प्राचीनों, धार्मिकता से न्याय करो
“तुम अपने भाइयों के मुकद्दमे सुना करो, . . . धर्म से न्याय किया करो।” —व्यवस्थाविवरण १:१६.
१. न्याय करने के सम्बन्ध में, किस तरह अधिकार को सौंपा गया है, और इस से मानव न्यायियों के लिये क्या सूचित होता है?
परमप्रधान न्यायी होने की हैसियत से, यहोवा ने न्याय करने का अधिकार अपने पुत्र को सौंपा है। (यूहन्ना ५:२७) क्रमशः, मसीही कलीसिया का सिर होने के नाते, मसीह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास और उसके शासी निकाय का प्रयोग प्राचीनों की नियुक्ति के लिये करता है, जिन्हें कभी-कभी न्यायियों के रूप में काम करना पड़ता है। (मत्ती २४:४५-४७; १ कुरिन्थियों ५:१२, १३; तीतुस १:५, ९) प्रतिनिधि न्यायियों के तौर पर, ये व्यक्ति स्वर्गीय न्यायियों, यहोवा और यीशु मसीह, के उदाहरणों का ध्यानपूर्वक अनुकरण करने के लिये बाध्य हैं।
मसीह—अनुकरणीय न्यायी
२, ३. (क) न्यायी के रूप में मसीह के गुणों को कौनसी मसीहियाई भविष्यवाणी प्रकट करती है? (ख) कौन से गुण ख़ासकर ग़ौर करने के योग्य हैं?
२ न्यायी के रूप में, मसीह के विषय में भविष्यसूचक रूप से लिखा गया था: “यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी। और उसको यहोवा का भय सुगन्ध सा भाएगा। वह मुंह देखा न्याय न करेगा और न अपने कानों के सुनने के अनुसार निर्णय करेगा; परन्तु वह कंगालों का न्याय धर्म से, और पृथ्वी के नम्र लोगों का निर्णय खराई से करेगा।”—यशायाह ११:२-४.
३ उस भविष्यवाणी में दी गयी योग्यताओं पर ग़ौर कीजिये जो मसीह को “धर्म से जगत का न्याय” करने के लिये समर्थ करती हैं। (प्रेरितों १७:३१) वह यहोवा की आत्मा, ईश्वरीय बुद्धि, समझ, युक्ति और ज्ञान के अनुसार न्याय करता है। यह भी ग़ौर कीजिये कि वह यहोवा के भय में न्याय करता है। अतः, ‘मसीह का न्याय आसन’ “परमेश्वर के न्याय सिंहासन” का प्रतिनिधिक है। (२ कुरिन्थियों ५:१०; रोमियों १४:१०) वह सावधानी से मुकद्दमों का न्याय उसी ढंग से करता है जैसे परमेश्वर उनका न्याय करता है। (यूहन्ना ८:१६) वह सिर्फ़ मुँह देखकर या सुनी-सुनाई के आधार पर न्याय नहीं करता। वह नम्र और कंगालों के हित में खराई से न्याय करता है। क्या ही अत्युत्तम न्यायी! और क्या ही अत्युत्तम उदाहरण उन अपरिपूर्ण मनुष्यों के लिये, जिनसे आज न्यायिक हैसियत से काम करने की माँग की जाती है!
पार्थिव न्यायी
४. (क) मसीह के हज़ार वर्ष के राज्य के दौरान १,४४,००० का एक कार्य क्या होगा? (ख) कौनसी भविष्यवाणी यह दिखाती है कि कुछ अभिषिक्त मसीहियों को, जब तक वे पृथ्वी पर ही हैं, न्यायी नियुक्त किया जायेगा?
