कलीसिया की उन्नति होती रहे
“कलीसिया को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई।”—प्रेरितों 9:31.
1. “परमेश्वर की कलीसिया” के बारे में कौन-से सवाल खड़े हो सकते हैं?
सामान्य युग 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, यहोवा ने मसीह के चेलों से बने समूह को एक नयी जाति के तौर पर कबूल किया। इस जाति को ‘परमेश्वर का इस्राएल’ नाम दिया गया। (गलतियों 6:16) बाइबल में, आत्मा से अभिषिक्त उन मसीहियों के समूह को “परमेश्वर की कलीसिया” भी कहा गया है। (1 कुरिन्थियों 11:22) लेकिन उस कलीसिया का सदस्य बनने में क्या शामिल था? उस कलीसिया को कैसे संगठित किया गया? वह कलीसिया इस धरती पर किस तरीके से काम करती थी, इसके बावजूद कि उसके सदस्य अलग-अलग इलाकों में रहते थे? और उस कलीसिया का आज हमारी ज़िंदगी और खुशियों पर क्या असर होता है?
2, 3. यीशु ने कैसे ज़ाहिर किया था कि परमेश्वर की कलीसिया में बढ़िया व्यवस्था होगी?
2 जैसा कि पिछले लेख में बताया गया था, यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि आगे चलकर अभिषिक्त चेलों से बनी परमेश्वर की कलीसिया की शुरूआत होगी। उसने प्रेरित पतरस से कहा था: “इसी चट्टान [यीशु मसीह] पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे।” (मत्ती 16:18, NHT) इसके अलावा, जब यीशु अपने प्रेरितों के साथ था तब उसने उन्हें यह जानकारी दी कि बहुत जल्द स्थापित होनेवाली इस कलीसिया को कैसे संगठित किया जाएगा और वह किस तरीके से काम करेगी।
3 यीशु ने अपनी बातों और कामों से सिखाया कि इस कलीसिया में कुछ लोग किस तरह अगुवाई लेंगे। वे कलीसिया में बाकी लोगों की सेवा करने के ज़रिए ऐसा करेंगे। मसीह ने कहा: “तुम जानते हो, कि जो अन्य जातियों के हाकिम समझे जाते हैं, वे उन पर प्रभुता करते हैं; और उन में जो बड़े हैं, उन पर अधिकार जताते हैं। पर तुम में ऐसा नहीं है, बरन जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने। और जो कोई तुम में प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने।” (मरकुस 10:42-44) इससे साफ ज़ाहिर है कि “परमेश्वर की कलीसिया” बेकायदगी से काम नहीं करेगी और ना ही उसके सदस्य यहाँ-वहाँ बिखरे होंगे। इसके बजाय, उस कलीसिया में बढ़िया व्यवस्था होगी, उसके सदस्य मिल-जुलकर काम करेंगे और उनके बीच अच्छी बातचीत होगी।
4, 5. हम कैसे जानते हैं कि कलीसिया को आध्यात्मिक हिदायतें देने की ज़रूरत पड़ती?
4 यीशु ने, जो “परमेश्वर की कलीसिया” का मुखिया बननेवाला था, यह ज़ाहिर किया कि उसके प्रेरितों और दूसरे चेलों को कलीसिया में खास ज़िम्मेदारियाँ दी जाएँगी। कैसी ज़िम्मेदारियाँ? उनकी एक बड़ी ज़िम्मेदारी होगी, कलीसिया के सदस्यों को आध्यात्मिक हिदायतें देना। याद कीजिए कि पुनरुत्थान पाए यीशु ने दूसरे प्रेरितों की मौजूदगी में पतरस से क्या कहा। उसने पूछा: “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू . . . मुझ से प्रेम रखता है?” इस पर पतरस ने जवाब दिया: “हां, प्रभु, तू तो जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं।” फिर यीशु ने उससे कहा: “मेरे मेमनों को चरा। . . . मेरी भेड़ों की रखवाली कर। . . . मेरी भेड़ों को चरा।” (यूहन्ना 21:15-17) यह क्या ही बड़ी ज़िम्मेदारी थी!
