परमेश्वर के संगठन के सदस्य बने रहकर बचे रहिए
“यहोवा का नाम एक दृढ़ गढ़ है। धर्मी जन उसमें भागकर सुरक्षित रहता है।”—नीतिवचन १८:१०, NHT.
१. यीशु की प्रार्थना के मुताबिक मसीही किन मुसीबतों का सामना कर रहे हैं?
यीशु ने मरने से कुछ ही समय पहले अपने स्वर्गीय पिता से अपने चेलों के लिए बिनती की। चिंता से भरकर उसने कहा: “मैं ने तेरा वचन उन्हें पहुंचा दिया है, और संसार ने उन से बैर किया, क्योंकि जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। मैं यह बिनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख।” (यूहन्ना १७:१४, १५) यीशु जानता था कि यह संसार मसीहियों के लिए खतरनाक जगह होगा। यह उनसे नफरत करेगा, उन पर झूठे इलज़ाम लगाएगा और उन पर ज़ुल्म ढाएगा। (मत्ती ५:११, १२; १०:१६, १७) और यह उन्हें भ्रष्ट करने की भी कोशिश करेगा।—२ तीमुथियुस ४:१०; १ यूहन्ना २:१५, १६.
२. मसीही लोग आध्यात्मिक सुरक्षा कहाँ पा सकते हैं?
२ मसीहियों से नफरत करनेवाला यह संसार ऐसे लोगों से बना है जो परमेश्वर से दूर हैं और शैतान के वश में हैं। (१ यूहन्ना ५:१९) यह संसार मसीही कलीसिया से कहीं ज़्यादा बड़ा है और खुद शैतान किसी भी इंसान से कहीं ज़्यादा ताकतवर है। इसलिए संसार की नफरत एक बहुत बड़ा खतरा है। तो फिर यीशु के चेले आध्यात्मिक सुरक्षा कहाँ पा सकते हैं? दिसंबर १, १९२२ के प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के अंक में इसका जवाब बताया गया: “आज हम बुरे दिनों में जी रहे हैं। शैतान के संगठन और परमेश्वर के संगठन के बीच लड़ाई जारी है। यह एक महायुद्ध है।” इस संग्राम में आध्यात्मिक सुरक्षा पाने की जगह परमेश्वर का संगठन है। शब्द “संगठन” बाइबल में नहीं पाया जाता और १९२० के दशक में पहली बार “परमेश्वर का संगठन” शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। तो फिर यह संगठन क्या है? और हम इसमें कैसे सुरक्षा पा सकते हैं?
यहोवा का संगठन
३, ४. (क) एक डिक्शनरी और प्रहरीदुर्ग के मुताबिक, संगठन क्या है? (ख) यहोवा के साक्षियों की अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को किस मायने में एक संगठन कहा जा सकता है?
