हम विश्वास करनेवाले बनें
“हम . . . उनमें से हैं, जो प्राणों की रक्षा के लिए विश्वास रखते हैं।”—इब्रानियों १०:३९, NHT.
१. हम ऐसा क्यों कहते हैं कि यहोवा के हर वफादार सेवक का विश्वास अनमोल है?
अब की बार जब आप किंगडम हॉल में हों, तो वहाँ मौजूद यहोवा के सेवकों पर एक नज़र दौड़ाइएगा। इनमें से हरेक के बारे में सोचिए कि कैसे ये लोग अपना विश्वास दिखाते हैं। उन बुज़ुर्गों पर ध्यान दीजिए जिन्हें बरसों बीत गए हैं लेकिन आज भी वे वफादारी से परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं, ऐसे नौजवान लड़के-लड़कियों को देखिए जो हर दिन साथियों के बीच कई दबावों का सामना करते हैं और ऐसे माता-पिताओं को देखिए जो अपने बच्चों को परमेश्वर का सेवक बनाने के लिए जी-जान से उनकी परवरिश करते हैं। फिर, कलीसिया में ऐसे प्राचीन और सहायक सेवक हैं जो अपने कंधों पर बड़ी भारी ज़िम्मेदारियाँ लिए हुए हैं। जी हाँ, वहाँ आप हर उम्र के भाई-बहन देखेंगे जो यहोवा की सेवा करने के लिए न जाने कैसी-कैसी बाधाओं को पार करते हैं। ये लोग अनमोल विश्वास की क्या ही अच्छी मिसाल हैं!—१ पतरस १:७.
२. इब्रानियों के १० और ११ अध्याय में दी गई पौलुस की सलाह आज हमारे लिए क्यों फायदेमंद है?
२ प्रेरित पौलुस ने जितनी अच्छी तरह विश्वास की अहमियत को समझा उतना शायद ही किसी और ने समझा हो। पौलुस ने तो यहाँ तक लिखा कि सच्चे विश्वास की वजह से ही आखिर में हमारे “प्राणों की रक्षा” होती है। (इब्रानियों १०:३९, NHT) लेकिन, पौलुस यह भी जानता था कि इस अविश्वासी संसार में हमारे विश्वास को खतरा हो सकता है और वह धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ सकता है। पौलुस को यहूदिया और यरूशलेम में रहनेवाले इब्रानी मसीहियों की बहुत चिंता थी, क्योंकि उन्हें विश्वास को कायम रखने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा था। आइए हम इब्रानियों की पत्री के १० और ११ अध्याय के कुछ भाग देखें और ध्यान दें कि पौलुस ने कैसे अपने इन भाइयों का हौसला बढ़ाया और किस तरीके से उनका विश्वास मज़बूत किया। इससे हम सीखेंगे कि हम अपना और अपने भाई-बहनों के विश्वास को किस तरह मज़बूत बना सकते हैं।
अपने भाइयों को बताइए कि आप उन पर भरोसा करते हैं
३. इब्रानियों १०:३९ में पौलुस के शब्दों से कैसे पता चलता है कि उसे अपने मसीही भाई-बहनों पर पूरा भरोसा था?