5 यीशु के शब्द दिखाते हैं कि कलीसिया में इकट्ठा किए जानेवाले लोग, झुंड की भेड़ों की तरह हैं। इन भेड़ सरीखे लोगों को, यानी मसीही स्त्री-पुरुषों और बच्चों को आध्यात्मिक भोजन देने और उनकी ठीक से रखवाली करने की ज़रूरत पड़ती। इसके अलावा, यीशु ने अपने सभी चेलों को यह आज्ञा दी कि वे दूसरों को सिखाएँ और उन्हें चेला बनाएँ। इसलिए जब भी कोई नया व्यक्ति यीशु का चेला बनता, तो उसे तालीम देने की ज़रूरत पड़ती ताकि वह परमेश्वर से मिले काम को पूरा कर सके।—मत्ती 28:19,20.
6. “परमेश्वर की कलीसिया” की जब शुरूआत हुई, तो उसमें क्या इंतज़ाम किए गए?
6 जब “परमेश्वर की कलीसिया” की शुरूआत हुई, तो उसके सदस्य हिदायतें पाने और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने के लिए नियमित तौर पर इकट्ठा होने लगे। “वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे।” (प्रेरितों 2:42, 46, 47) इसी रिकॉर्ड में एक और गौरतलब बात यह है कि कुछ काबिल पुरुषों को व्यावहारिक मामले निपटाने के लिए चुना गया था। मगर उन पुरुषों को इसलिए नहीं चुना गया था, क्योंकि उन्होंने ऊँची शिक्षा हासिल की थी या उनमें कोई तकनीकी हुनर था। इसके बजाय, वे “पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण” थे। उनमें से एक पुरुष था, स्तिफनुस और उसके बारे में बाइबल खास तौर पर कहती है कि वह “विश्वास और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था।” कलीसिया में इस तरह के इंतज़ाम करने का एक नतीजा यह हुआ कि “परमेश्वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई।”—प्रेरितों 6:1-7.
परमेश्वर ने जिन पुरुषों का इस्तेमाल किया
7, 8. (क) यरूशलेम में प्रेरित और प्राचीन किस तौर पर सेवा करते थे? (ख) जब खत के ज़रिए कलीसियाओं को हिदायत दी गयी, तो इसका क्या नतीजा निकला?
7 ज़ाहिर-सी बात है कि शुरूआती कलीसिया में प्रेरितों ने अगुवाई ली थी। मगर इस ज़िम्मेदारी को निभाने में वे अकेले नहीं थे। एक बार जब पौलुस और उसके साथी सूरिया के अन्ताकिया लौटे, तब क्या हुआ इस बारे में प्रेरितों के काम 14:27 बताता है: “वहां पहुंचकर, उन्हों ने कलीसिया इकट्ठी की और बताया, कि परमेश्वर ने हमारे साथ होकर कैसे बड़े बड़े काम किए!” जब वे वहाँ की कलीसिया में थे, तब एक मसला खड़ा हुआ कि क्या अन्यजाति के मसीहियों को खतना कराने की ज़रूरत है या नहीं। इस मसले को सुलझाने के लिए, पौलुस और बरनबास को ‘यरूशलेम में प्रेरितों और प्राचीनों के पास’ भेजा गया। ये प्रेरित और प्राचीन, शासी निकाय के तौर पर सेवा करते थे।—प्रेरितों 15:1-3.
8 जब “प्रेरित और प्राचीन इस बात के विषय में विचार करने के लिये इकट्ठे हुए,” तो उस बैठक में मसीही प्राचीन याकूब ने अध्यक्षता की। हालाँकि वह यीशु का सौतेला भाई था, मगर वह एक प्रेरित नहीं था। (प्रेरितों 15:6) प्रेरितों और प्राचीनों ने खतना के मसले पर काफी चर्चा की, सारी बातों की गहरी जाँच की, पवित्र आत्मा की मदद ली और फिर शास्त्र की बिना पर वे एक नतीजे पर पहुँचे। उन्होंने खत के ज़रिए सभी कलीसियाओं को अपने फैसले के बारे में बताया। (प्रेरितों 15:22-32) यह खत मिलने पर मसीहियों ने शासी निकाय के फैसले को कबूल किया और उसे लागू किया। इसका क्या नतीजा निकला? भाई-बहनों को काफी हौसला मिला और उनमें उन्नति हुई। बाइबल कहती है: “इस प्रकार कलीसिया विश्वास में स्थिर होती गईं और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गईं।”—प्रेरितों 16:5.
