“निरर्थक बातों” को ठुकराइए
“जो निरर्थक बातों के पीछे पड़ा रहता है, वह निर्बुद्धि है।”—नीति. 12:11, NHT.
1. हमारे पास कुछ बेशकीमती चीज़ें क्या हैं, और उनका इस्तेमाल करने का सबसे बढ़िया तरीका क्या है?
हम सभी के पास कोई-न-कोई बेशकीमती चीज़ है। जैसे कि अच्छी सेहत, ताकत, दिमागी काबिलीयतें, धन-दौलत वगैरह। और क्योंकि हम यहोवा से प्यार करते हैं, इसलिए हम खुशी-खुशी इन चीज़ों का उसकी सेवा में इस्तेमाल करते हैं। इस तरह, हम दिखाते हैं कि हम ईश्वर-प्रेरणा से लिखी इस सलाह पर अमल करते हैं: ‘अपनी सम्पत्ति [“बेशकीमती चीज़ों,” NW] के द्वारा यहोवा का आदर कीजिए।’—नीति. 3:9, NHT.
2. निरर्थक बातों के बारे में बाइबल क्या चेतावनी देती है, और यह कैसे लागू होती है?
2 दूसरी तरफ, बाइबल कुछ निरर्थक या बेमतलब की बातों का भी ज़िक्र करती है और खबरदार करती है कि हम इन बातों में अपने साधन बरबाद न करें। इस बारे में नीतिवचन 12:11 (NHT) जो कहता है, उस पर गौर कीजिए: “जो अपनी भूमि को जोतता है, उसके पास बहुतायत से भोजन होता है, परन्तु जो निरर्थक बातों के पीछे पड़ा रहता है, वह निर्बुद्धि है।” यह नीतिवचन आज कैसे लागू होता है, यह समझना कोई मुश्किल बात नहीं। अगर एक इंसान अपने परिवार का पेट पालने के लिए वक्त बिताता है और कड़ी मेहनत करता है, तो लाज़िमी है कि वह और उसका परिवार काफी हद तक सुरक्षित महसूस करेंगे। (1 तीमु. 5:8) लेकिन अगर वह निरर्थक बातों के पीछे भागने में अपने साधन बरबाद करता है, तो वह दिखाता है कि वह निर्बुद्धि है। यानी, वह नासमझ है और उसमें सही प्रेरणा की कमी है। ज़ाहिर है कि ऐसे इंसान के घर में हमेशा बुनियादी चीज़ों की घटी रहेगी।
3. बाइबल ने निरर्थक बातों के बारे में जो चेतावनी दी, वह उपासना में कैसे लागू होती है?
3 लेकिन तब क्या जब इस नीतिवचन में दिए सिद्धांत को उपासना में लागू किया जाता है? इस नीतिवचन के मुताबिक, जब एक मसीही पूरी लगन और वफादारी के साथ यहोवा की सेवा करता है, तो उसे सच्ची सुरक्षा मिलती है। उसका इस बात पर यकीन बढ़ता है कि आज, उस पर परमेश्वर की आशीष है। साथ ही, भविष्य की उसकी आशा भी पक्की होती है। (मत्ती 6:33; 1 तीमु. 4:10) मगर दूसरी तरफ, जो मसीही निरर्थक बातों के पीछे भागता है, वह यहोवा के साथ अपने रिश्ते और हमेशा की ज़िंदगी की आशा को खतरे में डालता है। हम इस खतरे से कैसे बच सकते हैं? हमें पहले खुद की जाँच करनी चाहिए कि हमारी ज़िंदगी में कौन-सी बातें “निरर्थक” हैं और फिर उन्हें ठुकराने का हमें पक्का इरादा करना चाहिए।—तीतुस 2:11, 12 पढ़िए।
4. मोटे तौर पर निरर्थक बातें क्या हैं?
