जवानो, ऐसे लक्ष्यों का पीछा कीजिए जिनसे परमेश्वर की महिमा हो
“ईश्वरीय भक्ति को अपना लक्ष्य बनाकर खुद को प्रशिक्षण देता रह।”—1 तीमुथियुस 4:7, NW.
1, 2. (क) पौलुस ने तीमुथियुस की तारीफ क्यों की? (ख) आज जवान किस तरह ‘ईश्वरीय भक्ति को अपना लक्ष्य बनाकर खुद को प्रशिक्षित’ कर रहे हैं?
“मेरे पास ऐसे स्वभाव का कोई नहीं, जो शुद्ध मन से तुम्हारी चिन्ता करे। . . . जैसा पुत्र पिता के साथ करता है, वैसा ही उस ने सुसमाचार के फैलाने में मेरे साथ परिश्रम किया।” (फिलिप्पियों 2:20, 22) पहली सदी में प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को भेजे अपने खत में तारीफ के ये शब्द लिखे थे। मगर वह किसकी तारीफ कर रहा था? अपने जवान सफरी साथी तीमुथियुस की। इन शब्दों से पौलुस ने तीमुथियुस को यकीन दिलाया कि वह उससे प्यार करता है और उस पर भरोसा करता है। ज़रा सोचिए, ये शब्द सुनकर तीमुथियुस का दिल कितना खुश हुआ होगा!
2 तीमुथियुस के जैसे, परमेश्वर का भय माननेवाले जवान हमेशा से यहोवा के लोगों के लिए एक अनमोल आशीष रहे हैं। (भजन 110:3) आज ऐसे कई जवान परमेश्वर के संगठन में पायनियरों, मिशनरियों, निर्माण स्वयंसेवकों और बेथेल सदस्यों के नाते सेवा कर रहे हैं। वे जवान भी तारीफ के काबिल हैं, जो दूसरी ज़िम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ कलीसिया के कामों में जोश के साथ हिस्सा लेते हैं। इन नौजवानों ने ऐसे लक्ष्यों का पीछा किया है जिनसे यहोवा की महिमा होती है। और इससे उन्हें ज़िंदगी में सच्चा संतोष मिला है। वे वाकई ‘ईश्वरीय भक्ति को अपना लक्ष्य बनाकर खुद को प्रशिक्षित’ कर रहे हैं।—1 तीमुथियुस 4:7, 8, NW.
3. इस लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?
3 एक जवान होने के नाते, क्या आपने किसी आध्यात्मिक लक्ष्य का पीछा करने की सोची है? ऐसा करने के लिए आपको बढ़ावा और मदद कहाँ से मिल सकती है? आप धन-दौलत की दीवानी इस दुनिया से आनेवाले दबावों का सामना कैसे कर सकते हैं? और अगर आप अध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करें, तो आप क्या-क्या आशीषें पाने की उम्मीद कर सकते हैं? आइए इन सवालों के जवाब पाने के लिए हम तीमुथियुस की ज़िंदगी और उसके करियर के बारे में चर्चा करें।
तीमुथियुस के बारे में कुछ जानकारी
4. चंद शब्दों में तीमुथियुस की मसीही ज़िंदगी के बारे में बताइए।
4 तीमुथियुस, लुस्त्रा नाम के एक छोटे शहर में पला-बढ़ा था जो गलतिया के रोमी प्रांत में आता था। ऐसा मालूम होता है कि वह एक किशोर ही था जब उसने मसीही धर्म को अपनाया। यह शायद तब की बात रही होगी जब पौलुस सा.यु. 47 में लुस्त्रा में प्रचार करने आया था। फिर देखते-ही-देखते तीमुथियुस ने अपने शहर के मसीही भाइयों में एक अच्छा नाम कमाया। दो साल बाद जब पौलुस वापस लुस्त्रा लौटा और उसे पता चला कि तीमुथियुस ने बढ़िया आध्यात्मिक तरक्की की है, तो पौलुस ने उसे अपना मिशनरी साथी चुना। (प्रेरितों 14:5-20; 16:1-3) जैसे-जैसे तीमुथियुस प्रौढ़ बनता गया, उसे और भी बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ मिलने लगीं। इनमें कलीसिया के भाइयों को मज़बूत करने का खास काम भी शामिल था। जब सा.यु. 65 में पौलुस ने रोम के कैदखाने से तीमुथियुस को खत लिखा, तब तीमुथियुस इफिसुस में मसीही प्राचीन के तौर पर सेवा कर रहा था।
5. दूसरा तीमुथियुस 3:14,15 के मुताबिक, किन दो बातों ने तीमुथियुस को आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करने के लिए उकसाया?
