सब के लिए न्याय परमेश्वर के नियुक्त न्यायी के ज़रिए
“क्योंकि पिता पुत्र से प्रीति रखता है और . . . न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है।”—यूहन्ना ५:२०, २२.
१. आप के सामने किस तरह के प्रश्न हैं, जैसे पहली सदी के कुछ लोगों के सामने थे?
आप के लिए न्याय कितना अहम है? सच्चा न्याय पाने और जब वह दुनिया भर में प्रचलित हो, तब जीने के विषय आश्वस्त होने के लिए आप कितनी कोशिश करेंगे? आप पर उन सवालों के बारे में सोचने का दायित्व है, जैसा कि अथेने, यूनान, के कुछेक प्रमुख आदमियों और औरतों ने किया।
२, ३. (अ) किस बात से पौलुस का अपने अथेनी श्रोतागण को पश्चाताप करने का आह्वान प्रेरित हुआ? (ब) उस श्रोतागण को पश्चाताप का विषय विचित्र क्यों लगता?
२ उन्होंने अरियुपगुस की सुविख्यात अदालत के सामने मसीही प्रेरित पौलुस द्वारा पेश किया गया एक अविस्मरणीय भाषण सुना। उसने पहले एक परमेश्वर, सृजनहार, के अस्तित्व पर तर्क किया, जिस से हम सब ने ज़िंदगी पायी है। इस से यह तर्कसंगत निष्कर्ष निकला कि हम इस परमेश्वर के प्रति ज़िम्मेवार हैं। इस समय पौलुस ने कहा: “परमेश्वर अज्ञानता [जैसा कि मनुष्यों की मूर्तियों की पूजा करने की अज्ञानता] के समयों से आनाकानी करके, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है।”—प्रेरितों के काम १७:३०.
३ स्पष्ट रूप से, उस श्रोतागण के लिए पछतावा एक चौंका देनेवाली धारणा होती। ऐसा क्यों? प्राचीन यूनानी लोग किसी काम या कथन पर अनुताप महसूस करने के भावार्थ से पछतावा के बारे में जानते थे। परन्तु, जैसा एक शब्दकोश बताता है, उस शब्द “से यह कभी सूचित न हुआ कि संपूर्ण नैतिक अभिवृत्ति में एक हेर-फेर, ज़िंदगी की दिशा में एक अत्यधिक बदल, पूरे बरताव पर असर करनेवाला एक परिवर्तन हो।”
४. पछतावे के विषय पौलुस का टीका कौनसे तर्क से समर्थित था?
४ फिर भी, आप बेशक समझ सकते हैं कि ऐसा गहरा पछतावा क्यों उचित है। पौलुस का तर्क समझ लें। सभी मनुष्य अपना जीवन परमेश्वर से प्राप्त करते हैं, इसलिए सभी उसके प्रति ज़िम्मेवार हैं। तो फिर, परमेश्वर के लिए उनसे यह उम्मीद रखना बिल्कुल ही सही और न्याय्य है कि वे उसे खोजें और उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करें। अगर उन अथेनियों को उसके सिद्धान्त और उसकी इच्छा मालूम न थे, तो उन्हें इन बातों को सीखने और फिर, अपनी ज़िंदगी उनके अनुरूप ले आने के लिए पछतावा करने की ज़रूरत थी। यह इस बात पर निर्भर न होता कि ऐसा करना कितना सुविधाजनक था। ऐसा क्यों था हम पौलुस की प्रभावी समाप्ति से देख सकते हैं: “क्योंकि उस ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।”—प्रेरितों के काम १७:३१.
५. श्रोतागण ने पौलुस के भाषण के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखायी, और क्यों?
