धीरज से दौड़ते रहिए
“उस दौड़ में जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ते रहें।”—इब्रा. 12:1.
1, 2. प्रेषित पौलुस ने मसीही ज़िंदगी की तुलना किससे की?
हर साल कई जगहों पर मैराथन दौड़ रखी जाती है। कुछ नामी धावक इस दौड़ में एक ही मकसद से हिस्सा लेते हैं। वह है जीत। लेकिन ज़्यादातर धावक सिर्फ दौड़ खत्म करने के मकसद से दौड़ते हैं और इसी में गर्व महसूस करते हैं।
2 बाइबल में मसीही ज़िंदगी की तुलना दौड़ से की गयी है। प्राचीन कुरिंथ की मंडली को अपनी पहली पत्री में प्रेषित पौलुस ने संगी मसीहियों का ध्यान इसी तरफ दिलाया। उसने लिखा: “क्या तुम नहीं जानते कि दौड़ में दौड़नेवाले सभी दौड़ते हैं, मगर इनाम एक ही को मिलता है? तुम इस तरह से दौड़ो कि इनाम पा सको।”—1 कुरिं. 9:24.
3. पौलुस ने क्यों कहा कि सिर्फ एक ही धावक को इनाम मिलेगा?
3 क्या पौलुस यह कह रहा था कि उन मसीहियों में से सिर्फ एक को ही इनाम मिलेगा और बाकियों का दौड़ना बेकार जाएगा? नहीं, ऐसी बात नहीं है! धावक दौड़ में जीतने के लिए तालीम लेते थे और दिन-रात मेहनत करते थे। पौलुस चाहता था कि उसके संगी मसीही भी उसी तरह हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए कड़ी मेहनत करें और आखिरकार हमेशा की ज़िंदगी का इनाम पा सकें। जी हाँ, इस मसीही दौड़ में जितने लोग भी दौड़ खत्म करेंगे, उन सबको इनाम मिलेगा।
4. जिस दौड़ में हम शामिल हैं, उसके बारे में हमें क्या गौर करने की ज़रूरत है?
4 आज जो जीवन की दौड़ में दौड़ रहे हैं, उन सबके लिए पौलुस के शब्द हौसला बढ़ानेवाले हैं, लेकिन गंभीर भी हैं। क्यों? क्योंकि जो इनाम हमें मिलेगा उसकी तुलना किसी भी चीज़ से नहीं की जा सकती, फिर चाहे हमारी आशा स्वर्ग में जीने की हो या धरती पर। बेशक, दौड़ लंबी और पस्त कर देनेवाली है जिसमें बहुत-सी बाधाएँ, ध्यान भटकानेवाली और खतरनाक चीज़ें हैं। (मत्ती 7:13, 14) अफसोस की बात है कि कुछ लोग दौड़ते-दौड़ते धीमे पड़ गए हैं, कुछ लोगों ने हार मान ली है और कुछ ठोकर खाकर गिर गए हैं। जीवन की दौड़ में कौन-सी बाधाएँ और खतरे हमारे रास्ते में आ सकते हैं? आप उन्हें कैसे पार कर सकते हैं? इस दौड़ को पूरी करके जीतने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
जीतने के लिए धीरज की ज़रूरत
5. इब्रानियों 12:1 में पौलुस ने दौड़ के बारे में क्या कहा?
5 पौलुस ने यरूशलेम और यहूदिया के इब्रानी मसीहियों को लिखते वक्त भी खेलों और दौड़ों का ज़िक्र किया। (इब्रानियों 12:1 पढ़िए।) उसने उनका ध्यान न सिर्फ इस तरफ खींचा कि दौड़ में हिस्सा क्यों लेना है, बल्कि यह भी कि उसमें जीतने के लिए क्या करना ज़रूरी होगा। यह जाँच करने से पहले कि इब्रानियों को लिखे पौलुस के खत से हम क्या सीख सकते हैं, आइए पहले यह देखें कि पौलुस को किस बात ने यह खत लिखने के लिए उभारा और वह अपने पाठकों को क्या करने का बढ़ावा दे रहा था।
6. धर्मगुरुओं ने मसीहियों का किस तरह जीना दूभर कर दिया था?