5 यह साफ ज़ाहिर है कि तीमुथियुस ने आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करने का चुनाव किया था। मगर ऐसा करने के लिए उसे किस बात ने उकसाया? तीमुथियुस को लिखी अपनी दूसरी पत्री में पौलुस ने ऐसी दो बातें बतायीं: “तू इन बातों पर जो तू ने सीखीं हैं और प्रतीति की थी, यह जानकर दृढ़ बना रह; कि तू ने उन्हें किन लोगों से सीखा था? और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है।” (2 तीमुथियुस 3:14, 15) आइए सबसे पहले देखें कि किस तरह दूसरे मसीहियों ने तीमुथियुस को आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करने के लिए उकसाया था।
अच्छी मिसालों से फायदा पाइए
6. तीमुथियुस को क्या तालीम मिली, और इस तालीम की तरफ उसने कैसा रवैया दिखाया?
6 तीमुथियुस का पिता सच्चाई में नहीं था। वह एक यूनानी था जबकि तीमुथियुस की माँ यूनीके और नानी लोइस पैदाइशी यहूदी थीं। (प्रेरितों 16:1) यूनीके और लोइस ने तीमुथियुस को छुटपन से ही इब्रानी शास्त्र से सच्चाइयाँ सिखायीं। और जब वे मसीही बनीं, तो बेशक उन्होंने तीमुथियुस की मदद की होगी, ताकि वह मसीही शिक्षाओं पर विश्वास करने के लिए कायल हो जाए। तीमुथियुस ने इस बढ़िया तालीम का पूरा-पूरा फायदा उठाया। यह बात हमें पौलुस के इन शब्दों से साफ पता चलती है: “मुझे तेरे उस निष्कपट विश्वास की सुधि आती है, जो पहिले तेरी नानी लोइस, और तेरी माता यूनीके में थी, और मुझे निश्चय हुआ है, कि तुझ में भी है।”—2 तीमुथियुस 1:5.
7. कई जवानों को कौन-सी आशीष मिली है, और इस वजह से उन्हें क्या फायदा हुआ है?
7 आज कई जवानों के माता-पिता और दादा-दादी सच्चाई में हैं और लोइस और यूनीके की तरह आध्यात्मिक लक्ष्य रखने की अहमियत जानते हैं। परिवार के ऐसे सदस्य, जवानों के लिए क्या ही आशीष रहे हैं! मिसाल के तौर पर, सामीरा को लीजिए। जब वह एक किशोर थी, तब अपने माता-पिता के साथ घंटों बातें किया करती थी। वो बातें आज भी उसके ज़हन में ताज़ी हैं। वह कहती है: “मेरे मम्मी-पापा ने मुझे हर बात को यहोवा के नज़रिए से देखना और प्रचार काम को ज़िंदगी में पहली जगह देना सिखाया। उन्होंने हमेशा मुझे पूरे समय की सेवा करने के लिए उकसाया।” सामीरा को अपने माता-पिता से जो बढ़ावा मिला, उसकी वजह से उसने पूरे समय की सेवा करने का लक्ष्य रखा। नतीजा, आज वह अपने देश के बेथेल में सेवा कर रही है। अगर आपके माता-पिता भी आपको आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करने का बढ़ावा देते हैं, तो उनकी बात पर गहराई से सोचिए। आखिर वे आपकी भलाई चाहते हैं।—नीतिवचन 1:5.
8. हौसला बढ़ानेवाले मसीहियों के साथ संगति करने से तीमुथियुस को कैसे फायदा पहुँचा?
