विश्वास हमें कर्मों के लिए उकसाता है!
“तू ने देख लिया कि विश्वास ने [इब्राहीम] के कामों के साथ मिलकर प्रभाव डाला है और कर्मों से विश्वास सिद्ध हुआ।”—याकूब २:२२.
१, २. अगर हम विश्वास रखते हैं तो कैसे कर्म करेंगे?
अनेक लोग कहते हैं कि उन्हें परमेश्वर पर विश्वास है। फिर भी ऐसा विश्वास जिसका मात्र दावा किया जाए एक मुर्दे के समान बेजान है। चेले याकूब ने लिखा “विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है।” उसने यह भी कहा कि परमेश्वर का भय माननेवाले इब्राहीम का विश्वास ऐसा था जिसने “उस के कामों के साथ मिलकर प्रभाव डाला।” (याकूब २:१७, २२) ऐसे शब्दों का हमारे लिए क्या महत्त्व है?
२ अगर हमारा विश्वास सच्चा है तो मसीही सभाओं में हमने जो सुना है केवल उस पर यक़ीन ही नहीं करेंगे, बल्कि हम अपने विश्वास का सबूत देंगे क्योंकि हम यहोवा के सक्रिय साक्षी हैं। जी हाँ, विश्वास हमें परमेश्वर के वचन को अपने जीवन में लागू करने के लिए प्रेरित करेगा और काम करने के लिए हमें उकसाएगा।
विश्वास पक्षपात के साथ मेल नहीं खाता
३, ४. दूसरों के साथ हमारे बर्ताव पर विश्वास को कैसे प्रभाव डालना चाहिए?
३ अगर हम परमेश्वर और मसीह में सच्चा विश्वास रखते हैं तो हम पक्षपात नहीं करेंगे। (याकूब २:१-४) याकूब ने जिन्हें लिखा था उनमें से कुछ लोग सच्चे मसीहियों के लिए ज़रूरी निष्पक्षता नहीं दिखा रहे थे। (रोमियों २:११) इसलिए याकूब कहता है: “हमारे महिमायुक्त प्रभु यीशु मसीह का विश्वास तुम में पक्षपात के साथ न हो।” अगर एक धनी अविश्वासी सभा में सोने के छल्ले और सुंदर वस्त्र पहिने हुए आता और साथ ही, एक अविश्वासी “कंगाल भी मैले कुचैले कपड़े पहिने हुए” आता, तो दोनों का अच्छी तरह स्वागत किया जाना था, लेकिन धनवानों को ख़ास महत्त्व दिया जा रहा था। उन्हें “अच्छी जगह” बिठाया जाता था जबकि कंगाल अविश्वासियों को खड़े रहने या किसी के पाँव के पास बैठने के लिये कहा जाता था।
४ यहोवा ने धनवानों और कंगालों दोनों के लिए एक-समान यीशु मसीह का छुड़ौती बलिदान प्रदान किया है। (२ कुरिन्थियों ५:१४) इसलिए, अगर हम केवल धनवानों की आवभगत करें तो हम मसीह के विश्वास से मुकर जाएँगे जो ‘कंगाल बन गया ताकि उसके कंगाल हो जाने से हम धनी हो जाएँ।’ (२ कुरिन्थियों ८:९) तो आइए ग़लत उद्देश्य के साथ मनुष्यों का आदर करने के लिए हम कभी-भी लोगों में ऐसे भेद न करें। परमेश्वर पक्षपाती नहीं है, लेकिन अगर हमने पक्षपात किया, तो हम “कुविचार से न्याय करनेवाले” ठहरेंगे। (अय्यूब ३४:१९) परमेश्वर को प्रसन्न करने की इच्छा के साथ, निश्चित ही हम पक्षपात करने के प्रलोभन में नहीं आएँगे या ‘अपने लाभ के लिये मुंह देखी बड़ाई’ नहीं करेंगे।—यहूदा ४, १६.
५. परमेश्वर ने किसे “विश्वास में धनी” होने के लिए चुना है और पैसे के धनी लोग अकसर कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?
