अध्ययन लेख 26
यहोवा के दिन के लिए तैयार रहिए
“यहोवा का दिन ठीक वैसे ही आ रहा है जैसे रात को चोर आता है।”—1 थिस्स. 5:2.
गीत 143 यहोवा के दिन की राह देखते रहें
एक झलकa
1. अगर हम यहोवा के दिन बचना चाहते हैं, तो हमें क्या करना होगा?
बाइबल में कई बार ‘यहोवा के दिन’ की बात की गयी है। इस दिन का मतलब वह समय है जब यहोवा अपने दुश्मनों का नाश करता है और अपने लोगों को बचाता है। बीते समय में कई बार यहोवा ने अपने दुश्मनों का नाश किया। (यशा. 13:1, 6; यहे. 13:5; सप. 1:8) हमारे समय में “यहोवा का दिन” तब शुरू होगा, जब महानगरी बैबिलोन पर हमला किया जाएगा और यह हर-मगिदोन के युद्ध से खत्म होगा। अगर हम उस “दिन” बचना चाहते हैं, तो हमें अभी से खुद को तैयार करना होगा। इस दिन के बारे में यीशु ने भी अपने चेलों को बताया था। गौर कीजिए कि उसने यह नहीं कहा, “महा-संकट” के लिए तैयार हो जाओ, बल्कि उसने कहा इसके लिए “तैयार रहो।” इसका मतलब, हमें उस दिन के लिए हमेशा तैयार रहना है।—मत्ती 24:21; लूका 12:40.
2. पौलुस ने थिस्सलुनीके के मसीहियों को जो पहली चिट्ठी लिखी, उस पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?
2 प्रेषित पौलुस ने थिस्सलुनीके के मसीहियों को जो पहली चिट्ठी लिखी, उसमें उसने यहोवा के महान दिन के बारे में बताया। उसने कई उदाहरण देकर समझाया कि उन्हें उस दिन के लिए कैसे तैयार रहना है। पौलुस जानता था कि वह दिन उसी वक्त नहीं आएगा। (2 थिस्स. 2:1-3) फिर भी उसने अपने भाइयों से गुज़ारिश की कि वे उस दिन के लिए ऐसे तैयार रहें मानो वह कल ही आ रहा हो। उसने उनसे जो कहा, उससे आज हम भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। आइए गौर करें कि आगे बतायी तीन बातों के बारे में उसने अपनी चिट्ठी में क्या समझाया: (1) यहोवा का दिन कैसे आएगा? (2) उस दिन कौन लोग नहीं बच पाएँगे? और (3) उस दिन के लिए हम कैसे तैयार रह सकते हैं?
यहोवा का दिन कैसे आएगा?
3. यह क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा का दिन ऐसे आएगा जैसे रात को चोर आता है? (तसवीर भी देखें।)
3 “जैसे रात को चोर आता है।” (1 थिस्स. 5:2) पौलुस ने यहोवा के दिन के बारे में समझाने के लिए जो तीन उदाहरण दिए, यह उनमें से पहला है। चोर अकसर रात के अंधेरे में आता है जब लोगों को उसके आने की उम्मीद नहीं होती और वह बड़ी तेज़ी से अपना काम करता है। यहोवा का दिन भी अचानक आएगा और जब यह आएगा, तो बहुत-से लोग हैरान रह जाएँगे। उस समय जिस तरह तेज़ी से घटनाएँ घटेंगी, वह देखकर शायद सच्चे मसीही भी हैरान रह जाएँ। पर उस दिन सिर्फ दुष्टों का नाश होगा, यहोवा के लोग बचाए जाएँगे।
4. यहोवा का दिन किस तरह गर्भवती औरत को उठनेवाली प्रसव-पीड़ा की तरह है?