8 इसके अलावा, यह भी ज़रूरी है कि आप ऐसे मसीही भाई-बहनों के साथ संगति करें जो आपका हौसला बढ़ा सकते हैं। तीमुथियुस ने भी यही किया था। इसलिए लुस्त्रा में उसकी कलीसिया के मसीही प्राचीनों में, साथ ही वहाँ से करीब 30 किलोमीटर दूर इकुनियुम के प्राचीनों में भी उसका अच्छा नाम था। (प्रेरितों 16:1, 2) उसने पौलुस जैसे जोशीले इंसान के साथ गहरी दोस्ती की। (फिलिप्पियों 3:14) पौलुस की पत्रियाँ दिखाती हैं कि तीमुथियुस खुशी-खुशी उसकी सलाह मानता था और विश्वास की उम्दा मिसाल रखनेवाले मसीहियों की नकल करने में देर नहीं करता था। (1 कुरिन्थियों 4:17; 1 तीमुथियुस 4:6, 12-16) पौलुस ने लिखा: “तुमने मेरी शिक्षा, मेरे आचरण, मेरे उद्देश्य, मेरे विश्वास, सहिष्णुता, प्रेम भावना और परिश्रम का अनुकरण किया है।” (2 तीमुथियुस 3:10, नयी हिन्दी बाइबिल) जी हाँ, तीमुथियुस ने पौलुस की मिसाल का अनुकरण किया। तीमुथियुस की तरह, अगर आप भी कलीसिया के उन भाई-बहनों के साथ गहरी दोस्ती करें जो विश्वास में मज़बूत हैं, तो आपको भी बढ़िया आध्यात्मिक लक्ष्य रखने में मदद मिलेगी।—2 तीमुथियुस 2:20-22.
“पवित्र शास्त्र” का अध्ययन कीजिए
9. अच्छी संगति चुनने के अलावा, आपको क्या करना चाहिए ताकि आप ‘ईश्वरीय भक्ति को अपना लक्ष्य बनाकर खुद को प्रशिक्षण दे’ सकें?
9 क्या सिर्फ अच्छी संगति चुनने से आप आध्यात्मिक लक्ष्य पा सकते हैं? जी नहीं। इसके अलावा, आपको “पवित्र शास्त्र” का गहरा अध्ययन करने की भी ज़रूरत है, ठीक जैसे तीमुथियुस ने किया था। हो सकता है अध्ययन करना आपको पसंद न हो, मगर याद रखिए, तीमुथियुस को ‘ईश्वरीय भक्ति को अपना लक्ष्य बनाकर खुद को प्रशिक्षित’ करना था। खिलाड़ी अपना लक्ष्य पाने के लिए अकसर महीनों तक प्रशिक्षण या कड़ी मेहनत करते हैं। उसी तरह, आध्यात्मिक लक्ष्य पाने के लिए त्याग और कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है। (1 तीमुथियुस 4:7, 8, 10) लेकिन शायद आप पूछें: ‘बाइबल का अध्ययन करने से मैं अपने लक्ष्य कैसे हासिल कर सकता हूँ?’ आइए तीन तरीकों पर गौर करें।
10, 11. बाइबल आपको आध्यात्मिक लक्ष्य हासिल करने की प्रेरणा कैसे देती है? इसकी एक मिसाल दीजिए।
10 पहला, बाइबल आपको आध्यात्मिक लक्ष्य हासिल करने के लिए सही प्रेरणा देगी। बाइबल, स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता की बेमिसाल शख्सियत और हमारी खातिर उसने प्यार की जो महान मिसाल कायम की है, उस बारे में बताती है। साथ ही, बाइबल यहोवा के वफादार सेवकों को भविष्य में मिलनेवाली हमेशा की आशीषों के बारे में भी बताती है। (आमोस 3:7; यूहन्ना 3:16; रोमियों 15:4) जैसे-जैसे यहोवा के बारे में आपका ज्ञान बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे उसके लिए आपका प्यार और उसे अपनी ज़िंदगी समर्पित करने की आपकी इच्छा भी गहरी होती जाएगी।
11 कई मसीही जवानों का कहना है कि रोज़ाना निजी बाइबल अध्ययन करने की वजह से ही वे सच्चाई को अपना बना पाए हैं। अडेल की मिसाल लीजिए। उसकी परवरिश एक मसीही परिवार में हुई थी, लेकिन उसने अपने आगे कभी कोई आध्यात्मिक लक्ष्य नहीं रखा था। वह कहती है: “मेरे मम्मी-डैडी मुझे राज्य घर ले तो जाते थे, मगर मैं सभाओं में ध्यान नहीं देती थी और ना ही निजी अध्ययन करती थी।” लेकिन अपनी बड़ी बहन के बपतिस्मे के बाद से अडेल ने सच्चाई को गंभीरता से लेना शुरू किया। वह आगे कहती है: “मैंने बाइबल पढ़ना शुरू किया। पहले मैं बाइबल का कुछ भाग पढ़ती और फिर उसके बारे में कुछ नोट लिखती थी। आज तक वे सारे नोट्स मैंने सँभालकर रखे हैं। इस तरह, एक साल में मैंने पूरी बाइबल पढ़ ली।” नतीजा, अडेल को अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। गंभीर रूप से अपंग होते हुए भी अडेल आज एक पायनियर या पूरे समय की प्रचारक है।