9. बाइबल, काबिल मसीही पुरुषों की ज़िम्मेदारी के बारे में क्या बताती है?
9 लेकिन अलग-अलग इलाकों की कलीसियाएँ, नियमित तौर पर किस तरीके से काम करती थीं? यह जानने के लिए, आइए क्रेते द्वीप की कलीसियाओं की मिसाल लें। हालाँकि, उस द्वीप के बहुत-से लोग बदनाम थे, फिर भी उनमें से कइयों ने अपना तौर-तरीका बदला और सच्चे मसीही बन गए। (तीतुस 1:10-12; 2:2, 3) वे क्रेते के अलग-अलग नगरों में रहते थे और शासी निकाय से बहुत दूर थे, जो यरूशलेम में था। फिर भी, यह कोई बड़ी समस्या नहीं थी। क्यों? क्योंकि दूसरे इलाकों की कलीसियाओं की तरह, उस द्वीप की हर कलीसिया में भी कुछ पुरुषों को “प्राचीन” ठहराया गया था। इन पुरुषों को यहोवा की सेवा में कई सालों का तजुरबा था और उन्होंने प्राचीन बनने की माँगों को भी पूरा किया था, जो आज हम बाइबल में देख सकते हैं। उन्हें प्राचीन या अध्यक्ष इसलिए ठहराया गया ताकि वे “खरी शिक्षा से उपदेश” दे सकें और “विरोधियों को ताड़ना दे” (NW) सकें। (तीतुस 1:5-9; 1 तीमुथियुस 3:1-7) इसके अलावा, कलीसिया की मदद के लिए दूसरे आध्यात्मिक पुरुषों को सहायक सेवक ठहराया गया था, जो इस ज़िम्मेदारी के बारे में बाइबल में बतायी माँगों पर खरे उतरे थे।—1 तीमुथियुस 3:8-10, 12, 13.
10. मत्ती 18:15-17 के मुताबिक, गंभीर समस्याओं को कैसे सुलझाया जाना था?
10 यीशु ने इस बात की तरफ इशारा किया था कि कलीसिया में प्राचीनों और सहायक सेवकों का इंतज़ाम किया जाएगा। याद कीजिए कि उसने मत्ती 18:15-17 में क्या बताया। उसने कहा कि कभी-कभी परमेश्वर का एक सेवक, दूसरे सेवक के खिलाफ अपराध कर सकता है और इससे उनके बीच समस्या पैदा हो सकती है। ऐसे में जिस सेवक को ठेस पहुँची है, उसे दूसरे सेवक के पास जाना चाहिए और अकेले में ‘उसे उसका दोष बताना’ (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) चाहिए। लेकिन अगर वह सेवक अपना दोष कबूल नहीं करता, तो मदद के लिए एक-दो और जनों को बुलाया जा सकता है, जो मामले से अच्छी तरह वाकिफ हों। मगर इसके बाद भी अगर मामला नहीं सुलझता, तब क्या? यीशु ने कहा: “यदि वह उन की भी न माने, तो कलीसिया से कह दे, परन्तु यदि वह कलीसिया की भी न माने, तो तू उसे अन्यजाति और महसूल लेनेवाले के ऐसा जान।” जब यीशु ने यह बात कही थी, तो उस वक्त यहूदी लोग “परमेश्वर की कलीसिया” थे। इसलिए यीशु की हिदायत पहले उन पर लागू हुई।a मगर बाद में जब मसीही कलीसिया स्थापित हुई, तब यीशु की हिदायत उस पर लागू होने लगी। यह एक और सबूत है जो दिखाता है कि परमेश्वर के लोगों को कलीसिया में संगठित किया जाएगा, ताकि हरेक मसीही की उन्नति हो और उसे मार्गदर्शन दिया जा सके।
11. समस्याओं को सुलझाने में, प्राचीन क्या भूमिका निभाते हैं?
