प्रेम और भले कार्यों में उत्साहित करना —कैसे?
“ध्यान रखें कि किस प्रकार प्रेम और भले कार्यों में एक दूसरे को उत्साहित कर सकते हैं, . . . एक दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो, और उस दिन को निकट आते देख कर और भी अधिक इन बातों को किया करो।” —इब्रानियों १०: २४, २५, NHT.
१, २. (क) यह क्यों ज़रूरी था कि प्रारम्भिक मसीही अपने एक साथ मिलने से सांत्वना और प्रोत्साहन पाएँ? (ख) पौलुस की किस सलाह ने एक साथ मिलने की ज़रूरत को सम्बोधित किया?
वे बंद दरवाज़ों के पीछे सिमटकर छिपकर मिले। बाहर, ख़तरा चारों तरफ़ मँडरा रहा था। उनके अगुए, यीशु को अभी-अभी खुले आम मार दिया गया था, और उसने अपने अनुयायियों को आगाह किया था कि उनके साथ भी वैसा ही सलूक किया जाएगा। (यूहन्ना १५:२०; २०:१९) लेकिन जब उन्होंने धीमी आवाज़ में अपने प्रिय यीशु के बारे में बात की, तब एक साथ होने के कारण उन्होंने कम-से-कम अधिक सुरक्षित महसूस किया होगा।
२ जैसे-जैसे साल गुज़रे, मसीहियों ने सभी तरह की परीक्षाओं और सताहटों का सामना किया। उन प्रथम शिष्यों की तरह उन्हें एक साथ मिलने से सांत्वना और प्रोत्साहन मिला। इसलिए, प्रेरित पौलुस ने इब्रानियों १०:२४, २५, (NHT) में लिखा: “ध्यान रखें कि किस प्रकार प्रेम और भले कार्यों में एक दूसरे को उत्साहित कर सकते हैं, और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ो, जैसा कि कितनों की रीति है, वरन् एक दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो, और उस दिन को निकट आते देख कर और भी अधिक इन बातों को किया करो।”
३. आप यह क्यों कहेंगे कि इब्रानियों १०:२४, २५ सिर्फ़ एक आज्ञा से बढ़कर है कि मसीही एक साथ मिलें?
३ वे शब्द एक साथ मिलना जारी रखने के लिए एक आज्ञा से भी बढ़कर हैं। वे सभी मसीही सभाओं के लिए—और असल में, किसी भी अवसर के लिए जब मसीही एक साथ संगति करते हैं—ईश्वरीय रूप से उत्प्रेरित स्तर प्रदान करते हैं। आज, जब हम यहोवा के दिन को स्पष्ट रूप से निकट आते हुए देखते हैं, तो इस दुष्ट व्यवस्था के दबाव और ख़तरे पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी बना देते हैं कि हमारी सभाएँ एक सुरक्षित आश्रय, और सभी के लिए शक्ति और प्रोत्साहन के स्रोत के समान हों। यह सुनिश्चित करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? आइए हम पौलुस के शब्दों की ध्यानपूर्वक जाँच करें, और तीन मुख्य सवाल पूछें: ‘एक दूसरे का ध्यान रखने’ का क्या अर्थ है? ‘प्रेम और भले कार्यों में एक दूसरे को उत्साहित’ करने का क्या अर्थ है? और अंत में, इन कठिन समयों में हम ‘एक दूसरे को प्रोत्साहित’ कैसे कर सकते हैं?
‘एक दूसरे का ध्यान रखना’
४. ‘एक दूसरे का ध्यान रखने’ का क्या अर्थ है?
४ जब पौलुस ने मसीहियों से ‘एक दूसरे का ध्यान रखने’ का आग्रह किया, उसने यूनानी क्रिया काटानोईओ का इस्तेमाल किया। यह सामान्य पद “महसूस करना” का एक तीव्रता बोधक रूप है। द थियोलॉजिकल डिक्शनरी ऑफ द न्यू टेस्टामेन्ट कहती है कि इसका अर्थ है “एक व्यक्ति की ओर अपना पूरा मन लगाना।” डब्ल्यू. ई. वाईन के अनुसार इसका अर्थ “पूरी तरह समझना, नज़दीकी से ग़ौर करना” भी हो सकता है। सो जब मसीही ‘एक दूसरे का ध्यान रखते’ हैं, ना सिर्फ़ वे ऊपरी तौर पर समझते हैं बल्कि वे अपनी सभी मानसिक क्षमताओं का प्रयोग करते हुए गहरी समझ प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।—इब्रानियों ३:१ से तुलना कीजिए।
५. एक व्यक्ति के कुछ पहलू कौन-से हैं जो शायद आसानी से न दिखें, और हमें उन पर ग़ौर क्यों करना चाहिए?
