भले कामों के लिए शुद्ध किए गए लोग
“आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।”—2 कुरिन्थियों 7:1.
1. यहोवा अपनी उपासना करनेवालों से क्या माँग करता है?
“यहोवा के पर्वत पर कौन चढ़ सकता है? और उसके पवित्रस्थान में कौन खड़ा हो सकता है?” यहोवा कैसी उपासना स्वीकार करता है, इस बारे में प्राचीन इस्राएल के राजा, दाऊद ने यह गंभीर सवाल पूछा। फिर उसने यह जवाब दिया: “जिसके काम निर्दोष और हृदय शुद्ध है, जिस ने अपने मन को व्यर्थ बात की ओर नहीं लगाया, और न कपट से शपथ खाई है।” (भजन 24:3,4) यहोवा, पवित्रता का साक्षात् रूप है, इसलिए जो इंसान उसकी मंज़ूरी पाना चाहता है, उसका शुद्ध और पवित्र रहना ज़रूरी है। दाऊद के वक्त से काफी पहले, यहोवा ने इस्राएलियों की मंडली से कहा था: “अपने को शुद्ध करके पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।”—लैव्यव्यवस्था 11:44, 45; 19:2.
2. पौलुस और याकूब ने कैसे ज़ोर दिया कि सच्ची उपासना में शुद्धता बहुत अहमियत रखती है?
2 सदियों बाद, प्रेरित पौलुस ने उन मसीही भाई-बहनों को खत लिखा, जो बदचलनी के लिए बदनाम शहर, कुरिन्थ में रहते थे। उसने लिखा: “हे प्यारो जब कि ये प्रतिज्ञाएं हमें मिली हैं, तो आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।” (2 कुरिन्थियों 7:1) इस आयत से भी यही बात खुलकर सामने आती है कि परमेश्वर के साथ रिश्ता कायम करने और उसने जिन आशीषों का वादा किया है, उन्हें पाने के लिए हमें शारीरिक गंदगी और आध्यात्मिक भ्रष्टता से दूर रहना चाहिए। शिष्य याकूब ने भी परमेश्वर को स्वीकार होनेवाली उपासना के बारे में लिखा: “हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें।”—याकूब 1:27.
3. अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर, हमारी उपासना को स्वीकार करे तो हमें किस बात पर गंभीरता से सोचना होगा?
3 जब सच्ची उपासना के लिए शुद्ध, पवित्र और निष्कलंक रहना इतना ज़रूरी है, तो जो भी इंसान उसकी मंज़ूरी पाना चाहता है, उसे परमेश्वर की इन माँगों को पूरा करने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। लेकिन शुद्धता के बारे में आज लोगों के अपने-अपने स्तर और विचार हैं। इसलिए हमें यह जानना होगा कि यहोवा की नज़र में कौन-से काम शुद्ध और सही हैं और फिर उन स्तरों पर चलना होगा। हमें यह जानने की ज़रूरत है कि शुद्धता के मामले में परमेश्वर, अपने उपासकों से क्या माँग करता है और उसने ऐसे कौन-से इंतज़ाम किए हैं जिनकी मदद से वे शुद्ध हो सकते हैं और हमेशा उसकी नज़रों में शुद्ध बने रहकर उसकी मंज़ूरी पा सकते हैं।—भजन 119:9; दानिय्येल 12:10.
सच्ची उपासना के लिए शुद्ध
4. समझाइए कि बाइबल के मुताबिक शुद्धता का मतलब क्या है।
4 ज़्यादातर लोगों की राय में शुद्धता का मतलब, सिर्फ मैल या गंदगी से दूर रहना है। लेकिन बाइबल में शुद्धता को समझाने के लिए ऐसे कई इब्रानी और यूनानी शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, जो न सिर्फ शारीरिक स्वच्छता, बल्कि इससे भी ज़रूरी, नैतिक और आध्यात्मिक शुद्धता के बारे में बताते हैं। इसलिए एक बाइबल इनसाइक्लोपीडिया कहती है: “‘शुद्ध’ और ‘अशुद्ध,’ ये शब्द शारीरिक स्वच्छता से ज़्यादा धर्म के संबंध में शुद्धता के लिए इस्तेमाल किए गए हैं। इसका मतलब है कि ‘शुद्धता’ का उसूल, ज़िंदगी के तकरीबन हर पहलू में लागू होता है।”
5. मूसा की व्यवस्था में शुद्धता के बारे में इस्राएलियों को कितनी बारीकी से नियम दिए गए थे?