५ याकूब सचमुच के धनवानों की पहचान कराता है और सभी को निष्पक्षता से प्रेम दिखाने का आग्रह करता है। (याकूब २:५-९) ‘परमेश्वर ने इस जगत के कंगालों को चुना है कि विश्वास में धनी हों और राज्य के अधिकारी हों।’ ऐसा इसलिये है क्योंकि कंगाल अकसर सुसमाचार में ज़्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। (१ कुरिन्थियों १:२६-२९) एक वर्ग के तौर पर, धनवान लोग दूसरों को कर्ज़े, तनख्वाह और कानूनी कार्यवाही के मामलों में सताते हैं। वे मसीह के बारे में बुरा-भला बोलते हैं और हमें सताते हैं क्योंकि हम उसका नाम धारण करते हैं। लेकिन हमारा यह दृढ़निश्चय होना चाहिए कि हम “राज्य व्यवस्था” का पालन करेंगे, जो पड़ोसियों से प्रेम की माँग करती है—कि धनवानों और कंगालों दोनों को बराबर प्रेम दिखाएँ। (लैव्यव्यवस्था १९:१८; मत्ती २२:३७-४०) परमेश्वर इसकी माँग करता है, इसलिए पक्षपात करना ‘पाप करना’ है।
“दया न्याय पर जयवन्त होती है”
६. अगर हमने दूसरों के साथ दयापूर्वक व्यवहार नहीं किया तो हम व्यवस्था के तोड़नेवाले कैसे बनते हैं?
६ अगर हम निर्दयता से पक्षपात करते हैं तो हम व्यवस्था के तोड़नेवाले हैं। (याकूब २:१०-१३) इस मामले में कोई ग़लत क़दम उठाने से हम परमेश्वर की पूरी व्यवस्था को तोड़नेवाले बन जाते हैं। वे इस्राएली जिन्होंने व्यभिचार तो नहीं किया लेकिन जो चोर थे, मूसा की व्यवस्था का उल्लंघन करनेवाले ठहरे। मसीही होने के नाते, हमारा न्याय “स्वतंत्रता की व्यवस्था”—नई वाचा में आत्मिक इस्राएल जिनके हृदयों में व्यवस्था बसी है—के द्वारा किया जाता है।—यिर्मयाह ३१:३१-३३.
७. वे लोग परमेश्वर से दया की उम्मीद क्यों नहीं कर सकते जो लगातार पक्षपात करते रहते हैं?
७ अगर हम दावा करें कि हम विश्वास रखते हैं और पक्षपात करते रहें तो हम ख़तरे में हैं। जिन लोगों में प्रेम नहीं और जो निर्दयी हैं उनका न्याय बिना दया के किया जाएगा। (मत्ती ७:१, २) याकूब कहता है: “दया न्याय पर जयवन्त होती है।” अपने हर काम में दया दिखाने के द्वारा अगर हम यहोवा की पवित्र आत्मा की अगुवाई को स्वीकार करते हैं तो हमारे न्याय के वक़्त हमें दोषी नहीं ठहराया जाएगा। इसके बजाय, हम पर दया की जाएगी और इस तरह हम कठोर न्याय या सख़्त सज़ा से बच जाएँगे।
विश्वास भले काम उत्पन्न करता है
८. उस आदमी की क्या दशा है जो कहता तो है कि उसे विश्वास है पर कर्म नहीं करता?
