न्याय सिंहासन के सामने आपकी स्थिति क्या होगी?
“जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा।”—मत्ती २५:३१.
१-३. न्याय के सम्बन्ध में हमारे पास आशावाद का क्या कारण है?
‘दोषी या निर्दोष?’ किसी मुक़द्दमे के बारे में रिपोर्टें सुनने पर अनेक लोगों में यह जिज्ञासा होती है। न्यायाधीश और जूरी-सदस्य शायद सत्यवादी होने की कोशिश करें, लेकिन क्या सामान्यतः न्याय का बोलबाला होता है? क्या आपने न्यायिक कार्यवाही में अन्याय और पक्षपात के बारे में नहीं सुना है? ऐसा अन्याय कोई नयी बात नहीं है, जैसे हम लूका १८:१-८ में दिए गए यीशु के दृष्टान्त में देखते हैं।
२ मानव न्याय के साथ आपका अनुभव जो भी हो, यीशु के निष्कर्ष पर ध्यान दीजिए: “क्या परमेश्वर अपने चुने हुओं का न्याय न चुकाएगा, जो रात-दिन उस की दुहाई देते रहते . . . ? मैं तुम से कहता हूं; वह तुरन्त उन का न्याय चुकाएगा; तौभी मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?”
३ जी हाँ, यहोवा यह देखेगा कि अंततः उसके सेवकों को न्याय मिलता है। यीशु भी सम्मिलित है, ख़ासकर अभी क्योंकि हम वर्तमान दुष्ट व्यवस्था के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। जल्द ही यहोवा अपने सामर्थी पुत्र को पृथ्वी से दुष्टता मिटाने के लिए प्रयोग करेगा। (२ तीमुथियुस ३:१; २ थिस्सलुनीकियों १:७, ८; प्रकाशितवाक्य १९:११-१६) यीशु द्वारा दिए गए एक अंतिम दृष्टान्त से, जिसे अकसर भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा कहा जाता है, हम यीशु की भूमिका में अंतर्दृष्टि पा सकते हैं।
४. भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा के समय के बारे में हमने क्या समझा है, लेकिन अब हम इस नीतिकथा पर ध्यान क्यों देंगे? (नीतिवचन ४:१८)
४ हमने लम्बे अरसे से समझा है कि उस नीतिकथा ने यह चित्रित किया कि १९१४ में यीशु राजा के रूप में बैठा और तब से न्याय कर रहा है—जो लोग भेड़-समान साबित होते हैं उनके लिए अनन्त जीवन, बकरियों के लिए स्थायी मृत्यु। लेकिन उस नीतिकथा पर एक पुनर्विचार उसके समय और वह क्या चित्रित करती है इसके बारे में एक समंजित समझ की ओर संकेत करता है। यह परिष्करण हमारे प्रचार कार्य के महत्त्व और लोगों की प्रतिक्रिया के अभिप्राय पर ज़ोर देता है। उस नीतिकथा की इस अधिक गहरी समझ के आधार को देखने के लिए, आइए इस पर विचार करें कि बाइबल राजाओं और न्यायियों दोनों के रूप में यहोवा और यीशु के बारे में क्या दिखाती है।
यहोवा सर्वोच्च न्यायी के रूप में
५, ६. यहोवा को राजा और न्यायी दोनों के रूप में देखना क्यों उपयुक्त है?
५ यहोवा विश्व में सभी पर अधिकार के साथ शासन करता है। क्योंकि उसका कोई आदि और कोई अन्त नहीं है, वह “सनातन राजा” है। (१ तीमुथियुस १:१७; भजन ९०:२, ४; प्रकाशितवाक्य १५:३) उसके पास विधान, या नियम बनाने और उन्हें लागू करने का अधिकार है। लेकिन उसके अधिकार में एक न्यायी होना सम्मिलित है। यशायाह ३३:२२ कहता है: “यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है; वही हमारा उद्धार करेगा।”
६ परमेश्वर के सेवकों ने लम्बे अरसे से यहोवा को मामलों और वाद-विषयों के न्यायी के रूप में स्वीकार किया है। उदाहरण के लिए, जब “सारी पृथ्वी का न्यायी” सदोम और अमोरा की दुष्टता के बारे में प्रमाण देख चुका, तब उसने न्याय किया कि वहाँ के निवासी विनाश के योग्य थे और उस धर्मी न्याय को पूरा भी किया। (उत्पत्ति १८:२०-३३; अय्यूब ३४:१०-१२) यह जानकर हमें निश्चित ही आश्वासन मिलना चाहिए कि यहोवा एक धर्मी न्यायी है जो हमेशा अपने न्याय को कार्यान्वित कर सकता है!