12, 13. (क) बाइबल का अध्ययन एक नौजवान को अपनी ज़िंदगी में क्या बदलाव करने में मदद देगा, और कैसे? (ख) परमेश्वर के वचन में दर्ज़ व्यावहारिक बुद्धि की मिसालें दीजिए।
12 दूसरा, बाइबल आपको अपनी शख्सियत में ज़रूरी बदलाव करने में मदद देगी। पौलुस ने तीमुथियुस से कहा कि “पवित्र शास्त्र” ‘उपदेश देने, समझाने, सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।’ (2 तीमुथियुस 3:16, 17) अगर आप हर दिन परमेश्वर के वचन पर मनन करेंगे और उसमें दिए सिद्धांतों को अपनी ज़िंदगी में लागू करेंगे, तो आप परमेश्वर की आत्मा को अपनी शख्सियत में निखार लाने दे रहे होंगे। इस आत्मा की बदौलत, आप अपने अंदर ज़रूरी गुण बढ़ा पाएँगे, जैसे मेहनती और नम्र होना, धीरज धरना, और मसीही भाई-बहनों के लिए सच्चा प्यार दिखाना। (1 तीमुथियुस 4:15) तीमुथियुस ने भी अपने अंदर ये गुण बढ़ाए थे। इसीलिए वह पौलुस और उन कलीसियाओं के लिए आशीष साबित हुआ जिनमें उसने सेवा की थी।—फिलिप्पियों 2:20-22.
13 तीसरा, परमेश्वर का वचन व्यावहारिक बुद्धि का भंडार है। (भजन 1:1-3; 19:7; 2 तीमुथियुस 2:7; 3:15) यह आपको सोच-समझकर दोस्ती करने, साफ-सुथरा मनोरंजन चुनने और दूसरे कई मुश्किल फैसले करने में मदद देगा। (उत्पत्ति 34:1, 2; भजन 119:37; 1 कुरिन्थियों 7:36) अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि आप अभी-से बुद्धि-भरे फैसले करें।
“श्रेष्ठ युद्ध लड़ते रहो”
14. आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करना इतना आसान क्यों नहीं?
14 आध्यात्मिक लक्ष्यों को ज़िंदगी में पहली जगह देना बुद्धिमानी है। मगर ऐसा करते रहना हरगिज़ आसान नहीं। मिसाल के लिए, जब करियर चुनने की बात आती है, तो आपके दोस्त, रिश्तेदार और आपका भला चाहनेवाले शिक्षक शायद आप पर यह ज़बरदस्त दबाव डालें कि आप ऊँची शिक्षा हासिल करें और एक ऐसा करियर चुनें जिससे आप खूब दौलत और शोहरत कमा सकें। क्योंकि उनकी नज़र में ज़िंदगी में सच्ची कामयाबी और खुशी पाने का यही रास्ता है। (रोमियों 12:2) तीमुथियुस की तरह, आपको भी ‘विश्वास का श्रेष्ठ युद्ध लड़ना’ (नयी हिन्दी बाइबिल) होगा, ताकि आप उस ‘अनन्त जीवन को धर लें’ जो यहोवा ने आपके सामने रखा है।—1 तीमुथियुस 6:12; 2 तीमुथियुस 3:12.
15. तीमुथियुस को शायद कैसे हालात का सामना करना पड़ा था?
15 आध्यात्मिक लक्ष्यों को पहली जगह देना तब आपके लिए और भी चुनौती-भरा हो सकता है, जब आपके परिवार के अविश्वासी सदस्य आपके इस फैसले से खुश न हों। शायद तीमुथियुस को भी ऐसे हालात का सामना करना पड़ा था। एक किताब कहती है कि शायद तीमुथियुस का परिवार “पढ़े-लिखे और अमीर घरानों में से एक था।” इसलिए उसके पिता ने चाहा हो कि वह ऊँची शिक्षा हासिल करे और खानदानी कारोबार सँभाले।a लेकिन ऐसा करने के बजाय, तीमुथियुस ने पौलुस के साथ मिशनरी सेवा करने का फैसला किया। ज़रा सोचिए, उसके पिता को कैसा लगा होगा जब उसे पता चला कि तीमुथियुस अपनी ज़िंदगी ऐसे काम में लगा देना चाहता था, जो आर्थिक रूप से कोई फायदे का नहीं और जोखिम-भरा था।
16. एक जवान मसीही ने अपने पिता के विरोध का सामना कैसे किया?