८ हमें प्रेममय और दयावंत बनाने के अलावा, विश्वास अन्य भले काम उत्पन्न करता है। (याकूब २:१४-२६) निश्चय ही, ऐसे विश्वास का दावा करना जो कर्मों के बिना हो, हमें बचा नहीं पाएगा। सच है कि हम व्यवस्था के काम करके परमेश्वर के सामने एक धर्मी के रूप में खड़े होने का हक़ हासिल नहीं कर सकते। (रोमियों ४:२-५) याकूब विश्वास और प्रेम द्वारा, न कि नियम संहिता द्वारा, उकसाए गए कर्मों की चर्चा कर रहा है। अगर हम ऐसे गुणों से प्रेरित होते हैं तो हम ज़रूरतमंद संगी उपासक का अच्छी बातों से ही पेट नहीं भरेंगे। हम कपड़े या खाने के मोहताज भाई-बहन को भौतिक सहायता देंगे। याकूब पूछता है: ‘यदि तुम एक ज़रूरतमंद भाई से कहते हो: “कुशल से जाओ, तुम गरम रहो और तृप्त रहो” पर ज़रूरी वस्तुएँ न दो, तो इससे क्या लाभ?’ कोई लाभ नहीं। (अय्यूब ३१:१६-२२) ऐसा “विश्वास” मरा हुआ है!
९. क्या दिखाता है कि हमें विश्वास है?
९ हम शायद कुछ हद तक परमेश्वर के लोगों के साथ संगति कर रहे हों, लेकिन सिर्फ़ पूरे दिल से किए गए काम ही हमारे विश्वास के दावे का समर्थन कर सकते हैं। यह एक उत्तम बात है यदि हमने त्रियेक के धर्म-सिद्धांत को ठुकरा दिया है और मानते हैं कि केवल एक ही सच्चा परमेश्वर है। फिर भी, मात्र मान लेना विश्वास नहीं है। “दुष्टात्मा भी विश्वास रखते” या मानते हैं और डर के मारे “थरथराते हैं” क्योंकि विनाश उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। अगर हम सचमुच विश्वास रखते हैं तो यह हमें सुसमाचार का प्रचार करने और ज़रूरतमंद संगी विश्वासियों को रोटी-कपड़ा प्रदान करने जैसे कर्म करने के लिए उकसाएगा। याकूब पूछता है: “हे निकम्मे मनुष्य [परमेश्वर के बारे में सही ज्ञान से रहित], क्या तू यह भी नहीं जानता, कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है?” जी हाँ, विश्वास कर्मों की माँग करता है।
१०. इब्राहीम ‘उन सबका पिता’ क्यों कहलाता है ‘जो विश्वास रखते हैं’?
१० धर्मी कुलपिता इब्राहीम के विश्वास ने उसे कर्म करने के लिए उकसाया। ‘उन सबका पिता होने के नाते जो विश्वास रखते हैं’ उसे ‘अपने पुत्र इसहाक को वेदी पर चढ़ाने, से कर्म द्वारा धर्मी ठहराया गया।’ (रोमियों ४:११, १२; उत्पत्ति २२:१-१४) तब क्या होता अगर इब्राहीम के विश्वास में यह कमी होती कि परमेश्वर इसहाक का पुनरुत्थान कर सकता है और उसके द्वारा वंश की अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर सकता है? तब तो इब्राहीम अपने पुत्र की बलि चढ़ाने की कोशिश कभी न करता। (इब्रानियों ११:१९) इब्राहीम के आज्ञाकारी कर्मों से उसका “विश्वास सिद्ध हुआ,” या पूर्ण हुआ। इस तरह, “पवित्र शास्त्र का यह वचन [उत्पत्ति १५:६] पूरा हुआ, कि इब्राहीम ने परमेश्वर की प्रतीति की, और यह उसके लिये धर्म गिना गया।” इसहाक को बलि चढ़ाने की कोशिश में इब्राहीम ने जो कर्म किए, उन्होंने परमेश्वर द्वारा पहले कही गई इस बात की पुष्टि की कि इब्राहीम धर्मी था। विश्वास के कर्मों द्वारा, उसने परमेश्वर के लिए अपना प्रेम ज़ाहिर किया और वह “परमेश्वर का मित्र” कहलाया।
११. राहाब के मामले में हमें विश्वास का क्या प्रमाण मिलता है?