४ शास्त्रवचन दिखाते हैं कि अभिषिक्त मसीहियों की अपेक्षाकृत छोटी संख्या, जो १२ प्रेरितों से शुरू हुई, हज़ार वर्षों के दौरान मसीह यीशु के साथ सहन्यायी होगी। (लूका २२:२८-३०; १ कुरिन्थियों ६:२; प्रकाशितवाक्य २०:४) पृथ्वी पर आध्यात्मिक इस्राएल के शेष अभिषिक्त जनों का स्वयं १९१८-१९ में न्याय हुआ और पुनःस्थापित किया गया। (मलाकी ३:२-४) आध्यात्मिक इस्राएल के इस पुनःस्थापना के विषय में, यह भविष्यवाणी की गयी थी: “मैं तुम में पहिले की नाईं न्यायी और आदि काल के समान मन्त्री फिर नियुक्त करूंगा।” (यशायाह १:२६) अतः, जिस तरह यहोवा ने शारीरिक इस्राएल के “आदि काल” में किया था, यहोवा ने पुनःस्थापित शेष वर्ग को धर्मी न्यायी और मन्त्री दिये हैं।
५. (क) आध्यात्मिक इस्राएल की पुनःस्थापना के बाद किन्हें “न्यायी नियुक्त” किया गया था, और प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में किस प्रकार उनका चित्रण किया गया है? (ख) न्यायिक कार्य में अभिषिक्त अध्यक्षों को अब किस से मदद मिल रही है, और इन्हें बेहतर न्यायी बनने के लिये कैसे प्रशिक्षण दिया जा रहा है?
५ शुरू में, जिन ‘बुद्धिमान पुरुषों’ को ‘न्यायी नियुक्त’ किया गया था, वे सब अभिषिक्त पुरनिये या प्राचीन थे। (१ कुरिन्थियों ६:४, ५, NW) विश्वासी, आदरणीय अभिषिक्त अध्यक्षों को प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में यीशु के दाहिने हाथ में, अर्थात् उसके नियंत्रण और निर्देशन के अधीन चित्रित किया गया है। (प्रकाशितवाक्य १:१६, २०; २:१) अभिषिक्त जनों ने १९३५ से एक बढ़ती ही जाने वाली “बड़ी भीड़” से, जिसकी आशा “बड़े क्लेश” से बच निकलना और अनन्त काल तक परादीस पृथ्वी पर जीवित रहना है, वफ़ादार सहायता पायी है। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १०, १४-१७) जैसे-जैसे “मेम्ने का ब्याह” क़रीब आता जा रहा है, इनमें से ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को अभिषिक्त शासी निकाय द्वारा पूरी पृथ्वी पर यहोवा के गवाहों की ६६,००० से भी ज़्यादा कलीसियाओं में प्राचीनों और न्यायियों के रूप में काम करने के लिये नियुक्त किया जा रहा है।a (प्रकाशितवाक्य १९:७-९) ख़ास स्कूलों के द्वारा, इन्हें “नई पृथ्वी” समाज में ज़िम्मेदारी सम्भालने के लिये प्रशिक्षित किया जा रहा है। (२ पतरस ३:१३) बहुत से देशों में १९९१ के अन्त में हुए किंगडम मिनिस्ट्री स्कूल ने न्यायिक मुकद्दमों को सही तरह निपटाने पर ज़ोर दिया। प्राचीन जो न्यायियों के रूप में काम करते हैं, यहोवा और मसीह यीशु की, जिनका न्याय सच्चा और धर्मी है, नकल करने के लिये बाध्य हैं।—यूहन्ना ५:३०; ८:१६; प्रकाशितवाक्य १९:१, २.
न्यायी जो ‘भय के साथ चलते हैं’
६. न्यायिक कमेटियों में काम करनेवाले प्राचीनों को क्यों ‘भय के साथ चलना चाहिये’?
६ यदि मसीह यहोवा के भय में और उसकी आत्मा की सहायता से न्याय करता है, तो अपरिपूर्ण प्राचीनों को इससे कहीं ज़्यादा करना चाहिये! जब उन्हें न्यायिक कमेटी पर काम करने के लिये नियुक्त किया जाता है, तो उन्हें ‘भय के साथ चलना चाहिये,’ और धार्मिकता से न्याय करने की मदद के लिए पिता से प्रार्थना करनी चाहिये “जो बिना पक्षपात के . . . न्याय करता है।” (१ पतरस १:१७) उन्हें यह याद रखना चाहिये कि वे लोगों की ज़िन्दगी, उनके “प्राणों” के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिसका उन्हें “लेखा देना पड़ेगा।” (इब्रानियों १३:१७) इस नज़रिये से, निश्चित रूप से उन्हें यहोवा के समक्ष ऐसी किसी भी रोकी जा सकनेवाली न्यायिक ग़लती करने पर लेखा देना पड़ेगा। इब्रानियों १३:१७ पर टिप्पणी करते हुए जे. एच. ए. एब्रॉर्ड ने लिखा: “चरवाहे का कर्त्तव्य है कि उसकी देख-रेख में सौंपे गये प्राणों की रखवाली करे, और . . . उन सब का लेखा दे, उनका जो उसकी ग़लती के कारण खो गये हैं। यह एक गंभीर वचन है। वचन के हर सेवक को यह ध्यान में रखना है कि यह अत्यन्त ज़िम्मेदार पद उसने स्वेच्छा से लिया है।”—यूहन्ना १७:१२; याकूब ३:१ से तुलना कीजिये।
७. (क) आधुनिक दिन के न्यायियों को क्या याद रखना चाहिये, और उनका लक्ष्य क्या होना चाहिये? (ख) प्राचीनों को मत्ती १८:१८-२० से क्या सबक़ सीखना चाहिये?
