परमेश्वर और मसीह में विश्वास बनाए रखो
कुलुस्सियों के मुख्य अंश
यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह पर विश्वास करना उद्धार के लिए अत्यावश्यक है। लेकिन ऐसे विश्वास को बनाए रखना एक चुनौती है। एशिया माइनर में, इफिसुस नगर की पूर्वी दिशा में स्थित, कुलुस्से नगर के मसीहियों के लिए यह ऐसा ही था। क्यों? क्योंकि वहाँ मौजूद झूठे उपदेशक ग़लत रूप से मानते थे कि उद्धार ख़तना पर, लोग क्या खाते थे, उस पर, और कुछेक प्रथाओं के अनुपालन पर निर्भर था।
तो फिर, यह समझने योग्य है कि प्रेरित पौलुस कुलुस्से के मसीहियों के आध्यात्मिक हित के विषय में चिन्तित था, और वह ज़रूर चाहता था कि वे परमेश्वर और मसीह में अपने विश्वास को बनाए रखें। इसलिए, रोम में प्रेरित की पहली क़ैद की समाप्ति के क़रीब (लगभग सामान्य युग के वर्ष ६०-६१ में), उसने कुलुस्सियों को एक ऐसी चिट्ठी लिखी जो ग़लत विचारों को प्रभावहीन कर देने और उनके विश्वास को बढ़ाने के इरादे से लिखी गयी थी। आइए देखें कि कैसे हम भी उसके प्रेम भरे शब्दों से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
मसीह के पद की क़दर करना
उसकी चिट्ठी के प्रारंभिक हिस्से में ही, पौलुस ने यीशु के पद के लिए क़दर विशिष्ट की। (१:१-२:१२) उसने कुलुस्सियों के मसीह पर विश्वास और संगी विश्वासियों के लिए उनके प्रेम की प्रशंसा की। पौलुस ने मसीह की श्रेष्ठता का ज़िक्र इस तरह किया कि वह एक ऐसा व्यक्ति था जिसके ज़रिए बाक़ी सारी वस्तुएँ सृजी गयी थीं, और कि वह कलीसिया का प्रमुख था तथा मृतावस्था से जी उठनेवालों में से पहलौठा था। परमेश्वर से मेल-मिलाप मसीह के ज़रिए पूरा किया जाता है, जिस में बुद्धि और ज्ञान से सारे धन छिपे हुए हैं। इन सारी बातों का विचार करके, मसीहियों को मसीह से संयुक्त चलते रहना चाहिए और मानवीय तत्त्वज्ञान के ज़रिए किसी को भी उन्हें शिकार के जैसे अहेर कर लेने देना नहीं चाहिए।
मसीह के द्वारा, परमेश्वर ने व्यवस्था को रास्ते से हटा दिया। (२:१३-२३) जब यीशु मर गया तब यातना-खंभे पर प्रतीकात्मक रूप से इस में कील ठोंक दी गयी। व्यवस्था में आवश्यक बातें सिर्फ़ ‘आनेवाली बातों की छाया हैं, पर मूल वस्तुएँ मसीह की हैं।’ मसीह को दृढ़तापूर्वक पकड़े रहने से, वे किसी भी मनुष्य को उन्हें स्वर्ग में अमर जीवन का इनाम पाने से वंछित नहीं करने देते।
परमेश्वर और मसीह की क़दर करना
पौलुस ने फिर कुलुस्सियों को नया व्यक्तित्व पहन लेने और यीशु मसीह के अधिकार के अधीन होने के लिए प्रोत्साहित किया। (३:१-१७) अपना ध्यान स्वर्गीय वस्तुओं पर रखकर, वे ज़िन्दगी में आध्यात्मिक हितों को पहला स्थान दे रहे होंगे। इस से ग़लत मनोवृत्ति और भाषा को त्याग देना आवश्यक हुआ। वे कितने धन्य होते यदि वे ऐसे गुणों को धारण करते, जैसे अनुकम्पा, दीनता और प्रेम! यदि वे हर बात को यीशु के नाम से और उसी के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करते, तो मसीह की शान्ति उनके हृदय में राज्य करती।
यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह के लिए क़दर एक मसीही के दूसरों के साथ के रिश्ते पर भी असर करनी चाहिए। (३:१८–४:१८) पत्नी, पति, बच्चें, ग़ुलाम और मालिक, सभी को परमेश्वर का भय मानकर और मसीह के अधिकार को पहचानकर अपना कर्तवय निभाना था। और प्रार्थना में लगे रहना तथा बुद्धि में चलते रहना कितना आवश्यक है!
कुलुस्सियों को लिखी पौलुस की चिट्ठी हमें ऐसे झूठे उपदेशों से बचने की मदद कर सकती है, जो हमें जीवन के इनाम से वंछित करेंगे। यहोवा और उसके पुत्र का अधिकार स्वीकार करने के विषय में प्रेरित द्वारा दिया गया ज़ोर, दूसरों के साथ हमारे व्यवहार पर एक उत्तम प्रभाव डाल सकता है। और यदि हम परमेश्वर और मसीह में अपना विश्वास बनाए रखेंगे, तो हमें आश्वासन दिया जाता है कि हमें बहुत बड़े आशीर्वाद प्राप्त होंगे।
[पेज 32 पर बक्स/तसवीरें]
लौदीकिया को लिखी चिट्ठी: “जब यह पत्र तुम्हारे यहाँ पढ़ लिया जाए, तो ऐसा करना कि लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़ा जाए, और वह पत्र जो लौदीकिया से आए उसे तुम भी पढ़ना,” यों पौलुस ने कुलुस्सियों को लिखा। (कुलुस्सियों ४:१६) लौदीकिया पश्चिमी एशिया माइनर का एक समृद्ध नगर था, जिसे रास्तों के द्वारा फिलदिलफिया और इफिसुस जैसे नगरों से जोड़ा गया था। संभवतः, पौलुस द्वारा इफिसुस में किया गया कार्य लौदीकिया तक पहुँच गया था, हालाँकि उसने वहाँ सेवा नहीं की थी। उसने लौदीकी मसीहियों को एक पत्र भेजा, हालाँकि कुछ विद्वान् सोचते हैं कि यह उस पत्र की एक अनुलिपि थी, जो उसने इफिसियों को भेजा था। लौदीकियों को लिखा पत्र बाइबल में नहीं पाया जाता, शायद इसलिए कि इसमें ऐसी कोई जानकारी न थी जिसकी हमें आज ज़रूरत हो, या शायद इस में ऐसी बातों को दोहराया गया, जिस पर दूसरे धर्मवैधानिक पत्रों में पर्याप्त मात्रा में विचार किया गया था।
[तसवीर]
लौदीकिया में खंडहर