११ इब्राहीम ने साबित किया कि “मनुष्य केवल विश्वास से ही नहीं, बरन कर्मों से भी धर्मी ठहरता है।” यरीहो की एक वेश्या, राहाब के बारे में भी यह सच था। उसे ‘[इस्राएली] दूतों को अपने घर में उतारने, और दूसरे मार्ग से विदा करने से धर्मी ठहराया गया’ जिससे वे अपने कनानी दुश्मनों को चकमा दे सके। इस्राएली भेदियों से मिलने से पहले, उसने यहोवा को सच्चा परमेश्वर मान लिया था और अपने बाद के शब्दों द्वारा और वेश्या का काम छोड़ने के द्वारा उसने अपने विश्वास का प्रमाण दिया। (यहोशू २:९-११; इब्रानियों ११:३१) कर्मों द्वारा दिखाए गए विश्वास के इस दूसरे उदाहरण के बाद याकूब कहता है: “जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है।” जब व्यक्ति मर जाता है तब उसमें कोई जीवनदायक शक्ति, या “आत्मा” नहीं रहती और वह कुछ भी नहीं कर सकता। ऐसा विश्वास जिसका मात्र दावा किया जाए एक मुर्दे के समान बेजान और बेकार है। लेकिन अगर हमारा विश्वास सच्चा है तो यह हमें धार्मिक कर्मों के लिए उकसाएगा।
अपनी जीभ को क़ाबू में रखिए!
१२. कलीसिया के प्राचीनों को क्या करना चाहिए?
१२ बोलना और सिखाना भी विश्वास का प्रमाण दे सकते हैं, लेकिन संतुलन की ज़रूरत है। (याकूब ३:१-४) कलीसिया में शिक्षक होने के नाते, प्राचीनों की भारी ज़िम्मेदारी और परमेश्वर के प्रति बड़ी जवाबदेही बनती है। इसलिये उन्हें नम्रता से अपने अभिप्रायों और योग्यताओं को जाँचना चाहिए। ज्ञान और योग्यता के अलावा इन पुरुषों में परमेश्वर और संगी विश्वासियों के लिए गहरा प्रेम होना चाहिए। (रोमियों १२:३, १६; १ कुरिन्थियों १३:३, ४) प्राचीनों को अपनी सलाह शास्त्र के आधार पर ही देनी चाहिए। अगर एक प्राचीन ग़लत शिक्षा देता है और उसकी वज़ह से दूसरे मुसीबत का सामना करते हैं तो मसीह द्वारा परमेश्वर उसे कठोर न्याय देगा। इसलिए प्राचीनों को नम्र और अध्ययनशील होना चाहिए और वफ़ादारी से परमेश्वर के वचन पर चलते रहना चाहिए।
१३. हम वचन में क्यों चूकते हैं?
१३ बढ़िया से बढ़िया शिक्षक भी—दरअसल हम सभी अपरिपूर्णता के कारण—“बहुत बार चूक जाते हैं।” वचन में चूकना सबसे ज़्यादा होनेवाली और संभवतः सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुँचानेवाली कमज़ोरी है। याकूब कहता है: “जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिद्ध मनुष्य है; और सारी देह पर भी लगाम लगा सकता है।” जैसा यीशु मसीह को अपनी जीभ पर पूरी तरह क़ाबू था वैसा हमें नहीं है। अगर हम इसे क़ाबू में कर पाएँ तो हम शरीर के बाक़ी अंगों को भी क़ाबू में कर सकते हैं। आख़िरकार लगाम से ही घोड़ा जहाँ चाहे वहाँ ले जाया जाता है और प्रचण्ड हवाओं से चलनेवाले बड़े-बड़े जहाज़ भी एक छोटी-सी पतवार से माँझी की इच्छा के अनुसार घुमाए जाते हैं।
१४. जीभ को क़ाबू में रखने के लिए प्रयास की ज़रूरत पर याकूब कैसे ज़ोर देता है?
