“मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है”
“मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो।”—मत्ती ११:२९.
१, २. (क) आपने जीवन में कौन-सी बात अनुभव की है जिससे आपको विश्राम मिलता है? (ख) यीशु द्वारा प्रतिज्ञात विश्राम को पाने के लिए एक व्यक्ति को क्या करने की ज़रूरत है?
गर्म और चिपचिपे दिन के बाद ठंडे पानी से स्नान, या लम्बे और थकाऊ सफ़र के बाद रात की अच्छी नींद—आह, कितना विश्राम मिलता है! ऐसा ही महसूस होता है जब एक भारी बोझ उतार दिया जाता है या जब पाप और ग़लतियों को क्षमा किया जाता है। (नीतिवचन २५:२५; प्रेरितों ३:१९) ऐसे आनन्ददायक अनुभवों द्वारा प्राप्त विश्राम हमें नवजीवन प्रदान करता है, और हमें और अधिक करने की शक्ति प्राप्त होती है।
२ सभी जो बोझ से दबे हुए और थके हुए महसूस करते हैं यीशु के पास आ सकते हैं, क्योंकि उसने उनसे ठीक इसी बात की प्रतिज्ञा की—विश्राम। लेकिन, ऐसे विश्राम को पाने के लिए जो इतना वांछनीय है, ऐसा कुछ है जिसे एक व्यक्ति को करने का इच्छुक होने की ज़रूरत है। “मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो,” यीशु ने कहा, “और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।” (मत्ती ११:२९) यह जूआ क्या है? इससे विश्राम कैसे मिलता है?
एक सहज जूआ
३. (क) किस प्रकार के जूए बाइबल समयों में प्रयोग किए जाते थे? (ख) कौन-सा प्रतीकात्मक अर्थ जूए के साथ जुड़ा हुआ है?
३ एक कृषि-प्रधान समाज में रहने के कारण, यीशु और उसके सुननेवाले जूए से भली-भाँति परिचित थे। मूल रूप से, जूआ एक लम्बा लकड़ी का लट्ठा होता है जिसमें नीचे की ओर दो खाँचे बने होते हैं ताकि वे भार-वाहक जानवरों, सामान्यतः बैलों, की जोड़ी की गर्दन पर ठीक बैठें, जिससे उन्हें हल, गाड़ी या कोई और बोझ खींचने के लिए एकसाथ जोता जाए। (१ शमूएल ६:७) मनुष्यों के लिए बनाए गए जूए भी प्रयोग किए जाते थे। ये साधारण लट्ठे या डंडे होते थे जिन्हें कंधों पर उठाया जाता था, और उसके दोनों सिरों पर बोझ होता था। इनसे, मज़दूर भारी बोझ उठाने में समर्थ होते थे। (यिर्मयाह २७:२; २८:१०, १३) भार और मज़दूरी के साथ इसके सम्बन्ध से, बाइबल में जूए को अकसर प्रतीकात्मक रूप से प्रभुत्व और नियंत्रण को चिन्हित करने के लिए प्रयोग किया गया है।—व्यवस्थाविवरण २८:४८; १ राजा १२:४; प्रेरितों १५:१०.
४. यीशु अपने पास आनेवालों को जो जूआ पेश करता है वह क्या चिन्हित करता है?
४ तो फिर, वह जूआ क्या है जिसे यीशु ने उसके पास विश्राम के लिए आनेवाले व्यक्तियों को अपने ऊपर उठाने के लिए आमंत्रित किया? याद कीजिए कि उसने कहा: “मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो।” (मत्ती ११:२९) सीखनेवाला चेला होता है। इसलिए, यीशु के जूए को उठाने का अर्थ है उसका चेला बनना। (फिलिप्पियों ४:३) लेकिन, यह उसकी शिक्षाओं को सिर्फ़ जानने से ज़्यादा की माँग करता है। यह उसकी शिक्षाओं के सामंजस्य में कार्यों की माँग करता है—जो काम उसने किया वह करना और जिस तरीक़े से वह जीया वैसे जीना। (१ कुरिन्थियों ११:१; १ पतरस २:२१) यह उसके अधिकार के प्रति और वह जिन्हें अधिकार सौंपता है उनके प्रति स्वैच्छिक अधीनता की माँग करता है। (इफिसियों ५:२१; इब्रानियों १३:१७) इसका अर्थ है एक समर्पित, बपतिस्मा-प्राप्त मसीही बनना, और ऐसे समर्पण के साथ जो विशेषाधिकार और ज़िम्मेदारियाँ आती हैं उन सभी को स्वीकार करना। यही जूआ है जिसे यीशु उन सभी लोगों को पेश करता है जो उसके पास सांत्वना और विश्राम के लिए आते हैं। क्या आप उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं?—यूहन्ना ८:३१, ३२.