७. इस्राएल के साथ व्यवहार करते समय यहोवा ने न्यायी के रूप में कैसे कार्य किया?
७ प्राचीन इस्राएल में, कभी-कभी यहोवा ने सीधे ही न्याय किया। उस समय क्या आपने यह जानकर सांत्वना नहीं पायी होती कि एक परिपूर्ण न्यायी मामलों का निर्णय कर रहा था? (लैव्यव्यवस्था २४:१०-१६; गिनती १५:३२-३६; २७:१-११) परमेश्वर ने ‘नियम’ भी दिए जो न्याय करने के स्तरों के रूप में पूरी तरह से भले थे। (लैव्यव्यवस्था २५:१८, १९; नहेमायाह ९:१३; भजन १९:९, १०; ११९:७, ७५, १६४; १४७:१९, २०) वह “सारी पृथ्वी का न्यायी” है, सो हम सब प्रभावित होते हैं।—इब्रानियों १२:२३.
८. दानिय्येल को कौन-सा प्रासंगिक दर्शन मिला?
८ इस विषय से सम्बन्धित हमारे पास “आँखों देखी” गवाही है। भविष्यवक्ता दानिय्येल को खूँख़ार जन्तुओं का दर्शन दिया गया जिन्होंने सरकारों अथवा साम्राज्यों को चित्रित किया। (दानिय्येल ७:१-८, १७) उसने आगे कहा: “सिंहासन रखे गए, और कोई अति प्राचीन विराजमान हुआ; उसका वस्त्र हिम सा उजला” था। (दानिय्येल ७:९) नोट कीजिए कि दानिय्येल ने सिंहासन देखे “और कोई अति प्राचीन [यहोवा] विराजमान हुआ।” (तिरछे टाइप हमारे।) अपने आप से पूछिए, ‘क्या यहाँ दानिय्येल परमेश्वर को राजा बनते हुए देख रहा था?’
९. सिंहासन पर ‘विराजमान होने’ का एक अर्थ क्या है? उदाहरण दीजिए।
९ जब हम पढ़ते हैं कि कोई सिंहासन पर “विराजमान हुआ,” तब हम उसके राजा बनने के बारे में सोच सकते हैं, क्योंकि बाइबल कभी-कभी ऐसी भाषा प्रयोग करती है। उदाहरण के लिए, “जब [जिम्री] राज्य करने लगा, तब गद्दी पर बैठते ही उस ने . . .।” (१ राजा १६:११; २ राजा १०:३०; १५:१२; यिर्मयाह ३३:१७) एक मसीहाई भविष्यवाणी ने कहा: “[वह] अपने सिंहासन पर विराजमान होकर प्रभुता करेगा।” (तिरछे टाइप हमारे।) अतः, “सिंहासन पर विराजमान” होने का अर्थ राजा बनना हो सकता है। (जकर्याह ६:१२, १३) यहोवा का वर्णन एक राजा के रूप में किया गया है जो सिंहासन पर विराजमान होता है। (१ राजा २२:१९; यशायाह ६:१; प्रकाशितवाक्य ४:१-३) वह “सनातन राजा” है। फिर भी, जब उसने सर्वसत्ता के एक नए पहलू को अपनाया, तो कहा जा सकता है कि वह राजा बना, मानो अपने सिंहासन पर नए रूप में बैठा हो।—१ इतिहास १६:१, ३१; यशायाह ५२:७; प्रकाशितवाक्य ११:१५-१७; १५:३; १९:१, २, ६.
१०. इस्राएली राजाओं का एक प्रमुख कार्य क्या था? सचित्रित कीजिए।
१० लेकिन एक मुख्य मुद्दा यह है: प्राचीन राजाओं का एक प्रमुख कार्य था कि मुक़द्दमों की सुनवाई करें और न्याय दें। (नीतिवचन २९:१४) सुलैमान का बुद्धिमत्तापूर्ण न्याय याद कीजिए जब दो स्त्रियों ने एक ही बच्चे का दावा किया। (१ राजा ३:१६-२८; २ इतिहास ९:८) उसका एक सरकारी भवन था “सिंहासन वाला एक बड़ा कक्ष . . . जहां उसे न्याय करना था,” वह “न्याय का कमरा” भी कहलाता था। (१ राजा ७:७, NHT) यरूशलेम का वर्णन ऐसे स्थान के रूप में किया गया जहाँ “न्याय के सिंहासन . . . धरे हुए हैं।” (भजन १२२:५) स्पष्टतः, ‘सिंहासन पर विराजमान होने’ का अर्थ न्यायिक अधिकार चलाना भी हो सकता है।—निर्गमन १८:१३; नीतिवचन २०:८.