५ वह आयत, जो कि इतना अर्थगर्भित, इतना अकाट्य है, हमारी ध्यानयुक्त जाँच के योग्य इसलिए है कि यह हमारे समय में पूर्ण न्याय की आशा जगाता है। इन अभिव्यक्तियों पर ग़ौर करें: “एक दिन ठहराया है,” “जगत का न्याय करेगा,” “धर्म से,” “उस मनुष्य के द्वारा . . . जिसे उस ने ठहराया है,” “यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है,” “उसे . . . जिलाकर।” “उसे जिलाकर” शब्दों से पौलुस के श्रोतागण से एक ज़ोरदार प्रतिक्रिया आयी। जैसे आयत ३२-३४ दिखाते हैं, कुछ लोगों ने हँसी उड़ायी। दूसरे लोग विचार-विमर्श को बस छोड़कर चले गए। फिर भी, कुछ लोग पश्चातापी विश्वासी बन गए। परन्तु, हम उस अथेनी श्रोतागण के अधिकांश लोगों से ज़्यादा बुद्धिमान हों, इसलिए कि अगर हम सच्चे न्याय की आकांक्षा करते हैं, तो यह परम महत्त्व की बात है। आयत ३१ का सबसे ज़्यादा अर्थ प्राप्त करने के लिए, पहले यह अभिव्यक्ति देखें: “उस ने . . . ठहराया है [कि] . . . जगत का न्याय करेगा।” वह “उस ने” कौन है, और उसके मानदण्ड क्या हैं, ख़ास कर न्याय के संबंध में?
६. हम उस व्यक्ति के बारे में कैसे सीख सकते हैं, जिस ने पृथ्वी का न्याय करने के लिए एक दिन ठहराया है?
६ ख़ैर, प्रेरितों के काम १७:३० दिखाता है कि पौलुस किस का ज़िक्र कर रहा था—वही परमेश्वर जो सभी लोगों को मन फिराने को कह रहा है, हमारा जीवन दाता, जो सृजनहार है। निःसंदेह, हम परमेश्वर के बारे में बहुत कुछ उसके सृजनात्मक कार्यों से पता कर सकते हैं। लेकिन उसके न्याय का मानदण्ड एक अन्य स्रोत, बाइबल, से ख़ास कर ज़ाहिर है, जिस में मूसा जैसे आदमियों से उसके व्यवहार और इस्राएल के लिए परमेश्वर के नियमों का विवरण है।
किस तरह का निर्णयन और न्याय?
७. यहोवा और न्याय के विषय मूसा कैसा साक्ष्य देता है?
७ आपको शायद मालूम है कि दशकों से मूसा के यहोवा परमेश्वर से गहरे संबंध थे, इतने गहरे कि परमेश्वर ने कहा कि वह मूसा से “आमने-सामने” बातें करता था। (गिनती १२:८) मूसा जानता था कि यहोवा ने उस से किस तरह व्यवहार किया था, और साथ साथ यह कि परमेश्वर ने दूसरे इन्सानों से और संपूर्ण जातियों से किस तरह बरताव किया था। अपने जीवन की लगभग समाप्ति के समय, मूसा ने यह आश्वासन देनेवाला वर्णन दिया: “वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।”—व्यवस्थाविवरण ३२:४.
८. न्याय के विषय में एलीहू ने जो कहा, उस पर हमें ध्यान क्यों देना चाहिए?
८ एलीहू के साक्ष्य पर भी ग़ौर करें, एक ऐसा आदमी जो अपनी बुद्धि और बोध के लिए प्रसिद्ध था। आप पूरा विश्वास रख सकते हैं कि वह ऐसा व्यक्ति न था जो जल्दबाज़ी से निष्कर्षों पर पहुँचता। उलटे, एक प्रसंग पर उसने एक हफ़्ता से ज़्यादा समय तक बैठकर दोनों पक्ष की लंबी मौखिक दलील सुनी। अब, खुद एलीहू के अनुभव और परमेश्वर की रीतियों के विषय उसके अध्ययन से, वह परमेश्वर के बारे में किस नतीजे पर पहुँचा? उसने कहा: “इसलिए हे समझवालो! मेरी सुनो, यह संभव नहीं कि ईश्वर दुष्टता का काम करे, और सर्वशक्तिमान बुराई करे। वह मनुष्य की करनी का फल देता है, और प्रत्येक को अपनी अपनी चाल का फल भुगताता है। निःसंदेह ईश्वर दुष्टता नहीं करता और न सर्वशक्तिमान अन्याय करता है।”—अय्यूब ३४:१०-१२.
