शैतान के फंदों से खबरदार रहिए!
‘शैतान के फंदे से छूटकर आ जाओ।’—2 तीमु. 2:26.
आप क्या जवाब देंगे?
अगर आप हमेशा दूसरों में खामियाँ ढूँढ़ते हैं, तो आपको क्या जाँच करनी चाहिए?
डर और दूसरों के दबाव में न आने के बारे में आप पीलातुस और पतरस से क्या सीख सकते हैं?
खुद को बहुत ज़्यादा दोषी समझने के फंदे से आप कैसे बच सकते हैं?
1, 2. इस लेख में हम शैतान के किन फंदों के बारे में चर्चा करेंगे?
शैतान, यहोवा के सेवकों को अपना शिकार बनाने की ताक में रहता है। ऐसा करने का उसका मकसद यह नहीं कि वह उनकी जान लेना चाहता है, ठीक जैसे कोई शिकारी बड़े जानवरों को पकड़कर उन्हें मार डालता है। इसके बजाय, वह अपने शिकार को ज़िंदा पकड़ना चाहता है ताकि वह उनसे अपनी मरज़ी पूरी करवा सके।—2 तीमुथियुस 2:24-26 पढ़िए।
2 जानवरों को ज़िंदा पकड़ने के लिए एक शिकारी तरह-तरह के जाल या फंदे इस्तेमाल करता है। वह शायद कुछ ऐसा करे जिससे जानवर अपनी छिपने की जगह से बाहर निकल आए और वह उसे फंदे में कस ले। या फिर शिकारी बड़ी चालाकी से ऐसा फंदा बिछाता है जिसकी जानवर को खबर नहीं होती और वह अचानक उसमें फँस जाता है। शैतान, परमेश्वर के सेवकों को ज़िंदा पकड़ने के लिए कुछ इसी तरह के जाल बिछाता है। अगर हम उसके जाल में नहीं फँसना चाहते, तो हमें चौकन्ना रहना होगा और उन खतरों को पहचानना होगा जो हमें बताते हैं कि शैतान ने कहाँ-कहाँ जाल बिछा रखे हैं। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि कैसे हम शैतान के उन तीन फंदों से बचे रह सकते हैं, जिनका इस्तेमाल कर उसने परमेश्वर के कुछ लोगों को अपना शिकार बनाया है। वे हैं, (1) बेकाबू जीभ, (2) डर और दूसरों का दबाव और (3) खुद को बहुत ज़्यादा दोषी समझना। अगले लेख में हम शैतान के दो और फंदों के बारे में देखेंगे।
बेकाबू जीभ से आग लगाने से बचिए
3, 4. अपनी जीभ पर काबू न करने का क्या अंजाम हो सकता है? एक उदाहरण दीजिए।
3 जानवरों को जंगल जैसी सुरक्षित जगह से बाहर निकालने के लिए एक शिकारी शायद जंगल के एक हिस्से में आग लगा दे। फिर जब जानवर जान बचाने के लिए भागते हैं, तो वह उन्हें पकड़ लेता है। शैतान भी एक मायने में मसीही मंडली में आग लगाना चाहता है, ताकि जब भाई-बहन मंडली जैसी सुरक्षित जगह छोड़कर बाहर जाएँ, तो वह उन्हें अपने शिकंजे में कस ले। इस मामले में हम किस तरह अनजाने में शैतान का साथ दे सकते हैं?