३ पौलुस ने इन मसीहियों के बारे में जो लिखा उससे हम एक बात बहुत अच्छी तरह देख सकते हैं, वह यह है कि पौलुस अपने भाइयों के बारे में हमेशा अच्छा ही सोचता था। उसने लिखा: “हम . . . उनमें से हैं, जो प्राणों की रक्षा के लिए विश्वास रखते हैं।” (इब्रानियों १०:३९, NHT) पौलुस को अपने इन वफादार मसीही भाइयों पर पूरा यकीन था और उसने उनकी अच्छाइयों पर ही ध्यान दिया, बुराइयों पर नहीं। यह भी ध्यान दीजिए कि पौलुस ने उनको लिखते वक्त खुद को शामिल करते हुए “हम” शब्द का इस्तेमाल किया। पौलुस धर्मी इंसान था, फिर भी उसने अपने भाइयों से इस तरह बात नहीं की मानो वह खुद उनसे किसी तरह बड़ा है और बहुत धर्मी है। (सभोपदेशक ७:१६ से तुलना कीजिए।) इसके बजाय, उसने दिखाया कि वह भी उन्हीं की तरह है। उसे दिल से अपने भाइयों पर भरोसा था। वह बता रहा था कि न सिर्फ खुद उस पर बल्कि उसके वफादार भाइयों पर भी बड़ी-बड़ी मुश्किलें आएँगी, लेकिन वे दिलेरी से इनका सामना करेंगे और नाश होने के लिए कभी-भी पीछे नहीं हटेंगे और यह दिखा देंगे कि वे उनमें से हैं जो विश्वास रखते हैं।
४. अपने मसीही भाई-बहनों पर भरोसा करने के लिए पौलुस के पास कौन-सी वजह थीं?
४ पौलुस को अपने भाइयों पर इतना भरोसा क्यों था? क्या उनमें कोई भी बुराई नहीं थी? या क्या वह उनकी खामियों से अनजान था? जी नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं था क्योंकि कई मामलों में पौलुस ने इन मसीहियों को अपनी आध्यात्मिक कमज़ोरी दूर करने के लिए कुछ खास सलाहें दी थीं। (इब्रानियों ३:१२; ५:१२-१४; ६:४-६; १०:२६, २७; १२:५) फिर भी, पौलुस को यकीन था कि उसके भाई अच्छा ही करेंगे। इसकी दो वजह थीं। (१) पौलुस ने अपने भाइयों को उसी नज़र से देखा जैसे यहोवा उन्हें देखता है। पौलुस, यहोवा परमेश्वर की मिसाल पर चला जो लोगों की बुराइयों को नहीं बल्कि उससे ज़्यादा उनके अच्छे गुणों को देखता है और उन पर यह एतबार भी करता है कि भविष्य में ये लोग अच्छाई का मार्ग ही चुनेंगे। (भजन १३०:३; इफिसियों ५:१) (२) पौलुस को पूरा भरोसा था कि परमेश्वर की पवित्र शक्ति के लिए कोई भी काम नामुमकिन नहीं है। उसे इस बात का यकीन था कि यहोवा अपने ऐसे किसी भी सेवक को “असीम सामर्थ” दे सकता है जो वफादारी से उसकी सेवा करने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहा है। किसी किस्म की बाधा और इंसानी कमज़ोरी उसकी पवित्र शक्ति को रोक नहीं सकती। (२ कुरिन्थियों ४:७; फिलिप्पियों ४:१३) इसलिए अपने भाई-बहनों पर भरोसा ज़ाहिर करके पौलुस ने कुछ गलत नहीं किया, न ही वह सच्चाई से मुंह मोड़ रहा था और न ही वह आँख मूंदकर उनसे उम्मीद लगा रहा था। उसका भरोसा बेबुनियाद नहीं था बल्कि परमेश्वर का वचन उसकी ठोस बुनियाद था।
५. हम भी पौलुस की तरह कैसे भाइयों पर भरोसा ज़ाहिर कर सकते हैं और इसका क्या नतीजा होगा?