5 सचमुच, मूसा की व्यवस्था में इस्राएलियों की ज़िंदगी के तकरीबन हर पहलू के बारे में कायदे-कानून दिए गए थे और यह साफ-साफ बताया गया था कि क्या बात परमेश्वर की नज़रों में शुद्ध और उसे स्वीकार है और क्या नहीं। मसलन, लैव्यव्यवस्था के अध्याय 11 से 15 में शुद्धता और अशुद्धता के बारे में बारीकी से हिदायतें दी गयी हैं। जैसे कुछेक जानवरों को अशुद्ध बताया गया और उन्हें खाना, इस्राएलियों के लिए मना था। बच्चा जनने पर एक स्त्री, बताए गए समय तक अशुद्ध समझी जाती थी। कुछ तरह के त्वचा-रोग, खासकर कोढ़ होने पर एक व्यक्ति को अशुद्ध माना जाता था और स्त्री-पुरुषों को उनके जननांगों से होनेवाले प्रवाह के दौरान भी अशुद्ध समझा जाता था। व्यवस्था में यह भी साफ-साफ बताया गया था कि जब कोई अशुद्ध हो जाए, तो उसके संबंध में क्या किया जाना चाहिए। मिसाल के लिए, गिनती 5:2 में हम पढ़ते हैं: “इस्राएलियों को आज्ञा दे, कि वे सब कोढ़ियों को, और जितनों के प्रमेह हो, और जितने लोथ के कारण अशुद्ध हों, उन सभों को छावनी से निकाल दें।”
6. यहोवा ने किस मकसद से इस्राएलियों को शुद्धता के बारे में नियम दिए थे?
6 शुद्धता से जुड़े यहोवा के इन नियमों और दूसरे नियमों में, कुछेक बीमारियों के इलाज और शरीर की प्रक्रिया से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बतायी गयीं जिनके बारे में वैज्ञानिकों ने सदियों बाद जाकर पता लगाया। और जब इस्राएलियों ने उन नियमों को माना तो उन्हें बहुत फायदा हुआ। लेकिन उन्हें ये नियम सिर्फ यह सिखाने के लिए नहीं दिए गए थे कि अच्छी सेहत कैसे बनाए रखनी चाहिए या बीमारियों से कैसे निपटा जाना चाहिए। ये नियम सच्ची उपासना का एक भाग थे। इन नियमों का लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी से, यानी खान-पान, बच्चे जनने, पति-पत्नी के बीच लैंगिक संबंधों और ऐसे ही दूसरे विषयों से ताल्लुक था। इससे यह साफ दिखाई देता है कि ज़िंदगी के हर दायरे में क्या सही है, क्या गलत, यह तय करने का हक सिर्फ उनके परमेश्वर यहोवा को था क्योंकि उनका जीवन, पूरी तरह यहोवा को समर्पित था।—व्यवस्थाविवरण 7:6; भजन 135:4.
7. व्यवस्था को मानने पर, इस्राएल जाति को क्या आशीष मिलती?
7 व्यवस्था वाचा के नियमों ने इस्राएलियों को आस-पास की जातियों के गंदे कामों से भी बचाए रखा। अगर इस्राएली हमेशा व्यवस्था को मानते, जिसमें यहोवा की नज़रों में शुद्ध रहने के नियम भी शामिल हैं, तो परमेश्वर, उनकी सेवा को मंज़ूर करता और वे उसकी आशीष पा सकते थे। इस संबंध में यहोवा ने उस जाति से कहा: “यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा को पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृथ्वी तो मेरी है। और तुम मेरी दृष्टि में याजकों का राज्य और पवित्र जाति ठहरोगे।”—निर्गमन 19:5, 6; व्यवस्थाविवरण 26:19.
8. व्यवस्था में शुद्धता के बारे में दिए गए नियमों पर आज मसीहियों को क्यों ध्यान देना चाहिए?
