करिश्माई असर—मनुष्य के लिए स्तुति या परमेश्वर के लिए महिमा?
“एक शासक को अपनी प्रजा से न केवल बेहतर होना चाहिए, बल्कि उसका उन पर एक प्रकार का जादूई असर भी होना चाहिए,” ज़ॆनोफ़ॉन नामक एक विख्यात यूनानी जनरल ने लिखा। आज, अनेक लोग ऐसे “जादूई असर” को करिश्मा कहेंगे।
यह सच है कि सभी मानवी शासकों के पास करिश्माई असर नहीं होता। लेकिन जिनके पास यह होता है, वे इस क्षमता को भक्ति प्रेरित करने और चालाकी से जनता द्वारा अपना काम निकलवाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। शायद सबसे कुख्यात हालिया मिसाल था एडॉल्फ हिटलर। “[१९३३ में] अधिकांश जर्मनवासियों के लिए हिटलर के पास असल करिश्माई नेता का आभास था—या जल्द ही उसे प्राप्त होनेवाला था,” अपनी पुस्तक तीसरे राइक का उत्थान व पतन (अंग्रेज़ी) में विल्यम एल. शिरर लिखता है। “उन्हें अगले बारह प्रचंड सालों के लिए अपनी आँखें मूँदकर उसके पीछे-पीछे चलना था, मानो उसके पास ईश्वर की तरफ़ से न्याय करने की समझ हो।”
धार्मिक इतिहास में भी ऐसे करिश्माई नेताओं की भरमार है जिन्होंने लोगों को उनका भक्त बनने के लिए प्रेरित किया लेकिन जो अपने ही अनुयायियों पर विपत्ति भी लाए। “सावधान रहो! कोई तुम्हें न भरमाने पाए,” यीशु ने चिताया, “क्योंकि बहुत से ऐसे होंगे जो मेरे नाम से आकर कहेंगे, कि मैं मसीह हूं: और बहुतों को भरमाएंगे।” (मत्ती २४:४, ५) ऐसे करिश्माई झूठे मसीह केवल पहली सदी में नहीं प्रकट हुए। १९७० के दशक के दौरान, जिम जोन्स ने अपने आपको को “जनता के मंदिर का मसीहा” घोषित किया। उसका वर्णन “करिश्माई पादरी” के तौर पर किया गया जिसका “लोगों पर एक अजीब-सा वश था,” और १९७८ में उसी ने इतिहास के सबसे बड़े जन-आत्महत्या को उकसाया।a
ज़ाहिर तौर पर, करिश्मा एक ख़तरनाक देन हो सकती है। लेकिन, बाइबल एक दूसरे क़िस्म की देन, या वरदानों की बात करती है, जो परमेश्वर की ओर से सभी के हित के लिए सभी को उपलब्ध है। इस देन के लिए यूनानी शब्द है ख़ारिस्मा और बाइबल में इसका ज़िक्र १७ बार किया गया है। एक यूनानी विद्वान इसकी परिभाषा यूँ देता है, ‘मुफ़्त व अनर्जित देन, ऐसी देन जिसे किसी इंसान को बिना कमाए या बिना इसके योग्य हुए दी जाती है, ऐसी देन जो परमेश्वर के अपात्र अनुग्रह की बदौलत मिलती है और जिसे इंसान अपने प्रयासों के बल पर न कभी प्राप्त कर सकता है ना ही इसे अपने पास रख सकता है।’
सो शास्त्रीय दृष्टिकोण से, ख़ारिस्मा ऐसी देन है जो परमेश्वर के अपात्र अनुग्रह की बदौलत मिलती है। उन में कुछ देन कौन-सी हैं जिन्हें परमेश्वर ने हमें कृपापूर्वक दी हैं? और हम परमेश्वर की स्तुति करने में इसका इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? आइए हम इन अनुग्रहपूर्ण देन में से तीन पर गौर फ़रमाएँ।
अनंत जीवन
सबसे बड़ी देन तो बेशक अनंत जीवन की देन है। पौलुस ने रोमी कलीसिया को लिखा: “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का बरदान [ख़ारिस्मा] हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।” (रोमियों ६:२३) यहाँ ग़ौर करना मुनासिब होगा कि “मजदूरी” (मृत्यु) ऐसी चीज़ है जिसे हमने अपनी इच्छा से न सही, परंतु अपने पापमय स्वभाव के कारण कमाया है। दूसरी ओर, जो अनंत जीवन परमेश्वर उपलब्ध कराता है वह पूरी तरह से अनर्जित है जिसे हम अपने बलबूते पर कभी नहीं पा सकते हैं।