५. क्यों यीशु का जूआ उठाना एक कठोर अनुभव नहीं होगा?
५ जूआ उठाने के द्वारा विश्राम पाना—क्या ये शब्द विरोधात्मक नहीं हैं? असल में नहीं, क्योंकि यीशु ने कहा कि उसका जूआ “सहज” है। यह शब्द हल्का, सुविधाजनक, स्वीकारयोग्य का अर्थ रखता है। (मत्ती ११:३०; लूका ५:३९; रोमियों २:४; १ पतरस २:३) एक पेशेवर बढ़ई के तौर पर, यीशु ने अति संभवतः हल और जूए बनाए होंगे, और वह जानता होगा कि ठीक बिठाने के लिए जूए को कैसा आकार दिया जाना चाहिए, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा काम यथासंभव आरामदायक रीति से किया जा सके। वह शायद जूओं के निचले भाग में कपड़ा या चमड़ा लगाए। अनेकों पर ऐसा किया जाता है ताकि वे गर्दन से बहुत ज़्यादा रगड़कर उसे छील न दें। उसी तरह, जो प्रतीकात्मक जूआ यीशु हमें पेश करता है वह “सहज” है। यद्यपि उसका चेला होने में कुछ बाध्यताएँ और ज़िम्मेदारियाँ अंतर्ग्रस्त हैं, फिर भी यह एक कठोर या कष्टकर अनुभव नहीं है बल्कि विश्राम देनेवाला अनुभव है। उसके स्वर्गीय पिता, यहोवा की आज्ञाएँ भी भारी नहीं हैं।—व्यवस्थाविवरण ३०:११; १ यूहन्ना ५:३.
६. यीशु का शायद क्या अर्थ होगा जब उसने कहा: “मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो”?
६ कुछ और बात भी है जो यीशु के जूए को “सहज,” या उठाने में आसान बनाती है। जब उसने कहा: “मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो,” तो वह शायद दो बातों में से एक बात कह रहा था। अगर उसके मन में दोहरा जूआ था, यानी उस प्रकार का जूआ जो दो भार-वाहक जानवरों को बोझ खींचने के लिए एकसाथ जोड़ता है, तो वह हमें आमंत्रण दे रहा था कि उसके साथ एक ही जूए के नीचे आएँ। यह क्या ही आशीष होगी—यीशु का हमारी बग़ल में होना और हमारे बोझ को हमारे साथ खींचना! दूसरी ओर, अगर यीशु के मन में सामान्य मज़दूर द्वारा प्रयोग किया गया जूए का डंडा था, तब वह हमें ऐसा साधन पेश कर रहा था जिसके द्वारा हमें जो कोई बोझ उठाना पड़ता है उसको हम ज़्यादा आसान या ज़्यादा सँभालने लायक़ बना सकते हैं। दोनों ही तरह, उसका जूआ असली विश्राम का स्रोत है क्योंकि वह हमें आश्वासन देता है: “क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं।”
७, ८. कौन-सी ग़लती कुछ लोग करते हैं जब वे दबाव महसूस करते हैं?