8 यह ध्यान में रखते हुए कि यहोवा ने इस्राएलियों को शुद्ध और पवित्र बने रहने और उसकी मंज़ूरी पाने के बारे में साफ-साफ नियम दिए थे, क्या आज मसीहियों को भी शुद्धता के बारे में परमेश्वर के नियमों पर गहराई से नहीं सोचना चाहिए? यह सच है कि मसीही, व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, फिर भी उन्हें पौलुस की यह बात याद रखनी चाहिए कि व्यवस्था में दर्ज़ की गयी सारी बातें “आनेवाली बातों की छाया हैं, पर मूल वस्तुएं मसीह की हैं।” (कुलुस्सियों 2:17; इब्रानियों 10:1) यहोवा परमेश्वर कहता है: ‘मैं बदलता नहीं।’ इसलिए जब उसने प्राचीन समय में अपने लोगों से कहा कि सच्ची उपासना के लिए शुद्ध और निष्कलंक रहना ज़रूरी है, तो आज उसकी मंज़ूरी और आशीष पाने के लिए शारीरिक, नैतिक और आध्यात्मिक तरीके से हमारा भी शुद्ध रहना ज़रूरी है।—मलाकी 3:6; रोमियों 15:4; 1 कुरिन्थियों 10:11, 31.
शारीरिक स्वच्छता, हमारे बारे में सही छाप छोड़ती है
9, 10. (क) मसीहियों के लिए शारीरिक स्वच्छता बनाए रखना क्यों ज़रूरी है? (ख) यहोवा के साक्षियों के अधिवेशनों के बारे में अकसर कैसी तारीफ की गयी है?
9 क्या शारीरिक स्वच्छता बनाए रखना आज भी सच्ची उपासना में एक अहम बात है? परमेश्वर का एक सच्चा उपासक बनने के लिए शारीरिक स्वच्छता अपने आप में काफी नहीं है, फिर भी एक सच्चे उपासक को चाहिए कि जहाँ तक उसके हालात साथ देते हैं, वह शारीरिक स्वच्छता बनाए रखे। खास तौर से आज, जहाँ एक तरफ ज़्यादातर लोग अपने शरीर, कपड़ों और अपनी आस-पास की चीज़ों को साफ-सुथरा नहीं रखते, वहीं ऐसे लोग एकदम अलग नज़र आते हैं, जो साफ-सुथरे रहते हैं। और इससे बढ़िया नतीजे निकल सकते हैं। यही बात पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों से कही: “हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई भी अवसर नहीं देते, कि हमारी सेवा पर कोई दोष न आए। परन्तु हर बात से परमेश्वर के सेवकों की नाईं अपने सद्गुणों को प्रगट करते हैं।”—2 कुरिन्थियों 6:3, 4.
10 संसार के बहुत-से अधिकारियों ने कई बार, और खासकर बड़े-बड़े अधिवेशनों में यहोवा के साक्षियों को देखकर उनकी तारीफ की है कि वे बिलकुल साफ-सुथरे और सलीकेदार होते हैं, दूसरों के साथ अदब से पेश आते हैं और उनमें अच्छी आदतें हैं। मिसाल के लिए, इटली के सवोना प्रांत में हुए अधिवेशन के बारे में लॉ स्टॉम्पॉ अखबार ने कहा: “अधिवेशन की जगह जाने पर, सबसे पहली बात जो तुरंत हमारा ध्यान खींचती है, वह यह है कि जो लोग इस जगह का इस्तेमाल करते हैं वे साफ-सफाई पर और हर काम तरतीब से करने पर बहुत ज़ोर देते हैं।” साओ पोलो, ब्राज़ील के एक स्टेडियम में हुए साक्षियों के अधिवेशन के बाद, स्टेडियम के एक अधिकारी ने सफाई कर्मचारियों के सुपरवाइज़र से कहा: “हम चाहते हैं कि अब से इस स्टेडियम को ठीक वैसा ही साफ किया जाए, जैसा यहोवा के साक्षियों ने साफ किया था।” उसी स्टेडियम के एक और अधिकारी ने कहा: “जब यहोवा के साक्षी यह स्टेडियम किराए पर माँगते हैं, तो हमें सिर्फ यह फिक्र रहती है कि हम उन्हें उनके अधिवेशन की तारीख पर हॉल दे पाएँगे या नहीं। इसके सिवाय, हमें किसी और बात की चिंता नहीं रहती।”
11, 12. (क) अपने शरीर और घर की साफ-सफाई के बारे में हमें बाइबल के किस सिद्धांत को ध्यान में रखना चाहिए? (ख) अपनी आदतों और जीने के तरीके के बारे में हम खुद से क्या सवाल पूछ सकते हैं?
