संकटों से भरे इस दौर में परमेश्वर के साथ-साथ चलिए
“हनोक परमेश्वर के साथ साथ चलता था; फिर वह लोप हो गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया।”—उत्पत्ति 5:24.
1. हमारे समय के हालात के बारे में बताइए, जिनकी वजह से हम संकटों से भरे दौर में जी रहे हैं।
संकटों से भरा दौर! सन् 1914 में मसीहाई राज्य की शुरूआत से अशांति और हिंसा का जो दौर चल रहा है, उसे संकटों का दौर कहना एकदम सही है। तब से सभी इंसान “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। अकाल, महामारियाँ, भूकंप और युद्धों ने इतने बड़े पैमाने पर तबाही मचायी है जैसी पहले कभी नहीं देखी गयी। इससे इंसानों का जीना दूभर हो गया है। (2 तीमुथियुस 3:1; प्रकाशितवाक्य 6:1-8) यहाँ तक कि यहोवा की उपासना करनेवालों को भी तकलीफों का सामना करना पड़ा है। इस अशांत दुनिया में हम पर कोई-न-कोई मुसीबत आ ही जाती है या हमारे साथ कुछ ऐसा हो जाता है, जिसकी हम उम्मीद नहीं करते। तंगहाली, राजनीति में उथल-पुथल, लड़ाई-मारपीट और बीमारियाँ जैसी मुसीबतों ने हमारे लिए जीना मुश्किल कर दिया है!
2. यहोवा के सेवकों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
2 इसके अलावा, शैतान उन सभी के खिलाफ जंग लड़ रहा है जो “परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं।” इसलिए यहोवा के बहुत-से सेवकों को एक-के-बाद-एक कई ज़ुल्म झेलने पड़े हैं। (प्रकाशितवाक्य 12:17) हो सकता है, हममें से बहुतों ने कभी भारी ज़ुल्म या अत्याचार का सामना न किया हो। फिर भी, हम सभी सच्चे मसीहियों को शैतान और उस आत्मा का विरोध करना पड़ता है जो वह लोगों में पैदा करता है। (इफिसियों 2:2; 6:12) हम नहीं चाहते कि यह आत्मा हम पर असर करे, इसलिए हमें हर पल चौकस रहने की ज़रूरत है। आए दिन नौकरी की जगह पर, स्कूल में, या किसी भी दूसरी जगह पर हमारी मुलाकात ऐसे लोगों से होती रहती है, जो सच्ची उपासना में कोई दिलचस्पी नहीं रखते।
परमेश्वर के साथ-साथ चलिए, दुनिया के साथ नहीं
3, 4. किन तरीकों से मसीही, दुनिया से अलग हैं?
3 पहली सदी के मसीहियों ने भी इस संसार की आत्मा का कड़ा विरोध किया था। इसी वजह से वे अपने ज़माने के लोगों से बिलकुल अलग थे। पौलुस ने लिखा कि दुनिया के लोगों और मसीहियों के बीच क्या फर्क है: “इसलिये मैं यह कहता हूं, और प्रभु में जताए देता हूं कि जैसे अन्यजातीय लोग अपने मन की अनर्थ रीति पर चलते हैं, तुम अब से फिर ऐसे न चलो। क्योंकि उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं। और वे सुन्न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें।”—इफिसियों 4:17-19.
4 यह वचन कितने ज़बरदस्त शब्दों में बताता है कि दुनिया आध्यात्मिक और नैतिक मायने में घोर अंधकार में पड़ी है! लोगों का यह हाल सिर्फ पौलुस के ज़माने में ही नहीं था, बल्कि हमारे समय में भी ऐसा ही है। पहली सदी के मसीहियों की तरह, आज के मसीही ‘ऐसे नहीं चलते जैसे अन्यजाति के लोग चलते हैं।’ इसके बजाय, वे परमेश्वर के साथ-साथ चलते हैं। संकटों से भरे इस दौर में यह उनके लिए क्या ही बड़ा सम्मान है! मगर कुछ लोग पूछ सकते हैं: क्या कमतर, असिद्ध इंसान के बारे में यह कहना सही होगा कि वे इस जहान के मालिक यहोवा के साथ चल सकते हैं? बेशक। बाइबल दिखाती है कि इंसान, परमेश्वर के साथ ज़रूर चल सकता है। दरअसल, यहोवा उससे यही उम्मीद करता है। सामान्य युग पूर्व आठवीं सदी में, मीका नबी ने ईश्वर-प्रेरणा से यह लिखा था: “यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले?”—मीका 6:8.
