यहोवा तन मन से की गयी आपकी सेवा को बहुमूल्य समझता है
“जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो।”—कुलुस्सियों ३:२३.
१, २. (क) हमारा सबसे बड़ा विशेषाधिकार क्या है? (ख) कभी-कभी हम परमेश्वर की सेवा में उतना क्यों नहीं कर पाएँ जितना हम करना चाहते हैं?
यहोवा की सेवा करना हमारा सबसे बड़ा विशेषाधिकार है। अच्छे कारण से ही, इस पत्रिका ने काफ़ी अरसे से मसीहियों को सेवकाई में ख़ुद को मसरूफ़ रखने के लिए, और जब संभव हो तब “और भी अधिक” सेवा करने के लिए प्रोत्साहित किया है। (१ थिस्सलुनीकियों ४:१, NHT) बहरहाल, हम हमेशा वह सब कुछ नहीं कर पाते जिसे परमेश्वर की सेवा में करने के लिए हमारा दिल तरसता है। “मेरे हालात ही कुछ ऐसे हैं कि मुझे दिन भर काम करना पड़ता है,” एक अविवाहित बहन समझाती है जिसने क़रीब ४० साल पहले बपतिस्मा लिया था। “मेरे नौकरी करने का कारण शानदार कपड़े ख़रीदना या लंबी-लंबी छुट्टियों पर जाना नहीं, बल्कि आवश्यकताएँ पूरी करना है, जिसमें दवा-दारू का भी ख़र्च है। मुझे ऐसा लगता है मानो मैं यहोवा को बचा-खुचा दे रही हूँ।”
२ परमेश्वर का प्रेम हमें प्रेरित करता है कि प्रचार कार्य में हम जितना कर सकते हैं उतना करें। लेकिन हम जो कर सकते हैं उसे अकसर जीवन के हालात सीमित कर देते हैं। अन्य शास्त्रीय ज़िम्मेदारियाँ सँभालने में, जिनमें पारिवारिक उत्तरदायित्व भी शामिल हैं, शायद हमारा काफ़ी समय और शक्ति लग जाए। (१ तीमुथियुस ५:४, ८) इस “कठिन समय” में जीवन पहले से भी ज़्यादा चुनौतिपूर्ण है। (२ तीमुथियुस ३:१) जब हम उतना नहीं कर पाते हैं जितना हम सेवकाई में करना चाहते हैं, तो हमारा दिल शायद कुछ हद तक हमें परेशान करे। हम शायद सोच में पड़ जाएँ कि परमेश्वर हमारी उपासना से ख़ुश है या नहीं।
तन मन से की गयी सेवा की सुंदरता
३. यहोवा हम सभी लोगों से क्या अपेक्षा करता है?
३ भजन १०३:१४ में, बाइबल स्नेह से भरे शब्दों में हमें आश्वस्त करती है कि यहोवा “हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” किसी भी अन्य व्यक्ति से ज़्यादा, वह हमारी सीमाओं को समझता है। हम जो दे सकते हैं, वह उससे ज़्यादा की माँग नहीं करता। वह किसकी अपेक्षा करता है? ऐसा कुछ जो हर कोई दे सकता है, चाहे जीवन में उसकी स्थिति जो भी हो: “जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो।” (कुलुस्सियों ३:२३) जी हाँ, यहोवा अपेक्षा करता है कि हम—हम सभी—उसकी सेवा तन मन से करें।
४. तन मन से यहोवा की सेवा करने का क्या अर्थ है?
४ तन मन से यहोवा की सेवा करने का क्या अर्थ है? “तन मन” अनुवादित यूनानी शब्द का शाब्दिक अर्थ है “प्राण से।” “प्राण” संपूर्ण व्यक्ति को सूचित करता है, जिसमें उसकी शारीरिक और मानसिक क्षमताएँ शामिल हैं। अतः तन मन से सेवा करने का मतलब है अपने-आपको दे देना, परमेश्वर की सेवा में अपनी सारी क्षमताओं का और अपनी ताक़त का जितना संभव हो उतना पूर्ण रूप से इस्तेमाल करना। सरल शब्दों में कहें तो, इसका अर्थ है वह सब कुछ करना जो हमारा प्राण कर सकता है।—मरकुस १२:२९, ३०.