4 तो फिर, निरर्थक बातें क्या हैं? मोटे तौर पर कहा जाए तो निरर्थक बातें वे हैं, जो तन-मन से यहोवा की सेवा करने में आड़े आ सकती हैं। जैसे कि मन-बहलाव के अलग-अलग तरीके। यह सच है कि हद में रहकर मन-बहलाव करना फायदेमंद है। लेकिन अगर हम “मौज-मस्ती” करने में ही डूब जाएँ और उपासना से जुड़े कामों को नज़रअंदाज़ कर दें, तो यह मन-बहलाव एक निरर्थक बात बन जाता है। नतीजा, इसका हमारी आध्यात्मिक सेहत पर बहुत ही बुरा असर होता है। (सभो. 2:24; 4:6) इसलिए एक मसीही को चाहिए कि वह संतुलन बनाए रखना सीखे। उसे इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने बेशकीमती वक्त का कैसे इस्तेमाल करता है। इस बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “वक्त को बहुमूल्य जान कर बाहरवालों के साथ होशियारी से काम करो।” (कुलुस्सियों 4:5, हिन्दुस्तानी बाइबल) लेकिन ऐसी भी कुछ निरर्थक बातें हैं, जो मन-बहलाव से भी कहीं ज़्यादा खतरनाक हैं। इनमें से एक है, झूठे देवता।
निकम्मे देवताओं को ठुकराइए
5. बाइबल में शब्द ‘निरर्थक’ ज़्यादातर किसके लिए इस्तेमाल किया गया है?
5 दिलचस्पी की बात है कि बाइबल के मूल इब्रानी पाठ में, शब्द “निरर्थक” या ‘निकम्मा’ ज़्यादातर झूठे देवताओं के लिए इस्तेमाल किया गया है। उदाहरण के लिए, यहोवा ने इस्राएलियों से कहा: “तुम अपने लिये मूरतें [“निकम्मे देवता,” NW] न बनाना, और न कोई खुदी हुई मूर्ति वा लाट अपने लिये खड़ी करना, और न अपने देश में दण्डवत् करने के लिये नक्काशीदार पत्थर स्थापन करना।” (लैव्य. 26:1) राजा दाऊद ने लिखा: “यहोवा महान और स्तुति के अति योग्य है, वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है। क्योंकि देश देश के सब देवता मूर्तियाँ [“निकम्मे देवता,” NW] ही हैं; परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है।”—1 इति. 16:25, 26.
6. झूठे देवताओं को निकम्मा क्यों कहा जाता है?
6 जैसे कि दाऊद ने बताया, यहोवा की महानता के सबूत हमारे चारों तरफ मौजूद हैं। (भज. 139:14; 148:1-10) यहोवा ने इस्राएलियों के साथ एक वाचा बाँधकर उनके साथ एक खास रिश्ता जोड़ा। यह इस्राएलियों के लिए क्या ही सम्मान की बात थी! मगर उन्होंने यहोवा से मुँह मोड़कर और खुदी हुई मूरतों और लाटों के आगे दण्डवत् करके बड़ी मूर्खता का काम किया। क्यों? क्योंकि ये झूठे देवता, मुसीबत के वक्त अपने उपासकों को बचाना तो दूर, वे खुद को भी नहीं बचा सके। वे वाकई निकम्मे साबित हुए!—न्यायि. 10:14, 15; यशा. 46:5-7.
7, 8. “धन” किस मायने में हमारे लिए देवता बन सकता है?
7 आज भी कई देशों में लोग, इंसान की बनायी मूरतों के आगे सिजदा करते हैं। मगर ये देवता भी उतने ही निकम्मे हैं, जितने कि पहले के देवता हुआ करते थे। (1 यूह. 5:21) लेकिन बाइबल, मूरतों के अलावा और भी दूसरी चीज़ों को देवता कहती है। मिसाल के लिए, यीशु की कही इस बात पर गौर कीजिए: “कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा, वा एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा; ‘तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।’ ”—मत्ती 6:24.