4 चेले याकूब ने जीभ की तुलना आग से की। (याकूब 3:6-8 पढ़िए।) अगर हम अपनी जीभ पर काबू न करें, तो हम मंडली में आग लगा सकते हैं। वह कैसे? ज़रा इस उदाहरण पर गौर कीजिए: मंडली की एक सभा में घोषणा की जाती है कि फलाँ बहन पायनियर बन गयी है। सभा के बाद दो बहनें इस बारे में बात करती हैं। एक बहन अपनी खुशी ज़ाहिर करती है और उम्मीद करती है कि नयी पायनियर बहन को अपनी सेवा में कामयाबी मिले। लेकिन दूसरी बहन कहती है कि यह बहन शायद इसलिए पायनियर सेवा कर रही है, क्योंकि वह मंडली में सबकी नज़रों में छाना चाहती है। इन दोनों में से आप किसके साथ दोस्ती करना चाहेंगे? यह बताना मुश्किल नहीं कि इनमें से कौन अपनी बातों से मंडली में आग लगा सकती है।
5. बेकाबू जीभ से हम आग न लगाएँ, इसके लिए हमें क्या जाँच करनी चाहिए?
5 बेकाबू जीभ से हम आग लगाने से कैसे बच सकते हैं? यीशु ने कहा, “जो दिल में भरा है वही मुँह पर आता है।” (मत्ती 12:34) इसलिए सबसे पहले हमें अपने दिल की जाँच करनी है। क्या हम उन भावनाओं को अपने मन से निकालते हैं जिनकी वजह से शायद हम दूसरों के बारे में बुरी बातें कहें? मिसाल के लिए, अगर हमें पता चलता है कि कोई भाई मंडली में ज़िम्मेदारी पाने के लिए मेहनत कर रहा है, तो क्या हम मानते हैं कि वह यहोवा को खुश करने के लिए ऐसा कर रहा है? या हमें लगता है कि इसमें उसका कोई स्वार्थ छिपा है? अगर हम अकसर दूसरों के इरादों पर शक करते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि शैतान ने भी परमेश्वर के वफादार सेवक अय्यूब के इरादों पर सवाल उठाया था। (अय्यू. 1:9-11) अपने भाइयों पर शक करने के बजाय, हमें खुद से पूछना चाहिए कि मैं उनके बारे में ऐसा क्यों सोचता हूँ? क्या मेरे पास इसका कोई वाजिब कारण है? या फिर मुझे दुनिया की हवा लग गयी है जो इन आखिरी दिनों में प्यार से खाली है?—2 तीमु. 3:1-4.
6, 7. (क) किन वजहों से हम अपने भाइयों में खामियाँ ढूँढ़ने लग सकते हैं? (ख) अगर कोई हमारे बारे में बुरा-भला कहे, तो हमें कैसा रवैया दिखाना चाहिए?
6 हम कुछ और वजहों से भी शायद अपने भाइयों में खामियाँ ढूँढ़ने लगें। एक वजह हो सकती है कि हम चाहते हैं लोग हमारे कामों पर ध्यान दें और हमारी तारीफ करें। दूसरों को नीचा दिखाकर हम यह जताने की कोशिश करते हैं कि हम उनसे बेहतर हैं या हम अपनी ही नाकामी पर परदा डालने के लिए ऐसा करते हैं। दूसरों में मीन-मेख निकालने की वजह चाहे हमारा घमंड हो या ईर्ष्या या फिर असुरक्षा की भावना, इसका अंजाम बहुत बुरा हो सकता है।
7 हो सकता है, हमें लगे कि किसी की नुक्ताचीनी करने की हमारे पास जायज़ वजह है। शायद उसने कुछ ऐसा कहा हो जिससे हमें ठेस पहुँची हो। अगर ऐसी बात है, तो ईंट का जवाब पत्थर से देना सही नहीं होगा। इससे तो मामला और तूल पकड़ सकता है जिससे परमेश्वर की नहीं, शैतान की मरज़ी पूरी होगी। (2 तीमु. 2:26) इसके बजाय, हमें यीशु की मिसाल पर चलना चाहिए। उसे जब गाली दी जा रही थी, तो “बदले में उसने गाली देना शुरू नहीं किया,” बल्कि वह “खुद को उस न्यायी के हाथ में सौंपता रहा जो सच्चा न्याय करता है।” (1 पत. 2:21-23) यीशु को यहोवा पर पूरा भरोसा था कि वह अपने ठहराए वक्त पर और अपने तरीके से मामले को निपटाएगा। हमें भी परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। जब हम अपनी ज़बान का इस्तेमाल दूसरों को ज़ख्म देने के बजाय, मरहम लगाने के लिए करते हैं, तो हम मंडली की “शांति” और “एकता” बनाए रखते हैं।—इफिसियों 4:1-3 पढ़िए।
डर और दबाव के फंदे से बचिए
8, 9. पीलातुस ने यीशु को मौत की सज़ा क्यों सुनायी?
