बाइबल की किताब नंबर 55—2 तीमुथियुस
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: रोम
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 65
यह करीब सा.यु. 65 की बात है। पौलुस को एक बार फिर रोम में बंदी बनाया गया है। लेकिन इस बार हालात पहले से कहीं बदतर हैं। वह क्यों? दरअसल सा.यु. 64 की जुलाई को रोम में एक बहुत बड़ी आग लगी। और रोम के 14 प्रांतों में से 10 प्रांतों में जान-माल का भारी नुकसान हुआ। रोमी इतिहासकार टेसिटस के मुताबिक, सम्राट नीरो इस अफवाह को रोकने में नाकाम था कि “यह आग उसके हुक्म पर लगायी गयी थी। इस उड़ती खबर को रफा-दफा करने के लिए नीरो ने सारा दोष एक समूह के मत्थे मढ़ दिया और उस पर ऐसे भयानक ज़ुल्म ढाए, जो बयान से बाहर हैं। . . . इस समूह को आम जनता, मसीहियों के नाम से जानती थी। . . . उन्हें शहर में आग लगाने के अपराध से ज़्यादा इंसानों से नफरत करने के लिए दोषी ठहराया गया। उन्हें ज़िल्लत की मौत दी गयी। कुछ लोगों को जानवरों की खाल पहनाकर कुत्तों के सामने फेंक दिया गया ताकि वे उन्हें फाड़ खाएँ। कुछ को सूलियों पर ठोंका गया या रात में अँधेरा दूर करने के लिए मशालों की तरह जलाया गया। नीरो ने अपने बगीचे को इन्हीं जलती हुई मशालों से रोशन किया। . . . इन मसीहियों के लिए कुछ लोगों के दिलों में हमदर्दी पैदा हुई। क्योंकि वे देख सकते थे कि उन्हें जनता के हित के लिए नहीं, बल्कि एक इंसान की क्रूरता की वजह से मारा जा रहा था।”a
2 ज़ुल्मों की इस आँधी के दौरान, पौलुस को रोम में कैद किया गया। इस बार उसे ज़ंजीरों से बाँधा गया। उसे एहसास था कि अब उसे रिहाई नहीं मिलेगी, बल्कि सज़ा-ए-मौत दी जाएगी। कैद में उससे बहुत कम लोग मिलने आए। वह इसलिए कि अगर कोई भी अपनी पहचान मसीही के तौर पर करता, तो उसकी खैर नहीं। उसे गिरफ्तार किया जाता और तड़पा-तड़पाकर मार दिया जाता। इसलिए जब इफिसुस का एक मसीही पौलुस से मिलने आया, तब उसने अपनी कदरदानी ज़ाहिर करते हुए कहा: “उनेसिफुरुस के घराने पर प्रभु दया करे, क्योंकि उस ने बहुत बार मेरे जी को ठंडा किया, और मेरी जंजीरों से लज्जित न हुआ। पर जब वह रोम में आया, तो बड़े यत्न से ढूंढ़कर मुझ से भेंट की।” (2 तीमु. 1:16, 17) यह जानते हुए कि उस पर मौत का खतरा मँडरा रहा है, पौलुस ने लिखा कि वह “परमेश्वर की इच्छा से यीशु मसीह का प्रेरित है और जिसे यीशु मसीह में जीवन पाने की प्रतिज्ञा” मिली है। (1:1, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) पौलुस को मालूम था कि उसके आगे मसीह के साथ जीने की आशा है। उसने उस ज़माने की सारी दुनिया में, यानी यरूशलेम से लेकर रोम तक सभी मुख्य शहरों में प्रचार किया था और शायद वह इसपानिया या स्पेन भी गया था। (रोमि. 15:24, 28) पौलुस ने वफादारी से अपनी दौड़ पूरी की।—2 तीमु. 4:6-8.