परमेश्वर के साथ-साथ क्यों और कैसे चलें?
5. एक असिद्ध इंसान परमेश्वर के साथ-साथ कैसे चल सकता है?
5 परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और इंसान उसे नहीं देख सकता, तो भला हम उसके साथ-साथ कैसे चल सकते हैं? ज़ाहिर है कि हम जिस तरह एक इंसान के साथ चलते हैं, उस तरह परमेश्वर के साथ नहीं चल सकते। बाइबल में “चलने” शब्द का मतलब “जीने का एक खास तरीका अपनाना” भी है।a यानी जो इंसान परमेश्वर के साथ-साथ चलता है, वह उसकी बतायी राह पर चलता और उसे खुश करता है। इस तरह परमेश्वर के मार्ग पर चलने की वजह से हम संसार के लोगों से अलग नज़र आते हैं। मसीहियों के लिए जीने का यही एक सही तरीका है। क्यों? इसकी कई वजह हैं।
6, 7. परमेश्वर के साथ-साथ चलना ही जीने का सबसे बढ़िया तरीका क्यों है?
6 सबसे पहली वजह यह है कि यहोवा हमारा सिरजनहार है। उसी ने हमें जीवन और वह सबकुछ दिया है जो हमारे ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी है। (प्रकाशितवाक्य 4:11) इसलिए सिर्फ उसी को यह बताने का हक है कि हमें किस मार्ग पर चलना चाहिए। दूसरी वजह, परमेश्वर के साथ-साथ चलने से हमें इतने फायदे होते हैं कि उनका हिसाब नहीं। मिसाल के लिए, उसने हमारे पापों को माफ करने का इंतज़ाम किया है और हमें हमेशा की ज़िंदगी की पक्की आशा दी है। स्वर्ग में रहनेवाला हमारा प्यारा पिता हमें बुद्धि-भरी सलाह भी देता है, इसलिए हम असिद्ध होने और शैतान के संसार में जीने के बावजूद, ज़िंदगी में कामयाब हो पाते हैं। (यूहन्ना 3:16; 2 तीमुथियुस 3:15, 16; 1 यूहन्ना 1:8; 2:25; 5:19) परमेश्वर के साथ-साथ चलने की एक और वजह यह है कि इससे कलीसिया में शांति और एकता बनी रहती है।—कुलुस्सियों 3:15, 16.
7 आखिरी और सबसे बड़ी वजह यह है कि जब हम परमेश्वर के साथ-साथ चलते हैं, तो यह दिखाते हैं कि अदन में उठे अहम मसले में हम किसकी तरफ हैं। यह मसला पूरे विश्व पर हुकूमत करने के हक के बारे में है। (उत्पत्ति 3:1-6) जब हम परमेश्वर के बताए रास्ते पर चलते हैं, तो यह ज़ाहिर होता है कि हम पूरी तरह यहोवा की तरफ हैं। साथ ही, हम बेधड़क होकर यह ऐलान करते हैं कि यहोवा ही पूरे जहान का मालिक है। (भजन 83:18) इस तरह हम अपनी प्रार्थना के मुताबिक काम करते हैं जिसमें हम कहते हैं कि परमेश्वर का नाम पवित्र किया जाए और उसकी इच्छा पूरी हो। (मत्ती 6:9, 10) इसलिए जो लोग परमेश्वर के साथ-साथ चलने का चुनाव करते हैं, वे वाकई में सबसे बुद्धिमान इंसान हैं! वे इस बात का इतमीनान रख सकते हैं कि वे सही दिशा पर चल रहे हैं, क्योंकि यहोवा “अद्वैत बुद्धिमान” है। वह कभी भूल-चूक नहीं करता।—रोमियों 16:27.
8. हनोक और नूह के समय और हमारे समय के हालात कैसे मिलते-जुलते हैं?