७ तो फिर, हमें क्या करना चाहिए अगर हम महसूस करते हैं कि जीवन की समस्याओं का बोझ जिसे हम उठा रहे हैं, असहनीय होता जा रहा है और कि हम पर इतना दबाव आ रहा है कि हम टूटने पर हैं? कुछ लोग शायद ग़लत रीति से यह महसूस करें कि यीशु मसीह का चेला होने का जूआ बहुत भारी है या बहुत ज़्यादा की माँग करता है, यद्यपि दैनिक जीवन की चिन्ताएँ हैं जो उनके भार का कारण हैं। इस स्थिति में कुछ व्यक्ति मसीही सभाओं में उपस्थित होना छोड़ देते हैं, या वे सेवकाई में भाग नहीं लेते, और शायद यह सोचते हैं कि उन्हें कुछ राहत प्राप्त होगी। लेकिन, यह एक गंभीर ग़लती है।
८ हम मूल्यांकन करते हैं कि यीशु जो जूआ पेश करता है वह “सहज” है। अगर हम इसे ठीक से न उठाएँ, तो वह रगड़ पैदा कर सकता है। उस मामले में हमें अपने कंधों पर रखे जूए को नज़दीकी से जाँचना चाहिए। अगर किसी कारणवश, जूए को मरम्मत की ज़रूरत है या उसे अच्छी तरह बिठाया नहीं गया है, तो इसका प्रयोग करना न सिर्फ़ हमारी ओर से अतिरिक्त प्रयास की माँग करेगा बल्कि इसके परिणामस्वरूप कुछ दर्द भी होगा। दूसरे शब्दों में, अगर ईश्वरशासित गतिविधियाँ हमारे लिए एक भार जैसी प्रतीत होने लगें, तो हमें यह देखने के लिए जाँच करनी चाहिए कि क्या हम उन्हें सही तरीक़े से सँभाल रहे हैं। हम जो करते हैं उसे करने का हमारा हेतु क्या है? जब हम सभाओं को जाते हैं क्या हम पर्याप्त रूप से तैयार होते हैं? जब हम क्षेत्र सेवकाई में हिस्सा लेते हैं क्या हम शारीरिक और मानसिक रीति से तैयार होते हैं? क्या हम कलीसिया में दूसरों के साथ एक नज़दीकी और अच्छे सम्बन्ध का आनन्द लेते हैं? और, सबसे बढ़कर, यहोवा परमेश्वर और उसके पुत्र, यीशु मसीह के साथ हमारा व्यक्तिगत सम्बन्ध कैसा है?
९. क्यों मसीही जूआ कभी एक असहनीय भार नहीं होना चाहिए?
९ जब हम पूरे मन से यीशु द्वारा पेश किया गया जूआ स्वीकार करते हैं और उसे सही तरीक़े से उठाना सीखते हैं, तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि वह कभी एक असहनीय भार प्रतीत हो। वस्तुतः, अगर हम स्थिति की कल्पना कर सकें—यीशु हमारे साथ उसी जूए के नीचे—तो हमारे लिए यह समझना कठिन नहीं है कि ज़्यादातर भार कौन उठा रहा है। यह उस बच्चे के समान ही है जो अपनी बच्चा-गाड़ी के हैंडल पर झुका हुआ होता है, और यह समझता है कि वह उसे आगे धकेल रहा है, लेकिन असल में, निश्चय ही, माता या पिता है जो ऐसा कर रहा है। प्रेमपूर्ण पिता के तौर पर, यहोवा परमेश्वर हमारी कमियों और कमज़ोरियों से भली-भाँति परिचित है और वह यीशु मसीह के माध्यम से हमारी ज़रूरतों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाता है। “परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा,” पौलुस ने कहा।—फिलिप्पियों ४:१९. यशायाह ६५:२४ से तुलना कीजिए।
१०. शिष्यता को गंभीरता से लेनेवाले एक व्यक्ति का क्या अनुभव रहा है?
१० अनेक समर्पित मसीहियों ने इस बात का मूल्यांकन व्यक्तिगत अनुभव के द्वारा किया है। उदाहरण के लिए, जॆनी है जो पाती है कि हर महीने सहयोगी पायनियर के तौर पर सेवा करना, और बहुत ज़्यादा की माँग करनेवाली पूरे-समय की लौकिक नौकरी करना, उस पर बहुत ज़्यादा दबाव डालता है। लेकिन, वह महसूस करती है कि पायनियर कार्य असल में उसे संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। बाइबल की सच्चाई सीखने के लिए लोगों की मदद करना और परमेश्वर का अनुमोदन पाने के लिए अपने जीवन को बदलते हुए उन्हें देखना—यही है जो उसे अपने व्यस्त जीवन में सबसे ज़्यादा आनन्द देता है। वह उस नीतिवचन के शब्दों से पूरे मन से सहमत है, जो कहता है: “यहोवा की आशिष—यही है जो धनी बनाती है, और वह इसके साथ पीड़ा नहीं देता।”—नीतिवचन १०:२२, NW.
