यहोवा से प्यार करनेवालों को “कुछ ठोकर नहीं लगती”
“तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती।”—भज. 119:165.
1. एक धावक का रवैया कैसे दिखाता है कि हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए?
मैरी डेकर करीब 14-15 साल की उम्र से ही दुनिया के सबसे बेहतरीन धावकों में से एक थी। सन् 1984 के ऑलम्पिक खेल में हुई 3,000 मीटर की आखिरी दौड़ में जब उसने हिस्सा लिया, तो लोगों को यही लगा कि वही स्वर्ण पदक जीतेगी। लेकिन वह अपनी दौड़ पूरी नहीं कर पायी, क्योंकि वह दूसरे धावक के पैर से ठोकर खाकर मुँह के बल गिर पड़ी। उसे काफी चोट आयी और वह रो पड़ी। उसे उठाकर बाहर ले जाया गया। लेकिन मैरी ने हार नहीं मानी। एक साल से भी कम समय में उसने फिर से दौड़ना शुरू किया और सन् 1985 में हुई महिलाओं की दौड़ में उसने विश्व स्तर पर एक नया रिकॉर्ड बनाया।
2. सच्चे मसीही किस मायने में एक दौड़ में शामिल हैं? और हमारा लक्ष्य क्या होना चाहिए?
2 मसीही होने के नाते हम भी एक लाक्षणिक दौड़ में शामिल हैं। और हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हम इस दौड़ में जीत हासिल करें। यह दौड़ कोई कम फासले की दौड़ नहीं है जिसे तेज़ी से दौड़कर पूरा किया जा सके। और न ही यह ऐसी दौड़ है जिसमें एक इंसान थकने पर बीच-बीच में रुक सकता है, जैसे जॉगिंग करते वक्त। बल्कि इसकी तुलना लंबी दौड़ से की जा सकती है, जिसे जीतने के लिए धीरज का गुण ज़रूरी है। कुरिंथ शहर खेल-कूद की प्रतियोगिताओं के लिए जाना जाता था। इसलिए प्रेषित पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को लिखे अपने खत में एक धावक का उदाहरण दिया। उसने लिखा: “क्या तुम नहीं जानते कि दौड़ में दौड़नेवाले सभी दौड़ते हैं, मगर इनाम एक ही को मिलता है? तुम इस तरह से दौड़ो कि इनाम पा सको।”—1 कुरिं. 9:24.
3. लाक्षणिक दौड़ खेल-कूद की ज़्यादातर प्रतियोगिताओं से कैसे अलग है?
3 बाइबल हम सभी को इस लाक्षणिक दौड़ में दौड़ने के लिए कहती है। (1 कुरिंथियों 9:25-27 पढ़िए।) इस दौड़ में जीतने का इनाम है हमेशा की ज़िंदगी, फिर चाहे यह अभिषिक्त मसीहियों के लिए स्वर्ग में हो या दूसरे मसीहियों के लिए धरती पर। यह दौड़ खेल-कूद की ज़्यादातर प्रतियोगिताओं की तरह नहीं है क्योंकि इसमें उन सभी को इनाम मिलता है जो इसमें हिस्सा लेते हैं और धीरज धरते हुए अपनी दौड़ पूरी करते हैं। (मत्ती 24:13) इस दौड़ में प्रतियोगी तभी हारते हैं जब वे नियमों के मुताबिक नहीं दौड़ते या सीमा-रेखा पार नहीं करते। सिर्फ यही वह दौड़ है जिसमें इनाम के तौर पर हमें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी।
4. हमेशा की ज़िंदगी पाने में क्या बात हमारी दौड़ में रुकावट बन सकती है?