11 जिस तरह इस्राएलियों की कलीसिया में, पुरनिए न्यायी के तौर पर सेवा करते थे, उसी तरह अध्यक्ष, मसीही कलीसिया के नुमाइंदे के तौर समस्याओं को सुलझाते थे या पाप के मामलों से निपटते थे। और यह बात तीतुस 1:9 में दी गयी प्राचीनों की योग्यताओं से भी मेल खाती है। यह सच है कि इलाके की कलीसिया के प्राचीन असिद्ध थे, ठीक तीतुस की तरह। इसके बावजूद, पौलुस ने तीतुस को उन लोगों को ‘सुधारने’ के लिए कलीसियाओं के पास भेजा ‘जिनमें दोष थे।’ (NW) (तीतुस 1:4,5) आज, प्राचीन की ज़िम्मेदारी के लिए ऐसे भाइयों की सिफारिश की जाती है, जो समय के गुज़रते अपने विश्वास और भक्ति का सबूत देते हैं। इसलिए कलीसिया के बाकी लोगों को, प्राचीनों के इंतज़ाम के ज़रिए मिलनेवाले निर्देशन और वे जिस तरीके से अगुवाई लेते हैं, उस पर भरोसा रखना चाहिए।
12. कलीसिया की तरफ प्राचीनों की क्या ज़िम्मेदारी बनती है?
12 पौलुस ने इफिसुस की कलीसिया के प्राचीनों से कहा: “अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो; जिस में पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है; कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उस ने अपने [“पुत्र के,” नयी हिन्दी बाइबिल] लोहू से मोल लिया है।” (प्रेरितों 20:28) आज भी यह बात सौ-फीसदी सच है कि अध्यक्षों को ‘परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करने’ के लिए ठहराया जाता है। उन्हें अपनी यह ज़िम्मेदारी प्यार से निभानी चाहिए, ना कि झुंड पर अपना अधिकार जताकर। (1 पतरस 5:2, 3) अध्यक्षों को चाहिए कि वे “पूरे झुंड” की उन्नति के लिए मेहनत करें और उसे मदद दें।
कलीसिया से जुड़े रहना
13. समय-समय पर कलीसिया में क्या हो सकता है, और क्यों?
13 कलीसिया के प्राचीन और दूसरे भाई-बहन, सभी असिद्ध हैं। इसलिए समय-समय पर कलीसिया में गलतफहमियाँ या समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। ऐसा पहली सदी में भी हुआ था, जब कुछ प्रेरित मौजूद थे। (फिलिप्पियों 4:2, 3) एक अध्यक्ष या प्रचारक शायद ऐसी बात कह दे, जो हमारे दिल को चुभ जाए या जो पूरी तरह सच न हो। या फिर, हम शायद सोचें कि कलीसिया में कोई ऐसा काम किया जा रहा है जो बाइबल के खिलाफ है, मगर प्राचीन यह जानते हुए भी हाथ-पर-हाथ धरे बैठे हैं। लेकिन यह भी तो हो सकता है कि प्राचीनों ने बाइबल के मुताबिक और उन सारे सबूतों की, जिनसे हम अनजान हैं, जाँच करने के बाद मामले को निपटा लिया हो या वे फिलहाल निपटा रहे हों। दूसरी तरफ, अगर आपका यह सोचना सही है कि कलीसिया में बाइबल के सिद्धांतों के खिलाफ कोई काम किया जा रहा है, तब आपको कुरिन्थुस की कलीसिया को याद करना चाहिए। यहोवा को उस कलीसिया के बारे में बहुत फिक्र थी, क्योंकि कुछ समय से उसमें एक गंभीर पाप को चुपचाप बरदाश्त किया जा रहा था। मगर वक्त आने पर यहोवा ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि पाप के उस मामले को सही तरह से और सख्ती से निपटाया जाए। (1 कुरिन्थियों 5:1, 5, 9-11) हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘अगर मैं उस समय कुरिन्थुस की कलीसिया में होता, तो मामले को निपटाए जाने तक कैसा रवैया दिखाता?’
14, 15. यीशु के बहुत-से चेलों ने उसके साथ चलना क्यों छोड़ दिया था, और इससे हम क्या सबक सीख सकते हैं?