७ न्यायिक हैसियत से काम करनेवाले प्राचीनों को याद रखना चाहिये कि हर मुकद्दमे के असली न्यायी यहोवा और मसीह यीशु हैं। याद कीजिये की इस्राएल में न्यायियों को क्या कहा गया था: “तुम जो न्याय करोगे, वह मनुष्य के लिए नहीं, यहोवा के लिये करोगे; और वह न्याय करते समय तुम्हारे साथ रहेगा। अब यहोवा का भय तुम में बना रहे; . . . ऐसा करो तो तुम दोषी न ठहरोगे।” (२ इतिहास १९:६-१०) आदरपूर्ण भय के साथ किसी मुकद्दमे का न्याय कर रहे प्राचीनों को इस बात पर निश्चित होने का भरसक प्रयत्न करना चाहिये कि वास्तव में यहोवा ‘न्याय करते समय उनके साथ है।’ जिस ढंग से यहोवा और मसीह उस मुकद्दमे को देखते हैं उसी तरह इनके निर्णय को ठीक वैसा प्रतिबिंबित करना चाहिये। वे पृथ्वी पर प्रतीकात्मक रूप से जो ‘बान्धते’ (दोषी पाते) हैं या ‘खोलते’ (निर्दोषी पाते) हैं स्वर्ग में पहले से ही बंधा या खुला होना चाहिये—जैसे परमेश्वर के प्रेरित वचन में लिखित बातों से प्रकट होता है। यदि वे यहोवा से यीशु के नाम से प्रार्थना करें, तो यीशु “उन के बीच में” उनकी मदद करने के लिये होगा। (मत्ती १८:१८-२०, फुटनोट; प्रहरीदुर्ग, अक्तूबर १, १९९२, पृष्ठ ९) न्यायिक सुनवाई के समय के माहौल को यह दिखाना चाहिये कि मसीह सचमुच उनके बीच में है।
पूरे समय के चरवाहे
८. जैसा कि यहोवा और यीशु मसीह के सोदाहरण द्वारा प्रदर्शित किया गया, झुंड के प्रति प्राचीनों की मुख्य ज़िम्मेदारी क्या है? (यशायाह ४०:१०, ११; यूहन्ना १०:११, २७-२९)
८ प्राचीन पूरे समय न्याय नहीं करते। वे पूरे समय के चरवाहे हैं। वे चंगा करनेवाले हैं, सज़ा देनेवाले नहीं। (याकूब ५:१३-१६) अध्यक्ष के लिये यूनानी शब्द (ए·पीʹस्को·पस) के पीछे मूल विचार सुरक्षित देख-रेख का है। द थियोलॉजिकल डिक्शनरि ऑफ द न्यू टॅस्टामेन्ट (The Theological Dictionary of the New Testament) कहती है: “[१ पतरस २:२५ में] चरवाहा [ए·पीʹस्को·पस] शब्द रखवाली या रक्षा करने के चरागाही काम को सूचित करता है।” हाँ, उनकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी भेड़ों की रखवाली और रक्षा करना है, उन्हें झुंड के अन्दर रखना है।
९, १०. (क) प्राचीनों के पहले कर्तव्य पर पौलुस ने किस प्रकार ज़ोर दिया, अतः क्या प्रश्न उचित ही पूछा जा सकता है? (ख) प्रेरितों के काम २०:२९ में पौलुस के शब्द क्या सूचित करते हैं, अतः प्राचीन किस प्रकार न्यायिक मुकद्दमों की संख्या कम करने की कोशिश कर सकते हैं?