अनंत जीवन की देन को सहेजकर रखा जाना चाहिए तथा दूसरों से बाँटा जाना चाहिए। हम यहोवा को जानने में, उसकी सेवा करने में और इस तरह अनंत जीवन की देन पाने के अनुकूल होने में लोगों की मदद कर सकते हैं। प्रकाशितवाक्य २२:१७ कहता है: “आत्मा, और दुल्हिन दोनों कहती हैं, आ; और सुननेवाला भी कहे, कि आ; और जो प्यासा हो, वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।”
हम इस जीवन-दायक जल की ओर दूसरों को कैसे ले जा सकते हैं? मुख्यतः अपनी सेवकाई में बाइबल को प्रभावकारी रूप से इस्तेमाल करने के द्वारा। यह सच है कि दुनिया के कुछ देशों में, लोग आध्यात्मिक बातों के बारे में बमुश्किल ही पढ़ते या विचार करते हैं; फिर भी, किसी व्यक्ति के ‘कान खोलने’ के मौक़े हमेशा मिलते हैं। (यशायाह ५०:४) इस संबंध में हम बाइबल की प्रेरक शक्ति के बारे में विश्वस्त हो सकते हैं, क्योंकि “परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल” है। (इब्रानियों ४:१२) चाहे यह बाइबल की व्यावहारिक बुद्धि हो, इसमें दी गयी सांत्वना व आशा हो, या जीवन के उद्देश्य के बारे में इसका बखान हो, परमेश्वर का वचन दिल को छू सकता है और जीवन के मार्ग पर चलने के लिए लोगों को प्रेरित कर सकता है।—२ तीमुथियुस ३:१६, १७.
इसके अतिरिक्त, बाइबल-आधारित साहित्य हमें “आ” कहने में मदद दे सकता है। भविष्यवक्ता यशायाह ने पूर्वबताया कि इस आध्यात्मिक अंधकारमय समय के दौरान, अपने लोगों पर “यहोवा उदय होगा [चमकेगा]।” (यशायाह ६०:२) वॉच टावर संस्था के प्रकाशन यहोवा की इस आशीष को प्रतिबिंबित करते हैं और हर साल वे हज़ारों लोगों को यहोवा की ओर लाते हैं, जो आध्यात्मिक प्रबोधन का स्रोत है। इनके पन्नों पर व्यक्तियों को प्रमुखता नहीं दी जाती है। जैसे प्रहरीदुर्ग की प्रस्तावना समझाती है, “प्रहरीदुर्ग का उद्देश्य है यहोवा परमेश्वर को विश्व के सर्वसत्ताधारी प्रभु के रूप में बुलंद करना। . . . यह परमेश्वर के सत्तारूढ़ राजा, यीशु मसीह पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिसके बहाए गए लहू से मनुष्यों के लिए अनन्त जीवन पाने का मार्ग खुल जाता है।”
पूर्ण-समय की एक मसीही सेवक, जिसे कई सालों से अपनी सेवकाई में उल्लेखनीय सफलता मिली है, परमेश्वर के नज़दीक आने में लोगों की मदद करने में प्रहरीदुर्ग व सजग होइए! के महत्त्व पर टिप्पणी करती है: “जब मेरे बाइबल विद्यार्थी प्रहरीदुर्ग व सजग होइए! को पढ़ना शुरू करते हैं और उनका लुत्फ़ उठाने लगते हैं, तब वे तेज़ी से प्रगति करते हैं। मेरे दृष्टिकोण में ये पत्रिकाएँ यहोवा को जानने में लोगों की मदद करने में एक अनमोल सहायक हैं।”
सेवा के विशेषाधिकार
तीमुथियुस एक मसीही शिष्य था जिसे एक और देन दी गयी थी जो ख़ास ध्यान की माँग करती है। प्रेरित पौलुस ने उससे कहा: “उस बरदान [ख़ारिस्मा] से जो तुझ में है, और भविष्यद्वाणी के द्वारा प्राचीनों के हाथ रखते समय तुझे मिला था, निश्चिंत मत रह।” (१ तीमुथियुस ४:१४) यह वरदान क्या था? इसमें एक सफ़री ओवरसियर के तौर पर तीमुथियुस की नियुक्ति शामिल थी जो सेवा का एक ऐसा विशेषाधिकार है जिसकी देखभाल उसे ज़िम्मेदारी से करनी थी। उसी परिच्छेद में, पौलुस ने तीमुथियुस को सलाह दी: “पवित्रशास्त्र पढ़कर सुनाने, उपदेश देने और सिखाने में लगा रह। अपने ऊपर और अपनी शिक्षा पर विशेष ध्यान दे और इन बातों पर स्थिर रह, क्योंकि ऐसा करने से तू अपने और अपने सुनने वालों के भी उद्धार का कारण होगा।”—१ तीमुथियुस ४:१३, १६, NHT.