8 लेकिन मुसीबतों से भरी इस दुनिया में जहाँ ज़्यादातर लोग यहोवा की सेवा करने से दूर भागते हैं, वहाँ क्या मसीही ऐसी ज़िंदगी जी सकते हैं जैसी उनसे उम्मीद की जाती है? इस बारे में जानने के लिए हमें पुराने ज़माने के वफादार लोगों की ज़िंदगी पर गौर करना होगा, जिन्होंने मुश्किलों से गुज़रते वक्त भी अपनी खराई बनाए रखी। इनमें से दो हैं, हनोक और नूह। उनके दिनों के हालात, हमारे ज़माने के हालात से बहुत मिलते-जुलते हैं। उनके दिनों में चारों तरफ बुराई फैली हुई थी। नूह के दिनों में तो धरती खून-खराबे, जुर्म और बदचलनी से भर गयी थी। फिर भी हनोक और नूह ने अपने ऊपर संसार की आत्मा को हावी होने नहीं दिया। इसके बजाय, वे यहोवा के साथ-साथ चलते रहे। मगर इतने बुरे माहौल में जीते हुए भी वे यहोवा के साथ-साथ कैसे चल पाए? इसका जवाब पाने के लिए हम इस लेख में हनोक की मिसाल देखेंगे। और अगले लेख में नूह के बारे में चर्चा करेंगे।
संकटों से भरे दौर में हनोक परमेश्वर के साथ-साथ चला
9. हनोक के बारे में हम क्या जानते हैं?
9 हनोक वह पहला शख्स था जिसके बारे में बाइबल कहती है कि वह परमेश्वर के साथ-साथ चला। बाइबल कहती है: “मतूशेलह के जन्म के पश्चात हनोक . . . परमेश्वर के साथ साथ चलता रहा।” (उत्पत्ति 5:22) रिकॉर्ड आगे बताता है कि हनोक कितने साल तक ज़िंदा था। हालाँकि वह हमारे वक्त के लोगों से ज़्यादा साल जीया, मगर अपने ज़माने के लोगों की तुलना में वह बहुत कम साल जीया था। इसके बाद लिखा है: “हनोक परमेश्वर के साथ साथ चलता था; फिर वह लोप हो गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया।” (उत्पत्ति 5:24) ज़ाहिर है कि यहोवा ने हनोक को मौत की नींद सुला दी, इससे पहले कि दुश्मन उस पर हमला करके बेरहमी से उसे मौत के घाट उतार देते। (इब्रानियों 11:5, 13) इन चंद आयतों के अलावा, बाइबल में और भी कुछ जगहों पर हनोक का ज़िक्र मिलता है। फिर भी, इन सारी आयतों को ध्यान में रखकर यह कहना सही होगा कि हनोक का समय वाकई संकट भरा था।
10, 11. (क) आदम और हव्वा की बगावत के बाद, इंसान किस तरह भ्रष्ट होता चला गया? (ख) हनोक ने क्या भविष्यवाणी की थी, और उसकी बात सुनने पर लोगों ने कैसा रवैया दिखाया?
10 मिसाल के लिए, गौर कीजिए कि आदम के पाप करने के बाद, किस तेज़ी से इंसान भ्रष्ट होता चला गया। बाइबल बताती है कि आदम का बड़ा बेटा, कैन अपने भाई हाबिल का खून करके पहला कातिल बना। (उत्पत्ति 4:8-10) हाबिल की मौत के बाद, आदम और हव्वा के एक और बेटा हुआ, जिसका नाम उन्होंने शेत रखा। शेत के बारे में हम बाइबल में पढ़ते हैं: “शेत का भी एक पुत्र था। इसका नाम एनोश था। उस समय लोग यहोवा को पुकारने लगे।” (उत्पत्ति 4:25, 26, ईज़ी-टू-रीड वर्शन, फुटनोट) मगर अफसोस, ये लोग धर्मत्यागी थे और वे झूठी उपासना करते हुए ‘यहोवा को पुकार’ रहे थे।b एनोश के पैदा होने के कई साल बाद, कैन के एक वंशज, लेमेक ने अपनी दो पत्नियों के लिए एक गीत रचा था। उस गीत में उसने एक जवान आदमी को मार डालने की शेखी बघारी, जिसने उसे चोट पहुँचायी थी। लेमेक ने अपने गीत में यह धमकी भी दी: “जब कैन का पलटा सातगुणा लिया जाएगा। तो लेमेक का सतहत्तरगुणा लिया जाएगा।”—उत्पत्ति 4:10, 19, 23, 24.