९, १०. मानवी न्यायियों के लिए परमेश्वर के मानदण्डों से हमें क्यों प्रोत्साहित महसूस होना चाहिए? (लैव्यव्यवस्था १९:१५)
९ अपने आप से पूछें: क्या वह पूर्ण रूप से उन बातों का वर्णन नहीं करता जो हम किसी न्यायी से चाहेंगे, कि वह, कोई पक्षपात या न्याय भ्रष्ट करे बिना, हर व्यक्ति से अपने कार्यों, या कामों, के अनुसार बरताव करे? अगर आप को किसी मानवी न्यायी के सामने खड़ा होना पड़ा, और वह उस तरह होता, तो क्या आप हलका महसूस न करते?
१० बाइबल यहोवा का ज़िक्र “सारे जगत के न्यायी” के तौर से करती है। (उत्पत्ति १८:२५) परन्तु, कभी कभी उसने मानवी न्यायियों को इस्तेमाल किया। उसका प्रतिनिधित्व करनेवाले इस्राएली न्यायियों से वह क्या अपेक्षा रखता था? व्यवस्थाविवरण १६:१९, २० (न्यू.व.) में हम परमेश्वर के आदेश पढ़ सकते हैं जो न्यायियों के लिए एक नौकरी चित्रण के बराबर है: “तुम न्याय न बिगाड़ना; तू न तो पक्षपात करना; और न तो घूस लेना, क्योंकि घूस बुद्धिमान की आँखें अन्धी कर देती है, और धर्मियों की बातें पलट देती है। न्याय, न्याय का पीछा पकड़े रहना, जिस से तू जीवित रहे।” न्याय चित्रित करनेवाली मूर्तियाँ निष्पक्षता सूचित करने के लिए शायद किसी की कल्पना के अनुसार आँखों पर पट्टी बाँधी औरत के तौर से अंकित होंगी, लेकिन आप देख सकते हैं कि परमेश्वर उस से कहीं आगे गया। उसने वास्तव में उन मानवी न्यायियों से ऐसी निष्पक्षता माँगी, जो उसका प्रतिनिधित्व करनेवाले और उसके नियम लागू करानेवाले थे।
११. न्याय के बारे में इस बाइबलीय जानकारी का पुनरावलोकन करने से हम कैसा निष्कर्ष निकाल सकते हैं?
११ न्याय के विषय परमेश्वर के दृष्टिकोण की इस तफ़सील का पौलुस के भाषण की समाप्ति से सीधा संबंध है। प्रेरितों के काम १७:३१ में पौलुस ने घोषित किया कि परमेश्वर “ने एक दिन ठहराया है जिस में वह . . . धर्म से जगत का न्याय करेगा।” यह बिल्कुल वही बातें हैं जिसकी अपेक्षा हम परमेश्वर से कर सकते हैं—न्याय, धर्म और निष्पक्षता। फिर भी, कुछ लोग शायद चिन्तित होंगे, इसलिए कि, आयत ३१ के अनुसार, परमेश्वर सारी मनुष्यजाति का न्याय करने के लिए एक “मनुष्य” का उपयोग करनेवाला है। वह “मनुष्य” कौन है, और हमें क्या आश्वासन है कि वह परमेश्वर के न्याय के उन्नत मानदण्ड बनाए रखेगा?
१२, १३. हम किस तरह जानते हैं कि परमेश्वर न्याय करने के लिए कौनसे “मनुष्य” का उपयोग करेगा?
१२ प्रेरितों के काम १७:१८ हमें बताता है कि पौलुस “यीशु का, और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुना” रहा था। तो, उसके भाषण की समाप्ति पर श्रोतागण ने समझ लिया कि पौलुस का मतलब यीशु मसीह से था जब उसने कहा कि परमेश्वर ‘उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करता, जिसे उस ने ठहराया, और परमेश्वर ने उसे मरे हुओं से जिलाया।’
१३ यीशु ने क़बूल किया कि परमेश्वर ने उसे न्यायी के तौर से नियुक्त किया था, जो दैवी मानदण्डों के अनुकूल था। यूहन्ना ५:२२ में उसने कहा: “और पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है।” जो कोई स्मारक क़ब्रों में हैं, उनके आगामी पुनरुत्थान का ज़िक्र करने के बाद, यीशु ने कहा: “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूँ, वैसा न्याय करता हूँ, और मेरा न्याय सच्चा है, क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूँ।”—यूहन्ना ५:३०; भजन ७२:२-७.
१४. हम यीशु से किस तरह के बरताव की अपेक्षा रख सकते हैं?