१४ हम सभी को यह बात पूरी ईमानदारी से स्वीकार करनी चाहिए कि जीभ को क़ाबू में रखने के लिए कड़े प्रयास की ज़रूरत होती है। (याकूब ३:५-१२) घोड़े की तुलना में लगाम छोटी होती है; वैसे ही जहाज़ की तुलना में पतवार छोटी होती है। और जब मनुष्य के शरीर से तुलना की जाती है, तो जीभ भी छोटी है “और [फिर भी] बड़ी बड़ी डींगे मारती है।” क्योंकि शास्त्र यह साफ़ बताता है कि परमेश्वर को घमंड से नफ़रत है, तो आइए इससे दूर रहने के लिए हम उससे सहायता माँगे। (भजन १२:३, ४; १ कुरिन्थियों ४:७) सो जब हम ग़ुस्से में हों तब भी हम अपनी जीभ को क़ाबू में रखें और यह याद रखें कि पूरे जंगल में आग लगाने के लिए एक चिंगारी ही काफ़ी होती है। जैसे याकूब दिखाता है, “जीभ भी एक आग है” जो बहुत भारी नुक़सान करने की ताक़त रखती है। (नीतिवचन १८:२१) बेक़ाबू जीभ “अधर्म का एक लोक है”! इस अधर्मी संसार का हरेक अवगुण बेक़ाबू जीभ से संबंध रखता है। चुग़लख़ोरी और झूठी शिक्षा जैसी नुक़सानदायक बातों के लिए यह ज़िम्मेदार है। (लैव्यव्यवस्था १९:१६; २ पतरस २:१) आप क्या सोचते हैं? क्या हमारे विश्वास से हमें अपनी जीभ को क़ाबू में रखने के कड़े प्रयास के लिए प्रेरित नहीं होना चाहिए?
१५. बेलगाम जीभ क्या नुक़सान कर सकती है?
१५ बेलगाम जीभ पूरी तरह ‘हम पर कलंक लगा देती है।’ उदाहरण के लिए अगर हम बार-बार झूठ बोलते पकड़े जाएँ तो हम झूठे के नाम से बदनाम हो जाएँगे। फिर कैसे एक बेक़ाबू जीभ “जीवन की गति में आग लगा देती है”? (NHT) जीवन को एक अंतहीन चक्र बनाने के द्वारा। सिर्फ़ एक बेक़ाबू जीभ से पूरी कलीसिया परेशान हो सकती है। याकूब हिन्नोम की तराई “नरक कुण्ड [गेहन्ना]” का ज़िक्र करता है। जिसे एक वक़्त बच्चों की बलि चढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था और बाद में यह यरूशलेम का कूड़ा-करकट जलाने के लिए कूड़ेदान बन गयी। (यिर्मयाह ७:३१) इसलिए गेहन्ना विनाश का सूचक है। एक मायने में, गेहन्ना ने अपनी विनाशकारी शक्ति बेक़ाबू जीभ को दे दी है। अगर हम अपनी जीभ पर लगाम नहीं लगाते, तो शायद हम ख़ुद ही उस आग की चपेट में आ जाएँगे जो हमने लगायी है। (मत्ती ५:२२) किसी को बुरा-भला बोलने की वज़ह से शायद हम कलीसिया से निकाले भी जाएँ।—१ कुरिन्थियों ५:११-१३.
१६. एक बेक़ाबू जीभ से होनेवाले नुक़सान को देखते हुए हमें क्या करना चाहिए?