एक हल्का बोझ
११, १२. जब यीशु ने कहा: “मेरा बोझ हलका है,” तब उसका क्या अर्थ था?
११ हमसे एक “सहज” जूए की प्रतिज्ञा करने के अलावा, यीशु हमें आश्वस्त करता है: “मेरा बोझ हलका है।” एक “सहज” जूआ पहले ही काम आसान कर देता है; अगर बोझ को भी हल्का किया जाए, तो वह काम वाक़ई सुखद अनुभव होता है। लेकिन, उस कथन के द्वारा यीशु के मन में क्या बात थी?
१२ विचार कीजिए कि जब एक किसान अपने जानवरों के लिए काम बदलना चाहे तो वह क्या करेगा, मान लीजिए एक खेत को जोतना छोड़कर गाड़ी खींचना। वह पहले हल को अलग करेगा और उसके बाद गाड़ी को जोड़ देगा। हल और गाड़ी दोनों को जानवरों से बाँध देना उसकी ओर से बेतुकी बात होगी। समान रूप से, यीशु लोगों से यह नहीं कह रहा था कि जिस बोझ को वे पहले से उठाए हुए थे उसके ऊपर उसका बोझ रखें। उसने अपने चेलों से कहा: “कोई दास दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता।” (लूका १६:१३) अतः, यीशु लोगों के सामने एक चुनाव रख रहा था। क्या वे उस भारी बोझ को उठाना जारी रखते जो उनके पास था, या इसके बजाय क्या वे उसे नीचे रख देते और जो वह पेश कर रहा था उसे स्वीकार करते? यीशु ने उन्हें प्रेमपूर्ण प्रेरणा दी: “मेरा बोझ हलका है।”
१३. यीशु के समय में लोग कौन-सा बोझ उठा रहे थे, और इसका परिणाम क्या था?
१३ यीशु के समय में, अत्याचारी रोमी शासकों और रीतिवादी, कपटी धार्मिक अगुओं द्वारा उन पर लादे गए भारी बोझ के नीचे लोग संघर्ष कर रहे थे। (मत्ती २३:२३) रोमी बोझ को उतार फेंकने के प्रयास में, कुछ लोगों ने ख़ुद कुछ परिवर्तन लाने की कोशिश की। वे राजनैतिक संघर्षों में अंतर्ग्रस्त हो गए, और यह उन्हें उनके अनर्थकारी अन्त तक ही ले गया। (प्रेरितों ५:३६, ३७) दूसरे लोग भौतिकवादी कार्यों में अत्यधिक रूप से अंतर्ग्रस्त होने के द्वारा अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए दृढ़संकल्पी थे। (मत्ती १९:२१, २२; लूका १४:१८-२०) जब यीशु ने उन्हें अपने चेले बनने का आमंत्रण देने के द्वारा राहत का तरीक़ा पेश किया, तो सभी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। जिस भार को वे उठाए हुए थे, यद्यपि वह भारी था, उसे उतारकर यीशु के बोझ को उठाने के लिए वे हिचकिचा रहे थे। (लूका ९:५९-६२) कितनी दुःखद ग़लती!
१४. कैसे जीवन की चिन्ताएँ और भौतिक अभिलाषाएँ हमें बोझ तले दबा सकती हैं?
