बाइबल की किताब नंबर 14—2 इतिहास
लेखक: एज्रा
लिखने की जगह: यरूशलेम (?)
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु.पू. 460
कब से कब तक का ब्यौरा: सा.यु.पू. 1037–537
जैसा कि सबूत दिखाते हैं, शुरू में पहला इतिहास और दूसरा इतिहास एक ही किताब थी। सबूतों के मुताबिक, एज्रा ने करीब सा.यु.पू. 460 तक इसे लिखना पूरा कर लिया था। उस वक्त वह शायद यरूशलेम में था। एज्रा ऐसे ऐतिहासिक लेखों को महफूज़ रखना चाहता था जिनके मिट जाने का खतरा था। वह खुद एक इतिहासकार तो था ही, इसके अलावा उसे पवित्र आत्मा की मदद मिली, इसलिए वह उन तमाम दस्तावेज़ों को इकट्ठा कर सका जिनमें अहम जानकारियाँ थीं और उन्हें जाँच-परखकर ज़रूरी जानकारी का सिलसिलेवार ढंग से और एकदम सही-सही स्थायी रिकॉर्ड लिख सका। उसने आनेवाले समय के लिए वह सारी जानकारी दर्ज़ कर दी जिसे वह इतिहास की सच्ची घटनाएँ मानता था। एज्रा का काम वक्त की माँग था, क्योंकि उसके समय तक यह ज़रूरी हो गया था कि पवित्र इब्रानी शास्त्र की जो अलग-अलग किताबें बीती सदियों के दौरान लिखी गयी थीं, उन सबको इकट्ठा करके उनका एक संग्रह बनाया जाए।
2 एज्रा ने ईश्वर-प्रेरणा से जो इतिहास लिखा, वह उस ज़माने के यहूदियों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ। यह किताब उन्हें हिदायतें देने और धीरज धरने का बढ़ावा देने के लिए लिखी गयी थी। शास्त्र से मिलनेवाली सांत्वना पाकर वे आशा रख सकते थे। उन्होंने इतिहास की इस किताब को बाइबल संग्रह का हिस्सा मानकर कबूल किया। वे जानते थे कि यह किताब भरोसे के लायक है, क्योंकि वे शास्त्र की बाकी ईश्वर-प्रेरित किताबों से, साथ ही उस वक्त मौजूद इतिहास के उन दस्तावेज़ों से इसके सही होने की जाँच कर सकते थे, जिनका हवाला एज्रा ने इसमें दिया है। यहूदियों ने ऐसे ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को तो मिट जाने दिया जो ईश्वर-प्रेरित नहीं थे, मगर इतिहास की किताब को बचाकर रखा। सेप्टुआजेंट बाइबल के अनुवादकों ने भी इतिहास की किताब को इब्रानी बाइबल का हिस्सा मानकर उसे अपने अनुवाद में शामिल किया।
3 यीशु मसीह और मसीही यूनानी शास्त्र के लेखक भी इस किताब को सच्ची और ईश्वर-प्रेरित मानते थे। जब यीशु ने यरूशलेम को धिक्कारते हुए कहा कि यह नगरी यहोवा के नबियों और सेवकों को पत्थरवाह करनेवाली हत्यारी है, तो बेशक उसके मन में कुछ ऐसी घटनाएँ थीं, जैसे 2 इतिहास 24:21 में दर्ज़ है। (मत्ती 23:35; 5:12; 2 इति. 36:16) जब याकूब ने इब्राहीम को “परमेश्वर का मित्र” कहा, तो शायद उसने 2 इतिहास 20:7 में एज्रा के लिखे शब्दों को पढ़ा था। (याकू. 2:23) इस किताब में ऐसी भविष्यवाणियाँ भी हैं जो अचूक तरीके से पूरी हुई हैं।—2 इति. 20:17, 24; 21:14-19; 34:23-28; 36:17-20.
4 पुरातत्व भी दूसरा इतिहास किताब के सच्चा होने की गवाही देता है। प्राचीन बाबुल जिस जगह था, वहाँ की खुदाई करते वक्त मिट्टी की पटियाएँ मिली हैं जो नबूकदनेस्सर की हुकूमत के समय की हैं। इनमें से एक पटिया पर लिखा है “याउकिन, यहूदा देश का राजा,” यानी “यहोयाकीन, यहूदा देश का राजा।”a यह बात बाइबल के उस वृत्तांत से मेल खाती है जो कहता है कि नबूकदनेस्सर की हुकूमत के सातवें साल में यहोयाकीन को बंदी बनाकर बाबुल ले जाया गया था।
5 दूसरा इतिहास किताब की शुरूआत, यहूदा के राजा सुलैमान की हुकूमत के दौरान हुई घटनाओं से होती है, जो सा.यु.पू. 1037 में राजा बना था। और इस किताब का अंत, सा.यु.पू. 537 में दिए कुस्रू के उस फरमान से होता है, जो यरूशलेम में यहोवा के भवन को दोबारा बनाने के लिए जारी किया गया था। पाँच सौ साल के इस इतिहास में, उत्तर में दस गोत्रोंवाले इस्राएल राज्य का ज़िक्र सिर्फ उन वाकयों में किया गया है जिनमें यह राज्य, यहूदा देश के मामलों में शामिल होता है। और इस किताब में, सा.यु.पू. 740 में उत्तरी राज्य के तबाह होने का ज़िक्र तक नहीं मिलता। ऐसा क्यों? क्योंकि याजक एज्रा को खास तौर पर दो बातों से सरोकार था। पहली यह कि यहोवा की उपासना वहाँ की जाए जहाँ होनी चाहिए, यानी यरूशलेम में परमेश्वर के भवन में। दूसरी बात, यहोवा ने राजा दाऊद से राज्य की जो वाचा बाँधी थी उसका पूरा होना। तो सच्ची उपासना की पैरवी करने और यहूदा से आनेवाले राजा की उम्मीद लगाने का बढ़ावा देने के लिए, एज्रा सिर्फ दक्षिण के दो गोत्रवाले राज्य पर ही ध्यान देता है।—उत्प. 49:10.
