-
जो बातें तुम ने सीखीं, उनका पालन किया करोप्रहरीदुर्ग—2002 | सितंबर 15
-
-
“कथा-कहानियों” को ठुकराइए
8. (क) आज शैतान हमारा विश्वास तोड़ने की कैसी कोशिश करता है? (ख) दूसरा तीमुथियुस 4:3, 4 में पौलुस ने क्या चेतावनी दी?
8 शैतान हमारी खराई तोड़ने के लिए, उन शिक्षाओं के बारे में हमारे अंदर संदेह के बीज बोने की कोशिश करता है जो हमें सिखायी गयी थीं। पहली सदी की तरह, आज भी धर्म-त्यागी और दूसरे लोग, भोले-भाले लोगों का विश्वास तोड़ने की कोशिश करते हैं। (गलतियों 2:4; 5:7, 8) इसके लिए वे कभी-कभी मीडिया के ज़रिए, यहोवा के लोगों के काम करने के तरीके और उनके इरादों के बारे में सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं या फिर उसके बारे में सरासर झूठ बताते हैं। पौलुस ने चेतावनी दी कि कुछ लोग ऐसी बातों में आकर सच्चाई से दूर चले जाएँगे। उसने लिखा: “ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे। और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे।”—2 तीमुथियुस 4:3, 4.
9. पौलुस ने जब “कथा-कहानियों” का ज़िक्र किया तो उसका इशारा किन बातों की तरफ था?
9 पहली सदी में कुछ लोग, खरी बातों के आदर्श पर चलते रहने के बजाय, “कथा-कहानियों” में दिलचस्पी लेने लगे थे। ये कथा-कहानियाँ क्या थीं? शायद पौलुस ऐसी मनगढ़ंत कहानियों की बात कर रहा था, जैसे टोबीतa नाम की किताब में दी गयी कहानियाँ। इस किताब के बारे में झूठा दावा किया जाता है कि यह बाइबल का हिस्सा है। और शायद पौलुस सनसनीखेज़ बातों और अफवाहों का भी ज़िक्र कर रहा था। इतना ही नहीं, कुछ लोग “अपनी अभिलाषाओं के अनुसार” शायद ऐसे लोगों की बातों में आ गए, जो सिखाते थे कि परमेश्वर के स्तरों का सख्ती से पालन करना इतना ज़रूरी नहीं है या वे कलीसिया में अगुवाई करनेवालों की नुक्ताचीनी करते थे। (3 यूहन्ना 9, 10; यहूदा 4) शुरू के मसीहियों के लिए ठोकर खाने का चाहे जो भी कारण रहा हो, मगर यह बात पक्की है कि कुछ लोगों को परमेश्वर के वचन की सच्चाइयों के बजाय, झूठी बातें ही रास आयीं। इसलिए कुछ ही समय के अंदर, उन्होंने सीखी हुई बातों का पालन करना छोड़ दिया जिसकी वजह से आगे चलकर उन्हें ही आध्यात्मिक तौर पर नुकसान भुगतना पड़ा।—2 पतरस 3:15, 16.
10. आज के समय में फैलनेवाली कुछ कथा-कहानियाँ क्या हैं और यूहन्ना ने क्या चेतावनी दी?
10 आज अगर हम कथा-कहानियों की तरफ गुमराह होने से बचना चाहते हैं तो हमें ध्यान देना ज़रूरी है कि हम किस तरह की बातें पढ़ते और देखते हैं। इस मामले में हमें सही चुनाव करना चाहिए। मिसाल के लिए, मीडिया अकसर अनैतिक चालचलन का बढ़ावा देता है। बहुत-से लोग परमेश्वर के वजूद पर शक करते हैं या फिर नास्तिकवाद को बढ़ावा देते हैं। जो बाइबल को परमेश्वर का वचन नहीं मानते, वे बाइबल में लिखी घटनाओं और इसके दूसरे पहलुओं का इंसानी नज़रिए से अध्ययन करके, बाइबल के इस दावे का मज़ाक उड़ाते हैं कि यह परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी है। और आज के समय के धर्म-त्यागी, मसीहियों का विश्वास तोड़ने के लिए लगातार संदेह के बीज बोने की कोशिश करते हैं। पहली सदी में भी ऐसा ही खतरा फैला था, इसलिए प्रेरित यूहन्ना ने चेतावनी दी: “हे प्रियो, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: बरन आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं।” (1 यूहन्ना 4:1) इसलिए हमें चौकस रहने की ज़रूरत है।
11. हम विश्वास में हैं या नहीं, इसे परखने का एक तरीका क्या है?
