अध्याय 18
‘परमेश्वर के वचन’ में बुद्धि
1, 2. यहोवा ने हमें कौन-सा “खत” लिखा है, और क्यों?
क्या आपको कभी दूर देश में रहनेवाले किसी अज़ीज़ का खत मिला है? जिसे हम दिलो-जान से चाहते हैं उसका प्यार-भरा खत हमें जितनी खुशी देता है, उतनी शायद ही कोई और बात दे। वह ठीक-ठाक है, उसके साथ क्या-क्या हुआ और वह आगे क्या करने की सोच रहा है, ये सारी बातें पढ़कर हमें बेहद खुशी होती है। चिट्ठियों से हमारे अज़ीज़ हमारे दिल के करीब रहते हैं, फिर चाहे वे सात समंदर पार ही क्यों न हों।
2 तो फिर, इससे बढ़कर हमारे लिए खुशी की बात और क्या होगी कि जिस परमेश्वर से हम प्यार करते हैं उसका लिखा हुआ संदेश हमें मिले? यहोवा ने भी हमें एक तरह का “खत” लिखा है, और वह है उसका वचन बाइबल। इसमें उसने बताया है कि वह कौन है, उसने क्या-क्या किया है, वह आगे क्या करने जा रहा है, और इसके अलावा भी बहुत कुछ। यहोवा ने हमें अपना वचन इसलिए दिया है, क्योंकि वह चाहता है कि हम उसके करीब आएँ। हमारे सबसे बुद्धिमान परमेश्वर ने हम तक अपने विचार पहुँचाने का यह सबसे बेहतरीन तरीका चुना है। बाइबल में जो लिखा है और जिस तरीके से लिखा है, उसमें बेजोड़ बुद्धि देखी जा सकती है।
लिखित वचन क्यों?
3. यहोवा ने मूसा को कानून-व्यवस्था किस तरह दी?
3 कुछ लोग शायद सोचें, ‘यहोवा ने इंसान से बात करने के लिए कोई और हैरतअँगेज़ तरीका, जैसे आकाशवाणी का इस्तेमाल क्यों नहीं किया?’ दरअसल, कई मौकों पर यहोवा ने अपने स्वर्गदूतों के ज़रिए आकाशवाणी भी की। मिसाल के लिए, जब उसने इस्राएल को व्यवस्था दी तो ऐसा ही किया था। (गलतियों 3:19) स्वर्ग से आवाज़ सुनकर इस्राएलियों पर भय छा गया, यहाँ तक कि वे डर के मारे काँपने लगे। तब उन्होंने यहोवा से कहा कि वह इस तरह उनसे बात न करे बल्कि मूसा के ज़रिए बात करे। (निर्गमन 20:18-20) इसलिए, 600 नियमोंवाली कानून-व्यवस्था शब्द-ब-शब्द मूसा को सुनायी गयी।
4. समझाइए कि क्यों ज़बानी तौर पर परमेश्वर के नियमों को दूसरों तक पहुँचाने का तरीका भरोसेमंद नहीं होता।
4 लेकिन, मूसा इस कानून-व्यवस्था को अगर लिखकर न रखता, तो क्या होता? क्या वह इस व्यवस्था के ढेरों नियमों का एक-एक शब्द याद रख पाता और क्या बिना चूक किए इसे शब्द-ब-शब्द सारी इस्राएल जाति तक पहुँचा पाता? अगर वह लिखता नहीं, तो आनेवाली पीढ़ियाँ क्या करतीं? क्या उन्हें सिर्फ ज़बानी तौर पर कही गयी बातों पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना पड़ता? उन तक परमेश्वर की व्यवस्था मुँह-ज़बानी पहुँचाने का तरीका बिलकुल भरोसेमंद नहीं होता। मान लीजिए कि आपको लंबी कतार में खड़े लोगों को एक कहानी सुनानी है। आप पहले इंसान को कहानी सुनाते हैं, फिर पहला दूसरे को, दूसरा तीसरे को। आखिरी इंसान तक पहुँचते-पहुँचते आपकी कहानी काफी हद तक बदल चुकी होगी, है कि नहीं? लेकिन परमेश्वर की कानून-व्यवस्था के इस तरह बदल जाने का कोई खतरा नहीं था क्योंकि यह लिखित रूप में थी।
5, 6. यहोवा ने मूसा को अपने वचनों के बारे में क्या करने की हिदायत दी, और इनका लिखित रूप में होना क्यों हमारे लिए एक आशीष है?