१४ अगर हम सावधान नहीं हैं, तो हम भी आज वही ग़लती कर सकते हैं। यीशु के चेले बनना हमें उन्हीं लक्ष्यों और मूल्यों का पीछा करने से मुक्त करता है जिनका संसार के लोग पीछा करते हैं। हालाँकि हमें दैनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अब भी मेहनत करनी पड़ती है, हम इन बातों को अपने जीवन का केन्द्र नहीं बनाते। फिर भी, जीवन की चिन्ताओं की और भौतिक सुख-साधन के आकर्षण की हम पर मज़बूत पकड़ हो सकती है। अगर हम इसकी अनुमति दें, तो ऐसी अभिलाषाएँ उस सच्चाई को दबाकर ख़त्म कर सकती हैं जिसे हमने उत्सुकता से स्वीकार किया है। (मत्ती १३:२२) हम अभिलाषाओं को पूरा करने में इतने लौलीन हो सकते हैं कि हमारी मसीही ज़िम्मेदारियाँ ऐसी थकाऊ बाध्यताएँ बन जाती हैं जिन्हें हम जल्द-से-जल्द और अनमने भाव से ख़त्म कर लेना चाहते हैं। अगर परमेश्वर के प्रति हमारी सेवा इस मनोवृत्ति से की जाए तो हम निश्चय ही यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि हमें इससे कोई विश्राम मिलेगा।
१५. यीशु ने भौतिक अभिलाषाओं के सम्बन्ध में कौन-सी चेतावनी दी?
१५ यीशु ने स्पष्ट किया कि संतुष्टि का जीवन, हमारी सारी इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करने के द्वारा नहीं, बल्कि जीवन की ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बातों को प्रिय समझने के द्वारा मिलता है। “अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएंगे? और क्या पीएंगे? और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे,” उसने सलाह दी। “क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं?” उसके बाद उसने आकाश के पक्षियों की ओर ध्यान आकर्षित किया और कहा: “वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; तौभी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उन को खिलाता है।” जंगली सोसनों की ओर संकेत करते हुए, उसने कहा: “वे न तो परिश्रम करते, न कातते हैं। तौभी मैं तुम से कहता हूं, कि सुलैमान भी, अपने सारे विभव में उन में से किसी के समान वस्त्र पहिने हुए न था।”—मत्ती ६:२५-२९.
१६. भौतिक कार्यों का पीछा करने के प्रभावों के सम्बन्ध में अनुभव ने क्या दिखाया है?
१६ क्या हम इन सरल व्यावहारिक उदाहरणों से कुछ सीख सकते हैं? यह एक सामान्य अनुभव है कि जितना अधिक एक व्यक्ति भौतिक रूप से अपनी जीवन-स्थिति को सुधारने की कोशिश करता है, उतना अधिक वह सांसारिक कार्यों में उलझता जाता है और उसके कंधों का बोझ भारी होता जाता है। संसार ऐसे उद्योगपतियों से भरा हुआ है जिन्होंने अपनी भौतिक सफलता की क़ीमत टूटे परिवारों, बरबाद विवाह, बिगड़े स्वास्थ्य इत्यादि के रूप में दी है। (लूका ९:२५; १ तीमुथियुस ६:९, १०) नोबॆल पुरस्कार विजेता ऐल्बर्ट आइनस्टाइन ने एक बार कहा: “सम्पत्ति, बाहरी सफलता, लोकप्रियता, ऐशो-आराम—मेरे लिए ये बातें हमेशा घृणित रही हैं। मैं मानता हूँ कि एक सरल और अनाडंबरी जीवन-रीति सब के लिए सर्वोत्तम है।” यह प्रेरित पौलुस की सरल सलाह को मात्र दोहराता है: “सन्तोष सहित [“ईश्वरीय,” NW] भक्ति बड़ी कमाई है।”—१ तीमुथियुस ६:६.
१७. कौन-सी जीवन-रीति के पक्ष में बाइबल बोलती है?
१७ एक महत्त्वपूर्ण पहलू है जिसे हमें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। यद्यपि “एक सरल और अनाडंबरी जीवन-रीति” के अनेकों लाभ हैं, यह अपने आप में संतुष्टि प्रदान नहीं करती। ऐसे अनेक व्यक्ति हैं जिनकी जीवन-रीति मजबूरी के कारण सरल है, फिर भी वे किसी भी तरह संतुष्ट या ख़ुश नहीं हैं। बाइबल हम से भौतिक वस्तुओं के आनन्द को त्यागने और एक सन्यासी का जीवन जीने का आग्रह नहीं कर रही है। ईश्वरीय भक्ति पर बल दिया गया है ना कि आत्म-संतोष पर। जब हम इन दोनों को एकसाथ मिलाते हैं, तभी हमारे पास “बड़ी कमाई” है। कौन-सी कमाई? उसी पत्री में आगे, पौलुस स्पष्ट करता है कि जो व्यक्ति “अनिश्चित धन पर नहीं, परन्तु परमेश्वर पर आशा” रखते हैं, “वे अपने लिए ऐसा धन संचय करें[गे] जो भविष्य के लिए अच्छी नींव बन जाए[गी], जिस से वे उसको पकड़ लें जो वास्तव में जीवन है।”—१ तीमुथियुस ६:१७-१९, NHT.