१४ यह आश्वासन उस बात से कितना अनुरूप है जो हम प्रेरितों के काम १७:३१ में पढ़ते हैं! वहाँ पौलुस ने भी आश्वासन दिया कि पुत्र “धर्म से जगत का न्याय” करता। क्या इस बात से कोई सख़्त, अनम्य, या बेरहम न्याय सूचित होता है? उलटे, धर्मी न्याय के अन्तर्गत न्याय को क्षमा और समझदारी से मंद करना है। इस बात की देखी-अनदेखी नहीं करनी चाहिए: यद्यपि यीशु अब स्वर्ग में है, वह एक मनुष्य रह चुका है। तो वह तदनुभूतिशील हो सकता है। इब्रानियों ४:१५, १६ में पौलुस ने, यीशु का एक महायाजक के तौर से वर्णन करते हुए, इस बात पर थोड़ा-सा प्रकाश डाला।
१५. यीशु किस तरह मानवी न्यायियों से भिन्न है?
१५ इब्रानियों ४:१५, १६ पढ़ते समय उस हलकेपन के विषय सोचें जो हमें यीशु को न्यायी के नाते पाने से महसूस होना चाहिए: “क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलता में हमारे साथ दुःखी न हो सके; बरन वह सब बातों में हमारी नाईं परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला। इसलिए आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएँ, जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे।” आज की अदालतों में, न्यायपीठ के सामने बुलाया जाना अक़्सर डरावना होता है। फिर भी, न्यायी के रूप में यीशु के विषय में, हम ‘हियाव बान्धकर चल सकते हैं कि हम दया, अनुग्रह और आवश्यकता के समय सहायता पाएँ।’ परन्तु, समय के विषय में आपको यह पूछने का ठोस कारण है कि ‘यीशु मनुष्यजाति पर धर्म से कब न्याय करेगा?’
न्याय करने के लिए “एक दिन”—कब?
१६, १७. हम कैसे जानते हैं कि स्वर्ग से न्याय करने का कार्य अब जारी है?
१६ याद करें कि पौलुस ने कहा था कि परमेश्वर ने अपने नियुक्त न्यायी के द्वारा जगत का न्याय करने के लिए “एक दिन ठहराया है।” उस न्याय के “दिन” की प्रत्याशा में, यीशु आज, हाँ, इसी वक्त, एक अत्यावश्यक न्याय कार्य कर रहा है। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? उसके गिरफ़्तार होने और उसे अन्याय से मृत्यु की दण्डाज्ञा दिए जाने से कुछ ही समय पहले, यीशु ने एक ऐतिहासिक भविष्यवाणी की जो हमारे समय को अन्तर्ग्रस्त करती है। हम उसे मत्ती अध्याय २४ में पढ़ सकते हैं। यीशु ने दुनिया की उन घटनाओं का वर्णन किया जो “रीति-व्यवस्था की समाप्ति” नामक अवधि चिह्नित करतीं। युद्ध, अकाल, भूकम्प और विश्व युद्ध I से जो अन्य विपत्तियाँ घटी हैं, साबित करती हैं कि यीशु की भविष्यवाणी अब पूरी हो रही है और कि बहुत जल्द “अन्त आएगा।” (मत्ती २४:३-१४) दशकों से यहोवा के गवाह यह बात बाइबल में से समझा रहे हैं। अगर आप ज़्यादा सबूत चाहेंगे कि हम किस तरह जानते हैं कि हम इस अन्यायी व्यवस्था के आख़री दिनों में जी रहे हैं, तो यहोवा के गवाह ऐसा सबूत दे सकते हैं।
१७ यद्यपि, मत्ती अध्याय २५ का आख़री हिस्सा जाँचें, जो कि आख़री दिनों के बारे में यीशु की भविष्यवाणी का एक हिस्सा है। मत्ती २५:३१, ३२ हमारे समय में लागू होता है: “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे, तो वह [स्वर्ग में] अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। और सब जातियाँ उसके सामने इकट्ठा की जाएँगी, और जैसा चरवाहा भेड़ों को बक़रियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा।” अब नीचे देखें जहाँ यीशु अपने अलग करने, या न्याय करने के कार्य का नतीजा बताता है। आयत ४६: “और यह [वे लोग जिसे वह बक़रियों के तौर से आँकता है] अनन्त दण्ड भोगेंगे, परन्तु धर्मी [भेड़ जैसे लोग] अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।”
१८. हमारे समय में न्याय किस में परिणत होगा?