५. प्रेरितों का उदाहरण कैसे दिखाता है कि सेवकाई में सभी लोग समान मात्रा में काम नहीं कर सकते?
५ क्या तन मन से सेवा करने का मतलब यह है कि हम सभी को सेवकाई में समान मात्रा में काम करना चाहिए? यह शायद ही संभव हो, क्योंकि हरेक व्यक्ति के हालात और क़ाबिलीयत अलग-अलग होते हैं। यीशु के वफ़ादार प्रेरितों पर ग़ौर कीजिए। वे सभी समान मात्रा में सेवा करने में समर्थ नहीं थे। मिसाल के तौर पर, कुछ प्रेरितों के बारे में हम बहुत ही कम जानते हैं, जैसे कि शमौन कनानी और हलफै का पुत्र याकूब। शायद प्रेरितों के रूप में उनके काम कुछ हद तक सीमित थे। (मत्ती १०:२-४) इसके विपरीत, पतरस अनेक भारी ज़िम्मेदारियाँ स्वीकार कर पाया—यहाँ तक कि, यीशु ने उसे “स्वर्ग के राज्य की कुंजियां” भी दीं! (मत्ती १६:१९) फिर भी, पतरस को दूसरों से ऊपर नहीं उठाया गया। जब यूहन्ना ने (सा.यु. ९६ के क़रीब) प्रकाशितवाक्य में नए यरूशलेम का दर्शन पाया, उसने १२ नींव के पत्थर देखे जिन पर “बारह प्रेरितों के बारह नाम” अंकित थे।a (प्रकाशितवाक्य २१:१४) यहोवा ने सभी प्रेरितों की सेवा को बहुमूल्य समझा, हालाँकि कुछ लोग स्पष्टतः दूसरों से अधिक कर पाए।
६. बीज बोनेवाले के यीशु के दृष्टांत में, “अच्छी भूमि” पर गिरनेवाले बीज का क्या होता है, और कौन-से सवाल उठते हैं?
६ उसी तरह, यहोवा हम सभी से समान मात्रा में प्रचार कार्य की माँग नहीं करता। यीशु ने इसका संकेत बीज बोनेवाले के दृष्टांत में दिया, जिसमें प्रचार कार्य की तुलना बीज बोने से की गयी। बीज विभिन्न प्रकार की भूमि पर गिरे। इस भूमि ने संदेश सुननेवालों द्वारा दिखायी गयी हृदय की विभिन्न स्थितियों को सचित्रित किया। “जो अच्छी भूमि में बोया गया,” यीशु ने समझाया, “यह वह है, जो वचन को सुनकर समझता है, और फल लाता है, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना।” (मत्ती १३:३-८, १८-२३) यह फल क्या है, और यह विविध मात्रा में क्यों उत्पन्न होता है?
७. बोए गए बीज का फल क्या है, और यह विविध मात्रा में क्यों उत्पन्न होता है?
७ क्योंकि बोया गया बीज “राज्य का वचन” है, सो फल लाने में उस वचन को फैलाना, दूसरों को यह बताना शामिल है। (मत्ती १३:१९) उत्पन्न किए गए फल की मात्रा अलग-अलग है—तीस गुना से सौ गुना तक—क्योंकि जीवन में क्षमताएँ और हालात अलग-अलग होते हैं। अच्छी सेहत और ताक़तवाला व्यक्ति प्रचार कार्य में उस व्यक्ति से शायद ज़्यादा समय बिता पाए जिसकी ताक़त को किसी गंभीर बीमारी या बढ़ती उम्र ने चूस लिया है। एक जवान अविवाहित व्यक्ति जो परिवार की ज़िम्मेदारियों से आज़ाद है शायद उस व्यक्ति से ज़्यादा सेवा कर पाए जिसे परिवार के भरण-पोषण के लिए पूर्ण समय काम करना पड़ता है।—नीतिवचन २०:२९ से तुलना कीजिए।
८. यहोवा उन लोगों को किस नज़र से देखता है जो उनका प्राण जितना दे सकता है उसका सर्वोत्तम देते हैं?