4 “जैसे एक गर्भवती औरत को अचानक प्रसव-पीड़ा उठने लगती है।” (1 थिस्स. 5:3) एक गर्भवती औरत को यह नहीं पता होता कि ठीक किस वक्त उसे दर्द उठेगा, पर वह जानती है कि ऐसा होगा ज़रूर। और एक दिन अचानक उसे दर्द उठने लगता है। यह दर्द बहुत तेज़ होता है और इसे रोका नहीं जा सकता। उसी तरह, हम यह तो नहीं जानते कि किस दिन और किस वक्त यहोवा का दिन शुरू होगा, पर हम यह जानते हैं कि यह आएगा ज़रूर। और जब आएगा, तो अचानक आएगा और दुष्ट इससे बच नहीं पाएँगे।
5. महा-संकट किस तरह दिन के उजाले की तरह है?
5 दिन के उजाले की तरह। पौलुस ने जो तीसरा उदाहरण दिया, उसमें भी उसने चोरों का ज़िक्र किया। पर ऐसा मालूम पड़ता है कि इस बार उसने यहोवा के दिन की तुलना दिन के उजाले से की। (1 थिस्स. 5:4) जो लोग रात के अंधेरे में चोरी करने आते हैं, कई बार वे सामान चुराने में इस कदर डूब जाते हैं कि उन्हें वक्त का पता ही नहीं चलता। देखते-ही-देखते दिन निकल आता है और वे अचानक पकड़े जाते हैं। चोरों की तरह आज भी कुछ लोग बुरे कामों में लगे रहते हैं और इस तरह वे मानो अंधेरे में रहते हैं। लेकिन जब महा-संकट आएगा, तो उनका परदाफाश हो जाएगा। पर हम यहोवा के दिन के लिए तैयार रहना चाहते हैं। तो आइए हम ऐसे कामों से दूर रहें जो यहोवा को पसंद नहीं हैं। इसके बजाय, “हर तरह की भलाई” और “नेकी” के कामों में लगे रहें और “सच्चाई” की राह पर चलते रहें। (इफि. 5:8-12) प्रेषित पौलुस ने इसी सिलसिले में दो और उदाहरण दिए, जिनमें उसने बताया कि कौन लोग यहोवा के दिन नहीं बचेंगे।
यहोवा के दिन कौन लोग नहीं बच पाएँगे?
6. आज ज़्यादातर लोग किस मायने में सो रहे हैं? (1 थिस्सलुनीकियों 5:6, 7)
6 “जो सोते हैं।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:6, 7 पढ़िए।) यहोवा के दिन जो लोग नहीं बच पाएँगे, उनकी तुलना पौलुस ने उन लोगों से की जो सो हो रहे हैं। उन्हें वक्त का पता ही नहीं चलता और ना ही यह पता चलता है कि उनके आस-पास क्या हो रहा है। इसलिए जब कोई अहम घटना घटती है, तो उन्हें इसका एहसास ही नहीं होता और वे इस बारे में कुछ नहीं कर पाते। आज ज़्यादातर लोग एक तरह से सो रहे हैं। (रोमि. 11:8) दुनिया में जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर भी उन्हें एहसास नहीं होता कि हम “आखिरी दिनों” में जी रहे हैं और महा-संकट बहुत जल्द आनेवाला है। लेकिन जब दुनिया में बड़ी-बड़ी घटनाएँ होती हैं, तो शायद ऐसे लोग जाग जाएँ और राज के संदेश में थोड़ी-बहुत दिलचस्पी लें। पर उनमें से ज़्यादातर लोग कोई कदम नहीं उठाते और इस तरह वे फिर से सो जाते हैं। वहीं कुछ लोग यह तो मानते हैं कि परमेश्वर एक-न-एक दिन दुष्टों को सज़ा देगा, पर उन्हें लगता है कि वह दिन बहुत दूर है। (2 पत. 3:3, 4) लेकिन हम जानते हैं कि जैसे-जैसे दिन गुज़र रहे हैं, हमारे लिए यह और भी ज़रूरी होता जा रहा है कि हम बाइबल में दी सलाह मानें और जागते रहें।
7. परमेश्वर जिन लोगों का नाश करेगा, वे कैसे उन लोगों की तरह हैं जो पीकर धुत्त हो जाते हैं?