3 यह पत्री शायद पौलुस की शहादत से कुछ ही समय पहले यानी करीब सा.यु. 65 में लिखी गयी। ऐसा मालूम होता है कि तीमुथियुस अभी-भी इफिसुस में है, क्योंकि पौलुस ने उसे वहीं रहने के लिए कहा था। (1 तीमु. 1:3) लेकिन अब पौलुस तीमुथियुस से फौरन रोम आने की दो बार गुज़ारिश करता है और मरकुस को भी अपने साथ लाने के लिए कहता है। वह तीमुथियुस से यह भी कहता है कि वह आते समय उसका बागा और पुस्तकें भी लाए, जो वह त्रोआस में छोड़ आया था। (2 तीमु. 4:9, 11, 13, 21) पौलुस ने यह पत्री एक नाज़ुक घड़ी में लिखी थी और इससे तीमुथियुस को ज़बरदस्त ढाढ़स और हिम्मत मिली। यही नहीं, इस पत्री से हर दौर के मसीहियों की हौसला-अफज़ाई हुई है।
4 पहला तीमुथियुस पर चर्चा करते वक्त हमने जिन सबूतों पर गौर किया था, उन्हीं सबूतों की बिनाह पर दूसरा तीमुथियुस को भी सच्चा और पवित्र शास्त्र का हिस्सा माना जाता है। शुरू के लेखकों और टीकाकारों ने इस पत्री को सच्चा माना और इससे हवाले भी दिए। उनमें से एक था, दूसरी सदी का पॉलिकार्प।
क्यों फायदेमंद है
10 “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और . . . उपयोगी है।” किस लिए उपयोगी है? इसका जवाब पौलुस, तीमुथियुस को लिखी अपनी दूसरी पत्री में देता है: “शिक्षा, ताड़ना, सुधार और धार्मिकता की शिक्षा के लिए . . . जिससे कि परमेश्वर का भक्त प्रत्येक भले कार्य के लिए कुशल और तत्पर हो जाए।” (3:16, 17, NHT) इस तरह यह पत्री ज़ोर देकर बताती है कि “शिक्षा” देने का क्या फायदा है। आज धार्मिकता के सभी प्रेमियों को इस पत्री में दी बुद्ध-भरी सलाह माननी चाहिए। उन्हें पूरी कोशिश करनी चाहिए कि वे वचन के सिखानेवाले और ऐसा काम करनेवाले बनें, जो परमेश्वर को ग्रहणयोग्य हों और ‘सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाते हों।’ तीमुथियुस के दिनों में इफिसुस में जैसे हालात थे, वैसे ही हालात आज भी देखने को मिलते हैं। आज भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो ‘मूर्खता और अज्ञानता के विवाद’ (आर.ओ.वी.) करते हैं। वे ‘सदा सीखते तो रहते हैं पर सत्य की पहिचान तक कभी नहीं पहुंचते।’ और वे अपने स्वार्थ के लिए ‘खरे उपदेश’ को ठुकराते हैं और सिर्फ उन बातों को सुनना चाहते हैं, जो वे सुनना पसंद करते हैं। (2:15, 23; 3:7; 4:3, 4) दुनिया के इस भ्रष्ट करनेवाले असर से बचने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम विश्वास और प्रेम के साथ ‘खरी बातों के आदर्श’ को थामे रहें। यही नहीं, आज ऐसे कई लोगों की सख्त ज़रूरत है जो ‘परमेश्वर के भक्त’ तीमुथियुस की तरह कलीसिया के भाई-बहनों को और बाहरवालों को “सिखाने के योग्य हों।” जो लोग ‘नम्रता से योग्य शिक्षक’ (NHT) बनने और “सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा [“सिखाने की कला,” NW] के साथ” वचन का प्रचार करने की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेते हैं, वे क्या ही खुश हैं!—1:13; 2:2, 24, 25; 4:2.
11 जब पौलुस ने कहा कि तीमुथियुस “बालकपन से” पवित्र शास्त्र जानता था, तो इसका मतलब है कि यूनीके और लोइस ने उसे छुटपन से इसकी तालीम दी थी। इससे यह भी पता चलता है कि आज बच्चों को कब से बाइबल की तालीम दी जानी चाहिए। लेकिन अगर आगे चलकर सच्चाई के लिए हमारा जोश ठंडा पड़ने लगे, तब क्या? ऐसे में, पौलुस सलाह देता है कि हमें “सामर्थ, और प्रेम, और संयम” के साथ अपने अंदर दोबारा वह जोश पैदा करना चाहिए और निष्कपट विश्वास बनाए रखना चाहिए। पौलुस कहता है, “अन्तिम दिनों” में कठिन समय आएँगे, क्योंकि चारों तरफ झूठी शिक्षाओं की भरमार होगी और जवान लोग हिंसा और अपराध में शरीक होंगे। इसलिए सभी मसीहियों को, खासकर जवानों को ‘सब बातों में सावधान रहना चाहिए और अपनी सेवा को पूरा करना चाहिए।’—1:5-7; 3:1-5, 15; 4:5.
12 हम इनाम पाने के लिए जो मेहनत करते हैं, वह कभी व्यर्थ नहीं जाएगी। (2:3-7) इस सिलसिले में पौलुस, राज्य के वंश की ओर ध्यान दिलाते हुए कहता है: “यीशु मसीह को स्मरण रख, जो दाऊद के वंश से हुआ, और मरे हुओं में से जी उठा; और यह मेरे सुसमाचार के अनुसार है।” पौलुस इसी वंश, यानी यीशु मसीह में बने रहने की उम्मीद करता था। पौलुस को जल्द ही मौत की जो सज़ा मिलनेवाली थी, उसे वह हार नहीं बल्कि एक जीत मानते हुए कहता है: “अब मेरे लिए धार्मिकता का वह मुकुट तैयार है, जिसे न्यायी विचारपति प्रभु मुझे उस दिन प्रदान करेंगे–मुझ को ही नहीं, बल्कि उन सब को जिन्होंने प्रेम के साथ उन के प्रकट होने के दिन की प्रतीक्षा की है।” (2:8; 4:8, बुल्के बाइबिल) वाकई, वे लोग कितने खुश हैं जो अपनी बरसों की सेवा को याद करते हुए पौलुस के इन शब्दों को दोहरा सकते हैं। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि हम आज यहोवा की वफादारी से सेवा करें, प्रेम के साथ यीशु मसीह के प्रगट होने का इंतज़ार करें और पौलुस के जैसा भरोसा दिखाएँ, जिसने कहा: “प्रभु मुझे हर एक बुरे काम से छुड़ाएगा, और अपने स्वर्गीय राज्य में उद्धार करके पहुंचाएगा: उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।”—4:18.
[फुटनोट]
a टेसिटस की संपूर्ण रचना (अँग्रेज़ी), सन् 1942, मोसेस हेडस द्वारा संपादित, पेज 380-1.