5 यहोवा ने बुद्धिमानी का सबूत देते हुए यह फैसला किया कि वह अपने वचन को लिखित रूप में दर्ज़ करवाएगा। उसने मूसा को हिदायत दी: “ये वचन लिख ले; क्योंकि इन्हीं वचनों के अनुसार मैं तेरे और इस्राएल के साथ वाचा बान्धता हूं।” (निर्गमन 34:27) इस तरह, सा.यु.पू. 1513 से बाइबल को लिखने का दौर शुरू हुआ। आनेवाले 1,610 सालों के दौरान, यहोवा ने करीब 40 लेखकों से “अनेक अवसरों पर अनेक प्रकार से . . . बातचीत की” और उन्होंने ये बातें बाइबल में लिख लीं। (इब्रानियों 1:1, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) उनके साथ-साथ, ऐसे नकलनवीसों ने जो अपने काम के लिए समर्पित थे, पूरी एहतियात बरतते हुए बारीकी के साथ बाइबल की नकलें तैयार कीं ताकि परमेश्वर के वचन को सुरक्षित रखा जा सके।—एज्रा 7:6; भजन 45:1.
6 यह हमारे लिए सचमुच बड़ी आशीष है कि यहोवा ने लिखित रूप में हमसे बातचीत की है। क्या आपको कभी ऐसा कोई खत मिला है जिससे आपको ज़रूरत की घड़ी में ऐन वक्त पर बहुत दिलासा मिला हो? ऐसे प्यारे खत को आप बहुत संभालकर रखते हैं और इसे बार-बार पढ़ते हैं। यहोवा ने हमें जो “खत” लिखा है वह ऐसा ही एक खत है। उसने अपने वचनों को लिख दिया है, इसलिए हम उन्हें बार-बार पढ़ सकते हैं और उसके संदेश पर मनन कर सकते हैं। (भजन 1:2) जब भी हमें ज़रूरत हो, तब हम ‘शास्त्र से शान्ति’ पा सकते हैं।—रोमियों 15:4.
इंसानी लेखक क्यों?
7. यहोवा ने बाइबल लिखने के लिए इंसानों का इस्तेमाल किया, इससे उसकी बुद्धि कैसे दिखायी देती है?
7 यहोवा ने अपना वचन लिखने के लिए इंसानों का इस्तेमाल करके अपनी बुद्धि का सबूत दिया है। ज़रा सोचिए: अगर यहोवा बाइबल लिखने के लिए स्वर्गदूतों का इस्तेमाल करता तो क्या इसमें वही कशिश होती जो अब है? माना कि स्वर्गदूतों ने अपने श्रेष्ठ नज़रिए से यहोवा का वर्णन किया होता, उसके लिए अपनी भक्ति का बखान किया होता और परमेश्वर के वफादार सेवकों के बारे में ब्यौरा भी लिखा होता। मगर उन सिद्ध आत्मिक प्राणियों का ज्ञान, तजुर्बा और उनकी शक्ति हमसे कई गुना बढ़कर है, इसलिए क्या हम उनके नज़रिए से यहोवा को ठीक-ठीक समझ पाते?—इब्रानियों 2:6, 7.
“हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है”
8. किस तरह बाइबल के लेखकों को अपनी दिमागी काबिलीयत इस्तेमाल करने की छूट दी गयी? (फुटनोट भी देखिए।)
8 लिखने के लिए इंसानों का इस्तेमाल करके, यहोवा ने हमें वही दिया जिसकी हमें ज़रूरत थी, यानी एक ऐसा शास्त्र जिसे “परमेश्वर की प्रेरणा” से, मगर इंसान की नज़र से लिखा गया। (2 तीमुथियुस 3:16) यहोवा ने यह कैसे मुमकिन किया? कई मामलों में उसने लेखकों को यह छूट दी कि वे अपनी दिमागी काबिलीयत का इस्तेमाल करें और “मनोहर शब्द” ढूँढ़कर “सच्चाई के वचन शुद्ध रूप में” लिखें। (सभोपदेशक 12:10, 11, NHT) यही वजह है कि बाइबल में अलग-अलग लेखन-शैलियाँ पायी जाती हैं; इसके लेखक जिस माहौल में पले-बढ़े थे, उनका जो पेशा था और उनमें जो-जो गुण थे उनकी शैलियों से इसकी साफ झलक मिलती है।a तो भी, ये पुरुष “पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।” (2 पतरस 1:21) इसलिए, आखिरकार जो रचना तैयार हुई, वह इंसानों का नहीं बल्कि सचमुच “परमेश्वर का वचन” है।—1 थिस्सलुनीकियों 2:13.
9, 10. इंसानी लेखकों की वजह से क्यों बाइबल के संदेश में अपनापन है, और इसका संदेश क्यों हमें अपनी तरफ खींचता है?
9 बाइबल को इंसानों ने लिखा है, इसीलिए हम इसमें अपनापन महसूस करते हैं और इसका संदेश हमें अपनी तरफ खींचता है। इसके लिखनेवाले हमारी तरह ही महसूस करते थे। असिद्ध होने की वजह से, उन पर वैसी ही परीक्षाएँ और दबाव आए जैसे हम पर आते हैं। कई बार, यहोवा की आत्मा ने उन्हें अपनी ही भावनाओं और संघर्षों के बारे में लिखने की प्रेरणा दी। (2 कुरिन्थियों 12:7-10) इसलिए उन्होंने जिस तरह अपनी आपबीती बयान की, वह कोई स्वर्गदूत नहीं कर सकता था।
10 इस्राएल के राजा दाऊद की ही मिसाल लीजिए। जब उसने गंभीर पाप किया, तो उसने एक भजन की रचना की जिसमें उसने परमेश्वर से माफी की भीख माँगते हुए अपने दिल का हाल सुनाया। उसने लिखा: “मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर! मैं तो अपने अपराधों को जानता हूं, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है। देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा। मुझे अपने साम्हने से निकाल न दे, और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से अलग न कर। टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।” (भजन 51:2, 3, 5, 11, 17) लेखक के दिल में कितना दर्द है, क्या आप उसे महसूस नहीं करते? एक असिद्ध इंसान के सिवाय और कौन दिल की गहरी भावनाएँ इस तरह बयान कर सकता था?
लोगों के बारे में क्यों?
11. लोगों की ज़िंदगियों की कैसी सच्ची मिसालें, बाइबल में “हमारी ही शिक्षा के लिये” लिखी गयी हैं?
11 एक और बात है जिसकी वजह से बाइबल का संदेश हमें अपनी तरफ खींचता है और वह यह कि इसमें काफी हद तक असली लोगों के बारे में लिखा गया है। जी हाँ, इसमें उन लोगों के सच्चे किस्से पाए जाते हैं जो या तो परमेश्वर के सेवक थे, या फिर नहीं थे। हम उनकी आपबीती, उनकी तकलीफों और खुशियों के बारे में इस किताब में पढ़ते हैं। हम यह भी देख पाते हैं कि उनके फैसलों का उनकी ज़िंदगी पर क्या असर हुआ। और इन सभी को “हमारी ही शिक्षा के लिये” इसमें लिखा गया है। (रोमियों 15:4) सचमुच के लोगों की ज़िंदगियों की मिसाल देकर यहोवा ने हमें ऐसे तरीके से सिखाया है, जिसका सीधे हमारे दिल पर असर होता है। आइए कुछ मिसालों पर गौर करें।
12. बाइबल में विश्वासघाती लोगों के जो किस्से हैं, वे हमारी किस तरह मदद करते हैं?