३ व्यावहारिक हिंदी-अंग्रेज़ी डिक्शनरी के मुताबिक संगठन का मतलब है “एक संगठित समूह।” इसके मुताबिक पहली सदी के मसीही “भाइयों” की बिरादरी को एक संगठन कहना गलत नहीं होगा क्योंकि प्रेरितों ने यरूशलेम के शासी निकाय की निगरानी में इन मसीहियों को अलग-अलग कलीसियाओं में संगठित किया था। (१ पतरस २:१७) आज यहोवा के साक्षियों के समूह की बनावट भी वैसी ही है। पहली सदी के समूह की एकता ‘चरवाहों और शिक्षकों’ जैसे ‘मनुष्य रूपी दान’ से और ज़्यादा मज़बूत हुई। कुछ चरवाहे और शिक्षक कलीसियाओं का दौरा करते थे, वहीं कुछ अपने इलाके की कलीसियाओं में प्राचीन थे। (इफिसियों ४:८, ११, १२; प्रेरितों २०:२८) ऐसे ही “दान” आज यहोवा के साक्षियों की एकता को मज़बूती देते हैं।
४ नवंबर १, १९२२ के प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के अंक ने “संगठन” शब्द के बारे में कहा: “किसी खास योजना को पूरा करनेवाले लोगों का संघ एक संगठन होता है।” प्रहरीदुर्ग ने आगे कहा कि यहोवा के साक्षियों को एक संगठन कहना उन्हें “एक पंथ” नहीं बना देता, “बल्कि इसका मतलब सिर्फ इतना है कि बाइबल विद्यार्थी [यहोवा के साक्षी] परमेश्वर का उद्देश्य पूरा करने की कोशिश करते हैं और इस तरह करते हैं जैसे प्रभु हर काम करता है, यानी ठीक और व्यवस्थित तरीके से।” (१ कुरिन्थियों १४:३३) प्रेरित पौलुस ने बताया कि उसके समय में भी मसीही इसी तरह ठीक और व्यवस्थित तरीके से काम करते थे। उसने अभिषिक्त मसीहियों की कलीसिया की तुलना मानव देह से की, जिसमें बहुत से अंग होते हैं और हर अंग अपना-अपना काम करता है ताकि देह अच्छी तरह काम कर सके। (१ कुरिन्थियों १२:१२-२६) यह संगठन की एक बहुत बढ़िया मिसाल है! उस वक्त के मसीही संगठित क्यों थे? “परमेश्वर का उद्देश्य” और यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए।
५. परमेश्वर का दृश्य संगठन क्या है?
५ बाइबल ने भविष्यवाणी की थी कि इस सदी में सच्चे मसीही एकता में होंगे, जिन्हें एक “जाति” के रूप में एक ही “देश” में लाया जाएगा जहाँ वे ‘संसार की ज्योति बनकर चमकेंगे।’ (यशायाह ६६:८; फिलिप्पियों २:१५, NHT) इस संगठित “जाति” में अभी पचपन लाख से ज़्यादा लोग मौजूद हैं। (यशायाह ६०:८-१०, २२) लेकिन यह परमेश्वर के संगठन की पूरी तसवीर नहीं है। इस संगठन में स्वर्गदूत भी शामिल हैं।
६. मोटे तौर पर कहा जाए तो परमेश्वर के संगठन में कौन-कौन शामिल हैं?
६ कई मौकों पर स्वर्गदूतों ने परमेश्वर की सेवा करनेवाले इंसानों के साथ मिलकर काम किया है। (उत्पत्ति २८:१२; दानिय्येल १०:१२-१४; १२:१; इब्रानियों १:१३, १४; प्रकाशितवाक्य १४:१४-१६) इसलिए, मई १५, १९२५ के प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के अंक ने बिलकुल ठीक कहा: “सभी पवित्र स्वर्गदूत परमेश्वर के संगठन के सदस्य हैं।” इसके अलावा, इसने कहा: “परमेश्वर के संगठन का सिर प्रभु यीशु मसीह [है], जो सारी शक्ति और अधिकार रखता है।” (मत्ती २८:१८) इसलिए मोटे तौर पर कहा जाए तो परमेश्वर के संगठन में वे सभी शामिल हैं जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए मिलकर काम करते हैं। (बक्स देखिए।) इस संगठन का सदस्य होना कितने बड़े सम्मान की बात है! और उस समय की बाट जोहना कितनी खुशी की बात है जब स्वर्ग में और पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणी एक होकर यहोवा परमेश्वर की महिमा करने के लिए संगठित होंगे! (प्रकाशितवाक्य ५:१३, १४) लेकिन, आज परमेश्वर का संगठन हमें कौन-सी सुरक्षा देता है?
परमेश्वर के संगठन में सुरक्षित—कैसे?
७. किस तरीके से परमेश्वर का संगठन हमें सुरक्षित रखता है?