५ अपने भाइयों पर पौलुस के इस भरोसे ने वाकई उनमें जान डाल दी। पौलुस ने यरूशलेम और यहूदिया की कलीसियाओं के अपने भाइयों पर जो यकीन ज़ाहिर किया, वह उनके लिए बहुत मायने रखता था। इब्रानी मसीही ऐसे माहौल में रह रहे थे जिसमें उन्हें दिन-रात घमंडी यहूदियों के विरोध का, उनके ज़हरीले तानों और उनकी बेरुखी का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे वक्त पर, पौलुस की बातों से उन्हें नया हौसला मिला। और उन्होंने मन में यह ठान लिया कि वे भी साबित कर देंगे कि वे विश्वास रखनेवाले लोगों में से हैं। लेकिन हमारे बारे में क्या? क्या हम भी पौलुस की तरह आज अपने भाइयों के लिए ऐसा ही कर सकते हैं? दूसरों की खामियाँ और कमज़ोरियाँ देखना तो बड़ा आसान है। (मत्ती ७:१-५) लेकिन अगर हम अपने हर भाई-बहन के विश्वास को अनमोल समझें और उन पर भरोसा ज़ाहिर करें तो ऐसी हौसला-अफज़ाई से हम अपने भाइयों का विश्वास और भी बढ़ाएँगे।—रोमियों १:११, १२.
परमेश्वर के वचन का सही इस्तेमाल
६. इब्रानियों १०:३८ के शब्द, पौलुस ने कहाँ से लिए थे?
६ पौलुस ने अपने भाई-बहनों का विश्वास मज़बूत करने के लिए, परमेश्वर के वचन का भी बेहतरीन इस्तेमाल किया। इसके लिए पौलुस ने बाइबल से ऐसी मिसाल चुनी जिसके बारे में इब्रानी मसीही अच्छी तरह जानते थे। ध्यान दीजिए पौलुस ने क्या लिखा: “मेरा धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा, और यदि वह पीछे हट जाए तो मेरा मन उस से प्रसन्न न होगा।” (इब्रानियों १०:३८) पौलुस यहाँ भविष्यवक्ता हबक्कूकa की किताब से हवाला दे रहा था और इब्रानी मसीही, भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों से अच्छी तरह वाकिफ थे। यह सा.यु. ६१ का समय था और पौलुस का मकसद था कि यरूशलेम और उसके आसपास रहनेवाले मसीहियों का विश्वास मज़बूत करे। इन दोनों बातों को ध्यान में रखते हुए हम यह कह सकते हैं कि हबक्कूक की मिसाल एक बेहतरीन मिसाल थी। आइए देखें क्यों?
७. हबक्कूक ने अपनी भविष्यवाणी की किताब कब लिखी और उस वक्त यहूदा की क्या हालत थी?
७ हबक्कूक ने, सा.यु.पू. ६०७ में यरूशलेम का विनाश होने के बीस साल से भी पहले अपनी किताब लिखी थी। उसने दर्शन में देखा कि “क्रूर और उतावली करनेवाली” कसदी (यानी, बाबुल) जाति तूफान की तरह यहूदा में घुसती चली आ रही है और यरूशलेम को तबाह कर देती है और रास्ते में आनेवाले लोगों को और राष्ट्रों को निगल जाती है। (हबक्कूक १:५-११) लेकिन इस तबाही की भविष्यवाणी तो सौ साल से भी पहले, यानी यशायाह के दिनों से ही की जा रही थी। फिर हबक्कूक के दिनों में, भले राजा योशिय्याह की जगह दुष्ट राजा यहोयाकीम राज करने लगा और नतीजा यह हुआ कि पूरा यहूदा देश दुष्टता और बुराई से भर गया। (२ इतिहास ३६:५; यिर्मयाह २२:१७; २६:२०-२४) इतना ही नहीं, यहोवा के नाम से बोलनेवालों पर न सिर्फ यहोयाकीम ने ज़ुल्म किए बल्कि उनमें से कइयों को मौत के घाट उतार दिया। तो इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं कि ऐसे माहौल में भविष्यवक्ता हबक्कूक कराह उठा: “हे यहोवा [और] कब तक?”—हबक्कूक १:२.
८. हबक्कूक की मिसाल से पहली सदी के मसीहियों को क्यों मदद मिलती और आज हमें भी क्यों मदद मिल सकती है?