५ हमें यह याद रखने की ज़रूरत है कि एक व्यक्ति के दिखाव-बनाव, काम, या व्यक्तित्व पर ऊपरी नज़र डालने से शायद जो प्रकट हो, उससे कहीं ज़्यादा वह व्यक्ति हक़ीक़त में है। (१ शमूएल १६:७) अकसर एक शान्त स्वभाव किसी व्यक्ति की गहरी भावनाओं या एक आनन्दप्रद विनोद-वृत्ति को छिपा देता है। साथ ही, पृष्ठभूमियों के बीच भी बहुत भिन्नता होती है। कुछ लोग अपने जीवन में भयानक परीक्षाओं से गुज़रे हैं; अन्य लोग अभी ऐसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। यह कितनी ही बार होता है कि एक भाई या बहन के किसी व्यवहार वैचित्र्य के प्रति हमारी चिढ़ ग़ायब हो जाती है जब हम उस व्यक्ति की पृष्ठभूमि या परिस्थितियों के बारे में ज़्यादा जान जाते हैं।—नीतिवचन १९:११.
६. ऐसे कौन-से कुछ तरीक़े हैं जिन से हम एक दूसरे को बेहतर तरीक़े से जान सकते हैं, और इसका कौन-सा अच्छा परिणाम हो सकता है?
६ निश्चय ही, इसका अर्थ यह नहीं है कि बिनबुलाए हमें एक दूसरे के निजी मामलों में ताक-झाँक करनी चाहिए। (१ थिस्सलुनीकियों ४:११) फिर भी, हम एक दूसरे में व्यक्तिगत दिलचस्पी निश्चय ही दिखा सकते हैं। इसमें राज्य-गृह में सिर्फ़ एक अभिवादन से ज़्यादा शामिल है। क्यों न किसी ऐसे व्यक्ति को चुनें जिसे आप ज़्यादा अच्छी तरह से जानना चाहेंगे, और सभा के पहले या बाद में, चंद मिनट चर्चा करने का लक्ष्य रखें? एक या दो दोस्तों को अपने घर पर चाय नाश्ते के लिए बुलाने के द्वारा ‘पहुनाई करना’ ज़्यादा लाभदायक होगा। (रोमियों १२:१३) दिलचस्पी दिखाइए। सुनिए। सिर्फ़ यह पूछना ही काफ़ी कुछ प्रकट कर सकता है कि एक व्यक्ति ने यहोवा के बारे में कैसे जाना और उससे प्रेम करने के लिए कैसे प्रेरित हुआ। जबकि घर-घर की सेवकाई में एक साथ काम करने के द्वारा आप और भी ज़्यादा जान सकते हैं। ऐसे तरीक़ों से एक दूसरे का ध्यान रखना, सहानुभूति, या तदनुभूति विकसित करने में हमारी मदद करेगा।—फिलिप्पियों २:४; १ पतरस ३:८.
‘एक दूसरे को उत्साहित करना’
७. (क) यीशु की शिक्षा ने लोगों को कैसे प्रभावित किया? (ख) किस बात ने उसकी शिक्षा को इतना प्रभावशाली बनाया?