७ परमेश्वर का संगठन शैतान और उसके छल-कपट से हमारी रक्षा कर सकता है। (इफिसियों ६:११) यहोवा की उपासना करनेवालों पर शैतान दबाव डालता है, उन्हें सताता है और उन्हें फँसाता है। यह सब करने में शैतान का बस एक ही मकसद है: ‘जिस मार्ग से उन्हें जाना चाहिए’ उससे उन्हें दूर ले जाना। (यशायाह ४८:१७. मत्ती ४:१-११ से तुलना कीजिए।) इस संसार में रहते हुए हम इन हमलों से पूरी तरह तो कभी नहीं बच पाएँगे। लेकिन, परमेश्वर के साथ हमारा करीबी रिश्ता और उसका संगठन हमारी हिम्मत बढ़ाकर हमें सुरक्षित रखते हैं और इस तरह ये “मार्ग” पर चलते रहने में हमारी मदद करते हैं। ऐसे हमारी आशा कायम रहती है।
८. यहोवा का अदृश्य संगठन पृथ्वी पर परमेश्वर के दासों की कैसे मदद करता है?
८ परमेश्वर का संगठन यह सुरक्षा कैसे देता है? पहला तरीका है, हमें रात दिन यहोवा के स्वर्गदूतों की मदद हासिल है। जब यीशु ज़बरदस्त तनाव में था, तब एक स्वर्गदूत ने उसकी मदद की। (लूका २२:४३) जब पतरस की जान खतरे में थी तब एक स्वर्गदूत ने चमत्कार से उसे बचा लिया। (प्रेरितों १२:६-११) हालाँकि आज ऐसे चमत्कार नहीं होते, फिर भी यहोवा के लोगों से वायदा किया गया है कि उनके प्रचार कार्य में स्वर्गदूत उनके साथ रहेंगे। (प्रकाशितवाक्य १४:६, ७) मुसीबतों का सामना करते वक्त उनके पास अकसर असीम सामर्थ होती है। (२ कुरिन्थियों ४:७) इसके अलावा, उन्हें इस बात का एहसास रहता है कि “यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है।”—भजन ३४:७.
९, १०. यह कैसे कहा जा सकता है कि “यहोवा का नाम एक दृढ़ गढ़ है,” और यह बात परमेश्वर के संपूर्ण संगठन पर कैसे लागू होता है?
९ यहोवा का दृश्य संगठन भी एक सुरक्षा है। कैसे? नीतिवचन १८:१० (NHT) में लिखा है: “यहोवा का नाम एक दृढ़ गढ़ है। धर्मी जन उसमें भागकर सुरक्षित रहता है।” इसका मतलब यह नहीं है कि परमेश्वर के नाम का सिर्फ जाप करने से सुरक्षा मिलती है। इसके बजाय, परमेश्वर के नाम की शरण लेने का मतलब है कि हमारा भरोसा खुद यहोवा पर हो। (भजन २०:१, NHT; १२२:४) इसका मतलब है हम उसकी प्रभुता के लिए वफादारी दिखाएँ, उसके नियमों और उसूलों को मानें और उसकी प्रतिज्ञाओं पर विश्वास रखें। (भजन ८:१-९; यशायाह ५०:१०; इब्रानियों ११:६) इसमें यह भी शामिल है कि हम यहोवा को छोड़ किसी और की भक्ति न करें। जो लोग इस तरीके से यहोवा की उपासना करते हैं केवल वही भजनहार की तरह कह सकते हैं: “हमारा हृदय [यहोवा] के कारण आनन्दित होगा, क्योंकि हम ने उसके पवित्र नाम का भरोसा रखा है।”—भजन ३३:२१; १२४:८.