12 बाइबल में विश्वासघातियों यहाँ तक कि दुष्ट लोगों का ज़िक्र पाया जाता है और यह भी बताया गया है कि उनका क्या हश्र हुआ। उनके बारे में लिखे किस्सों के ज़रिए हम कई दुर्गुणों की ज़िंदा मिसाल देख सकते हैं, और उन्हें आसानी से समझ सकते हैं। मिसाल के तौर पर, विश्वासघात करने के खिलाफ क्या कोई आज्ञा उतनी असरदार हो सकती थी जितना कि यहूदा की मिसाल, जो विश्वासघात की जीती-जागती तसवीर था और जिसने यीशु के साथ गद्दारी करके उसे मरवाने की साज़िश रची थी? (मत्ती 26:14-16, 46-50; 27:3-10) ऐसे किस्सों को हम आसानी से याद रख पाते हैं, इसलिए उनका हमारे दिल पर गहरा असर होता है और ये ऐसे घिनौने दुर्गुणों को पहचानने और उनसे दूर रहने में हमारी मदद करते हैं।
13. अच्छे गुणों को समझने में बाइबल हमारी किस तरह मदद करती है?
13 बाइबल हमें परमेश्वर के बहुत-से वफादार सेवकों के बारे में भी बताती है। यह उनकी भक्ति और वफादारी का ज़िक्र करती है। हम उन गुणों की जीती-जागती मिसालें भी देखते हैं, जिन्हें अपने अंदर पैदा करके हम परमेश्वर के करीब आ सकते हैं। मिसाल के लिए, विश्वास को लीजिए। बाइबल, विश्वास की परिभाषा देती है और यह बताती है कि परमेश्वर को खुश करने के लिए यह गुण कितना ज़रूरी है। (इब्रानियों 11:1, 6) इतना ही नहीं, बाइबल में विश्वास की ज़िंदा मिसालें भी दर्ज़ हैं। ज़रा इब्राहीम के उस विश्वास के बारे में सोचिए, जो उसने इसहाक को बलि चढ़ाते वक्त दिखाया था। (उत्पत्ति, अध्याय 22; इब्रानियों 11:17-19) इन किस्सों की मदद से “विश्वास” के और भी गहरे मायने पता लगते हैं और इसे समझना हमारे लिए ज़्यादा आसान हो जाता है। है ना यहोवा कितना बुद्धिमान, जो न सिर्फ हमें ऐसे अच्छे गुण पैदा करने के लिए उकसाता है, बल्कि इन गुणों की ज़िंदा मिसालें भी देता है।
14, 15. बाइबल हमें उस स्त्री के बारे में क्या बताती है जो मंदिर में आयी थी, और हम उसके किस्से से यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?
14 बाइबल में, लोगों के सच्चे किस्सों से अकसर हमें यहोवा की शख्सियत के बारे में कुछ-न-कुछ सीखने को मिलता है। गौर कीजिए कि बाइबल में उस स्त्री के बारे में क्या लिखा है जिस पर यीशु ने मंदिर में खास तौर से ध्यान दिया था। मंदिर की दान-पेटियों के पास बैठा, यीशु लोगों को पेटियों में दान डालता हुआ देख रहा था। बहुत-से अमीर लोग आए और उन्होंने अपनी “बढ़ती में से” कुछ दान दिया। मगर यीशु की नज़र एक गरीब विधवा पर आकर टिक गयी। उसने “दो छोटे-छोटे सिक्के” दान दिए, “जिनका मूल्य लगभग एक पैसे के बराबर” था।b उसके पास इन दो दमड़ियों के अलावा कुछ न था। यीशु ने, जो हर मामले में बिलकुल यहोवा की तरह सोचता था, कहा: “इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है।” इन शब्दों का मतलब यह है कि उसका दान बाकी सब लोगों के कुल दान से भी बढ़कर था।—मरकुस 12:41-44; लूका 21:1-4; यूहन्ना 8:28.