१८ इस प्रकार हम न्याय के एक निर्णायक समय में जी रहे हैं। ‘परमेश्वर को ढूँढ़ने और उसे सचमुच पानेवालों’ को आज भेड़ों के तौर से आँका जाएगा जो वर्तमान व्यवस्था के अन्त से बचने और उसके बाद आनेवाली नयी दुनिया में प्रवेश करने के लिए नियत हैं। फिर २ पतरस ३:१३ परिपूर्ण होगा: “उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नयी पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” वह वही “दिन” होगा जब प्रेरितों के काम १७:३१ में पौलुस के शब्द पूर्ण रूप से लागू होंगे, और धर्म से पृथ्वी का न्याय होने का समय होगा।
१९, २०. आनेवाले न्याय के दिन का प्रभाव किस पर होगा?
१९ वह न्याय का दिन सिर्फ़ उत्तरजीवी “भेड़ों” से कहीं ज़्यादा सम्मिलित करेगा, जो कि पहले ही नयी दुनिया में प्रवेश करने के काबिल आँके गए हैं। याद करें कि यह कहने के बाद कि उसके पिता ने उसे न्याय का कार्य सौंपा था, यीशु ने एक आनेवाले पुनरुत्थान के बारे में बताया। और, प्रेरितों के काम १०:४२ में, प्रेरित पतरस ने कहा कि यीशु मसीह “वही है, जिसे परमेश्वर ने जीवतों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है।”
२० इसके फलस्वरूप, प्रेरितों के काम १७:३१ में ज़िक्र किया गया वह ‘ठहराया दिन,’ जिसके दौरान परमेश्वर यीशु मसीह के ज़रिए “धर्म से जगत का न्याय करेगा,” मरे हुओं का पुनरुत्थान करने का समय होगा। मृत्यु, जिसका बाँटना अक़्सर सबसे बड़ा अन्याय रहा है, अभिभूत करने के लिए दैवी शक्ति का प्रयोग होते देखना कितना आनन्दमय होगा। कुछ लोग, जैसे खुद यीशु के साथ हुआ, सरकारों या आक्रमणकारी सेनाओं द्वारा अन्याय से प्राणदण्डित किए गए हैं। अन्यों की जानें अनपेक्षित घटनाओं, जैसे कि तूफ़ान, भूकम्प, आकस्मिक अग्निकाण्ड, और उस प्रकार की विपत्तियों में चली गयी हैं।—सभोपदेशक ९:११.
पिछले अन्यायों का समाधान
२१. नयी दुनिया में पिछले अन्याय कैसे अभिभूत होंगे?
२१ अपने प्रिय जनों को पुनर्जीवित होते हुए देख सकने की कल्पना करें! इस प्रकार से अनेकों को ‘परमेश्वर को ढूँढ़ने और उसे सचमुच पाने’ का पहला मौका मिलेगा और फिर उनके सामने वह “अनन्त जीवन” का मौका रहेगा जो “भेड़ों” का प्रतिफल हो सकता है। कुछेक पुनर्जीवित लोग, और साथ साथ इस अन्यायी व्यवस्था के उत्तरजीवी लोग, ऐसे प्रत्यक्ष अन्यायों के शिकार रह चुके हैं, जैसे कि जन्मगत विकृति, अँधापन, बहिरापन, या बोलने में रुकावटें। क्या ऐसी बातें उस ‘नयी पृथ्वी’ में ठीक होंगी, ‘जिस में धार्मिकता बास करेगी’? यहोवा ने यशायाह को ऐसी विभिन्न भविष्यवाणियाँ प्रस्तुत करने के लिए इस्तेमाल किया, जिनकी आगामी न्याय के दिन में एक भव्य वास्तविक पूर्ति होगी। ग़ौर करें कि हम क्या अपेक्षा कर सकते हैं: “तब अँधों की आँखें खोली जाएँगी और बहिरों के कान भी खोले जाएँगे; तब लंगडा हरिण की सी चौकड़िया भरेगा और गूँगे अपनी जीभ से जयजयकार करेंगे।”—यशायाह ३५:५, ६.