7 “जो पीकर धुत्त होते हैं।” परमेश्वर जिन लोगों का नाश करेगा, पौलुस ने उनकी तुलना पियक्कड़ लोगों से की। जो लोग शराब के नशे में होते हैं, वे तुरंत कोई कदम नहीं उठा पाते और ठीक से फैसले भी नहीं कर पाते। उसी तरह, दुष्ट लोग परमेश्वर से मिलनेवाली चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं देते। वे ऐसी ज़िंदगी जीते हैं जो उन्हें विनाश की तरफ ले जाती है। लेकिन मसीहियों से कहा गया है कि वे अपने होश-हवास बनाए रखें। (1 थिस्स. 5:6) बाइबल के एक विद्वान ने बताया कि होश-हवास बनाए रखने का मतलब है, ‘शांत रहना, किसी मामले के बारे में रुककर थोड़ा सोचना, ताकि हम सही फैसला ले सकें।’ हमें क्यों शांत रहना चाहिए और थोड़ा रुककर सोचना चाहिए? ताकि हम किसी भी तरह के राजनैतिक या सामाजिक मामलों में ना पड़ें। जैसे-जैसे यहोवा का दिन करीब आ रहा है, इन मामलों में किसी-न-किसी का पक्ष लेने का दबाव और भी बढ़ता जाएगा। पर उस वक्त हम क्या करेंगे, यह सोचकर हमें घबराने की ज़रूरत नहीं है। परमेश्वर की पवित्र शक्ति की मदद से हमारा मन शांत रह पाएगा और हम ठीक से सोच पाएँगे और सही फैसले कर पाएँगे।—लूका 12:11, 12.
यहोवा के दिन के लिए कैसे तैयार रहें?
8. 1 थिस्सलुनीकियों 5:8 में दिया उदाहरण देकर बताइए कि हम किस तरह सतर्क रह सकते हैं और होश-हवास बनाए रख सकते हैं। (तसवीर भी देखें।)
8 “कवच और . . . टोप पहने रहें।” पौलुस ने मसीहियों की तुलना सैनिकों से की जो सतर्क रहते हैं और युद्ध के लिए तैयार रहते हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 5:8 पढ़िए।) एक सैनिक को हर वक्त युद्ध के लिए तैयार रहना होता है। उसी तरह हमें भी यहोवा के दिन के लिए हमेशा तैयार रहना है। हम विश्वास और प्यार का कवच और आशा का टोप पहनकर ऐसा कर सकते हैं। आइए देखें कि विश्वास, प्यार और आशा होने से हमें कैसे मदद मिल सकती है।
9. विश्वास होने से कैसे हमारी हिफाज़त होती है?
9 कवच पहनने से एक सैनिक के दिल की हिफाज़त होती है। उसी तरह विश्वास और प्यार होने से हमारे दिल की हिफाज़त होगी। हम यहोवा की सेवा करते रह पाएँगे और यीशु के नक्शे-कदम पर चल पाएँगे। विश्वास होने से हमें इस बात का यकीन होता है कि अगर हम पूरे दिल से यहोवा की सेवा करें, तो वह हमें इनाम देगा। (इब्रा. 11:6) विश्वास होने से हम अपने अगुवे यीशु के वफादार भी रह पाएँगे, फिर चाहे हमें मुश्किलें क्यों ना उठानी पड़ें। हम अपना विश्वास कैसे बढ़ा सकते हैं, ताकि हम मुश्किलों का सामना कर पाएँ? हम आज के ज़माने के उन भाई-बहनों के उदाहरणों पर गौर कर सकते हैं, जो ज़ुल्मों या तंगी के बावजूद यहोवा के वफादार रहे। हम उन भाई-बहनों के उदाहरणों पर भी ध्यान दे सकते हैं, जिन्होंने अपना जीवन सादा रखा और परमेश्वर के राज को ज़िंदगी में पहली जगह दी। ऐसा करने से हम धन-दौलत के पीछे नहीं भागेंगे।b
10. परमेश्वर और लोगों से प्यार करने की वजह से किस तरह हम हिम्मत नहीं हारते?