8 एक बार जब जानवर जाल में फँस जाता है तो वह पूरी तरह से शिकारी की गिरफ्त में होता है। उसी तरह, जो इंसान डर और दूसरों के दबाव में आ जाता है, वह एक तरह से उनकी गिरफ्त में आ जाता है। (नीतिवचन 29:25 पढ़िए।) आइए अब हम ऐसे दो लोगों के उदाहरण पर गौर करें, जो इंसान के डर और दबाव के आगे झुक गए: पुन्तियुस पीलातुस और प्रेषित पतरस। हम यह भी देखेंगे कि हम उनसे क्या सबक सीख सकते हैं।
9 रोमी राज्यपाल पुन्तियुस पीलातुस जानता था कि यीशु निर्दोष है, इसलिए वह उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचाना चाहता था। दरअसल पीलातुस ने कहा कि यीशु ने “ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसके लिए [वह] मौत की सज़ा के लायक ठहरे।” फिर भी, उसने यीशु को मौत की सज़ा सुनायी। क्यों? क्योंकि वह भीड़ के दबाव में आ गया था। (लूका 23:15, 21-25) यीशु के दुश्मनों ने अपना उल्लू सीधा करने के लिए पीलातुस से कहा, “अगर तू इस आदमी को रिहा करता है, तो तू सम्राट का दोस्त नहीं।” (यूह. 19:12) पीलातुस डर गया। उसे शायद लगा कि अगर वह यीशु को रिहा कर देगा तो अपनी हुकूमत खो देगा और अपनी जान से भी हाथ धो बैठेगा। इसलिए उसने वही किया जो शैतान उससे करवाना चाहता था।
10. किस वजह से पतरस ने यीशु को जानने से इनकार किया?
10 प्रेषित पतरस यीशु के सबसे करीबी दोस्तों में से था। वह यह बताने से नहीं हिचकिचाया कि यीशु ही मसीहा है। (मत्ती 16:16) और जब कुछ चेलों ने यीशु की बातों का मतलब नहीं समझा और उसके पीछे चलना छोड़ दिया, तब भी पतरस ने यीशु का साथ नहीं छोड़ा। (यूह. 6:66-69) फिर जब दुश्मन यीशु को गिरफ्तार करने आए, तो पतरस ने उसे बचाने के लिए तलवार चलायी। (यूह. 18:10, 11) लेकिन एक मौके पर पतरस पर इंसान का डर हावी हो गया और उसने यीशु को जानने से इनकार कर दिया। जी हाँ, इंसान का डर एक फंदा है और कुछ समय के लिए ही सही, पतरस इस फंदे में फँस गया और हिम्मत दिखाने से चूक गया।—मत्ती 26:74, 75.
11. हमें किस तरह के दबाव का डटकर सामना करना पड़ सकता है?
11 हम मसीहियों पर अकसर कुछ ऐसा करने का दबाव आता है जिससे परमेश्वर खुश नहीं होता। ऐसे में हमें उस दबाव का डटकर सामना करना चाहिए। हो सकता है, काम की जगह पर हमारे मालिक या दूसरे लोग हम पर बेईमानी करने या अनैतिक काम करने का ज़ोर डालें। स्कूल-कॉलेजों में हमारे बच्चों पर उनके साथियों का दबाव आता है कि वे परीक्षा में नकल करें, पोर्नोग्राफी देखें, सिगरेट या शराब पीएँ, ड्रग्स लें या अनैतिक काम करें। तो फिर, क्या बात हमारी मदद करेगी कि हम डर और दबाव में आकर कोई गलत काम न करें?