11 ये चंद सबूत बयान करते हैं कि अदन के बाग में शैतान ने इंसान को भ्रष्ट करने की जो चिंगारी भड़कायी थी, वह आदम की संतानों में आग की तरह फैल गयी और नतीजा, सारी धरती बुराई से भर गयी। ऐसी दुनिया में यहोवा ने हनोक को भविष्यवाणी करने की ज़िम्मेदारी दी और उसकी भविष्यवाणी के ज़बरदस्त शब्द मानो आज भी गूँज रहे हैं। यहूदा हमें बताता है कि हनोक ने ईश्वर-प्रेरणा से क्या भविष्यवाणी की थी: “देखो, प्रभु अपने लाखों पवित्रों के साथ आया। कि सब का न्याय करे, और सब भक्तिहीनों को उन के अभक्ति के सब कामों के विषय में, जो उन्हों ने भक्तिहीन होकर किए हैं, और उन सब कठोर बातों के विषय में जो भक्तिहीन पापियों ने उसके विरोध में कही हैं, दोषी ठहराए।” (यहूदा 14, 15) यह भविष्यवाणी बड़े पैमाने पर, आखिरी बार हरमगिदोन में पूरी होगी। (प्रकाशितवाक्य 16:14, 16) फिर भी, यह मानना सही होगा कि हनोक के दिनों में भी बहुत-से ‘भक्तिहीन पापी’ थे जो हनोक की भविष्यवाणी सुनकर काफी चिढ़ गए होंगे। इसलिए इससे पहले कि वे हनोक पर हमला करते, यहोवा ने उसे उठा लिया। इस तरह उसे दुश्मनों के हाथों दर्दनाक मौत मरने से बचाकर यहोवा ने प्यार का क्या ही बढ़िया सबूत दिया!
परमेश्वर के साथ-साथ चलने के लिए हनोक को हिम्मत कैसे मिली?
12. हनोक में ऐसी क्या बात थी जिसकी वजह से वह अपने ज़माने के लोगों से एकदम अलग था?
12 अदन के बाग में आदम और हव्वा ने शैतान की बातों में आकर यहोवा के खिलाफ बगावत कर दी। (उत्पत्ति 3:1-6) मगर उनके बेटे हाबिल ने अलग रास्ता अपनाया, इसलिए यहोवा का अनुग्रह उस पर था। (उत्पत्ति 4:3, 4) दुःख की बात है कि आदम की संतान में से ज़्यादातर लोग हाबिल जैसे नहीं थे। लेकिन सैकड़ों साल बाद हनोक पैदा हुआ जो हाबिल की तरह था। हनोक और आदम की दूसरी संतानों में क्या फर्क था? इसका जवाब देते हुए प्रेरित पौलुस ने लिखा: “विश्वास ही से हनोक उठा लिया गया, कि मृत्यु को न देखे, और उसका पता नहीं मिला; क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया था, और उसके उठाए जाने से पहिले उस की यह गवाही दी गई थी, कि उस ने परमेश्वर को प्रसन्न किया है।” (इब्रानियों 11:5) हनोक उन ‘गवाहों के बड़े बादल’ का हिस्सा था जो मसीह से पहले के ज़माने में जीए थे और जिन्होंने विश्वास की बढ़िया मिसाल कायम की थी। (इब्रानियों 12:1) इसी विश्वास की वजह से वह ज़िंदगी-भर धीरज धरता रहा और उसने अच्छा चालचलन बनाए रखा। जी हाँ, वह 300 से भी ज़्यादा साल तक यानी आजकल जीनेवालों की तीन ज़िंदगियों से भी ज़्यादा समय तक वफादार बना रहा!
13. हनोक में कैसा विश्वास था?