10 जागते रहने और अपने होश-हवास बनाए रखने के लिए प्यार होना भी ज़रूरी है। (मत्ती 22:37-39) कई बार प्रचार करने की वजह से हमें मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है। लेकिन हम परमेश्वर से प्यार करते हैं, इसलिए हिम्मत नहीं हारते, बल्कि प्रचार काम में लगे रहते हैं। (2 तीमु. 1:7, 8) हम अपने ‘पड़ोसियों’ से भी प्यार करते हैं, इस वजह से हम अपने इलाके में लोगों को प्रचार करना नहीं छोड़ते। हम खत लिखकर और फोन के ज़रिए भी गवाही देते हैं। हम यह उम्मीद नहीं छोड़ते कि एक दिन वे बदलेंगे और सही काम करने लगेंगे।—यहे. 18:27, 28.
11. भाई-बहनों से प्यार होने की वजह से हम क्या कर पाते हैं? (1 थिस्सलुनीकियों 5:11)
11 हमारे भाई-बहन भी हमारे पड़ोसी हैं, हमें उनसे भी प्यार करना चाहिए। हम ‘एक-दूसरे का हौसला बढ़ाकर और एक-दूसरे को मज़बूत करके’ अपना प्यार ज़ाहिर कर सकते हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 5:11 पढ़िए।) कंधे-से-कंधा मिलाकर युद्ध कर रहे सैनिकों की तरह हम भी एक-दूसरे की हिम्मत बँधा सकते हैं। लेकिन कई बार युद्ध लड़ते वक्त सैनिक एक-दूसरे को चोट पहुँचा देते हैं। पर वे कभी-भी जानबूझकर ऐसा नहीं करते। उसी तरह हम भी कभी जानबूझकर भाई-बहनों को चोट नहीं पहुँचाते, ना ही बुराई का बदला बुराई से देते हैं। (1 थिस्स. 5:13, 15) अपना प्यार ज़ाहिर करने का एक और तरीका है, उन भाइयों का आदर करना जो मंडली में अगुवाई करते हैं। (1 थिस्स. 5:12) जब पौलुस ने थिस्सलुनीके की मंडली को अपनी पहली चिट्ठी लिखी, तो उस मंडली को बने साल-भर भी नहीं हुआ था। तो ज़ाहिर-सी बात है कि वहाँ अगुवाई करनेवाले भाइयों को ज़्यादा अनुभव नहीं रहा होगा। शायद उनसे कुछ गलतियाँ भी हुई हों। फिर भी वे जो कड़ी मेहनत कर रहे थे, उसके लिए भाई-बहनों को उनका आदर करना था। इससे हम क्या सीखते हैं? हमें भी मंडली के प्राचीनों से प्यार करना चाहिए और उनका आदर करना चाहिए। जैसे-जैसे महा-संकट नज़दीक आएगा, शायद विश्व-मुख्यालय या शाखा दफ्तर के भाइयों से हमारा संपर्क ना हो पाए। हो सकता है, हमें हिदायतों के लिए प्राचीनों पर और भी ज़्यादा निर्भर रहना पड़े। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम अभी से उनसे प्यार करें और उनका आदर करें। आगे चलकर हालात चाहे जैसे भी हों, आइए हम अपने होश-हवास बनाए रखें। आइए हम प्राचीनों की कमियों पर ध्यान ना दें, बल्कि इस बात पर ध्यान दें कि उन्हें जो ज़िम्मेदारी दी गयी है, वह यहोवा ने उन्हें दी है और वह यीशु के ज़रिए उनका मार्गदर्शन कर रहा है।
12. आशा होने की वजह से हमारी सोच की हिफाज़त कैसे होती है?