८ हबक्कूक नहीं जानता था कि यरूशलेम का विनाश होने में कितना समय बाकी है। ठीक उसी तरह, पहली सदी के ये मसीही भी नहीं जानते थे कि यहूदी धर्म-व्यवस्था के नाश होने में कितना समय बाकी है। और आज हमारे ज़माने में हम भी नहीं जानते कि यहोवा ‘किस दिन और किस घड़ी’ इस दुष्ट दुनिया का नाश करेगा। (मत्ती २४:३६) ध्यान दीजिए कि यहोवा ने हबक्कूक को जो जवाब दिया उसमें दो ज़बरदस्त बातें शामिल हैं। सबसे पहली बात, यहोवा ने हबक्कूक को यकीन दिलाया कि अंत बिलकुल सही वक्त पर आएगा। भले ही इंसानों की नज़र में यह देरी लगे, लेकिन परमेश्वर ने कहा, “उस में देर न होगी।” (हबक्कूक २:३) दूसरी बात, यहोवा ने हबक्कूक को यह भी बताया: “धर्मी अपने विश्वास के द्वारा जीवित रहेगा।” (हबक्कूक २:४) कितनी सीधी-सी मगर कितनी ज़बरदस्त सच्चाई! सबसे अहम बात यह नहीं कि अंत कब आएगा बल्कि यह है कि क्या हम आखिर तक यहोवा के वफादार बने रहेंगे?
९. यहोवा की आज्ञा माननेवाले उसके सेवक कैसे अपने विश्वास की वजह से (क) सा.यु.पू. ६०७ में जीवित बचे? (ख) सा.यु. ६६ के बाद जीवित बचे? (ग) आज अपने विश्वास को मज़बूत करना क्यों अहमियत रखता है?
९ हबक्कूक से किए गए यहोवा के इस वादे को उसके वफादार सेवकों ने सच होते देखा। सा.यु.पू. ६०७ में जब यरूशलेम को उजाड़ दिया गया, तो यिर्मयाह, उसका मुंशी बारूक, एबेदमेलेक और वफादार रेकाबी, यरूशलेम पर आए भयंकर विनाश से बच गए और ‘जीवित रहे।’ क्यों? क्योंकि आखिर तक वफादार बने रहने का यह यहोवा की तरफ से उन्हें इनाम था। (यिर्मयाह ३५:१-१९; ३९:१५-१८; ४३:४-७; ४५:१-५) उसी तरह से हम कह सकते हैं कि पौलुस ने जब पहली सदी के इब्रानी मसीहियों को इस मिसाल पर ध्यान देने की बात की तो उन्होंने बेशक उसकी बात समझकर मानी होगी। क्योंकि जब सा.यु. ६६ में रोमी सेना ने यरूशलेम पर हमला किया और फिर अचानक किसी वजह से वापस चली गयी, तब ये वफादार मसीही तैयार थे और यीशु की चेतावनी के मुताबिक यरूशलेम से भाग निकले। (लूका २१:२०, २१) वे इसलिए जीवित रहे क्योंकि उन्होंने विश्वास दिखाया था। उसी तरह, जब इस दुनिया का अंत आएगा तब हम भी अपने विश्वास की वजह से ही जीवित रहेंगे। इसलिए, अभी से अपने विश्वास को मज़बूत करना कितनी अहमियत रखता है!