14 आइए हम एक और हालात पर गौर करें, जो कलीसिया में पैदा हो सकते हैं। मान लीजिए, एक भाई को बाइबल की कोई शिक्षा समझने और उसे कबूल करने में मुश्किल हो रही है। उसने शायद बाइबल और कलीसिया के ज़रिए मिलनेवाले सारे साहित्य में खूब छानबीन की हो। उसने प्रौढ़ मसीहियों, यहाँ तक कि प्राचीनों की भी मदद ली हो। इसके बावजूद, उसे वह शिक्षा समझ में नहीं आ रही है और ना ही वह उसे कबूल कर पा रहा है। ऐसे में वह क्या कर सकता है? यीशु की मौत से एक साल पहले, कुछ इसी तरह के हालात पैदा हुए थे। यीशु ने कहा कि वह “जीवन की रोटी” है, इसलिए अगर एक इंसान हमेशा की ज़िंदगी पाना चाहता है, तो उसे ‘मनुष्य के पुत्र का मांस खाना होगा और उसका लोहू पीना होगा।’ यह सुनकर उसके बहुत-से चेले चौंक गए। उन्होंने न तो यीशु से उसके कहने का मतलब पूछा और ना ही सब्र से काम लेते हुए यहोवा पर भरोसा रखा कि वह वक्त आने पर उन्हें इसकी सही समझ देगा। इसके बजाय, वे “उल्टे फिर गए और उसके बाद [यीशु के] साथ न चले।” (यूहन्ना 6:35, 41-66) एक बार फिर खुद से पूछिए: ‘अगर मैं उन चेलों में से एक होता, तो क्या करता?’
15 हमारे ज़माने में, कुछ लोगों ने इलाके की कलीसिया के साथ संगति करना छोड़ दिया है। उन्हें लगता है कि वे अपने तरीके से परमेश्वर की सेवा कर सकते हैं। वे शायद कहें कि किसी ने उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचायी है, या उन्हें लगा था कि किसी गलती को सुधारा नहीं गया, या फिर उन्हें कोई शिक्षा रास नहीं आयी। क्या इन वजहों से उनका कलीसिया को छोड़ देना वाजिब है? हालाँकि यह सच है कि हरेक मसीही का परमेश्वर के साथ एक निजी रिश्ता होना चाहिए, मगर फिर भी हम इस बात को नकार नहीं सकते कि वह पूरी दुनिया में फैली एक कलीसिया का इस्तेमाल कर रहा है, ठीक जैसे उसने प्रेरितों के दिनों में किया था। यही नहीं, यहोवा ने पहली सदी में अलग-अलग इलाकों की कलीसियाओं का भी इस्तेमाल किया था और उन्हें आशीष दी थी। साथ ही, कलीसियाओं के फायदे के लिए, काबिल प्राचीनों और सहायक सेवकों का इंतज़ाम किया था। उसी तरह, यहोवा ने आज भी यह इंतज़ाम किया है।
16. अगर एक मसीही, कलीसिया को छोड़ देने की सोचता है तो उसे किन बातों पर गौर करना चाहिए?
16 अगर एक मसीही को लगता है कि परमेश्वर के साथ उसका जो रिश्ता है, वही काफी है और उसे कलीसिया की कोई ज़रूरत नहीं, तो वह दरअसल परमेश्वर के ठहराए इंतज़ाम को ठुकराता है। वह इंतज़ाम है, पूरी दुनिया में फैली कलीसिया और अलग-अलग इलाकों में परमेश्वर के लोगों से बनी कलीसियाएँ। वह मसीही शायद अपनी मरज़ी से या फिर गिने-चुने लोगों के साथ मिलकर परमेश्वर की उपासना करने लगे। मगर क्या ऐसे में प्राचीनों और सहायक सेवकों का कोई इंतज़ाम होता है? इसके अलावा, जब पौलुस ने कुलुस्से की कलीसिया को खत लिखा और वही खत लौदीकिया की कलीसिया में पढ़कर सुनाने की हिदायत दी, तो गौर कीजिए कि उसने उसमें क्या लिखा। उसने लिखा: “[मसीह] में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ।” इस सलाह से सिर्फ उन लोगों को फायदा होता जो कलीसिया का हिस्सा थे, ना कि उन्हें जिन्होंने कलीसिया से नाता तोड़ लिया था।—कुलुस्सियों 2:6, 7; 4:16.
सत्य का खंभा और नींव
17. पहला तीमुथियुस 3:15 हमें कलीसिया के बारे में क्या सिखाता है?