13 हनोक और दूसरे गवाहों में कैसा विश्वास था, इस बारे में पौलुस ने लिखा: “विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।” (इब्रानियों 11:1) जी हाँ, विश्वास का मतलब है परमेश्वर के वादों पर पक्के यकीन के साथ आस लगाए रहना कि हमारी आशा ज़रूर पूरी होगी। इसी पक्के यकीन से तय होता है कि हम अपनी ज़िंदगी में किन बातों को पहली जगह देंगे। हनोक में ऐसा ही मज़बूत विश्वास था, तभी वह ज़माने से अलग रहकर परमेश्वर के साथ-साथ चल पाया।
14. किन बातों का सही ज्ञान होने की वजह से हनोक में विश्वास था?
14 सच्चा विश्वास बढ़ाने के लिए सबसे ज़रूरी है, सही ज्ञान। हनोक के पास किन बातों का ज्ञान था? (रोमियों 10:14, 17; 1 तीमुथियुस 2:4) अदन के बाग में जो घटनाएँ घटीं थीं, हनोक बेशक उनके बारे में जानता था। उसने यह भी सुना होगा कि उस बाग में ज़िंदगी कैसी थी, क्योंकि शायद वह बाग उसके दिनों में भी मौजूद था, मगर इंसान उसमें दाखिल नहीं हो सकता था। (उत्पत्ति 3:23, 24) यही नहीं, उसे परमेश्वर के इस मकसद के बारे में भी मालूम था कि पूरी धरती उस अदन की तरह एक खूबसूरत फिरदौस बन जाए और आदम की संतान से आबाद रहे। (उत्पत्ति 1:28) इसके अलावा, हनोक ने यहोवा के इस वादे को अपने मन में सँजोए रखा होगा कि वह एक वंश उत्पन्न करेगा जो शैतान के सिर को कुचल देगा और उसकी बगावत के हर बुरे अंजाम को जड़ से मिटा देगा। (उत्पत्ति 3:15) दरअसल, हनोक की जो भविष्यवाणी, यहूदा किताब में दर्ज़ है वह शैतान के वंश के नाश के बारे में थी। बाइबल बताती है कि हनोक में विश्वास था। इसलिए यह मानना सही होगा कि उसने ज़रूर इस बात को ध्यान में रखकर यहोवा की उपासना की होगी कि वह “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” (इब्रानियों 11:6) इन सारी बातों से पता चलता है कि हनोक के पास भले ही इतना ज्ञान नहीं था जितना आज हमारे पास है, फिर भी मज़बूत विश्वास पैदा करने के लिए उसके पास काफी ज्ञान था। इसी मज़बूत विश्वास ने उसे संकट भरे दौर में अपनी खराई बनाए रखने की हिम्मत दी।
हनोक की मिसाल पर चलिए
15, 16. हम हनोक की तरह कैसे बन सकते हैं?
15 हम भी मुसीबतों के इस दौर में हनोक की तरह यहोवा को खुश करना चाहते हैं। इसलिए हमें हनोक की मिसाल पर चलना चाहिए। हमें यहोवा और उसके मकसद के बारे में सही ज्ञान लेना होगा और उसे अपने मन में संजोए रखना होगा। मगर यह काफी नहीं है। हमें इस ज्ञान के मुताबिक सही मार्ग चुनना होगा। (भजन 119:101; 2 पतरस 1:19) हमें चाहिए कि हम जो भी फैसला करें वह परमेश्वर की सोच के मुताबिक हो और हम अपनी सोच और अपने हर काम से यहोवा को खुश करने की कोशिश करें।
16 बाइबल में कहीं पर भी यह नहीं लिखा है कि हनोक के ज़माने में उसके अलावा और भी कोई यहोवा की सेवा करता था या नहीं। इससे साफ पता चलता है कि या तो वह अकेला था या फिर वह उन मुट्ठी-भर लोगों में से एक था जो यहोवा की सेवा कर रहे थे। उसी तरह आज दुनिया की आबादी के मुकाबले हमारी गिनती भी बहुत कम है, फिर भी हम हिम्मत नहीं हारते। हमारे खिलाफ चाहे कितने भी लोग क्यों न हों, यहोवा है ना हमारा साथ देनेवाला। (रोमियों 8:31) हनोक ने निडर होकर चेतावनी दी थी कि भक्तिहीन लोगों का नाश किया जाएगा। आज हम भी बड़ी हिम्मत के साथ ‘राज्य का सुसमाचार’ प्रचार करते हैं, इसके बावजूद कि हमारी खिल्ली उड़ायी जाती है, हमारा विरोध किया जाता है और हमें सताया जाता है। (मत्ती 24:14) हनोक अपने ज़माने के लोगों से कम साल जीया था। वैसे भी, उसने उस दुनिया में जीने की आस नहीं लगायी थी। उसकी आँखें तो एक शानदार भविष्य पर लगी हुई थीं। (इब्रानियों 11:10, 35) हम भी यहोवा के मकसद के पूरा होने पर अपनी नज़र लगाए हुए हैं। इसलिए हम पूरी सावधानी बरतते हैं ताकि संसार में लिप्त न हो जाएँ। (1 कुरिन्थियों 7:31, NHT) इसके बजाय, हम अपनी ताकत और अपने साधनों को खासकर यहोवा की सेवा करने में लगाते हैं।
17. हमारे पास ऐसा क्या ज्ञान है जो हनोक के पास नहीं था, और इसलिए हमें क्या करना चाहिए?
