इन सबके पीछे कौन है?
कम्बोडिया के जंगल से अपना रास्ता निकालते हुए १९वीं सदी का एक फ्रांसीसी अन्वेषक, आनरी मूओ एक चौड़ी खाई के पास पहुँचा जो एक मंदिर को घेरे हुए थी। लगभग एक किलोमीटर की दूरी से जहाँ वह खड़ा था, मंदिर की ६० मीटर से भी ऊँची पाँच मीनारें आसमान को छू रही थीं। यह अंगोर वाट था, पृथ्वी का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक। मूओ द्वारा खोज निकालने से पहले यह सात सदियों से प्रकृति की प्रचंड शक्तियाँ झेल चुका था।
एक नज़र देखते ही मूओ कह सका कि काई से ढकी यह इमारत मनुष्य के हाथों की कला है। उसने लिखा, “एक प्राचीन माइकलऐन्जेलो जैसे कलाकार द्वारा खड़ी की गई यह वास्तुकाला, यूनान या रोमी द्वारा बनाई गई किसी भी वास्तुकला से बहुत ही शानदार है।” सदियों से इसके उजाड़ पड़े रहने के बावजूद उसे ज़रा भी शक नहीं था कि इस भव्य इमारत के पीछे अवश्य किसी रचनाकार का हाथ है।
मज़े की बात है, सदियों पहले लिखी गई बुद्धि की एक किताब यह समझाने के लिए इसी तरह का तर्क इस्तेमाल करती है कि क्यों हमारा संसार एक रचनाकार की ही करामात है। इसे अवश्य ही सृष्ट किया गया है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हर एक घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, पर जिस ने सब कुछ बनाया वह परमेश्वर है।” (इब्रानियों ३:४) कुछ लोग इस समानता पर शायद एतराज़ करें और कहें: ‘प्रकृति के कार्य मनुष्य के हाथों के कार्यों से भिन्न होते हैं।’ फिर भी, सभी वैज्ञानिक इस एतराज़ से सहमत नहीं हैं। यह स्वीकार करने के बाद कि “जीव-रासायनिक प्रणालियाँ निर्जीव वस्तुएँ नहीं हैं,” लीहाई विश्वविद्यालय में जीव-रसायनशास्त्र का सह-प्राध्यापक माइकल बीही पूछता है: “क्या जीव-रासायनिक प्रणालियों को बुद्धिमानी से रचा जा सकता है?” वह आगे बताता है कि वैज्ञानिक अब आनुवंशिक इंजीनियरी से जीवों में मूल परिवर्तनों की रचना कर रहे हैं। स्पष्ट है कि जीवित और निर्जीव वस्तुओं, दोनों को रचा एवं नियंत्रित किया जा सकता है! सूक्ष्मदर्शी संसार में जैविक कोशिकाओं का गहन अध्ययन करते वक्त बीही ऐसी जटिल प्रणालियों के बारे में चर्चा करता है जो पुर्ज़ों से बनी हुई हैं और कार्य करने के लिए एकदूसरे पर निर्भर हैं। उसका निष्कर्ष? “कोशिकाओं के गहन शोध के ये सारे प्रयास—जीवों का आणविक स्तर पर गहन शोध—स्पष्ट रूप से और ऊँची आवाज़ में यही चिल्लाते हैं कि इन्हें ‘रचा’ गया है!”
ब्रह्मांड विज्ञानियों और भौतिक विज्ञानियों ने इसी तरह संसार और ब्रह्मांड पर बारीकी से अध्ययन किया और कुछ अचंभित कर देनेवाले तथ्यों को सामने लाए हैं। मसलन, वे अब जान गए हैं कि अगर ब्रह्मांड स्थिरांकों के किसी भी माप में थोड़ा-सा भी परिवर्तन हुआ होता तो ब्रह्मांड निर्जीव होता।a ब्रह्मांड विज्ञानी ब्रॆन्डन कार्टर इन तथ्यों को अचंभित कर देनेवाले संयोग कहता है। लेकिन अगर आप ऐसे रहस्यपूर्ण, एकदूसरे से जुड़े संयोगों का सिलसिलेवार रूप से सामना करते तब क्या आप इतना भी संदेह न करते कि इन सबके पीछे ज़रूर कोई है?
अवश्य ही, इन तमाम जटिल प्रणालियों और बारीकी से मेल बिठाए गए “संयोगों” के पीछे एक रचनाकार है। यह कौन है? प्राध्यापक बीही यह कबूल करता है कि “वैज्ञानिक तरीकों से रचनाकार की पहचान करना शायद बहुत पेचीदा हो,” और वह इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ने का ज़िम्मा “तत्त्वज्ञान और धर्मविज्ञान” पर छोड़ता है। आप शायद व्यक्तिगत रूप से सोचें कि इस प्रश्न से मुझे कोई सरोकार नहीं। लेकिन मान लीजिए कि आप ऐसी चीज़ों से भरा हुआ एक पार्सल पाते हैं जिनकी आपको ज़रूरत है, तो क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि किसने आपको ये चीज़ें भेजी?
कहने के लिए एक ऐसा ही पार्सल—खूबसूरत तोहफों से भरा हुआ पार्सल, हमें भी मिला है जो हमारे लिए जीना और जीवन का आनंद उठाना संभव करता है। यह पार्सल पृथ्वी है, जीवित रहने के लिए उन सभी अद्भुत प्रणालियों के साथ। क्या हमें पता नहीं लगाना चाहिए कि किसने हमें ये तोहफे दिए हैं?
खुशी की बात है कि पार्सल के भेजनेवाले ने एक नोट साथ में दिया है। यह “नोट” बुद्धि की वही प्राचीन किताब है जिसका ज़िक्र पहले किया गया—बाइबल। अपने आरंभ के शब्दों में ही बाइबल बड़े ही सीधे और स्पष्ट तरीके से इस सवाल का जवाब देती है कि हमें पार्सल किसने दिया है: “आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।”—उत्पत्ति १:१.
अपने “नोट” में सृष्टिकर्ता नाम के द्वारा अपनी पहचान कराता है: “ईश्वर जो आकाश का सृजने . . . . वाला है, जो उपज सहित पृथ्वी का फैलानेवाला और उस पर के लोगों को सांस . . . . देनेवाला यहोवा है, वह यों कहता है।” (तिरछे टाइप हमारे।) (यशायाह ४२:५) जी हाँ, यहोवा उस परमेश्वर का नाम है जिसने ब्रह्मांड की रचना की और पृथ्वी पर पुरुषों एवं स्त्रियों को बनाया। लेकिन यह यहोवा कौन है? किस प्रकार का परमेश्वर है यह? और पृथ्वी के सब लोगों को क्यों उसकी सुननी चाहिए?
[फुटनोट]
a “स्थिरांक” ऐसे माप हैं जो पूरे ब्रह्मांड में लगते नहीं की कभी बदलते हैं। दो उदाहरण हैं, पहला प्रकाश की गति का और दूसरा गुरुत्व का मात्रा के साथ संबंध का।
[पेज 3 पर तसवीर]
अंगोर वाट मनुष्यों द्वारा बनाया गया था
[पेज 4 पर तसवीर]
जब आप तोहफा पाते हैं तब क्या आप यह जानना नहीं चाहेंगे कि उसे किसने भेजा?