17 प्रेरित पौलुस ने मसीही प्राचीन, तीमुथियुस के नाम लिखी अपनी पहली पत्री में बताया कि प्राचीनों और सहायक सेवकों में क्या-क्या योग्यताएँ होनी चाहिए। इसके फौरन बाद, उसने “जीवते परमेश्वर की कलीसिया” का ज़िक्र किया और कहा कि यह “सत्य का खंभा, और नेव है।” (1 तीमुथियुस 3:15) पहली सदी में, अभिषिक्त मसीहियों से बनी पूरी कलीसिया वाकई एक ऐसा ही खंभा साबित हुई। और इसमें कोई शक नहीं कि हरेक मसीही को सत्य खासकर इलाके की कलीसिया से ही मिलता था। कलीसिया में ही बाइबल की सच्चाई सिखायी जाती थी और उसकी पैरवी की जाती थी। साथ ही, इसी में हर मसीही की उन्नति होती थी।
18. कलीसिया की सभाएँ क्यों ज़रूरी हैं?
18 उसी तरह दुनिया-भर में फैली मसीही कलीसिया, परमेश्वर का घराना, “सत्य का खंभा, और नेव है।” इसलिए हमें अपनी कलीसिया की सभाओं में बिना नागा हाज़िर होना चाहिए और उनमें हिस्सा लेना चाहिए। यह एक अहम तरीका है जिससे हम अध्यात्मिक रूप से उन्नति कर सकते हैं, परमेश्वर के साथ अपना रिश्ता मज़बूत कर सकते हैं और उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए तैयार रह सकते हैं। कुरिन्थुस की कलीसिया को लिखते वक्त, पौलुस ने इस बात पर ध्यान खींचा कि सभाओं में कैसी बातें कही जानी चाहिए। उसने यह भी लिखा कि कलीसिया में जो भी कहा जाए, वह साफ-साफ हो और आसानी से दूसरों की समझ में आए, ताकि हाज़िर सभी लोगों की “उन्नति” हो सके। (1 कुरिन्थियों 14:12, 17-19) आज हमारी भी उन्नति हो सकती है, बशर्ते हम इस बात को मानें कि यहोवा परमेश्वर ने अलग-अलग इलाकों की कलीसियाओं का इंतज़ाम किया है और उनकी मदद भी कर रहा है।
19. आपको अपनी कलीसिया का एहसान क्यों मानना चाहिए?
19 जी हाँ, मसीही होने के नाते अगर हम उन्नति करना चाहते हैं, तो हमें कलीसिया से जुड़े रहने की ज़रूरत है। कलीसिया मुद्दतों से एक मज़बूत दीवार की तरह, झूठी शिक्षाओं से परमेश्वर के लोगों की हिफाज़त करती आयी है। यही नहीं, परमेश्वर दुनिया-भर में मसीहाई राज्य के सुसमाचार का ऐलान करने के लिए, कलीसिया का इस्तेमाल करता आया है। बेशक, यहोवा ने मसीही कलीसिया के ज़रिए बहुत सारा काम पूरा किया है।—इफिसियों 3:9, 10. (w07 4/15)
[फुटनोट]
a बाइबल विद्वान, एल्बर्ट बार्न्स् मानते हैं कि यीशु की इस हिदायत का, कि “कलीसिया से कह दे,” यह मतलब हो सकता है, “उन लोगों से बात करना जिन्हें ऐसे मामलों की जाँच करने का अधिकार दिया गया है, यानी चर्च के नुमाइंदे। यहूदियों के अराधनालय में ऐसे पुरनिए हुआ करते थे, जो न्यायी के तौर पर सेवा करते थे और जिनके सामने इस तरह के मामले पेश किए जाते थे।”
क्या आपको याद है?
• हम क्यों यकीन कर सकते हैं कि परमेश्वर, धरती पर कलीसियाओं का इस्तेमाल कर रहा है?
• असिद्ध होने के बावजूद, प्राचीन कलीसिया की खातिर क्या करते हैं?
• अपने इलाके की कलीसिया के ज़रिए आपकी उन्नति कैसे हो रही है?
[पेज 14 पर तसवीर]
यरूशलेम में, प्रेरित और प्राचीन मिलकर शासी निकाय के तौर पर सेवा करते थे