८ परमेश्वर की नज़र में, क्या तन मन से तीस गुना उत्पन्न करनेवाला व्यक्ति, सौ गुना उत्पन्न करनेवाले व्यक्ति से कम वफ़ादार है? हरगिज़ नहीं! फल की मात्रा शायद अलग-अलग हो, लेकिन यहोवा प्रसन्न रहता है जब की गयी सेवा हमारा प्राण जो दे सकता है उसका सर्वोत्तम है। याद कीजिए कि विभिन्न मात्रा में सभी फल उन्हीं हृदयों से निकलते हैं जो “अच्छी भूमि” हैं। “अच्छी” अनुवादित यूनानी शब्द (कालोस) उस चीज़ का वर्णन करता है जो “सुंदर” है और जो “दिल को ख़ुश करती है, और आँखों को सुहाती है।” यह जानना कितना सांत्वनादायक है कि जब हम अपना सर्वोत्तम करते हैं, तो हमारा हृदय परमेश्वर की नज़रों में सुंदर होता है!
एक दूसरे से तुलना न करना
९, १०. (क) हमारा दिल हमें किस तरह के नकारात्मक तर्क की ओर ले जा सकता है? (ख) १ कुरिन्थियों १२:१४-२६ का दृष्टांत कैसे दिखाता है कि यहोवा हमारे कार्य की तुलना दूसरों के कार्य से नहीं करता?
९ लेकिन, शायद हमारा अपरिपूर्ण हृदय बातों को अलग रीति से आँके। यह हमारी सेवा की तुलना शायद दूसरों की सेवा से करे। यह शायद तर्क करे, ‘दूसरे तो सेवकाई में मुझसे कितना ज़्यादा कर रहे हैं। यहोवा मेरी सेवा से कैसे ख़ुश हो सकता है?’—१ यूहन्ना ३:१९, २० से तुलना कीजिए।
१० यहोवा के सोच-विचार और तौर-तरीक़े हमारे अपने सोच-विचार और तौर-तरीक़ों से बहुत ऊँचे हैं। (यशायाह ५५:९) यहोवा हमारे व्यक्तिगत प्रयासों को जिस नज़र से देखता है उस पर कुछ अंतर्दृष्टि हम १ कुरिन्थियों १२:१४-२६ में पा सकते हैं, जहाँ कलीसिया की बराबरी एक शरीर से की गयी है जिसमें अनेक अंग होते हैं—आँखें, हाथ, पैर, कान इत्यादि। एक पल के लिए, अपने शरीर पर ग़ौर कीजिए। अपने आँखों की तुलना अपने हाथों से करना या अपने पैर की तुलना अपने कानों से करना कितना हास्यास्पद होगा! हर अंग एक अलग कार्य करता है, फिर भी सभी अंग उपयोगी और बहुमूल्य हैं। उसी तरह, यहोवा तन मन से की गयी आपकी सेवा को बहुमूल्य समझता है, चाहे दूसरे लोग ज़्यादा कर रहे हों या कम।—गलतियों ६:४.
११, १२. (क) क्यों कुछ लोगों को शायद लगे कि वे “निर्बल” या “आदर के योग्य नहीं” हैं? (ख) यहोवा हमारी सेवा को किस नज़र से देखता है?