१० जैसा मीका ने कहा था आज परमेश्वर के दृश्य संगठन के सभी लोग यही कहते हैं: “हम लोग अपने परमेश्वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।” (मीका ४:५) आज के संगठन का मुख्य भाग ‘परमेश्वर का इस्राएल’ है, जिसे बाइबल में “उसके नाम के लिये एक लोग” कहा गया है। (गलतियों ६:१६; प्रेरितों १५:१४; यशायाह ४३:६, ७, NHT; १ पतरस २:१७) इसलिए, यहोवा के संगठन का सदस्य होने का मतलब है उन लोगों में होना जो परमेश्वर के नाम की शरण लेते हैं और सुरक्षा पाते हैं।
११. किन खास तरीकों से यहोवा का संगठन उन लोगों को सुरक्षा देता है जो इसके सदस्य हैं?
११ साथ ही, परमेश्वर का दृश्य संगठन विश्वास रखनेवालों का समाज है, यानी संगी विश्वासियों की एक ऐसी बिरादरी है जो एक दूसरे का हौसला बढ़ाती है और एक दूसरे को प्रोत्साहन देती है। (नीतिवचन १३:२०; रोमियों १:१२) यह ऐसी जगह है जहाँ मसीही चरवाहे भेड़ों की देखभाल करते हैं, बीमार और हताश भेड़ों को प्रोत्साहन देते हैं और जो गिर चुकी हैं उन्हें फिर से उठाने की कोशिश करते हैं। (यशायाह ३२:१, २; १ पतरस ५:२-४) “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” इस संगठन के ज़रिए “समय पर भोजन” देता है। (मत्ती २४:४५) यह “दास,” जो अभिषिक्त मसीहियों से बना है, हमें अच्छी-से-अच्छी आध्यात्मिक वस्तुएँ देता है, जैसे बाइबल पर आधारित सही ज्ञान जो अनंत जीवन की ओर ले जा सकता है। (यूहन्ना १७:३) इस “दास” के मार्गदर्शन की बदौलत, मसीहियों को उत्तम नैतिक स्तर कायम रखने में और जिस खतरनाक माहौल में वे रहते हैं उसमें ‘सांपों की नाईं बुद्धिमान और कबूतरों की नाईं भोले बने’ रहने में मदद मिलती है। (मत्ती १०:१६) और ‘प्रभु के काम में बढ़ते जाने’ के लिए उन्हें लगातार सहायता दी जाती है, इस काम में लगे रहना ही एक बड़ी सुरक्षा है।—१ कुरिन्थियों १५:५८.
परमेश्वर के संगठन के सदस्य कौन हैं?
१२. परमेश्वर के स्वर्गीय संगठन में कौन-कौन शामिल हैं?
१२ इसलिए कि यह सुरक्षा सिर्फ उन लोगों को मिलती है जो परमेश्वर के संगठन के सदस्य हैं, तो सवाल यह है कि इनमें कौन-कौन शामिल हैं? जहाँ तक स्वर्गीय संगठन की बात है, इस सवाल का जवाब साफ है। शैतान और उसके दूत अब स्वर्ग में नहीं हैं। दूसरी तरफ, वफादार स्वर्गदूत अब भी स्वर्ग की “साधारण सभा” में मौजूद हैं। प्रेरित यूहन्ना ने देखा कि अंतिम दिनों के दौरान “मेम्ना,” करूब (‘चार प्राणी’) और ‘बहुत से स्वर्गदूत’ परमेश्वर के सिंहासन के पास होंगे। उनके साथ २४ प्राचीन होंगे जो उन अभिषिक्त मसीहियों को दर्शाते हैं जिन्हें महान स्वर्गीय विरासत मिल चुकी है। (इब्रानियों १२:२२, २३; प्रकाशितवाक्य ५:६, ११; १२:७-१२) साफ ज़ाहिर है कि ये सभी परमेश्वर के संगठन के सदस्य हैं। लेकिन, जब इंसानों की बात आती है तब जवाब इतना साफ नहीं है।
१३. यीशु ने उन लोगों की पहचान के बारे में क्या बताया जो परमेश्वर के संगठन के सदस्य हैं?