७ जब हम एक दूसरे का ध्यान रखते हैं, तब हम एक दूसरे को कार्य करने के लिए उत्साहित करने, और आग्रह करने के लिए बेहतर रूप से तैयार होते हैं। इस मामले में ख़ासकर मसीही प्राचीन एक मुख्य भूमिका निभाते हैं। उस समय के बारे में जब यीशु ने खुले आम बात की थी, हम पढ़ते हैं: “तो [असर] ऐसा हुआ कि भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई।” (मत्ती ७:२८) एक अन्य अवसर पर उसे गिरफ़्तार करने के लिए भेजे गए कुछ सिपाही भी यह कहते हुए लौटे: “किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न कीं।” (यूहन्ना ७:४६) किस बात ने यीशु की शिक्षा को इतना प्रभावशाली बनाया? क्या भावुकता के प्रदर्शनों ने? नहीं; यीशु गरिमा के साथ बोलता था। फिर भी, उसने हमेशा अपने सुननेवालों के हृदयों तक पहुँचने का लक्ष्य रखा। क्योंकि उसने लोगों का ध्यान रखा, वह ठीक-ठीक जानता था कि उन्हें कैसे प्रेरित करे। उसने रोज़मर्रा के जीवन की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करनेवाले सजीव, और सरल दृष्टान्तों को इस्तेमाल किया। (मत्ती १३:३४) उसी तरह, हमारी सभाओं में कार्यनियुक्तियों को पूरा करनेवालों को प्रेरित करनेवाली स्नेहपूर्ण, और उत्साहपूर्ण प्रस्तुतियों को पेश करने के द्वारा यीशु का अनुकरण करना चाहिए। यीशु की तरह, हम ख़ुद भी अपने श्रोताओं पर ठीक बैठनेवाले और उनके हृदयों तक पहुँचनेवाले दृष्टान्तों को ढूँढने के लिए ख़ुद को लगा सकते हैं।
८. यीशु ने उदाहरण के द्वारा कैसे उत्साहित किया, और इस मामले में हम उसका अनुकरण कैसे कर सकते हैं?
८ अपने परमेश्वर की सेवा करने में, हम सभी एक दूसरे को उदाहरण के द्वारा उत्साहित कर सकते हैं। निश्चय ही यीशु ने अपने सुननेवालों को उत्साहित किया। वह मसीही सेवकाई के काम से प्रेम करता था और उसने सेवकाई को उन्नत किया। उसने कहा कि वह उसके लिए भोजन के समान थी। (यूहन्ना ४:३४; रोमियों ११:१३) ऐसा उत्साह फैलनेवाला हो सकता है। उसी तरह, क्या हम सेवकाई में अपनी ख़ुशी को दूसरों पर प्रकट कर सकते हैं? सावधानीपूर्वक एक शेख़ीबाज़ लहज़े को टालते हुए, कलीसिया में दूसरों के साथ अपने अच्छे अनुभवों को बाँटिए। जब आप दूसरों को अपने साथ काम करने के लिए आमंत्रित करते हैं, तब यह देखिए कि हमारे महान सृष्टिकर्ता, यहोवा के बारे में दूसरों को बताने में वास्तविक ख़ुशी पाने के लिए क्या आप उनकी मदद कर सकते हैं।—नीतिवचन २५:२५.
९. (क) दूसरों को उत्साहित करने के कौन-से कुछ तरीक़े हैं जिन्हें हम टालना चाहेंगे, और क्यों? (ख) यहोवा की सेवा में ख़ुद को लगा देने के लिए किस बात से हमें प्रेरित होना चाहिए?
९ बहरहाल, दूसरों को ग़लत तरीक़े से उत्साहित न करने के बारे में सावधान रहिए। उदाहरण के लिए, शायद हम अनजाने में ही उन्हें ज़्यादा न करने के लिए दोषी महसूस करवाएँ। हम शायद प्रतिकूल रीति से उनकी तुलना, मसीही गतिविधियों में ज़्यादा सक्रिय हिस्सा लेनेवालों के साथ करने के द्वारा उन्हें अनजाने में शर्मिंदा करें। या हम शायद कठोर स्तर स्थापित करें और उनके अनुरूप न होनेवालों की उपेक्षा करें। इन में से कोई भी तरीक़ा शायद कुछ लोगों को थोड़ी देर तक कार्य करने के लिए उत्साहित करे, लेकिन पौलुस ने यह नहीं लिखा कि ‘दोष और भले कार्यों में उत्साहित करो।’ नहीं, हमें प्रेम में उत्साहित करना है, तब कार्य भी एक अच्छे उद्देश्य से होंगे। किसी भी व्यक्ति को ख़ासकर इस विचार से प्रेरित नहीं होना चाहिए कि अगर वह उन अपेक्षाओं को पूरा नहीं करता, तो कलीसिया के अन्य लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे। —२ कुरिन्थियों ९: ६, ७ से तुलना कीजिए।
१०. हमें यह क्यों याद रखना चाहिए कि हम दूसरों के विश्वास के विषय में प्रभुता नहीं जताना चाहते?