विश्वास की जीती-जागती मिसालों पर ध्यान देना
१०. पौलुस ने मूसा के विश्वास के बारे में क्या बताया और हम मूसा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
१० पौलुस ने अपने भाइयों का विश्वास मज़बूत करने के लिए एक और ज़बरदस्त तरीका इस्तेमाल किया। उसने परमेश्वर के वफादार सेवकों की मिसालों पर उनका ध्यान दिलाया। आप ज़रा इब्रानियों का ११ अध्याय पढ़िए तो आप पाएँगे कि कैसे पौलुस ने इन लोगों की वफादारी की जीती-जागती तस्वीर पेश की। मिसाल के तौर पर पौलुस, मूसा के बारे में बताता है, “वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।” (तिरछे टाइप हमारे।) (इब्रानियों ११:२७) दूसरों शब्दों में, मूसा के लिए यहोवा परमेश्वर ऐसा था मानो वह उसके सामने मौजूद हो और मानो वह उसे अपनी आँखों से देख सकता हो। क्या हमारे बारे में भी ऐसा ही कहा जा सकता है? यह कहना तो बहुत आसान है कि हमें यहोवा के साथ एक रिश्ता कायम करना चाहिए, मगर असल में यहोवा के साथ एक नज़दीकी और मज़बूत रिश्ता कायम करने के लिए काम ज़रूरी हैं। इसके लिए कड़ा प्रयास करते रहना ज़रूरी है! क्या हमारे लिए भी यहोवा ऐसा है मानो हर घड़ी हमारे सामने मौजूद हो? जब हम कोई फैसला करते हैं, चाहे वह कितना छोटा ही क्यों न हो, तब क्या हम यहोवा को ध्यान में रखते हैं। यहोवा पर ऐसे विश्वास से हम कड़े से कड़े विरोध का भी सामना कर सकेंगे।
११, १२. (क) किन हालात में हनोक के विश्वास की परीक्षा हुई? (ख) हनोक को कौन-सा बढ़िया इनाम मिला?
११ हनोक के विश्वास पर भी ध्यान दीजिए। जैसे विरोध का उसने सामना किया उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। हनोक को अपने ज़माने के दुष्ट लोगों के खिलाफ परमेश्वर का कठोर न्यायदंड सुनाना था। (यहूदा १४, १५) परमेश्वर के इस वफादार सेवक पर जो सताहट आनेवाली थी वह शायद इतनी खतरनाक और हिंसक थी कि यहोवा ने उसे “उठा लिया।” इससे पहले कि हनोक अपने दुश्मनों के हाथों मारा जाता, यहोवा ने उसे चैन से मौत की नींद में सो जाने दिया। इसलिए हनोक ने जो भविष्यवाणी की थी, उसको पूरा होते हुए वह खुद नहीं देख सका। लेकिन, उसे एक ऐसा वरदान मिला जो शायद यह सब देखने से भी बेहतर था।—इब्रानियों ११:५; उत्पत्ति ५:२२-२४.
१२ पौलुस कहता है: “[हनोक] के उठाए जाने से पहिले उस की यह गवाही दी गई थी, कि उस ने परमेश्वर को प्रसन्न किया।” (इब्रानियों ११:५) इसका क्या मतलब था? मौत की नींद सोने से पहले, हनोक को शायद किसी किस्म का दर्शन दिखाया गया, शायद एक खूबसूरत नयी दुनिया का जिसे वह मौत की नींद से जागने पर देख सकेगा। जो भी हो, यहोवा ने हनोक को यह बता दिया कि वह उससे और उसके विश्वास के कामों से बहुत खुश था। हनोक ने यहोवा के दिल को खुश किया था। (नीतिवचन २७:११ से तुलना कीजिए।) हनोक की ज़िंदगी क्या ही बेहतरीन मिसाल है, है ना? क्या आप भी ऐसा ही विश्वास दिखाते हुए अपनी ज़िंदगी जीना चाहेंगे? अगर हाँ तो फिर, इन मिसालों के बारे में सोचते रहिए, खुद को याद दिलाते रहिए कि उनकी मिसालें एक कहानी नहीं बल्कि हकीकत है। हर दिन, हर घड़ी, विश्वास दिखाते हुए जीने का संकल्प कीजिए। यह भी याद रखिए कि जो विश्वास रखनेवाले हैं वे यहोवा की सेवा इसलिए नहीं करते कि जल्द ही एक दिन परमेश्वर अपने सारे वादे पूरे करनेवाला है और जल्द ही अंत आनेवाला है। नहीं, इसके बजाय हम यह पक्का इरादा कर लें कि सिर्फ अंत आने तक ही नहीं बल्कि हमेशा-हमेशा तक हम यहोवा की सेवा करते रहेंगे! ऐसा करने से हम अपनी ज़िंदगी सबसे बेहतरीन तरीके से जीएँगे, आज भी और आनेवाली नयी दुनिया में भी।
विश्वास में कैसे मज़बूत हों
१३, १४. (क) इब्रानियों १०:२४, २५ में पौलुस की सलाह सभाओं से खुशियाँ हासिल करने में हमारी कैसे मदद करती है? (ख) मसीही सभाओं में हाज़िर होने की हमारी सबसे बड़ी वजह क्या है?