15 क्या यह बात मायने नहीं रखती कि उस दिन मंदिर में आनेवाले तमाम लोगों में से, सिर्फ उस विधवा पर ध्यान दिया गया और उसके बारे में बाइबल में दर्ज़ करवाया गया? इस मिसाल से, यहोवा हमें सिखाता है कि वह एक कदरदान परमेश्वर है। वह पूरे तन-मन से दिए गए हमारे हर दान से खुश होता है, फिर चाहे दूसरों के दान की तुलना में हमारा दान कितना ही कम क्यों न दिखायी दे। दिल को दिलासा देनेवाली इतनी बड़ी सच्चाई हमें सिखाने का, यहोवा के पास इस मिसाल से बेहतर और क्या तरीका हो सकता था!
बाइबल में जो नहीं बताया
16, 17. यहोवा ने अपने वचन में जिन बातों को शामिल न करने का फैसला किया उनसे भी कैसे उसकी बुद्धि ज़ाहिर होती है?
16 जब आप अपने किसी अज़ीज़ को खत लिखते हैं तो उसमें सारी बातें लिखना नामुमकिन होता है। इसलिए आप सोच-समझकर वही लिखते हैं जो ज़रूरी है। उसी तरह, यहोवा ने सिर्फ गिने-चुने लोगों और घटनाओं के बारे में अपने वचन में दर्ज़ करवाया है। मगर जानकारी देनेवाले इन किस्सों में भी बाइबल हर बात का ब्यौरा नहीं देती। (यूहन्ना 21:25) मिसाल के लिए, जब बाइबल परमेश्वर के न्यायदंडों के बारे में बताती है, तो इस जानकारी से शायद हमें अपने हर सवाल का जवाब न मिले। यहोवा ने अपने वचन में जिन बातों को शामिल न करने का फैसला किया उससे भी उसकी बुद्धि दिखायी देती है। वह कैसे?
17 जिस तरीके से बाइबल लिखी गयी है, वह हमारे दिल की जाँच करता है। इब्रानियों 4:12 कहता है: “परमेश्वर का वचन [या, संदेश] जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, . . . अलग करके, वार पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।” बाइबल का संदेश हमें अंदर तक बेध देता है, जिससे हमारे मन के विचार और असली इरादे खुलकर सामने आते हैं। जो लोग बाइबल में नुक्स निकालने के इरादे से इसे पढ़ते हैं, वे अकसर ऐसे हिस्सों पर यकीन करना मुश्किल पाते हैं जिनसे उन्हें पूरी तसल्ली नहीं होती। ऐसे लोग तो शायद इस बात पर भी सवाल उठाएँ कि क्या यहोवा सचमुच प्यार करनेवाला, बुद्धिमान और न्यायी परमेश्वर है?
18, 19. (क) अगर बाइबल के एक किस्से से ऐसे सवाल उठते हैं जिनका हमें फौरन जवाब नहीं मिल सकता, तो हमें क्यों परेशान नहीं होना चाहिए? (ख) परमेश्वर का वचन समझने के लिए क्या ज़रूरी है, और यह कैसे यहोवा की महान बुद्धि का सबूत है?