12 जिस तरह टोप या हेलमेट पहनने से एक सैनिक के सिर की हिफाज़त होती है, उसी तरह अपने उद्धार की आशा पर ध्यान लगाने से हमारी सोच की हिफाज़त होती है। हमारी आशा एकदम पक्की है। इसलिए हम जानते हैं कि यह दुनिया चाहे जो भी देने का वादा करे, वह सब बेकार है। (फिलि. 3:8) आशा होने की वजह से हमारा मन शांत रह पाता है और हम ठीक से सोच पाते हैं। भाई वॉलेस और उनकी पत्नी लौरिंडा के साथ कुछ ऐसा ही हुआ, जो अफ्रीका में सेवा करते हैं। तीन हफ्ते के अंदर ही भाई वॉलेस के पिता की और बहन लौरिंडा की माँ की मौत हो गयी। उस वक्त कोविड-19 महामारी फैली हुई थी, इसलिए उस दुख की घड़ी में वे अपने परिवारवालों के पास भी नहीं जा पाए। भाई वॉलेस ने लिखा, ‘हमें आशा है कि वे दोबारा ज़िंदा हो जाएँगे। इसलिए मैं यह नहीं सोचता कि इस दुनिया में जब वे आखिरी साँसें ले रहे थे, तो उनकी हालत कैसी थी, बल्कि यह सोचता हूँ कि जब वे नयी दुनिया में फिर से साँस लेंगे तो वे कैसा महसूस करेंगे। जब मैं बहुत दुखी होता हूँ या मुझे उनकी कमी खलती है, तो इस आशा की वजह से मैं खुद को सँभाल पाता हूँ।’
13. पवित्र शक्ति पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
13 “पवित्र शक्ति की आग मत बुझाओ।” (1 थिस्स. 5:19, फु.) पौलुस ने पवित्र शक्ति की तुलना एक ऐसी आग से की जो मानो हमारे अंदर जल रही है। जब परमेश्वर हमें अपनी पवित्र शक्ति देता है, तो हम सही काम करने के लिए जोश से भर जाते हैं और तन-मन से यहोवा की सेवा करते हैं। (रोमि. 12:11) हम पवित्र शक्ति कैसे पा सकते हैं? हम इसके लिए प्रार्थना कर सकते हैं, परमेश्वर के वचन का अध्ययन कर सकते हैं और पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलनेवाले उसके संगठन से जुड़े रह सकते हैं। यह सब करने से हम “पवित्र शक्ति का फल” पैदा कर पाएँगे यानी परमेश्वर के जैसे गुण बढ़ा पाएँगे।—गला. 5:22, 23.
14. अगर हम चाहते हैं कि हमें परमेश्वर की पवित्र शक्ति मिलती रहे, तो हमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए? (तसवीर भी देखें।)
14 जब परमेश्वर हमें अपनी पवित्र शक्ति देता है, तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम ‘पवित्र शक्ति की आग बुझने ना दें।’ परमेश्वर सिर्फ उन्हीं लोगों को अपनी पवित्र शक्ति देता है जो अच्छी बातों के बारे में सोचते हैं और अपना चालचलन शुद्ध बनाए रखते हैं। अगर हम गंदी बातों के बारे में सोचते रहें और वैसे ही काम करें, तो परमेश्वर हमें अपनी पवित्र शक्ति देना बंद कर देगा। (1 थिस्स. 4:7, 8) अगर हम चाहते हैं कि हमें लगातार पवित्र शक्ति मिलती रहे, तो यह भी ज़रूरी है कि हम ‘भविष्यवाणियों को तुच्छ न समझें।’ (1 थिस्स. 5:20) यहाँ “भविष्यवाणियों” का मतलब वे बातें हैं जो परमेश्वर ने अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए लिखवायी हैं, जैसे उसके दिन के बारे में और इस बारे में कि वह दिन कितना करीब है। इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हर-मगिदोन के आने में अभी देर है या यह हमारे जीते-जी नहीं आएगा। इसके बजाय हमें यह सोचना चाहिए कि वह बहुत जल्द आनेवाला है। ऐसा हम तभी कर पाएँगे जब हम अपना चालचलन शुद्ध बनाए रखेंगे और हर दिन “परमेश्वर की भक्ति के काम” करेंगे।—2 पत. 3:11, 12.
