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“अधर्म के पुरुष” की पहचान करनाप्रहरीदुर्ग—1990 | सितंबर 1
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अधर्मी पुरुष का आरंभ
४. अधर्म के पुरुष का आरंभकर्ता और समर्थक कौन है?
४ इस अधर्म के पुरुष का आरंभ किसने किया और इसका पोषण कौन करता है? पौलुस जवाब देता है: “उस अधर्मी की मौजूदगी शैतान के कार्य के अनुसार सब प्रकार की झूठी सामर्थ, और चिन्ह, और अद्भुत काम के साथ, और नाश होनेवालों के लिए अधर्म के सब प्रकार के धोखे के साथ है; एक दण्ड के तौर से, क्योंकि उन्होंने सत्य के प्रेम को ग्रहण नहीं किया जिस से उन का उद्धार होता।” (२ थिस्सलुनीकियों २:९, १०, न्यू.व.) तो शैतान अधर्म के पुरुष का पिता और पोषक है। और जिस तरह शैतान, यहोवा, उसके उद्देश्यों और उसके लोगों के विरुद्ध है, उसी तरह अधर्म का पुरुष भी इनके विरुद्ध है, चाहे वह यह बात जानता है या नहीं।
५. अधर्मी और उसके अनुयायियों के लिए कैसा अंत तैयार खड़ा है?
५ “अधर्म के पुरुष” के हाँ में हाँ मिलानेवाले लोगों का अंत उसके ही जैसे होगा—विनाश: “वह अधर्मी प्रगट होगा, जिसे प्रभु यीशु . . . मार डालेगा, और अपनी मौजूदगी के प्रकटन से भस्म करेगा।” (२ थिस्सलुनीकियों २:८, न्यू.व.) अधर्म के पुरुष और उसके समर्थकों (“नाश होनेवालों”) के विनाश का समय बहुत जल्द आ जाएगा जब “प्रभु यीशु अपने सामर्थी दूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्वर्ग से प्रगट होगा। और जो परमेश्वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते, उन से पलटा लेगा। वे . . . अनन्त विनाश का दण्ड पाएँगे।”—२ थिस्सलुनीकियों १:६-९.
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“अधर्म के पुरुष” की पहचान करनाप्रहरीदुर्ग—1990 | सितंबर 1
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अधर्म के पुरुष की पहचान करना
७. हम यह निष्कर्ष क्यों निकालते हैं कि पौलुस किसी एक व्यक्ति के बारे में बात नहीं कर रहा था, और अधर्म के पुरुष का मतलब क्या है?
७ क्या पौलुस एक ही व्यक्ति के बारे में बात कर रहा था? नहीं, इसलिए कि वह कहता है कि यह “पुरुष” पौलुस के समय में प्रगट था और वह तब तक अस्तित्व में रहता जब यहोवा उसे इस व्यवस्था के अंत में नष्ट कर देता। इस प्रकार, वह कई सदियों से अस्तित्व में रहा है। प्रत्यक्षतः, कोई वास्तविक आदमी उतनी देर तक ज़िन्दा नहीं रहा है। तो “अधर्म का पुरुष,” इस अभिव्यक्ति का मतलब लोगों का एक समूह, या वर्ग ही होगा।
८. अधर्म का पुरुष कौन है, और कुछ पहचान देनेवाली विशेषताएँ क्या हैं?
८ वे कौन हैं? प्रमाण सूचित करता है कि वे ईसाईजगत् के गर्वीले, उच्चाकांक्षी पादरियों का वर्ग हैं, जिन्होंने सदियों से खुद को ही क़ानून माना है। यह इस वास्तविकता से स्पष्ट है कि ईसाईजगत् में हज़ारों अलग-अलग धर्म और संप्रदाय हैं, प्रत्येक को जिनका अपना पादरी-वर्ग है, और फिर भी जो धर्ममत या अभ्यास के किसी न किसी पहलू में एक दूसरे के परस्पर विरोधी हैं। यह अविभक्त दशा स्पष्ट सबूत है कि वे परमेश्वर के नियम का पालन नहीं करते। वे परमेश्वर की ओर से नहीं हो सकते। (मीका २:१२; मरकुस ३:२४; रोमियों १६:१७; १ कुरिन्थियों १:१० से तुलना करें।) इन धर्मों में जो बात सर्वसामान्य है, वह यह है कि वे बाइबल शिक्षाओं का पालन दृढ़ता से नहीं करते, चूँकि उन्होंने इस नियम का उल्लंघन किया है: “लिखे हुए से आगे न बढ़ना।”—१ कुरिन्थियों ४:६; मत्ती १५:३, ९, १४ भी देखें।
९. अधर्मी ने बाइबल सच्चाइयों के स्थान पर कौनसे बाइबल-विरुद्ध विश्वास सिखाए हैं?
९ इस प्रकार, यह अधर्मी एक सामूहिक व्यक्ति है: ईसाईजगत् का धार्मिक पादरी-वर्ग। ईसाईजगत् के धार्मिक पापों की ज़िम्मेदारी में उन सभी का भाग है, चाहे वे पोप हों, पादरी हों, धर्माध्यक्ष हों, या प्रोटेस्टेन्ट प्रचारक। उन्होंने परमेश्वर की सच्चाइयों के बदले में मूर्तिपूजक झूठ ग्रहण करके, मानव जीव की अमरता, नरकाग्नि, पापमोचन-स्थान, एवं त्रियेक जैसे बाइबल-विरुद्ध धर्ममत सिखाए हैं। वे उन धार्मिक अगुओं के जैसे हैं जिनके विषय में यीशु ने कहा: “तुम अपने पिता इब्लीस से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। . . . वह झूठा है और झूठ का पिता है।” (यूहन्ना ८:४४) उनके अभ्यास भी उन्हें अधर्मी होने के तौर से बेपरदा करते हैं, इसलिए कि वे ऐसे कार्यों में हिस्सा लेते हैं जिनसे परमेश्वर के नियम भंग होते हैं। ऐसों से यीशु कहता है: “हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ।”—मत्ती ७:२१-२३.
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