आज प्राचीनों को भी अपने सेवा के विशेषाधिकारों को सहेजकर रखने की ज़रूरत है। जैसे पौलुस बताता है, ऐसा करने का एक तरीक़ा है ‘अपनी शिक्षा पर विशेष ध्यान देना।’ दुनिया के करिश्माई नेताओं की नक़ल करने के बजाय, वे अपने आप की ओर नहीं, बल्कि परमेश्वर की ओर ध्यान निर्दिष्ट करते हैं। उनका आदर्श, यीशु एक उल्लेखनीय शिक्षक था जिसका निःसंदेह एक आकर्षक व्यक्तित्व था, लेकिन उसने इसकी महिमा नम्रतापूर्वक अपने पिता को दी। “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है,” उसने घोषित किया।—यूहन्ना ५:४१; ७:१६.
यीशु ने परमेश्वर के वचन को अपनी शिक्षा के लिए अधिकार के तौर पर इस्तेमाल करने के द्वारा अपने स्वर्गीय पिता की महिमा की। (मत्ती १९:४-६; २२:३१, ३२, ३७-४०) उसी तरह पौलुस ने ओवरसियरों से ‘विश्वासयोग्य वचन पर जो उनके धर्मोपदेश के अनुसार है, स्थिर रहने’ की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। (तीतुस १:९) अपने भाषणों को दृढ़तापूर्वक शास्त्र पर आधारित करने के द्वारा, प्राचीन दरअसल वही कहेंगे जो यीशु ने कहा: “ये बातें जो मैं तुम से कहता हूं, अपनी ओर से नहीं कहता।”—यूहन्ना १४:१०.
प्राचीन कैसे ‘विश्वासयोग्य वचन पर स्थिर रह’ सकते हैं? अपने भाषणों और सभा की नियुक्तियों को परमेश्वर के वचन पर केंद्रित करने के द्वारा, साथ ही जिन पाठों का वे प्रयोग करते हैं, उन्हें समझाने व उन पर ज़ोर देने के द्वारा। नाटकीय दृष्टांत या हँसानेवाली कहानियाँ, ख़ासकर बढ़-चढ़ कर बताए जाने पर, श्रोता के ध्यान को परमेश्वर के वचन से विकर्षित कर, वक्ता की क़ाबिलीयत पर ध्यान आकर्षित करेंगे। दूसरी ओर, बाइबल की आयतें ही श्रोताओं के दिलों तक पहुँचेंगी और उन्हें प्रेरित करेंगी। (भजन १९:७-९; ११९:४०. लूका २४:३२ से तुलना कीजिए।) ऐसे भाषण मनुष्यों की ओर कम ध्यान आकर्षित कर, परमेश्वर को ज़्यादा महिमा देते हैं।
एक और तरीक़ा जिससे प्राचीन और ज़्यादा प्रभावकारी शिक्षक बन सकते हैं, वह है एक दूसरे से सीखना। जैसे पौलुस ने तीमुथियुस की मदद की, उसी तरह एक प्राचीन दूसरे प्राचीन की मदद कर सकता है। “जैसे लोहा, लोहे को तेज़ करता है, वैसे ही मनुष्य, मनुष्य को सुधारता है।” (नीतिवचन २७:१७, NHT; फिलिप्पियों २:३) विचारों व सुझावों को बाँटने से प्राचीनों को लाभ होता है। हाल ही में प्राचीन नियुक्त हुए एक भाई ने कहा: “एक अनुभवी प्राचीन ने मुझे यह दिखाने के लिए समय निकाला कि एक जन भाषण की तैयारी करने के लिए वह क्या-क्या करता है। अपनी तैयारी में, उसने आकर्षक सवाल, दृष्टांत, उदाहरण, या छोटे-छोटे अनुभव, साथ ही ऐसे शास्त्रीय परिच्छेद शामिल किए, जिन पर उसने ध्यानपूर्वक शोध किया था। बेजान, एकरस भाषण देने के बजाय, मैंने उनसे अपने भाषणों में विभिन्नता द्वारा जान डालना सीखा है।”