18 दूसरी तरफ, जब हम ध्यान लगाकर सच्चे दिल से बाइबल का अध्ययन करते हैं, तो हम यहोवा के बारे में वह देख पाते हैं जो पूरी बाइबल उसके बारे में सिखाती है। इसलिए, अगर कोई घटना पढ़कर हमारे मन में कुछ ऐसे सवाल उठते हैं जिनका हमें फौरन जवाब नहीं मिलता, तो हम इनको लेकर परेशान नहीं होते। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए: अगर एक तसवीर के बहुत-से टुकड़े हों जिन्हें जोड़कर पूरी तसवीर बनती है, किसी एक टुकड़े को देखकर शायद हमें पता न चले कि वह कहाँ जुड़ेगा। लेकिन अगर हमने तसवीर के ज़्यादातर टुकड़ों को जोड़ लिया है, तो हमें यह समझने में मुश्किल न होगी कि पूरी तसवीर कैसी दिखेगी। उसी तरह, जब हम बाइबल का अध्ययन करते हैं, तो हम धीरे-धीरे सीखते हैं कि यहोवा किस तरह का परमेश्वर है और हमें उसकी सही तसवीर दिखायी देने लगती है। चाहे हम पहली बार में किसी किस्से को न समझ पाएँ या यह समझ न पाएँ कि उसमें परमेश्वर ने जो किया वह ठीक था या नहीं, तो भी बाइबल के अध्ययन से सीखी बातों की मदद से हम इस नतीजे पर ज़रूर पहुंच सकते हैं कि यहोवा का प्यार कभी कम नहीं होता, वह खरा है और सच्चा न्याय करता है।
19 इसलिए, परमेश्वर के वचन को समझने के लिए ज़रूरी है कि हम सच्चे दिल और खुले दिमाग से इसे पढ़ें और इसका अध्ययन करें। क्या यह भी यहोवा की महान बुद्धि का सबूत नहीं? दुनिया के विद्वान ऐसी किताबें लिखते हैं जो सिर्फ “ज्ञानियों और समझदारों” के पल्ले पड़ती हैं। लेकिन ऐसी किताब की रचना सिर्फ परमेश्वर की बुद्धि से हो सकती है, जो उसी इंसान को समझ आए जिसका दिल साफ हो और इरादे नेक हों!—मत्ती 11:25.
“खरी बुद्धि” देनेवाली किताब
20. क्यों सिर्फ यहोवा ही हमें जीवन जीने का सबसे बेहतरीन तरीका बता सकता है, और बाइबल में ऐसा क्या है जिससे हमें मदद मिल सकती है?
20 अपने वचन में, यहोवा हमें जीवन जीने का सबसे बेहतरीन तरीका बताता है। वह हमारा सिरजनहार है, इसलिए वह हमसे बेहतर जानता है कि हमारी ज़रूरतें क्या हैं। और इंसान की बुनियादी ज़रूरतें शुरू से लेकर आज तक नहीं बदलीं, आज भी इंसान प्यार पाना चाहता है, उसमें खुश रहने की तमन्ना है और वह दूसरों के साथ मधुर रिश्ते रखना चाहता है। बाइबल में ऐसी “खरी बुद्धि” का खज़ाना पाया जाता है, जो हमें अपनी ज़िंदगी को कामयाब बनाने में मदद दे सकती है। (नीतिवचन 2:7) बाइबल की समझ देनेवाली इस किताब के हर भाग में एक अध्याय यह समझने में हमारी मदद करता है कि कैसे हम बाइबल की बुद्धिमानी भरी सलाह पर अमल कर सकते हैं। लेकिन अभी हम सिर्फ एक मिसाल पर गौर करेंगे।
21-23. बुद्धि से भरी क्या सलाह हमें बैर पालने और कुढ़ने से रोकेगी?
21 क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जो लोग दूसरों के खिलाफ मन में बैर पालते हैं और कुढ़ते रहते हैं, वे अकसर अपना ही नुकसान करते हैं? जलन-कुढ़न का बोझ बहुत भारी होता है। यह एक इंसान को किसी और बात के बारे में सोचने ही नहीं देता। उसका चैन छिन जाता है और वह खुश नहीं रह पाता। वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि दूसरों के खिलाफ बैर पालने से दिल की और दूसरी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे वैज्ञानिक अध्ययनों से बहुत पहले, बाइबल ने बुद्धिमानी से भरी यह सलाह दी: “क्रोध से परे रह, और जलजलाहट को छोड़ दे!” (भजन 37:8) पर हम ऐसा कैसे कर सकते हैं?