4 लेकिन जीवन की दौड़ में सीमा-रेखा पार करना इतना आसान नहीं। इसके लिए कड़े अनुशासन और इनाम पर नज़र रखने की ज़रूरत है। अब तक सिर्फ एक ही इंसान है जो बिना ठोकर खाए इस सीमा-रेखा को पार कर पाया है। वह है यीशु मसीह। लेकिन मसीह के पीछे चलनेवालों के बारे में चेले याकूब ने लिखा कि वे ‘कई बार ठोकर खाते हैं।’ (याकू. 3:2, फुटनोट) यह बात कितनी सच है! हमारी और दूसरों की असिद्धताओं की वजह से हो सकता है हम ठोकर खाएँ, लड़खड़ाएँ और हमारी गति धीमी पड़ जाए। हम शायद गिर भी पड़ें, लेकिन हम उठते हैं और फिर से दौड़ना शुरू कर देते हैं। कुछ धावक इस दौड़ में इतनी बुरी तरह गिरे हैं कि उन्हें दोबारा उठकर दौड़ने के लिए मदद की ज़रूरत पड़ी है। इसलिए इस बात में कोई ताज्जुब नहीं कि हम एक बार या कई बार ठोकर खाएँ या गिरें।—1 राजा 8:46.
अगर आप ठोकर खाएँ तब भी दौड़ते रहिए
5, 6. (क) किस मायने में हम कह सकते हैं कि एक मसीही को “कुछ ठोकर नहीं लगती”? क्या बात उसकी मदद करेगी कि वह दोबारा “उठ खड़ा” हो? (ख) कुछ लोग ठोकर खाने पर क्यों नहीं उठते?
5 जब एक इंसान गलती करता है या यहोवा के साथ उसका रिश्ता कमज़ोर पड़ जाता है, तो शायद इसके लिए हम शब्द “ठोकर” और “गिरना” अदल-बदल कर इस्तेमाल करते हों। बाइबल में दिए इन शब्दों का यही मतलब हो सकता है, लेकिन हमेशा नहीं। उदाहरण के लिए, गौर कीजिए कि नीतिवचन 24:16 में कैसे इन दो शब्दों में फर्क बताया गया है: “धर्मी चाहे सात बार गिरे, फिर भी उठ खड़ा होगा; परन्तु दुष्ट लोग विपत्ति के समय ठोकर खाकर गिर पड़ते हैं।” (अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन)
6 लेकिन जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं उन्हें वह इस हद तक ठोकर खाने या गिरने नहीं देता कि वे दोबारा उठ न सकें। यानी यहोवा अपने सेवकों पर ऐसी मुसीबत नहीं आने देता या उनके विश्वास की ऐसी परीक्षा नहीं लेता जिससे वे उबर न सकें। हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा ‘उठने’ में हमारी मदद करेगा ताकि हम उसकी सेवा में अपना भरसक कर सकें। जो यहोवा से दिल से प्यार करते हैं उनके लिए यह क्या ही सुकून की बात है! लेकिन दुष्ट लोग ठोकर खाकर उठना नहीं चाहते। वे न तो परमेश्वर की पवित्र शक्ति से, न ही उसके लोगों से मदद माँगते हैं या जब उन्हें मदद दी जाती है तो वे इसे ठुकरा देते हैं। इसके उलट, ‘यहोवा की व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों’ को ऐसी कोई ठोकर नहीं लगती, जो उन्हें जीवन की दौड़ से हमेशा के लिए बाहर कर दे।—भजन 119:165 पढ़िए।
7, 8. एक इंसान क्या कर सकता है कि ‘गिरने’ पर भी परमेश्वर की मंज़ूरी उस पर बनी रहे?