8 “धन” किस मायने में हमारे लिए देवता बन सकता है? इस बात को समझने के लिए आइए एक मिसाल लें। प्राचीन इस्राएल के एक खेत में पड़ा एक पत्थर, घर या दीवार बनाने के काम आ सकता था। लेकिन अगर उसी पत्थर के आगे “दण्डवत्” किया जाता, तो यह यहोवा के लोगों के लिए ठोकर का कारण बन सकता था। (लैव्य. 26:1) उसी तरह, पैसे की अपनी एक जगह है। दुनिया में जीने के लिए हमें इसकी ज़रूरत है। यहाँ तक कि हम यहोवा की सेवा में भी इसका अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं। (सभो. 7:12; लूका 16:9) लेकिन अगर हम धन-दौलत कमाने को मसीही सेवा से ज़्यादा अहमियत देने लगें, तो यह हमारे लिए देवता बन सकता है। (1 तीमुथियुस 6:9, 10 पढ़िए।) इस दुनिया में जहाँ लोगों के लिए पैसा ही सबकुछ है, वहाँ हमें इस मामले में सही नज़रिया बनाए रखने की ज़रूरत है।—1 तीमु. 6:17-19.
9, 10. (क) शिक्षा के बारे में मसीहियों का क्या नज़रिया है? (ख) ऊँची शिक्षा हासिल करने से क्या नुकसान हो सकते हैं?
9 एक और ज़रूरी चीज़ है, जो हमारे लिए निरर्थक बन सकती है। वह है शिक्षा। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे पढ़-लिख लें, ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। उससे भी बढ़कर, एक पढ़ा-लिखा मसीही अच्छी तरह और समझ के साथ बाइबल पढ़ सकता है, साथ ही समस्याएँ आने पर वह बाइबल के सिद्धांतों के बारे खोजबीन कर सकता है और फिर सही नतीजे पर पहुँच सकता है। इतना ही नहीं, वह साफ और असरदार तरीके से बाइबल सच्चाइयाँ सिखा सकता है। अच्छी शिक्षा हासिल करने में वक्त ज़रूर लगता है, मगर वह वक्त बरबाद नहीं जाता।
10 मगर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दी जानेवाली ऊँची शिक्षा के बारे में क्या? दुनिया-भर में लोगों का मानना है कि ऊँची शिक्षा, कामयाबी के लिए बेहद ज़रूरी है। मगर जिन लोगों ने यह शिक्षा हासिल की है, उनमें से कइयों ने अपने मन को ऐसी दुनियावी बातों से भर लिया है, जो नुकसानदेह हैं। यही नहीं, एक जवान अपनी जवानी के जो अनमोल साल, यहोवा की सेवा में बिता सकता है, वही साल वह ऊँची शिक्षा हासिल करने में बरबाद कर देता है। (सभो. 12:1) इसलिए यह कोई हैरानी की बात नहीं कि जिन देशों में कई लोगों ने ऐसी शिक्षा हासिल की है, वहाँ परमेश्वर पर आस्था रखनेवालों की गिनती घटती जा रही है। मगर मसीही नहीं मानते कि ऊँची शिक्षा हासिल करने से उनका भविष्य सुरक्षित होगा। इसके बजाय, वे सच्ची सुरक्षा के लिए यहोवा पर भरोसा रखते हैं।—नीति. 3:5.
अपनी शारीरिक इच्छाओं को ईश्वर बनने मत दीजिए
11, 12. पौलुस ने कुछ लोगों के बारे में ऐसा क्यों कहा कि “उन का ईश्वर पेट है”?
11 एक और चीज़ है, जो हमारे लिए ईश्वर बन सकती है। प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को लिखी अपनी पत्री में इसका ज़िक्र किया था। उसने ऐसे लोगों के बारे में बात करते वक्त, जो पहले मसीही रह चुके थे, कहा: “बहुतेरे ऐसी चाल चलते हैं, जिन की चर्चा मैं ने तुम से बार बार किया है, और अब भी रो रोकर कहता हूं, कि वे अपनी चालचलन से मसीह के क्रूस के बैरी हैं। उन का अन्त विनाश है, उन का ईश्वर पेट है, . . . और [वे] पृथ्वी की वस्तुओं पर मन लगाए रहते हैं।” (फिलि. 3:18, 19) एक इंसान का पेट किस मायने में उसके लिए ईश्वर बन सकता है?