१० एक दूसरे को उत्साहित करने का अर्थ एक दूसरे को नियंत्रित करना नहीं है। हालाँकि प्रेरित पौलुस के पास काफ़ी परमेश्वर-प्रदत्त अधिकार था, उसने कुरिन्थ की कलीसिया को नम्रतापूर्वक याद दिलाया: ‘विश्वास के विषय में हम तुम पर प्रभुता नहीं जताना चाहते।’ (२ कुरिन्थियों १:२४) अगर हम उसकी तरह नम्रतापूर्वक स्वीकार करते हैं कि दूसरों को यहोवा की सेवा में कितना करना चाहिए यह निर्धारित करना हमारा काम नहीं है, या यह कि अन्य निजी फ़ैसलों में उनके लिए उनके अंतःकरणों को नियंत्रित करना हमारा काम नहीं है, तो हम “बहुत धर्मी,” आनन्दहीन, कठोर, नकारात्मक, या नियम-निर्देशित बनने से बचे रहेंगे। (सभोपदेशक ७:१६) ऐसे गुण उत्साहित नहीं करते; वे दबाते हैं।
११. इस्राएल के निवासस्थान के निर्माण के दिनों में किस बात ने अंशदानों को प्रेरित किया, और वह हमारे दिनों में कैसे सच हो सकता है?
११ हम चाहते हैं कि यहोवा की सेवा में सभी कोशिशें वैसी ही मानसिक प्रवृत्ति से की जाएँ जैसे प्राचीन इस्राएल में दिखाई गयी थी जब निवासस्थान के निर्माण के लिए अंशदानों की ज़रूरत थी। निर्गमन ३५:२१ (NHT) कहता है: “प्रत्येक मनुष्य जिसके मन ने उसे प्रोत्साहित किया और प्रत्येक जिसकी आत्मा ने उसे उभारा वह मिलाप वाले तम्बू के कार्य और उसकी समस्त सेवकाई और पवित्र वस्त्रों को बनाने के लिए यहोवा के लिए भेंट लेकर आया।” वे बाहरी शक्तियों द्वारा मजबूर नहीं किए गए थे बल्कि अपने अन्दर से, अपने हृदय से प्रोत्साहित किए गए थे। असल में, इब्रानी भाषा यहाँ शाब्दिक तौर पर कहती है कि “प्रत्येक मनुष्य जिसके मन ने उसे उठाया” उन्होंने ऐसी भेंट चढ़ाई। (तिरछे टाईप हमारे।) इससे भी अधिक, आइए, जब भी हम एक साथ हों तब एक दूसरे के मन को उठाने का प्रयत्न करें। बाक़ी का काम यहोवा की पवित्र आत्मा कर सकती है।
‘एक दूसरे को प्रोत्साहित कीजिए’
१२. (क) “प्रोत्साहन” अनुवादित यूनानी शब्द के कुछ अर्थ क्या हैं? (ख) अय्यूब के साथी उसे प्रोत्साहित करने से कैसे चूक गए? (ग) हमें एक दूसरे का न्याय करने से दूर क्यों रहना चाहिए?
१२ जब पौलुस ने लिखा कि हमें ‘एक दूसरे को प्रोत्साहित’ करना चाहिए, तब उसने यूनानी शब्द का एक रूप पाराकालेओ इस्तेमाल किया, जिसका अर्थ ‘मज़बूत करना, सांत्वना देना’ भी हो सकता है। ग्रीक सॆप्ट्यूजॆन्ट वर्शन में अय्यूब २९:२५ में यही शब्द इस्तेमाल किया गया था, जहाँ अय्यूब को विलाप करनेवालों को सांत्वना देनेवाले के रूप में वर्णित किया गया था। यह व्यंग्यात्मक बात है कि जब अय्यूब ख़ुद कड़ी परीक्षा में था, उसे ऐसा कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। उसके तीन “शान्तिदाता” उसका न्याय करने और उसे भाषण सुनाने में इतने व्यस्त थे कि वे उसे समझने या उसके प्रति तदनुभूति दिखाने से चूक गए। असल में, उन्होंने जितनी भी बातें कीं, उसमें उन्होंने एक बार भी अय्यूब को नाम लेकर नहीं पुकारा। (अय्यूब ३३:१, ३१ की विषमता देखिए।) स्पष्टतया, उन्होंने उसे एक व्यक्ति से ज़्यादा एक समस्या के रूप में देखा। इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि अय्यूब ने उन्हें मायूस होकर कहा: “जो तुम्हारी दशा मेरी सी होती”! (अय्यूब १६:४) वैसे ही आज भी, अगर आप किसी को प्रोत्साहित करना चाहते हैं, तो तदनुभूति दिखाइए! न्याय मत कीजिए। जैसे रोमियों १४:४ कहता है, “तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है, बरन वह स्थिर ही कर दिया जाएगा; क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है।”
१३, १४. (क) हमारे भाई-बहनों को सांत्वना देने के लिए हमें किस बुनियादी सच्चाई के बारे में उन्हें विश्वास दिलाने की ज़रूरत है? (ख) किस तरह एक स्वर्गदूत ने दानिय्येल का हियाव बान्धा?