7 कुछ लोग किसी कमज़ोरी की वजह से एक बार या फिर बार-बार छोटे-मोटे पाप करते हैं। लेकिन अगर वे ‘उठने’ की कोशिश करते रहें यानी दिल से पश्चाताप करें और फिर से यहोवा की वफादारी से सेवा करने लगें, तो उसकी मंज़ूरी उन पर बनी रहती है। प्राचीन इसराएल के साथ परमेश्वर जिस तरह पेश आया था, यह उस बात का सबूत है। (यशा. 41:9, 10) नीतिवचन 24:16 जिसका ज़िक्र पहले किया गया था, हमारे ‘गिरने’ पर ज़ोर देने के बजाय परमेश्वर की मदद से हमारे दोबारा ‘उठ खड़े’ होने पर ज़ोर देती है। (यशायाह 55:7 पढ़िए।) यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह को यकीन है कि हम उठ खड़े हो सकते हैं और इसलिए वे प्यार से हमसे गुज़ारिश करते हैं कि हम ‘उठ खड़े हों।’—भज. 86:5; यूह. 5:19.
8 अगर एक धावक दौड़ते-दौड़ते ठोकर खा जाए या गिर भी पड़े, और अगर समय रहते वह फौरन उठ खड़ा हो, तो वह अपनी दौड़ पूरी कर सकता है। जहाँ तक हमारी बात है, हम “उस दिन और उस वक्त” के बारे में नहीं जानते कि कब हमेशा की ज़िंदगी पाने की हमारी दौड़ पूरी होगी। (मत्ती 24:36) इसलिए हम जितना कम ठोकर खाएँगे, उतना ही ज़्यादा हम इस दौड़ में बने रहेंगे, हमारी रफ्तार धीमी नहीं पड़ेगी और इस दौड़ को पूरा करने में सफल हो पाएँगे। तो फिर हम ठोकर खाने से कैसे बच सकते हैं?
ठोकर दिलानेवाली बातें
9. हम ठोकर दिलानेवाली किन-किन बातों पर गौर करेंगे?
9 आइए अब हम ठोकर दिलानेवाली पाँच बातों पर गौर करें: हमारी अपनी कमज़ोरियाँ, शरीर की ख्वाहिशें, जब भाई-बहन हमारे साथ अन्याय करते हैं, क्लेश या ज़ुल्म और दूसरों की असिद्धताएँ। अगर हम ठोकर खाते हैं, तो याद रखिए कि यहोवा तुरंत हमें विश्वासघाती नहीं मान बैठता। वह हमारे मामले में सब्र दिखाता है।
10, 11. दाविद को अपनी किस कमज़ोरी से जूझना पड़ा?
10 हमारी अपनी कमज़ोरियों की तुलना छोटे-छोटे पत्थरों से की जा सकती है जो पटरी पर बिखरे होते हैं। अगर हम राजा दाविद और प्रेषित पतरस की ज़िंदगी से जुड़ी कुछ घटनाओं पर गौर करें तो हम दो कमज़ोरियों के बारे में जान पाएँगे, खुद पर काबू न रख पाना और इंसान का डर।
11 बतशेबा के मामले में राजा दाविद ने खुद पर काबू न रख पाने की कमज़ोरी दिखायी। और जब नाबाल ने दाविद की बेइज़्ज़ती की, तो वह गुस्से से बेकाबू हो उठा और नाबाल को खत्म करने निकल पड़ा। जी हाँ, कई मौकों पर दाविद खुद पर काबू नहीं रख पाया। लेकिन उसने हार नहीं मानी और यहोवा को खुश करने की अपनी कोशिश में लगा रहा। दूसरों की मदद से वह यहोवा के साथ अपना रिश्ता फिर से बना पाया।—1 शमू. 25:5-13, 32, 33; 2 शमू. 12:1-13.
12. ठोकर खाने के बावजूद भी पतरस कैसे दौड़ में बना रहा?