१८. (क) कैसे एक व्यक्ति सच्चा विश्राम पा सकता है? (ख) हमें उन परिवर्तनों को किस तरह देखना चाहिए जो शायद हमें करने पड़ें?
१८ हमें विश्राम मिलेगा अगर हम अपना व्यक्तिगत भारी बोझ जिसे हम शायद उठाए हुए हों उतारना सीखें और यीशु जो हल्का बोझ पेश करता है उसे उठा लें। अनेक व्यक्ति जिन्होंने अपने जीवन को पुनःव्यवस्थित किया है ताकि वे राज्य सेवा में ज़्यादा पूर्ण रूप से हिस्सा ले सकें, उन्होंने आनन्द और संतुष्टि के जीवन का मार्ग पाया है। निःसंदेह, ऐसा क़दम उठाने के लिए एक व्यक्ति को विश्वास और साहस की आवश्यकता होती है, और मार्ग में बाधाएँ हो सकती हैं। लेकिन बाइबल हमें याद दिलाती है: “जो वायु को ताकता रहेगा वह बीज बोने न पाएगा; और जो बादलों को देखता रहेगा वह लवने न पाएगा।” (सभोपदेशक ११:४) जब हम उन्हें करने की एक बार ठान लेते हैं तो कुछ बातें वास्तव में इतनी मुश्किल नहीं होतीं। ऐसा लगता है कि सबसे कठिन भाग होता है ठान लेना। हम शायद उस विचार से जूझते हुए या उसका विरोध करते हुए अपने आप को थका दें। अगर हम अपने मन में ठान लें और चुनौती को स्वीकार करें, तो हम शायद यह पाकर चकित हों कि इससे कैसी आशीष प्राप्त होती है। भजनहार ने आग्रह किया: “परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है!”—भजन ३४:८; १ पतरस १:१३.
“मन में विश्राम”
१९. (क) जैसे-जैसे संसार की परिस्थितियाँ बदतर होती जाती हैं हम किस बात की अपेक्षा कर सकते हैं? (ख) यीशु के जूए के अधीन रहते वक़्त, हम किस बात के प्रति आश्वस्त हैं?
१९ प्रेरित पौलुस ने प्रथम-शताब्दी के चेलों को याद दिलाया: “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।” (प्रेरितों १४:२२) यह आज भी सच है। जैसे-जैसे संसार की परिस्थितियाँ बदतर होती जाती हैं, धार्मिकता और ईश्वरीय भक्ति का जीवन जीने के लिए दृढ़संकल्प सभी लोगों पर पड़नेवाला दबाव और भी बढ़ जाएगा। (२ तीमुथियुस ३:१२; प्रकाशितवाक्य १३:१६, १७) फिर भी, हम पौलुस की तरह महसूस करते हैं जब उसने कहा: “हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते। सताए तो जाते हैं; पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नाश नहीं होते।” इसका कारण यह है कि हम यीशु मसीह पर सामान्य से अधिक शक्ति देने के लिए निर्भर रह सकते हैं। (२ कुरिन्थियों ४:७-९) पूर्ण हृदय से शिष्यता का जूआ स्वीकार करने के द्वारा, हम यीशु की प्रतिज्ञा की पूर्ति का आनन्द उठाएँगे: “तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।”—मत्ती ११:२९.
क्या आप समझा सकते हैं?
◻ वह सहज जूआ क्या है जिसे यीशु ने पेश किया?
◻ हमें क्या करना चाहिए अगर हम अपने जूए को एक भार बनता महसूस करें?
◻ यीशु का क्या अर्थ था जब उसने कहा: “मेरा बोझ हलका है”?
◻ कैसे हम निश्चित कर सकते हैं कि हमारा बोझ हल्का रहे?