12. हम पीलातुस और पतरस से क्या सबक सीख सकते हैं?
12 आइए देखें कि हम पीलातुस और पतरस से क्या सीख सकते हैं। पीलातुस को मसीह के बारे में ज़्यादा ज्ञान नहीं था, पर वह इतना ज़रूर जानता था कि यीशु बेकसूर है और वह कोई मामूली इंसान नहीं है। मगर पीलातुस में नम्रता नहीं थी और उसे सच्चे परमेश्वर से प्यार नहीं था। इसलिए शैतान बड़ी आसानी से उससे वह करवा सका जो वह चाहता था। दूसरी तरफ, पतरस के पास सही ज्ञान था और वह परमेश्वर से प्यार भी करता था। लेकिन कई बार ऐसा हुआ कि वह अपनी हदें नहीं पहचान पाया, उसमें इंसान का डर समा गया और वह दबाव में आकर गलती कर बैठा। यीशु के गिरफ्तार होने से पहले पतरस ने शेखी बघारी कि “चाहे ये सभी विश्वास से क्यों न डगमगा जाएँ, मगर मेरा विश्वास नहीं डगमगाएगा।” (मर. 14:29) अगर पतरस ने भजनहार की तरह परमेश्वर पर भरोसा किया होता, तो शायद वह उन परीक्षाओं का अच्छी तरह सामना कर पाता जो बहुत जल्द उस पर आनेवाली थीं। भजनहार का भरोसा था कि “यहोवा मेरी ओर है, मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?” (भज. 118:6) धरती पर अपनी आखिरी रात, यीशु पतरस और दो प्रेषितों को लेकर गतसमनी बाग में काफी अंदर गया। उसने उनसे जागते रहने के लिए कहा लेकिन वे सो गए। यीशु ने आकर उन्हें जगाया और कहा, “जागते रहो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।” (मर. 14:38) मगर पतरस दोबारा सो गया और बाद में डर और दबाव के फंदे में फँस गया।
13. गलत काम करने के दबाव का हम कैसे सामना कर सकते हैं?
13 पीलातुस और पतरस से हम एक और ज़रूरी सबक सीख सकते हैं। वह यह कि दबाव या डर का सामना करने के लिए सही ज्ञान, नम्रता, मर्यादा का गुण, परमेश्वर के लिए प्यार और इंसानों के बजाय यहोवा का डर होना ज़रूरी है। अगर हमारा विश्वास सही ज्ञान पर आधारित हो, तो हम हिम्मत के साथ अपने विश्वास के बारे में गवाही देंगे। इससे हमें दबाव का सामना करने और इंसान के डर पर काबू पाने में मदद मिलेगी। बेशक हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारा विश्वास मज़बूत है, हम कभी नहीं डगमगाएँगे। इसके बजाय, हमें नम्र होकर कबूल करना चाहिए कि दबाव का सामना करने में हमें परमेश्वर की ताकत की ज़रूरत है। प्रार्थना में परमेश्वर से उसकी पवित्र शक्ति माँगने से हमें यह ताकत मिल सकती है। साथ ही, यहोवा के लिए प्यार होने से हम उसके स्तरों पर चलने के लिए उभारे जाएँगे और ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे उसके नाम पर कलंक लगे। इतना ही नहीं, आज़माइश आने से पहले हमें उसके लिए तैयार रहना चाहिए। मिसाल के लिए, हमें अपने बच्चों के साथ प्रार्थना करनी चाहिए और उनके साथ तैयारी करनी चाहिए ताकि गलत काम के लिए लुभाए जाने पर वे सही कदम उठा सकें।—2 कुरिं. 13:7.a
खुद को बहुत ज़्यादा दोषी समझना—कुचल देनेवाले इस फंदे से बचिए
14. बीते समय में किए पापों के बारे में शैतान हमें क्या यकीन दिलाना चाहता है?