१३ यीशु ने कुछ ऐसे लोगों के बारे में बताया जो उसको मानने का दावा करेंगे: “उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे; हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए? तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा कि मैं ने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।” (मत्ती ७:२२, २३) अगर एक इंसान कुकर्मी है तो वह बेशक परमेश्वर के संगठन का सदस्य नहीं हो सकता, फिर चाहे वह कैसा भी दावा क्यों न करे और उपासना के लिए चाहे कहीं भी क्यों न जाए। यीशु ने यह भी बताया कि उस इंसान की पहचान कैसे की जा सकती है जो सचमुच परमेश्वर के संगठन का सदस्य है। उसने कहा: “जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।”—मत्ती ७:२१.
१४. परमेश्वर के संगठन के सदस्यों पर उसकी किस इच्छा को पूरा करने की ज़िम्मेदारी है?
१४ इसलिए परमेश्वर के ऐसे संगठन का सदस्य होने के लिए, जिसका मुख्य भाग ‘स्वर्ग का राज्य’ है, एक व्यक्ति को परमेश्वर की इच्छा पूरी करनी होगी। उसकी इच्छा क्या है? उसकी इच्छा में एक ज़रूरी बात के बारे में पौलुस ने बताया जब उसने कहा: “[परमेश्वर] यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (१ तीमुथियुस २:४) अगर एक व्यक्ति सच्चे मन से बाइबल का सही-सही ज्ञान लेने, उसे अपने जीवन में लागू करने और “सब मनुष्यों” में उसे बाँटने की कोशिश करता है, तो वह परमेश्वर की इच्छा पूरी कर रहा है। (मत्ती २८:१९, २०; रोमियों १०:१३-१५) यहोवा की यह भी इच्छा है कि उसकी भेड़ों को खिलाया-पिलाया जाए और उनकी देखभाल की जाए। (यूहन्ना २१:१५-१७) मसीही सभाओं का इस देखभाल में एक बड़ा हाथ है। जो व्यक्ति इन सभाओं में आ सकता है मगर लापरवाही दिखाकर नहीं आता उसे परमेश्वर के संगठन में अपनी जगह की कदर नहीं।—इब्रानियों १०:२३-२५.
संसार से मित्रता
१५. याकूब ने अपने समय की कलीसियाओं को क्या चेतावनी दी?
१५ यीशु की मौत के लगभग ३० साल बाद, उसके सौतेले भाई याकूब ने कुछ बातें बतायीं जिनकी वज़ह से परमेश्वर के संगठन में एक व्यक्ति का स्थान खतरे में पड़ सकता है। उसने लिखा: “हे व्यभिचारिणियो, क्या तुम नहीं जानतीं, कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है? सो जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्वर का बैरी बनाता है।” (याकूब ४:४) परमेश्वर का बैरी उसके संगठन का सदस्य हरगिज़ नहीं हो सकता। तो फिर, संसार से मित्रता का क्या मतलब है? कहा गया है कि इस मित्रता के अलग-अलग रूप हैं जैसे बुरी संगति की लालसा करना या उसमें पड़ जाना। इसके अलावा, याकूब ने एक खास बात पर ध्यान दिलवाया—गलत सोच-विचार, जो बुरे चालचलन के रास्ते पर ले जा सकता है।
१६. क्या लिखने के बाद याकूब ने आगाह किया कि संसार से मित्रता करना परमेश्वर से बैर करना है?
१६ याकूब ४:१-३ में हम पढ़ते हैं: “तुम में लड़ाइयां और झगड़े कहां से आ गए? क्या उन सुख-विलासों से नहीं जो तुम्हारे अंगों में लड़ते-भिड़ते हैं? तुम लालसा रखते हो, और तुम्हें मिलता नहीं; तुम हत्या और डाह करते हो, और कुछ प्राप्त नहीं कर सकते; तुम झगड़ते और लड़ते हो; तुम्हें इसलिये नहीं मिलता, कि मांगते नहीं। तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्छा से मांगते हो, ताकि अपने भोग-विलास में उड़ा दो।” यह लिखने के बाद ही याकूब ने संसार से मित्रता के खिलाफ आगाह किया।
१७. पहली सदी की मसीही कलीसिया में किस तरह की ‘लड़ाइयाँ’ और ‘झगड़े’ हो रहे थे?