11 जब उपासना की जगह पर स्वच्छ रहने और हर काम सलीके से करने से हमारे परमेश्वर की स्तुति होती है, तो ये गुण बेशक हमारी निजी ज़िंदगी में भी उतने ही ज़रूरी हैं। लेकिन हम शायद सोचें कि अपने घर की चारदीवारी में हमें कुछ भी करने का हक है। जहाँ तक पहनावे और बनाव-श्रृंगार की बात है, बेशक हमें छूट है कि हम वही पहनें जो हमें आरामदेह और अच्छा लगता है! लेकिन इस आज़ादी की भी कुछ सीमाएँ हैं। याद कीजिए कि कुछ तरह के भोजन खाने या न खाने का फैसला करने के संबंध में पौलुस ने मसीही भाई-बहनों को क्या चेतावनी दी: “चौकस रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारी यह स्वतंत्रता कहीं निर्बलों के लिये ठोकर का कारण हो जाए।” फिर उसने एक अहम सिद्धांत बताया: “सब वस्तुएं मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब लाभ की नहीं: सब वस्तुएं मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुओं से उन्नति नहीं।” (1 कुरिन्थियों 8:9; 10:23) पौलुस की यह सलाह, स्वच्छता के मामले में हम पर कैसे लागू होती है?
12 परमेश्वर के एक सेवक से लोगों का यह उम्मीद करना वाजिब है कि वह साफ-सुथरा हो और हर काम सलीके से करे। इसलिए हमें देखना चाहिए कि हमारा घर और आस-पास की जगह बिलकुल साफ हो, ताकि परमेश्वर के वचन के प्रचारक होने का हमारा दावा गलत साबित न हो। हमारा घर, हमारे और हमारे विश्वास के बारे में लोगों पर कैसी छाप छोड़ता है? हम लोगों को ज़बरदस्त तरीके से बताते हैं कि वे धार्मिकता के उस नए संसार में जीने की आशा रखें जहाँ साफ-सुथरा माहौल और सभी काम सलीके से होंगे। लेकिन क्या हमारे घर की हालत से यह नज़र आता है कि उस दुनिया में जीने की हमारी आशा वाकई सच्ची है? (2 पतरस 3:13) उसी तरह, हमारे पहनावे और बनाव-श्रंगार से, फिर चाहे वह मन-बहलाव का समय हो या सेवकाई में जाने का, या तो हमारे संदेश की शोभा बढ़ सकती है या उसकी गंभीरता कम हो सकती है। मिसाल के लिए, ध्यान दीजिए कि मेक्सिको के एक अखबार के संवाददाता ने क्या कहा: “यहोवा के साक्षियों में भारी तादाद में जवान लोग भी हैं और उनकी सबसे बड़ी खासियत है, उनके बाल सँवारने का ढंग, उनकी साफ-सफाई और उनके सलीकेदार कपड़े।” वाकई, हमें अपने इन जवानों पर कितना नाज़ है!
13. रोज़मर्रा के काम में इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें साफ-सुथरी और सलीकेदार हों, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?
13 बेशक, अपने शरीर, अपनी चीज़ों और घर को हमेशा साफ और सलीके से रखना इतना आसान नहीं है। लेकिन इसके लिए साफ-सफाई की ढेर सारी बड़ी-बड़ी, महँगी मशीनों की भी ज़रूरत नहीं है, बल्कि अच्छी योजना और लगातार मेहनत की ज़रूरत है। अपने शरीर, कपड़ों, घर, अपनी कार वगैरह को साफ करने के लिए हमें समय अलग रखना चाहिए। माना कि हम रोज़मर्रा की दूसरी ज़िम्मेदारियों के अलावा, सेवकाई, सभाओं और निजी अध्ययन में व्यस्त रहते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमें परमेश्वर और इंसानों की नज़र में शुद्ध रहने और उनकी मंज़ूरी पाने की ज़रूरत नहीं है। ‘हर बात का एक उचित समय है,’ यह जाना-माना उसूल, हमारी ज़िंदगी के इस पहलू पर यानी स्वच्छता के मामले पर भी लागू होता है।—सभोपदेशक 3:1, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।
ऐसा हृदय जो दूषित नहीं है
14. यह क्यों कहा जा सकता है कि नैतिक और आध्यात्मिक शुद्धता, शारीरिक स्वच्छता से भी ज़रूरी है?