२२. न्याय के संबंध में यशायाह अध्याय ६५ इतना प्रोत्साहक क्यों है?
२२ उन दूसरे अन्यायों का क्या जो अब इतने दुःख-तक़लीफ़ का कारण बनते हैं? यशायाह अध्याय ६५ में कुछ आनन्दप्रद रूप से प्रोत्साहक जवाब हैं। २ पतरस ३:१३ से यशायाह ६५:१७ की तुलना सूचित करती है कि यह अध्याय भी “नए आकाश और नयी पृथ्वी,” एक धार्मिक नयी व्यवस्था के समय की ओर संकेत करता है। फिर भी, कुछेक दुष्ट जनों को शान्ति और न्याय भंग करने से कौन रोक सकता है? थोड़े आगे, यशायाह ६५ इस बात को ख़त्म करता है जो शायद एक समस्या लगेगी।
२३. कुछेक व्यक्तियों के लिए न्याय के दिन का क्या संभावित परिणाम होगा?
२३ इस सतत आगे बढ़नेवाले न्याय के दिन के दौरान, यीशु अपना व्यक्ति आँकने का काम जारी रखेगा, कि क्या वे अनन्त जीवन के योग्य हैं या नहीं। कुछेक न होंगे। परमेश्वर को ढूँढ़ने के लिए भरपूर समय, शायद “सौ वर्ष” भी, दिए जाने के बाद, कुछेक दिखाएँगे कि वे धार्मिकता का अभ्यास करना अस्वीकार करते हैं। न्यायत: उस नयी दुनिया में वे जीवन से हाथ धो बैठेंगे, जैसा कि हम यशायाह ६५:२० से देख सकते हैं: “परन्तु पापी सौ वर्ष का होकर श्रापित ठहरेगा।” ऐसे जीवन के लिए अयोग्य आँके गए लोग अल्पसंख्या में होंगे। यह उम्मीद करने का हमें हर कारण है कि हमें—और दूसरे अधिकांश लोगों को —धार्मिकता सीखने और उसे प्रयोग में लाने में खुशी होगी।—यशायाह २६:९.
२४. आर्थिक अन्याय के संबंध में स्थिति कैसी रहेगी?
२४ क्या इसका मतलब है कि अब और कोई अन्याय न होंगे, आर्थिक अन्याय भी नहीं? बेशक! यशायाह ६५:२१-२३ वह वास्तविकता सूचित करता है: “वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियाँ लगाकर उनका फल खाएँगे। ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएँ और दूसरा बसे; वा वे लगाएँ, और दूसरा खाए; क्योंकि मेरी प्रजा की आयु वृक्षों की सी होगी, और मेरे चुने हुए अपने कामों का पूरा लाभ उठाएँगे। उनका परिश्रम व्यर्थ न होगा, न उनके बालक घबराहट के लिए उत्पन्न होंगे; क्योंकि वे यहोवा के धन्य लोगों का वंश ठहरेंगे, और उनके बालबच्चे उन से अलग न होंगे।” आज की स्थिति से कैसा परिवर्तन! कैसा आशीर्वाद!
२५. परमेश्वर के नियुक्त न्यायी से प्राप्त न्याय के संबंध में आपकी आशा और आपका दृढ़ निश्चय क्या है?
२५ इसलिए, हर कोई जो चिरस्थायी न्याय की आकांक्षा करता है, हिम्मत कर सकता है। वह निश्चय ही आएगा—जल्द ही। यह न्याय का संक्षिप्त समय, यहोवा के गवाहों के साथ मिलकर अब परमेश्वर को खोजने और उसे सचमुच पाने का है, जिस से अनन्तकालीन लाभ प्राप्त हो सकते हैं।
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
◻ परमेश्वर के न्याय के मानदण्ड से संबंधित हमारे पास क्या प्रमाण है?
◻ आनेवाले न्याय के दिन में यीशु का क्या भाग रहेगा?
◻ दैवी न्याय के संबंध में हमारा समय निर्णायक क्यों है?
◻ नयी दुनिया में पिछला अन्याय किस तरह दुरुस्त किया जाएगा?
[पेज 15 पर चित्र का श्रेय]
Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.