१७ याकूब के मरने के सदियों बाद, झूठे मसीही वाकई एक दूसरे से लड़ाइयाँ कर रहे थे और एक दूसरे की हत्याएँ कर रहे थे। लेकिन, याकूब पहली सदी के “परमेश्वर के इस्राएल” के उन सदस्यों को लिख रहा था, जो आगे चलकर स्वर्ग में ‘याजक और राजा’ बननेवाले थे। (प्रकाशितवाक्य २०:६) उन्होंने एक दूसरे की हत्या नहीं की ना ही उन्होंने सचमुच की लड़ाइयों में एक दूसरे की जान ली। तो फिर याकूब ने ऐसा क्यों कहा कि मसीहियों के बीच यह सब हो रहा था? प्रेरित यूहन्ना ने कहा कि जो कोई अपने भाई से नफरत करे वह हत्यारा है। और पौलुस ने कलीसियाओं में लोगों के अलग-अलग व्यक्तित्वों की वज़ह से टकराव और कलह को ‘झगड़े’ और ‘बैर’ कहा। (तीतुस ३:९; २ तीमुथियुस २:१४; १ यूहन्ना ३:१५-१७) ज़ाहिर है कि संगी मसीहियों के बीच प्रेम न होने की बात ही याकूब के मन में थी। आपस में मसीही इस तरह बर्ताव कर रहे थे जैसे अकसर संसार के लोग एक दूसरे के साथ बर्ताव करते हैं।
१८. मसीहियों के बीच किस वज़ह से प्यार और हमदर्दी की कमी आ सकती है?
१८ मसीही कलीसियाओं में यह सब क्यों हुआ? गलत सोच-विचार की वज़ह से, जैसे लालसा और “भोग-विलास” की चाहत। घमंड, जलन और कोई पद पाने की अभिलाषा से भी कलीसिया की प्यार करनेवाली मसीही बिरादरी में फूट पड़ सकती है। (याकूब ३:६, १४) ऐसा रवैया एक व्यक्ति को संसार का मित्र बनाता है इसलिए वह परमेश्वर का दुश्मन बन जाता है। ऐसा रवैया रखनेवाला कोई भी इंसान परमेश्वर के संगठन में कायम रहने की उम्मीद नहीं रख सकता।
१९. (क) अगर एक मसीही के दिल में गलत सोच-विचार पैदा होने लगे हैं तो सबसे पहले इसका ज़िम्मेदार कौन है? (ख) एक मसीही गलत सोच-विचार पर कैसे काबू पा सकता है?