१३ पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को ऐसे कई कारगर तरीके बताए जिससे वे खुद अपना विश्वास मज़बूत कर सकते थे। आइए इनमें से सिर्फ दो पर हम ध्यान दें। हम सब इब्रानियों १०:२४, २५ में दी गयी सलाह से अच्छी तरह वाकिफ हैं, जिसमें हमसे अनुरोध किया गया है कि हम मसीही सभाओं में बिना नागा हाज़िर होते रहें। लेकिन, याद रखिए कि पौलुस की इस सलाह का मतलब सिर्फ यह नहीं था कि हम सभाओं में आकर बस बैठ जाएँ। इसके बजाय, पौलुस कहता है कि इन सभाओं में ही हमें एक-दूसरे को और अच्छी तरह जानने का, परमेश्वर की सेवा और अच्छी तरह करने के लिए एक-दूसरे को उकसाने का और दूसरों की हिम्मत बँधाने का मौका मिलता है। हम इन सभाओं में कुछ देने के लिए भी जाते हैं सिर्फ लेने के लिए नहीं। अगर हम ऐसा करेंगे तो ये सभाएँ हमें और ज़्यादा खुशियाँ देंगी।—प्रेरितों २०:३५.
१४ मसीही सभाओं में हाज़िर होने की सबसे बड़ी और खास वजह है, यहोवा परमेश्वर की उपासना करना। ऐसा करने के लिए हम प्रार्थना में शरीक होते हैं, साथ मिलकर परमेश्वर की स्तुति में भजन गाते हैं, ध्यान लगाकर सुनते हैं और सभाओं में जवाब देकर और अपने भाग पेश करके यहोवा की महिमा में अपने “होठों का फल” चढ़ाते हैं। (इब्रानियों १३:१५) अगर हम इन तरीकों से यहोवा की महिमा करने की बात हमेशा याद रखें तो एक-एक सभा से हमारा विश्वास और भी मज़बूत होता जाएगा।
१५. पौलुस ने इब्रानी मसीहियों से क्यों कहा कि वे अपनी सेवकाई को दृढ़ता से थामे रहें और यही सलाह आज हम पर भी क्यों लागू होती है?
१५ विश्वास को मज़बूत करने का एक और तरीका है, प्रचार करना। पौलुस ने लिखा: “अपनी आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें; क्योंकि जिस ने प्रतिज्ञा किया है, वह सच्चा है।” (इब्रानियों १०:२३) जब किसी के हाथ से कोई चीज़ छूटकर गिरने का खतरा होता है, तब हम उनसे कहते हैं कि कसकर पकड़ो, दृढ़ता से थामे रहो। शैतान भी यही चाहता था कि इब्रानी मसीही हिम्मत हारकर प्रचार का काम छोड़ दें इसलिए वह उन पर ज़बरदस्त दबाव डाल रहा था। ठीक उसी तरह शैतान आज परमेश्वर के लोगों पर ज़बरदस्त दबाव डाल रहा है ताकि वे उसकी सेवा में ठंडे पड़ जाएँ। ऐसे दबाव का सामना करने के लिए हमें क्या करना चाहिए? ध्यान दीजिए कि पौलुस ने क्या किया।
१६, १७. (क) पौलुस में प्रचार करते रहने की हिम्मत कैसे आई? (ख) अगर प्रचार करने के किसी खास तरीके से हमें घबराहट होती है तो हमें कौन-से कदम उठाने चाहिए?