सेवा के विशेषाधिकारों का आनंद उठानेवाले हम सभी जन को, चाहे हम प्राचीन हों, सहायक सेवक हों, या पायनियर, अपनी देन को अनमोल समझने की ज़रूरत है। अपनी मौत से कुछ ही समय पहले, पौलुस ने तीमुथियुस को याद दिलाया कि वह ‘परमेश्वर के उस वरदान [ख़ारिस्मा] को प्रज्ज्वलित कर दे जो उसे प्राप्त हुआ है।’ तीमुथियुस के मामले में यह आत्मा की कुछ ख़ास देन को शामिल करता है। (२ तीमुथियुस १:६, NHT) इस्राएलियों के घरों में, आग अकसर मात्र जलते अंगारे होते थे। उन्हें “प्रज्ज्वलित कर” ज्वाला तथा अधिक ऊष्मा उत्पन्न करना मुमकिन था। इस प्रकार हमें अपनी कार्य-नियुक्तियों में तन-मन डालने के लिए प्रोत्साहित किया गया है, और चाहे हमें जो भी आत्मिक देन सौंपी गयी हो, उसमें हमें आग कि तरह प्रज्वलित होना है।
आत्मिक देन जिन्हें बाँटना है
रोम के अपने भाइयों के लिए पौलुस के प्रेम ने उसे यह लिखने को प्रेरित किया: “मैं तुम से मिलने की लालसा करता हूं, कि मैं तुम्हें कोई आत्मिक बरदान [ख़ारिस्मा] दूं जिस से तुम स्थिर हो जाओ। अर्थात् यह, कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साथ उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्ति [प्रोत्साहन] पाऊं।” (रोमियों १:११, १२) दूसरों के साथ बातचीत करने के द्वारा उनके विश्वास को मज़बूत करने की हमारी क्षमता को पौलुस ने एक आत्मिक देन के तौर पर देखा। ऐसी आत्मिक देन के आदान-प्रदान का नतीजा विश्वास को बढ़ावा देना और परस्पर प्रोत्साहन होता।
और इसकी तो निश्चय ही ज़रूरत है। इस दुष्ट व्यवस्था में जिसमें हम रह रहे हैं, हम सभी को एक-ना-एक तरीक़े से दबाव का सामना करना पड़ता है। लेकिन, नियमित रूप से एक दूसरे को प्रोत्साहित करने से हमें लगे रहने में मदद मिल सकती है। आदान-प्रदान करने का विचार—देना व लेना, दोनों—आध्यात्मिक शक्ति को क़ायम रखने के लिए अहम है। यह सच है कि हम सभी को समय-समय पर प्रोत्साहन की ज़रूरत होती है, लेकिन हम इसके साथ-साथ एक दूसरे को मज़बूत भी कर सकते हैं।
यदि हम ऐसे संगी विश्वासियों का, जो निराश हैं, पता लगाने के प्रति सतर्क हैं, तो हम शायद “उस शान्ति [सांत्वना] के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति [सांत्वना] दे सकें, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों।” (२ कुरिन्थियों १:३-५) सांत्वना (पाराक्लेसिस) के लिए यूनानी शब्द का शाब्दिक अर्थ है “किसी को अपने पास बुलाना।” यदि हम ज़रूरत के वक़्त अपने भाई या बहन की ओर मदद का हाथ बढ़ाने के लिए पास हैं, तो निःसंदेह हम भी उस समय वही प्रेममय सहारा पाएँगे जब हमें इसकी ज़रूरत होती है।—सभोपदेशक ४:९, १०. प्रेरितों ९:३६-४१ से तुलना कीजिए।
प्राचीनों द्वारा की गयी प्रेममय रखवाली भेंट भी बड़े फ़ायदे की हैं। हालाँकि ऐसे अवसर होते हैं जब ज़रूरी मामलों पर शास्त्रीय सलाह देने के लिए भेंट की जाती है, अधिकांश रखवाली भेंट प्रोत्साहन, यानी “मनों में शान्ति [सांत्वना]” देने के अवसर होती हैं। (कुलुस्सियों २:२) जब ओवरसियर विश्वास को मज़बूत करनेवाली ऐसी भेंट करते हैं, तब वे वास्तव में आत्मिक देन दे रहे होते हैं। पौलुस की तरह, वे देने के इस अनोखे रूप को प्रतिफलदायक पाएँगे और उनमें अपने भाइयों के लिए “लालसा” उत्पन्न होगी।—रोमियों १:११.