११, १२. (क) दानिय्येल अध्याय ७ में उल्लिखित, यहोवा के विराजमान होने का क्या तात्पर्य था? (ख) अन्य शास्त्रवचन कैसे पुष्टि करते हैं कि यहोवा न्याय करने के लिए विराजमान होता है?
११ आइए अब उस दृश्य पर लौटते हैं जहाँ दानिय्येल ने ‘अति प्राचीन को विराजमान होते’ देखा। दानिय्येल ७:१० आगे कहता है: “न्यायी बैठ गए, और पुस्तकें खोली गईं।” जी हाँ, अति प्राचीन विश्व की प्रभुता के बारे में न्याय सुनाने और मनुष्य के पुत्र को राज्य करने के योग्य घोषित करने के लिए बैठा था। (दानिय्येल ७:१३, १४) उसके बाद तब हम पढ़ते हैं कि ‘अति प्राचीन आया और पवित्र लोगों का न्याय चुकाया गया,’ जिन्हें मनुष्य के पुत्र के साथ राज्य करने के लिए योग्य घोषित किया गया है। (दानिय्येल ७:२२, NHT) आख़िर में ‘न्यायी बैठे’ और अन्तिम विश्व शक्ति पर प्रतिकूल न्याय सुनाया।—दानिय्येल ७:२६.a
१२ फलस्वरूप, दानिय्येल द्वारा परमेश्वर को ‘सिंहासन पर विराजमान होते’ देखने का अर्थ था न्याय सुनाने के लिए उसका आना। इससे पहले दाऊद ने गाया: “तू [यहोवा] ने मेरा न्याय और मुक़द्दमा चुकाया है; तू ने सिंहासन पर विराजमान होकर धर्म से न्याय किया।” (भजन ९:४, ७) और योएल ने लिखा: “जाति जाति के लोग उभरकर चढ़ जाएं और यहोशापात की तराई में जाएं, क्योंकि वहां मैं [यहोवा] . . . सारी जातियों का न्याय करने को बैठूंगा।” (योएल ३:१२. यशायाह १६:५ से तुलना कीजिए।) यीशु और पौलुस दोनों ही ऐसी न्यायिक स्थितियों में थे जिनमें एक मनुष्य मुक़द्दमा सुनने और न्याय चुकाने के लिए बैठा।b—यूहन्ना १९:१२-१६; प्रेरितों २३:३; २५:६.
यीशु का पद
१३, १४. (क) परमेश्वर के लोगों के पास क्या आश्वासन था कि यीशु राजा बनता? (ख) यीशु अपने सिंहासन पर कब बैठा, और सा.यु. ३३ से उसने किस अर्थ में राज्य किया?
१३ यहोवा राजा और न्यायी दोनों है। यीशु के बारे में क्या? उसके जन्म की घोषणा करनेवाले स्वर्गदूत ने कहा: “प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। . . . और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (लूका १:३२, ३३) यीशु दाऊद के राजत्व का स्थायी उत्तराधिकारी होता। (२ शमूएल ७:१२-१६) वह स्वर्ग से शासन करता, क्योंकि दाऊद ने कहा: “मेरे प्रभु [यीशु] से यहोवा की वाणी यह है, कि तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूं। तेरे पराक्रम का राजदण्ड यहोवा सिय्योन से बढ़ाएगा। तू अपने शत्रुओं के बीच में शासन कर।”—भजन ११०:१-४.