११ ख़राब स्वास्थ्य, ढलती उम्र, या अन्य स्थितियों की वज़ह से आ पड़ी सीमाओं के कारण शायद हम में से कुछ लोगों को लगे कि हम “निर्बल” या “आदर के योग्य नहीं” हैं। लेकिन यहोवा बातों को इस नज़र से नहीं देखता। बाइबल हमें कहती है: “देह के वे अंग जो औरों से निर्बल देख पड़ते हैं, बहुत ही आवश्यक हैं। और . . . जिन अंगों को हम आदर के योग्य नहीं समझते हैं उन्हीं को हम अधिक आदर देते हैं . . . परन्तु परमेश्वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी थी उसी को और भी बहुत आदर हो।” (१ कुरिन्थियों १२:२२-२४) सो यहोवा के लिए प्रत्येक व्यक्ति प्रिय हो सकता है। अपनी सीमाओं के अंदर की गयी हमारी सेवा को वह बहुमूल्य समझता है। क्या आपका दिल आपको उतना सब कुछ करने के इच्छुक होने के लिए प्रेरित नहीं करता जितना आप एक ऐसे समझदार और प्रेममय परमेश्वर की सेवा में कर सकते हैं?
१२ तो फिर, यहोवा के लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं कि आप उतना करें जितना दूसरा व्यक्ति करता है, बल्कि यह है कि आप वह करें जो आप—आपका प्राण—व्यक्तिगत रूप से कर सकते हैं। यहोवा हमारे व्यक्तिगत प्रयासों को बहुमूल्य समझता है, यह बात बहुत ही मर्मस्पर्शी रूप से धरती पर यीशु के जीवन के आख़िरी दिनों के दौरान दो बहुत ही भिन्न स्त्रियों के साथ उसके व्यवहार द्वारा प्रदर्शित की गयी।
एक क़दरदान स्त्री की “बहुमूल्य” भेंट
१३. (क) यीशु के सिर और पैर पर मरियम के सुगंधित इत्र डालते समय हालात क्या थे? (ख) मरियम के इत्र का भौतिक मूल्य कितना था?
१३ शुक्रवार शाम, निसान ८ को यीशु बैतनिय्याह में आया, जो जैतून के पहाड़ की पूर्वी ढलान पर, यरूशलेम से क़रीब तीन किलोमीटर दूर एक छोटा-सा गाँव है। इस नगर में यीशु के प्रिय मित्र थे—मरियम, मार्था, और उनका भाई, लाजर। शायद यीशु कई बार उनके घर पर मेहमान रह चुका था। लेकिन शनिवार रात को, यीशु और उसके मित्रों ने शमौन के घर पर खाना खाया, जो पहले एक कोढ़ी था जिसे शायद यीशु ने चंगा किया था। जब यीशु भोजन करने बैठा हुआ था, मरियम ने एक नम्र कार्य किया जिसने उस व्यक्ति के लिए उसका गहरा प्रेम प्रदर्शित किया जिसने उसके भाई को पुनरुत्थित किया था। उसने “बहुमूल्य” इत्र की एक कुप्पी फोड़कर खोली। वाक़ई बहुमूल्य! इसकी क़ीमत ३०० दीनार थी, जो कि लगभग एक साल के वेतन के बराबर है। उसने इस इत्र को यीशु के सिर पर और उसके पैरों पर उँडेल दिया। यहाँ तक कि उसने अपने बालों से उसके पैरों को पोंछकर सुखाया।—मरकुस १४:३; लूका १०:३८-४२; यूहन्ना ११:३८-४४; १२:१-३.
१४. (क) शिष्यों ने मरियम के कार्य के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? (ख) यीशु ने मरियम की सफ़ाई कैसे दी?