९ इफिसुस की कलीसिया के प्राचीनों से बोलते हुए, प्रेरित पौलुस वहाँ ज़ोर देता है जहाँ उसे देना चाहिये: “अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो; जिस में पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है; कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उस ने अपने लोहू से मोल लिया है।” (प्रेरितों २०:२८) पौलुस रखवाली को, न कि सज़ा देने को विशिष्ट करता है। कुछ प्राचीनों के लिये निम्नलिखित प्रश्न पर विचार करना भला होगा: ‘यदि हम रखवाली के काम में ज़्यादा समय और मेहनत लगाते तो क्या हम क़ाफी समय नहीं बचा सकते जो न्यायिक मुकद्दमों के निपटाने की जाँच में लगता है?’
१० यह सच है कि पौलुस ने ‘फाड़नेवाले भेड़ियों’ के विरुद्ध चेतावनी दी थी। लेकिन क्या उसने ‘झुंड की स्नेह से देख-रेख न करने’ के लिये उनकी निन्दा नहीं की? (प्रेरितों २०:२९, NW) और जबकि उसने यह संकेत दिया कि विश्वासी अध्यक्षों को इन ‘भेड़ियों’ को निकाल देना चाहिए, क्या उसके शब्द यह नहीं दिखाते की प्राचीनों को झुंड के दूसरे सदस्यों की ‘स्नेह से देख-रेख’ करनी चाहिये? जब एक भेड़ आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर हो जाती है और परमेश्वर की सेवा करना बंद कर देती है, तब उसे किस की ज़रूरत है—पिटाई की या चंगाई की, सज़ा की या रखवाली की? (याकूब ५:१४, १५) इसलिये, प्राचीनों को रखवाली के कार्य के लिये नियमित रूप से समय नियुक्त करना चाहिये। इससे पाप के घेरे में आए हुए मसीहियों से संबन्धित समय लेने वाले न्यायिक मामलों में कम समय खर्च करने का आनन्दपूर्ण परिणाम आ सकता है। प्राचीनों की पहली चिन्ता राहत और ताज़गी देने की होनी चाहिये, इस प्रकार यहोवा के लोगों के बीच शांति, प्रशांति, और सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।—यशायाह ३२:१, २.
परोपकारी चरवाहे और न्यायियों के रूप में सेवा करना
११. न्यायिक कमेटियों में काम करनेवाले प्राचीनों को निष्पक्षता और “जो ज्ञान ऊपर से आता है” उसकी ज़रूरत क्यों है?
११ इससे पहले की एक मसीही ग़लत कदम उठाए, ज़्यादा प्रबल रखवाली करना यहोवा के लोगों के बीच न्यायिक मामलों को काफ़ी कम कर सकती है। (गलतियों ६:१ से तुलना कीजिये.) फिर भी, मानवी पाप और अपरिपूर्णता के कारण, समय समय पर मसीही अध्यक्षों को अपराध के मामलों से निपटना पड़ता है। किन सिद्धान्तों से उनका मार्गदर्शन होना चाहिये? ये मूसा के समय से या आरम्भिक मसीहियों के समय से बदले नहीं हैं। इस्राएल में न्यायियों को सम्बोधित मूसा के शब्द आज भी मान्य हैं: “तुम अपने भाइयों के मुकद्दमे सुना करो, और उनके बीच . . . धर्म से न्याय किया करो। न्याय करते समय किसी का पक्ष न करना।” (व्यवस्थाविवरण १:१६, १७) “जो ज्ञान ऊपर से आता है” उसकी एक विशेषता निष्पक्षता है, वह ज्ञान जो न्यायिक कमेटियों पर सेवा करने वाले प्राचीनों के लिये बहुत ज़रूरी है। (याकूब ३:१७; नीतिवचन २४:२३) ऐसा ज्ञान उन्हें कमज़ोरी और दुष्टता के दरमियान फ़रक समझने में मदद करेगा।
१२. किस अर्थ में न्यायियों को केवल धर्मी जन ही नहीं बल्कि भले मनुष्य भी होने की ज़रूरत है?