14 जानवरों को पकड़ने के लिए शिकारी कभी-कभी भारी लट्ठा या पत्थर उस रास्ते पर लटकाता है, जहाँ से अकसर जानवर गुज़रते हैं। शिकारी उस लट्ठे या पत्थर से एक तार जोड़कर रास्ते पर बाँध देता है, ताकि जैसे ही जानवर उस तार को छुए, वह लट्ठा या पत्थर उस पर गिर पड़े और उसे कुचल दे। कभी-कभार हमारे साथ ऐसा होता है कि हम खुद को हद-से-ज़्यादा दोषी समझने लगते हैं। इस तरह की भावनाएँ भारी लट्ठे या पत्थर की तरह हो सकती हैं, जो हमें कुचल देती हैं। मिसाल के लिए, अगर हमने पहले कोई पाप किया हो, तो उस बारे में सोचकर हम “बहुत ही चूर” हो सकते हैं। (भजन 38:3-5, 8 पढ़िए।) शैतान हमें यकीन दिलाना चाहता है कि हम यहोवा की दया पाने के काबिल नहीं और हम उसके स्तरों पर नहीं चल सकते।
15, 16. खुद को हद-से-ज़्यादा दोषी समझने के फंदे से आप कैसे बच सकते हैं?
15 आप कुचल देनेवाले इस फंदे से कैसे बच सकते हैं? अगर आपने कोई गंभीर पाप किया है, तो यहोवा के साथ अपने बिगड़े रिश्ते को बनाने के लिए तुरंत कदम उठाइए। प्राचीनों से बात कीजिए, उनसे मदद माँगिए। (याकू. 5:14-16) अपनी गलती सुधारने के लिए आपसे जो बन पड़ता है कीजिए। (2 कुरिं. 7:11) अगर आपको ताड़ना दी जाती है, तो दिल छोटा मत कीजिए। याद रखिए, यहोवा आपसे प्यार करता है इसीलिए आपको अनुशासन देता है। (इब्रा. 12:6) ठान लीजिए कि आप वह गलती नहीं दोहराएँगे। और उन कामों से दूर रहिए, जो आपको पाप की राह पर ले गए थे। एक बार जब आप पश्चाताप कर बुरे कामों से मुँह मोड़ लेते हैं, तो विश्वास रखिए कि यीशु का फिरौती बलिदान आपके पापों को ढाँप देगा।—1 यूह. 4:9, 14.
16 कुछ लोग उन पापों के बारे में सोच-सोचकर खुद को दोषी ठहराते हैं जिनके लिए उन्हें माफ किया जा चुका है। अगर आप भी ऐसा महसूस करते हैं, तो याद रखिए कि यहोवा ने पतरस और दूसरे प्रेषितों को माफ किया, जबकि वे उसके अज़ीज़ बेटे यीशु को उस वक्त छोड़कर भाग गए थे जब उसे उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। यहोवा ने उस आदमी को भी माफ किया था, जिसे खुलेआम अनैतिक काम करने की वजह से कुरिंथ मंडली से निकाल दिया गया था मगर जिसने बाद में पश्चाताप किया। (1 कुरिं. 5:1-5; 2 कुरिं. 2:6-8) परमेश्वर के वचन में ऐसे लोगों का भी ज़िक्र है जिन्होंने घोर पाप किए थे, मगर उनके पश्चाताप करने पर परमेश्वर ने उन्हें माफ कर दिया।—2 इति. 33:2, 10-13; 1 कुरिं. 6:9-11.
17. फिरौती बलिदान हमारे लिए क्या कर सकता है?