6 एज्रा हौसला बढ़ानेवाले अंदाज़ में इतिहास बयान करता है। दूसरा इतिहास के 36 अध्यायों में से पहले 9 सुलैमान की हुकूमत के बारे में हैं और इनमें से छः अध्याय तो सिर्फ यहोवा के भवन की तैयारी और उसके समर्पण के बारे में बताते हैं। इस किताब में सुलैमान के सच्ची उपासना को छोड़ देने का ज़िक्र नहीं है। बाकी 27 अध्यायों में से 14 अध्याय, पाँच अच्छे राजाओं की कहानी बताते हैं जिनके बारे में मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि उन्होंने राजा दाऊद की मिसाल पर चलते हुए सिर्फ यहोवा की उपासना की थी। ये राजा थे: आसा, यहोशापात, योताम, हिजकिय्याह और योशिय्याह। बाकी 13 अध्यायों में भी, एज्रा ने इस बात का ध्यान रखा है कि वह बुरे राजाओं की सिर्फ अच्छी बातों पर ज़ोर दे। वह हमेशा ऐसी घटनाओं के बारे में बताता है जो सच्ची उपासना के बहाल होने और उसके कायम रहने से जुड़ी हैं। सचमुच, यह किताब हमारे अंदर क्या ही जोश भर देती है!
क्यों फायदेमंद है
34 बाइबल की कई और किताबों की तरह दूसरा इतिहास किताब, सा.यु.पू. 1037-537 के उस यादगार दौर का बयान करती है जिसमें बहुत-सी सनसनीखेज़ घटनाएँ घटी थीं। इतना ही नहीं, इस किताब में ऐसी अतिरिक्त जानकारी भी है जो बाइबल के संग्रह में मौजूद इतिहास की दूसरी किताबों में नहीं पायी जाती। जैसे, 2 इतिहास अध्याय 19, 20 और 29 से 31 की जानकारी। एज्रा ने जो बातें लिखीं वे यहूदा देश के बुनियादी तत्त्वों के बारे में थीं, जो हमेशा कायम रहते। जैसे, याजकवर्ग और उसकी सेवाएँ, मंदिर, और राज्य की वाचा। किताब में दर्ज़ यह सारी जानकारी, पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधे रखकर, मसीहा और उसके राज्य की बाट जोहने में मदद देती।
35 दूसरा इतिहास किताब की आखिरी आयतें (36:17-23), यिर्मयाह 25:12 की भविष्यवाणी के पूरा होने का पक्का सबूत देती हैं। इन आयतों से यह भी पता चलता है कि यहूदा देश के पूरी तरह उजड़ने से लेकर सा.यु.पू. 537 में यरूशलेम में यहोवा की उपासना की बहाली तक पूरे 70 साल बीतने थे। इसका मतलब है कि उजाड़ रहने के ये साल सा.यु.पू. 607 से शुरू हुए थे।b—यिर्म. 29:10; 2 राजा 25:1-26; एज्रा 3:1-6.
36 मसीही विश्वास पर चलनेवालों के लिए दूसरा इतिहास किताब में बहुत ज़रूरी सबक है। यहूदा देश के कितने ही राजाओं ने शुरूआत बहुत अच्छी की, मगर बाद में वे बुराई के रास्ते पर चलने लगे। इतिहास का यह लेख, इस सच्चाई को क्या ही ज़बरदस्त तरीके से समझाता है कि हमारी कामयाबी, परमेश्वर का वफादार बने रहने पर टिकी है! इसलिए हमें खबरदार हो जाना चाहिए कि हम ऐसे लोग न बनें “जो पीछे हटते हैं और नष्ट हो जाते हैं,” बल्कि हम उन लोगों में हों “जो विश्वास करते हैं और उद्धार पाते हैं।” (इब्रा. 10:39, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यहाँ तक कि वफादार राजा हिजकिय्याह भी जब एक जानलेवा बीमारी से ठीक हुआ, तो उसमें घमंड आ गया। मगर उसने फौरन खुद को नम्र किया, इसलिए वह यहोवा के क्रोध से बच सका। दूसरा इतिहास किताब में यहोवा के अद्भुत गुणों की महिमा की गयी है और उसके नाम और हुकूमत को बुलंद किया गया है। इस पूरी किताब में दिया इतिहास इस बात पर खास ज़ोर देता है कि सिर्फ यहोवा परमेश्वर को भक्ति देना कितना ज़रूरी है। इसमें यहूदा के शाही वंश पर भी खासतौर पर ध्यान दिलाया गया है, जिससे हमारी यह उम्मीद और भी पक्की होती है कि “दाऊद की सन्तान,” वफादार यीशु मसीह के सनातन राज्य में हम शुद्ध उपासना को बुलंदियाँ छूते देखेंगे।—मत्ती 1:1; प्रेरि. 15:16, 17.
[फुटनोट]
a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 1, पेज 147.
b इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 1, पेज 463; भाग 2, पेज 326.