१२ भले और बुरे के यहोवा के स्तरों के अनुसार प्राचीनों को “धर्म से न्याय” करना चाहिये। (भजन १९:९) फिर भी, धर्मी जन बनने का प्रयास करने के साथ-साथ उन्हें भले मनुष्य बनने की भी कोशिश करनी चाहिये, जिस अर्थ में पौलुस ने रोमियों ५:७, ८ में इनके बीच भेद किया। इन आयतों पर टिप्पणी करते हुए “धार्मिकता” पर अपने लेख में कार्य इनसाइट ऑन द स्क्रिपचर्स (Insight on the Scriptures) कहता है: “यूनानी शब्द का प्रयोग दिखाता है कि भले काम के लिये उल्लेखनीय, या पहचाना जानेवाला व्यक्ति वह है जो शुभचिन्तक (भला करने के लिये या दूसरों को फ़ायदा पहुँचाने के लिये तैयार) है और परोपकारी (ऐसी भलाई सक्रिय रूप व्यक्त करता) है। दूसरों के लिये हितकारी लिहाज़ से और उन्हें फ़ायदा पहुँचाने और मदद करने की इच्छा से प्रेरित होकर, वह केवल न्याय की मांग को ही पूरा नहीं करता बल्कि उससे ज़्यादा करता है।” (खंड २, पृष्ठ ८०९) वे प्राचीन जो केवल धर्मी ही नहीं बल्कि भले भी हैं अपराधियों के साथ दयापूर्ण लिहाज़ से बर्ताव करेंगे। (रोमियों २:४) उन्हें दया और सहानुभूति दिखाने की चाहत होनी चाहिये। जबकि अपराधी शुरू में उनके प्रयासों के प्रति अनुक्रिया न दिखाए, फिर भी उन्हें उसे यह समझने के लिए भरसक मदद करनी चाहिए कि पश्चात्ताप करना ज़रूरी है।
सुनवाइयों के समय सही रवैया
१३. (क) जब एक प्राचीन न्यायी के रूप में काम करता है, वह फिर भी क्या रहता है? (ख) पौलुस द्वारा दी गयी कौनसी सलाह न्यायिक सुनवाइयों पर भी लागू होती है?
१३ जब स्थिति न्यायिक सुनवाई की मांग करती है, अध्यक्षों को यह नहीं भूलना चाहिये कि वे अब भी चरवाहे हैं, जो ‘अच्छे चरवाहे’ के अधीन यहोवा की भेड़ों के साथ व्यवहार कर रहे हैं। (यूहन्ना १०:११) मुश्किल में पड़ी भेड़ों को नियमित मदद देने की पौलुस की सलाह न्यायिक सुनवाइयों के समय भी उतनी ही मान्यता के साथ लागू होती है। उसने लिखा: “हे भाइयो, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा भी जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी चौकसी रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो। तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।”—गलतियों ६:१, २.b
१४. अध्यक्षों को न्यायिक सुनवाइयों को किस नज़रिये से देखना चाहिये, और अपराधी के प्रति उनका रवैया कैसा होना चाहिये?
१४ अपने आपको सज़ा देने के लिये एकत्रित प्रधान न्यायी समझने के बजाय, न्यायिक कमेटी में काम करनेवाले प्राचीनों को, सुनवाई को अपने रखवाली कार्य का एक और पहलू समझना चाहिये। यहोवा की एक भेड़ मुसीबत में है। उसे बचाने के लिये वे क्या कर सकते हैं? झुंड से भटकी हुई इस भेड़ की मदद करने के लिये क्या बहुत देर हो चुकी है? हम आशा करेंगे कि ऐसा नहीं है। प्राचीनों को, जहाँ उचित है वहाँ दया दिखाने के प्रति सकारात्मक नज़रिया रखना चाहिये। ऐसा नहीं कि यदि कोई गंभीर पाप किया गया है तो उन्हें यहोवा के स्तरों को नीचा करना चाहिये। लेकिन उनकी ऐसी परिस्थितियों के बारे में अवगत रहना, जो किसी अपराध को समझने में सहायक हों जहाँ संभव है वहाँ दया दिखाने में, उनकी मदद करेगी। (भजन १०३:८-१०; १३०:३) दुःख के साथ कहना पड़ता है कि कुछ अपराधी अपने रवैये में इतने ढीठ होते हैं कि प्राचीन दृढ़ता दिखाने के लिये बाध्य हो जाते हैं, लेकिन वे कभी कठोरता नहीं दिखाते।—१ कुरिन्थियों ५:१३.
न्यायिक सुनवाइयों का मक़सद
१५. जब व्यक्तियों के बीच गंभीर समस्या उठ खड़ी होती है, तो सबसे पहले किस बात का पता लगाना चाहिये?