6 पहली सदी में, खास तौर पर यरूशलेम और यहूदिया के रहनेवाले मसीही, मुश्किलों और परीक्षाओं का सामना कर रहे थे। यहूदी धर्मगुरुओं का बड़ा दबदबा था और वे चेलों पर बड़े अत्याचार कर रहे थे। पहले इन धर्मगुरुओं ने यीशु को राजद्रोही करार देकर उसे अपराधी की मौत मार डाला और अब चेलों के काम को भी रोकने से बाज़ नहीं आ रहे थे। प्रेषितों की किताब में हम उनकी धमकियों और एक-के-बाद-एक ढाए जुल्मों के कारनामें पढ़ते हैं। यह सब ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त के दिन से ही शुरू हो गया, जब चमत्कारिक घटनाएँ घटी थीं। इसकी वजह से वफादार लोगों का जीना दूभर हो गया था।—प्रेषि. 4:1-3; 5:17, 18; 6:8-12; 7:59; 8:1, 3.
7. पौलुस ने जिन मसीहियों को खत लिखा वे किस कठिन दौर से गुज़र रहे थे?
7 वे मसीही उस समय जी रहे थे, जब यहूदी व्यवस्था का खात्मा होनेवाला था। यीशु ने उन्हें चिताया था कि दगाबाज़ यहूदी राष्ट्र का नाश हो जाएगा। उसने अपने चेलों को यह भी बताया कि अंत आने से ठीक पहले क्या-क्या होगा और उन्हें खास निर्देशन दिए कि वे कैसे अपना बचाव कर सकते हैं। (लूका 21:20-22 पढ़िए।) वे क्या करते? यीशु ने उन्हें आगाह किया: “खुद पर ध्यान दो कि हद-से-ज़्यादा खाने और पीने से और ज़िंदगी की चिंताओं के भारी बोझ से कहीं तुम्हारे दिल दब न जाएँ और वह दिन तुम पर पलक झपकते ही अचानक फंदे की तरह न आ पड़े।”—लूका 21:34, 35.
8. किस वजह से शायद कुछ मसीही धीमे पड़ गए या हिम्मत हार गए?
8 जब पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को अपनी पत्री लिखी तब यीशु की दी इस चेतावनी को करीब तीस साल बीत चुके थे। इन सालों के दौरान उन मसीहियों ने क्या किया? कुछ लोग रोज़मर्रा की ज़िंदगी के दबावों में आ गए और उनमें उलझकर रह गए जिस वजह से वे आध्यात्मिक तरक्की नहीं कर सके। (इब्रा. 5:11-14) कुछ मसीहियों ने सोचा कि अगर वे अपने आस-पास के ज़्यादातर यहूदियों का साथ देंगे, तो उनका जीना आसान हो जाएगा। उन्होंने शायद यह भी सोचा हो कि यहूदियों ने पूरी तरह परमेश्वर को तो नहीं छोड़ा है और कुछ हद तक उसके नियमों को मान भी रहे हैं। कुछ मसीही, मंडली के ऐसे लोगों के बहकावे या दबदबे में आ गए जो मूसा के नियमों और रीति-रिवाज़ों को मानने पर अड़े हुए थे। तो पौलुस कैसे उनका हौसला बढ़ाता, ताकि मसीही भाइयों को आध्यात्मिक रूप से चौकन्ना रहने और धीरज से दौड़ने में मदद मिलती?
9, 10. (क) इब्रानी के दसवें अध्याय के आखिर में पौलुस ने क्या बढ़ावा दिया? (ख) पौलुस ने पुराने ज़माने के “गवाहों” के विश्वासी कामों के बारे में क्यों लिखा?
9 पौलुस ने जिस तरह परमेश्वर की पवित्र शक्ति से प्रेरित होकर इब्रानी मसीहियों को मज़बूत किया वह गौरतलब है। दसवें अध्याय में सबसे पहले पौलुस ने बताया कि मूसा का नियम “आनेवाली अच्छी बातों की महज़ छाया” थी। फिर उसने मसीह के फिरौती बलिदान की अहमियत के बारे में साफ-साफ समझाया। और आखिर में उसने पाठकों को सलाह दी कि इस बलिदान से फायदा पाने के लिए “तुम्हें धीरज धरने की ज़रूरत है, ताकि परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने के बाद तुम वह पा सको जिसका वादा परमेश्वर ने किया है। बस अब ‘थोड़ा ही वक्त’ बाकी रह गया है, और ‘वह जो आनेवाला है वह आएगा और देर न करेगा।’”—इब्रा. 10:1, 36, 37.
