। दरअसल, बाइबल की सलाह पर चलना ही परिवार के सुख का राज़ है। इसलिए पतियो, अपनी पत्नियों से प्यार कीजिए और उनके साथ वैसा व्यवहार कीजिए जैसा यीशु अपनी कलीसिया के साथ करता है। पत्नियो, अपने पति के मुखियापन के अधीन रहिए, और नीतिवचन 31:10-31 में बतायी भली पत्नी की मिसाल पर चलिए। माता-पिताओ, अपने बच्चों को सही तालीम दीजिए। (नीतिवचन 22:6) पिताओ, ‘अपने परिवार के अच्छे प्रबन्धक बनिए।’ (1 तीमुथियुस 3:4,5, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; 5:8) और बच्चो, अपने माता-पिता का कहा मानिए। (कुलुस्सियों 3:20) परिवार का कोई भी सदस्य सिद्ध नहीं है और सभी गलतियाँ करते हैं। इसलिए नम्र बनिए और अपनी गलतियों के लिए एक-दूसरे से माफी माँगिए।
21. हमारे आगे कैसा शानदार भविष्य है, और आज भी हमारा परिवार सुखी कैसे हो सकता है?
21 वाकई, बाइबल में ज्ञान का ऐसा भंडार पाया जाता है जो परिवार में खुशियाँ ला सकता है। इसमें ढेरों फायदेमंद सलाह और हिदायतें दी गयी हैं। इतना ही नहीं, यह बताती है कि परमेश्वर एक नयी दुनिया लाएगा, जब धरती एक फिरदौस बन जाएगी और वहाँ सिर्फ ऐसे लोग होंगे जो खुशी-खुशी यहोवा की उपासना करेंगे। (प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) जी हाँ, हमारे आगे एक शानदार भविष्य रखा है! लेकिन आज भी अगर हम परमेश्वर के वचन, बाइबल में दी हिदायतों को मानें तो हमारा परिवार सुखी हो सकता है।
a बच्चों की हिफाज़त करने के बारे में महान शिक्षक से सीखिए (अँग्रेज़ी) किताब के 32वें अध्याय में कुछ सुझाव दिए गए हैं। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
b एक बच्चे के लिए सिर्फ तभी माँ-बाप की बात न मानना सही होगा, जब वे उसे परमेश्वर के नियम के खिलाफ कुछ करने के लिए कहते हैं।—प्रेरितों 5:29.