१५ जब व्यक्तियों के बीच कोई गंभीर समस्या उठ खड़ी होती है, तो बुद्धिमान प्राचीन पहले यह पता करेंगे कि क्या उन्होंने जो इसमें शामिल हैं मत्ती ५:२३, २४ या मत्ती १८:१५ की आत्मा में मामले को आपस में सुलझाने की कोशिश की है। यदि यह विफल हुआ, तो शायद एक या दो प्राचीनों की सलाह काफ़ी रहेगी। न्यायिक कार्रवाई की ज़रूरत केवल तब ही होगी यदि कोई गंभीर पाप किया गया है जिससे कि बहिष्कृत किया जा सकता है। (मत्ती १८:१७; १ कुरिन्थियों ५:११) न्यायिक कमेटी बनाने के लिये ठोस शास्त्रीय आधार होना चाहिये। (प्रहरीदुर्ग, अगस्त १, १९९१, पृष्ठ २० देखिये.) जब एक कमेटी बनायी जाती है, तब ख़ास मुकद्दमे के लिये सबसे योग्य प्राचीनों का चुनाव किया जाना चाहिये।
१६. न्यायिक सुनवाइयों के द्वारा प्राचीन क्या पाने की कोशिश करते हैं?
१६ न्यायिक सुनवाइयों के द्वारा प्राचीन क्या पाने की कोशिश करते हैं? पहला, सत्य को जाने बिना धार्मिकता से न्याय करना असंभव है। जैसा कि इस्राएल में था, गंभीर मामलों की ‘भली-भांति पूछपाछ’ करनी चाहिये। (व्यवस्थाविवरण १३:१४; १७:४) अतः, मुकद्दमे की सच्चाइयाँ खोजना सुनवाई का एक लक्ष्य है। लेकिन यह प्रेम के साथ हो सकता है और होना चाहिये। (१ कुरिन्थियों १३:४, ६, ७) सच्चाई का पता चल जाने के बाद, प्राचीन कलीसिया को सुरक्षित रखने के लिये और उसमें यहोवा के ऊँचे स्तरों को और उसकी आत्मा के पूर्ण प्रवाह को बनाये रखने के लिये जो भी ज़रूरी है उसे करेंगे। (१ कुरिन्थियों ५:७, ८) फिर भी, सुनवाई का एक मक़सद संकट में पड़े पापी को बचाने का है, यदि ऐसा संभव है।—लूका १५:८-१० से तुलना कीजिये.
१७. (क) सुनवाई के दौरान अभियुक्त के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिये, और ऐसा किस मक़सद से करना चाहिये? (ख) ऐसा करने के लिये न्यायिक कमेटी के सदस्यों को किस चीज़ की ज़रूरत होगी?
१७ एक अभियुक्त के साथ परमेश्वर की भेड़ होने के अलावा अन्य तरह का व्यवहार कभी भी नहीं किया जाना चाहिये। उसके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिये। यदि पाप किया गया (या किये गये) हैं, तो धर्मी न्यायियों का मक़सद पापी को पुनः समंजन करना, उसके किये की ग़लती को समझना, पश्चात्ताप करना, और इस प्रकार “शैतान के फंदे” से निकलने में मदद करना होगा। इसमें ‘शिक्षा देने के कौशल’ और ‘नम्रता से समझाने’ की ज़रूरत होगी। (२ तीमुथियुस २:२४-२६; ४:२, NW) तब क्या यदि इसके बाद पापी स्वीकार करता है कि उसने पाप किया है, वास्तव में हृदय से दुःखी होता है, और यहोवा से क्षमा मांगता है? (प्रेरितों २:३७ से तुलना कीजिये.) यदि कमेटी को यह विश्वास हो जाता है कि वह सचमुच मदद चाहता है तब आम तौर पर उसे बहिष्कृत करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।—द वॉचटावर, जनवरी १, १९८३, पृष्ठ ३१, परिच्छेद १, देखिये.
१८. (क) अपराधी को बहिष्कृत करने के लिये न्यायिक कमेटी को कब दृढ़ता दिखानी चाहिये? (ख) किस हृदयविदारक स्थिति को नज़र में रखते हुए प्राचीनों को भटकती भेड़ों के हित में यत्न करना चाहिये?