10 इब्रानियों के 11वें अध्याय में पौलुस ने बेहतरीन तरीके से समझाया कि परमेश्वर पर सच्चा विश्वास रखने का मतलब क्या है। इसके लिए उसने पुराने ज़माने के विश्वासी स्त्री-पुरुषों का उदाहरण दिया। क्या वह विषय से हटकर बात कर रहा था? बिलकुल नहीं। पौलुस जानता था कि उसके संगी उपासकों को यह एहसास करना ज़रूरी है कि विश्वास दिखाने के लिए हिम्मत और धीरज की ज़रूरत पड़ती है। पुराने ज़माने के यहोवा के वफादार लोगों के शानदार उदाहरण से इब्रानी मसीहियों को धीरज के साथ मुश्किलों और परीक्षाओं का सामना करने में मदद मिलती। इन वफादार लोगों के विश्वासी कामों के बारे में बताने के बाद पौलुस कह सका: “जब गवाहों का ऐसा घना बादल हमें घेरे हुए है, तो आओ हम हरेक बोझ को और उस पाप को जो आसानी से हमें उलझाकर फँसा सकता है, उतार फेंकें और उस दौड़ में जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ते रहें।”—इब्रा. 12:1.
“गवाहों का . . . घना बादल”
11. ‘गवाहों के घने बादल’ को मन में रखने से हम पर क्या असर हो सकता है?
11 ‘गवाहों के घने बादल’ में जिनका ज़िक्र किया गया है, वे सिर्फ दर्शक नहीं थे जो अपने मनपसंद खिलाड़ी या टीम को जीतते हुए देखना चाहते थे। इसके बजाय वे इस दौड़ में हिस्सा ले रहे थे और उन्होंने धीरज के साथ इस दौड़ को पूरा भी किया। हालाँकि अब उनकी मौत हो चुकी है मगर उनकी तुलना मँजे हुए खिलाड़ियों से की जा सकती है जिनके उदाहरण से नए धावकों का जोश बढ़ सकता है। कल्पना कीजिए, अगर खिलाड़ी को यह पता चले कि कुछ कामयाब धावक उसे देख रहे हैं तो उसे कैसा लगेगा। क्या उसे अपना भरसक करने या उससे भी बढ़कर करने का हौसला नहीं मिलेगा? उन प्राचीन धावकों ने इस बात को पुख्ता कर दिया कि यह लाक्षणिक दौड़ चाहे कितनी ही मुश्किल क्यों न हो मगर वह जीती जा सकती है। इसलिए ‘गवाहों के घने बादल’ को मन में रखने से पहली सदी के इब्रानी मसीहियों को हौसला मिला और वे ‘धीरज से दौड़’ सके। आज हम भी ऐसा कर सकते हैं।
12. पौलुस के बताए उदाहरण आज हमारे हालात से कैसे मिलते-जुलते हैं?
12 जिन वफादार जनों का ज़िक्र पौलुस ने किया उनके हालात हमारे जैसे थे। उदाहरण के लिए नूह ऐसे वक्त में जी रहा था जब जल-प्रलय से पहले की दुनिया नाश के कगार पर खड़ी थी। हम भी इस दुनिया के विनाश के नज़दीक हैं। अब्राहम और सारा को सच्ची उपासना की खातिर अपना देश छोड़ना था और यहोवा का वादा पूरा होने का इंतज़ार करना था। आज हमसे भी खुद का इनकार करने और यहोवा की मंज़ूरी और उन आशीषों को पाने की गुज़ारिश की जाती है जो उसने हमारे लिए रखी हैं। मूसा को भयंकर वीराने से गुज़रकर वादा किए हुए देश में जाना था। हम भी इस नाश होती दुनिया से पार होते हुए वादा की हुई नयी दुनिया की तरफ बढ़ रहे हैं। ये वफादार लोग जिन-जिन परेशानियों से गुज़रे, उनकी कामयाबी और ना-कामयाबी, उनकी खूबियाँ और कमज़ोरियाँ वाकई गौर करने लायक हैं।—रोमि. 15:4; 1 कुरिं. 10:11.