१४ शिष्य झल्ला उठे! ‘यह सत्यानाश क्यों?’ उन्होंने पूछा। ज़रूरतमंदों के लिए दान-धर्म की सलाह के पीछे अपनी चोरी की नीयत को छिपाते हुए यहूदा ने कहा: “यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर कंगालों को क्यों न दिया गया?” मरियम ख़ामोश रही। बहरहाल, यीशु ने शिष्यों से कहा: “उसे छोड़ दो; उसे क्यों सताते हो? उस ने तो मेरे साथ भलाई [कालोस का एक रूप] की है। . . . जो कुछ वह कर सकी, उस ने किया; उस ने मेरे गाड़े जाने की तैयारी में पहिले से मेरी देह पर इत्र मला है। मैं तुम से सच कहता हूं, कि सारे जगत में जहां कहीं सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहां उसके इस काम की चर्चा भी उसके स्मरण में की जाएगी।” यीशु के प्यार भरे शब्दों से मरियम के दिल को कितना सुकून मिला होगा!—मरकुस १४:४-९; यूहन्ना १२:४-८.
१५. मरियम ने जो किया था उससे यीशु इतना प्रभावित क्यों हुआ था, और इस प्रकार हम तन मन से की गयी सेवा के बारे में क्या सीखते हैं?
१५ मरियम ने जो किया था उससे यीशु बहुत ही प्रभावित हुआ था। उसकी राय में, उसने एक क़ाबिल-ए-तारीफ़ काम किया था। उस भेंट का भौतिक मूल्य यीशु के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं था, परंतु यह तथ्य कि “जो कुछ वह कर सकी, उस ने किया।” उसने उस मौक़े का फ़ायदा उठाकर वह दिया जो वह दे सकती थी। अन्य अनुवादों ने इन शब्दों को इस प्रकार अनुवादित किया है, “जितना वह कर सकती थी, उसने किया,” या उस “ने वही किया जो वह कर सकती थी।” (NHT; नया नियम, इज़ी-टू-रीड वर्शन) मरियम का देना तन मन से था क्योंकि उसने अपना सर्वोत्तम दिया। यही है तन मन से की गयी सेवा।
विधवा की “दो दमड़ियां”
१६. (क) यीशु ने उस ग़रीब विधवा के अंशदान को किस नज़र से देखा? (ख) विधवा की दमड़ियों की क़ीमत क्या थी?
१६ दो दिन बाद, निसान ११ को, यीशु ने मंदिर में लगभग पूरा दिन बिताया, जहाँ उसके अधिकार पर सवाल उठाया गया था और उसने कर, पुनरुत्थान, और अन्य मामलों पर कठिन सवालों के जवाब दिए थे। उसने अन्य बातों समेत, “विधवाओं के घरों को खा” जाने के लिए शास्त्रियों और फरीसियों की निंदा की। (मरकुस १२:४०) फिर यीशु बैठ गया, स्पष्टतः स्त्रियों के आँगन में, जहाँ यहूदी परंपरा के अनुसार १३ दान पेटियाँ थीं। वह कुछ देर तक बैठा, और उसने लोगों को अपने अंशदान डालते हुए ध्यान से देखा। कई अमीर लोग आए, कुछ लोग शायद आत्म-धार्मिकता के दिखावे के साथ, यहाँ तक कि ठाठ-बाट के साथ। (मत्ती ६:२ से तुलना कीजिए।) यीशु की नज़र एक ख़ास स्त्री पर टिक गयी। किसी साधारण व्यक्ति को शायद उसमें या उसकी भेंट में कोई ख़ासियत नहीं नज़र आयी होगी। परंतु यीशु, जो दूसरों के हृदय जान सकता था, जानता था कि वह “एक कंगाल विधवा” थी। वह उसकी भेंट की रक़म भी ठीक-ठीक जानता था—“दो दमड़ियां, जो एक अधेले के बराबर होती हैं।”b—मरकुस १२:४१, ४२.
१७. यीशु ने विधवा के अंशदान की क़दर कैसे की, और इस प्रकार हम परमेश्वर को देने के बारे में क्या सीखते हैं?