१६ थिस्सलुनीकिया के मसीहियों को पौलुस ने लिखा: “तुम आप ही जानते हो, कि पहिले पहिल फिलिप्पी में दुख उठाने और उपद्रव सहने पर भी हमारे परमेश्वर ने हमें ऐसा हियाव दिया, कि हम परमेश्वर का सुसमाचार भारी विरोधों के होते हुए भी तुम्हें सुनाएं।” (१ थिस्सलुनीकियों २:२) पौलुस और उसके साथियों को फिलिप्पी में किस तरह का ‘उपद्रव सहना’ पड़ा? कुछ विद्वानों के मुताबिक, पौलुस ने यहाँ जो यूनानी शब्द इस्तेमाल किया उसका मतलब है, बहुत ही शर्मनाक तरीके से किसी की बेइज़्ज़ती करना या निर्दयता से पेश आना। एक बार फिलिप्पी के हाकिमों ने पौलुस और उसके साथियों को बेंतों से मारा था, उन्हें कैदखाने में डाल दिया और उनके पांव काठ में ठोंक दिए थे। (प्रेरितों १६:१६-२४) ऐसे बुरे व्यवहार का पौलुस पर क्या असर हुआ? क्या इस हादसे से पौलुस के दिल में डर समा गया था? क्या वह अपने मिशनरी दौरे के अगले शहर, थिस्सलुनीकिया में जाने से पीछे हट रहा था? जी नहीं, उसने “हियाव” बाँधा। वह अपने डर पर जीत हासिल कर चुका था और उसने निडर होकर प्रचार करना जारी रखा।
१७ पौलुस में इतनी हिम्मत कैसे आयी? क्या खुद अपने आप आ गई? जी नहीं, उसने कहा कि “परमेश्वर ने [उसे] ऐसा हियाव दिया।” बाइबल का अनुवाद करने में काम आनेवाली एक किताब कहती है कि पौलुस के इन शब्दों का अनुवाद यों किया जा सकता है, “परमेश्वर ने हमारे दिलों का डर दूर कर दिया।” इसलिए अगर आपको भी यह लगता है कि आप प्रचार का काम करने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रहे या किसी खास तरीके से प्रचार करने से आपको डर लगता है तो क्यों न आप भी यहोवा से बिनती करें कि वह आपके दिल का डर निकाल दे? प्रचार का काम करने का उससे हियाव माँगिए। इसके अलावा, आप खुद भी कुछ ऐसे कदम उठाइए जिससे आपका डर दूर हो। मिसाल के तौर पर, अगर आपको प्रचार करने के अलग-अलग तरीकों में से किसी एक में हिस्सा लेने से घबराहट होती है तो किसी ऐसे भाई या बहन के साथ जाइए जो उस तरीके से प्रचार करने में माहिर है। शायद आप बड़े दुकानदारों या व्यापारियों से, सड़क पर गवाही देने से, किसी भी मौके पर गवाही देने से या टेलीफोन के ज़रिये प्रचार करने से डरते हों। ऐसे में आपका साथी आपकी मदद कर सकता है। ध्यान दीजिए कि वह कैसे बात करता है, उससे सीखिए। सीखने के बाद हिम्मत जुटाकर वैसा ही करने की कोशिश कीजिए।
१८. अगर हम प्रचार करने के लिए हिम्मत जुटाएँ तो हमें कौन-सी आशीषें मिल सकती हैं?