11 इसी सिलसिले में पौलुस ने लिखा: “अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं।” (2 कुरिन्थियों 13:5) वह प्रेरित हमें उकसाता है कि हम हमेशा खुद को परखते रहें कि हम, सभी मसीही शिक्षाओं पर चल रहे हैं या नहीं। अगर हम ऐसे लोगों की बातों की तरफ खिंचे जा रहे हैं जो परमेश्वर के संगठन के इंतज़ामों से खुश नहीं हैं, तो हमें प्रार्थना करके खुद की जाँच करनी चाहिए। (भजन 139:23, 24) क्या यहोवा के लोगों में नुक्स निकालना हमारी आदत बन चुकी है? अगर हाँ, तो इसकी वजह क्या है? क्या किसी की बातों या व्यवहार से हमारे मन को चोट पहुँची है? अगर ऐसा है, तो क्या हम उस मामले के बारे में सही नज़रिया रखते हैं? इस संसार में हम पर जो भी क्लेश आता है, वह बस कुछ ही समय के लिए है। (2 कुरिन्थियों 4:17) अगर कलीसिया में हम किसी तरह की परीक्षा का सामना करते हैं, तो भी हम भला परमेश्वर की सेवा करना क्यों छोड़ें? अगर हम किसी बात को लेकर दुःखी हैं, तो क्या सबसे बेहतर उपाय यह नहीं होगा कि हम मामले को सुलझाने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करें और बाकी सब यहोवा के हाथ में छोड़ दें?—भजन 4:4; नीतिवचन 3:5, 6; इफिसियों 4:26.
12. बिरीयावासियों ने हमारे लिए क्या बढ़िया मिसाल रखी?
12 निजी अध्ययन से और कलीसिया की सभाओं से, हम जो सीखते हैं उसकी नुक्ताचीनी करने के बजाय, आइए हम उसके बारे में आध्यात्मिक तौर पर एक सही नज़रिया बनाए रखें। (1 कुरिन्थियों 2:14, 15) और परमेश्वर के वचन पर शक करने के बजाय, अक्लमंदी इसी में है कि हम पहली सदी के बिरीयावासियों के जैसा बनें, जो शास्त्र की गहराई से जाँच करते थे! (प्रेरितों 17:10, 11) इसके बाद, सीखनेवाली बातों के मुताबिक काम करें, कथा-कहानियों को ठुकराएँ और सच्चाई से लगे रहें।
13. हम किस तरह अनजाने में कथा-कहानियाँ फैला सकते हैं?
13 एक और किस्म की कथा-कहानी है जिससे हमें खबरदार रहना है। आजकल बहुत-सी सनसनीखेज़ खबरें फैलायी जा रही हैं और इसके लिए अकसर ई-मेल का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे किस्सों से सावधान रहना हमारे लिए अक्लमंदी होगी, खासकर ऐसी खबरों से जिनके बारे में हमें नहीं मालूम कि वे कहाँ से शुरू हुईं। अगर कलीसिया में अच्छा नाम रखनेवाले एक मसीही ने आपको कोई अनुभव या किस्सा भेजा है, तो भी इस बात की गारंटी नहीं कि उसे उस खबर की सच्चाई ठीक-ठीक पता है! इसीलिए हमारे पास जिन घटनाओं वगैरह की सच्चाई के बारे में सबूत नहीं हैं, उनकी खबर दूसरों को भेजने से हमें सावधान रहना चाहिए। बेशक हम ‘अभक्ति की कथा-कहानियाँ’ या ‘अशुद्ध कहानियाँ’ दूसरों तक नहीं पहुँचाना चाहेंगे। (1 तीमुथियुस 4:7, NHT) इसके अलावा, हमें एक-दूसरे से सच बोलने की आज्ञा दी गयी है, इसलिए अक्लमंदी इसी में होगी कि हम ऐसी हर बात से दूर रहें जिसकी वजह से हम अनजाने में झूठ फैला सकते हैं।—इफिसियों 4:25.
-
-
जो बातें तुम ने सीखीं, उनका पालन किया करोप्रहरीदुर्ग—2002 | सितंबर 15
-
-
a टोबीत नाम की किताब शायद सा.यु.पू. तीसरी सदी में लिखी गयी थी। इसमें, टोबीयाह नाम के एक यहूदी का झूठा किस्सा लिखा है और अंधविश्वास की बातें भरी पड़ी हैं। बताया जाता है कि टोबीयाह के पास एक दैत्य मछली के हृदय, पित्त और कलेजे का इस्तेमाल करके बीमारों को चंगा करने और भूत भगाने की शक्ति थी।
-