उन्हें कामयाबी कैसे मिली?
13. नूह के सामने क्या चुनौतियाँ थीं और वह इनका सामना कैसे कर सका?
13 यहोवा के इन सेवकों को धीरज धरते हुए दौड़ में कामयाब होने के लिए किस बात ने मदद दी? ध्यान दीजिए पौलुस ने नूह के बारे में क्या लिखा। (इब्रानियों 11:7 पढ़िए।) “पृथ्वी पर जलप्रलय करके सब प्राणियों को . . . नाश” करनेवाली बात ऐसी थी जो नूह ने ‘उस वक्त तक देखी नहीं’ थी। (उत्प. 6:17) ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, एकदम अजूबा! फिर भी नूह ने इस बात को यह कहकर नज़रअंदाज़ नहीं किया कि यह तो अनहोना है या बहुत मुश्किल है। क्यों? क्योंकि उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा जो भी कहता है, उसे हर हाल में पूरा करता है। नूह ने कभी ऐसा नहीं सोचा कि उसे इतना मुश्किल काम दिया गया है, वह कैसे पूरा करेगा? इसके बजाय “जैसी परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी थी, नूह ने . . . सब कुछ वैसा ही किया।” (उत्प. 6:22, NHT) जो कुछ नूह ने किया उस पर गौर कीजिए जैसे जहाज़ बनाना, जानवरों को इकट्ठा करना, जहाज़ में जानवरों और अपने परिवार के लिए खाना जमा करना, लोगों को आनेवाले नाश की चेतावनी देना और अपने परिवार को आध्यात्मिक रूप से मज़बूत करना। बेशक, “सब कुछ वैसा ही” करना आसान नहीं था, लेकिन नूह के विश्वास और धीरज की वजह से उसकी और उसके परिवार की जान बची और उन्हें बहुत-सी आशीषें मिलीं।
14. अब्राहम और सारा ने किन परीक्षाओं का सामना धीरज से किया और हम उससे क्या सबक सीखते हैं?
14 ‘गवाहों का घना बादल जो हमें घेरे हुए है’ उसमें पौलुस नूह के बाद अब्राहम और सारा का ज़िक्र करता है। वे ऊर शहर में एक आम ज़िंदगी जी रहे थे जब उन्हें अपना घर-बार छोड़कर जाने के लिए कहा गया और उन्हें अपने भविष्य के बारे में कुछ पता नहीं था। लेकिन मुश्किल हालात में भी उन्होंने अटल विश्वास और आज्ञाकारी होने की एक उम्दा मिसाल कायम की। अगर हम अब्राहम के उन तमाम बलिदानों पर मनन करें जो उसने सच्ची उपासना के लिए किए तो उसे ‘विश्वास दिखानेवालों का पिता’ कहना बिलकुल सही होगा। (रोमि. 4:11) पौलुस ने अब्राहम के जीवन की खास बातों का ही ज़िक्र किया, क्योंकि उसके पाठक अब्राहम की ज़िंदगी से वाकिफ थे। फिर भी पौलुस हमें जो सबक सिखाता है वह वाकई दमदार है: “ये सभी [जिनमें अब्राहम और उसका परिवार भी है] विश्वास रखते हुए मर गए, हालाँकि जिन बातों का उनसे वादा किया गया था, वे उनके दिनों में पूरी नहीं हुईं। फिर भी, उन्होंने वादा की गयी बातों को दूर ही से देखा और उनसे खुशी पायी। और सब लोगों के सामने यह ऐलान किया कि वे उस देश में अजनबी और मुसाफिर हैं।” (इब्रा. 11:13) साफ है कि उनका विश्वास और परमेश्वर के साथ उनके करीबी रिश्ते ने उन्हें धीरज के साथ दौड़ने में मदद दी।
15. मूसा ने जिस तरह की ज़िंदगी जी, उसके लिए उसे किस बात ने उभारा?