१८ दूसरी ओर, जब न्यायिक कमेटी के सदस्यों को अनुताप रहित धर्मत्याग, यहोवा के नियमों के विरुद्ध जानबूझकर किया हुआ विद्रोह, या बिलकुल दुष्ट व्यवहार के स्पष्ट मामले का सामना करना पड़ता है, तो उनका यह कर्तव्य है कि कलीसिया के दूसरे सदस्यों को सुरक्षित रखने के लिये पश्चात्ताप रहित अपराधी को बहिष्कृत कर दें। न्यायिक कमेटी अपराधी से बार-बार मिलने या उसके मुँह में शब्द डालने के लिये, उसे ज़बरदस्ती पश्चात्ताप करने की कोशिश करने के लिये बाध्य नहीं है, यदि यह स्पष्ट है कि उसमें ईश्वरीय शोक की कमी है।c हाल के वर्षों में संसार भर में लगभग १ प्रतिशत प्रचारक बहिष्कृत किये गये हैं। इसका अर्थ यह है कि झुंड में रहने वाली सौ भेड़ों में से एक—कम से कम कुछ समय के लिये तो खो ही जाती है। उस समय और प्रयास को ध्यान में रखते हुए जो एक व्यक्ति को झुंड में लाने के लिये लगता है, क्या यह जानना हृदयविदारक नहीं है कि हर वर्ष कई हज़ारों को “शैतान को सौंपा” जाता है?—१ कुरिन्थियों ५:५.
१९. न्यायिक कमेटी पर काम करनेवाले प्राचीनों को क्या कभी नहीं भूलना चाहिये, अतः उनका लक्ष्य क्या होगा?
१९ न्यायिक मुकद्दमों को शुरू करते समय प्राचीनों को याद रखना चाहिये कि कलीसिया में पाप के अधिकांश मुकद्दमे कमज़ोरी से, न कि दुष्टता से संबद्ध होते हैं। उन्हें यीशु के खोई हुई भेड़ के दृष्टांत को कभी नहीं भूलना चाहिये, जिसका निष्कर्ष उसने इन शब्दों में दिया: “मैं तुम से कहता हूं; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्नानवे ऐसे धर्मियों के विषय नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं।” (लूका १५:७) वास्तव में, “प्रभु . . . नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (२ पतरस ३:९) ऐसा हो कि यहोवा की मदद के साथ, संसार भर में न्यायिक कमेटियाँ अपनी भरसक कोशिशों से अपराधियों को पश्चात्ताप करने, और फिर से अनन्त जीवन की ओर ले जाने वाले सकरे मार्ग पर चलने की ज़रूरत दिखाकर स्वर्ग में आनन्द लाएँ।—मत्ती ७:१३, १४.
[फुटनोट]
a यीशु के दाहिने हाथ में होने से संबन्धित उन प्राचीनों की स्थिति के विषय में जो अन्य भेड़ों में से हैं, वॉचटावर बाइबल एंड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक रेवलेशन—इटस् ग्रैंड क्लाइमैक्स एट हैंड! (Revelation—Its Grand Climax At Hand!), के पृष्ठ १३६, फुटनोट को देखिये।
b प्रहरीदुर्ग, अगस्त १, १९९२, पृष्ठ २९ देखिये।
c द वॉचटावर, सितम्बर १, १९८१, पृष्ठ २६, परिच्छेद २४ देखिये.
पुनर्विचार के प्रश्न
▫ महान चरवाहे और अच्छे चरवाहे के उदाहरण पर चलते हुए, प्राचीनों की मुख्य चिन्ता क्या होनी चाहिये?
▫ किस प्रकार प्राचीन न्यायिक मुकद्दमों की संख्या कम करने की कोशिश कर सकते हैं?
▫ किस अर्थ में न्यायियों को केवल धर्मी होने की ही नहीं बल्कि भला होने की भी ज़रूरत है?
▫ सुनवाई के दौरान अपराधी के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिये, और किस मक़सद से किया जाना चाहिये?
▫ बहिष्कृत करना अंतिम उपाय क्यों है?
[पेज 16 पर तसवीरें]
जब सही रखवाली की जाती है, तब बहुत से न्यायिक मुकद्दमे टल जाते हैं
[पेज 18 पर तसवीरें]
न्यायिक सुनवाई के दौरान भी, प्राचीनों को अपराधी को नम्रता की आत्मा में पुनः समंजित करने की कोशिश करनी चाहिये