“सब बातों को परखो”
15. अगर हम दुष्ट स्वर्गदूतों की प्रेरणा से कही गयी झूठी बातों में नहीं आना चाहते, तो हमें क्या करना होगा? (1 थिस्सलुनीकियों 5:21)
15 बहुत जल्द परमेश्वर के दुश्मन किसी-न-किसी तरह से “शांति और सुरक्षा” का ऐलान करेंगे। (1 थिस्स. 5:3) पूरी धरती दुष्ट स्वर्गदूतों की प्रेरणा से कही गयी बातों से भर जाएगी और ज़्यादातर लोग गुमराह हो जाएँगे। (प्रका. 16:13, 14) लेकिन अगर हम ‘सब बातों को परखें,’ तो हम उनकी बातों में नहीं आएँगे। (1 थिस्सलुनीकियों 5:21 पढ़िए।) इस आयत में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “परखो” किया गया है, वह तब इस्तेमाल किया जाता था जब सोने या चाँदी जैसी धातुओं को परखने की बात की जा रही होती थी। तो आज जब हम कुछ सुनते या पढ़ते हैं, तब हमें परखकर देखना चाहिए कि वह सही है या नहीं। थिस्सलुनीके के मसीहियों के लिए ऐसा करना ज़रूरी था। और जैसे-जैसे महा-संकट करीब आ रहा है, हमारे लिए ऐसा करना और भी ज़रूरी होता जा रहा है। तो दूसरे जो कहते हैं, उस पर आँख मूँदकर यकीन कर लेने के बजाय हमें सोच-समझकर काम लेना चाहिए और देखना चाहिए कि वह बाइबल के हिसाब से या यहोवा के संगठन ने जो कहा है, उसके हिसाब से सही है या नहीं। अगर हम ऐसा करें, तो हम दुष्ट स्वर्गदूतों की फैलायी बातों में नहीं आएँगे।—नीति. 14:15; 1 तीमु. 4:1.
16. हमें किस बात की पक्की आशा है और हमने क्या करने की ठान ली है?
16 एक समूह के तौर पर परमेश्वर के लोगों को महा-संकट से बचाया जाएगा। लेकिन हम यह नहीं जानते कि हममें से हरेक के साथ कल क्या होगा। (याकू. 4:14) शायद महा-संकट से पहले ही हमारी मौत हो जाए या फिर हम उससे बचकर जाएँ। पर एक बात का हम यकीन रख सकते हैं: अगर हम यहोवा के वफादार रहें, तो वह हमें हमेशा की ज़िंदगी ज़रूर देगा। अभिषिक्त मसीही स्वर्ग में मसीह के साथ राज करेंगे और दूसरी भेड़ के लोग धरती पर फिरदौस में जीएँगे। हमारी आशा चाहे जो भी हो, आइए हम उस पर ध्यान लगाए रहें और यहोवा के दिन के लिए हमेशा तैयार रहें!
गीत 150 हिफाज़त के लिए यहोवा की खोज करें
a 1 थिस्सलुनीकियों अध्याय 5 में प्रेषित पौलुस ने कई उदाहरण देकर भविष्य में आनेवाले यहोवा के दिन के बारे में बताया। यह “दिन” क्या है? और यह कैसे आएगा? इस दिन कौन बच पाएगा और कौन नहीं? उस दिन के लिए हम खुद को कैसे तैयार कर सकते हैं? इस लेख में हम पौलुस की कही बातों पर गौर करेंगे और इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे।
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