१३ पाराकालेओ के एक रूप और उससे सम्बन्धित संज्ञा को २ थिस्सलुनीकियों २:१६, १७ में “सांत्वना” भी अनुवादित किया गया है: “हमारा प्रभु यीशु मसीह आप ही, और हमारा पिता परमेश्वर जिस ने हम से प्रेम रखा, और अनुग्रह से अनन्त शान्ति [सांत्वना, NW] और उत्तम आशा दी है। तुम्हारे मनों में शान्ति [सांत्वना, NW] दे, और तुम्हें हर एक अच्छे काम, और वचन में दृढ़ करे।” यह ध्यान दीजिए कि पौलुस हमारे मनों को सांत्वना दिए जाने के विचार को, इस बुनियादी सच्चाई से जोड़ता है कि यहोवा हमसे प्रेम करता है। सो उस महत्त्वपूर्ण सच्चाई की पुष्टि करने के द्वारा हम एक दूसरों को प्रोत्साहित करेंगे और सांत्वना देंगे।
१४ एक अवसर पर भविष्यवक्ता दानिय्येल एक डरावना दर्शन देखने के बाद इतना बेचैन हो गया था कि उसने कहा: “मैं भयातुर हो गया और मुझ में कुछ भी बल न रहा।” यहोवा ने एक स्वर्गदूत भेजा जिसने दानिय्येल को यह कई बार याद दिलाया कि वह परमेश्वर की नज़रों में “अति प्रिय” था। इसका परिणाम क्या हुआ? दानिय्येल ने स्वर्गदूत से कहा: “तू ने मेरा हियाव बन्धाया है।”—दानिय्येल १०:८, ११, १९.
१५. प्राचीनों और सफ़री ओवरसियरों को ताड़ना के साथ सराहना को कैसे संतुलित करना चाहिए?
१५ तो फिर, दूसरों को प्रोत्साहित करने का यह एक और तरीक़ा है। उनकी सराहना कीजिए! एक आलोचनात्मक, कठोर मानसिक दृष्टिकोण में पड़ जाना बहुत आसान है। मान लिया कि ऐसे समय होते हैं जब सुधार की ज़रूरत होती है, ख़ासकर प्राचीनों और सफ़री ओवरसियरों द्वारा। लेकिन यह उनके लिए लाभदायक होगा अगर उनका इसलिए सम्मान किया जाए क्योंकि वे नुक़्स निकालनेवाली मनोवृत्ति रखने के बजाय स्नेही प्रोत्साहन देते हैं।
१६. (क) हताश लोगों को प्रोत्साहित करते समय, यहोवा की सेवा में और ज़्यादा करने के लिए उनसे आग्रह करना अकसर काफ़ी क्यों नहीं है? (ख) जब एलिय्याह हताश था तब यहोवा ने उसकी मदद कैसे की?