22 परमेश्वर का वचन हमें बुद्धि भरी यह सलाह देता है: “जो मनुष्य बुद्धि [“अंदरूनी समझ,” NW] से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को भुलाना उसको सोहता है।” (नीतिवचन 19:11) अंदरूनी समझ वह काबिलीयत है जिससे इंसान मामले की तह तक पहुँच पाता है, और वह देख पाता है जो शायद अभी नज़र ना आता हो। अंदरूनी समझ हमें समझदार बनाती है, क्योंकि हम यह देख पाते हैं कि एक इंसान ने जो कहा और किया उसकी असली वजह क्या थी। अगर हम उसके नेक इरादों, उसकी भावनाओं और उसके हालात को समझने की कोशिश करें, तो हो सकता है कि हम उसके बारे में अपने दिलो-दिमाग से बुरे विचार और बुरी भावनाएँ निकाल पाएँ।
23 बाइबल में यह सलाह भी दी गयी है: “एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।” (कुलुस्सियों 3:13) शब्द, “एक दूसरे की सह लो” इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि हमारे लिए दूसरों के साथ धीरज से पेश आना, और उनके ऐसे अवगुणों को बरदाश्त करना ज़रूरी है जो हमें चिढ़ दिलाते हैं। ऐसी सहनशीलता हमें छोटी-छोटी बातों को लेकर मन में बैर पालने से रोकेगी। “क्षमा” करने का मतलब है, मन से नाराज़गी निकाल देना। जब हमारे पास दूसरों को माफ करने की ठोस वजह हो, तो हमें उन्हें माफ कर देना चाहिए। हमारा बुद्धिमान परमेश्वर जानता है कि इससे न सिर्फ दूसरे का भला होगा, बल्कि ऐसा करना हमारे दिल और दिमाग की शांति के लिए ज़रूरी है। (लूका 17:3, 4) परमेश्वर के वचन में क्या ही बेहतरीन बुद्धि पायी जाती है!
24. जब हम परमेश्वर की बुद्धि के मुताबिक ज़िंदगी जीते हैं, तो इसका क्या अंजाम होता है?
24 अपने अपार प्रेम की वजह से, यहोवा हम तक अपना संदेश पहुँचाना चाहता था। इसके लिए उसने सबसे बेहतरीन तरीका चुना, यानी पवित्र आत्मा देकर इंसानी लेखकों के ज़रिए एक “खत” लिखवाया। इसलिए बाइबल के पन्नों पर खुद यहोवा की बुद्धि पायी जाती है। यह बुद्धि “अति विश्वासयोग्य” है। (भजन 93:5) जब हम इस बुद्धि के मुताबिक अपनी ज़िंदगी जीते हैं और दूसरों में इसे बाँटते हैं, तो हम सहज ही अपने सबसे बुद्धिमान परमेश्वर के करीब जाने लगते हैं। अगले अध्याय में, हम यहोवा की दूरंदेशी बुद्धि की एक और बढ़िया मिसाल पर चर्चा करेंगे: भविष्यवाणी करने और अपने मकसद को पूरा करने की उसकी काबिलीयत।
a मिसाल के लिए दाऊद ने, जो खुद एक चरवाहा था, अपने लेखनों में चरवाहों की ज़िंदगी की मिसालें दीं। (भजन 23) मत्ती, जो पहले कर वसूली का काम करता था, उसने अपने लेखन में बहुत बार संख्याओं और पैसों की कीमत का ज़िक्र किया है। (मत्ती 17:27; 26:15; 27:3) लूका ने जो एक वैद्य था, ऐसे शब्द इस्तेमाल किए जिससे उसके चिकित्सा के ज्ञान का पता लगता है।—लूका 4:38; 14:2; 16:20.
b ये सिक्के लेप्टान कहलाते थे, जो उस वक्त में इस्तेमाल होनेवाले यहूदी सिक्कों में सबसे कम कीमत रखते थे। दो लेप्टा, एक दिन की कमाई के 1/64वें हिस्से के बराबर थे। इन दो सिक्कों में एक गौरैया भी नहीं खरीदी जा सकती थी, जो उस वक्त गरीब लोगों का भोजन हुआ करती थी।