१६ आपने शायद परमेश्वर के वचन में पढ़ा हो कि परमेश्वर ने आज्ञा दी थी कि मनुष्य जीव-जंतुओं को अपने वश में रखे। (उत्पत्ति १:२८) और सभी तरह के जीवों को पालतू बनाया गया है। उदाहरण के लिए, पालतू बनाए गए बाज़ को शिकार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जिन ‘रेंगनेवाले जन्तुओं’ का ज़िक्र याकूब करता है शायद उनमें सपेरों द्वारा क़ाबू किए जानेवाले साँप शामिल हों। (भजन ५८:४, ५) मनुष्य ह्वेल मछली को भी क़ाबू में कर सकता है लेकिन पापपूर्ण मनुष्य होने के नाते हम जीभ को पूरी तरह क़ाबू में नहीं कर सकते। फिर भी, हमें गाली-गलौज, चुभनेवाली बातें या चुग़लख़ोरी जैसे काम करने से दूर रहना चाहिए। एक बेक़ाबू जीभ ज़हर से भरा हुआ एक ख़तरनाक हथियार हो सकती है। (रोमियों ३:१३) दुःख की बात है कि झूठे शिक्षकों की जीभ ने कुछ आरंभिक मसीहियों को परमेश्वर से दूर कर दिया था। सो आइए हम कभी-भी धर्मत्यागियों की ज़हरीली बातों में न आएँ, चाहे लिखी हों या कही गयी हों।—१ तीमुथियुस १:१८-२०; २ पतरस २:१-३.
१७, १८. याकूब ३:९-१२ में किस दोहरेपन की ओर इशारा किया गया है और हमें इस मामले में क्या करना चाहिए?
१७ परमेश्वर में विश्वास और उसे प्रसन्न करने की इच्छा हमें धर्मत्याग से बचा सकते हैं और जीभ का दोहरा इस्तेमाल करने से रोक सकते हैं। कुछ लोगों के इस दोहरेपन की ओर इशारा करते हुए, याकूब कहता है कि ‘इसी जीभ से हम अपने पिता, यहोवा की स्तुति करते हैं; और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्वर के स्वरूप में उत्पन्न हुए हैं स्राप देते हैं।’ (उत्पत्ति १:२६) यहोवा इस अर्थ में हमारा पिता है कि वह “सब को जीवन और स्वास और सब कुछ देता है।” (प्रेरितों १७:२४, २५) वह आत्मिक अर्थ में अभिषिक्त मसीहियों का भी पिता है। हम सभी मानसिक और नैतिक गुणों में, ‘परमेश्वर का स्वरूप’ हैं और इसमें प्रेम, न्याय और बुद्धि हमें जानवरों से अलग करते हैं। तो फिर, अगर हम यहोवा पर विश्वास रखते हैं तो हमें क्या करना चाहिए?
१८ अगर हम लोगों को स्राप देते हैं, तो इसका मतलब होगा कि हम उन्हें बददुआ देते हैं। चूँकि परमेश्वर के प्रेरित भविष्यवक्ताओं की हैसियत से हमें किसी को बददुआ देने का अधिकार नहीं मिला है, ऐसी बोली हमारी घृणा का प्रमाण होगी जिससे परमेश्वर को दिया धन्यवाद व्यर्थ हो जाएगा। एक ही मुँह से “धन्यवाद और स्राप” निकालना उचित नहीं। (लूका ६:२७, २८; रोमियों १२:१४, १७-२१; यहूदा ९) सभाओं में परमेश्वर की स्तुति गाना और बाद में संगी विश्वासियों की बुराई करना कितना ही पापपूर्ण होगा! मीठा और खारा पानी दोनों एक ही सोते से नहीं निकल सकता। जैसे “अंजीर के पेड़ में जैतून, या दाख की लता में अंजीर [नहीं] लग सकते,” खारे सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता। अगर हम, जिन्हें अच्छी बातें करनी चाहिए, लगातार कटु बातें बोलते हैं तो ज़रूर आध्यात्मिक रूप से कुछ गड़बड़ है। अगर हमें कटु बातें बोलने की आदत पड़ चुकी है, तो हम ऐसी बातें न करने के लिए यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना करें।—भजन ३९:१.
ऊपर से आनेवाली बुद्धि से काम कीजिए
१९. अगर हमें स्वर्गीय बुद्धि से मार्गदर्शन मिल रहा है तो हम शायद दूसरों को कैसे प्रभावित करें?