१४ यह कब होता? मनुष्य के रूप में रहते समय यीशु ने शासन नहीं किया। (यूहन्ना १८:३३-३७) सामान्य युग ३३ में, वह मरा, पुनरुत्थित किया गया, और स्वर्ग पर चढ़ा। इब्रानियों १०:१२ कहता है: “यह व्यक्ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्वर के दहिने जा बैठा।” यीशु के पास क्या अधिकार था? ‘परमेश्वर ने उस को स्वर्गीय स्थानों में अपनी दहिनी ओर सब प्रकार की प्रधानता, और अधिकार, और सामर्थ, और प्रभुता के ऊपर बैठाया। और उसे सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर कलीसिया को दे दिया।’ (इफिसियों १:२०-२२) क्योंकि तब यीशु के पास मसीहियों पर राज अधिकार था, पौलुस लिख सका कि यहोवा ने “हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया।”—कुलुस्सियों १:१३; ३:१.
१५, १६. (क) हम क्यों कहते हैं कि यीशु सा.यु. ३३ में परमेश्वर के राज्य का राजा नहीं बना? (ख) परमेश्वर के राज्य में यीशु ने शासन करना कब शुरू किया?
१५ लेकिन उस समय, यीशु ने अन्य जातियों पर राजा और न्यायी के रूप में कार्य नहीं किया। वह परमेश्वर के पास बैठा था, और उस समय की प्रतीक्षा कर रहा था जब वह परमेश्वर के राज्य के राजा के रूप में कार्य करता। उसके बारे में पौलुस ने लिखा: “स्वर्गदूतों में से उस ने किस से कब कहा, कि तू मेरे दहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों के नीचे की पीढ़ी न कर दूं?”—इब्रानियों १:१३.
१६ यहोवा के साक्षियों ने काफ़ी सबूत प्रकाशित किया है कि प्रतीक्षा करने का यीशु का समय १९१४ में समाप्त हुआ, जब वह अदृश्य स्वर्ग में परमेश्वर के राज्य का शासक बना। प्रकाशितवाक्य ११:१५, १६, १८ कहता है: “जगत का राज्य हमारे प्रभु का, और उसके मसीह का हो गया। और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” “और अन्य-जातियों ने क्रोध किया, और तेरा प्रकोप आ पड़ा।” जी हाँ, अन्य जातियों ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एक दूसरे पर अपना क्रोध व्यक्त किया। (लूका २१:२४) युद्ध, भुईंडोल, मरियाँ, खाद्य पदार्थों की कमी, और इसी क़िस्म की बातें जो हमने १९१४ से देखी हैं इस बात की पुष्टि करती हैं कि यीशु अब परमेश्वर के राज्य में शासन कर रहा है, और संसार का अन्तिम अन्त निकट है।—मत्ती २४:३-१४.
१७. अब तक हम ने कौन-से मुख्य मुद्दे स्थापित कर लिए हैं?
१७ एक संक्षिप्त पुनर्विचार के रूप में: कहा जा सकता है कि परमेश्वर राजा के रूप में सिंहासन पर बैठता है, लेकिन एक और अर्थ में वह अपने सिंहासन पर न्याय करने के लिए बैठ सकता है। सामान्य युग ३३ में, यीशु परमेश्वर के दहिने हाथ बैठा, और वह अब उस राज्य का राजा है। लेकिन क्या यीशु, जो अब राजा के रूप में शासन कर रहा है, न्यायी के रूप में भी कार्य करता है? और इससे हमें क्यों फ़र्क पड़ना चाहिए, ख़ासकर इस समय?
१८. इसका क्या प्रमाण है कि यीशु न्यायी भी होता?
१८ यहोवा ने, जिसके पास न्यायी नियुक्त करने का अधिकार है, यीशु को एक न्यायी के रूप में चुना, क्योंकि वह यहोवा के स्तरों पर ठीक बैठता है। यीशु ने यह दिखाया जब वह लोगों के आध्यात्मिक रूप से जीवित होने के बारे में बोल रहा था: “पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है।” (यूहन्ना ५:२२) फिर भी, यीशु की न्यायिक भूमिका में उस क़िस्म के न्याय से अधिक सम्मिलित है, क्योंकि वह जीवतों का और मरे हुओं का न्यायी है। (प्रेरितों १०:४२; २ तीमुथियुस ४:१) एक बार पौलुस ने कहा: “[परमेश्वर] ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य [यीशु] के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।”—प्रेरितों १७:३१; भजन ७२:२-७.
१९. यीशु के बारे में यह बोलना क्यों सही है कि वह न्यायी के रूप में बैठता है?