16 आज के जवान मसीही भी ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। मैथ्यू, जो यहोवा के साक्षियों के एक शाखा दफ्तर में सेवा कर रहा है, अपने बीते वक्त को याद करके कहता है: “जब मैंने अपनी पायनियर सेवा शुरू की और अपना खर्च उठाने के लिए इमारतों की साफ-सफाई करने की नौकरी चुनी, तब मेरे पिताजी बहुत निराश हो गए। उन्हें लगा जैसे मेरी सारी पढ़ाई-लिखाई ‘बेकार’ चली गयी है। वे बार-बार यह कहकर मुझ पर ताने कसते थे कि अगर मैं पूरे समय की नौकरी करता, तो बहुत कमा सकता था।” मैथ्यू ने इस विरोध का सामना कैसे किया? वह कहता है: “मैं अपने शेड्यूल के मुताबिक बिना नागा बाइबल पढ़ता रहा। और लगातार प्रार्थना करता रहा, खासकर तब जब मैं अपना आपा खोने ही वाला होता था।” अपने इरादे पर अटल रहने की वजह से मैथ्यू को अच्छे नतीजे मिले। वक्त के गुज़रते, मैथ्यू और उसके पिताजी के रिश्ते में सुधार आया। मैथ्यू ने यह भी पाया कि वह पहले से ज़्यादा यहोवा के करीब आ गया है। वह कहता है: “मैंने महसूस किया है कि कैसे यहोवा ने मेरी ज़रूरतें पूरी कीं, मुझे हर कदम पर हिम्मत दी और गलत फैसले लेने से बचाया। अगर मैंने आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा न किया होता, तो शायद ही मैं इन सब बातों का अनुभव कर पाता।”
आध्यात्मिक लक्ष्यों पर अपना ध्यान लगाए रखिए
17. कुछ लोग किस तरह अनजाने में पूरे समय की सेवा करने का इरादा रखनेवालों की हिम्मत तोड़ सकते हैं? (मत्ती 16:22)
17 कभी-कभी तो कलीसिया के भाई-बहन ही अनजाने में आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करने में आपकी हिम्मत तोड़ सकते हैं। उनमें से कुछ शायद यह कहें, ‘तुम्हें पायनियर बनने की क्या ज़रूरत है? तुम एक आम ज़िंदगी जीकर भी तो प्रचार कर सकते हो। एक अच्छी नौकरी ढूँढ़कर अपने भविष्य के लिए कुछ जमा कर लो।’ सुनने में तो यह सलाह काफी कारगर लग सकती है, मगर क्या इसे मानकर आप ईश्वरीय भक्ति को अपना लक्ष्य बनाकर खुद को प्रशिक्षण दे रहे होंगे?
18, 19. (क) आध्यात्मिक लक्ष्यों पर अपना ध्यान लगाए रखने के लिए आप क्या कर सकते हैं? (ख) बताइए कि एक जवान होने के नाते, आप राज्य की खातिर क्या-क्या त्याग कर रहे हैं।
18 तीमुथियुस के ज़माने के कुछ मसीही भी शायद ऐसी ही सोच रखते थे। (1 तीमुथियुस 6:17) मगर तीमुथियुस का ध्यान आध्यात्मिक लक्ष्यों से न भटके, इसके लिए पौलुस ने उसे यह बढ़ावा दिया: “जब कोई योद्धा लड़ाई पर जाता है, तो इसलिये कि अपने भरती करनेवाले को प्रसन्न करे, अपने आप को संसार के कामों में नहीं फंसाता।” (2 तीमुथियुस 2:4) जब एक योद्धा युद्ध के मैदान में होता है, तब वह अपना ध्यान उन कामों में लगाने की सोच भी नहीं सकता, जिनमें आम लोग खोए रहते हैं। वह जानता है कि अपने कमान-अधिकारी की आज्ञाएँ मानने के लिए हरदम तैयार रहने से ही उसकी और दूसरों की जान सही-सलामत रह सकती है। मसीह का योद्धा होने के नाते, आपको भी अपना ध्यान आध्यात्मिक लक्ष्यों से भटकने नहीं देना है और धन-दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने के फँदे से बचना है। क्योंकि अगर आप ऐसा न करें, तो आप लोगों की जान बचाने का अपना काम पूरा नहीं कर पाएँगे।—मत्ती 6:24; 1 तीमुथियुस 4:16; 2 तीमुथियुस 4:2, 5.