१६ विशेषकर जो हताश हैं उन्हें प्रोत्साहन की ज़रूरत है, और यहोवा संगी मसीहियों के तौर पर अपेक्षा करता है कि हम मदद के एक स्रोत हों—ख़ासकर अगर हम प्राचीन हैं। (नीतिवचन २१:१३) हम क्या कर सकते हैं? उनसे यहोवा की सेवा में ज़्यादा करने के लिए कहना शायद इसका सरल जवाब नहीं होगा। क्यों? क्योंकि यह शायद अर्थ दे कि उनकी हताशा, उनके पर्याप्त कार्य न करने की वजह से है। आम तौर पर स्थिति यह नहीं होती। एक बार भविष्यवक्ता एलिय्याह इतनी बुरी तरह हताश हुआ था कि वह मर जाना चाहता था; फिर भी यह तब हुआ जब वह यहोवा के प्रति अपनी सेवा में बहुत ही व्यस्त था। यहोवा ने उसके साथ कैसे व्यवहार किया? उसने एक स्वर्गदूत को व्यावहारिक मदद प्रदान करने के लिए भेजा। एलिय्याह ने यहोवा को अपनी गहरी भावनाएँ व्यक्त कीं, और यह प्रकट किया कि उसे लगता है कि वह अपने मृत पूर्वजों की तरह निकम्मा था, कि उसके काम व्यर्थ निकले, और वह बिलकुल अकेला था। यहोवा ने उसकी सुनी और अपनी सामर्थ के विस्मयकारी प्रदर्शनों के द्वारा और इन आश्वासनों के द्वारा उसे सांत्वना दी कि वह निश्चय ही अकेला नहीं है और जो कार्य उसने शुरू किया था, वह पूरा होगा। यहोवा ने एलिय्याह को एक साथी देने का भी वादा किया जिसे वह प्रशिक्षित करता और जो आख़िरकार उसका उत्तराधिकारी बनता।—१ राजा १९:१-२१.
१७. एक व्यक्ति जो ख़ुद के बारे में बहुत ही आलोचनात्मक है उसे प्राचीन कैसे प्रोत्साहित कर सकता है?
१७ कितना प्रोत्साहक! ऐसा हो कि हम भी हमारे बीच भावात्मक रूप से पीड़ित लोगों को इसी तरह प्रोत्साहित करें। सुनने के द्वारा उन्हें समझने की कोशिश कीजिए! (याकूब १:१९) उनकी व्यक्तिगत ज़रूरतों के अनुसार शास्त्रीय सांत्वना प्रदान कीजिए। (नीतिवचन २५:११; १ थिस्सलुनीकियों ५:१४) ख़ुद के बारे में जो बहुत ही आलोचनात्मक हैं उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए प्राचीन कृपापूर्ण रूप से ऐसे शास्त्रीय प्रमाण पेश कर सकते हैं कि यहोवा उनसे प्रेम करता है और उन्हें बहुमूल्य समझता है।a ख़ुद को निकम्मा महसूस करनेवालों को प्रोत्साहित करने के लिए छुड़ौती के बारे में चर्चा करना एक शक्तिशाली तरीक़ा हो सकता है। अतीत के किसी पाप की वजह से जो दुःखी है, उसे शायद यह दिखाने की ज़रूरत है कि अगर उसने सचमुच पश्चाताप किया है और ऐसी किसी भी आदत को पूरी तरह छोड़ दिया है, तो उसे छुड़ौती ने शुद्ध कर दिया है।—यशायाह १:१८.
१८. जो किसी अन्य व्यक्ति द्वारा शिकार किया गया है, जैसे बलात्कार द्वारा, उसे प्रोत्साहित करने के लिए छुड़ौती की शिक्षा का कैसे इस्तेमाल किया जाना चाहिए?
१८ निश्चय ही, एक प्राचीन उस विशिष्ट मामले पर विचार करेगा ताकि उस शिक्षा को ठीक तरह से इस्तेमाल कर सके। एक उदाहरण पर ग़ौर कीजिए: मूसा की व्यवस्था के पशु बलिदानों ने मसीह के छुड़ौती बलिदान का पूर्वसंकेत किया। ये बलिदान सभी पापों के प्रायश्चित के लिए ज़रूरी थे। (लैव्यव्यवस्था ४:२७, २८) लेकिन, ऐसा कोई अनुबंध नहीं था कि बलात्कार की एक शिकार को एक ऐसा पाप-अर्पण करना पड़ता था। व्यवस्था में कहा गया था कि उन्होंने उसको दंड देने के लिए “कुछ न करना” था। (व्यवस्थाविवरण २२:२५-२७) सो आज, अगर एक बहन के साथ ज़बरदस्ती और बलात्कार किया गया है, और इससे वह अशुद्ध और बेकार महसूस करने लगी है, तो क्या उस पाप से उसे शुद्ध करने के लिए छुड़ौती की ज़रूरत पर ज़ोर देना उचित होगा? बिलकुल नहीं। उस पर हमला किए जाने में उसने कोई पाप नहीं किया। बलात्कारी ने पाप किया है और उसे शुद्ध किए जाने की ज़रूरत है। बहरहाल, छुड़ौती को प्रदान करने में यहोवा और मसीह द्वारा दिखाए गए प्रेम को इस प्रमाण के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है कि किसी दूसरे के पाप के द्वारा वह परमेश्वर की नज़रों में अशुद्ध नहीं हुई है। बल्कि वह यहोवा के लिए बहुमूल्य है और उसके प्रेम में बनी हुई है।—मरकुस ७:१८-२३ से तुलना कीजिए। १ यूहन्ना ४:१६.