१९ अतः क्या हम यह निष्कर्ष निकालने में सही हैं कि न्यायी की विशिष्ट भूमिका में यीशु एक महिमा के सिंहासन पर बैठता है? जी हाँ। यीशु ने प्रेरितों से कहा: “नई उत्पत्ति से जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिए हो, बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती १९:२८) हालाँकि यीशु अभी उस राज्य का राजा है, मत्ती १९:२८ में उल्लिखित उसकी अतिरिक्त गतिविधि में सहस्राब्दि के दौरान सिंहासन पर बैठकर न्याय करना सम्मिलित होगा। उस समय वह पूरी मानवजाति, धर्मी और अधर्मी दोनों का न्याय करेगा। (प्रेरितों २४:१५) इसे मन में रखना सहायक है क्योंकि अब हम यीशु की एक नीतिकथा की ओर अपना ध्यान मोड़ते हैं जो हमारे समय और हमारे जीवन से सम्बन्धित है।
वह नीतिकथा क्या कहती है?
२०, २१. यीशु के प्रेरितों ने क्या पूछा जो हमारे समय से सम्बन्ध रखता है, और इससे क्या प्रश्न उठता है?
२० यीशु के मरने से कुछ ही समय पहले उसके प्रेरितों ने उससे पूछा: “ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” (मत्ती २४:३) ‘अन्त आने’ से पहले पृथ्वी पर होनेवाली महत्त्वपूर्ण घटनाओं के बारे में यीशु ने पूर्वबताया। उस अन्त के कुछ ही समय पहले, राष्ट्र “मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे।”—मत्ती २४:१४, २९, ३०.
२१ लेकिन, उन राष्ट्रों के लोगों का क्या हश्र होगा जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आता है? आइए भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा से पता लगाते हैं, जो इन शब्दों के साथ शुरू होती है: “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। और सब जातियां उसके साम्हने इकट्ठी की जाएंगी।”—मत्ती २५:३१, ३२.
२२, २३. कौन-से मुद्दे दिखाते हैं कि भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा की पूर्ति १९१४ में नहीं शुरू हुई?
२२ क्या यह नीतिकथा तब लागू होती है जब १९१४ में यीशु राज सत्ता में बैठा, जो कि हम लम्बे अरसे से समझते रहे हैं? मत्ती २५:३४ राजा के रूप में उसका उल्लेख करता है, तो यह तर्कसंगत है कि यह नीतिकथा १९१४ में यीशु के राजा बनने के समय से लागू होती है। लेकिन इसके तुरन्त बाद उसने कौन-सा न्याय किया? यह ‘सब जातियों’ का न्याय नहीं था। इसके बजाय, उसने अपना ध्यान ‘परमेश्वर का घर’ होने का दावा करनेवालों की ओर मोड़ा। (१ पतरस ४:१७ फुटनोट) मलाकी ३:१-३ के सामंजस्य में, यहोवा के संदेशवाहक के रूप में यीशु ने पृथ्वी पर बचे हुए अभिषिक्त मसीहियों की न्यायिक रूप से जाँच की। यह मसीहीजगत पर न्यायिक दण्ड का भी समय था, जिसने झूठमूठ ‘परमेश्वर का घर’ होने का दावा किया।c (प्रकाशितवाक्य १७:१, २; १८:४-८) फिर भी कोई बात यह नहीं दिखाती कि उस समय, या उसके बाद, यीशु अंततः भेड़ों या बकरियों के रूप में सब जातियों के लोगों का न्याय करने के लिए बैठा।
२३ यदि हम नीतिकथा में यीशु की गतिविधि का विश्लेषण करते हैं, तो हम उसे अंततः सब जातियों का न्याय करते हुए देखते हैं। नीतिकथा यह नहीं दिखाती कि यह न्याय-कार्य कई सालों की लम्बी अवधि तक चलेगा, मानो इन पिछले दशकों के दौरान मरनेवाले हर व्यक्ति का न्याय किया गया हो कि वह अनन्त मृत्यु के योग्य है या अनन्त जीवन के। ऐसा लगता है कि हाल के दशकों में मरनेवाले अधिकांश लोग मानवजाति की सामान्य क़ब्र में गए हैं। (प्रकाशितवाक्य ६:८; २०:१३) लेकिन, यह नीतिकथा उस समय के बारे में बताती है जब यीशु ‘सब जातियों’ के लोगों का न्याय करता है जो उस समय जीवित हैं और उसके न्यायदण्ड के कार्यान्वयन का सामना करते हैं।
२४. भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा की पूर्ति कब होगी?