12 ऐसा मालूम होता है कि पौलुस ने जिन मसीहियों का ज़िक्र किया था, वे उसके साथ यहोवा की सेवा करने के बजाय अपनी शारीरिक इच्छाओं को पूरा करने को ज़्यादा अहमियत दे रहे थे। उनमें से कुछ तो शायद सचमुच में इस हद तक खाने-पीने में मसरूफ हो गए थे कि वे पेटू और पियक्कड़ बन गए। (नीति. 23:20, 21. व्यवस्थाविवरण 21:18-21 से तुलना कीजिए।) दूसरे शायद उस ज़माने के मनोरंजन में पूरी तरह डूब गए थे और इस तरह, वे यहोवा की सेवा करने से भटक गए। ऐसा हो कि दुनिया जिसे आराम की ज़िंदगी कहती है, वैसी ज़िंदगी जीने की ख्वाहिश हम कभी खुद पर हावी न होने दें। वरना हम तन-मन से यहोवा की सेवा करने में धीमे पड़ सकते हैं।—कुलु. 3:23, 24.
13. (क) लोभ क्या है, और पौलुस ने इसके बारे में क्या कहा? (ख) हम लोभ से कैसे दूर रह सकते हैं?
13 पौलुस ने झूठी उपासना के एक और पहलू का ज़िक्र किया। उसने लिखा: “इसलिये अपने उन अंगों को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्त्ति पूजा के बराबर है।” (कुलु. 3:5) लोभ का मतलब है, किसी ऐसी चीज़ को पाने की ज़बरदस्त इच्छा होना जो हमारी नहीं है। जैसे, गाड़ी, बँगला, धन-दौलत वगैरह। इसमें गलत लैंगिक इच्छाएँ भी शामिल हो सकती हैं। (निर्ग. 20:17) क्या यह एक गंभीर बात नहीं कि ऐसी इच्छाएँ रखना, मूर्तिपूजा या झूठे देवता की उपासना करने के बराबर है? इन बुरी इच्छाओं पर हर हाल में काबू पाना कितना ज़रूरी है, यह बताने के लिए यीशु ने क्या ही जीती-जागती तसवीर पेश की!—मरकुस 9:47 पढ़िए; 1 यूह. 2:16.
खोखले शब्दों से खबरदार
14, 15. (क) कौन-सी “व्यर्थ” बातें यिर्मयाह के दिनों के लोगों की बरबादी का सबब बनीं? (ख) मूसा के शब्द क्यों अनमोल थे?
14 निरर्थक बातों में खोखले शब्द भी शामिल हो सकते हैं। मिसाल के लिए, यहोवा ने यिर्मयाह से कहा: “ये भविष्यद्वक्ता मेरा नाम लेकर झूठी भविष्यद्वाणी करते हैं, मैं ने उनको न तो भेजा और न कुछ आज्ञा दी और न उन से कोई भी बात कही। वे तुम लोगों से दर्शन का झूठा दावा करके अपने ही मन से व्यर्थ और धोखे की भविष्यद्वाणी करते हैं।” (यिर्म. 14:14) उन झूठे भविष्यवक्ताओं ने यहोवा के नाम से बात करने का दावा किया। मगर असल में वे अपने ही विचार और अपनी बुद्धि की बातें फैला रहे थे। इसलिए उनके शब्द “व्यर्थ,” बेमायने और परमेश्वर के लोगों के लिए खतरनाक थे। सामान्य युग पूर्व 607 में जिन लोगों ने इन खोखले शब्दों पर ध्यान दिया, उनमें से कई बाबुल के सैनिकों के हाथों बेवक्त मौत मारे गए।
15 झूठे भविष्यवक्ताओं के बिलकुल उलट, मूसा ने इस्राएलियों से कहा: “जो शब्द मैं आज गम्भीर साक्षी के रूप में तुमसे कह रहा हूं, उन्हें अपने हृदय में बैठा लो, . . . क्योंकि व्यवस्था के ये शब्द खोखले नहीं हैं, वरन् ये तुम्हारा जीवन है। इन शब्दों के अनुसार कार्य करने से तुम्हारी आयु उस देश में लम्बी होगी, जहाँ तुम यरदन नदी को पार कर अधिकार करने के लिए जा रहे हो।” (व्यव. 32:46, 47, नयी हिन्दी बाइबिल) जी हाँ, मूसा ने ये शब्द परमेश्वर की प्रेरणा से कहे थे। इसलिए वे अनमोल थे और इस्राएल जाति की खैरियत के लिए बेहद ज़रूरी थे। जिन लोगों ने इन शब्दों पर ध्यान दिया, उन्होंने लंबी उम्र और खुशहाली का लुत्फ उठाया। आइए हम भी हमेशा खोखले शब्दों से दूर रहें और सच्चाई के अनमोल शब्दों को सँजोए रखें।
16. परमेश्वर के वचन की शिक्षाओं के उलट वैज्ञानिक जो दावा करते हैं, उसे हम किस नज़र से देखते हैं?