१७ यीशु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुलाया, क्योंकि वह चाहता था कि वे उस बात को अपनी आँखों से देखें जो वह सिखाने ही वाला था। यीशु ने कहा कि उसने “मन्दिर के भण्डार में डालने वालों में से . . . सब से बढ़कर डाला है।” उसकी राय में, बाक़ी सभी लोगों ने मिलकर जितना डाला, उससे बढ़कर उसने डाला। उसने “जो कुछ उसका था” वह दिया—अपनी आख़िरी फूटी कौड़ी भी। ऐसा करने के द्वारा, उसने अपने-आपको यहोवा के चिंता करनेवाले हाथों के हवाले कर दिया। इस प्रकार, परमेश्वर को देने के एक उदाहरण के रूप में जिस व्यक्ति को चुना गया वह ऐसी औरत है जिसकी भेंट भौतिक क़ीमत में लगभग कुछ भी नहीं थी। लेकिन, परमेश्वर की नज़रों में वह बहुमूल्य थी!—मरकुस १२:४३, ४४; याकूब १:२७.
तन मन से की गयी सेवा के प्रति यहोवा के दृष्टिकोण से सीखना
१८. दो स्त्रियों के साथ यीशु के व्यवहार से हम क्या सीखते हैं?
१८ इन दो स्त्रियों के साथ यीशु के व्यवहार से हम इस बारे में कुछ हृदयस्पर्शी सबक़ सीखते हैं कि यहोवा तन मन से की गयी सेवा को किस नज़र से देखता है। (यूहन्ना ५:१९) यीशु ने उस विधवा की तुलना मरियम के साथ नहीं की। उसने विधवा की दो दमड़ियों की उतनी ही क़दर की जितनी कि मरियम के “बहुमूल्य” इत्र की। क्योंकि प्रत्येक स्त्री ने अपना सर्वोत्तम दिया, परमेश्वर की नज़रों में उन दोनों की भेंटें बहुमूल्य थीं। सो अगर आपमें अयोग्यता की भावनाएँ भर आती हैं क्योंकि आप परमेश्वर की सेवा में जितना करना चाहते हैं उतना नहीं कर पा रहे हैं, तो निराश मत होइए। आप जो सर्वोत्तम दे सकते हैं उसे क़बूल करने में यहोवा ख़ुश है। याद रखिए, यहोवा “की दृष्टि मन पर रहती है,” सो वह आपके मन की अभिलाषाओं से पूरी तरह वाक़िफ़ है।—१ शमूएल १६:७.
१९. दूसरे लोग परमेश्वर की सेवा में जो कर रहे हैं उसके बारे में हमें आँकनेवाले क्यों नहीं होना चाहिए?
१९ हम एक दूसरे को जिस नज़र से देखते हैं और जैसे व्यवहार करते हैं उस पर तन मन से की गयी सेवा के बारे में यहोवा के दृष्टिकोण का प्रभाव होना चाहिए। दूसरों के प्रयासों की आलोचना करना या एक व्यक्ति की सेवा की तुलना दूसरे व्यक्ति से करना कितना प्रेमरहित होगा! दुःख की बात है, एक मसीही ने लिखा: “कभी-कभी कुछ लोग ऐसा महसूस कराते हैं कि अगर आप एक पायनियर हैं तो सब कुछ हैं वरना कुछ भी नहीं। हम में से उन लोगों की भी क़दर की जाने की ज़रूरत है जो ‘केवल’ एक नियमित राज्य प्रकाशक के रूप में बने रहने के लिए जी-जान लगा देते हैं।” आइए हम याद रखें कि हमें यह निर्णय करने का अधिकार नहीं दिया गया है कि एक संगी मसीही के लिए तन मन से की गयी सेवा में क्या-क्या शामिल होगा। (रोमियों १४:१०-१२) यहोवा लाखों वफ़ादार राज्य प्रकाशकों में से हरेक की तन मन से की गयी सेवा की क़दर करता है, और हमें भी ऐसा ही करना चाहिए।
२०. आम तौर पर अपने संगी उपासकों के बारे में क्या मान लेना सर्वोत्तम होता है?