14 शारीरिक स्वच्छता पर ध्यान देना तो ज़रूरी है ही, मगर नैतिक और आध्यात्मिक शुद्धता पर ध्यान देना उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है। ऐसा हम इसलिए कहते हैं क्योंकि याद कीजिए, यहोवा ने इस्राएल जाति को इसलिए नहीं ठुकराया कि वे शारीरिक रूप से दूषित हो गए थे बल्कि इसलिए कि वे नैतिक और आध्यात्मिक मायने में भ्रष्ट हो चुके थे। भविष्यवक्ता यशायाह के ज़रिए, यहोवा ने उन्हें बताया कि ‘वह जाति पाप से भरी है और वह समाज अधर्म से लदा हुआ’ है, इसीलिए उनके बलिदान, नए चांद और सब्त के पर्व का मनाना, यहाँ तक कि उनकी प्रार्थनाएँ भी यहोवा के लिए भारी बोझ लगने लगीं। तो उन्हें दोबारा यहोवा का अनुग्रह पाने के लिए क्या करना था? यहोवा ने उनसे कहा: “अपने को धोकर पवित्र करो; मेरी आंखों के साम्हने से अपने बुरे कामों को दूर करो; भविष्य में बुराई करना छोड़ दो।”—यशायाह 1:4, 11-16.
15, 16. यीशु के मुताबिक, क्या बात एक इंसान को अशुद्ध करती है, और हम यीशु की सलाह पर चलकर कैसे फायदा पा सकते हैं?
15 नैतिक और आध्यात्मिक शुद्धता कितनी ज़रूरी है, इसे और भी अच्छी तरह समझने के लिए ध्यान दीजिए कि यीशु ने उन फरीसियों और शास्त्रियों से क्या कहा, जिन्होंने यीशु के चेलों पर आरोप लगाया कि वे बगैर हाथ धोए भोजन करने की वजह से अशुद्ध हो गए थे। यीशु ने उन्हें यह ताड़ना दी: “जो मुंह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।” फिर यीशु ने समझाया: “जो कुछ मुंह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। क्योंकि कुचिन्ता, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती हैं। येही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।”—मत्ती 15:11, 18-20.
16 यीशु के इन शब्दों से हम क्या सीख सकते हैं? यीशु यह बता रहा था कि दुष्ट, अनैतिक और अशुद्ध काम करने से पहले एक इंसान के हृदय में दुष्ट, अनैतिक और अशुद्ध विचार पनपते हैं। जैसा कि शिष्य याकूब ने कहा: “प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर, और फंसकर परीक्षा में पड़ता है।” (याकूब 1:14, 15) इसलिए अगर हम ऐसे घोर पाप करने से दूर रहना चाहते हैं, जिनका यीशु ने ज़िक्र किया, तो हमें अपने हृदय से बुरी इच्छाओं को पूरी तरह उखाड़ फेंकना चाहिए और उन्हें पनपने नहीं देना चाहिए। इसके लिए हमें सावधानी बरतने की ज़रूरत है कि हम किस तरह की बातें पढ़ते, देखते और सुनते हैं। आज बोलने की आज़ादी और कला के नाम पर मनोरंजन और विज्ञापन उद्योग, ऐसे बेहिसाब किस्म के संगीत, फिल्मों और चित्रों की बौछार करता है जो पापी शरीर की वासनाएँ पूरी करते हैं। हमें यह ठान लेना चाहिए कि हम ऐसे बुरे विचारों को अपने हृदय में घर नहीं करने देंगे। खास मुद्दा यह है कि परमेश्वर को खुश करने और उसकी मंज़ूरी पाने के लिए हमें हर वक्त सावधान रहना चाहिए, तभी हम एक शुद्ध और निष्कलंक हृदय बनाए रख सकेंगे।—नीतिवचन 4:23.