16 क्या आज हमें खोखले शब्द सुनने को मिलते हैं? बेशक। जैसे, कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि विकासवाद की शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में वैज्ञानिकों की खोज से साबित हुआ है कि परमेश्वर पर विश्वास करने की अब कोई ज़रूरत नहीं। और यह भी कि दुनिया में जो कुछ होता है, उसे कुदरती प्रक्रियाओं के ज़रिए समझाया जा सकता है। क्या वैज्ञानिकों के इस दावे से हमें परेशान होना चाहिए? बिलकुल नहीं! क्योंकि इंसान की बुद्धि और परमेश्वर की बुद्धि में ज़मीन-आसमान का फर्क है। (1 कुरि. 2:6, 7) और हम जानते हैं कि जब इंसान की शिक्षा, परमेश्वर की शिक्षा के खिलाफ जाती है, तो हमेशा इंसान की शिक्षा गलत ठहरती है। (रोमियों 3:4 पढ़िए।) हालाँकि विज्ञान ने कुछ क्षेत्र में तरक्की की है, मगर इंसान की बुद्धि के सिलसिले में बाइबल की यह बात सच साबित हुई है: “इस संसार का ज्ञान परमेश्वर के निकट मूर्खता है।” परमेश्वर की अपार बुद्धि के मुकाबले इंसानी सोच-विचार बेकार है।—1 कुरि. 3:18-20.
17. ईसाईजगत के धर्म-गुरुओं और धर्म-त्यागियों के मुँह से निकलनेवाले शब्दों के बारे में क्या कहा जा सकता है?
17 खोखले शब्दों का इस्तेमाल करनेवालों की एक और मिसाल है ईसाईजगत के धर्म-गुरु। ये धर्म-गुरु परमेश्वर के नाम से सिखाने का दम भरते हैं। मगर उनकी ज़्यादातर शिक्षाएँ बाइबल से नहीं होतीं और वे अकसर बेसिर-पैर की बातें करते हैं। उनके अलावा, धर्म-त्यागी भी खोखले शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। वे बड़ी हेकड़ी के साथ कहते हैं कि वे “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” से ज़्यादा अक्लमंद हैं। (मत्ती 24:45-47) मगर वे परमेश्वर की नहीं, बल्कि अपनी ही शिक्षाएँ फैलाते हैं और उनकी बातें बेमतलब की होती हैं। इसलिए जो कोई उनकी बातों पर कान लगाता है, वह ठोकर खाता है। (लूका 17:1, 2) हम उनके बहकावे में आने से कैसे बच सकते हैं?
खोखले शब्दों को कैसे ठुकराएँ
18. हम किन तरीकों से 1 यूहन्ना 4:1 में दी सलाह को लागू कर सकते हैं?