२४ दूसरे शब्दों में, नीतिकथा भविष्य की ओर संकेत करती है जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा। वह उस समय जीवित लोगों का न्याय करने के लिए बैठेगा। उसका न्याय इस बात पर आधारित होगा कि इन लोगों ने अपने आपको किस रूप में दिखाया है। उस समय “धर्मी और दुष्ट का भेद” स्पष्ट रूप से स्थापित हो चुका होगा। (मलाकी ३:१८) न्यायदण्ड सुनाने और उसे कार्यान्वित करने का असल काम एक सीमित समय में पूरा किया जाएगा। यीशु, व्यक्तियों के बारे में जो प्रकट हो चुका है उस पर आधारित न्यायसंगत फ़ैसले सुनाएगा।—२ कुरिन्थियों ५:१० भी देखिए।
२५. मनुष्य के पुत्र का महिमा के सिंहासन पर बैठने के बारे में बात करते समय मत्ती २५:३१ क्या चित्रित कर रहा है?
२५ तो फिर, इसका अर्थ है कि यीशु का न्याय के लिए ‘अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होना,’ जो मत्ती २५:३१ में उल्लिखित है, उस भावी समय पर लागू होता है जब यह शक्तिशाली राजा राष्ट्रों पर न्यायदण्ड सुनाने और उसे कार्यान्वित करने के लिए बैठेगा। जी हाँ, मत्ती २५:३१-३३, ४६ का न्यायिक दृश्य, जिसमें यीशु सम्मिलित है दानिय्येल अध्याय ७ के दृश्य के तुल्य है, जहाँ न्यायी की अपनी भूमिका निभाने के लिए सत्ताधारी राजा, अति प्राचीन विराजमान हुआ।
२६. इस नीतिकथा की कौन-सी नयी व्याख्या सामने आती है?
२६ भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा को इस प्रकार समझना दिखाता है कि भेड़ों और बकरियों का न्याय सुनाया जाना भविष्य में होगा। यह मत्ती २४:२९, ३० में उल्लिखित “क्लेश” के शुरू होने और मनुष्य के पुत्र के ‘अपनी महिमा में आने’ के बाद होगा। (मरकुस १३:२४-२६ से तुलना कीजिए।) उस समय, जब सम्पूर्ण दुष्ट व्यवस्था अपने अन्त पर होगी, यीशु मुक़द्दमा चलाएगा और न्यायदण्ड सुनाएगा और कार्यान्वित करेगा।—यूहन्ना ५:३०; २ थिस्सलुनीकियों १:७-१०.
२७. यीशु की अन्तिम नीतिकथा के बारे में हमें क्या जानने की दिलचस्पी होनी चाहिए?
२७ यह यीशु की नीतिकथा के समय के बारे में हमारी समझ को स्पष्ट करता है, जो दिखाती है कि भेड़ों और बकरियों का न्याय कब होगा। लेकिन यह हम पर, जो जोश के साथ राज्य सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं, कैसे प्रभाव करता है? (मत्ती २४:१४) क्या यह हमारे कार्य को कम महत्त्वपूर्ण बना देता है, या क्या यह ज़िम्मेदारी का ज़्यादा भार लाता है? आइए अगले लेख में देखें कि हम कैसे प्रभावित होते हैं।
[फुटनोट]
a दानिय्येल ७:१०, २६ में “न्यायी” अनुवादित शब्द एज्रा ७:२६ और दानिय्येल ४:३७; ७:२२ में भी पाया जाता है।
b मसीहियों द्वारा एक दूसरे को कचहरी ले जाने के सम्बन्ध में पौलुस ने पूछा: “क्या उन्हीं को बैठाओगे [अर्थात्, न्यायी ठहराओगे] जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं?”—१ कुरिन्थियों ६:४.
c वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित, प्रकाशितवाक्य—इसकी महान पराकाष्ठा निकट! (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ ५६, ७३, २३५-४५, २६० देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ यहोवा राजा और न्यायी दोनों के रूप में कैसे कार्य करता है?
◻ ‘सिंहासन पर विराजमान होने’ के कौन-से दो अर्थ हो सकते हैं?
◻ मत्ती २५:३१ के समय के बारे में हम पहले क्या कहते थे, लेकिन एक समंजित दृष्टिकोण का क्या आधार है?
◻ जैसा मत्ती २५:३१ संकेत करता है, मनुष्य का पुत्र अपने सिंहासन पर कब विराजमान होता है?