15 ‘गवाहों के घने बादल’ में मूसा का भी नाम है, जो यहोवा का एक बेहतरीन सेवक था। मूसा ने शानो-शौकत की ज़िंदगी छोड़कर “परमेश्वर के लोगों के साथ ज़ुल्म सहने का चुनाव किया।” ऐसा करने के लिए उसे किस बात ने उभारा? पौलुस बताता है, “वह अपनी नज़र इनाम पाने पर लगाए हुए था। . . . वह उस अदृश्य परमेश्वर को मानो देखता हुआ डटा रहा।” (इब्रानियों 11:24-27 पढ़िए।) मूसा “चंद दिनों का सुख भोगने” के लालच में नहीं पड़ा। परमेश्वर के वादे मूसा के लिए इतने असल थे कि उसने बेमिसाल साहस और धीरज दिखाया। उसने इसराएलियों को मिस्र से बाहर निकालकर वादा किए हुए देश में ले जाने के लिए अपना खून-पसीना एक कर दिया।
16. जब मूसा को वादा किए हुए देश में जाने की इजाज़त नहीं मिली तब वह हद-से-ज़्यादा दुखी क्यों नहीं हुआ?
16 अब्राहम की तरह मूसा ने अपनी ज़िंदगी में परमेश्वर के वादे को पूरा होते हुए नहीं देखा। जब इसराएली वादा किए देश में जाने ही वाले थे तब मूसा को कहा गया: “वह देश जो मैं इस्राएलियों को देता हूं, तू अपने साम्हने देख लेगा, परन्तु वहां जाने न पाएगा।” ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि इससे पहले वह और हारून लोगों के ज़िद्दी रवैये से इस हद तक आपा खो बैठे कि “कादेश के मरीबा नाम सोते पर,” “इस्राएलियों के मध्य में” “दोनों ने [परमेश्वर का] अपराध किया।” (व्यव. 32:51, 52) क्या मूसा वादा किए देश में दाखिल न होने की बात से हद-से-ज़्यादा दुखी हो गया? नहीं। उसने लोगों को आशीष दी और अपनी बात इन शब्दों से खत्म की: “हे इस्राएल, तू क्या ही धन्य है! हे यहोवा से उद्धार पाई हुई प्रजा, तेरे तुल्य कौन है? वह तो तेरी सहायता के लिये ढाल, और तेरे प्रताप के लिये तलवार है।”—व्यव. 33:29.
हमारे लिए सबक
17, 18. (क) हम जीवन की दौड़ में ‘गवाहों के घने बादल’ से क्या सीख सकते हैं? (ख) अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
17 ‘गवाहों के घने बादल’ में जिनका ज़िक्र है उनकी ज़िंदगी पर गौर करने से यह साफ हो जाता है कि जीवन की दौड़ पूरी करने के लिए परमेश्वर और उसके वादों पर पक्का विश्वास होना बेहद ज़रूरी है। (इब्रा. 11:6) विश्वास को मामूली बात नहीं समझना चाहिए बल्कि इसे अपनी ज़िंदगी का आधार बनाना चाहिए। जिनमें विश्वास नहीं है वे सिर्फ मौजूदा हालात को देखते हैं पर यहोवा के सेवक आनेवाले कल को भी देख पाते हैं। हम “अनदेखे को” देख पाते हैं और इसलिए हम जीवन की दौड़ में धीरज से दौड़ते हैं।—2 कुरिं. 5:7.
18 मसीही दौड़ आसान नहीं है। फिर भी हम इस दौड़ में कामयाब हो सकते हैं। अगले लेख में हम देखेंगे कि हमारे लिए क्या मदद मौजूद है।
क्या आप समझा सकते हैं?
• पौलुस ने पुराने ज़माने के वफादार गवाहों के बारे में इतनी बातें क्यों लिखीं?
• ‘गवाहों का बड़ा बादल जो हमें घेरे हुए है,’ उनके बारे में सोचने से हमें कैसे धीरज से दौड़ने का हौसला मिलता है?
• नूह, अब्राहम, सारा और मूसा जैसे वफादार गवाहों के बारे में हुई चर्चा से आपने क्या सीखा?
[पेज 19 पर तसवीर]
अब्राहम और सारा ऊर शहर की ऐशो-आराम की ज़िंदगी को त्यागने के लिए तैयार थे