२० लेकिन, तब क्या अगर ऐसा दिखता है कि कुछ लोग सेवकाई में जितना वे कर सकते हैं उससे कम कर रहे हैं? संगी विश्वासी की गतिविधि में कमी शायद परवाह करनेवाले प्राचीनों को संकेत दे कि उन्हें मदद या प्रोत्साहन की ज़रूरत है। साथ ही, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ लोगों के लिए, तन मन से की गयी सेवा शायद मरियम के क़ीमती इत्र के बजाय विधवा की छोटी-छोटी दमड़ियों की तरह हो। आम तौर पर यह मान लेना सर्वोत्तम होता है कि हमारे भाई-बहन यहोवा से प्रेम करते हैं। ऐसा प्रेम उन्हें प्रेरित करेगा कि वे जितना ज़्यादा कर सकते हैं उतना करें—जितना कम कर सकते हैं उतना कम नहीं। निश्चय ही, यहोवा का कोई भी निष्कपट सेवक परमेश्वर की सेवा में जितना वह कर सकता है उससे कम करने का चुनाव नहीं करेगा!—१ कुरिन्थियों १३:४, ७.
२१. अनेक लोग किस प्रतिफलदायक पेशे को अपना रहे हैं, और कौन-से सवाल उठते हैं?
२१ लेकिन, परमेश्वर के अनेक लोगों के लिए, तन मन से की गयी सेवा का मतलब एक अत्यंत ही प्रतिफलदायक पेशा—पायनियर सेवकाई—अपनाना रहा है। उन्हें कौन-सी आशीषें प्राप्त होती हैं? और हम में से उन लोगों के बारे में क्या जो अभी तक पायनियर कार्य नहीं कर पाए हैं—हम पायनियर आत्मा कैसे दिखा सकते हैं? अगले लेख में इन सवालों पर चर्चा की जाएगी।
[फुटनोट]
a क्योंकि मत्तिय्याह ने एक प्रेरित के रूप में यहूदा की जगह ली, तो उन १२ नींव के पत्थरों पर—पौलुस का नहीं—उसका नाम आया होगा। हालाँकि पौलुस एक प्रेरित था, वह उन १२ प्रेरितों में से एक नहीं था।
b इनमें से हरेक दमड़ी एक लॆप्टन थी, अर्थात् उस समय इस्तेमाल किया गया सबसे छोटा यहूदी सिक्का। दो लॆप्टा एक दिन के वेतन के ६४वें हिस्से के बराबर थे। मत्ती १०:२९ के अनुसार, एक असेरिअन सिक्के से (आठ लॆप्टा के बराबर) एक व्यक्ति दो गौरैये ख़रीद सकता था, जो ग़रीब लोगों द्वारा भोजन के लिए इस्तेमाल किए जानेवाले सबसे सस्ते पक्षी थे। सो यह विधवा वाक़ई ग़रीब थी, क्योंकि उसके पास एक गौरैया ख़रीदने के लिए ज़रूरी पैसों से भी केवल आधे पैसे थे, जो एक भोजन के लिए भी काफ़ी नहीं थी।
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ तन मन से यहोवा की सेवा करने का क्या अर्थ है?
◻ १ कुरिन्थियों १२:१४-२६ का दृष्टांत कैसे दिखाता है कि यहोवा दूसरों के साथ हमारी तुलना नहीं करता?
◻ मरियम के क़ीमती इत्र और विधवा की दो दमड़ियों के बारे में यीशु की टिप्पणियों से तन मन से देने के बारे में हम क्या सीखते हैं?
◻ तन मन से की गयी सेवा के प्रति यहोवा के दृष्टिकोण का एक दूसरे के प्रति हमारे नज़रिये पर कैसा प्रभाव होना चाहिए?
[पेज 15 पर तसवीर]
मरियम ने यीशु की देह को “बहुमूल्य” इत्र से सुगंधित करने के द्वारा अपना सर्वोत्तम दिया
[पेज 16 पर तसवीर]
विधवा की दमड़ियाँ—भौतिक क़ीमत में लगभग कुछ भी नहीं परंतु यहोवा की नज़रों में बहुमूल्य