१९ ऐसी बातें कहने और ऐसे काम करने के लिए जो विश्वासियों के लिए उचित हैं हम सभी को बुद्धि की ज़रूरत है। (याकूब ३:१३-१८) अगर हमें परमेश्वर का श्रद्धापूर्ण भय है तो वह हमें स्वर्गीय बुद्धि, ज्ञान का सही इस्तेमाल करने की योग्यता प्रदान करता है। (नीतिवचन ९:१०; इब्रानियों ५:१४) उसका वचन हमें सिखाता है कि “नम्रता . . . जो ज्ञान [बुद्धि] से उत्पन्न होती है” कैसे दिखाएँ। और क्योंकि हम नम्र हैं हम कलीसिया में शांति को बढ़ावा देते हैं। (१ कुरिन्थियों ८:१, २) अगर कुछ लोग संगी विश्वासियों को सिखानेवाले बड़े पंडित होने की डींग मारते हैं तो वे ‘मसीही सत्य के विरोध में झूठ बोल’ रहे हैं, जो उनके अहंकार की निंदा करता है। (गलतियों ५:२६) उनका “ज्ञान [बुद्धि]” “सांसारिक” है, जो परमेश्वर से विमुख पापपूर्ण मनुष्यों का लक्षण है। शरीर के झुकावों का फल होने के कारण यह “शारीरिक” है। यह “शैतानी” भी है क्योंकि दुष्ट आत्माएँ घमंडी हैं! (१ तीमुथियुस ३:६) सो आइए हम बुद्धि और नम्रता से काम करें ताकि ऐसा माहौल पैदा न करें जिसमें चुग़लख़ोरी और पक्षपात जैसे ‘दुष्कर्म’ पनप सकते हैं।
२०. आप स्वर्गीय बुद्धि की परिभाषा कैसे देंगे?
२० “जो ज्ञान [बुद्धि] ऊपर से आता है वह पहिले तो पवित्र होता है,” हमें नैतिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करता है। (२ कुरिन्थियों ७:११) यह “मिलनसार” होता है, शांति बनाए रखने के लिए हमें प्रेरित करता है। (इब्रानियों १२:१४) स्वर्गीय बुद्धि हमें “कोमल” बनाती है, न कि हठधर्मी जिससे बात करना भी मुश्किल हो। (फिलिप्पियों ४:५) ऊपर से आनेवाली बुद्धि “मृदुभाव [आज्ञा मानने को तत्पर होती]” है, जो ईश्वरीय शिक्षण के प्रति आज्ञाकारिता और यहोवा के संगठन के प्रति सहयोग को प्रोत्साहित करती है। (रोमियों ६:१७) ऊपर की बुद्धि हमें दयावंत, स्नेही भी बनाती है। (यहूदा २२, २३) ‘अच्छे फलों से लदी’ होने की वज़ह से यह दूसरों के लिए परवाह तथा भलाई, धार्मिकता और सत्य के सामंजस्य में कार्यों को प्रोत्साहित करती है। (इफिसियों ५:९) और शांतिदूत होने के नाते, हम ‘धार्मिकता के फल’ का आनंद उठाते हैं जो मेल-मिलाप के वातावरण में पनपता है।
२१. याकूब २:१-३:१८ के अनुसार, परमेश्वर में हमारे विश्वास को हमें किन कर्मों के लिए उकसाना चाहिए?
२१ तो फिर, ज़ाहिर है कि विश्वास हमें कर्मों के लिए उकसाता है। यह हमें निष्पक्ष, दयावंत और भले कर्म करने में तत्पर बनाता है। विश्वास हमें अपनी जीभ पर क़ाबू पाने और स्वर्गीय बुद्धि के साथ काम करने में मदद देता है। लेकिन हम इस पत्री से सिर्फ़ इतना ही नहीं सीखते। याकूब हमें और भी सलाह देता है जो ऐसे लोगों के तौर पर चलने में हमारी मदद कर सकती है जो यहोवा में विश्वास रखते हैं।
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ पक्षपात करना ग़लत क्यों है?
◻ विश्वास और कर्म कैसे जुड़े हुए हैं?
◻ जीभ को क़ाबू में रखना इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
◻ स्वर्गीय बुद्धि कैसी है?