यह बात स्पेन के एक प्राचीन के बारे में सच थी जो निम्नलिखित अनुभव बताता है: “ऐसा लगता था कि ११-वर्षीय लड़का, रिकारडो सभाओं में और आमतौर पर कलीसिया में कम दिलचस्पी दिखाता था। सो मैंने रिकारडो के माँ-बाप से उनके बेटे से मिलने की अनुमति माँगी। वे सहर्ष राज़ी हो गए। वे मेरे घर से क़रीब एक घंटे की दूरी पर पहाड़ों पर रहते थे। रिकारडो में जो रुचि मैंने दिखायी, उसे देख वह ख़ुश हुआ, और उसने फ़ौरन प्रतिक्रिया दिखायी। वह जल्द ही बपतिस्मा-रहित प्रकाशक और कलीसिया का एक उत्साही सदस्य बन गया। उसका ग़ैरमिलनसार स्वभाव अब ज़्यादा ख़ुशनुमा, मिलनसार व्यक्तित्व में बदल गया। कलीसिया के कई लोगों ने पूछा: ‘रिकारडो इतना बदल क्यों गया?’ ऐसा लगा मानो रिकारडो पहली बार उनकी नज़रों में पड़ रहा हो। उस ज़रूरी रखवाली भेंट पर विचार करते हुए, मैं महसूस करता हूँ कि रिकारडो से ज़्यादा मुझे फ़ायदा हुआ है। जब वह राज्यगृह में प्रवेश करता है, उसका चेहरा खिल उठता है और वह मुझसे मिलने दौड़ा चला आता है। उसकी आध्यात्मिक प्रगति देखना हर्ष की बात रही है।”
बेशक, इस तरह की रखवाली भेंटों पर बहुत आशीषें मिलती हैं। ऐसी भेंटें यीशु की विनती के सामंजस्य में हैं: “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।” (यूहन्ना २१:१६) जी हाँ, केवल प्राचीन ही नहीं हैं जो ऐसे आत्मिक वरदान दे सकते हैं। कलीसिया का हर एक व्यक्ति दूसरों को प्रेम व भले कामों के लिए उकसा सकता है। (इब्रानियों १०:२३, २४) ठीक जिस प्रकार पहाड़ के आरोहक एक दूसरे से रस्सी द्वारा बँधे होते हैं, उसी प्रकार हम भी एक दूसरे से आध्यात्मिक बँधनों द्वारा बँधे होते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हमारी कथनी व करनी का दूसरों पर प्रभाव पड़ता है। ताना मारना या कठोर निंदा करना उस बँधन को कमज़ोर कर सकता है जिससे हम बँधे हैं। (इफिसियों ४:२९; याकूब ३:८) दूसरी ओर, प्रोत्साहन के चुने हुए शब्द व प्रेममय सहायता हमारे भाइयों को उनकी कठिनाइयों को पार करने में मदद दे सकती हैं। इस तरह हम स्थायी महत्त्व की आत्मिक देन को बाँट रहे होंगे।—नीतिवचन १२:२५.
परमेश्वर की महिमा को और ज़्यादा प्रतिबिंबित करना
यह स्पष्ट है कि हर मसीही में कुछ हद तक करिश्मा, या देन होती है। हमें अनंत जीवन की बेशक़ीमती आशा दी गयी है। हमारे पास ऐसी आत्मिक देन भी हैं जिन्हें हम एक दूसरे के साथ बाँट सकते हैं। और हम उचित लक्ष्य की ओर दूसरों को प्रोत्साहित या प्रेरित करने की कोशिश कर सकते हैं। कुछ जनों को सेवा विशेषाधिकारों के रूप में अतिरिक्त देन भी प्राप्त हैं। ये सभी देन परमेश्वर के अपात्र अनुग्रह का सबूत हैं। और चूँकि कोई भी देन जो हममें हैं वह हमने परमेश्वर से पायी है, तो हमारे पास घमंड करने का कोई कारण नहीं है।—१ कुरिन्थियों ४:७.
मसीहियों के तौर पर, हम अपने आपसे पूछेंगे तो अच्छा होगा, ‘क्या मैं जितना भी करिश्मा, या देन मुझमें हो, उसका इस्तेमाल “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान” के दाता, यहोवा की महिमा करने में करूँगा? (याकूब १:१७) क्या मैं यीशु का अनुकरण करते हुए अपनी क्षमताओं व परिस्थितियों के मुताबिक़ दूसरों की सेवा करूँगा?’
इस संबंध में प्रेरित पतरस हमारी ज़िम्मेदारी का सार देता है: “जिस को जो बरदान [ख़ारिस्मा] मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के [अपात्र] अनुग्रह के भले भण्डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए। यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले, मानो परमेश्वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे, तो उस शक्ति से करे जो परमेश्वर देता है; जिस से सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो।”—१ पतरस ४:१०, ११.
[फुटनोट]
a कुल मिलाकर ९१३ लोग मरे, जिनमें स्वयं जिम जोन्स भी शामिल था।
[पेज 23 पर तसवीर]
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UPI/Corbis-Bettmann