18 इस मामले में बुज़ुर्ग प्रेरित यूहन्ना ने एक बढ़िया सलाह दी: “हरेक आध्यात्मिक संदेश पर यकीन मत करो, बल्कि आध्यात्मिक संदेशों को परखो कि वे परमेश्वर की तरफ से हैं या नहीं।” (1 यूहन्ना 4:1, NW) इस सलाह के मुताबिक, हम प्रचार में मिलनेवाले सभी लोगों को यह परखने का बढ़ावा देते हैं कि उन्हें जो सिखाया गया है, वह बाइबल की शिक्षाओं से मेल खाता है या नहीं। यही सिद्धांत हम पर भी लागू होता है। जब कोई सच्चाई के खिलाफ कुछ कहता है, या फिर कलीसिया, प्राचीन या हमारे किसी भाई के बारे में झूठी बातें फैलाकर उसे बदनाम करता है, तो हम उसकी बात को सीधे-सीधे कबूल नहीं करते। इसके बजाय, हम खुद से पूछते हैं: “जो व्यक्ति ये अफवाहें फैला रहा है, क्या वह बाइबल की शिक्षा के मुताबिक काम करता है? क्या उसकी अफवाहों या इलज़ामों से परमेश्वर के मकसद को बढ़ावा मिलता है? क्या इनसे कलीसिया की शांति बढ़ती है?” हमें याद रखना चाहिए कि कोई भी बात, जो भाईचारे की एकता को मज़बूत करने के बजाय उसे तोड़ती है, वह बेमतलब की है।
19. प्राचीन इस बात का ध्यान कैसे रख सकते हैं कि उनके शब्द खोखले न हों?
19 जब खोखले शब्दों की बात आती है, तो प्राचीनों को भी एक अहम बात का ध्यान रखना चाहिए। उन्हें जब भी किसी को सलाह देने की ज़रूरत पड़ती है, तो उन्हें याद रखना चाहिए कि उनकी कुछ हदें हैं और उन्हें अपनी समझ या तजुरबे से सलाह नहीं देनी चाहिए। इसके बजाय, उन्हें हमेशा बाइबल का इस्तेमाल करना चाहिए। इस मामले एक सही उसूल, प्रेरित पौलुस के इन शब्दों में पाया जाता है: “उन बातों से जो लिखी गयी हैं, आगे न बढ़ो।” (1 कुरि. 4:6, NHT) प्राचीन, बाइबल में लिखी गयी बातों से हटकर कुछ नहीं सिखाते। यहाँ तक कि विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास के ज़रिए तैयार किए गए साहित्यों में, बाइबल की जो सलाहें दी गयी हैं, उनसे भी वे अलग कुछ नहीं सिखाते।
20. निरर्थक बातों को ठुकराने के लिए हमें कैसे मदद मिल सकती है?
20 वाकई, निरर्थक बातें बहुत खतरनाक हैं, फिर चाहे वे “देवता” हों, शब्द हों या कुछ और। इसलिए हम हमेशा यहोवा से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें निरर्थक बातों को पहचानने में मदद दे और उन्हें ठुकराने का मार्गदर्शन भी दे। जब हम ऐसा करते हैं, तो एक तरह से हम भजनहार के शब्द दोहराते हैं: “मेरी आंखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपने मार्ग में मुझे जिला।” (भज. 119:37) अगले लेख में हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि यहोवा से मिलनेवाले मार्गदर्शन को कबूल करना कितना ज़रूरी है।
क्या आप समझा सकते हैं?
• मोटे तौर पर “निरर्थक बातें” क्या हैं, जिनको हमें ठुकराना चाहिए?
• पैसा हमारा ईश्वर न बने, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?
• शारीरिक इच्छाओं को पूरा करना, किस मायने में मूर्तिपूजा के बराबर है?
• हम खोखले शब्दों को कैसे ठुकरा सकते हैं?
[पेज 3 पर तसवीर]
इस्राएलियों को ‘अपनी भूमि जोतने’ का बढ़ावा दिया गया था, ना कि निरर्थक बातों के पीछे भागने का
[पेज 5 पर तसवीर]
धन-दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ें पाने की ख्वाहिश को कभी अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए, वरना आप यहोवा की सेवा में धीमे पड़ सकते हैं
[पेज 6 पर तसवीर]
प्राचीनों की सलाहें बहुत अनमोल साबित हो सकती हैं