भले कामों के लिए शुद्ध
17. यहोवा ने किस मकसद से अपने लोगों को शुद्ध किया?
17 यह हमारे लिए वाकई एक अनमोल आशीष है कि यहोवा की मदद से हम उसकी नज़रों में शुद्ध बने रह सकते हैं और इससे हमारी हिफाज़त भी होती है। (2 कुरिन्थियों 6:14-18) लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि अपने लोगों को शुद्ध करने में यहोवा का एक खास मकसद है। पौलुस ने तीतुस को बताया कि मसीह यीशु ने “अपने आप को हमारे लिये दे दिया, कि हमें हर प्रकार के अधर्म से छुड़ा ले, और शुद्ध करके अपने लिये एक ऐसी जाति बना ले जो भले भले कामों में सरगर्म हो।” (तीतुस 2:14) तो शुद्ध लोगों की हैसियत से हमें किन भले कामों में सरगर्म होना चाहिए?
18. हम यह कैसे दिखा सकते हैं कि हम भले कामों में सरगर्म हैं?
18 भले कामों में सबसे पहला यह है कि हमें परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी सभी को सुनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। (मत्ती 24:14) इस काम के ज़रिए हम हर जगह, लोगों को बताते हैं कि वे ऐसी धरती पर हमेशा जीने की आशा कर सकते हैं, जहाँ किसी भी तरह की गंदगी नहीं होगी। (2 पतरस 3:13) जो भले काम हमें करने हैं, उनमें यह भी शामिल है कि हम रोज़मर्रा के जीवन में परमेश्वर की आत्मा के फल पैदा करें और इस तरह अपने स्वर्गीय पिता की महिमा करें। (गलतियों 5:22, 23; 1 पतरस 2:12) और हम उन बाहरवालों को भी नहीं भूलना चाहेंगे जो प्राकृतिक विपत्तियों या दूसरे हादसों की वजह से बुरी तरह पीड़ित होते हैं। हम पौलुस की इस सलाह को गाँठ बाँध लेते हैं: “इसलिये जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों 6:10) शुद्ध हृदय और नेक इरादे से किए जानेवाले इन सभी कामों से यहोवा बेहद खुश होता है।—1 तीमुथियुस 1:5.
19. अगर हम हमेशा शारीरिक, नैतिक और आध्यात्मिक मायने में शुद्धता के एक ऊँचे स्तर को मानेंगे तो हमें कौन-सी आशीषें मिलेंगी?
19 परमप्रधान परमेश्वर के सेवक होने की वजह से हम पौलुस के इन शब्दों को मानते हैं: “हे भाइयो, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।” (रोमियों 12:1) आइए हम यहोवा के ज़रिए शुद्ध किए जाने की इस आशीष की हमेशा कदर करें और शारीरिक, नैतिक और आध्यात्मिक मायने में शुद्धता का एक ऊँचा स्तर बनाए रखने की भरसक कोशिश करें। ऐसा करने से न सिर्फ अभी हम आत्म-सम्मान और संतोष के साथ जीएँगे बल्कि हमें वह दिन भी देखने का मौका मिलेगा जब “पहिली बातें” यानी मौजूदा दुष्ट और अशुद्ध संसार मिट जाएगा और परमेश्वर ‘सब कुछ नया कर देगा।’—प्रकाशितवाक्य 21:4, 5.
क्या आपको याद है?
• इस्राएलियों को स्वच्छता के बारे में ढेरों नियम क्यों दिए गए थे?
• शारीरिक स्वच्छता, हमारे संदेश की शोभा कैसे बढ़ाती है?
• नैतिक और आध्यात्मिक शुद्धता, शारीरिक स्वच्छता से भी ज़रूरी क्यों है?
• हम यह कैसे दिखा सकते हैं कि हम “भले भले कामों में सरगर्म” हैं?
[पेज 21 पर तसवीरें]
शारीरिक स्वच्छता, हमारे संदेश की शोभा बढ़ाती है
[पेज 22 पर तसवीर]
यीशु ने चेतावनी दी कि बुरे विचारों का अंजाम बुरे काम होते हैं
[पेज 23 पर तसवीरें]
यहोवा के साक्षी, शुद्ध लोग हैं और वे भले कामों के लिए सरगर्म हैं