12 पतरस की कमज़ोरी थी इंसानों का डर, जिसकी वजह से उसने कई बार बुरी तरह ठोकर खायी। लेकिन फिर भी वह यीशु और यहोवा का वफादार बना रहा। उदाहरण के लिए, उसने एक नहीं बल्कि तीन बार सबके सामने अपने मालिक को जानने से इनकार किया। (लूका 22:54-62) एक और मौके पर पतरस एक मसीही की तरह पेश आने से चूक गया। यहूदी मसीहियों के डर से वह विश्वास दिखानेवाले गैर-यहूदियों के साथ इस तरह बर्ताव करने लगा मानो वे खतनावालों के जितने नेक न हों। लेकिन प्रेषित पौलुस जानता था कि मंडली में इस तरह का भेदभाव ठीक नहीं। पतरस का नज़रिया गलत था। इससे पहले कि पतरस के व्यवहार से भाइयों का रिश्ता खट्टा पड़ जाता, पौलुस ने पतरस के मुँह पर उसे ताड़ना दी। (गला. 2:11-14) क्या इससे पतरस के अहंकार को इतनी ठेस पहुँची कि उसने ज़िंदगी की दौड़ में हार मान ली? नहीं! उसने पौलुस की ताड़ना पर गंभीरता से सोचा, उसे कबूल किया और दौड़ में आगे बढ़ता गया।
13. खराब सेहत कैसे हमारे लिए ठोकर का कारण बन सकती है?
13 कभी-कभी हमारी खराब सेहत हमारे लिए एक कमज़ोरी या ठोकर का कारण बन सकती है। इसकी वजह से ज़िंदगी की दौड़ में हमारी रफ्तार शायद धीमी पड़ जाए, हम लड़खड़ाने लगें और हार मान लें। उदाहरण के लिए, जापान की एक बहन को बपतिस्मे के 17 साल बाद कोई बीमारी हो गयी। अपनी बीमारी को लेकर वह इतनी परेशान रहने लगी कि परमेश्वर की सेवा में उसका जोश कम होता गया। धीरे-धीरे वह सच्चाई में ठंडी पड़ गयी। दो प्राचीन उससे मिलने गए। उनके प्यार-भरे शब्दों ने उसकी इतनी हिम्मत बढ़ायी कि उसने फिर से सभाओं में आना शुरू कर दिया। उस पल को याद करके बहन कहती है, “भाइयों ने जिस तरह प्यार से मेरा स्वागत किया, उसे देखकर मैं अपने आँसू नहीं रोक पायी।” हमारी यह बहन ज़िंदगी की दौड़ में फिर से लौट आयी है।
14, 15. जब बुरी इच्छाएँ उठती हैं, तो कौन-सा ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है? उदाहरण देकर समझाइए।
14 शरीर की ख्वाहिशों की वजह से कई लोगों ने ठोकर खायी है। जब ये ख्वाहिशें हमें लुभाती हैं तो खुद को मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक तौर पर शुद्ध रखने के लिए हमें ठोस कदम उठाना चाहिए। यीशु की वह सलाह याद कीजिए कि जो भी चीज़ हमसे पाप करवा रही हो, चाहे वह हमारी आँख हो या हमारा हाथ, हमें उसे लाक्षणिक तौर पर ‘काटकर फेंक’ देना चाहिए। इसमें अनैतिक सोच और काम भी शामिल हैं, जिनकी वजह से कुछ लोग जीवन की दौड़ से बाहर हो गए हैं।—मत्ती 5:29, 30 पढ़िए।
15 एक भाई, जिसकी परवरिश एक मसीही परिवार में हुई थी, लिखता है कि कई सालों तक वह समलैंगिक इच्छाओं से लड़ता रहा। उसे लगता था जैसे वह दूसरों के साथ घुल-मिल नहीं पा रहा। बीस साल की उम्र में, वह पायनियर सेवा करने लगा और मंडली में एक सहायक सेवक बन गया। फिर उसने एक गंभीर पाप किया, बाइबल से उसे ताड़ना दी गयी और उसने प्राचीनों की मदद कबूल की। और इस तरह प्रार्थना, परमेश्वर के वचन का अध्ययन और दूसरों की मदद करने में लगे रहकर वह जीवन की दौड़ में फिर से शामिल हो गया। कई सालों बाद, वह कबूल करता है: “आज भी मेरे अंदर कभी-कभी वही गलत इच्छाएँ उठती हैं, लेकिन मैं उन्हें अपने ऊपर हावी नहीं होने देता। मैंने सीखा है कि यहोवा आपको ऐसी परीक्षा में नहीं पड़ने देता जिसका आप सामना न कर सकें। परमेश्वर जानता है कि मैं इस परीक्षा का सामना कर सकता हूँ, इसलिए वह मुझे इससे गुज़रने देता है।” आखिर में यह भाई कहता है: “मैंने अब तक जितना भी संघर्ष किया है, उसका फल मुझे नयी दुनिया में ज़रूर मिलेगा। इसलिए उस वक्त का मुझे बेसब्री से इंतज़ार है! तब तक अगर मुझे अपनी इच्छाओं से लड़ना पड़े तो मैं लड़ूँगा।” इस भाई ने ठान लिया है कि वह जीवन की दौड़ में बना रहेगा।
16, 17. (क) एक भाई को कैसे मदद मिली, जिसे लगा कि उसके साथ अन्याय हुआ है? (ख) ठोकर खाने से बचने के लिए, हमें किस बात पर अपना ध्यान लगाए रखना चाहिए?