17 अगर आपको अपने किए पर सच्चा पछतावा है और यकीन है कि यहोवा आपको दया दिखाएगा, तो वह आपके पाप माफ कर देगा और उन्हें भूल जाएगा। ऐसा कभी मत सोचिए कि आपके पाप इतने संगीन हैं कि यीशु के फिरौती बलिदान से उनकी माफी नहीं मिल सकती। अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप शैतान के फंदे में फँस जाएँगे। शैतान आपको चाहे जो भी यकीन दिलाना चाहे, सच तो यह है कि फिरौती बलिदान से उन सभी को पापों की माफी मिल सकती है जो सच्चे दिल से पश्चाताप करते हैं। (नीति. 24:16) खुद को बहुत ज़्यादा दोषी समझना एक भारी बोझ की तरह है। मगर फिरौती बलिदान पर विश्वास करने से आप अपने ऊपर से यह बोझ उतार पाएँगे। साथ ही, आपको अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से यहोवा की सेवा करने की ताकत मिलेगी।—मत्ती 22:37.
हम शैतान की चालबाज़ियों से अनजान नहीं
18. हम शैतान के फंदों से कैसे बच सकते हैं?
18 शैतान को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम उसके किस फंदे में फँसते हैं। वह तो बस इतना चाहता है कि हम किसी तरह उसकी गिरफ्त में आ जाएँ। अब क्योंकि हम उसकी चालबाज़ियों से अनजान नहीं हैं, इसलिए हम उसके फंदों से बच सकते हैं। (2 कुरिं. 2:10, 11) कैसे? आज़माइशों का सामना करते वक्त प्रार्थना में परमेश्वर से बुद्धि माँगने से। याकूब ने लिखा, “अगर तुम में से किसी को बुद्धि की कमी हो तो वह परमेश्वर से माँगता रहे क्योंकि परमेश्वर अपने सभी माँगनेवालों को उदारता से और बिना डाँटे-फटकारे बुद्धि देता है और माँगनेवाले को यह दी जाएगी।” (याकू. 1:5) अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमें बुद्धि दे, तो हमें नियमित तौर पर निजी बाइबल अध्ययन करना होगा और सीखी बातों को लागू करना होगा। विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास ने ऐसे बहुत-से साहित्य तैयार किए हैं जिनमें शैतान के फंदों का खुलासा किया गया है। हम इन साहित्य की मदद से शैतान के फंदों से दूर रह सकते हैं।
19, 20. हमें बुराई से क्यों नफरत करनी चाहिए?
19 प्रार्थना और बाइबल का अध्ययन करने से हमारे अंदर अच्छी बातों के लिए प्यार बढ़ता है। मगर इसके साथ-साथ बुराई से नफरत करना भी ज़रूरी है। (भज. 97:10) अगर हम गौर करें कि स्वार्थी इच्छाएँ पूरी करने के क्या बुरे अंजाम हो सकते हैं, तो हम अपने मन में ऐसी इच्छाएँ नहीं पनपने देंगे। (याकू. 1:14, 15) और जब हम बुराई से नफरत और अच्छाई से प्यार करना सीखते हैं, तो शैतान का कोई भी फंदा हमें लुभा नहीं सकेगा।
20 हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि वह हमारी मदद करता है ताकि शैतान हम पर हावी न हो! परमेश्वर अपनी पवित्र शक्ति, अपने वचन और संगठन के ज़रिए हमें “दुष्ट शैतान” से बचाता है। (मत्ती 6:13) अगले लेख में हम देखेंगे कि शैतान के दो और फंदों से कैसे बचा जा सकता है।
[फुटनोट]
a अच्छा होगा कि माता-पिता अपने बच्चों के साथ किताब, क्वेश्चन्स यंग पीपल आस्क—आंसर्स दैट वर्क, वॉल्यूम 2 के पेज 132-133 पर दिया “पियर-प्रेशर प्लैनर” और 15 नवंबर, 2010 की प्रहरीदुर्ग के पेज 10, पैरा. 11-15 में दी जानकारी पर चर्चा करें। वे चाहें तो इस पर पारिवारिक उपासना के दौरान गौर कर सकते हैं।
[पेज 21 पर तसवीर]
बेकाबू जीभ की लगायी आग से मंडली में मुसीबतें खड़ी हो सकती हैं
[पेज 24 पर तसवीर]
खुद को बहुत ज़्यादा दोषी समझना एक भारी बोझ है। आप इसे उतार सकते हैं