17 हनोक को पूरा विश्वास था कि यहोवा ने जिस वंश के आने का वादा किया था, वह उसके ठहराए हुए समय पर ज़रूर आएगा। आज उस वंश यानी यीशु मसीह को आए करीब 2,000 साल बीत चुके हैं। उसने धरती पर आकर अपनी जान छुड़ौती के तौर पर कुरबान कर दी और इस तरह न सिर्फ हमारे लिए बल्कि प्राचीन समय के सभी वफादार गवाहों, यहाँ तक कि हनोक के लिए भी हमेशा की ज़िंदगी पाने का रास्ता खोल दिया। यही वंश आज परमेश्वर के राज्य का राजा है। राजगद्दी पर बैठने के बाद उसने शैतान को स्वर्ग से खदेड़कर धरती पर फेंक दिया। इसका अंजाम यह है कि आज हमारे चारों तरफ मुसीबतें-ही-मुसीबतें हैं। (प्रकाशितवाक्य 12:12) जी हाँ, परमेश्वर के मकसद के बारे में जितना ज्ञान हनोक को था, उससे कहीं ज़्यादा ज्ञान आज हमारे पास है। तो आइए हम भी हनोक के जैसा मज़बूत विश्वास रखें। हम जो भी करें, उससे हमारा यकीन साफ दिखना चाहिए कि परमेश्वर के वादे हर हाल में पूरे होंगे। आइए हम भी हनोक की तरह, संकटों से भरे इस दौर में परमेश्वर के साथ-साथ चलते रहें।
[फुटनोट]
a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स् का भाग 1, पेज 220, पैराग्राफ 6 देखिए। इस किताब को यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
b एनोश के पैदा होने से कई साल पहले, यहोवा ने आदम से बातें की थीं। और फिर जब हाबिल ने बलि चढ़ायी थी तो यहोवा ने उसे कबूल किया था। यहाँ तक कि कैन के गुस्से से पागल होकर अपने भाई का कत्ल करने से पहले भी, यहोवा ने कैन से बातचीत की थी। यह दिखाता है कि एनोश के दिनों के बारे में जब कहा गया है कि लोग ‘यहोवा को पुकारने’ लगे, तो इसका मतलब है कि वे सच्ची उपासना करने के लिए यहोवा को नहीं पुकार रहे थे, बल्कि उन्होंने एक नए तरीके से या एक अलग मायने में यहोवा का नाम लेना शुरू किया था, जो झूठी उपासना से जुड़ा था।
आप क्या जवाब देंगे?
• परमेश्वर के साथ-साथ चलने का मतलब क्या है?
• परमेश्वर के साथ-साथ चलना, जीने का सबसे बढ़िया तरीका क्यों है?
• किस बात ने हनोक को संकट भरे दौर में भी परमेश्वर के साथ-साथ चलने में मदद दी?
• हम हनोक की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
[पेज 15 पर तसवीर]
विश्वास से ही ‘हनोक परमेश्वर के साथ साथ चलता रहा’
[पेज 17 पर तसवीर]
हमें पूरा विश्वास है कि यहोवा के वादे ज़रूर पूरे होंगे
[पेज 13 पर चित्रों का श्रेय]
स्त्री, एकदम दायीं तरफ: FAO photo/B. Imevbore; ढहती इमारत: San Hong R-C Picture Company