16 हमें इस बात से भी ठोकर लग सकती है कि भाई-बहनों ने हमारे साथ अन्याय किया है। फ्राँस में एक भाई को, जो पहले एक प्राचीन था, लगा कि मंडली में उसके साथ अन्याय हुआ है और उसने अपने मन में कड़वाहट पाल ली। नतीजा यह हुआ कि उसने मंडली के साथ संगति करना बंद कर दिया और सच्चाई में ठंडा पड़ गया। दो प्राचीन उससे मिलने गए। जो कुछ इस भाई के साथ हुआ था, उस बारे में जब वह अपना नज़रिया बताने लगा तो उन्होंने बिना बीच में रोके, उसकी बात बड़े ध्यान से सुनी। प्राचीनों ने उसे बढ़ावा दिया कि वह अपना बोझ यहोवा पर डाल दे और इस बात पर ज़ोर दिया कि वह अपना ध्यान यहोवा को खुश करने पर लगाए। इस भाई ने उनकी सलाह मानी और जल्द ही जीवन की दौड़ में वापस शामिल हो गया।
17 सभी मसीहियों के लिए ज़रूरी है कि वे अपना ध्यान असिद्ध इंसानों पर नहीं, बल्कि यीशु मसीह पर लगाए रखें, जिसे मंडली का सिर ठहराया गया है। यीशु, जिसकी आँखें “आग की ज्वाला जैसी” हैं, सभी बातों को सही नज़रिए से देखता है और हमसे बेहतर जानता है कि मंडली में क्या हो रहा है। (प्रका. 1:13-16) मिसाल के लिए, हो सकता है हमें लगे कि मंडली में हमारे साथ कोई अन्याय हुआ है, मगर असल में जो हुआ और जिस वजह से हुआ वह शायद बस एक गलतफहमी हो। यीशु मंडली में उठनेवाली समस्याओं को सही तरीके से और सही समय पर सुलझाएगा। इसलिए आइए हम ठान लें कि भाई-बहनों के काम या उनके फैसले हमारे लिए ठोकर का कारण नहीं बनेंगे।
18. हम किस तरह मुश्किलों का सामना कर सकते हैं?
18 ठोकर दिलानेवाली दो और बातें हैं, क्लेश या ज़ुल्म और मंडली में दूसरों की असिद्धताएँ। बीज बोनेवाले के दृष्टांत में यीशु ने कहा कि वचन की वजह से जब “क्लेश या ज़ुल्म” आता है, तो इससे कुछ लोग ठोकर खा जाते हैं। ज़ुल्म चाहे परिवार, पड़ोसी या सरकारी अधिकारी करें, इससे खासकर उन लोगों को ठोकर लग सकती है जिनमें “जड़ नहीं होती” या जिनका विश्वास मज़बूत नहीं होता। (मत्ती 13:21) इसके बजाय, अगर हम हर हाल में यहोवा के करीब बने रहें तो राज का संदेश हमारे विश्वास की जड़ों को मज़बूत करेगा। मुश्किलें आने पर कोशिश कीजिए कि जो बातें तारीफ के लायक हैं, आप उन पर मनन करें। (फिलिप्पियों 4:6-9 पढ़िए।) यहोवा से ताकत पाकर हम मुश्किलों का सामना कर पाएँगे और ऐसे हालात को अपने लिए ठोकर का कारण नहीं बनने देंगे।
19. जब हमें कोई ठेस पहुँचाता है तो हम क्या नहीं करेंगे?