१९ अगर ऐसे गलत सोच-विचार हमारे दिल में पैदा होने लगे हैं तो इसका ज़िम्मेदार कौन है? शैतान? हाँ, कुछ हद तक। वह इस संसार के ‘आकाश के अधिकार का हाकिम’ है, जिस संसार में चारों तरफ ऐसा रवैया पाया जाता है। (इफिसियों २:१, २; तीतुस २:१२) लेकिन, अकसर इस गलत सोच-विचार की जड़ हमारा असिद्ध, पापी शरीर ही होता है। संसार से मित्रता के खिलाफ चेतावनी देने के बाद, याकूब ने लिखा: “क्या तुम यह समझते हो, कि पवित्र शास्त्र व्यर्थ कहता है? जिस आत्मा को उस ने हमारे भीतर बसाया है, क्या वह ऐसी लालसा करता है, जिस का प्रतिफल डाह [“ईर्ष्या करने की प्रवृत्ति,” NW] हो?” (याकूब ४:५) हम सभी में जन्म से ही गलत काम करने की एक प्रवृत्ति होती है। (उत्पत्ति ८:२१; रोमियों ७:१८-२०) लेकिन, हम इस प्रवृत्ति का मुकाबला कर सकते हैं अगर हम अपनी कमज़ोरियों को कबूल करें और उन पर काबू पाने के लिए यहोवा की मदद पर भरोसा रखें। याकूब कहता है: “[परमेश्वर ईर्ष्या करने के हमारी जन्मजात प्रवृत्ति से] और भी अधिक अनुग्रह देता है।” (याकूब ४:६) वफादार मसीहियों की शारीरिक कमज़ोरियाँ उन पर हावी नहीं होतीं क्योंकि उनके पास परमेश्वर की पवित्र आत्मा की मदद है, वफादार मसीही भाइयों का सहारा है और यीशु का छुड़ौती बलिदान है। (रोमियों ७:२४, २५) वे परमेश्वर के संगठन में, संसार के नहीं बल्कि परमेश्वर के मित्र बनकर सुरक्षित रहते हैं।
२०. जो परमेश्वर के संगठन के सदस्य हैं उन्हें कौन-सी बढ़िया आशीषें मिलती हैं?
२० बाइबल वायदा करती है: “यहोवा अपनी प्रजा को बल देगा; यहोवा अपनी प्रजा को शान्ति की आशीष देगा।” (भजन २९:११) अगर हम यहोवा की आधुनिक “जाति,” यानी उसके दृश्य संगठन के सचमुच एक सदस्य हैं तो हमें भी उसका बल मिलेगा और जिस शांति की आशीष वह अपनी प्रजा को देता है वह हमें भी मिलेगी। माना कि शैतान का संसार यहोवा के दृश्य संगठन से बहुत बड़ा है और शैतान हमसे बहुत ज़्यादा ताकतवर है। लेकिन यहोवा सर्वशक्तिमान है। उसकी सक्रिय शक्ति को कोई हरा नहीं सकता। उसके शक्तिशाली स्वर्गदूत भी परमेश्वर की सेवा में हमारे साथ हैं। इसलिए, नफरत का सामना करते हुए भी हम मज़बूती से खड़े रह सकते हैं। यीशु की तरह हम भी संसार को जीत सकते हैं।—यूहन्ना १६:३३; १ यूहन्ना ४:४.
क्या आप समझा सकते हैं?
◻ परमेश्वर का दृश्य संगठन क्या है?
◻ परमेश्वर का संगठन किन तरीकों से सुरक्षा देता है?
◻ कौन-कौन परमेश्वर के संगठन के सदस्य हैं?
◻ हम इस संसार के मित्र बनने से कैसे बचे रह सकते हैं?
[पेज 9 पर बक्स]
परमेश्वर का संगठन क्या है?
यहोवा के साक्षियों की किताबों में, “परमेश्वर का संगठन” शब्दों का तीन तरीकों से इस्तेमाल किया जाता है।
१ यहोवा का स्वर्गीय, अदृश्य संगठन जो वफादार स्वर्गदूतों से बना है। बाइबल में इसे “ऊपर की यरूशलेम” कहा गया है।—गलतियों ४:२६.
२ यहोवा का मानवीय, दृश्य संगठन। आज इसमें अभिषिक्त शेषवर्ग के साथ बड़ी भीड़ शामिल है।
३ यहोवा का विश्वव्यापी संगठन। आज, इसमें यहोवा के स्वर्गीय संगठन के साथ-साथ उसके अभिषिक्त जन, पृथ्वी पर उसके दत्तक पुत्र शामिल हैं जिनकी आशा स्वर्ग जाने की है। कुछ समय बाद, इसमें पृथ्वी के सिद्ध किए गए इंसान भी शामिल हो जाएँगे।
[पेज 10 पर तसवीर]
यहोवा के संगठन के ज़रिए अच्छे-से-अच्छा आध्यात्मिक भोजन दिया जाता है