19 आराम की ज़िंदगी का पीछा करने के बजाय, अपने अंदर त्याग की भावना पैदा कीजिए। “मसीह यीशु का एक सैनिक होने के नाते, ज़िंदगी की सुख-सुविधाओं के बगैर जीने के लिए तैयार रहो।” (2 तीमुथियुस 2:3, द इंग्लिश बाइबल इन बेसिक इंग्लिश) पौलुस के साथ रहकर तीमुथियुस ने बुरे-से-बुरे हालात में भी उसके पास जो था उसी में खुश रहना सीखा। (फिलिप्पियों 4:11, 12; 1 तीमुथियुस 6:6-8) आप भी ऐसा कर सकते हैं। क्या आप राज्य की खातिर अपनी ज़िंदगी में त्याग करने के लिए तैयार हैं?
आज और भविष्य में मिलनेवाली आशीषें
20, 21. (क) आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करने से मिलनेवाली कुछ आशीषें बताइए। (ख) आपने क्या करने की ठानी है?
20 तीमुथियुस ने करीब 15 साल तक पौलुस के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम किया। जैसे-जैसे सुसमाचार उत्तरी भूमध्य सागर के आस-पास के लगभग सारे इलाकों में फैलता गया, तीमुथियुस ने खुद अपनी आँखों से नयी-नयी कलीसियाओं को बनते देखा। इस सेवा की वजह से तीमुथियुस की ज़िंदगी जितनी रोमांचक और संतोष-भरी थी, ऐसा अनुभव उसे एक “आम” ज़िंदगी जीने से शायद ही मिलता। आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करने से आपको भी कई अनमोल आशीषें मिलेंगी। आप यहोवा के करीब आएँगे, साथ ही, मसीही भाई-बहनों का प्यार और आदर पाएँगे। आप उस निराशा और दर्द से बच पाएँगे जो धन-दौलत के पीछे भागने से मिलता है। इसके बजाय, आपको वह सच्ची खुशी मिलेगी जो दूसरों की खातिर खुद को दे देने से मिलती है। और सबसे बढ़कर, आप “सच्ची ज़िन्दगी पर कब्ज़ा” (हिन्दुस्तानी बाइबल) कर पाएँगे, यानी इस धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी जी पाएँगे।—1 तीमुथियुस 6:9, 10, 17-19; प्रेरितों 20:35.
21 अगर आपने अब तक ईश्वरीय भक्ति को अपना लक्ष्य बनाकर खुद को प्रशिक्षित नहीं किया है, तो हम आपको तहेदिल से बढ़ावा देते हैं कि ऐसा करने में आप देरी न करें। कलीसिया में उन लोगों के करीब आइए जो आध्यात्मिक लक्ष्यों को पाने में आपकी मदद कर सकते हैं और इस मामले में उनसे सलाह लीजिए। बाइबल के नियमित अध्ययन को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दीजिए। धन-दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने के रवैए का डटकर मुकाबला कीजिए। और हमेशा याद रखिए कि “हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से दे[नेवाला]” परमेश्वर वादा करता है कि अगर आप ऐसे लक्ष्यों का पीछा करें जिनसे उसकी महिमा होती है, तो वह आज और भविष्य में भी आप पर ढेरों आशीषें बरसाएगा।—1 तीमुथियुस 6:17. (w07 5/1)
[फुटनोट]
a यूनानी समाज में शिक्षा को बहुत अहमियत दी जाती थी। तीमुथियुस के ज़माने के एक शख्स प्लूटार्क ने लिखा: “अच्छी शिक्षा से अच्छे गुण बढ़ाए जाते हैं। . . . मेरा मानना है कि इस शिक्षा की बदौलत ही एक इंसान नैतिकता के ऊँचे आदर्शों पर चल पाता है और खुश रह पाता है। . . . बाकी सब चीज़ें बेकार, मामूली और ज़रा-भी ध्यान देने लायक नहीं।”—मोराल्या, I, “बच्चों की शिक्षा।” (अँग्रेज़ी)
क्या आपको याद है?
• आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करने के लिए जवानों को कहाँ से मदद मिल सकती है?
• मन लगाकर बाइबल अध्ययन करना क्यों ज़रूरी है?
• जवान लोग धन-दौलत की दीवानी इस दुनिया से आनेवाले दबावों का सामना कैसे कर सकते हैं?
• आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करने से क्या-क्या आशीषें मिलती हैं?
[पेज 29 पर तसवीरें]
किन लोगों की बेहतरीन मिसालों का तीमुथियुस पर अच्छा असर पड़ा?