१९. हमें यह क्यों अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि हमारे भाई-बहनों के साथ सभी संगति प्रोत्साहक होगी, परन्तु हमारा संकल्प क्या होना चाहिए?
१९ जी हाँ, जीवन में एक व्यक्ति की परिस्थिति चाहे कैसी भी क्यों न हो, चाहे उसके अतीत को कैसी भी दर्दनाक परिस्थितियों ने अँधेरा क्यों न कर दिया हो, यहोवा के लोगों की कलीसिया में उसे प्रोत्साहन पाने में समर्थ होना चाहिए। और वह समर्थ होगा अगर हम जब भी एक साथ मिलते हैं तब, एक दूसरे का ध्यान रखने, एक दूसरे को उत्साहित करने, और एक दूसरे को प्रोत्साहित करने की व्यक्तिगत रूप से कोशिश करें। लेकिन, अपरिपूर्ण होने की वजह से हम सभी कभी-कभी ऐसा करने से चूक जाते हैं। हम कभी-कभी एक दूसरे को निराश करते हैं और एक दूसरे को चोट भी पहुँचाते हैं, जिसे हम टाल नहीं सकते। इस मामले में दूसरों की असफलताओं पर ध्यान न देने की कोशिश कीजिए। अगर आप कमियों पर ध्यान देते हैं, तो यह ख़तरा है कि आप कलीसिया के बारे में अत्यधिक आलोचनात्मक बन जाएँ और आप शायद उसी जाल में पड़ जाएँ जिससे बचने में हमारी मदद करने के लिए पौलुस इतना उत्सुक था। वह जाल है हमारा एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना छोड़ देना। ऐसा कभी न हो! जैसे-जैसे यह पुरानी व्यवस्था पहले से ज़्यादा ख़तरनाक और अत्याचारी बनती है, आइए हम सभाओं में अपनी संगति को प्रोत्साहक बनाने में अपनी पूरी कोशिश करने के लिए दृढ़ संकल्प रहें—और जैसे-जैसे हम यहोवा के दिन को निकट आते देखते हैं वैसे-वैसे और भी अधिक इन बातों को किया करें!
[फुटनोट]
a एक प्राचीन एक ऐसे व्यक्ति के साथ प्रहरीदुर्ग और अवेक! के प्रोत्साहक लेखों का अध्ययन करने का चुनाव कर सकता है —उदाहरण के लिए, “क्या आप अपात्र अनुग्रह से लाभ पाएँगे?” और “हताशा के विरुद्ध लड़ाई जीतना” —द वॉचटावर, फरवरी १५ और मार्च १, १९९०.
आप कैसे उत्तर देंगे?
◻ यह अत्यावश्यक क्यों है कि इन अन्तिम दिनों में हमारी सभाएँ और संगति प्रोत्साहक हों?
◻ एक दूसरे का ध्यान रखने का क्या अर्थ है?
◻ एक दूसरे को उत्साहित करने का क्या अर्थ है?
◻ एक दूसरे को प्रोत्साहित करने में क्या शामिल है?
◻ हताश और निराश लोगों को कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है?
[पेज 16 पर तसवीरें]
पहुनाई हमें एक दूसरों को ज़्यादा अच्छी तरह से जानने के लिए मदद करती है
[पेज 18 पर तसवीरें]
जब एलिय्याह हताश था, यहोवा ने कृपापूर्ण तरीक़े से उसे सांत्वना प्रदान की