१८ अगर आप हिम्मत जुटाकर प्रचार करते हैं तो सोचिए इसका कितना अच्छा नतीजा निकल सकता है। जब आप कोशिश करते रहते हैं और हिम्मत नहीं हारते, तो आपको भी बहुत-से बढ़िया अनुभव हो सकते हैं, जबकि चुप रहने से ऐसा नहीं हो सकता। (पेज २५ देखिए।) आपको इस बात से बेहद खुशी मिलेगी कि आपने यहोवा को खुश करने के लिए वह काम भी कर दिखाया है जिससे आपको डर लगता था। अगर आप ऐसा करते हैं तो यहोवा आपको आशीष देगा और हर तरह के डर को जीतने के लिए आपकी मदद भी करेगा। इससे आपका विश्वास और भी पक्का होगा। सचमुच, जब आप दूसरों को सच्चाई सिखाकर उनका विश्वास बढ़ाएँगे, तो बेशक आपका अपना विश्वास भी बढ़ता जाएगा।—यहूदा २०, २१.
१९. जो “विश्वास रखते हैं” उनको कौन-सा बेहतरीन इनाम मिलनेवाला है?
१९ हमारी दुआ है कि आप लगातार अपना और दूसरों का विश्वास मज़बूत करते रहें। परमेश्वर के वचन का सही इस्तेमाल करने, बाइबल में दी गयी विश्वास दिखानेवालों की मिसालों का ख्याल करते रहने से उनके बारे में सोचते रहने से, मसीही सभाओं के लिए तैयारी करने और उनमें भाग लेने से और प्रचार काम की अनमोल आशीष को दृढ़ता से थामे रहने से हम ऐसा कर सकते हैं। अगर आप ऐसा करते हैं तो यकीन रखिए कि आप भी उन लोगों में शामिल हैं जो “विश्वास रखते हैं।” यह भी याद रखिए कि ऐसे लोगों को सबसे बेहतरीन इनाम मिलनेवाला है। क्योंकि जो ‘विश्वास रखते हैं, उनके प्राणों की रक्षा होगी।’b ऐसा हो कि आपका विश्वास लगातार मज़बूत होता जाए और यहोवा की आशीष से आप सदा जीते रहें!
[फुटनोट]
a पौलुस ने सेप्टुआजिंट बाइबल से हबक्कूक २:४ का हवाला अपनी पत्री में दिया। इस आयत में ये शब्द भी थे, “यदि कोई पीछे हट जाए तो मेरा मन उस से प्रसन्न न होगा।” ये शब्द आज किसी भी इब्रानी हस्तलिपि में नहीं पाए जाते, और इन्हीं हस्तलिपियों की मदद से बाइबल के इब्रानी शास्त्र की किताबें आज अनुवाद की जाती हैं। कुछ विद्वानों का कहना है कि सेप्टुआजिंट बाइबल जिन हस्तलिपियों से अनुवाद की गयी थी वे आज की हस्तलिपियों से भी पहले की हैं और अब मौजूद नहीं हैं। जो भी हो, पौलुस ने अपनी पत्री में ये शब्द परमेश्वर की पवित्र शक्ति की प्रेरणा से लिखे। इसलिए हम कह सकते हैं कि ये शब्द भी परमेश्वर के वचन का ही हिस्सा हैं।
b सन् २००० के लिए यहोवा के साक्षियों का सालाना पाठ होगा: “हम हटनेवाले नहीं, . . . पर विश्वास करनेवाले हैं।”—इब्रानियों १०:३९.
आपका जवाब क्या है?
◻ पौलुस ने इब्रानी मसीहियों पर कैसे अपना भरोसा ज़ाहिर किया और हम इससे क्या सीख सकते हैं?
◻ पौलुस का भविष्यवक्ता हबक्कूक का हवाला देना सही क्यों था?
◻ पौलुस ने बाइबल में बतायी गयीं विश्वास की किन मिसालों पर ध्यान दिलाया?
◻ पौलुस ने विश्वास मज़बूत करने के लिए किन तरीकों का इस्तेमाल करने की सलाह दी?
[पेज 23 पर तसवीर]
फिलिप्पी में पौलुस ने बहुत ज़ुल्म सहा, फिर भी उसने प्रचार काम करते रहने के लिए हिम्मत जुटायी
[पेज 24 पर तसवीरें]
क्या आप हिम्मत के साथ प्रचार के अलग-अलग तरीकों में हिस्सा लेंगे?