19 लेकिन दुख की बात है कि कई लोग दूसरों की असिद्धताओं की वजह से जीवन की दौड़ से बाहर हो गए हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने दूसरों को ऐसे काम करते देखकर ठोकर खायी है, जिन्हें करने की उनका ज़मीर इजाज़त नहीं देता। (1 कुरिं. 8:12, 13) अगर कोई हमें ठेस पहुँचाता है, तो क्या हम इतने नाराज़ हो जाते हैं कि सच्चाई ही छोड़ दें? बाइबल मसीहियों को उकसाती है कि वे दोष लगाना बंद करें और दूसरों को माफ करें तब भी जब हमें लगे कि हमारे पास नाराज़ होने का वाजिब कारण है। (लूका 6:37) जब आपको किसी की बात का बुरा लगता है, तो खुद से पूछिए: ‘मैं हर काम अपने तरीके से करना पसंद करता हूँ, क्या यही वजह है कि मुझे दूसरों के तरीकों में दोष नज़र आता है? मैं जानता हूँ कि मेरे भाई असिद्ध हैं, फिर भी क्या मैं उनकी असिद्धता की वजह से सच्चाई छोड़ दूँगा?’ यहोवा के लिए प्यार हमें उभारेगा कि हम अपनी दौड़ पूरी करें और किसी भी इंसान के कामों की वजह से यह दौड़ बीच में ही न छोड़ें।
धीरज से दौड़िए—ठोकर खाने से बचिए
20, 21. आपने जीवन की दौड़ में क्या करने की ठान ली है?
20 क्या आपने ठान लिया है कि आप “अपनी दौड़ पूरी” करेंगे? (2 तीमु. 4:7, 8) इसके लिए निजी अध्ययन करना बहुत ज़रूरी है। बाइबल और हमारे साहित्यों का इस्तेमाल कर खोजबीन कीजिए, मनन कीजिए और उन बातों को पहचानिए जो आपको ठोकर दिला सकती हैं। पवित्र शक्ति के लिए गिड़गिड़ाकर बिनती कीजिए ताकि आपको यहोवा से ज़रूरी ताकत मिल सके। याद रखिए कि जीवन की दौड़ में अगर हम ठोकर खाएँ या गिर भी जाएँ, तो भी हम उठ सकते हैं और अपनी दौड़ पूरी कर सकते हैं। हम अपनी उन गलतियों से सबक सीखकर इस दौड़ में और भी अच्छी तरह दौड़ सकते हैं।
21 बाइबल बताती है कि हमेशा की ज़िंदगी का इनाम पाने के लिए हमें जी-जान लगाकर दौड़ना होगा और सीमा-रेखा पार करनी होगी। यह ऐसा नहीं है कि हम मानो किसी बस में चढ़े और वह हमें अपनी मंज़िल तक पहुँचा दे। जीवन की दौड़ पूरी करने में हमें जी-जान से मेहनत करनी होगी। जब हम ऐसा करेंगे, तो यहोवा की तरफ से हमें “बड़ी शान्ति” मिलेगी। (भज. 119:165) हम यकीन रख सकते हैं कि अगर हम अपनी दौड़ पूरी करें तो यहोवा आज और आनेवाले समय में हमें ढेरों आशीषें देगा।—याकू. 1:12.